१७ मूर्तिरहस्यम्

पादटिप्पनी
  • देवीकी अंगभूता छः देवियाँ हैं—नन्दा, रक्तदन्तिका, शाकम्भरी, दुर्गा, भीमा और भ्रामरी। ये देवियोंकी साक्षात् मूर्तियाँ हैं, इनके स्वरूपका प्रतिपादन होनेसे इस प्रकरणको मूर्तिरहस्य कहते हैं।
मूलम् (वचनम्)

ऋषिरुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ॐ नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा।
स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्॥

मूलम्

ॐ नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा।
स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १)
ऋषि कहते हैं—राजन्! नन्दा नामकी देवी जो नन्दसे उत्पन्न होनेवाली हैं, उनकी यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाय तो वे तीनों लोकोंको उपासकके अधीन कर देती हैं॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कनकोत्तमकान्तिः सा सुकान्तिकनकाम्बरा।
देवी कनकवर्णाभा कनकोत्तमभूषणा॥

मूलम्

कनकोत्तमकान्तिः सा सुकान्तिकनकाम्बरा।
देवी कनकवर्णाभा कनकोत्तमभूषणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। २)
उनके श्रीअंगोंकी कान्ति कनकके समान उत्तम है। वे सुनहरे रंगके सुन्दर वस्त्र धारण करती हैं। उनकी आभा सुवर्णके तुल्य है तथा वे सुवर्णके ही उत्तम आभूषण धारण करती हैं॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कमलाङ्कुशपाशाब्जैरलङ्‍कृतचतुर्भुजा।
इन्दिरा कमला लक्ष्मीः सा श्री रुक्माम्बुजासना॥

मूलम्

कमलाङ्कुशपाशाब्जैरलङ्‍कृतचतुर्भुजा।
इन्दिरा कमला लक्ष्मीः सा श्री रुक्माम्बुजासना॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ३)
उनकी चार भुजाएँ कमल, अंकुश, पाश और शंखसे सुशोभित हैं। वे इन्दिरा, कमला, लक्ष्मी, श्री तथा रुक्माम्बुजासना (सुवर्णमय कमलके आसनपर विराजमान) आदि नामोंसे पुकारी जाती हैं॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

या रक्तदन्तिका नाम देवी प्रोक्ता मयानघ।
तस्याः स्वरूपं वक्ष्यामि शृणु सर्वभयापहम्॥

मूलम्

या रक्तदन्तिका नाम देवी प्रोक्ता मयानघ।
तस्याः स्वरूपं वक्ष्यामि शृणु सर्वभयापहम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ४)
निष्पाप नरेश! पहले मैंने रक्तदन्तिका नामसे जिन देवीका परिचय दिया है, अब उनके स्वरूपका वर्णन करूँगा; सुनो। वह सब प्रकारके भयोंको दूर करनेवाली हैं॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रक्ताम्बरा रक्तवर्णा रक्तसर्वाङ्गभूषणा।
रक्तायुधा रक्तनेत्रा रक्तकेशातिभीषणा॥

मूलम्

रक्ताम्बरा रक्तवर्णा रक्तसर्वाङ्गभूषणा।
रक्तायुधा रक्तनेत्रा रक्तकेशातिभीषणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ५)

विश्वास-प्रस्तुतिः

रक्ततीक्ष्णनखा रक्तदशना रक्तदन्तिका।
पतिं नारीवानुरक्ता देवी भक्तं भजेज्जनम्॥

मूलम्

रक्ततीक्ष्णनखा रक्तदशना रक्तदन्तिका।
पतिं नारीवानुरक्ता देवी भक्तं भजेज्जनम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ६)
वे लाल रंगके वस्त्र धारण करती हैं। उनके शरीरका रंग भी लाल ही है और अंगोंके समस्त आभूषण भी लाल रंगके हैं। उनके अस्त्र-शस्त्र, नेत्र, सिरके बाल, तीखे नख और दाँत सभी रक्तवर्णके हैं; इसलिये वे रक्तदन्तिका कहलाती और अत्यन्त भयानक दिखायी देती हैं। जैसे स्त्री पतिके प्रति अनुराग रखती है, उसी प्रकार देवी अपने भक्तपर (माताकी भाँति) स्नेह रखते हुए उसकी सेवा करती हैं॥ ५-६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वसुधेव विशाला सा सुमेरुयुगलस्तनी।
दीर्घौ लम्बावतिस्थूलौ तावतीव मनोहरौ॥

मूलम्

वसुधेव विशाला सा सुमेरुयुगलस्तनी।
दीर्घौ लम्बावतिस्थूलौ तावतीव मनोहरौ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ७)

विश्वास-प्रस्तुतिः

कर्कशावतिकान्तौ तौ सर्वानन्दपयोनिधी।
भक्तान् सम्पाययेद्देवी सर्वकामदुघौ स्तनौ॥

मूलम्

कर्कशावतिकान्तौ तौ सर्वानन्दपयोनिधी।
भक्तान् सम्पाययेद्देवी सर्वकामदुघौ स्तनौ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ८)
देवी रक्तदन्तिकाका आकार वसुधाकी भाँति विशाल है। उनके दोनों स्तन सुमेरु पर्वतके समान हैं। वे लंबे, चौड़े, अत्यन्त स्थूल एवं बहुत ही मनोहर हैं। कठोर होते हुए भी अत्यन्त कमनीय हैं तथा पूर्ण आनन्दके समुद्र हैं। सम्पूर्ण कामनाओंकी पूर्ति करनेवाले ये दोनों स्तन देवी अपने भक्तोंको पिलाती हैं॥ ७-८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

खड्गं पात्रं च मुसलं लाङ्गलं च बिभर्ति सा।
आख्याता रक्तचामुण्डा देवी योगेश्वरीति च॥

मूलम्

खड्गं पात्रं च मुसलं लाङ्गलं च बिभर्ति सा।
आख्याता रक्तचामुण्डा देवी योगेश्वरीति च॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ९)
वे अपनी चार भुजाओंमें खड्ग, पानपात्र, मुसल और हल धारण करती हैं। ये ही रक्तचामुण्डा और योगेश्वरीदेवी कहलाती हैं॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनया व्याप्तमखिलं जगत्स्थावरजङ्गमम्।
इमां यः पूजयेद्भक्त्या स व्याप्नोति चराचरम्॥

मूलम्

अनया व्याप्तमखिलं जगत्स्थावरजङ्गमम्।
इमां यः पूजयेद्भक्त्या स व्याप्नोति चराचरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १०)
इनके द्वारा सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त है। जो इन रक्तदन्तिकादेवीका भक्तिपूर्वक पूजन करता है, वह भी चराचर जगत् में व्याप्त होता है॥ १०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमाप्नुयात्।)
अधीते य इमं नित्यं रक्तदन्त्या वपुःस्तवम्।
तं सा परिचरेद्देवी पतिं प्रियमिवाङ्गना॥

मूलम्

(भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमाप्नुयात्।)
अधीते य इमं नित्यं रक्तदन्त्या वपुःस्तवम्।
तं सा परिचरेद्देवी पतिं प्रियमिवाङ्गना॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। ११)
(वह यथेष्ट भोगोंको भोगकर अन्तमें देवीके साथ सायुज्य प्राप्त कर लेता है।) जो प्रतिदिन रक्तदन्तिकादेवीके शरीरका यह स्तवन करता है, उसकी वे देवी प्रेमपूर्वक संरक्षणरूप सेवा करती हैं—ठीक उसी तरह, जैसे पतिव्रता नारी अपने प्रियतम पतिकी परिचर्या करती है॥ ११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शाकम्भरी नीलवर्णा नीलोत्पलविलोचना।
गम्भीरनाभिस्त्रिवलीविभूषिततनूदरी॥

मूलम्

शाकम्भरी नीलवर्णा नीलोत्पलविलोचना।
गम्भीरनाभिस्त्रिवलीविभूषिततनूदरी॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १२)
शाकम्भरीदेवीके शरीरकी कान्ति नीले रंगकी है। उनके नेत्र नीलकमलके समान हैं, नाभि नीची है तथा त्रिवलीसे विभूषित उदर (मध्यभाग) सूक्ष्म है॥ १२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुकर्कशसमोत्तुङ्गवृत्तपीनघनस्तनी।
मुष्टिं शिलीमुखापूर्णं कमलं कमलालया॥

मूलम्

सुकर्कशसमोत्तुङ्गवृत्तपीनघनस्तनी।
मुष्टिं शिलीमुखापूर्णं कमलं कमलालया॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १३)

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुष्पपल्लवमूलादिफलाढ्यं शाकसञ्चयम्।
काम्यानन्तरसैर्युक्तं क्षुत्तृण्मृत्युभयापहम्॥

मूलम्

पुष्पपल्लवमूलादिफलाढ्यं शाकसञ्चयम्।
काम्यानन्तरसैर्युक्तं क्षुत्तृण्मृत्युभयापहम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १४)

विश्वास-प्रस्तुतिः

कार्मुकं च स्फुरत्कान्ति बिभ्रती परमेश्वरी।
शाकम्भरी शताक्षी सा सैव दुर्गा प्रकीर्तिता॥

मूलम्

कार्मुकं च स्फुरत्कान्ति बिभ्रती परमेश्वरी।
शाकम्भरी शताक्षी सा सैव दुर्गा प्रकीर्तिता॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १५)
उनके दोनों स्तन अत्यन्त कठोर, सब ओरसे बराबर, ऊँचे, गोल, स्थूल तथा परस्पर सटे हुए हैं। वे परमेश्वरी कमलमें निवास करनेवाली हैं और हाथोंमें बाणोंसे भरी मुष्टि, कमल, शाकसमूह तथा प्रकाशमान धनुष धारण करती हैं। वह शाकसमूह अनन्त मनोवांछित रसोंसे युक्त तथा क्षुधा, तृषा और मृत्युके भयको नष्ट करनेवाला तथा फूल, पल्लव, मूल आदि एवं फलोंसे सम्पन्न है। वे ही शाकम्भरी, शताक्षी तथा दुर्गा कही गयी हैं॥ १३—१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्।
उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती॥

मूलम्

विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्।
उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १६)
वे शोकसे रहित, दुष्टोंका दमन करनेवाली तथा पाप और विपत्तिको शान्त करनेवाली हैं। उमा, गौरी, सती, चण्डी, कालिका और पार्वती भी वे ही हैं॥ १६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शाकम्भरीं स्तुवन् ध्यायञ्जपन् सम्पूजयन्नमन्।
अक्षय्यमश्नुते शीघ्रमन्नपानामृतं फलम्॥

मूलम्

शाकम्भरीं स्तुवन् ध्यायञ्जपन् सम्पूजयन्नमन्।
अक्षय्यमश्नुते शीघ्रमन्नपानामृतं फलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १७)
जो मनुष्य शाकम्भरीदेवीकी स्तुति, ध्यान, जप, पूजा और वन्दन करता है, वह शीघ्र ही अन्न, पान एवं अमृतरूप अक्षय फलका भागी होता है॥ १७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमापि नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा।
विशाललोचना नारी वृत्तपीनपयोधरा॥

मूलम्

भीमापि नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा।
विशाललोचना नारी वृत्तपीनपयोधरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १८)

विश्वास-प्रस्तुतिः

चन्द्रहासं च डमरुं शिरः पात्रं च बिभ्रती।
एकवीरा कालरात्रिः सैवोक्ता कामदा स्तुता॥

मूलम्

चन्द्रहासं च डमरुं शिरः पात्रं च बिभ्रती।
एकवीरा कालरात्रिः सैवोक्ता कामदा स्तुता॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। १९)
भीमादेवीका वर्ण भी नील ही है। उनकी दाढ़ें और दाँत चमकते रहते हैं। उनके नेत्र बड़े-बड़े हैं, स्वरूप स्त्रीका है, स्तन गोल-गोल और स्थूल हैं। वे अपने हाथोंमें चन्द्रहास नामक खड्ग, डमरू, मस्तक और पानपात्र धारण करती हैं। वे ही एकवीरा, कालरात्रि तथा कामदा कहलाती और इन नामोंसे प्रशंसित होती हैं॥ १८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेजोमण्डलदुर्धर्षा भ्रामरी चित्रकान्तिभृत्।
चित्रानुलेपना देवी चित्राभरणभूषिता॥

मूलम्

तेजोमण्डलदुर्धर्षा भ्रामरी चित्रकान्तिभृत्।
चित्रानुलेपना देवी चित्राभरणभूषिता॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। २०)
भ्रामरीदेवीकी कान्ति विचित्र (अनेक रंगकी) है। वे अपने तेजोमण्डलके कारण दुर्धर्ष दिखायी देती हैं। उनका अंगराग भी अनेक रंगका है तथा वे चित्र-विचित्र आभूषणोंसे विभूषित हैं॥ २०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रभ्रमरपाणिः सा महामारीति गीयते।
इत्येता मूर्तयो देव्या याः ख्याता वसुधाधिप॥

मूलम्

चित्रभ्रमरपाणिः सा महामारीति गीयते।
इत्येता मूर्तयो देव्या याः ख्याता वसुधाधिप॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। २१)
चित्रभ्रमरपाणि और महामारी आदि नामोंसे उनकी महिमाका गान किया जाता है। राजन्! इस प्रकार जगन्माता चण्डिकादेवीकी ये मूर्तियाँ बतलायी गयी हैं॥ २१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जगन्मातुश्चण्डिकायाः कीर्तिताः कामधेनवः।
इदं रहस्यं परमं न वाच्यं कस्यचित्त्वया॥

मूलम्

जगन्मातुश्चण्डिकायाः कीर्तिताः कामधेनवः।
इदं रहस्यं परमं न वाच्यं कस्यचित्त्वया॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। २२)
जो कीर्तन करनेपर कामधेनुके समान सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करती हैं। यह परम गोपनीय रहस्य है। इसे तुम्हें दूसरे किसीको नहीं बतलाना चाहिये॥ २२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्याख्यानं दिव्यमूर्तीनामभीष्टफलदायकम्।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन देवीं जप निरन्तरम्॥

मूलम्

व्याख्यानं दिव्यमूर्तीनामभीष्टफलदायकम्।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन देवीं जप निरन्तरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। २३)
दिव्य मूर्तियोंका यह आख्यान मनोवांछित फल देनेवाला है, इसलिये पूर्ण प्रयत्न करके तुम निरन्तर देवीके जप (आराधन)-में लगे रहो॥ २३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सप्तजन्मार्जितैर्घोरैर्ब्रह्महत्यासमैरपि।
पाठमात्रेण मन्त्राणां मुच्यते सर्वकिल्बिषैः॥

मूलम्

सप्तजन्मार्जितैर्घोरैर्ब्रह्महत्यासमैरपि।
पाठमात्रेण मन्त्राणां मुच्यते सर्वकिल्बिषैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। २४)
सप्तशतीके मन्त्रोंके पाठमात्रसे मनुष्य सात जन्मोंमें उपार्जित ब्रह्महत्यासदृश घोर पातकों एवं समस्त कल्मषोंसे मुक्त हो जाता है॥ २४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

देव्या ध्यानं मया ख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं महत्।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन सर्वकामफलप्रदम्॥

मूलम्

देव्या ध्यानं मया ख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं महत्।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन सर्वकामफलप्रदम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(दु०मू०। २५)
इसलिये मैंने पूर्ण प्रयत्न करके देवीके गोपनीयसे भी अत्यन्त गोपनीय ध्यानका वर्णन किया है, जो सब प्रकारके मनोवांछित फलोंको देनेवाला है॥ २५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(एतस्यास्त्वं प्रसादेन सर्वमान्यो भविष्यसि।
सर्वरूपमयी देवी सर्वं देवीमयं जगत्।
अतोऽहं विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम्॥)

मूलम्

(एतस्यास्त्वं प्रसादेन सर्वमान्यो भविष्यसि।
सर्वरूपमयी देवी सर्वं देवीमयं जगत्।
अतोऽहं विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम्॥)

अनुवाद (हिन्दी)

(उनके प्रसादसे तुम सर्वमान्य हो जाओगे। देवी सर्वरूपमयी हैं तथा सम्पूर्ण जगत् देवीमय है। अतः मैं उन विश्वरूपा परमेश्वरीको नमस्कार करता हूँ।)

मूलम् (समाप्तिः)

इति मूर्तिरहस्यं सम्पूर्णम्।