तेरसम परिच्छेद
महिन्दागमनो
१.
महामहिन्दत्थेरो सो, तदा द्वादसवस्सिको।
उपज्झायेन आणत्तो, सङ्घेन च महामती॥
२.
लंकादीपं पसादेतुं,
कालं पेक्खं विचिन्तयी।
‘‘वुड्ढो मुटसिवो राजा,
राजा होतु सुतो’’ इति॥
३.
तदन्तरे ञातिगणं, दट्ठुं कत्वान मानसं।
उपज्झायञ्च सङ्घञ्च, वन्दित्वा पुच्छ भूपतिं॥
४.
आदाय चतुरो थेरे, सङ्घमित्ताय अत्रजं।
सुमनं सामणेरञ्च, छळाभिञ्ञं महिद्धिकं॥
५.
ञातीनं सङ्गहं कातुं, अगमा दक्खिणागिरिं।
ततो तत्थ चरन्तस्स, छम्मासा समतिक्कमुं॥
६.
कमेन वेदिसगिरिं, नगरं मातुदेविया।
सम्पत्वा मतरं पस्सि, देवी दिस्वा पियं सुतं॥
७.
भोजयित्वा सपरिसं, अत्तनायेव कारितं।
विहारं चेतियगिरिं, थेरं आरोपयी सुभं॥
८.
अवन्तिरट्ठं भुञ्जन्तो, पितरा दिन्नमत्तनो।
सो असोक कुमारो हि, उज्जेनीगमना पुरा॥
९.
वेदिसे नगरे वासं, उपगन्त्वा तहिं सुभं।
देविन्नाम लभित्वान, कुमारिं सेट्ठिधीतरं॥
१०.
संवासं ताय कप्पेसि, गब्भं गण्हिय तेन सा।
उज्जेनियं कुमारं तं, महिन्दं जनयी सुभं॥
११.
वस्सद्वयमतिक्कम्म, सङ्घमित्तञ्च धीतरं।
तस्मिं काले वसति सा, वेदिसे नगरे तहिं॥
१२.
थेरो तत्थ निसीदित्वा, कालञ्ञू इति चिन्तयि।
पितरा मे समाणत्तं, अभिसेक महुस्सवं॥
१३.
देवानंपियतिस्सो सो, महाराजा’नुभोतु च।
वत्थुत्तयगुणे चापि, सुत्वा जानातु दूहतो॥
१४.
आरोहतु मिस्सनगं, जेट्ठमासस्सु’पोसथे।
तदहेव गमिस्साम, लंकादीपवरं मयं॥
१५.
महिन्दो उपसङ्कम्म, महिन्दत्थेर मुत्तमं।
याहि लंकं पसादेतुं, सम्बुद्धेना’सि ब्याकतो॥
१६.
मयम्पि तत्थुपत्थम्भा, भविस्सामा’ति अब्रवि।
देविया भगिनी धीतु-पुत्तो भण्डुक नामको॥
१७.
थेरेन देविया धम्मं, सुत्वा देसितमेव तु।
अनागामिफलं पत्वा, वसि थेरस्स सन्तिके॥
१८.
तत्थ मासं वसित्वान, जेट्ठमासस्सु’ पोसथे।
थेरो चतूहि थेरेहि, सुमनेना’थ भण्डुना॥
१९.
सद्धिं तेन गहट्ठेन, न रतो ञातिहेतुना।
तस्मा विहारा आकासं, उग्गन्त्वा सो महिद्धिको॥
२०.
खणेनेव इधागम्म, रम्मे मिस्सक पब्बते।
अट्ठासि विलुकूटम्हि, रुचिरम्बत्थले वरे॥
२१.
लंकापसाद गुणेन वियाकतो सो।
लंकाहिताय मुनिना सयितेन अन्ते।
लंकाय सत्थुसदिसो हितहेतु तस्सा।
लंकामरूहि महितो’भिनिसीदि तत्ताति॥
सुजनप्पसादसंवेगत्थाय कते महावंसे
महिन्दागमनो नाम
तेरसमो परिच्छेदो।