०३ तृतीयोऽध्यायः

॥ध्यानम्॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ॐ उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां
रक्तालिप्तपयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम्।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं
देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थिताम्॥

मूलम्

ॐ उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां
रक्तालिप्तपयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम्।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं
देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थिताम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जगदम्बाके श्रीअंगोंकी कान्ति उदयकालके सहस्रों सूर्योंके समान है। वे लाल रंगकी रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गलेमें मुण्डमाला शोभा पा रही है। दोनों स्तनोंपर रक्त चन्दनका लेप लगा है। वे अपने कर-कमलोंमें जपमालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं। तीन नेत्रोंसे सुशोभित मुखारविन्दकी बड़ी शोभा हो रही है। उनके मस्तकपर चन्द्रमाके साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमलके आसनपर विराजमान हैं। ऐसी देवीको मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ।

महासुराक्रमः

मूलम् (वचनम्)

‘ॐ’ ऋषिरुवाच॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निहन्यमानं तत्सैन्यमवलोक्य महासुरः।
सेनानीश्चिक्षुरः कोपाद्ययौ योद्धुमथाम्बिकाम्॥

मूलम्

निहन्यमानं तत्सैन्यमवलोक्य महासुरः।
सेनानीश्चिक्षुरः कोपाद्ययौ योद्धुमथाम्बिकाम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २)
ऋषि कहते हैं—॥ १॥ दैत्योंकी सेनाको इस प्रकार तहस-नहस होते देख महादैत्य सेनापति चिक्षुर क्रोधमें भरकर अम्बिकादेवीसे युद्ध करनेके लिये आगे बढ़ा॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स देवीं शरवर्षेण ववर्ष समरेऽसुरः।
यथा मेरुगिरेः शृङ्गं तोयवर्षेण तोयदः॥

मूलम्

स देवीं शरवर्षेण ववर्ष समरेऽसुरः।
यथा मेरुगिरेः शृङ्गं तोयवर्षेण तोयदः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३)
वह असुर रणभूमिमें देवीके ऊपर इस प्रकार बाणोंकी वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरुगिरिके शिखरपर पानीकी धार बरसा रहा हो॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यच् छित्त्वा ततो देवी लीलयैव शरोत्करान्।
जघान तुरगान् बाणैर्यन्तारं चैव वाजिनाम्॥

मूलम्

तस्यच्छित्त्वा ततो देवी लीलयैव शरोत्करान्।
जघान तुरगान् बाणैर्यन्तारं चैव वाजिनाम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ४)
तब देवीने अपने बाणोंसे उसके बाणसमूहको अनायास ही काटकर उसके घोड़ों और सारथिको भी मार डाला॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चिच्छेद च धनुः सद्यो ध्वजं चातिसमुच्छ्रितम्।
विव्याध चैव गात्रेषु छिन्नधन्वानमाशुगैः॥

मूलम्

चिच्छेद च धनुः सद्यो ध्वजं चातिसमुच्छ्रितम्।
विव्याध चैव गात्रेषु छिन्नधन्वानमाशुगैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ५)
साथ ही उसके धनुष तथा अत्यन्त ऊँची ध्वजाको भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जानेपर उसके अंगोंको अपने बाणोंसे बींध डाला॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सच्छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
अभ्यधावत तां देवीं खड्गचर्मधरोऽसुरः॥

मूलम्

सच्छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
अभ्यधावत तां देवीं खड्गचर्मधरोऽसुरः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ६)
धनुष, रथ, घोड़े और सारथिके नष्ट हो जानेपर वह असुर ढाल और तलवार लेकर देवीकी ओर दौड़ा॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिंहमाहत्य खड्गेन तीक्ष्णधारेण मूर्धनि।
आजघान भुजे सव्ये देवीमप्यतिवेगवान्॥

मूलम्

सिंहमाहत्य खड्गेन तीक्ष्णधारेण मूर्धनि।
आजघान भुजे सव्ये देवीमप्यतिवेगवान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ७)
उसने तीखी धारवाली तलवारसे सिंहके मस्तकपर चोट करके देवीकी भी बायीं भुजामें बड़े वेगसे प्रहार किया॥ ७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्याः खड्गो भुजं प्राप्य पफाल नृपनन्दन।
ततो जग्राह शूलं स कोपादरुणलोचनः॥

मूलम्

तस्याः खड्गो भुजं प्राप्य पफाल नृपनन्दन।
ततो जग्राह शूलं स कोपादरुणलोचनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ८)
राजन्! देवीकी बाँहपर पहुँचते ही वह तलवार टूट गयी, फिर तो क्रोधसे लाल आँखें करके उस राक्षसने शूल हाथमें लिया॥ ८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चिक्षेप च ततस्तत्तु भद्रकाल्यां महासुरः।
जाज्वल्यमानं तेजोभी रविबिम्बमिवाम्बरात्॥

मूलम्

चिक्षेप च ततस्तत्तु भद्रकाल्यां महासुरः।
जाज्वल्यमानं तेजोभी रविबिम्बमिवाम्बरात्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ९)
और उसे उस महादैत्यने भगवती भद्रकालीके ऊपर चलाया। वह शूल आकाशसे गिरते हुए सूर्यमण्डलकी भाँति अपने तेजसे प्रज्वलित हो उठा॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वा तदापतच्छूलं देवी शूलममुञ्चत।
तच्छूलं शतधा तेन नीतं स च महासुरः॥

मूलम्

दृष्ट्वा तदापतच्छूलं देवी शूलममुञ्चत।
तच्छूलं शतधा तेन नीतं स च महासुरः॥

मूलम् (भास्कररायः)

दृष्ट्वा तदापतच्छूलं देवी शूलममुञ्चत।
तेन तच् छतधा नीतं शूलं स च महासुरः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १०)
उस शूलको अपनी ओर आते देख देवीने भी शूलका प्रहार किया। उससे राक्षसके शूलके सैकड़ों टुकड़े हो गये, साथ ही महादैत्य चिक्षुरकी भी धज्जियाँ उड़ गयीं। वह प्राणोंसे हाथ धो बैठा॥ १०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हते तस्मिन्महावीर्ये महिषस्य चमूपतौ।
आजगाम गजारूढश्चामरस्त्रिदशार्दनः॥

मूलम्

हते तस्मिन्महावीर्ये महिषस्य चमूपतौ।
आजगाम गजारूढश्चामरस्त्रिदशार्दनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ११)

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽपि शक्तिं मुमोचाथ देव्यास्तामम्बिका द्रुतम्।
हुंकाराभिहतां भूमौ पातयामास निष्प्रभाम्॥

मूलम्

सोऽपि शक्तिं मुमोचाथ देव्यास्तामम्बिका द्रुतम्।
हुंकाराभिहतां भूमौ पातयामास निष्प्रभाम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १२)
महिषासुरके सेनापति उस महापराक्रमी चिक्षुरके मारे जानेपर देवताओंको पीड़ा देनेवाला चामर हाथीपर चढ़कर आया। उसने भी देवीके ऊपर शक्तिका प्रहार किया, किंतु जगदम्बाने उसे अपने हुंकारसे ही आहत एवं निष्प्रभ करके तत्काल पृथ्वीपर गिरा दिया॥ ११-१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भग्नां शक्तिं निपतितां दृष्ट्वा क्रोधसमन्वितः।
चिक्षेप चामरः शूलं बाणैस्तदपि साच्छिनत्॥

मूलम्

भग्नां शक्तिं निपतितां दृष्ट्वा क्रोधसमन्वितः।
चिक्षेप चामरः शूलं बाणैस्तदपि साच्छिनत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १३)
शक्ति टूटकर गिरी हुई देख चामरको बड़ा क्रोध हुआ। अब उसने शूल चलाया, किंतु देवीने उसे भी अपने बाणोंद्वारा काट डाला॥ १३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सिंहः समुत्पत्य गजकुम्भान्तरे स्थितः।
बाहुयुद्धेन युयुधे तेनोच्चैस्त्रिदशारिणा॥

मूलम्

ततः सिंहः समुत्पत्य गजकुम्भान्तरे स्थितः।
बाहुयुद्धेन युयुधे तेनोच्चैस्त्रिदशारिणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १४)
इतनेमें ही देवीका सिंह उछलकर हाथीके मस्तकपर चढ़ बैठा और उस दैत्यके साथ खूब जोर लगाकर बाहुयुद्ध करने लगा॥ १४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युद्ध्यमानौ ततस्तौ तु तस्मान्नागान्महीं गतौ।
युयुधातेऽतिसंरब्धौ प्रहारैरतिदारुणैः॥

मूलम्

युद्ध्यमानौ ततस्तौ तु तस्मान्नागान्महीं गतौ।
युयुधातेऽतिसंरब्धौ प्रहारैरतिदारुणैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १५)
वे दोनों लड़ते-लड़ते हाथीसे पृथ्वीपर आ गये और अत्यन्त क्रोधमें भरकर एक-दूसरेपर बड़े भयंकर प्रहार करते हुए लड़ने लगे॥ १५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो वेगात् खमुत्पत्य निपत्य च मृगारिणा।
करप्रहारेण शिरश्चामरस्य पृथक्‍कृतम्॥

मूलम्

ततो वेगात् खमुत्पत्य निपत्य च मृगारिणा।
करप्रहारेण शिरश्चामरस्य पृथक्‍कृतम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १६)
तदनन्तर सिंह बड़े वेगसे आकाशकी ओर उछला और उधरसे गिरते समय उसने पंजोंकी मारसे चामरका सिर धड़से अलग कर दिया॥ १६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उदग्रश्च रणे देव्या शिलावृक्षादिभिर्हतः।
दन्तमुष्टितलैश्चैव करालश्च निपातितः॥

मूलम्

उदग्रश्च रणे देव्या शिलावृक्षादिभिर्हतः।
दन्तमुष्टितलैश्चैव करालश्च निपातितः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १७)
इसी प्रकार उदग्र भी शिला और वृक्ष आदिकी मार खाकर रणभूमिमें देवीके हाथसे मारा गया तथा कराल भी दाँतों, मुक्कों और थप्पड़ोंकी चोटसे धराशायी हो गया॥ १७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

देवी क्रुद्धा गदापातैश्
चूर्णयाम् आस चोद्धतम्।
वाष्कलं+++(=वीरं)+++ भिन्दिपालेन
बाणैस्ताम्रं तथान्धकम्॥

मूलम्

देवी क्रुद्धा गदापातैश्चूर्णयामास चोद्धतम्।
वाष्कलं भिन्दिपालेन बाणैस्ताम्रं तथान्धकम्॥

मूलम् (भास्कररायः)

देवी क्रुद्धा गदापातैश्चूर्णयामास चोद्धतम्।
बाष्कलं भिन्दिपालेन बाणैस्ताम्रं तथान्धकम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १८)
क्रोधमें भरी हुई देवीने गदाकी चोटसे उद्धतका कचूमर निकाल डाला। भिन्दिपालसे वाष्कलको तथा बाणोंसे ताम्र और अन्धकको मौतके घाट उतार दिया॥ १८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उग्रास्यमुग्रवीर्यं च तथैव च महाहनुम्।
त्रिनेत्रा च त्रिशूलेन जघान परमेश्वरी॥

मूलम्

उग्रास्यमुग्रवीर्यं च तथैव च महाहनुम्।
त्रिनेत्रा च त्रिशूलेन जघान परमेश्वरी॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। १९)
तीन नेत्रोंवाली परमेश्वरीने त्रिशूलसे उग्रास्य, उग्रवीर्य तथा महाहनु नामक दैत्योंको मार डाला॥ १९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिडालस्यासिना कायात्पातयामास वै शिरः।
दुर्धरं दुर्मुखं चोभौ शरैर्निन्ये यमक्षयम्॥

मूलम्

बिडालस्यासिना कायात्पातयामास वै शिरः।
दुर्धरं दुर्मुखं चोभौ शरैर्निन्ये यमक्षयम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २०)
तलवारकी चोटसे विडालके मस्तकको धड़से काट गिराया। दुर्धर और दुर्मुख—इन दोनोंको भी अपने बाणोंसे यमलोक भेज दिया॥ २०॥

महिषरूपग्रहणम्

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं संक्षीयमाणे तु स्वसैन्ये महिषासुरः।
माहिषेण स्वरूपेण त्रासयामास तान् गणान्॥

मूलम्

एवं संक्षीयमाणे तु स्वसैन्ये महिषासुरः।
माहिषेण स्वरूपेण त्रासयामास तान् गणान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २१)
इस प्रकार अपनी सेनाका संहार होता देख महिषासुरने भैंसेका रूप धारण करके देवीके गणोंको त्रास देना आरम्भ किया॥ २१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कांश्चित् तुण्ड-प्रहारेण
खुर-क्षेपैस् तथापरान्।
लाङ्गूल-ताडितांश् चान्यान्
शृङ्गाभ्यां च विदारितान्॥

मूलम्

कांश्चित्तुण्डप्रहारेण खुरक्षेपैस्तथापरान्।
लाङ्गूलताडितांश्चान्याञ्छृङ्गाभ्यां च विदारितान्॥

मूलम्

कांश्चित्तुण्डप्रहारेण खुरक्षेपैस्तथापरान्।
लाङ्गूलताडितांश्चान्यान् शृङ्गाभ्यां च विदारितान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २२)

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेगेन कांश्चिदपरान्नादेन भ्रमणेन च।
निःश्वासपवनेनान्यान् पातयामास भूतले॥

मूलम्

वेगेन कांश्चिदपरान्नादेन भ्रमणेन च।
निःश्वासपवनेनान्यान् पातयामास भूतले॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २३)
किन्हींको थूथुनसे मारकर, किन्हींके ऊपर खुरोंका प्रहार करके, किन्हीं-किन्हींको पूँछसे चोट पहुँचाकर, कुछको सींगोंसे विदीर्ण करके, कुछ गणोंको वेगसे, किन्हींको सिंहनादसे, कुछको चक्कर देकर और कितनोंको निःश्वास-वायुके झोंकेसे धराशायी कर दिया॥ २२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निपात्य प्रमथानीकमभ्यधावत सोऽसुरः।
सिंहं हन्तुं महादेव्याः कोपं चक्रे ततोऽम्बिका॥

मूलम्

निपात्य प्रमथानीकमभ्यधावत सोऽसुरः।
सिंहं हन्तुं महादेव्याः कोपं चक्रे ततोऽम्बिका॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २४)
इस प्रकार गणोंकी सेनाको गिराकर वह असुर महादेवीके सिंहको मारनेके लिये झपटा। इससे जगदम्बाको बड़ा क्रोध हुआ॥ २४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽपि कोपान्महावीर्यः खुरक्षुण्णमहीतलः।
शृङ्गाभ्यां पर्वतानुच्चांश्चिक्षेप च ननाद च॥

मूलम्

सोऽपि कोपान्महावीर्यः खुरक्षुण्णमहीतलः।
शृङ्गाभ्यां पर्वतानुच्चांश्चिक्षेप च ननाद च॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २५)
उधर महापराक्रमी महिषासुर भी क्रोधमें भरकर धरतीको खुरोंसे खोदने लगा तथा अपने सींगोंसे ऊँचे-ऊँचे पर्वतोंको उठाकर फेंकने और गर्जने लगा॥ २५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेगभ्रमणविक्षुण्णा मही तस्य व्यशीर्यत।
लाङ्गूलेनाहतश्चाब्धिः प्लावयामास सर्वतः॥

मूलम्

वेगभ्रमणविक्षुण्णा मही तस्य व्यशीर्यत।
लाङ्गूलेनाहतश्चाब्धिः प्लावयामास सर्वतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २६)
उसके वेगसे चक्कर देनेके कारण पृथ्वी क्षुब्ध होकर फटने लगी। उसकी पूँछसे टकराकर समुद्र सब ओरसे धरतीको डुबोने लगा॥ २६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धुतशृङ्गविभिन्नाश्च खण्डं खण्डं ययुर्घनाः।
श्वासानिलास्ताः शतशो निपेतुर्नभसोऽचलाः॥

मूलम्

धुतशृङ्गविभिन्नाश्च खण्डं खण्डं ययुर्घनाः।
श्वासानिलास्ताः शतशो निपेतुर्नभसोऽचलाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २७)
हिलते हुए सींगोंके आघातसे विदीर्ण होकर बादलोंके टुकड़े-टुकड़े हो गये। उसके श्वासकी प्रचण्ड वायुके वेगसे उड़े हुए सैकड़ों पर्वत आकाशसे गिरने लगे॥ २७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति क्रोधसमाध्मातमापतन्तं महासुरम्।
दृष्ट्वा सा चण्डिका कोपं तद्वधाय तदाकरोत्॥

मूलम्

इति क्रोधसमाध्मातमापतन्तं महासुरम्।
दृष्ट्वा सा चण्डिका कोपं तद्वधाय तदाकरोत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २८)
इस प्रकार क्रोधमें भरे हुए उस महादैत्यको अपनी ओर आते देख चण्डिकाने उसका वध करनेके लिये महान् क्रोध किया॥ २८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा क्षिप्त्वा तस्य वै पाशं तं बबन्ध महासुरम्।
तत्याज माहिषं रूपं सोऽपि बद्धो महामृधे॥

मूलम्

सा क्षिप्त्वा तस्य वै पाशं तं बबन्ध महासुरम्।
तत्याज माहिषं रूपं सोऽपि बद्धो महामृधे॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। २९)
उन्होंने पाश फेंककर उस महान् असुरको बाँध लिया। उस महासंग्राममें बँध जानेपर उसने भैंसेका रूप त्याग दिया॥ २९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सिंहोऽभवत्सद्यो यावत्तस्याम्बिका शिरः।
छिनत्ति तावत्पुरुषः खड्गपाणिरदृश्यत॥

मूलम्

ततः सिंहोऽभवत्सद्यो यावत्तस्याम्बिका शिरः।
छिनत्ति तावत्पुरुषः खड्गपाणिरदृश्यत॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३०)
और तत्काल सिंहके रूपमें वह प्रकट हो गया। उस अवस्थामें जगदम्बा ज्यों ही उसका मस्तक काटनेके लिये उद्यत हुईं, त्यों ही वह खड्गधारी पुरुषके रूपमें दिखायी देने लगा॥ ३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत एवाशु पुरुषं देवी चिच्छेद सायकैः।
तं खड्गचर्मणा सार्धं ततः सोऽभून्महागजः॥

मूलम्

तत एवाशु पुरुषं देवी चिच्छेद सायकैः।
तं खड्गचर्मणा सार्धं ततः सोऽभून्महागजः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३१)
तब देवीने तुरंत ही बाणोंकी वर्षा करके ढाल और तलवारके साथ उस पुरुषको भी बींध डाला। इतनेमें ही वह महान् गजराजके रूपमें परिणत हो गया॥ ३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

करेण च महासिंहं तं चकर्ष जगर्ज च।
कर्षतस्तु करं देवी खड्गेन निरकृन्तत॥

मूलम्

करेण च महासिंहं तं चकर्ष जगर्ज च।
कर्षतस्तु करं देवी खड्गेन निरकृन्तत॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३२)
तथा अपनी सूँड़से देवीके विशाल सिंहको खींचने और गर्जने लगा। खींचते समय देवीने तलवारसे उसकी सूँड़ काट डाली॥ ३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो महासुरो भूयो माहिषं वपुरास्थितः।
तथैव क्षोभयामास त्रैलोक्यं सचराचरम्॥

मूलम्

ततो महासुरो भूयो माहिषं वपुरास्थितः।
तथैव क्षोभयामास त्रैलोक्यं सचराचरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३३)
तब उस महादैत्यने पुनः भैंसेका शरीर धारण कर लिया और पहलेकी ही भाँति चराचर प्राणियोंसहित तीनों लोकोंको व्याकुल करने लगा॥ ३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्रुद्धा जगन्माता चण्डिका पानमुत्तमम्।
पपौ पुनः पुनश्चैव जहासारुणलोचना॥

मूलम्

ततः क्रुद्धा जगन्माता चण्डिका पानमुत्तमम्।
पपौ पुनः पुनश्चैव जहासारुणलोचना॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३४)
तब क्रोधमें भरी हुई जगन्माता चण्डिका बारंबार उत्तम मधुका पान करने और लाल आँखें करके हँसने लगीं॥ ३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ननर्द चासुरः सोऽपि बलवीर्यमदोद्धतः।
विषाणाभ्यां च चिक्षेप चण्डिकां प्रति भूधरान्॥

मूलम्

ननर्द चासुरः सोऽपि बलवीर्यमदोद्धतः।
विषाणाभ्यां च चिक्षेप चण्डिकां प्रति भूधरान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३५)
उधर वह बल और पराक्रमके मदसे उन्मत्त हुआ राक्षस गर्जने लगा और अपने सींगोंसे चण्डीके ऊपर पर्वतोंको फेंकने लगा॥ ३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा च तान् प्रहितांस्तेन चूर्णयन्ती शरोत्करैः।
उवाच तं मदोद्‍धूतमुखरागाकुलाक्षरम्॥

मूलम्

सा च तान् प्रहितांस्तेन चूर्णयन्ती शरोत्करैः।
उवाच तं मदोद्‍धूतमुखरागाकुलाक्षरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३६)
उस समय देवी अपने बाणोंके समूहोंसे उसके फेंके हुए पर्वतोंको चूर्ण करती हुई बोलीं। बोलते समय उनका मुख मधुके मदसे लाल हो रहा था और वाणी लड़खड़ा रही थी॥ ३६॥

महिषासुर-हतिः

मूलम् (वचनम्)

देव्युवाच॥ ३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम्।
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवताः॥+++(5)+++

मूलम्

गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम्।
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ३८)
देवीने कहा—॥ ३७॥ ओ मूढ़! मैं जबतक मधु पीती हूँ, तबतक तू क्षणभरके लिये खूब गर्ज ले। मेरे हाथसे यहीं तेरी मृत्यु हो जानेपर अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे॥ ३८॥

मूलम् (वचनम्)

ऋषिरुवाच॥ ३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्त्वा समुत्पत्य साऽऽरूढा तं महासुरम्।
पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताडयत्॥

मूलम्

एवमुक्त्वा समुत्पत्य साऽऽरूढा तं महासुरम्।
पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताडयत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ४०)
ऋषि कहते हैं—॥ ३९॥ यों कहकर देवी उछलीं और उस महादैत्यके ऊपर चढ़ गयीं। फिर अपने पैरसे उसे दबाकर उन्होंने शूलसे उसके कण्ठमें आघात किया॥ ४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सोऽपि पदाऽऽक्रान्तस्
तया निजमुखात्ततः।
अर्धनिष्क्रान्त एवासीद्
देव्या वीर्येण संवृतः॥

मूलम्

ततः सोऽपि पदाऽऽक्रान्तस्तया निजमुखात्ततः।
अर्धनिष्क्रान्त एवासीद् देव्या वीर्येण संवृतः॥

मूलम् (भास्कररायः)

ततः सोऽपि पदाऽऽक्रान्तस्तया निजमुखात् तदा।
अर्धनिष्क्रान्त एवासीद् देव्या वीर्येण संवृतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ४१)
उनके पैरसे दबा होनेपर भी महिषासुर अपने मुखसे [दूसरे रूपमें बाहर होने लगा] अभी आधे शरीरसे ही वह बाहर निकलने पाया था कि देवीने अपने प्रभावसे उसे रोक दिया॥ ४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्धनिष्क्रान्त एवासौ युध्यमानो महासुरः।
तया महासिना देव्या शिरश्छित्त्वा निपातितः॥

मूलम्

अर्धनिष्क्रान्त एवासौ युध्यमानो महासुरः।
तया महासिना देव्या शिरश्छित्त्वा निपातितः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ४२)
आधा निकला होनेपर भी वह महादैत्य देवीसे युद्ध करने लगा। तब देवीने बहुत बड़ी तलवारसे उसका मस्तक काट गिराया॥ ४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाश तत्।
प्रहर्षं च परं जग्मुः सकला देवतागणाः॥

मूलम्

ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाश तत्।
प्रहर्षं च परं जग्मुः सकला देवतागणाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ४३)
फिर तो हाहाकार करती हुई दैत्योंकी सारी सेना भाग गयी तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न हो गये॥ ४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुष्टुवुस्तां सुरा देवीं सह दिव्यैर्महर्षिभिः।
जगुर्गन्धर्वपतयो ननृतुश्चाप्सरोगणाः॥ ॐ॥

मूलम्

तुष्टुवुस्तां सुरा देवीं सह दिव्यैर्महर्षिभिः।
जगुर्गन्धर्वपतयो ननृतुश्चाप्सरोगणाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अ०३। ४४)
देवताओंने दिव्य महर्षियोंके साथ दुर्गादेवीका स्तवन किया। गन्धर्वराज गाने लगे तथा अप्सराएँ नृत्य करने लगीं॥ ४४॥

मूलम् (समाप्तिः)

ॐ॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये महिषासुरवधो नाम तृतीयोऽध्यायः॥ ३॥
उवाच ३, श्लोकाः ४१, एवम् ४४,
एवमादितः २१७॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीमाहात्म्यमें ‘महिषासुरवध’ नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ॥ ३॥