०१ निवेदन

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमद‍्भागवत साक्षात् भगवान‍्का स्वरूप है। इसीसे भक्त-भागवतगण भगवद‍्भावनासे श्रद्धापूर्वक इसकी पूजा-आराधना किया करते हैं। भगवान् व्यास-सरीखे भगवत्स्वरूप महापुरुषको जिसकी रचनासे ही शान्ति मिली; जिसमें सकाम कर्म, निष्काम कर्म, साधनज्ञान, सिद्धज्ञान, साधनभक्ति, साध्यभक्ति, वैधी भक्ति, प्रेमा भक्ति, मर्यादामार्ग, अनुग्रहमार्ग, द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत आदि सभीका परम रहस्य बड़ी ही मधुरताके साथ भरा हुआ है, जो सारे मतभेदोंसे ऊपर उठा हुआ अथवा सभी मतभेदोंका समन्वय करनेवाला महान् ग्रन्थ है—उस भागवतकी महिमा क्या कही जाय। इसके प्रत्येक अंगसे भगवद‍्भावपूर्ण पारमहंस्य ज्ञान-सुधा-सरिताकी बाढ़ आ रही है—‘यस्मिन् पारमहंस्यमेकममलं ज्ञानं परं गीयते।’ भगवान‍्के मधुरतम प्रेम-रसका छलकता हुआ सागर है—श्रीमद‍्भागवत। इसीसे भावुक भक्तगण इसमें सदा अवगाहन करते हैं। परम मधुर भगवद् रससे भरा हुआ ‘स्वादु-स्वादु पदे-पदे’ ऐसा ग्रन्थ बस, यह एक ही है। इसकी कहीं तुलना नहीं है। विद्याका तो यह भण्डार ही है। ‘विद्या भागवतावधिः’ प्रसिद्ध है। इस ‘परमहंससंहिता’ का यथार्थ आनन्द तो उन्हीं सौभाग्यशाली भक्तोंको किसी सीमातक मिल सकता है, जो हृदयकी सच्ची लगनके साथ श्रद्धा-भक्तिपूर्वक केवल ‘भगवत्प्रेमकी प्राप्ति’ के लिये ही इसका पारायण करते हैं। यों तो श्रीमद‍्भागवत आशीर्वादात्मक ग्रन्थ है, इसके पारायणसे लौकिक-पारलौकिक सभी प्रकारकी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसमें कई प्रकारके अमोघ प्रयोगोंके उल्लेख हैं—जैसे ‘नारायण-कवच’ (स्क० ६ अ०८)-से समस्त विघ्नोंका नाश तथा विजय, आरोग्य और ऐश्वर्यकी प्राप्ति; ‘पुंसवन-व्रत’ (स्क० ६ अ० १९)-से समस्त कामनाओंकी पूर्ति; ‘गजेन्द्रस्तवन’ (स्क० ८ अ० ३)-से ऋणसे मुक्ति, शत्रुसे छुटकारा और दुर्भाग्यका नाश, ‘पयोव्रत’ (स्क० ८ अ० १६)-से मनोवांछित संतानकी प्राप्ति; ‘सप्ताहश्रवण’ या पारायणसे प्रेतत्वसे मुक्ति। इन सब साधनोंका भगवत्प्रेम या भगवत्प्राप्तिके लिये निष्कामभावसे प्रयोग किया जाय तो इनसे भगवत्प्राप्तिके पथमें बड़ी सहायता मिलती है। श्रीमद‍्भागवतके सेवनका यथार्थ आनन्द तो भगवत्प्रेमी पुरुषोंको ही प्राप्त होता है। जो लोग अपनी विद्या-बुद्धिका अभिमान छोड़कर और केवल भगवत्कृपाका आश्रय लेकर श्रीमद‍्भागवतका अध्ययन करते हैं, वे ही इसके भावोंको अपने-अपने अधिकारके अनुसार हृदयंगम कर सकते हैं।
इसमें श्लोकोंका केवल अक्षरानुवाद नहीं है, पाठकोंको श्लोकोंका भाव भलीभाँति समझानेके लिये श्लोकोंमें आये हुए प्रत्येक शब्दके भावकी पूर्ण रक्षा करते हुए छोटे-छोटे वाक्योंमें उनकी व्याख्या की गयी है, साथ ही बहुत विस्तार न हो, इसका भी ध्यान रखा गया है। इसे अनुवाद न कहकर ‘सरल संक्षिप्त व्याख्या’ कहना अधिक उपयुक्त होगा। स्थान-स्थानपर, विशेष करके दशम स्कन्धमें कई जगह श्रीभगवान‍्की मधुर लीलाओंके रसास्वादनके लिये और लीलारहस्यको समझनेके लिये नयी-नयी टिप्पणियाँ भी दे दी गयी हैं, जिससे इसकी उपादेयता और सुन्दरता विशेष बढ़ गयी है। साथ ही आरम्भमें स्कन्दपुराणोक्त एक छोटा माहात्म्य, श्रीमद‍्भागवतकी पूजनविधि आदि, सप्ताहपारायणकी विधि तथा आवश्यक सामग्रीकी सूची एवं अन्तमें स्कन्दपुराणोक्त भागवतमाहात्म्य और विस्तृत प्रयोगविधि दे दी गयी है।
इसके पाठ-संशोधन, अनुवाद, प्रूफ-संशोधन आदिमें गोस्वामी श्रीचिम्मनलालजी और पं० श्रीरामनारायणदत्तजी शास्त्रीने बड़ा काम किया है। सभी बातोंमें सावधानी रखी गयी है, तथापि इतने बड़े ग्रन्थमें जहाँ-तहाँ भूलें अवश्य रही होंगी। कृपालु पाठकोंसे प्रार्थना है कि उन्हें पाठ, अनुवाद या छपाईमें जहाँ भूल दिखलायी दे, कृपया वे व्योरेवार लिख दें, जिससे यथायोग्य संशोधन कर दिया जाय। सहृदय पाठकोंसे प्रार्थना है कि असावधानतावश होनेवाली भूलोंके लिये वे क्षमा करें।
अन्तमें निवेदन है कि यह सब जो कुछ हुआ है, इसमें भगवत्कृपा ही कारण है और सब तो निमित्तमात्र है। मैं अपना बड़ा सौभाग्य समझता हूँ और अपने प्रति श्रीभगवान‍्की बड़ी कृपा मानता हूँ, जिससे इधर कई महीने प्रायः श्रीमद‍्भागवतके ही पठन-चिन्तन आदिमें लगे।
हनुमानप्रसाद पोद्दार