ध्यानम्
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ
नागाधीश्वर-विष्टरां+++(=आसनां)+++ फणि-फणोत्तंसोरु-रत्नावली-
भास्वद्-देह-लतां दिवाकर-निभां नेत्र-त्रयोद्भासिताम्।
माला-कुम्भ-कपाल-नीरज-करां चन्द्रार्ध-चूडां परां,
सर्वज्ञेश्वर-भैरवाङ्क-निलयां पद्मावतीं चिन्तये॥
मूलम्
ॐ नागाधीश्वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावलीभा-
स्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्।
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं सर्वज्ञेश्वर भैरवके अंकमें निवास करनेवाली परमोत्कृष्ट पद्मावतीदेवीका चिन्तन करता हूँ। वे नागराजके आसनपर बैठी हैं, नागोंके फणोंमें सुशोभित होनेवाली मणियोंकी विशाल मालासे उनकी देहलता उद्भासित हो रही है। सूर्यके समान उनका तेज है, तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। वे हाथोंमें माला, कुम्भ, कपाल और कमल लिये हुए हैं तथा उनके मस्तकमें अर्धचन्द्रका मुकुट सुशोभित है।
धूम्र-लोचन-प्रेषणम्
मूलम् (वचनम्)
‘ॐ’ ऋषिरुवाच॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्य् आकर्ण्य वचो देव्याः
स दूतोऽमर्ष-पूरितः।
समाचष्ट समागम्य
दैत्यराजाय विस्तरात्॥२॥
मूलम्
इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः।
समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। २)
ऋषि कहते हैं—॥ १॥ देवीका यह कथन सुनकर दूतको बड़ा अमर्ष हुआ और उसने दैत्यराजके पास जाकर सब समाचार विस्तारपूर्वक कह सुनाया॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य दूतस्य तद् वाक्यम्
आकर्ण्यासुर-राट् ततः।
सक्रोधः प्राह दैत्यानाम्
अधिपं धूम्रलोचनम्॥३॥
मूलम्
तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः।
सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। ३)
दूतके उस वचनको सुनकर दैत्यराज कुपित हो उठा और दैत्यसेनापति धूम्रलोचनसे बोला—॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हे धूम्रलोचनाशु त्वं
स्वसैन्य-परिवारतिः।
ताम् आनय बलाद् दुष्टां
केशाकर्षण-विह्वलाम्॥४॥
मूलम्
हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः।
तामानय बलाद् दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। ४)
‘धूम्रलोचन! तुम शीघ्र अपनी सेना साथ लेकर जाओ और उस दुष्टाके केश पकड़कर घसीटते हुए उसे बलपूर्वक यहाँ ले आओ॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्-परित्राण-दः कश्चिद्
यदि वोत्तिष्ठते ऽपरः।
स हन्तव्यो ऽमरो वापि
यक्षो गन्धर्व एव वा॥५॥
मूलम्
तत्परित्राणदः कश्चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः।
स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। ५)
उसकी रक्षा करनेके लिये यदि कोई दूसरा खड़ा हो तो वह देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व ही क्यों न हो, उसे अवश्य मार डालना’॥ ५॥
मूलम् (वचनम्)
ऋषिरुवाच॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेनाज्ञप्तस् ततः शीघ्रं
स दैत्यो धूम्रलोचनः।
वृतः षष्ट्या सहस्राणाम्
असुराणां द्रुतं ययौ॥
मूलम्
तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः।
वृतः षष्ट्या सहस्राणामसुराणां द्रुतं ययौ॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। ७)
ऋषि कहते हैं—॥ ६॥ शुम्भके इस प्रकार आज्ञा देनेपर वह धूम्रलोचन दैत्य साठ हजार असुरोंकी सेनाको साथ लेकर वहाँसे तुरंत चल दिया॥ ७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम्।
जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः॥
मूलम्
स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम्।
जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। ८)
विश्वास-प्रस्तुतिः
न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति।
ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम्॥
मूलम्
न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति।
ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। ९)
वहाँ पहुँचकर उसने हिमालयपर रहनेवाली देवीको देखा और ललकारकर कहा—‘अरी! तू शुम्भ-निशुम्भके पास चल। यदि इस समय प्रसन्नतापूर्वक मेरे स्वामीके समीप नहीं चलेगी तो मैं बलपूर्वक झोंटा पकड़कर घसीटते हुए तुझे ले चलूँगा’॥ ८-९॥
मूलम् (वचनम्)
देव्युवाच॥ १०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान् बलसंवृतः।
बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम्॥
मूलम्
दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान् बलसंवृतः।
बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। ११)
देवी बोलीं—॥ १०॥ तुम्हें दैत्योंके राजाने भेजा है, तुम स्वयं भी बलवान् हो और तुम्हारे साथ विशाल सेना भी है; ऐसी दशामें यदि मुझे बलपूर्वक ले चलोगे तो मैं तुम्हारा क्या कर सकती हूँ?॥ ११॥
आक्रमः
मूलम् (वचनम्)
ऋषिरुवाच॥ १२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः।
हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका ततः॥
मूलम्
इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः।
हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका ततः॥
मूलम् (भास्कररायः)
इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः।
हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका तदा॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। १३)
ऋषि कहते हैं—॥ १२॥ देवीके यों कहनेपर असुर धूम्रलोचन उनकी ओर दौड़ा, तब अम्बिकाने ‘हुं’ शब्दके उच्चारणमात्रसे उसे भस्म कर दिया॥ १३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका।
ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः॥
मूलम्
अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका।
ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। १४)
फिर तो क्रोधमें भरी हुई दैत्योंकी विशाल सेना और अम्बिकाने एक-दूसरेपर तीखे सायकों, शक्तियों तथा फरसोंकी वर्षा आरम्भ की॥ १४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम्।
पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः॥
मूलम्
ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम्।
पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। १५)
इतनेमें ही देवीका वाहन सिंह क्रोधमें भरकर भयंकर गर्जना करके गर्दनके बालोंको हिलाता हुआ असुरोंकी सेनामें कूद पड़ा॥ १५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कांश्चित् करप्रहारेण
दैत्यान् आस्येन चापरान्।
आक्रम्य चाधरेणान्यान्
स जघान महासुरान्॥
मूलम्
कांश्चित् करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान्।
आक्रम्य चाधरेणान्यान् स जघान महासुरान्॥
मूलम् (भास्कररायः)
कांश्चित् करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान्।
आक्रान्त्य चाधरेणान्यान् जघान स महासुरान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। १६)
उसने कुछ दैत्योंको पंजोंकी मारसे, कितनोंको अपने जबड़ोंसे और कितने ही महादैत्योंको पटककर ओठकी दाढ़ोंसे घायल करके मार डाला॥ १६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केषांचित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी।
तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान् पृथक्॥
मूलम्
केषांचित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी।
तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान् पृथक्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। १७)
उस सिंहने अपने नखोंसे कितनोंके पेट फाड़ डाले और थप्पड़ मारकर कितनोंके सिर धड़से अलग कर दिये॥ १७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे।
पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः॥
मूलम्
विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे।
पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। १८)
कितनोंकी भुजाएँ और मस्तक काट डाले तथा अपनी गर्दनके बाल हिलाते हुए उसने दूसरे दैत्योंके पेट फाड़कर उनका रक्त चूस लिया॥ १८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना।
तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना॥
मूलम्
क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना।
तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। १९)
अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए देवीके वाहन उस महाबली सिंहने क्षणभरमें ही असुरोंकी सारी सेनाका संहार कर डाला॥ १९॥
चण्डमुण्डप्रेषणम्
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम्।
बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः॥
मूलम्
श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम्।
बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। २०)
विश्वास-प्रस्तुतिः
चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः।
आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ॥
मूलम्
चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः।
आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। २१)
शुम्भने जब सुना कि देवीने धूम्रलोचन असुरको मार डाला तथा उसके सिंहने सारी सेनाका सफाया कर डाला, तब उस दैत्यराजको बड़ा क्रोध हुआ। उसका ओठ काँपने लगा। उसने चण्ड और मुण्ड नामक दो महादैत्योंको आज्ञा दी—॥ २०-२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ।
तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु॥
मूलम्
हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ।
तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। २२)
विश्वास-प्रस्तुतिः
केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि।
तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम्॥
मूलम्
केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि।
तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६।२३)
‘हे चण्ड! और हे मुण्ड! तुमलोग बहुत बड़ी सेना लेकर वहाँ जाओ, उस देवीके झोंटे पकड़कर अथवा उसे बाँधकर शीघ्र यहाँ ले आओ। यदि इस प्रकार उसको लानेमें संदेह हो तो युद्धमें सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रों तथा समस्त आसुरी सेनाका प्रयोग करके उसकी हत्या कर डालना॥ २२-२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते।
शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम्॥ ॐ॥
मूलम्
तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते।
शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम्॥ ॐ॥
अनुवाद (हिन्दी)
(अ०६। २४)
उस दुष्टाकी हत्या होने तथा सिंहके भी मारे जानेपर उस अम्बिकाको बाँधकर साथ ले शीघ्र ही लौट आना’॥ २४॥
मूलम् (समाप्तिः)
॥ इतिश्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
शुम्भनिशुम्भसेनानीधूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः॥ ६॥
उवाच ४, श्लोकाः २०, एवम् २४,
एवमादितः ४१२॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीमाहात्म्यमें ‘धूम्रलोचन-वध’ नामक छठा अध्याय पूरा हुआ॥ ६॥