०४. अड्ढसमवुत्तिनिद्देस-चतुत्थपरिच्छेद

४. अड्ढसमवुत्तिनिद्देस-चतुत्थपरिच्छेद
१०७.
विसमे यदि सा स,ल,गा समे,
भ,त्तयतो गरुका वु’पचित्तं॥
१०८.
भ,त्तयतो यदि गा दुतमज्झा।
यदि पुनरे’व भवन्ति न, जा ज्या॥
१०९.
यदि स,त्तितयं गरुयुत्तं,
वेगवती यदि भ,त्तितया गा॥
११०.
तो जो विसमे रतो गरू चे।
स्मा ज्गा भद्दविराज मेत्थ गो चे॥
१११.
विसमे स, जा स,गरु,युत्ता।
केतुमती समे भ,र,न,गा गो॥
११२.
आख्यानकी ता विसमे ज, गा गो। (इन्दवजिर)
ज,ता ज,गा गो तु समे’थ पादे॥ (उपेन्दवजिर)
११३.
ज,ता ज,गा गो विसमे समे तु। (उपेन्दवजिर)
ता जो ग,गा चे विपरीतपुब्बा॥ (इन्दवजिर)
११४.
स,स,तो स,ल,गा विसमे समे।
न,भ,भ,रा भवते हरिणप्‍लुता॥
११५.
यदि न,न,र,ल,गा न,जा ज,रा,
यदि च तदा’परवत्त मिच्छति॥
११६.
विसम मुपगता न,ना र,या चे।
न,ज,ज,र,गा समके च पुप्फितग्गा॥
द्वयं मिदं वेतालीय’प्पभेदो।
११७.
सा यवादिका मती र,जा र,जा त्व,
समे समे ज,रा ज,रा गरू भवेय्युं॥
इति वुत्तोदये छन्दसि अड्ढसमवुत्तिनिद्देसो नाम
चतुत्थो परिच्छेदो।