०८ अष्टमोऽध्यायः

ध्यानम्

विश्वास-प्रस्तुतिः


अरुणां करुणातरङ्गिताक्षीं
धृतपाशाङ्‍कुशबाणचापहस्ताम्।
अणिमादिभिरावृतां मयूखै-
रहमित्येव विभावये भवानीम्॥

मूलम्

ॐ अरुणां करुणातरङ्गिताक्षीं
धृतपाशाङ्‍कुशबाणचापहस्ताम्।
अणिमादिभिरावृतां मयूखै-
रहमित्येव विभावये भवानीम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं अणिमा आदि सिद्धिमयी किरणोंसे आवृत भवानीका ध्यान करता हूँ। उनके शरीरका रंग लाल है, नेत्रोंमें करुणा लहरा रही है तथा हाथोंमें पाश, अंकुश, बाण और धनुष शोभा पाते हैं।

सैन्यप्रेषणम्

मूलम् (वचनम्)

‘ॐ’
ऋषिरुवाच॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चण्डे च निहते दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते।
बहुलेषु च सैन्येषु क्षयितेष्वसुरेश्वरः॥

मूलम्

चण्डे च निहते दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते।
बहुलेषु च सैन्येषु क्षयितेष्वसुरेश्वरः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २)

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कोपपराधीनचेताः शुम्भः प्रतापवान्।
उद्योगं सर्वसैन्यानां दैत्यानामादिदेश ह॥

मूलम्

ततः कोपपराधीनचेताः शुम्भः प्रतापवान्।
उद्योगं सर्वसैन्यानां दैत्यानामादिदेश ह॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३)
ऋषि कहते हैं—॥ १॥ चण्ड और मुण्ड नामक दैत्योंके मारे जाने तथा बहुत-सी सेनाका संहार हो जानेपर दैत्योंके राजा प्रतापी शुम्भके मनमें बड़ा क्रोध हुआ और उसने दैत्योंकी सम्पूर्ण सेनाको युद्धके लिये कूच करनेकी आज्ञा दी॥ २-३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य सर्वबलैर्दैत्याः षडशीतिरुदायुधाः।
कम्बूनां चतुरशीतिर्निर्यान्तु स्वबलैर्वृताः॥

मूलम्

अद्य सर्वबलैर्दैत्याः षडशीतिरुदायुधाः।
कम्बूनां चतुरशीतिर्निर्यान्तु स्वबलैर्वृताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४)
वह बोला—‘आज उदायुध नामके छियासी दैत्य-सेनापति अपनी सेनाओंके साथ युद्धके लिये प्रस्थान करें। कम्बु नामवाले दैत्योंके चौरासी सेनानायक अपनी वाहिनीसे घिरे हुए यात्रा करें॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कोटिवीर्याणि पञ्चाशदसुराणां कुलानि वै।
शतं कुलानि धौम्राणां निर्गच्छन्तु ममाज्ञया॥

मूलम्

कोटिवीर्याणि पञ्चाशदसुराणां कुलानि वै।
शतं कुलानि धौम्राणां निर्गच्छन्तु ममाज्ञया॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५)
पचास कोटिवीर्य-कुलके और सौ धौम्र-कुलके असुरसेनापति मेरी आज्ञासे सेनासहित कूच करें॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कालका दौर्हृदा मौर्याः
कालकेयास् तथासुराः।
युद्धाय सज्जा निर्यान्तु
आज्ञया त्वरिता मम॥

मूलम्

कालका दौर्हृदा मौर्याः कालकेयास्तथासुराः।
युद्धाय सज्जा निर्यान्तु आज्ञया त्वरिता मम॥

मूलम् (भास्कररायः)

कालका दौर्हृदा मौर्वाः कालकेयास्तथासुराः।
युद्धाय सज्जा निर्यान्तु आज्ञया त्वरिता मम॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ६)
कालक, दौर्हृद, मौर्य और कालकेय असुर भी युद्धके लिये तैयार हो मेरी आज्ञासे तुरंत प्रस्थान करें’॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्याज्ञाप्यासुरपतिः शुम्भो भैरवशासनः।
निर्जगाम महासैन्यसहस्रैर्बहुभिर्वृतः॥

मूलम्

इत्याज्ञाप्यासुरपतिः शुम्भो भैरवशासनः।
निर्जगाम महासैन्यसहस्रैर्बहुभिर्वृतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ७)
भयानक शासन करनेवाला असुरराज शुम्भ इस प्रकार आज्ञा दे सहस्रों बड़ी-बड़ी सेनाओंके साथ युद्धके लिये प्रस्थित हुआ॥ ७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आयान्तं चण्डिका दृष्ट्वा तत्सैन्यमतिभीषणम्।
ज्यास्वनैः पूरयामास धरणीगगनान्तरम्॥

मूलम्

आयान्तं चण्डिका दृष्ट्वा तत्सैन्यमतिभीषणम्।
ज्यास्वनैः पूरयामास धरणीगगनान्तरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ८)
उसकी अत्यन्त भयंकर सेना आती देख चण्डिकाने अपने धनुषकी टंकारसे पृथ्वी और आकाशके बीचका भाग गुँजा दिया॥ ८॥

देवीव्यवस्थितिः

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सिंहो महानादम्
अतीव कृतवान् नृप।
घण्टास्वनेन तन्-नादम्
अम्बिका चोपबृंहयत्॥

मूलम्

ततः सिंहो महानादमतीव कृतवान् नृप।
घण्टास्वनेन तन्नादमम्बिका चोपबृंहयत्॥

मूलम् (भास्कररायः)

ततः सिंहो महानादमतीव कृतवान् नृप।
घण्टास्वनेन तन्नादानम्बिका चोपबृंहयत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ९)
राजन्! तदनन्तर देवीके सिंहने भी बड़े जोर-जोरसे दहाड़ना आरम्भ किया, फिर अम्बिकाने घण्टेके शब्दसे उस ध्वनिको और भी बढ़ा दिया॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनुर्ज्यासिंहघण्टानां नादापूरितदिङ्मुखा।
निनादैर्भीषणैः काली जिग्ये विस्तारितानना॥

मूलम्

धनुर्ज्यासिंहघण्टानां नादापूरितदिङ्मुखा।
निनादैर्भीषणैः काली जिग्ये विस्तारितानना॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १०)
धनुषकी टंकार, सिंहकी दहाड़ और घण्टेकी ध्वनिसे सम्पूर्ण दिशाएँ गूँज उठीं। उस भयंकर शब्दसे कालीने अपने विकराल मुखको और भी बढ़ा लिया तथा इस प्रकार वे विजयिनी हुईं॥ १०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं निनादमुपश्रुत्य दैत्यसैन्यैश्चतुर्दिशम्।
देवी सिंहस्तथा काली सरोषैः परिवारिताः॥

मूलम्

तं निनादमुपश्रुत्य दैत्यसैन्यैश्चतुर्दिशम्।
देवी सिंहस्तथा काली सरोषैः परिवारिताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ११)
उस तुमुल नादको सुनकर दैत्योंकी सेनाओंने चारों ओरसे आकर चण्डिकादेवी, सिंह तथा कालीदेवीको क्रोधपूर्वक घेर लिया॥ ११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतस्मिन्नन्तरे भूप विनाशाय सुरद्विषाम्।
भवायामरसिंहानामतिवीर्यबलान्विताः॥

मूलम्

एतस्मिन्नन्तरे भूप विनाशाय सुरद्विषाम्।
भवायामरसिंहानामतिवीर्यबलान्विताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १२)

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्रह्मेशगुहविष्णूनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः।
शरीरेभ्यो विनिष्क्रम्य तद्‍रूपैश्चण्डिकां ययुः॥

मूलम्

ब्रह्मेशगुहविष्णूनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः।
शरीरेभ्यो विनिष्क्रम्य तद्‍रूपैश्चण्डिकां ययुः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १३)
राजन्! इसी बीचमें असुरोंके विनाश तथा देवताओंके अभ्युदयके लिये ब्रह्मा, शिव, कार्तिकेय, विष्णु तथा इन्द्र आदि देवोंकी शक्तियाँ, जो अत्यन्त पराक्रम और बलसे सम्पन्न थीं, उनके शरीरोंसे निकलकर उन्हींके रूपमें चण्डिकादेवीके पास गयीं॥ १२-१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्य देवस्य यद्‍रूपं यथाभूषणवाहनम्।
तद्वदेव हि तच्छक्तिरसुरान् योद्धुमाययौ॥

मूलम्

यस्य देवस्य यद्‍रूपं यथाभूषणवाहनम्।
तद्वदेव हि तच्छक्तिरसुरान् योद्धुमाययौ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १४)
जिस देवताका जैसा रूप, जैसी वेश-भूषा और जैसा वाहन है, ठीक वैसे ही साधनोंसे सम्पन्न हो उसकी शक्ति असुरोंसे युद्ध करनेके लिये आयी॥ १४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हंसयुक्तविमानाग्रे
साक्षसूत्र-कमण्डलुः।
आयाता ब्रह्मणः शक्तिर्
ब्रह्माणी साभिधीयते॥

मूलम्

हंसयुक्तविमानाग्रे साक्षसूत्रकमण्डलुः।
आयाता ब्रह्मणः शक्तिर्ब्रह्माणी साभिधीयते॥

मूलम् (भास्कररायः)

हंसयुक्तविमानाग्रे साक्षसूत्रकमण्डलुः।
आयाता ब्रह्मणः शक्तिर्ब्रह्माणीत्यभिधीयते॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १५)
सबसे पहले हंसयुक्त विमानपर बैठी हुई अक्षसूत्र और कमण्डलुसे सुशोभित ब्रह्माजीकी शक्ति उपस्थित हुई, जिसे ‘ब्रह्माणी’ कहते हैं॥ १५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माहेश्वरी वृषारूढा त्रिशूलवरधारिणी।
महाहिवलया प्राप्ता चन्द्ररेखाविभूषणा॥

मूलम्

माहेश्वरी वृषारूढा त्रिशूलवरधारिणी।
महाहिवलया प्राप्ता चन्द्ररेखाविभूषणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १६)
महादेवजीकी शक्ति वृषभपर आरूढ़ हो हाथोंमें श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये महानागका कंकण पहने, मस्तकमें चन्द्ररेखासे विभूषित हो वहाँ आ पहुँची॥ १६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कौमारी शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना।
योद्धुमभ्याययौ दैत्यानम्बिका गुहरूपिणी॥

मूलम्

कौमारी शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना।
योद्धुमभ्याययौ दैत्यानम्बिका गुहरूपिणी॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १७)
कार्तिकेयजीकी शक्तिरूपा जगदम्बिका उन्हींका रूप धारण किये श्रेष्ठ मयूरपर आरूढ़ हो हाथमें शक्ति लिये दैत्योंसे युद्ध करनेके लिये आयीं॥ १७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव वैष्णवी शक्तिर्
गरुडोपरि संस्थिता।
शङ्ख-चक्र-गदा-शार्ङ्ग-
खड्ग-हस्ता ऽभ्य्-उपाययौ॥

मूलम्

तथैव वैष्णवी शक्तिर्गरुडोपरि संस्थिता।
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गखड्गहस्ताभ्युपाययौ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १८)
इसी प्रकार भगवान् विष्णुकी शक्ति गरुड़पर विराजमान हो शंख, चक्र, गदा, शार्ङ्गधनुष तथा खड्ग हाथमें लिये वहाँ आयी॥ १८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यज्ञवाराहमतुलं रूपं या बिभ्रतो हरेः।
शक्तिः साप्याययौ तत्र वाराहीं बिभ्रती तनुम्॥

मूलम्

यज्ञवाराहमतुलं रूपं या बिभ्रतो हरेः।
शक्तिः साप्याययौ तत्र वाराहीं बिभ्रती तनुम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। १९)
अनुपम यज्ञवाराहका रूप धारण करनेवाले श्रीहरिकी जो शक्ति है, वह भी वाराह-शरीर धारण करके वहाँ उपस्थित हुई॥ १९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नारसिंही नृसिंहस्य बिभ्रती सदृशं वपुः।
प्राप्ता तत्र सटाक्षेपक्षिप्तनक्षत्रसंहतिः॥

मूलम्

नारसिंही नृसिंहस्य बिभ्रती सदृशं वपुः।
प्राप्ता तत्र सटाक्षेपक्षिप्तनक्षत्रसंहतिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २०)
नारसिंही शक्ति भी नृसिंहके समान शरीर धारण करके वहाँ आयी। उसकी गर्दनके बालोंके झटकेसे आकाशके तारे बिखरे पड़ते थे॥ २०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वज्रहस्ता तथैवैन्द्री गजराजोपरि स्थिता।
प्राप्ता सहस्रनयना यथा शक्रस्तथैव सा॥

मूलम्

वज्रहस्ता तथैवैन्द्री गजराजोपरि स्थिता।
प्राप्ता सहस्रनयना यथा शक्रस्तथैव सा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २१)
इसी प्रकार इन्द्रकी शक्ति वज्र हाथमें लिये गजराज ऐरावतपर बैठकर आयी। उसके भी सहस्र नेत्र थे। इन्द्रका जैसा रूप है, वैसा ही उसका भी था॥ २१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः परिवृतस्ताभिरीशानो देवशक्तिभिः।
हन्यन्तामसुराः शीघ्रं मम प्रीत्याऽऽह चण्डिकाम्॥

मूलम्

ततः परिवृतस्ताभिरीशानो देवशक्तिभिः।
हन्यन्तामसुराः शीघ्रं मम प्रीत्याऽऽह चण्डिकाम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २२)
तदनन्तर उन देव-शक्तियोंसे घिरे हुए महादेवजीने चण्डिकासे कहा—‘मेरी प्रसन्नताके लिये तुम शीघ्र ही इन असुरोंका संहार करो’॥ २२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो देवीशरीरात्तु विनिष्क्रान्तातिभीषणा।
चण्डिकाशक्तिरत्युग्रा शिवाशतनिनादिनी॥

मूलम्

ततो देवीशरीरात्तु विनिष्क्रान्तातिभीषणा।
चण्डिकाशक्तिरत्युग्रा शिवाशतनिनादिनी॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २३)
तब देवीके शरीरसे अत्यन्त भयानक और परम उग्र चण्डिका-शक्ति प्रकट हुई। जो सैकड़ों गीदड़ियोंकी भाँति आवाज करनेवाली थी॥ २३॥

ईशानदौत्यम्

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा चाह धूम्रजटिलमीशानमपराजिता।
दूत त्वं गच्छ भगवन् पार्श्वं शुम्भनिशुम्भयोः॥

मूलम्

सा चाह धूम्रजटिलमीशानमपराजिता।
दूत त्वं गच्छ भगवन् पार्श्वं शुम्भनिशुम्भयोः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २४)
उस अपराजिता देवीने धूमिल जटावाले महादेवजीसे कहा—भगवन्! आप शुम्भ-निशुम्भके पास दूत बनकर जाइये॥ २४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्रूहि शुम्भं निशुम्भं च दानवावतिगर्वितौ।
ये चान्ये दानवास्तत्र युद्धाय समुपस्थिताः॥

मूलम्

ब्रूहि शुम्भं निशुम्भं च दानवावतिगर्वितौ।
ये चान्ये दानवास्तत्र युद्धाय समुपस्थिताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २५)
और उन अत्यन्त गर्वीले दानव शुम्भ एवं निशुम्भ दोनोंसे कहिये। साथ ही उनके अतिरिक्त भी जो दानव युद्धके लिये वहाँ उपस्थित हों उनको भी यह संदेश दीजिये—॥ २५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रैलोक्यमिन्द्रो लभतां देवाः सन्तु हविर्भुजः।
यूयं प्रयात पातालं यदि जीवितुमिच्छथ॥

मूलम्

त्रैलोक्यमिन्द्रो लभतां देवाः सन्तु हविर्भुजः।
यूयं प्रयात पातालं यदि जीवितुमिच्छथ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २६)
‘दैत्यो! यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो पातालको लौट जाओ। इन्द्रको त्रिलोकीका राज्य मिल जाय और देवता यज्ञभागका उपभोग करें॥ २६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बलावलेपादथ चेद्भवन्तो युद्धकाङ्क्षिणः।
तदागच्छत तृप्यन्तु मच्छिवाः पिशितेन वः॥

मूलम्

बलावलेपादथ चेद्भवन्तो युद्धकाङ्क्षिणः।
तदागच्छत तृप्यन्तु मच्छिवाः पिशितेन वः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २७)
यदि बलके घमंडमें आकर तुम युद्धकी अभिलाषा रखते हो तो आओ। मेरी शिवाएँ (योगिनियाँ) तुम्हारे कच्चे मांससे तृप्त हों’॥ २७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यतो नियुक्तो दौत्येन तया देव्या शिवः स्वयम्।
शिवदूतीति लोकेस्मिंस्ततः सा ख्यातिमागता॥

मूलम्

यतो नियुक्तो दौत्येन तया देव्या शिवः स्वयम्।
शिवदूतीति लोकेस्मिंस्ततः सा ख्यातिमागता॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २८)
चूँकि उस देवीने भगवान् शिवको दूतके कार्यमें नियुक्त किया था, इसलिये वह ‘शिवदूती’ के नामसे संसारमें विख्यात हुई॥ २८॥

युद्धम्

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेऽपि श्रुत्वा वचो देव्याः शर्वाख्यातं महासुराः।
अमर्षापूरिता जग्मुर्यत्र कात्यायनी स्थिता॥

मूलम्

तेऽपि श्रुत्वा वचो देव्याः शर्वाख्यातं महासुराः।
अमर्षापूरिता जग्मुर्यत्र कात्यायनी स्थिता॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। २९)
वे महादैत्य भी भगवान् शिवके मुँहसे देवीके वचन सुनकर क्रोधमें भर गये और जहाँ कात्यायनी विराजमान थीं, उस ओर बढ़े॥ २९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रथममेवाग्रे शरशक्त्यृष्टिवृष्टिभिः।
ववर्षुरुद्धतामर्षास्तां देवीममरारयः॥

मूलम्

ततः प्रथममेवाग्रे शरशक्त्यृष्टिवृष्टिभिः।
ववर्षुरुद्धतामर्षास्तां देवीममरारयः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३०)
तदनन्तर वे दैत्य अमर्षमें भरकर पहले ही देवीके ऊपर बाण, शक्ति और ऋष्टि आदि अस्त्रोंकी वृष्टि करने लगे॥ ३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा च तान् प्रहितान् बाणाञ्छूलशक्तिपरश्वधान्।
चिच्छेद लीलयाऽऽध्मातधनुर्मुक्तैर्महेषुभिः॥

मूलम्

सा च तान् प्रहितान् बाणाञ्छूलशक्तिपरश्वधान्।
चिच्छेद लीलयाऽऽध्मातधनुर्मुक्तैर्महेषुभिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३१)
तब देवीने भी खेल-खेलमें ही धनुषकी टंकार की और उससे छोड़े हुए बड़े-बड़े बाणोंद्वारा दैत्योंके चलाये हुए बाण, शूल, शक्ति और फरसोंको काट डाला॥ ३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्याग्रतस्तथा काली शूलपातविदारितान्।
खट्वाङ्गपोथितांश्चारीन् कुर्वती व्यचरत्तदा॥

मूलम्

तस्याग्रतस्तथा काली शूलपातविदारितान्।
खट्वाङ्गपोथितांश्चारीन् कुर्वती व्यचरत्तदा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३२)
फिर काली उनके आगे होकर शत्रुओंको शूलके प्रहारसे विदीर्ण करने लगी और खट्वांगसे उनका कचूमर निकालती हुई रणभूमिमें विचरने लगी॥ ३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कमण्डलुजलाक्षेपहतवीर्यान् हतौजसः।
ब्रह्माणी चाकरोच्छत्रून् येन येन स्म धावति॥

मूलम्

कमण्डलुजलाक्षेपहतवीर्यान् हतौजसः।
ब्रह्माणी चाकरोच्छत्रून् येन येन स्म धावति॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३३)
ब्रह्माणी भी जिस-जिस ओर दौड़ती, उसी-उसी ओर अपने कमण्डलुका जल छिड़ककर शत्रुओंके ओज और पराक्रमको नष्ट कर देती थी॥ ३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माहेश्वरी त्रिशूलेन तथा चक्रेण वैष्णवी।
दैत्याञ्जघान कौमारी तथा शक्त्यातिकोपना॥

मूलम्

माहेश्वरी त्रिशूलेन तथा चक्रेण वैष्णवी।
दैत्याञ्जघान कौमारी तथा शक्त्यातिकोपना॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३४)
माहेश्वरीने त्रिशूलसे तथा वैष्णवीने चक्रसे और अत्यन्त क्रोधमें भरी हुई कुमार कार्तिकेयकी शक्तिने शक्तिसे दैत्योंका संहार आरम्भ किया॥ ३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऐन्द्रीकुलिशपातेन शतशो दैत्यदानवाः।
पेतुर्विदारिताः पृथ्व्यां रुधिरौघप्रवर्षिणः॥

मूलम्

ऐन्द्रीकुलिशपातेन शतशो दैत्यदानवाः।
पेतुर्विदारिताः पृथ्व्यां रुधिरौघप्रवर्षिणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३५)
इन्द्रशक्तिके वज्रप्रहारसे विदीर्ण हो सैकड़ों दैत्य-दानव रक्तकी धारा बहाते हुए पृथ्वीपर सो गये॥ ३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुण्डप्रहारविध्वस्ता दंष्ट्राग्रक्षतवक्षसः।
वाराहमूर्त्या न्यपतंश्चक्रेण च विदारिताः॥

मूलम्

तुण्डप्रहारविध्वस्ता दंष्ट्राग्रक्षतवक्षसः।
वाराहमूर्त्या न्यपतंश्चक्रेण च विदारिताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३६)
वाराही शक्तिने कितनोंको अपनी थूथुनकी मारसे नष्ट किया, दाढ़ोंके अग्रभागसे कितनोंकी छाती छेद डाली तथा कितने ही दैत्य उसके चक्रकी चोटसे विदीर्ण होकर गिर पड़े॥ ३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नखैर्विदारितांश्चान्यान् भक्षयन्ती महासुरान्।
नारसिंही चचाराजौ नादापूर्णदिगम्बरा॥

मूलम्

नखैर्विदारितांश्चान्यान् भक्षयन्ती महासुरान्।
नारसिंही चचाराजौ नादापूर्णदिगम्बरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३७)
नारसिंही भी दूसरे-दूसरे महादैत्योंको अपने नखोंसे विदीर्ण करके खाती और सिंहनादसे दिशाओं एवं आकाशको गुँजाती हुई युद्धक्षेत्रमें विचरने लगी॥ ३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चण्डाट्टहासैरसुराः शिवदूत्यभिदूषिताः।
पेतुः पृथिव्यां पतितांस्तांश्चखादाथ सा तदा॥

मूलम्

चण्डाट्टहासैरसुराः शिवदूत्यभिदूषिताः।
पेतुः पृथिव्यां पतितांस्तांश्चखादाथ सा तदा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३८)
कितने ही असुर शिवदूतीके प्रचण्ड अट्टहाससे अत्यन्त भयभीत हो पृथ्वीपर गिर पड़े और गिरनेपर उन्हें शिवदूतीने उस समय अपना ग्रास बना लिया॥ ३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति मातृगणं क्रुद्धं मर्दयन्तं महासुरान्।
दृष्ट्वाभ्युपायैर्विविधैर्नेशुर्देवारिसैनिकाः॥

मूलम्

इति मातृगणं क्रुद्धं मर्दयन्तं महासुरान्।
दृष्ट्वाभ्युपायैर्विविधैर्नेशुर्देवारिसैनिकाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ३९)
इस प्रकार क्रोधमें भरे हुए मातृगणोंको नाना प्रकारके उपायोंसे बड़े-बड़े असुरोंका मर्दन करते देख दैत्यसैनिक भाग खड़े हुए॥ ३९॥

रक्तबीजाक्रमः

विश्वास-प्रस्तुतिः

पलायनपरान् दृष्ट्वा दैत्यान् मातृगणार्दितान्।
योद्धुमभ्याययौ क्रुद्धो रक्तबीजो महासुरः॥

मूलम्

पलायनपरान् दृष्ट्वा दैत्यान् मातृगणार्दितान्।
योद्धुमभ्याययौ क्रुद्धो रक्तबीजो महासुरः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४०)
मातृगणोंसे पीड़ित दैत्योंको युद्धसे भागते देख रक्तबीज नामक महादैत्य क्रोधमें भरकर युद्ध करनेके लिये आया॥ ४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ
पतत्य् अस्य शरीरतः।
समुत्पतति मेदिन्यां
तत्प्रमाणस् तदासुरः॥

मूलम्

रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरतः।
समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणस्तदासुरः॥

मूलम् (भास्कररायः)

रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरतः।
समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणो महासुरः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४१)
उसके शरीरसे जब रक्तकी बूँद पृथ्वीपर गिरती, तब उसीके समान शक्तिशाली एक दूसरा महादैत्य पृथ्वीपर पैदा हो जाता॥ ४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युयुधे स गदापाणिरिन्द्रशक्त्या महासुरः।
ततश्चैन्द्री स्ववज्रेण रक्तबीजमताडयत्॥

मूलम्

युयुधे स गदापाणिरिन्द्रशक्त्या महासुरः।
ततश्चैन्द्री स्ववज्रेण रक्तबीजमताडयत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४२)
महासुर रक्तबीज हाथमें गदा लेकर इन्द्रशक्तिके साथ युद्ध करने लगा। तब ऐन्द्रीने अपने वज्रसे रक्तबीजको मारा॥ ४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुलिशेनाहतस्याशु बहु सुस्राव शोणितम्।
समुत्तस्थुस्ततो योधास्तद्‍रूपास्तत्पराक्रमाः॥

मूलम्

कुलिशेनाहतस्याशु बहु सुस्राव शोणितम्।
समुत्तस्थुस्ततो योधास्तद्‍रूपास्तत्पराक्रमाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४३)
वज्रसे घायल होनेपर उसके शरीरसे बहुत-सा रक्त चूने लगा और उससे उसीके समान रूप तथा पराक्रमवाले योद्धा उत्पन्न होने लगे॥ ४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यावन्तः पतितास्तस्य शरीराद्रक्तबिन्दवः।
तावन्तः पुरुषा जातास्तद्वीर्यबलविक्रमाः॥

मूलम्

यावन्तः पतितास्तस्य शरीराद्रक्तबिन्दवः।
तावन्तः पुरुषा जातास्तद्वीर्यबलविक्रमाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४४)
उसके शरीरसे रक्तकी जितनी बूँदें गिरीं, उतने ही पुरुष उत्पन्न हो गये। वे सब रक्तबीजके समान ही वीर्यवान्, बलवान् तथा पराक्रमी थे॥ ४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते चापि युयुधुस्तत्र पुरुषा रक्तसम्भवाः।
समं मातृभिरत्युग्रशस्त्रपातातिभीषणम्॥

मूलम्

ते चापि युयुधुस्तत्र पुरुषा रक्तसम्भवाः।
समं मातृभिरत्युग्रशस्त्रपातातिभीषणम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४५)
वे रक्तसे उत्पन्न होनेवाले पुरुष भी अत्यन्त भयंकर अस्त्र-शस्त्रोंका प्रहार करते हुए वहाँ मातृगणोंके साथ घोर युद्ध करने लगे॥ ४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनश्च वज्रपातेन क्षतमस्य शिरो यदा।
ववाह रक्तं पुरुषास्ततो जाताः सहस्रशः॥

मूलम्

पुनश्च वज्रपातेन क्षतमस्य शिरो यदा।
ववाह रक्तं पुरुषास्ततो जाताः सहस्रशः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४६)
पुनः वज्रके प्रहारसे जब उसका मस्तक घायल हुआ, तब रक्त बहने लगा और उससे हजारों पुरुष उत्पन्न हो गये॥ ४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैष्णवी समरे चैनं चक्रेणाभिजघान ह।
गदया ताडयामास ऐन्द्री तमसुरेश्वरम्॥

मूलम्

वैष्णवी समरे चैनं चक्रेणाभिजघान ह।
गदया ताडयामास ऐन्द्री तमसुरेश्वरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४७)
वैष्णवीने युद्धमें रक्तबीजपर चक्रका प्रहार किया तथा ऐन्द्रीने उस दैत्यसेनापतिको गदासे चोट पहुँचायी॥ ४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैष्णवीचक्रभिन्नस्य रुधिरस्रावसम्भवैः।
सहस्रशो जगद्‍व्याप्तं तत्प्रमाणैर्महासुरैः॥

मूलम्

वैष्णवीचक्रभिन्नस्य रुधिरस्रावसम्भवैः।
सहस्रशो जगद्‍व्याप्तं तत्प्रमाणैर्महासुरैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४८)
वैष्णवीके चक्रसे घायल होनेपर उसके शरीरसे जो रक्त बहा और उससे जो उसीके बराबर आकारवाले सहस्रों महादैत्य प्रकट हुए, उनके द्वारा सम्पूर्ण जगत् व्याप्त हो गया॥ ४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शक्त्या जघान कौमारी वाराही च तथासिना।
माहेश्वरी त्रिशूलेन रक्तबीजं महासुरम्॥

मूलम्

शक्त्या जघान कौमारी वाराही च तथासिना।
माहेश्वरी त्रिशूलेन रक्तबीजं महासुरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ४९)
कौमारीने शक्तिसे, वाराहीने खड्गसे और माहेश्वरीने त्रिशूलसे महादैत्य रक्तबीजको घायल किया॥ ४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स चापि गदया दैत्यः सर्वा एवाहनत् पृथक्।
मातॄः कोपसमाविष्टो रक्तबीजो महासुरः॥

मूलम्

स चापि गदया दैत्यः सर्वा एवाहनत् पृथक्।
मातॄः कोपसमाविष्टो रक्तबीजो महासुरः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५०)
क्रोधमें भरे हुए उस महादैत्य रक्तबीजने भी गदासे सभी मातृ-शक्तियोंपर पृथक्-पृथक् प्रहार किया॥ ५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्याहतस्य बहुधा शक्तिशूलादिभिर्भुवि।
पपात यो वै रक्तौघस्तेनासञ्छतशोऽसुराः॥

मूलम्

तस्याहतस्य बहुधा शक्तिशूलादिभिर्भुवि।
पपात यो वै रक्तौघस्तेनासञ्छतशोऽसुराः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५१)
शक्ति और शूल आदिसे अनेक बार घायल होनेपर जो उसके शरीरसे रक्तकी धारा पृथ्वीपर गिरी, उससे भी निश्चय ही सैकड़ों असुर उत्पन्न हुए॥ ५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तैश्चासुरासृक्सम्भूतैरसुरैः सकलं जगत्।
व्याप्तमासीत्ततो देवा भयमाजग्मुरुत्तमम्॥

मूलम्

तैश्चासुरासृक्सम्भूतैरसुरैः सकलं जगत्।
व्याप्तमासीत्ततो देवा भयमाजग्मुरुत्तमम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५२)
इस प्रकार उस महादैत्यके रक्तसे प्रकट हुए असुरोंद्वारा सम्पूर्ण जगत् व्याप्त हो गया। इससे उन देवताओंको बड़ा भय हुआ॥ ५२॥

हननोपायः

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् विषण्णान् सुरान् दृष्ट्वा चण्डिका प्राहसत्वरा।
उवाच कालीं चामुण्डे विस्तीर्णं वदनं कुरु॥

मूलम्

तान् विषण्णान् सुरान् दृष्ट्वा चण्डिका प्राहसत्वरा।
उवाच कालीं चामुण्डे विस्तीर्णं वदनं कुरु॥

मूलम् (भास्कररायः)

तान् विषण्णान् सुरान् दृष्ट्वा चण्डिका प्राह सत्वरन्।
उवाच कालीं चामुण्डे विस्तीर्णं वदनं कुरु॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५३)
देवताओंको उदास देख चण्डिकाने कालीसे शीघ्रतापूर्वक कहा—‘चामुण्डे! तुम अपना मुख और भी फैलाओ॥ ५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मच्छस्त्रपातसम्भूतान् रक्तबिन्दून्महासुरान्।
रक्तबिन्दोः प्रतीच्छ त्वं वक्त्रेणानेन वेगिना॥

मूलम्

मच्छस्त्रपातसम्भूतान् रक्तबिन्दून्महासुरान्।
रक्तबिन्दोः प्रतीच्छ त्वं वक्त्रेणानेन वेगिना॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५४)
तथा मेरे शस्त्रपातसे गरनेवाले रक्तबिन्दुओं और उनसे उत्पन्न होनेवाले महादैत्योंको तुम अपने इस उतावले मुखसे खा जाओ॥ ५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भक्षयन्ती चर रणे तदुत्पन्नान्महासुरान्।
एवमेष क्षयं दैत्यः क्षीणरक्तो गमिष्यति॥

मूलम्

भक्षयन्ती चर रणे तदुत्पन्नान्महासुरान्।
एवमेष क्षयं दैत्यः क्षीणरक्तो गमिष्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५५)
इस प्रकार रक्तसे उत्पन्न होनेवाले महादैत्योंका भक्षण करती हुई तुम रणमें विचरती रहो। ऐसा करनेसे उस दैत्यका सारा रक्त क्षीण हो जानेपर वह स्वयं भी नष्ट हो जायगा॥ ५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भक्ष्यमाणास्त्वया चोग्रा न चोत्पत्स्यन्ति चापरे।
इत्युक्त्वा तां ततो देवी शूलेनाभिजघान तम्॥

मूलम्

भक्ष्यमाणास्त्वया चोग्रा न चोत्पत्स्यन्ति चापरे।
इत्युक्त्वा तां ततो देवी शूलेनाभिजघान तम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५६)
उन भयंकर दैत्योंको जब तुम खा जाओगी, तब दूसरे नये दैत्य उत्पन्न नहीं हो सकेंगे।’ कालीसे यों कहकर चण्डिकादेवीने शूलसे रक्तबीजको मारा॥ ५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मुखेन काली जगृहे रक्तबीजस्य शोणितम्।
ततोऽसावाजघानाथ गदया तत्र चण्डिकाम्॥

मूलम्

मुखेन काली जगृहे रक्तबीजस्य शोणितम्।
ततोऽसावाजघानाथ गदया तत्र चण्डिकाम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५७)
और कालीने अपने मुखमें उसका रक्त ले लिया। तब उसने वहाँ चण्डिकापर गदासे प्रहार किया॥ ५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न चास्या वेदनां चक्रे गदापातोऽल्पिकामपि।
तस्याहतस्य देहात्तु बहु सुस्राव शोणितम्॥

मूलम्

न चास्या वेदनां चक्रे गदापातोऽल्पिकामपि।
तस्याहतस्य देहात्तु बहु सुस्राव शोणितम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५८)
किंतु उस गदापातने देवीको तनिक भी वेदना नहीं पहुँचायी। रक्तबीजके घायल शरीरसे बहुत-सा रक्त गिरा॥ ५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यतस्ततस्तद्वक्त्रेण चामुण्डा सम्प्रतीच्छति।
मुखे समुद्गता येऽस्या रक्तपातान्महासुराः॥

मूलम्

यतस्ततस्तद्वक्त्रेण चामुण्डा सम्प्रतीच्छति।
मुखे समुद्गता येऽस्या रक्तपातान्महासुराः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ५९)

विश्वास-प्रस्तुतिः

तांश्चखादाथ चामुण्डा पपौ तस्य च शोणितम्।
देवी शूलेन वज्रेण बाणैरसिभिर्ऋष्टिभिः॥

मूलम्

तांश्चखादाथ चामुण्डा पपौ तस्य च शोणितम्।
देवी शूलेन वज्रेण बाणैरसिभिर्ऋष्टिभिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ६०)

विश्वास-प्रस्तुतिः

जघान रक्तबीजं तं चामुण्डापीतशोणितम्।
स पपात महीपृष्ठे शस्त्रसङ्घसमाहतः॥

मूलम्

जघान रक्तबीजं तं चामुण्डापीतशोणितम्।
स पपात महीपृष्ठे शस्त्रसङ्घसमाहतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ६१)

विश्वास-प्रस्तुतिः

नीरक्तश्च महीपाल रक्तबीजो महासुरः।
ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रिदशा नृप॥

मूलम्

नीरक्तश्च महीपाल रक्तबीजो महासुरः।
ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रिदशा नृप॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ६२)
किंतु ज्यों ही वह गिरा त्यों ही चामुण्डाने उसे अपने मुखमें ले लिया। रक्त गिरनेसे कालीके मुखमें जो महादैत्य उत्पन्न हुए, उन्हें भी वह चट कर गयी और उसने रक्तबीजका रक्त भी पी लिया। तदनन्तर देवीने रक्तबीजको, जिसका रक्त चामुण्डाने पी लिया था, वज्र, बाण, खड्ग तथा ऋष्टि आदिसे मार डाला। राजन्! इस प्रकार शस्त्रोंके समुदायसे आहत एवं रक्तहीन हुआ महादैत्य रक्तबीज पृथ्वीपर गिर पड़ा। नरेश्वर! इससे देवताओंको अनुपम हर्षकी प्राप्ति हुई॥ ५९—६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां मातृगणो जातो ननर्तासृङ्मदोद्धतः॥ ॐ॥

मूलम्

तेषां मातृगणो जातो ननर्तासृङ्मदोद्धतः॥ ॐ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०८। ६३)
और मातृगण उन असुरोंके रक्तपानके मदसे उद्धत-सा होकर नृत्य करने लगा॥ ६३॥

मूलम् (समाप्तिः)

॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
रक्तबीजवधो नामाष्टमोऽध्यायः॥८॥
उवाच१, अर्धश्लोकः १, श्लोकाः ६१,
एवम् ६३, एवमादितः ५०२॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीमाहात्म्यमें ‘रक्तबीज-वध’ नामक आठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ८॥