अट्ठारसम परिच्छेद
महाबोधिग्गहणो
१.
महाबोधिञ्च थेरिञ्च, आणापेतुं महीपति।
थेरेन वुत्तवचनं, सरमानो सके घरे॥
२.
अन्तोवस्से’क दिवसं, निसिन्नो थेरसन्तिके।
सहा’मच्चेहि मन्तेत्वा, भागिनेय्यं सयं सकं॥
३.
अरिट्ठनामका’मच्चं , तस्मिं कम्मे नियोजितुं।
मन्त्वा आमन्तयित्वान, इदं वचनमब्रवि॥
४.
ता सक्खिस्ससि….., धम्मासोकस्स सन्तिका।
महाबोधिं सङ्घमित्तं, थेरिं आनयितुं इध॥
५.
सक्खिस्सामि अहं देव, आनेतुं तं दुवे ततो।
इधा’गतो पब्बजितुं, सचे लच्छामि मानद॥
६.
एवं होतूति वत्वान, राजा तं तत्थ पेसयि।
सो थेरस्स च रञ्ञो च, सासनं गय्ह वन्दिय॥
७.
अस्सयुजसुक्कपक्खे, निक्खन्तो दुतिये’हनि।
सानुयुत्तो जम्बुकोले, नावमारुय्ह पट्टने॥
८.
महोदमिं करित्वान, थेराधिट्ठानयोगतो।
निक्खन्तदिवसेयेव, रम्मं पुप्फपुरं अगा॥
९.
तदा तु अनुलादेवी, पञ्चकञ्ञासतेहि च।
अन्तेपुरिकइत्थीनं, सद्धिं पञ्चसतेहि च॥
१०.
दससीलं समादाय, कासाय वसना सुचि।
पब्बज्जापेक्खि निसेखा, पेक्खन्ति थेरिया’गमं॥
११.
नगरस्से’कदेसम्हि, रम्मे भिक्खुनुपस्सये।
कारापिते नरिन्देन, वासं कप्पेसि सुब्बता॥
१२.
उपासिकाहि ताहे’स, वुत्तो भिक्खुनुपस्सयो।
उपासिका विहारोति, तेन लंकाय विस्सुतो॥
१३.
भागिनेय्यो महा’रिट्ठो, धम्मासोकस्स राजिनो।
अप्पेत्वा राजसन्देसं, थेरसन्देस’मब्रवि॥
१४.
भातुजया सहायस्स, रञ्ञो ते राजकुञ्जर।
आकङ्खमाना पब्बज्जं, निच्चं वसति सञ्ञता॥
१५.
सङ्घमित्तं भिक्खुनिं तं, पब्बाजेतुं विसज्जय।
ताय सद्धिं महाबोधि-दक्खिणसाखमेव च॥
१६.
थेरिया च तमेवत्थं, अब्रवि थेरभासितं।
गन्त्वा पितुसमीपं सा, थेरी थेरमतं ब्रवी॥
१७.
आह राजा तुवं अम्म, अपस्सन्तो कथं अहं।
सोकं विनोदयिस्सामि, पुत्तनत्तवियोगजं॥
१८.
आह सा मे महाराज, भातुनो वचनं गरु।
पब्बाजनीया च बहू, गन्तब्बं तत्थ तेन मे॥
१९.
‘‘सत्थघातमनारहा, महाबोधिमहीरुहा।
कथन्नु साखं गणिस्सं’’, इति राजा विचिन्तयी॥
२०.
अमच्चस्स महादेव-नामकस्स मतेन सो।
भिक्खुसङ्घं निमन्तेत्वा, भोजेत्वा पुच्छि भूपतिं॥
२१.
भन्ते लंकं महाबोधि, पेसेतब्बा नु खो इति।
थेरो मोग्गलिपुत्तो सो, पेसेतब्बाति भासिय॥
२२.
कतं महाअधिट्ठान-पञ्चकं पञ्चचक्खुना।
आभासि रञ्ञो तं सुत्वा, तुस्सित्वा धरणीपति॥
२३.
सत्तयोजनिकं मग्गं, सो महाबोधिगामिनं।
सोधापेत्वान सक्कच्चं, भूसापेति अनेकधा॥
२४.
सुवण्णं नीहरापेसि, कटाहकरणाय च।
विस्सकम्मो च आगन्त्वा, सतुलाधाररूपवा॥
२५.
‘‘कटाहं किं पमाणं नु, करोमी’ति अपुच्छितं।
‘‘ञत्वा पमाणं त्वंयेव, करोहि’’ इति भासिय॥
२६.
सुवण्णा गहेत्वान, हत्थेन परिमज्जिय।
कटाहं तङ्खणंयेव, निम्मिनित्वान पक्कमि॥
२७.
नवहत्थपरिक्खेपं, पञ्चहत्थं गभीरतो।
तिहत्थविक्खम्भयुतं, अट्ठङ्गुलघनं सुभं॥
२८.
युवस्स हत्थिनो सोण्ड-पमाणमुखवट्टिकं।
गाहा पेत्वान तं राजा, बालसुरसमप्पकं॥
२९.
सत्तयोजनदीघाय, वित्थतायति योजनं।
सेनाय चतुरङ्गिन्या, महाभिक्खुगणेन च॥
३०.
उपगम्म महाबोधिं, नानालङ्कारभूसितं।
नानारतनचित्तं तं, विविधद्धजमालिनिं॥
३१.
नानाकुसुमसंकिण्णं , नानातुरियघोसितं।
सेनाय परिवारेत्वा, परिक्खिपिय साणिया॥
३२.
महाथेरसहस्सेन, पमुखेन महागणे।
रञ्ञं पत्ताभिसेकानं, सहस्सेना’धिकेन च॥
३३.
अत्तानं परिवारेत्वा, महाबोधिञ्च साधुकं।
ओलोकेसि महाबोधिं, पग्गहेत्वान अञ्जलिं॥
३४.
तस्सा दक्खिणसाखाय, चतुहत्थपमाणकं।
ठानं खन्धञ्च वज्जेत्वा, साखा अन्तरधायिसुं॥
३५.
तं पाटिहारियं दिस्वा, पतीतो पुथवीपति।
‘‘पूजेम’हं महाबोधिं, रज्जेना’हि उदीरिय॥
३६.
अभिसिञ्चि महाबोधीं, महारज्जे महीपति।
पुप्फादीहि महाबोधिं, पूजेत्वान पदक्खिणं॥
३७.
कत्वा अट्ठसु ठानेसु, वन्दित्वान कतञ्जली।
सुवण्णखचिते पीठे, नानारतनमण्डिते॥
३८.
स्वारोहे याव साउच्चे, तं सुवण्णकटाहकं।
ठपापेत्वान आरुय्ह, गहेतुं साखमुत्तमं॥
३९.
आदियित्वान सोवण्ण तुलिकाय मनोसिलं।
लेखं दत्वान साखाय, सच्चक्रियमका इति॥
४०.
‘‘लंकादीपं यदि इतो, गन्तब्बं उरुबोधिया।
निब्बेमतिको बुद्धस्स, सासनम्हि सचे अहं॥
४१.
सयंयेव महाबोधि-साखायं दक्खिणा सुभा।
छिज्जित्वान पतिट्ठातु, इध हेमकटाहके॥
४२.
लेखठाने महाबोधि, छिज्जित्वा सयमेव सा।
गन्धकद्दमपूरस्स, कटाहस्सो’परिट्ठिता॥
४३.
मूललेखाय उपरि, तियङ्गुलतियङ्गुले।
ददं मनोसिला लेखा, परिक्खिपि नरिस्सरो॥
४४.
आदिया थूलमूलानि, खुद्दकानि’तराहि तु।
निक्खमित्वा दस दस, जालीभूता निओतरुं॥
४५.
तं पाटिहारियं दिस्वा, राजा’तीव पमोदितो।
तत्थेवा’कासि उक्कुट्ठिं, समन्ता परिसापि च॥
४६.
भिक्खुसङ्घो साधुकारं, तुट्ठचित्तो पमोदयि।
चेलुक्खेपसहस्सानि, पवत्तिंसु समन्ततो॥
४७.
एवं सतेन मूलानं, तत्थ सा गन्धकद्दमे।
पतिट्ठासि महाबोधि, पसादेन्ती महाजनं॥
४८.
तस्सा खन्धो दसहत्थो, पञ्चसाखा मनोरमा।
चतुहत्था चतुहत्था, दसड्ढफलमण्डिता॥
४९.
सहस्सन्तु पसाखानं, साखानं तासमासि च।
एवं आसि महाबोधि, मनोहरसिरिधरा॥
५०.
कटाहम्हि महाबोधि-पतिट्ठितक्खणे मही।
अकम्पि पाटिहीरानि, अहेसुं विविधानि च॥
५१.
सयं नादेहि तूरियानं, देवेसु मानुसेसु च।
साधुकारनिनादेति, देवब्रह्मगणस्स च॥
५२.
मेघानं मिगपक्खिनं, यक्खादीनं रवेहि च।
रवेहिचमहीकम्पे, एककोलाहलं अहु॥
५३.
बोधिया फलपत्तेहि, छब्बण्णरस्मियो सुभा।
निक्खमित्वा चक्कवाळं, सकला सोभयिंसु च॥
५४.
सकटाहा महाबोधि, उग्गन्त्वान ततो नभं।
अट्ठासि हिमगब्भम्हि, सत्ताहानि अदस्सना॥
५५.
राजा ओरुय्ह पीठम्हा, तं सत्ताहं तहिं वसं।
निच्चं महाबोधिपूजं, अकासि च अनेकधा॥
५६.
अतीते तम्हि सत्ताहे, सब्बे हिमवलावका।
पविसिंसु महाबोधिं, सब्बाका रंसियोपि च॥
५७.
सुद्धेनकदिसिस्सित्थ, साकटाहे पत्तिट्ठिता।
महाजनस्स सब्बस्स, महाबोधि मनोरमा॥
५८.
पवत्तम्हि महाबोधि, विविधे पाटिहारिये।
विम्हापयन्ति जनतं, पथवीतलमोरुहि॥
५९.
पाटिहिरेहि’नेकेहि , तेहि सो पीणितो पुन।
महाराजा महाबोधिं, महारज्जेन पूजयि॥
६०.
महाबोधिं महारज्जे-नाभिसिञ्चिय पूजयं।
नानापूजाहि सत्ताहं, पुन तत्थेव सो वसि॥
६१.
अस्सयुजसुक्कपक्खे, पन्नरसउपोसथे।
अग्गहेसि महाबोधिं, द्विसत्ताहमच्चये ततो॥
६२.
अस्सयुजकाळपक्खे, चतुद्दसउपोसथे।
रथे सुभे ठपेत्वान, महाबोधिं रथेसभो॥
६३.
पूजेन्तो तं दिनंयेव, उपनेत्वा सकं पुरं।
अलङ्करित्वा बहुधा, कारेत्वा मण्डपं सुभं॥
६४.
कत्तिकसुक्कपक्खस्स, दिने पाटिपदे तहिं।
महाबोधिं महासाल-मूले पाचिनते सुभे॥
६५.
ठपापेत्वान कारेसि, पूजा’नेका दिने दिने।
गाहतो सत्तरसमे, विवसे तु नवङ्किरा॥
६६.
सकिं येवअजायिंसु, तस्सा’नेकनराधिपो।
तुट्ठचित्तो महाबोधिं, पुन रज्जेन पूजयि॥
६७.
महारज्जे’भि सिञ्चित्वा, महाबोधिं महिस्सरो।
कारेसि च महाबोधि-पूजा नानप्पकारकं॥
६८.
इति कुसुमपुरे सरेसरंसा,
बहुविधचारुधजाकुलाविसाला।
सुरुचिरपवरोरु बोधिपूजा,
मरुनरचित्तविकासिनी अहोसीति॥
सुजनप्पसादसंवेगत्थाय कते महावंसे
महाबोधिग्गहणो नाम
अट्ठारसमो परिच्छेदो।