१. सग्गकण्ड
१.
बुद्धो दसबलो सत्था, सब्बञ्ञू द्विपदुत्तमो।
मुनिन्दो भगवा नाथो, चक्खुम’ङ्गीरसो मुनि॥
२.
लोकनाथो’ नधिवरो, महेसि च विनायको।
समन्तचक्खु सुगतो, भूरिपञ्ञो च मारजि॥
३.
नरसीहो नरवरो, धम्मराजा महामुनि।
देवदेवो लोकगरु, धम्मस्सामी तथागतो॥
४.
सयम्भू सम्मासम्बुद्धो, वरपञ्ञो च नायको।
जिनो, सक्को तु सिद्धत्थो, सुद्धोदनि च गोतमो॥
५.
सक्यसीहो तथा सक्य, मुनि चादिच्चबन्धु च।
६.
मोक्खो निरोधो निब्बानं, दीपो तण्हक्खयो परं।
ताणं लेण मरूपञ्च, सन्तं सच्च मनालयं॥
७.
असङ्खतं सिव ममतं सुदुद्दसं,
परायणं सरण मनीतिकं तथा।
अनासवं धुव मनिदस्सना’ कता,
पलोकितं निपुण मनन्त मक्खरं॥
८.
दुक्खक्खयो ब्याबज्झञ्च [ब्यापज्जं (टीका)], विवट्टं खेम केवलं।
अपवग्गो विरागो च, पणीत मच्चुतं पदं॥
९.
योगक्खेमो पार मपि, मुत्ति सन्ति विसुद्धियो।
विमुत्य’ सङ्खतधातु, सुद्धि निब्बुतियो सियुं॥
१०.
खीणासवो त्व’सेक्खो च, वीतरागो तथा’ रहा।
देवलोको दिवो सग्गो [नाको (सी॰)],
तिदिवो तिदसालयो॥
११.
तिदसा त्व’मरा देवा, विबुधा च सुधासिनो।
सुरा मरू दिवोका चा, मतपा सग्गवासिनो॥
१२.
निज्जरा’ निमिसा दिब्बा, अपुमे देवतानि च [देवता एव देवतानि, सकत्थे निपच्चयो (टीका)]।
१३.
सिद्धो भूतो च गन्धब्बो, गुय्हको यक्ख रक्खसा।
कुम्भण्डो च पिसाचा’दी, निद्दिट्ठा देवयोनियो॥
१४.
पुब्बदेवा सुररिपू, असुरा दानवा पुमे।
तब्बिसेसा पहारादो, सम्बरो बलिआदयो॥
१५.
पितामहो पिता ब्रह्मा, लोकेसो कमलासनो।
तथा हिरञ्ञगब्भो च, सुरजेट्ठो पजापति॥
१६.
वासुदेवो हरि [हरी (टीका)] कण्हो, केसवो चक्कपाण्य’थ।
महिस्सरो सिवो सूली, इस्सरो पसुपत्य’पि॥
१७.
हरो वुत्तो कुमारो तु, खन्धो सत्तिधरो भवे।
१८.
सक्को पुरिन्ददो देव, राजा वजिरपाणि च।
सुजम्पति सहस्सक्खो, महिन्दो वजिरावुधो॥
१९.
वासवो च दससत, नयनो तिदिवाधिभू।
सुरनाथो च वजिर, हत्थो च भूतपत्य’पि॥
२०.
मघवा कोसियो इन्दो, वत्रभू पाकसासनो।
विडोजो थ सुजा तस्स [सुजाता’स्स (टीका)], भरिया थ पुरं भवे॥
२१.
मसक्कसारा [मसक्कसारो (सी॰)] वस्सोक, सारा चेवा’ मरावती।
वेजयन्तो तु पासादो,
सुधम्मा तु सभा मता॥
२२.
वेजयन्तो रथो तस्स,
वुत्तो मातलि सारथि।
एरावणो गजो पण्डु, कम्बलो तु सिलासनं॥
२३.
सुवीरोच्चादयो पुत्ता, नन्दा पोक्खरणी भवे।
नन्दनं मिस्सकं चित्त, लता फारुसकं वना॥
२४.
असनि द्वीसु कुलिसं, वजिरं पुन्नपुंसके।
अच्छरायोत्थियं वुत्ता, रम्भा अलम्बुसादयो।
देवित्थियो थ गन्धब्बा, पञ्चसिखोति आदयो॥
२५.
विमानो नित्थियं ब्यम्हं, पीयूसं त्वमतं सुधा।
सिनेरु मेरु तिदिवा, धारो नेरु सुमेरु च॥
२६.
युगन्धरो ईसधरो, करवीको सुदस्सनो।
नेमिन्धरो विनतको, अस्सकण्णो कुलाचला॥
२७.
मन्दाकिनी तथा’कास, गङ्गा सुरनदी प्यथ।
२८.
कोविळारो तथा पारि, च्छत्तको पारिजातको।
कप्परुक्खो तु सन्ताना, दयो देवद्दुमा सियुं॥
२९.
पाची पतीझु’ दीचि’त्थी, पुब्ब पच्छिम उत्तरा।
दिसाथ दक्खिणा’ पाची, विदिसा’नुदिसा भवे॥
३०.
एरावतो [एरावणो (सी॰), अमरकोसे पन एरावतो एव अत्थि] पुण्डरीको, वामनो कुमुदो’ ञ्जनो।
पुप्फदन्तो सब्बभुम्मो, सुप्पतीको दिसागजा॥
३१.
धतरट्ठो च गन्धब्बा, धिपो, कुम्भण्डसामि तु।
विरुळ्हको, विरूपक्खो, तु नागाधिपतीरितो॥
३२.
यक्खाधिपो वेस्सवणो, कुवेरो नरवाहनो।
अळका [अलका (अमरकोस)] ळकमन्दास्स, पुरी, पहरणं गदा।
चतुद्दिसान मधिपा, पुब्बादीनं कमा इमे॥
३३.
जातवेदो सिखी जोति, पावको दहनो’ नलो।
हुतावहो’ च्चिमा धूम, केत्व’ग्गि गिनि भानुमा॥
३४.
तेजो धूमसिखो वायु, सखो च कण्हवत्तनी।
वेस्सानरो हुतासो थ, सिखाजाल’च्चि चापुमे॥
३५.
विप्फुलिङ्गं फुलिङ्गञ्च, भस्मा [‘भस्मा’ तिपदं राजादिगणे परियापन्नं (रूपसिद्धि-उणादि), भस्मं (सी॰)] तु सेट्ठि छारिका।
३६.
कुक्कुळो तु’ण्हभस्मस्मि, मङ्गारो’लात मुम्मुकं [तिकं दित्तकट्ठादिन्धने (टीका)]।
समिधा इधुमं चे’धो, उपादानं तथिन्धनं॥
३७.
अथो’भासो पकासो चा,
‘लोको’ज्जोता’तपा समा।
मालुतो पवनो वायु, वातो’निल समीरणा।
गन्धवाहो तथा वायो, समीरो च सदागति॥
३८.
वायुभेदा इमे छु’द्ध, ङ्गमो चाधोगमो तथा।
कुच्छिट्ठो च कोट्ठासयो, अस्सासङ्गानुसारिनो॥
३९.
अथो अपानं पस्सासो,
अस्सासो आन मुच्चते॥
४०.
वेगो जवो रयो खिप्पं, तु सीघं तुरितं लहु।
आसु तुण्ण मरं चावि, लम्बितं तुवटंपि च॥
४१.
सततं निच्च मविरता, नारत सन्तत मनवरतञ्च धुवं।
भुस मतिसयो च दळ्हं, तिब्बे’कन्ता’तिमत्त, बाळ्हानि।
खिप्पादी पण्डके दब्बे, दब्बगा तेसु ये तिसु॥
४२.
अविग्गहो तु कामो च, मनोभू मदनो भवे।
अन्तको वसवत्ती च, पापिमा च पजापति॥
४३.
पमत्तबन्धु कण्हो च, मारो नमुचि, तस्स तु।
तण्हा’रती रगा धीतू, हत्थी तु गिरिमेखलो॥
४४.
यमराजा च वेसायी, यमो’स्स नयनावुधं।
वेपचित्ति पुलोमो च, किम्पुरिसो तु किन्नरो॥
४५.
अन्तलिक्खं ख’मादिच्च, पथो’ब्भं गगन’म्बरं।
वेहासो चानिलपथो, आकासो नित्थियं नभं॥
४६.
देवो वेहायसो तारा,
पथो सुरपथो अघं॥
४७.
मेघो वलाहको देवो, पज्जुन्नो’म्बुधरो घनो।
धाराधरो च जीमूतो, वारिवाहो तथा’म्बुदो॥
४८.
अब्भं तीस्वथ वस्सञ्च, वस्सनं वुट्ठि नारियं।
सतेरता’क्खणा विज्जु, विज्जुता चाचिरप्पभा॥
४९.
मेघनादे तु धनितं, गज्जितं रसितादि च।
इन्दावुधं इन्दधनु, वातक्खित्तम्बु सीकरो॥
५०.
आसारो धारा सम्पातो,
करका तु घनोपलं।
दुद्दिनं मेघच्छन्नाहे, पिधानं त्वपधारणं॥
५१.
तिरोधान’न्तरधाना, पिधान छादनानि च।
इन्दु चन्दो च नक्खत्त, राजा सोमो निसाकरो॥
५२.
ओसधीसो हिमरंसि, ससङ्को चन्दिमा ससी।
सीतरंसि निसानाथो, उळुराजा च मा पुमे॥
५३.
कला सोळसमो भागो, बिम्बं तु मण्डलं भवे।
अड्ढो त्वद्धो उपड्ढो च, वा खण्डं सकलं पुमे॥
५४.
अद्धं वुत्तं समे भागे, पसादो तु पसन्नता।
कोमुदी चन्दिका जुण्हा, कन्ति सोभा जुति च्छवि॥
५५.
कलङ्को लञ्छनं लक्खं, अङ्को’भिञ्ञाण लक्खणं।
चिहनं चापि सोभा तु, परमा सुसमा थ च॥
५६.
सीतं गुणे, गुणिलिङ्गा, सीत सिसिर सीतला।
हिमं तुहिन मुस्सावो, नीहारो महिका प्यथ॥
५७.
नक्खत्तं जोति भं तारा, अपुमे तारको’ळु च।
५८.
अस्सयुजो भरणित्थी, सकत्तिका रोहिणी पिच।
मिगसिर [मगसिर (सी॰)] मद्दा च पुनब्बसु, फुस्सो [पुस्सो (टी॰)] चासिलेस’पि॥
५९.
माघा [मघ (सी॰)] च फग्गुनी द्वे च, हत्था चित्ता च स्वातिपि।
विसाखा’ नुराधा जेट्ठा, मूला’ साळ्हा दुवे तथा॥
६०.
सवणो च धनिट्ठा च, सतभिसजो पुब्बु’त्तरभद्दपदा।
रेवत्यपीति कमतो, सत्ताधिकवीसनक्खत्ता॥
६१.
सोब्भानु कथितो राहु, सूरादी तु नवग्गहा।
रासि मेसादिको भद्द, पदा पोट्ठपदा समा॥
६२.
आदिच्चो सूरियो सूरो, सतरंसि दिवाकरो।
वेरोचनो दिनकरो, उण्हरंसि पभङ्करो॥
६३.
अंसुमाली दिनपति, तपनो रवि भानुमा।
रंसिमा भाकरो भानु, अक्को सहस्सरंसि च॥
६४.
रंसि आभा पभा दित्ति, रुचि भा जुति दीधिति।
मरीचि द्वीसु भान्वं’सु, मयूखो किरणो करो॥
६५.
परिधि परिवेसो थ, मरीचि मिगतण्हिका।
सूरस्सोदयतो पुब्बु’, ट्ठितरंसि सिया’ रुणो॥
६६.
कालो’द्धा समयो वेला,
तब्बिसेसा खणादयो।
खणो दसच्छराकालो,
खणा दस लयो भवे॥
६७.
लया दस खणलयो,
मुहुत्तो ते सिया दस।
दस खणमुहुत्तो ते, दिवसो तु अहं दिनं॥
६८.
पभातञ्च विभातञ्च, पच्चूसो कल्ल मप्यथ।
अभिदोसो पदोसो थ,
सायो सञ्झा दिनच्चयो॥
६९.
निसा च रजनी रत्ति, तियामा संवरी भवे।
जुण्हा तु चन्दिकायुत्ता, तमुस्सन्ना तिमिसिका॥
७०.
निसीथो मज्झिमा रत्ति, अड्ढरत्तो महानिसा।
अन्धकारो तमो नित्थी, तिमिसं तिमिरं मतं॥
७१.
चतुरङ्गतमं एवं, काळपक्खचतुद्दसी।
वनसण्डो घनो मेघ, पटलं चा’ड्ढरत्ति च॥
७२.
अन्धतमं घनतमे, पहारो याम, सञ्ञितो।
पाटिपदो तु दुतिया, ततियादी तिथी [तिथि], तायति पालेतीति तिथि, ता+इति (ण्वादि) द्विसु॥
७३.
पन्नरसी पञ्चदसी, पुण्णमासी तु पुण्णमा।
अमावसी प्यमावासी, थियं पन्नरसी’ परा॥
७४.
घटिका सट्ठ्य’ होरत्तो, पक्खो ते दस पञ्च च।
ते तु पुब्बापरा सुक्क,
काळा, मासो तु ते दुवे॥
७५.
चित्तो वेसाख, जेट्ठो चा, साळ्हो द्वीसु च सावणो।
पोट्ठपाद’स्सयुजा च, मासा द्वादस कत्तिको॥
७६.
मागसिरो तथा फुस्सो, कमेन माघ फग्गुणा।
कत्तिक’स्सयुजा मासा, पच्छिम पुब्बकत्तिका॥
७७.
सावणो निक्खमनीयो,
चित्तमासो तु रम्मको॥
७८.
चतुरो चतुरो मासा, कत्तिककाळपक्खतो।
कमा हेमन्त गिम्हान, वस्साना उतुयो द्विसु॥
७९.
हेमन्तो सिसिर मुतू,
छ वा वसन्तो च गिम्ह वस्साना।
सरदोति कमा मासा, द्वे द्वे वुत्तानुसारेन॥
८०.
उण्हो निदाघो गिम्होथ,
वस्सो वस्सान पावुसा।
उतूहि तीहि वस्साना, दिकेहि दक्खिणायनं॥
८१.
उत्तरायन मञ्ञेहि, तीहि वस्सायनद्वयं।
वस्स संवच्छरा नित्थी, सरदो हायनो समा॥
८२.
कप्पक्खयो तु संवट्टो, युगन्त पलया अपि।
अलक्खी कालकण्णित्थी, अथ लक्खी सिरि’त्थियं॥
८३.
दनु दानवमाता थ, देवमाता पना’दिति।
८४.
पापञ्च किब्बिसं वेरा, घं दुच्चरित दुक्कटं।
अपुञ्ञा’कुसलं कण्हं, कलुसं दुरिता’गु च॥
८५.
कुसलं सुकतं सुक्कं, पुञ्ञं धम्म मनित्थियं।
सुचरित मथो दिट्ठ, धम्मिकं इहलोकिकं॥
८६.
सन्दिट्ठिक मथो पार, लोकिकं सम्परायिकं।
तक्कालं तु तदात्वं चो,
त्तरकालो तु आयति॥
८७.
हासो’ त्तमनता पीति, वित्ति तुट्ठि च नारियं।
आनन्दो पमुदा’मोदो, सन्तोसो नन्दि सम्मदो॥
८८.
पामोज्जञ्च पमोदो थ, सुखं सातञ्च फास्व’थ।
भद्दं सेय्यो सुभं खेमं, कल्याणं मङ्गलं सिवं॥
८९.
दुक्खञ्च कसिरं किच्छं, नीघो च ब्यसनं अघं।
दब्बे तु पापपुञ्ञानि, तीस्वाकिच्छं सुखादि च॥
९०.
भाग्यं नियति भागो च, भागधेय्यं विधी’रितो।
अथो उप्पत्ति निब्बत्ति, जाति जनन मुब्भवो॥
९१.
निमित्तं कारणं ठानं, पदं बीजं निबन्धनं।
निदानं पभवो हेतु, सम्भवो सेतु पच्चयो॥
९२.
कारणं यं समासन्नं, पदट्ठानन्ति तं मतं।
जीवो तु पुरिसो’त्ता थ, पधानं पकतित्थियं॥
९३.
पाणो सरीरी भूतं वा, सत्तो देही च पुग्गलो।
जीवो पाणी पजा जन्तु,
जनो लोको तथागतो॥
९४.
रूपं सद्दो गन्ध रसा, फस्सो धम्मो च गोचरा।
आलम्बा विसया ते छा, रम्मणा लम्बणानि च॥
९५.
सुक्को गोरो सितो’दाता,
धवलो सेत, पण्डरा।
सोणो तु लोहितो रत्तो,
तम्ब मञ्जिट्ठ रोहिता॥
९६.
नीलो कण्हा’सिता काळो,
मेचको साम सामला।
सितपीतेतु पण्डु’त्तो, ईसंपण्डुतु धूसरो॥
९७.
अरुणो किञ्चिरत्तो थ,
पाटलो सेतलोहितो।
अथो पीतो हलिद्याभो,
पलासो हरितो हरि॥
९८.
कळारो कपिलो नील, पीते थ रोचनप्पभे।
पिङ्गो पिसङ्गो प्यथवा, कळारादी तु पिङ्गले॥
९९.
कम्मासो सबलो चित्तो,
सावो तु कण्हपीतके।
वाच्चलिङ्गा गुणिन्येते, गुणे सुक्कादयो पुमे॥
१००.
नच्चं नट्टञ्च नटनं, नत्तनं लासनं भवे।
नच्चं तु वादितं गीत, मिति नाटुमिदं तयं॥
१०१.
नच्चट्ठानं सिया रङ्गो, भिनयो सूच्यसूचनं।
अङ्गहारो’ङ्गविक्खेपो, नट्टको नटको नटो॥
१०२.
सिङ्गारो करुणो वीर, ब्भुत हस्स भयानका।
सन्तो बीभच्छ रुद्दानि, नव नाट्यरसा इमे॥
१०३.
पोसस्स नारियं पोसे, इत्थिया सङ्गमं पति।
या पिहा एस सिङ्गारो, रतिकीळादिकारणो॥
१०४.
उत्तम प्पकतिप्पायो, इत्थिपुरिसहेतुको।
सो सम्भोगो वियोगोति,
सिङ्गारो दुविधो मतो॥
१०५.
भासितं लपितं भासा, वोहारो वचनं वचो।
उत्ति वाचा गिरा वाणी, भारती कथिता [कथा (कत्थचि)] वची॥
१०६.
एकाख्यातो पदचयो, सिया वाक्यंसकारको।
आमेडितन्ति विञ्ञेय्यं, द्वत्तिक्खत्तु मुदीरणं॥
१०७.
भये कोधे पसंसायं, तुरिते कोतूहले’च्छरे।
हासे सोके पसादे च, करे आमेडितं बुधो॥
१०८.
इरु नारी यजु साम, मिति वेदा तयो सियुं।
एते एव तयी नारी, वेदो मन्तो सुतित्थियं॥
१०९.
अट्ठको वामको वाम, देवो चङ्गीरसो भगु।
यमदग्गि च वासिट्ठो, भारद्वाजो च कस्सपो।
वेस्सामित्तोति मन्तानं, कत्तारो इसयो इमे॥
११०.
कप्पो ब्याकरणं जोति, सत्थं सिक्खा निरुत्ति च।
छन्दोविचिति चेतानि, वेदङ्गानि वदन्ति छ॥
१११.
इतिहासो पुरावुत्त, प्पबन्धो भारतादिको।
नामप्पकासकं सत्थं, रुक्खादीनं निघण्डु सो॥
११२.
वितण्डसत्थं विञ्ञेय्यं, यं तं लोकायतं इति।
केटुभं तु क्रियाकप्प, विकप्पो कविनं हितो॥
११३.
आख्यायिकोपलद्धत्था, पबन्धकप्पना कथा।
दण्डनीत्य’त्थसत्थस्मिं, वुत्तन्तो तु पवत्ति च॥
११४.
सञ्ञा, ख्या, व्हा समञ्ञा चा, भिधानं नाम मव्हयो।
नामधेय्या’ धिवचनं, पटिवाक्यं तु उत्तरं॥
११५.
पञ्हो तीस्व नुयोगो च, पुच्छा प्यथ निदस्सनं।
उपोग्घातो च दिट्ठन्तो, तथो’दाहरणं भवे॥
११६.
समा सङ्खेप संहारा, समासो सङ्गहो प्यथ।
सतं धारयसी त्याद्य, ब्भक्खानं तुच्छभासनं॥
११७.
वोहारो तु विवादो थ, सपनं सपथोपि च।
यसो सिलोको कित्तित्थी,
घोसना तु’च्चसद्दनं॥
११८.
पटिघोसो पटिरवो, थो’ पञ्ञासो वचीमुखं।
कत्थना च सिलाघा च, वण्णना च नुति त्थुति॥
११९.
थोमनञ्च [थोमनं वा (कत्थचि थोमनं थोमना द्विलिङ्गे)] पसंसाथ, केका नादो सिखण्डिनं।
गजानं कोञ्चनादो थ,
मता हेसा हयद्धनि॥
१२०.
परियायो वेवचनं, साकच्छा तु च संकथा।
उपवादो चु’पक्कोसा, वण्णवादा’नुवादो च।
जनवादा’पवादापि, परिवादो च तुल्यत्था॥
१२१.
खेपो निन्दा तथा कुच्छा, जिगुच्छा गरहा भवे।
निन्दापुब्बो उपारम्भो, परिभासन मुच्चते॥
१२२.
अट्ठानरियवोहार, वसेन या पवत्तिता।
अभिवाक्यं सिया वाचा, सा वीतिक्कमदीपनी॥
१२३.
मुहुंभासा नुलापोथ, पलापो नत्थिका गिरा।
आदोभासन मालापो,
विलापो तु परिद्दवो॥
१२४.
विप्पलापो विरोधोत्ति, सन्देसोत्ति तु वाचिकं।
सम्भासनं तु सल्लापो, विरोधरहितं मिथु॥
१२५.
फरुसं निट्ठुरं वाक्यं, मनुञ्ञं हदयङ्गमं।
संकुलं तु किलिट्ठञ्च, पुब्बापरविरोधिनी॥
१२६.
समुदायत्थरहितं, अबद्धमिति [अबन्ध (क॰)] कित्तितं।
वितथं तु मुसा चाथ [आहतं तु मुसात्थकं (कत्थचि, अमरकोसे)], फरुसादी तिलिङ्गिका॥
१२७.
सम्मा ब्ययञ्चा वितथं, सच्चं तच्छं यथातथं।
तब्बन्ता तीस्व लीकं त्व, सच्चं मिच्छा मुसा ब्ययं॥
१२८.
रवो निनादो निनदो च सद्दो,
निग्घोस नाद द्धनयो च रावो।
आराव संराव विराव घोसा,
रवा सुतित्थी सर निस्सना च॥
१२९.
विस्सट्ठ मञ्जु विञ्ञेय्या, सवनीया विसारिनो।
बिन्दु गम्भीर निन्नादी, त्येव मट्ठङ्गिको सरो॥
१३०.
तिरच्छानगतानञ्हि, रुतं वस्सित मुच्चते।
कोलाहलो कलहलो,
गीतं गानञ्च गीतिका॥
१३१.
सरा सत्त तयो गामा, चेकवीसति मुच्छना।
ताना [ठानानि (बहूसु)] चेकूनपञ्ञास, इच्चेतं सरमण्डलं॥
१३२.
उसभो धेवतो चेव, छज्ज गन्धार मज्झिमा।
पञ्चमो च निसादोति, सत्ते’ते गदिता सरा॥
१३३.
नदन्ति उसभं गावो, तुरगा धेवतं तथा।
छज्जं मयूरा गन्धार, मजा कोञ्चा च मज्झिमं॥
१३४.
पञ्चमं परपुट्ठादी, निसादम्पि च वारणा।
छज्जो च मज्झिमो गामा,
तयो साधारणोति च॥
१३५.
सरेसु तेसु पच्चेके, तिस्सो तिस्सो हि मुच्छना।
सियुं तथेव तानानि [ठानानि (बहूसु)], सत्त सत्तेव लब्भरे॥
१३६.
तिस्सो दुवे चतस्सो च, चतस्सो कमतो सरे।
तिस्सो दुवे चतस्सोति, द्वावीसति सुती सियुं॥
१३७.
उच्चतरे रवे तारो, थाब्यत्ते मधुरे कलो।
गम्भीरे तु रवे मन्दो, तारादी तीस्वथो कले।
काकली सुखुमे वुत्तो,
क्रियादिसमता लयो॥
१३८.
वीणा च वल्लकी सत्त, तन्ती सा परिवादिनी।
पोक्खरो दोणि वीणाय,
उपवीणो तु वेठको॥
१३९.
आततञ्चेव वितत, माततविततं घनं।
सुसिरं चेति तूरियं, पञ्चङ्गिक मुदीरितं॥
१४०.
आततं नाम चम्माव, नद्धेसु भेरियादिसु।
तले’केकयुतं कुम्भ, थुण दद्दरिकादिकं॥
१४१.
विततं चो’भयतलं, तूरियं मुरजादिकं।
आततविततं सब्ब, विनद्धं पणवादिकं॥
१४२.
सुसिरं वंससङ्खादि, सम्मतालादिकं घनं।
आतोज्जं तु च वादित्तं, वादितं वज्ज मुच्चते॥
१४३.
भेरी (भेरि) दुन्दुभि वुत्तो थ,
मुदिङ्गो मुरजोस्स तु।
आलिङ्ग, ङ्क्यो, द्धका भेदा,
तिणवो तु च डिण्डिमो॥
१४४.
आलम्बरो तु पणवो, कोणो वीणादिवादनं।
दद्दरी पटहो भेरि, प्पभेदा मद्दलादयो॥
१४५.
जनप्पिये विमद्दुट्ठे, गन्धे परिमलो भवे।
सो त्वा मोदो दूरगामी, विस्सन्ता तीस्वितो परं॥
१४६.
इट्ठगन्धो च सुरभि, सुगन्धो च सुगन्धि च।
पूतिगन्धि तु दुग्गन्धो, थ विस्सं आमगन्धि यं॥
१४७.
कुङ्कुमञ्चेव यवन, पुप्फञ्च तगरं तथा।
तुरुक्खोति चतुज्जाति, गन्धा एते पकासिता॥
१४८.
कसावो नित्थियं तित्तो, मधुरो लवणो इमे।
अम्बिलो कटुको चेति, छ रसा तब्बती तिसु॥
१४९.
सिया फस्सो च फोट्ठब्बो,
विसयी त्वक्ख मिन्द्रियं।
नयनं त्वक्खि नेत्तञ्च, लोचनं च’च्छि चक्खु च॥
१५०.
सोतं सद्दग्गहो कण्णो, सवनं सुति नत्थु तु।
नासा च नासिका घानं, जिव्हातु रसना भवे॥
१५१.
सरीरं वपु गत्तञ्चा, त्तभावो बोन्दि विग्गहो।
देहं वा पुरिसे कायो, थियं तनु कळेवरं॥
१५२.
चित्तं चेतो मनो नित्थी, विञ्ञाणं हदयं तथा।
मानसं धी तु पञ्ञा च, बुद्धि मेधा मति मुति॥
१५३.
भूरी मन्ता च पञ्ञाणं, ञाणं विज्जा च योनि च।
पटिभान ममोहो थ, पञ्ञाभेदा विपस्सना॥
१५४.
सम्मादिट्ठि पभुतिका, वीमंसा तु विचारणा।
सम्पजञ्ञं तु नेपक्कं, वेदयितं तु वेदना॥
१५५.
तक्को वितक्को सङ्कप्पो,
प्पनो’ हा’ यु तु जीवितं।
एकग्गता तु समथो, अविक्खेपो समाधि च॥
१५६.
उस्साहा’ तप्प पग्गाहा, वायामो च परक्कमो।
पधानं वीरियं चेहा, उय्यामो च धिति त्थियं॥
१५७.
चत्तारि वीरियङ्गानि, तचस्स च नहारुनो।
अवसिस्सन मट्ठिस्स, मंसलोहितसुस्सनं॥
१५८.
उस्सोळ्ही त्व धिमत्तेहा, सति त्व नुस्सति त्थिय।
लज्जा हिरी समाना थ, ओत्तप्पं पापभीरुता॥
१५९.
मज्झत्तता तु’पेक्खा च, अदुक्खमसुखा सिया।
चित्ताभोगो मनक्कारो,
अधिमोक्खो तु निच्छयो॥
१६०.
दया’ नुकम्पा कारुञ्ञं, करुणा च अनुद्दया।
थियं वेरमणी चेव, विरत्या’ रति चाप्यथ॥
१६१.
तितिक्खा खन्ति खमनं, खमा मेत्ता तु मेत्य’थ।
दस्सनं दिट्ठि लद्धित्थी, सिद्धन्तो समयो भवे॥
१६२.
तण्हा च तसिणा एजा, जालिनी च विसत्तिका।
छन्दो जटा निकन्त्या’सा, सिब्बिनी भवनेत्ति च॥
१६३.
अभिज्झा वनथो वानं, लोभो रागो च आलयो।
पिहा मनोरथो इच्छा, भिलासो काम दोहळा।
आकङ्खा रुचि वुत्ता सा, त्वधिका लालसा द्विसु॥
१६४.
वेरं विरोधो विद्देसो, दोसो च पटिघञ्च वा।
कोधा’ घाता कोप रोसा,
ब्यापादो’ नभिरद्धि च॥
१६५.
बद्धवेर मुपनाहो, सिया सोको तु सोचनं।
रोदितं कन्दितं रुण्णं, परिदेवो परिद्दवो॥
१६६.
भीतित्थि भय मुत्तासो, भेरवं तु महब्भयं।
१६७.
भेरवं भीसनं भीमं, दारुणञ्च भयानकं।
घोरं पटिभयं भेस्मं, भयङ्कर मिमे तीसु॥
१६८.
इस्सा उसूया मच्छेरं, तु मच्छरिय मच्छरं।
मोहो’विज्जा तथा’ञाणं, मानो विधा च उन्नति॥
१६९.
उद्धच्च मुद्धटं चाथ [उद्धवंउद्धं धावति चित्त मेतेनाति उद्धवं (टीका)], तापो कुक्कुच्चमेव च।
पच्छातापो नुतापो च, विप्पटिसारो पकासितो॥
१७०.
मनोविलेख सन्देहा, संसयो च कथंकथा।
द्वेळ्हकं विचिकिच्छा च, कङ्खा सङ्का विमत्यपि॥
१७१.
गब्बो भिमानो’हंकारो, चिन्तातु झान मुच्चते।
निच्छयो निण्णयो वुत्तो, पटिञ्ञा तु पटिस्सवो॥
१७२.
अवमानं तिरक्कारो, परिभवो प्य’ नादरो।
पराभवो प्य’ वञ्ञा थ, उम्मादो चित्तविब्भमो॥
१७३.
पेमं सिनेहो स्नेहो थ, चित्तपीळा विसञ्ञिता।
पमादो सतिवोस्सग्गो, कोतूहलं कुतूहलं॥
१७४.
विलासो ललितं लीला, हावो हेळा च विब्भमो।
इच्चादिका सियुं नारि, सिङ्गारभावजा किरिया॥
१७५.
हसनं हसितं हासो, मन्दो सो मिहितं सितं।
अट्टहासो महाहासो,
रोमञ्चो लोमहंसनं॥
१७६.
परिहासो दवो खिड्डा, केळि कीळा च कीळितं।
निद्दा तु सुपिनं सोप्पं, मिद्धञ्च पचलायिका॥
१७७.
थियं निकति कूटञ्च, दम्भो साठ्यञ्च केतवं।
सभावो तु निस्सग्गो च, सरूपं पकतित्थियं॥
१७८.
सीलञ्च लक्खणं भावो,
उस्सवो तु छणो महो [मतो (टी॰)]॥
१७९.
धारेन्तो जन्तु सस्नेह, मभिधानप्पदीपिकं।
खुद्दकाद्यत्थजातानि [खुद्दकान्यत्थजातानि (क॰)], सम्पस्सति यथासुखं॥
सग्गकण्डो निट्ठितो।