विश्वास-प्रस्तुतिः
उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां
नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।
आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो
मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥
मूलम्
उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां
नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।
आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो
मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १)
माता त्रिपुरसुन्दरि! तुम भक्तजनोंकी मनोवांछा पूर्ण करनेवाली कल्पलता हो। माँ! यह पादुका आदरपूर्वक तुम्हारे श्रीचरणोंमें समर्पित है, इसे ग्रहण करो। यह उत्तम चन्दन और कुंकुमसे मिली हुई लाल जलकी धारासे धोयी गयी है। भाँति-भाँतिकी बहुमूल्य मणियों तथा मूँगोंसे इसका निर्माण हुआ है और बहुत-सी देवांगनाओंने अपने कर-कमलोंद्वारा भक्तिपूर्वक इसे सब ओरसे धो-पोंछकर स्वच्छ बना दिया है॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं
चञ्चत्काञ्चनसञ्चयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्।
एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं
गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥
मूलम्
देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं
चञ्चत्काञ्चनसञ्चयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्।
एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं
गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। २)
माँ! देवताओंने तुम्हारे बैठनेके लिये यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है, इसपर विराजो। यह वह सिंहासन है, जिसकी देवराज इन्द्र आदि भी पूजा करते हैं। अपनी कान्तिसे दमकते हुए राशि-राशि सुवर्णसे इसका निर्माण किया गया है। यह अपनी मनोहर प्रभासे सदा प्रकाशमान रहता है। इसके सिवा, यह चम्पा और केतकीकी सुगन्धसे पूर्ण अत्यन्त निर्मल तेल और सुगन्धयुक्त उबटन है, जिसे दिव्य युवतियाँ आदरपूर्वक तुम्हारी सेवामें प्रस्तुत कर रही हैं, कृपया इसे स्वीकार करो॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पश्चाद्देवि गृहाण शम्भुगृहिणि श्रीसुन्दरि प्रायशो
गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम्।
तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि
स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे॥
मूलम्
पश्चाद्देवि गृहाण शम्भुगृहिणि श्रीसुन्दरि प्रायशो
गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम्।
तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि
स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ३)
देवि! इसके पश्चात् यह विशुद्ध आँवलेका फल ग्रहण करो। शिवप्रिये! त्रिपुरसुन्दरि! इस आँवलेमें प्रायः जितने भी सुगन्धित पदार्थ हैं, वे सभी डाले गये हैं; इससे यह परम सुगन्धित हो गया है। अतः इसको लगाकर बालोंको कंघीसे झाड़ लो और गंगाजीकी पवित्र धारामें नहाओ। तदनन्तर यह दिव्य गन्ध सेवामें प्रस्तुत है, यह तुम्हारे आनन्दकी वृद्धि करनेवाला हो॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुराधिपतिकामिनीकरसरोजनालीधृतां
सचन्दनसकुङ्कुमागुरुभरेण विभ्राजिताम्।
महापरिमलोज्ज्वलां सरसशुद्धकस्तूरिकां
गृहाण वरदायिनि त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे॥
मूलम्
सुराधिपतिकामिनीकरसरोजनालीधृतां
सचन्दनसकुङ्कुमागुरुभरेण विभ्राजिताम्।
महापरिमलोज्ज्वलां सरसशुद्धकस्तूरिकां
गृहाण वरदायिनि त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ४)
सम्पत्ति प्रदान करनेवाली वरदायिनी त्रिपुरसुन्दरि! यह सरस शुद्ध कस्तूरी ग्रहण करो। इसे स्वयं देवराज इन्द्रकी पत्नी महारानी शची अपने कर-कमलोंमें लेकर सेवामें खड़ी हैं। इसमें चन्दन, कुंकुम तथा अगुरुका मेल होनेसे और भी इसकी शोभा बढ़ गयी है। इससे बहुत अधिक गन्ध निकलनेके कारण यह बड़ी मनोहर प्रतीत होती है॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गन्धर्वामरकिन्नरप्रियतमासंतानहस्ताम्बुज-
प्रस्तारैर्ध्रियमाणमुत्तमतरं काश्मीरजापिञ्जरम्।
मातर्भास्वरभानुमण्डललसत्कान्तिप्रदानोज्ज्वलं
चैतन्निर्मलमातनोतु वसनं श्रीसुन्दरि त्वन्मुदम्॥
मूलम्
गन्धर्वामरकिन्नरप्रियतमासंतानहस्ताम्बुज-
प्रस्तारैर्ध्रियमाणमुत्तमतरं काश्मीरजापिञ्जरम्।
मातर्भास्वरभानुमण्डललसत्कान्तिप्रदानोज्ज्वलं
चैतन्निर्मलमातनोतु वसनं श्रीसुन्दरि त्वन्मुदम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ५)
माँ श्रीसुन्दरि! यह परम उत्तम निर्मल वस्त्र सेवामें समर्पित है, यह तुम्हारे हर्षको बढ़ावे। माता! इसे गन्धर्व, देवता तथा किन्नरोंकी प्रेयसी सुन्दरियाँ अपने फैलाये हुए कर-कमलोंमें धारण किये खड़ी हैं। यह केसरमें रँगा हुआ पीताम्बर है। इससे परम प्रकाशमान सूर्यमण्डलकी शोभामयी दिव्य कान्ति निकल रही है, जिसके कारण यह बहुत ही सुशोभित हो रहा है॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वर्णाकल्पितकुण्डले श्रुतियुगे हस्ताम्बुजे मुद्रिका
मध्ये सारसना नितम्बफलके मञ्जीरमङ्घ्रिद्वये।
हारो वक्षसि कङ्कणौ क्वणरणत्कारौ करद्वन्द्वके
विन्यस्तं मुकुटं शिरस्यनुदिनं दत्तोन्मदं स्तूयताम्॥
मूलम्
स्वर्णाकल्पितकुण्डले श्रुतियुगे हस्ताम्बुजे मुद्रिका
मध्ये सारसना नितम्बफलके मञ्जीरमङ्घ्रिद्वये।
हारो वक्षसि कङ्कणौ क्वणरणत्कारौ करद्वन्द्वके
विन्यस्तं मुकुटं शिरस्यनुदिनं दत्तोन्मदं स्तूयताम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ६)
तुम्हारे दोनों कानोंमें सोनेके बने हुए कुण्डल झिलमिलाते रहें, कर-कमलकी एक अंगुलीमें अँगूठी शोभा पावे, कटिभागमें नितम्बोंपर करधनी सुहाये, दोनों चरणोंमें मंजीर मुखरित होता रहे, वक्षःस्थलमें हार सुशोभित हो और दोनों कलाइयोंमें कंकन खनखनाते रहें। तुम्हारे मस्तकपर रखा हुआ दिव्य मुकुट प्रतिदिन आनन्द प्रदान करे। ये सब आभूषण प्रशंसाके योग्य हैं॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ग्रीवायां धृतकान्तिकान्तपटलं ग्रैवेयकं सुन्दरं
सिन्दूरं विलसल्ललाटफलके सौन्दर्यमुद्राधरम्।
राजत्कज्जलमुज्ज्वलोत्पलदलश्रीमोचने लोचने
तद्दिव्यौषधिनिर्मितं रचयतु श्रीशाम्भवि श्रीप्रदे॥
मूलम्
ग्रीवायां धृतकान्तिकान्तपटलं ग्रैवेयकं सुन्दरं
सिन्दूरं विलसल्ललाटफलके सौन्दर्यमुद्राधरम्।
राजत्कज्जलमुज्ज्वलोत्पलदलश्रीमोचने लोचने
तद्दिव्यौषधिनिर्मितं रचयतु श्रीशाम्भवि श्रीप्रदे॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ७)
धन देनेवाली शिवप्रिया पार्वती! तुम गलेमें बहुत ही चमकीली सुन्दर हँसली पहन लो, ललाटके मध्यभागमें सौन्दर्यकी मुद्रा (चिह्न) धारण करनेवाले सिन्दूरकी बेंदी लगाओ तथा अत्यन्त सुन्दर पद्मपत्रकी शोभाको तिरस्कृत करनेवाले नेत्रोंमें यह काजल भी लगा लो, यह काजल दिव्य ओषधियोंसे तैयार किया गया है॥ ७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अमन्दतरमन्दरोन्मथितदुग्धसिन्धूद्भवं
निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे।
गृहाण मुखमीक्षितुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै-
र्विनिर्मितमघच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम्॥
मूलम्
अमन्दतरमन्दरोन्मथितदुग्धसिन्धूद्भवं
निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे।
गृहाण मुखमीक्षितुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै-
र्विनिर्मितमघच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ८)
पापोंका नाश करनेवाली सम्पत्तिदायिनी त्रिपुरसुन्दरि! अपने मुखकी शोभा निहारनेके लिये यह दर्पण ग्रहण करो। इसे साक्षात् रति रानी अपने कर-कमलोंमें लेकर सेवामें उपस्थित हैं। इस दर्पणके चारों ओर मूँगे जड़े हैं। प्रचण्ड वेगसे घूमनेवाले मन्दराचलकी मथानीसे जब क्षीरसमुद्र मथा गया, उस समय यह दर्पण उसीसे प्रकट हुआ था। यह चन्द्रमाकी किरणोंके समान उज्ज्वल है॥ ८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कस्तूरीद्रवचन्दनागुरुसुधाधाराभिराप्लावितं
चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिद्रव्यैः सुगन्धीकृतम्।
देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै-
रम्भःशाम्भवि संभ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके॥
मूलम्
कस्तूरीद्रवचन्दनागुरुसुधाधाराभिराप्लावितं
चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिद्रव्यैः सुगन्धीकृतम्।
देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै-
रम्भःशाम्भवि संभ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ९)
भगवान् शंकरकी धर्मपत्नी पार्वतीदेवी! देवांगनाओंके मस्तकपर रखे हुए बहुमूल्य रत्नमय कलशोंद्वारा शीघ्रतापूर्वक दिया जानेवाला यह निर्मल जल ग्रहण करो। इसे चम्पा और गुलाल आदि सुगन्धित द्रव्योंसे सुवासित किया गया है तथा यह कस्तूरीरस, चन्दन, अगुरु और सुधाकी धारासे आप्लावित है॥ ९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती-
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वमारादिभिः।
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये॥
मूलम्
कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती-
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वमारादिभिः।
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १०)
मैं कह्लार, उत्पल, नागकेसर, कमल, मालती, मल्लिका, कुमुद, केतकी और लाल कनेर आदि फूलोंसे, सुगन्धित पुष्पमालाओंसे तथा नाना प्रकारके रसोंकी धारासे लाल कमलके भीतर निवास करनेवाली श्रीचण्डिकादेवीकी पूजा करता हूँ॥ १०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजःकर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः।
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥
मूलम्
मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजःकर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः।
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। ११)
श्रीचण्डिका देवि! देववधुओंके द्वारा तैयार किया हुआ यह दिव्य धूप तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ानेवाला हो। यह धूप रत्नमय पात्रमें, जो सुगन्धका निवासस्थान है, रखा हुआ है; यह तुम्हें सन्तोष प्रदान करे। इसमें जटामांसी, गुग्गुल, चन्दन, अगुरु-चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुंकुम तथा घी मिलाकर उत्तम रीतिसे बनाया गया है॥ ११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्नयष्ट्यान्वितो
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे॥
मूलम्
घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्नयष्ट्यान्वितो
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १२)
देवी त्रिपुरसुन्दरि! तुम्हारी प्रसन्नताके लिये यहाँ यह दीप प्रकाशित हो रहा है। यह घीसे जलता है; इसकी दीयटमें सुन्दर रत्नका डंडा लगा है, इसे देवांगनाओंने बनाया है। यह दीपक सुवर्णके चषक (पात्र)-में जलाया गया है। इसमें कपूरके साथ बत्ती रखी है। यह भारी-से-भारी अन्धकारका भी नाश करनेवाला है॥ १२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जाती सौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिद्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥
मूलम्
जाती सौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिद्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १३)
श्रीचण्डिका देवि! देववधुओंने तुम्हारी प्रसन्नताके लिये यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है, इसमें अगहनीके चावलका स्वच्छ भात है, जो बहुत ही रुचिकर और चमेलीकी सुगन्धसे वासित है। साथ ही हींग, मिर्च और जीरा आदि सुगन्धित द्रव्योंसे छौंक-बघारकर बनाये हुए नाना प्रकारके व्यंजन भी हैं, इसमें भाँति-भाँतिके पकवान, खीर, मधु, दही और घीका भी मेल है॥ १३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम्।
सुधामधुरिमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम्॥
मूलम्
लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम्।
सुधामधुरिमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १४)
माँ! सुन्दर रत्नमय पात्रमें सजाकर रखा हुआ यह दिव्य ताम्बूल अपने मुखमें ग्रहण करो। लवंगकी कली चुभोकर इसके बीड़े लगाये गये हैं, अतः बहुत सुन्दर जान पड़ते हैं, इसमें बहुत-से पानके पत्तोंका उपयोग किया गया है। इन सब बीड़ोंमें कोमल जावित्री, कपूर और सोपारी पड़े हैं। यह ताम्बूल सुधाके माधुर्यसे परिपूर्ण है॥ १४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरत्प्रभवचन्द्रमःस्फुरितचन्द्रिकासुन्दरं
गलत्सुरतरङ्गिणीललितमौक्तिकाडम्बरम्।
गृहाण नवकाञ्चनप्रभवदण्डखण्डोज्ज्वलं
महात्रिपुरसुन्दरि प्रकटमातपत्रं महत्॥
मूलम्
शरत्प्रभवचन्द्रमःस्फुरितचन्द्रिकासुन्दरं
गलत्सुरतरङ्गिणीललितमौक्तिकाडम्बरम्।
गृहाण नवकाञ्चनप्रभवदण्डखण्डोज्ज्वलं
महात्रिपुरसुन्दरि प्रकटमातपत्रं महत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १५)
महात्रिपुरसुन्दरी माता पार्वती! तुम्हारे सामने यह विशाल एवं दिव्य छत्र प्रकट हुआ है, इसे ग्रहण करो। यह शरत्कालके चन्द्रमाकी चटकीली चाँदनीके समान सुन्दर है; इसमें लगे हुए सुन्दर मोतियोंकी झालर ऐसी जान पड़ती है, मानो देवनदी गंगाका स्रोत ऊपरसे नीचे गिर रहा हो। यह छत्र सुवर्णमय दण्डके कारण बहुत शोभा पा रहा है॥ १५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मातस्त्वन्मुदमातनोतु सुभगस्त्रीभिः सदाऽऽन्दोलितं
शुभ्रं चामरमिन्दुकुन्दसदृशं प्रस्वेददुःखापहम्।
सद्योऽगस्त्यवसिष्ठनारदशुकव्यासादिवाल्मीकिभिः
स्वे चित्ते क्रियमाण एव कुरुतां शर्माणि वेदध्वनिः॥
मूलम्
मातस्त्वन्मुदमातनोतु सुभगस्त्रीभिः सदाऽऽन्दोलितं
शुभ्रं चामरमिन्दुकुन्दसदृशं प्रस्वेददुःखापहम्।
सद्योऽगस्त्यवसिष्ठनारदशुकव्यासादिवाल्मीकिभिः
स्वे चित्ते क्रियमाण एव कुरुतां शर्माणि वेदध्वनिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १६)
माँ! सुन्दरी स्त्रियोंके हाथोंसे निरन्तर डुलाया जानेवाला यह श्वेत चँवर, जो चन्द्रमा और कुन्दके समान उज्ज्वल तथा पसीनेके कष्टको दूर करनेवाला है, तुम्हारे हर्षको बढ़ावे। इसके सिवा महर्षि अगस्त्य, वसिष्ठ, नारद, शुक, व्यास आदि तथा वाल्मीकि मुनि अपने-अपने चित्तमें जो वेदमन्त्रोंके उच्चारणका विचार करते हैं, उनकी वह मनःसंकल्पित वेदध्वनि तुम्हारे आनन्दकी वृद्धि करे॥ १६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वर्गाङ्गणे वेणुमृदङ्गशङ्ख-
भेरीनिनादैरुपगीयमाना।
कोलाहलैराकलिता तवास्तु
विद्याधरीनृत्यकला सुखाय॥
मूलम्
स्वर्गाङ्गणे वेणुमृदङ्गशङ्ख-
भेरीनिनादैरुपगीयमाना।
कोलाहलैराकलिता तवास्तु
विद्याधरीनृत्यकला सुखाय॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १७)
स्वर्गके आँगनमें वेणु, मृदंग, शंख तथा भेरीकी मधुर ध्वनिके साथ जो संगीत होता है तथा जिसमें अनेक प्रकारके कोलाहलका शब्द व्याप्त रहता है, वह विद्याधरीद्वारा प्रदर्शित नृत्य-कला तुम्हारे सुखकी वृद्धि करे॥ १७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवि भक्तिरसभावितवृत्ते
प्रीयतां यदि कुतोऽपि लभ्यते।
तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकं
जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम्॥
मूलम्
देवि भक्तिरसभावितवृत्ते
प्रीयतां यदि कुतोऽपि लभ्यते।
तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकं
जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १८)
देवि! तुम्हारे भक्तिरससे भावित इस पद्यमय स्तोत्रमें यदि कहींसे भी कुछ भक्तिका लेश मिले तो उसीसे प्रसन्न हो जाओ। माँ! तुम्हारी भक्तिके लिये चित्तमें जो आकुलता होती है, वही एकमात्र जीवनका फल है, वह कोटि-कोटि जन्म धारण करनेपर भी इस संसारमें तुम्हारी कृपाके बिना सुलभ नहीं होती॥ १८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतैः षोडशभिः पद्यैरुपचारोपकल्पितैः।
यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात्॥
मूलम्
एतैः षोडशभिः पद्यैरुपचारोपकल्पितैः।
यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०मा०। १९)
इन उपचारकल्पित सोलह पद्योंसे जो परा देवता भगवती त्रिपुरसुन्दरीका स्तवन करता है, वह उन उपचारोंके समर्पणका फल प्राप्त करता है॥ १९॥