७ तनादयो

तनादयो
१२०.
तनु वित्थारे सक सत्तिस्मिं-दु परितापे सनु दानस्मिं,
वन याचायं मनु बोधस्मिं-हि गते अप पापुणनस्मिं (हि,)
कर करणस्मिं(भवति)सि बन्धे-सु अभिस्सवने(तनु आदीनि।)
निच्‍चं णेणयन्ता चुरादयो।
१२१.
चुर थेय्ये लोक (धातु) दस्सने अकि लक्खणे,
सिया थक पतिघाते (पुन) तक्‍क वितक्‍कणे।
१२२.
लक्ख दस्सनअङ्केसु (वत्तते) मक्ख मक्खणे,
भक्खा’दने मोक्ख मोचे सुख-दुक्ख (च) तकिरये।
१२३.
लिङ्ग चित्तकिरया’दीसु मग-मग्ग गवेसने,
(पुना’पि) पच वित्थारे क्‍लेसे वञ्‍च पलम्भने॥
१२४.
वच्‍च अज्झायने अच्‍च पूजायं वच भासने,
रच पतियतने सुच पेसुञ्‍ञे रुच रोचने।
१२५.
मुचप्पमोचने लोच दस्सने कच दित्तियं,
सज्‍जा’ज्‍ज अज्‍जने तज्‍ज तज्‍जने वज्‍ज वज्‍जने।
१२६.
युज संयमने पूज पूजायं तिज तेजने,
पज मग्ग संवरणे गते भज विभाजने।
१२७.
(अथो) भाज पुथक्‍कारे सभाज पीतिदस्सने,
(अथो तु) घट सङ्घाते घट्ट सञ्‍चलना’दिसु।
१२८.
कुट-कोट्टच्छेदने (द्वे) कुट आकोटना’दिसु,
नट नच्‍चे चट-पुट भेदे वण्ट विभाजने।
१२९.
तुवट्ट एकसयने घटो विसरणे (सिया),
गुण्ठ ओगुण्ठने हेठ बाधायं वेठ वेठने
गुडि वेठे कडि-खडि भेदने मडि भूसने।
१३०.
पण्ड-भण्ड परिभासे दडि आणाय (मीरितो),
तडि संताळने पिण्ड सङ्घाते छड्ड छड्डने।
१३१.
वण्ण संवण्णने चुण्ण चुण्णने आण पेसने,
गण संकलने कण्ण सवणे चिन्त चिन्तने।
१३२.
सन्त सङ्कोचने मन्त गुत्त भासन जानने,
चित संचेतना’दिसु कित्त संसद्दने (भवे।)
१३३.
यत नीय्यातने गन्थ सन्दब्भे अत्थ याचने,
कथ वाक्यप्पबन्धे (च) विद ञाणे नुदे चुद।
१३४.
छदा’पवारणे छद्द वमने छन्द इच्छयं,
वदी’भिवाद थोमेसु भदिकल्याणकम्मनि।
१३५.
हिळाद (तु) सुखे गन्ध सूचने विध कम्पने,
रन्ध पाके (अथो) मान पूजायं नु त्थुतिम्हि (तु।)
१३६.
थन देवसद्दे ऊन परिहाने थेन चोरिये,
धन सद्दे ञप तोस निसान मारणा’दिसु।
१३७.
लप वाक्ये झप दाहे रुप रोपणआदिसु,
पी तप्पने (सिया) कप्प वितक्‍के लभि वञ्‍चने।
१३८.
(अथो) वहि गरहायं समु सान्त्वन दस्सने,
कमु इच्छाय कन्तिम्हि (सिया) थोम सिलाघने।
१३९.
तिमु तेमन सङ्कासु अम रोगगता’दिसु,
संगाम युद्धे (वत्तेय्य) ईर वाचा पकम्पने।
१४०.
वर आवरणि’च्छासु याचायं धर धारणे,
तीर कम्म समत्तिम्हि पार सामत्थिया’दिसु।
१४१.
तुलु’म्माने खल सोवे सञ्‍चये पालरक्खणे,
कल सङ्कलना’दीसु (भवे) मील निमीलने।
१४२.
सीलू’पधारणे मूल रोहणे लल इच्छने,
दुल उक्खेपणे पूल महत्तन समुस्सये।
१४३.
घुस सद्दे पिस पेसे भुसा’लङ्करणे (सिया,)
रुस पारुसिये खुंस अक्‍कोसे पुस पोसने।
१४४.
दिस उच्‍चारणा’दीसु वस अच्छादने (सिया,)
रस’स्सादे रवे स्नेहे (अथो) सिस विसेसने।
१४५.
सि बन्धे मिस्स सम्मिस्से कुह विम्भापने सिया,
रह चागे गते (चा’पि) मह पूजाय (मीरितो।)
१४६.
पिहि’च्छायं सिया वीळ लज्‍जायं एळ फाळने
हीळ गारहिये पीळ बाधायं तळ ताळने
लळ (धातू)’पसेवा’यं (वत्तती’मेचुरादयो।)
समत्ता सत्तगणा।
१४७.
भुवादी च रुधादी च-दिवादि स्वा’दयो गणा,
कियादी च तनादी च-चुरादीती’ध सत्तधा।
१४८.
किरयावाचित्तमक्खातु-मे’केकत्थो बहू’दितो,
पयोगतो’नुगन्तब्बा-अनेकत्था हि धातवो।
१४९.
हिताय मन्दबुद्धीनं-व्यत्तं वण्णक्‍कमा लहुं,
रचिता धातुमञ्‍जुसा-सीलवंसेन धीमता।
१५०.
सद्धम्मपङ्केरुहराजहंसो,
आसिट्ठधम्मट्ठिति सीलवंसो।
यक्खद्दिलेनाख्य निवासवासी,
यतिस्सरो सोयमिदं अकासि।
कच्‍चायन धातुमञ्‍जूसा समत्ता।

साचरियानुसिट्ठा परिसिट्ठपरिभासा

१.
एका नेकस्स रानन्तू-’भयेसं अन्तिमा सरा,
अङ्गानुबन्धा धातूनं-वुच्‍चन्ते’पि यथाक्‍कमं।
२.
धातुनो व्याञ्‍जना पुब्बे-निग्गहीतं सम’न्तिमा,
इवण्णेना’रुधादीन-मनुबन्धेन चिण्हितं।
३.
सेसा’नुबन्धा सब्बेसं-होन्ती’धु’च्‍चारणप्फला,
उच्‍चावचप्फला भास-न्तरम्पत्वा भ वन्ति’पि।
४.
नामधातुक भावो’पि-किरयाय अधिकारतो,
विरुद्धन्तराभावा-क्‍वचिदेव पयुज्‍जते।
५.
द्वन्दयुत्तिवसा क्‍वापि-आदेसो योविभत्तिया,
गुणादिभाव सद्दो’पि-तकिरयत्थे विधीयते।