Skandapurāṇa Adhyāya 14
E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Adriaensen, R., H.T. Bakker and H. Isaacson, eds. The Skandapurāṇa. Vol. I. Adhyāyas 1-25. Critically Edited with Prolegomena and English Synopsis. Groningen: Egbert Forsten, 1998.
SP0140010: सनत्कुमार उवाच।
SP0140011: अथ वृत्ते विवाहे तु भवस्यामिततेजसः।
SP0140012: प्रहर्षमतुलं गत्वा देवाः सहपितामहाः।
SP0140013: तुष्टुवुर्वाग्भिरिष्टाभिः प्रणमन्तो महेश्वरम्॥ १॥
SP0140021: नमः पर्वतलिङ्गाय पर्वतेशाय वै नमः।
SP0140022: नमः पवनवेगाय विरूपायाजिताय च॥ २॥
SP0140031: नमः क्लेशविनाशाय दात्रे च शुभसम्पदाम्।
SP0140032: नमो नीलशिखण्डाय अम्बिकापतये नमः॥ ३॥
SP0140041: नमः पवनरूपाय शतरूपाय वै नमः।
SP0140042: नमो भैरवरूपाय विरूपनयनाय च॥ ४॥
SP0140051: नमः सहस्रनेत्राय सहस्रचरणाय च।
SP0140052: नमो वेदरहस्याय वेदाङ्गाय नमो नमः॥ ५॥
SP0140061: विष्टम्भनाय शक्रस्य बाहोर्वेदाङ्कुराय च।
SP0140062: चराचराधिपतये शमनाय नमो नमः॥ ६॥
SP0140071: सलिलेशयलिङ्गाय युगान्तायतलिङ्गिने।
SP0140072: नमः कपालमालाय कपालस्रग्मिणे नमः॥ ७॥
SP0140081: नमः कपालहस्ताय दंष्ट्रिणे गदिने नमः।
SP0140082: नमस्त्रैलोक्यवाहाय सप्तलोकरथाय च॥ ८॥
SP0140091: नमः खट्वाङ्गहस्ताय प्रमथार्तिहराय च।
SP0140092: नमो यज्ञशिरोहर्त्रे कृष्णकेशापहारिणे॥ ९॥
SP0140101: भगनेत्रनिपाताय पूष्णो दन्तहराय च।
SP0140102: नमः पिनाकशूलासिखड्गमुद्गरधारिणे॥ १०॥
SP0140111: नमो ऽस्तु कालकालाय तृतीयनयनाय च।
SP0140112: अन्तकान्तकृते चैव नमः पर्वतवासिने॥ ११॥
SP0140121: सुवर्णरेतसे चैव सर्पकुण्डलधारिणे।
SP0140122: वाड्वलेर्योगनाशाय योगिनां गुरवे नमः॥ १२॥
SP0140131: शशाङ्कादित्यनेत्राय ललाटनयनाय च।
SP0140132: नमः श्मशानरतये श्मशानवरदाय च॥ १३॥
SP0140141: नमो दैवतनाथाय त्र्यम्बकाय नमो नमः।
SP0140142: अशनीशतहासाय ब्रह्मण्यायाजिताय च॥ १४॥
SP0140151: गृहस्थसाधवे नित्यं जटिने ब्रह्मचारिणे।
SP0140152: नमो मुण्डार्धमुण्डाय पशूनां पतये नमः॥ १५॥
SP0140161: सलिले तप्यमानाय योगैश्वर्यप्रदाय च।
SP0140162: नमः शान्ताय दान्ताय प्रलयोत्पत्तिकारिणे॥ १६॥
SP0140171: नमो ऽनुग्रहकर्त्रे च स्थितिकर्त्रे नमो नमः।
SP0140172: नमो रुद्राय वसवे आदित्यायाश्विने नमः॥ १७॥
SP0140181: नमः पित्रे ऽथ साध्याय विश्वेदेवाय वै नमः।
SP0140182: नमः शर्वाय सर्वाय उग्राय वरदाय च॥ १८॥
SP0140191: नमो भीमाय सेनान्ये पशूनां पतये नमः।
SP0140192: शुचये रेरिहाणाय सद्योजाताय वै नमः॥ १९॥
SP0140201: महादेवाय चित्राय नमश्चित्ररथाय च।
SP0140202: प्रधानाय प्रमेयाय कार्याय करणाय च॥ २०॥
SP0140211: पुरुषाय नमस्ते ऽस्तु पुरुषेच्छाकराय च।
SP0140212: नमः पुरुषसंयोगप्रधानगुणकारिणे॥ २१॥
SP0140221: प्रवर्तकाय प्रकृतेः पुरुषस्य च सर्वशः।
SP0140222: कृताकृतस्य संवेत्त्रे फलसंयोगदाय च॥ २२॥
SP0140231: कालज्ञाय च सर्वत्र नमो नियमकारिणे।
SP0140232: नमो वैषम्यकर्त्रे च गुणानां वृत्तिदाय च॥ २३॥
SP0140241: नमस्ते देवदेवेश नमस्ते भूतभावन।
SP0140242: शिवः सौम्यः सुखो द्रष्टुं भव सोमो हि नः प्रभो॥ २४॥
SP0140250: सनत्कुमार उवाच।
SP0140251: एवं स भगवान्देवो जगत्पतिरुमापतिः।
SP0140252: स्तूयमानः सुरैः सर्वैरमरानिदमब्रवीत्॥ २५॥
SP0140261: द्रष्टुं सुखश्च सौम्यश्च देवानामस्मि भो सुराः।
SP0140262: वरं ब्रूत यथेष्टं च दातास्मि वदतानघाः॥ २६॥
SP0140271: ततस्ते प्रणताः सर्वे ऊचुः सब्रह्मकाः सुराः।
SP0140272: तवैव भगवन्हस्ते वर एषो ऽवतिष्ठताम्।
SP0140273: यदा कार्यं तदा नस्त्वं दास्यसे वरमीप्सितम्॥ २७॥
SP0140281: एवमस्त्विति तानुक्त्वा विसृज्य च सुरान्हरः।
SP0140282: लोकांश्च प्रमथैः सार्धं विवेश भवनं ततः॥ २८॥
SP0140291: यस्तु हरोत्सवमद्भुतमेतं गायति दैवतविप्रसमक्षम्।
SP0140292: सो ऽप्रतिरूपगणेशसमानो देहविपर्ययमेत्य सुखी स्यात्॥ २९॥
SP0140300: सनत्कुमार उवाच।
SP0140301: पाराशर्य स्तवं हीदं शृणुयाद्यः पठेत वा।
SP0140302: स स्वर्गलोकगो देवैः पूज्यते ऽमरराडिव॥ ३०॥
SP0149999: इति स्कन्दपुराणे चतुर्दशमो ऽध्यायः॥