०३ क्षमा-प्रार्थना

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥

मूलम्

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। १)
परमेश्वरि! मेरे द्वारा रात-दिन सहस्रों अपराध होते रहते हैं। ‘यह मेरा दास है’—यों समझकर मेरे उन अपराधोंको तुम कृपापूर्वक क्षमा करो॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥

मूलम्

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। २)
परमेश्वरि! मैं आवाहन नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करनेका ढंग भी नहीं जानता। क्षमा करो॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥

मूलम्

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। ३)
देवि! सुरेश्वरि! मैंने जो मन्त्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी कृपासे पूर्ण हो॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥

मूलम्

अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। ४)
सैकड़ों अपराध करके भी जो तुम्हारी शरणमें जा ‘जगदम्ब’ कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रह्मादि देवताओंके लिये भी सुलभ नहीं है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु॥

मूलम्

सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। ५)
जगदम्बिके! मैं अपराधी हूँ, किंतु तुम्हारी शरणमें आया हूँ। इस समय दयाका पात्र हूँ। तुम जैसा चाहो, वैसा करो॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥

मूलम्

अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। ६)
देवि! परमेश्वरि! अज्ञानसे, भूलसे अथवा बुद्धि भ्रान्त होनेके कारण मैंने जो न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करो और प्रसन्न होओ॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥

मूलम्

कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। ७)
सच्चिदानन्दस्वरूपा परमेश्वरि! जगन्माता कामेश्वरि! तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझपर प्रसन्न रहो॥ ७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥

मूलम्

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०क्ष०। ८)
देवि! सुरेश्वरि! तुम गोपनीयसे भी गोपनीय वस्तुकी रक्षा करनेवाली हो। मेरे निवेदन किये हुए इस जपको ग्रहण करो। तुम्हारी कृपासे मुझे सिद्धि प्राप्त हो॥ ८॥

मूलम् (समाप्तिः)

श्रीदुर्गार्पणमस्तु।