विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
ॐ नमश्चण्डिकायै॥
मूलम्
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
ॐ नमश्चण्डिकायै॥
अनुवाद (हिन्दी)
ॐ चण्डिका देवीको नमस्कार है।
प्रस्तावः
मूलम् (वचनम्)
मार्कण्डेय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ
यद् गुह्यं परमं लोके
सर्व-रक्षा-करं नृणाम् ।
यन् न कस्य् अचिदाख्यातं
तन् मे ब्रूहि पितामह ॥ १॥
मूलम्
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१)
मार्कण्डेयजीने कहा—पितामह! जो इस संसारमें परम गोपनीय तथा मनुष्योंकी सब प्रकारसे रक्षा करनेवाला है और जो अबतक आपने दूसरे किसीके सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये॥ १॥
कवचम्
मूलम् (वचनम्)
ब्रह्मोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अस्ति गुह्यतमं विप्र
सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास् तु कवचं पुण्यं
तच्छृणुष्व महामुने ॥ २॥
मूलम्
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२)
ब्रह्माजी बोले—ब्रह्मन्! ऐसा साधन तो एक देवीका कवच ही है, जो गोपनीयसे भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका उपकार करनेवाला है। महामुने! उसे श्रवण करो॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रथमं शैलपुत्रीति
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति
कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ ३॥
मूलम्
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३)
विश्वास-प्रस्तुतिः
पञ्चमं स्कन्दमातेति
षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति
महागौरीति चाष्टमम् ॥ ४॥
मूलम्
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४)
विश्वास-प्रस्तुतिः
नवमं सिद्धिदात्री च
नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्य् एतानि नामानि
ब्रह्मणैव महात्मना ॥ ५॥
मूलम्
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५)
देवीकी नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें ‘नवदुर्गा’ कहते हैं। उनके पृथक्-पृथक् नाम बतलाये जाते हैं। प्रथम नाम शैलपुत्री१ है। दूसरी मूर्तिका नाम ब्रह्मचारिणी२ है। तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा३ के नामसे प्रसिद्ध है। चौथी मूर्तिको कूष्माण्डा४ कहते हैं। पाँचवीं दुर्गाका नाम स्कन्दमाता५ है। देवीके छठे रूपको कात्यायनी६ कहते हैं। सातवाँ कालरात्रि७ और आठवाँ स्वरूप महागौरी८ के नामसे प्रसिद्ध है। नवीं दुर्गाका नाम सिद्धिदात्री९ है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं॥ ३—५॥
पादटिप्पनी
१. गिरिराज हिमालयकी पुत्री ‘पार्वतीदेवी’। यद्यपि ये सबकी अधीश्वरी हैं, तथापि हिमालयकी तपस्या और प्रार्थनासे प्रसन्न हो कृपापूर्वक उनकी पुत्रीके रूपमें प्रकट हुईं। यह बात पुराणोंमें प्रसिद्ध है।
२. ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी—सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूपकी प्राप्ति कराना जिनका स्वभाव हो, वे ‘ब्रह्मचारिणी’ हैं।
३. चन्द्रः घण्टायां यस्याः सा—आह्लादकारी चन्द्रमा जिनकी घण्टामें स्थित हों, उन देवीका नाम ‘चन्द्रघण्टा’ है।
४. कुत्सितः ऊष्मा कूष्मा—त्रिविधतापयुतः संसारः, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्याः सा कूष्माण्डा। अर्थात् त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदरमें स्थित है, वे भगवती ‘कूष्माण्डा’ कहलाती हैं।
५. छान्दोग्यश्रुतिके अनुसार भगवतीकी शक्तिसे उत्पन्न हुए सनत्कुमारका नाम स्कन्द है । उनकी माता होनेसे वे ‘स्कन्दमाता’ कहलाती हैं।
६. देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये देवी महर्षि कात्यायनके आश्रमपर प्रकट हुईं और महर्षिने उन्हें अपनी कन्या माना; इसलिये ‘कात्यायनी’ नामसे उनकी प्रसिद्धि हुई।
७. सबको मारनेवाले कालकी भी रात्रि (विनाशिका) होनेसे उनका नाम ‘कालरात्रि’ है।
८. इन्होंने तपस्याद्वारा महान् गौरवर्ण प्राप्त किया था, अतः ये महागौरी कहलायीं।
९. सिद्धि अर्थात् मोक्षको देनेवाली होनेसे उनका नाम ‘सिद्धिदात्री’ है।
फलश्रुतिः
विश्वास-प्रस्तुतिः
अग्निना दह्यमानस् तु
शत्रुमध्ये गतो रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव
भयार्ताः शरणं गताः ॥ ६॥
मूलम्
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०६)
विश्वास-प्रस्तुतिः
न तेषां जायते किञ्चिद्
अशुभं रण-सङ्कटे ।
नापदं तस्य पश्यामि
शोकदुःखभयं नहि ॥ ७॥
मूलम्
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०७)
जो मनुष्य अग्निमें जल रहा हो, रणभूमिमें शत्रुओंसे घिर गया हो, विषम संकटमें फँस गया हो तथा इस प्रकार भयसे आतुर होकर जो भगवती दुर्गाकी शरणमें प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता। युद्धके समय संकटमें पड़नेपर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखायी देती। उन्हें शोक, दुःख और भयकी प्राप्ति नहीं होती॥ ६-७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यैस् तु भक्त्या स्मृता नूनं
तेषां सिद्धिः प्रजायते ।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि
रक्षसे तान् न संशयः । ८॥
मूलम्
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०८)
जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवीका स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है। देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम निःसन्देह रक्षा करती हो॥ ८॥
मातरः
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा
वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा
वैष्णवी गरुडासना॥
मूलम्
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०९)
चामुण्डादेवी प्रेतपर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैंसेपर सवारी करती हैं। ऐन्द्रीका वाहन ऐरावत हाथी है। वैष्णवीदेवी गरुडपर ही आसन जमाती हैं॥ ९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
माहेश्वरी वृषारूढा
कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी
पद्महस्ता हरिप्रिया॥
मूलम्
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१०)
माहेश्वरी वृषभपर आरूढ़ होती हैं। कौमारीका वाहन मयूर है। भगवान् विष्णुकी प्रियतमा लक्ष्मीदेवी कमलके आसनपर विराजमान हैं और हाथोंमें कमल धारण किये हुए हैं॥ १०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्वेतरूपधरा देवी
ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा
सर्वाभरणभूषिता॥
मूलम्
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०११)
वृषभपर आरूढ़ ईश्वरीदेवीने श्वेत रूप धारण कर रखा है। ब्राह्मीदेवी हंसपर बैठी हुई हैं और सब प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित हैं॥ ११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येता मातरः सर्वाः
सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या
नानारत्नोपशोभिताः॥
मूलम्
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१२)
इस प्रकार ये सभी माताएँ सब प्रकारकी योगशक्तियोंसे सम्पन्न हैं। इनके सिवा और भी बहुत-सी देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकारके आभूषणोंकी शोभासे युक्त तथा नाना प्रकारके रत्नोंसे सुशोभित हैं॥ १२॥
आयुधानि
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृश्यन्ते रथमारूढा
देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं
हलं च मुसलायुधम्॥
मूलम्
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१३)
विश्वास-प्रस्तुतिः
खेटकं तोमरं चैव
परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च
शार्ङ्गम् आयुधम् उत्तमम्॥
मूलम्
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१४)
विश्वास-प्रस्तुतिः
दैत्यानां देहनाशाय
भक्तानाम् अभयाय च।
धारयन्त्य् आयुधानीत्थं
देवानां च हिताय वै॥
मूलम्
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१५)
ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोधमें भरी हुई हैं और भक्तोंकी रक्षाके लिये रथपर बैठी दिखायी देती हैं। ये शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मुसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्गधनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथोंमें धारण करती हैं। दैत्योंके शरीरका नाश करना, भक्तोंको अभयदान देना और देवताओंका कल्याण करना—यही उनके शस्त्र-धारणका उद्देश्य है॥ १३—१५॥
रक्षाप्रार्थना
विश्वास-प्रस्तुतिः
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे
महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे
महाभयविनाशिनि॥
मूलम्
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१६)
[कवच आरम्भ करनेके पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये—] महान् रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान् बल और महान् उत्साहवाली देवि! तुम महान् भयका नाश करनेवाली हो, तुम्हें नमस्कार है॥ १६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये
शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री
आग्नेय्याम् अग्निदेवता॥
मूलम्
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१७)
दिङ्न्यासः
विश्वास-प्रस्तुतिः
दक्षिणेऽवतु वाराही
नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्
वायव्यां मृगवाहिनी॥
मूलम्
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१८)
तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है। शत्रुओंका भय बढ़ानेवाली जगदम्बिके! मेरी रक्षा करो।
पूर्व दिशामें ऐन्द्री (इन्द्रशक्ति) मेरी रक्षा करे। अग्निकोणमें अग्निशक्ति, दक्षिण दिशामें वाराही तथा नैर्ऋत्यकोणमें खड्गधारिणी मेरी रक्षा करे। पश्चिम दिशामें वारुणी और वायव्यकोणमें मृगपर सवारी करनेवाली देवी मेरी रक्षा करे॥ १७-१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उदीच्यां पातु कौमारी
ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेद्
अधस्ताद् वैष्णवी तथा॥
मूलम्
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०१९)
उत्तर दिशामें कौमारी और ईशान-कोणमें शूलधारिणीदेवी रक्षा करे। ब्रह्माणि! तुम ऊपरकी ओरसे मेरी रक्षा करो और वैष्णवीदेवी नीचेकी ओरसे मेरी रक्षा करे॥ १९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं दश दिशो रक्षेच्
चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु
विजया पातु पृष्ठतः॥
मूलम्
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२०)
इसी प्रकार शवको अपना वाहन बनानेवाली चामुण्डादेवी दसों दिशाओंमें मेरी रक्षा करे।
जया आगेसे और विजया पीछेकी ओरसे मेरी रक्षा करे॥ २०॥
अङ्गन्यासः
विश्वास-प्रस्तुतिः
अजिता वामपार्श्वे तु
दक्षिणे चापराजिता।
शिखाम् उद्योतिनी रक्षेद्
उमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥
मूलम्
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२१)
वामभागमें अजिता और दक्षिणभागमें अपराजिता रक्षा करे। उद्योतिनी शिखाकी रक्षा करे। उमा मेरे मस्तकपर विराजमान होकर रक्षा करे॥ २१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥
मूलम्
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२२)
ललाटमें मालाधरी रक्षा करे और यशस्विनीदेवी मेरी भौंहोंका संरक्षण करे। भौंहोंके मध्यभागमें त्रिनेत्रा और नथुनोंकी यमघण्टादेवी रक्षा करे॥ २२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥
मूलम्
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२३)
दोनों नेत्रोंके मध्यभागमें शंखिनी और कानोंमें द्वारवासिनी रक्षा करे। कालिकादेवी कपोलोंकी तथा भगवती शांकरी कानोंके मूलभागकी रक्षा करे॥ २३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥
मूलम्
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२४)
नासिकामें सुगन्धा और ऊपरके ओठमें चर्चिकादेवी रक्षा करे। नीचेके ओठमें अमृतकला तथा जिह्वामें सरस्वतीदेवी रक्षा करे॥ २४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥
मूलम्
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२५)
कौमारी दाँतोंकी और चण्डिका कण्ठप्रदेशकी रक्षा करे। चित्रघण्टा गलेकी घाँटीकी और महामाया तालुमें रहकर रक्षा करे॥ २५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥
मूलम्
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२६)
कामाक्षी ठोढ़ीकी और सर्वमंगला मेरी वाणीकी रक्षा करे। भद्रकाली ग्रीवामें और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड)-में रहकर रक्षा करे॥ २६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥
मूलम्
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२७)
कण्ठके बाहरी भागमें नीलग्रीवा और कण्ठकी नलीमें नलकूबरी रक्षा करे। दोनों कंधोंमें खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओंकी वज्रधारिणी रक्षा करे॥ २७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥
मूलम्
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२८)
दोनों हाथोंमें दण्डिनी और अंगुलियोंमें अम्बिका रक्षा करे। शूलेश्वरी नखोंकी रक्षा करे। कुलेश्वरी कुक्षि (पेट)-में रहकर रक्षा करे॥ २८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥
मूलम्
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०२९)
महादेवी दोनों स्तनोंकी और शोकविनाशिनीदेवी मनकी रक्षा करे। ललितादेवी हृदयमें और शूलधारिणी उदरमें रहकर रक्षा करे॥ २९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥
मूलम्
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३०)
नाभिमें कामिनी और गुह्यभागकी गुह्येश्वरी रक्षा करे। पूतना और कामिका लिंगकी और महिषवाहिनी गुदाकी रक्षा करे॥ ३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥
मूलम्
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३१)
भगवती कटिभागमें और विन्ध्यवासिनी घुटनोंकी रक्षा करे। सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाली महाबलादेवी दोनों पिण्डलियोंकी रक्षा करे॥ ३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥
मूलम्
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३२)
नारसिंही दोनों घुट्ठियोंकी और तैजसीदेवी दोनों चरणोंके पृष्ठभागकी रक्षा करे। श्रीदेवी पैरोंकी अंगुलियोंमें और तलवासिनी पैरोंके तलुओंमें रहकर रक्षा करे॥ ३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥
मूलम्
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३३)
अपनी दाढ़ोंके कारण भयंकर दिखायी देनेवाली दंष्ट्राकरालीदेवी नखोंकी और ऊर्ध्वकेशिनीदेवी केशोंकी रक्षा करे। रोमावलियोंके छिद्रोंमें कौबेरी और त्वचाकी वागीश्वरीदेवी रक्षा करे॥ ३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥
मूलम्
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३४)
पार्वतीदेवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस, हड्डी और मेदकी रक्षा करे। आँतोंकी कालरात्रि और पित्तकी मुकुटेश्वरी रक्षा करे॥ ३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥
मूलम्
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३५)
मूलाधार आदि कमल-कोशोंमें पद्मावतीदेवी और कफमें चूडामणिदेवी स्थित होकर रक्षा करे। नखके तेजकी ज्वालामुखी रक्षा करे। जिसका किसी भी अस्त्रसे भेदन नहीं हो सकता, वह अभेद्यादेवी शरीरकी समस्त संधियोंमें रहकर रक्षा करे॥ ३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥
मूलम्
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३६)
ब्रह्माणि! आप मेरे वीर्यकी रक्षा करें। छत्रेश्वरी छायाकी तथा धर्मधारिणी-देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धिकी रक्षा करे॥ ३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥
मूलम्
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३७)
हाथमें वज्र धारण करनेवाली वज्रहस्तादेवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायुकी रक्षा करे। कल्याणसे शोभित होनेवाली भगवती कल्याणशोभना मेरे प्राणकी रक्षा करे॥ ३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥
मूलम्
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३८)
रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श—इन विषयोंका अनुभव करते समय योगिनीदेवी रक्षा करे तथा सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुणकी रक्षा सदा नारायणीदेवी करे॥ ३८॥
अर्थरक्षा
विश्वास-प्रस्तुतिः
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥
मूलम्
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०३९)
वाराही आयुकी रक्षा करे। वैष्णवी धर्मकी रक्षा करे तथा चक्रिणी (चक्र धारण करनेवाली)-देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन तथा विद्याकी रक्षा करे॥ ३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥
मूलम्
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४०)
इन्द्राणि! आप मेरे गोत्रकी रक्षा करें। चण्डिके! तुम मेरे पशुओंकी रक्षा करो। महालक्ष्मी पुत्रोंकी रक्षा करे और भैरवी पत्नीकी रक्षा करे॥ ४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥
मूलम्
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४१)
मेरे पथकी सुपथा तथा मार्गकी क्षेमकरी रक्षा करे। राजाके दरबारमें महालक्ष्मी रक्षा करे तथा सब ओर व्याप्त रहनेवाली विजयादेवी सम्पूर्ण भयोंसे मेरी रक्षा करे॥ ४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥
मूलम्
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४२)
देवि! जो स्थान कवचमें नहीं कहा गया है, अतएव रक्षासे रहित है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो; क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो॥ ४२॥
फलश्रुतिः
विश्वास-प्रस्तुतिः
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥
मूलम्
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४३)
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥
मूलम्
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४४)
यदि अपने शरीरका भला चाहे तो मनुष्य बिना कवचके कहीं एक पग भी न जाय—कवचका पाठ करके ही यात्रा करे। कवचके द्वारा सब ओरसे सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है, वहाँ-वहाँ उसे धन-लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओंकी सिद्धि करनेवाली विजयकी प्राप्ति होती है। वह जिस-जिस अभीष्ट वस्तुका चिन्तन करता है, उस-उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वीपर तुलनारहित महान् ऐश्वर्यका भागी होता है॥ ४३-४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥
मूलम्
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४५)
कवचसे सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्धमें उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकोंमें पूजनीय होता है॥ ४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥
मूलम्
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४६)
विश्वास-प्रस्तुतिः
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥
मूलम्
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४७)
देवीका यह कवच देवताओंके लिये भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओंके समय श्रद्धाके साथ इसका पाठ करता है, उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकोंमें कहीं भी पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अपमृत्युसे* रहित हो सौसे भी अधिक वर्षोंतक जीवित रहता है॥ ४६-४७॥
पादटिप्पनी
- अकाल-मृत्यु अथवा अग्नि, जल, बिजली एवं सर्प आदिसे होनेवाली मृत्युको ‘अपमृत्यु’ कहते हैं।
विश्वास-प्रस्तुतिः
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥
मूलम्
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४८)
मकरी, चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदिका स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदिके काटनेसे चढ़ा हुआ जंगम विष तथा अहिफेन और तेलके संयोग आदिसे बननेवाला कृत्रिम विष—ये सभी प्रकारके विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता॥ ४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥
मूलम्
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०४९)
विश्वास-प्रस्तुतिः
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥
मूलम्
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५०)
विश्वास-प्रस्तुतिः
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥
मूलम्
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५१)
विश्वास-प्रस्तुतिः
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥
मूलम्
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५२)
इस पृथ्वीपर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकारके जितने मन्त्र-यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवचको हृदयमें धारण कर लेनेपर उस मनुष्यको देखते ही नष्ट हो जाते हैं। ये ही नहीं, पृथ्वीपर विचरनेवाले ग्रामदेवता, आकाशचारी देवविशेष, जलके सम्बन्धसे प्रकट होनेवाले गण, उपदेशमात्रसे सिद्ध होनेवाले निम्नकोटिके देवता, अपने जन्मके साथ प्रकट होनेवाले देवता, कुलदेवता, माला (कण्ठमाला आदि), डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्षमें विचरनेवाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदयमें कवच धारण किये रहनेपर उस मनुष्यको देखते ही भाग जाते हैं। कवचधारी पुरुषको राजासे सम्मान-वृद्धि प्राप्त होती है। यह कवच मनुष्यके तेजकी वृद्धि करनेवाला और उत्तम है॥ ४९—५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥
मूलम्
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५३)
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥
मूलम्
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५४)
कवचका पाठ करनेवाला पुरुष अपनी कीर्तिसे विभूषित भूतलपर अपने सुयशके साथ-साथ वृद्धिको प्राप्त होता है। जो पहले कवचका पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डीका पाठ करता है, उसकी जबतक वन, पर्वत और काननोंसहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तबतक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतानपरम्परा बनी रहती है॥ ५३-५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥
मूलम्
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५५)
फिर देहका अन्त होनेपर वह पुरुष भगवती महामायाके प्रसादसे उस नित्य परमपदको प्राप्त होता है, जो देवताओंके लिये भी दुर्लभ है॥ ५५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ ॐ॥
मूलम्
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ ॐ॥
अनुवाद (हिन्दी)
(दु०क०५६)
वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता और कल्याणमय शिवके साथ आनन्दका भागी होता है॥ ५६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्। ॥ इति श्रीवाराहपुराणे हरिहरब्रह्मविरचितं देव्याः कवचं सम्पूर्णम् ॥