४ दिवादयो

दिवादयो
१०३.
दिवु कीला विजिगिंसा वोहारज्‍जुति थोमिते,
सिवु तन्तूनसन्ताने खी खये खा पकासने।
१०४.
का-गा सद्दे (पि) घा गन्धो’पादाने रुच रोचने,
कच दित्यं मुच मोचे (अथो) विच विवेचने।
१०५.
रञ्‍ज रागे सञ्‍ज सङ्गे खलने मज्‍ज सुद्धियं,
युजो समाधिम्हि लुजो विनासे झा विचिन्तने।
१०६.
ता पालने छिदि द्वेधाकारे मिद सिनेहने,
मदु’म्मादे खिद दीनभावे भिद विदारणे।
१०७.
सिद पाके पदगते विद सत्ता विचिन्तने,
दी खये सुपने दा (च) दाने दात्व’वखण्डने।
१०८.
बुधा’वगमना’दीसु अत्थेसु युध युज्झने,
कुध कोपे सुध सोचे राध हिंसाय सिद्धियं।
१०९.
इध संसिद्धिवुद्धीसु सिध-साध (च) सिद्धियं,
विध वेधे गिध गेधे रुधि आवरणा’दिसु।
११०.
मन ञाणे जनु’प्पादे हन हिंसागतीसु (पि,)
सिना सोचे कुप कोपे तप सन्ताप पीणने।
१११.
लुपच्छेदे रुप नासे पकासे दिप दित्तियं,
दप हासे लभ लाभे लुभ गेधे खुभो चले।
११२.
समू’पसम खेदेसु हर-हिरी (च) लज्‍जने,
मिला गत्तवीनामे (च) गिला हासक्खये (पि च।)
११३.
ली सिलेसे द्रवीकारे वा गती बन्धनेसु (च,)
लिसि लेसे तुस तोसे सिलिसा’लिङ्गनादिसु।
११४.
किलिस कलिसो’पतापे (अथो) तस पिपासने,
रुस रोसे दिस-दुस अप्पीतिम्हि (दुवे सियुं।)
११५.
यसुप्पयतने असु खेपने (पि च वत्तते,)
सुस सोसे भस अधोपाते नस अदस्सने।
११६. सा’स्सादे सा’वसाने (च) सा तनूकरणे (पि च) हा चागे मुह वेचित्ते नह सज्‍जनबन्धने नह सोचे पिहिच्छायं सिनिह-सनिह पीतियं।