०१ दुतियपरिच्छेद

दुतियपरिच्छेद

महासम्मतवंस

१.
महासम्मत राजस्स, वंसजो हि महामुनि।
कप्पस्सादिम्हि राजा’सि, महासम्मतनामको॥
२.
रोजो च वररोजो च, तथा कल्याणका दुवे।
उपोसथो च मन्धाता, चरको’पचरा दुवे॥
३.
चेतीयो मुचलो चेव, महामूचलनामको।
मुचलिन्दो सागरो चेव, सागरो देव वनामको॥
४.
भरतो भगीरथो चेव, रुचि च सुरुचि पिच।
पतापो महापतापो, पनादा च तथा दुवे॥
५.
सुदस्सनो च नेरु च, तथा एव दुवे दुवे।
पच्छिमा चा’ति राजानो, तस्स पुत्तपपुत्तका॥
६.
असंखियायुका एते, अट्ठवीसति भूमिपा।
कुसावतिं राजगहं, मिथिलञ्चापि आवसुं॥
७.
ततो सतञ्च राजनो, छप्पञ्ञास च सट्ठि च।
चतुरासीति सहस्सानि, छत्तिंसा च ततो परे॥
८.
द्वत्तिंस अट्ठवीसा च, द्वावीसति ततो परे।
अट्ठारस सत्तरस, पञ्चदस चतुद्दस॥
९.
नव सत्त द्वादस च, पञ्चवीस ततोपरे।
पञ्चवीसं द्वादस च, द्वादसञ्च नवा पिच॥
१०.
चतुरासीतिसहस्सानि, मखादेवादिकापि च।
चतुरासीतिसहस्सानि, कळाराजनकादयो॥
११.
सोळस याव ओक्कातं, पपुत्ता रासितो इमे।
विसुं विसुं पुरे रज्जं, कमतो अनुसासिसुं॥
१२.
ओक्कामुखो जेट्ठपुत्तो, ओक्काकसा’सि भूपति।
निपुरो चन्दीमा चन्दं-मुखो च सिवि सञ्जयो॥
१३.
वेस्सन्तर महाराजा, जाली च सीहवाहनो।
सीहस्सरो च इच्चेते, तस्स पुत्त प पुत्तका॥
१४.
द्वेअसीति सहस्सानि, सीहस्सरस्स राजिनो।
पुत्त प पुत्त राजानो, जयसेनो तदन्तिमो॥
१५.
एते कपिलवत्थुस्मिं, सक्यराजाति विस्सुता।
सीहहनु महाराजा, जयसेनस्स अत्रजो॥
१६.
जयसेनस्स धीता च, नामेना’सि यसोधरा।
देवदये देवदह-सक्को नामा’सि भूपति॥
१७.
अञ्जनो चा’थ कच्चाना, आसुं तस्स सुता दुवे।
महेसीचा’सि कच्चाना, रञ्ञो सीहहनुस्स सा॥
१८.
आसी अञ्जनसक्कस्स, महेसी सा यसोधरा।
अञ्जनस्स दुवे धीता, माया चाथ पजापति॥
१९.
पुत्ता दुवे दण्डपाणी, सुप्पबुद्धो च साकियो।
पञ्च पुत्ता दुवे धीता, आसुं सीहहनुस्सरे॥
२०.
सुद्धोदनो धोतोदनो, सक्कसुक्कमितोदनो।
अमिता पमिताचा’ति, इमे पञ्च इमा दुवे॥
२१.
सुप्पबुद्धस्स सक्कस्स, महेसी अमिता अहु।
तस्सा’सुं भद्दकच्चाना, देवदत्तो दुवे सुता॥
२२.
माया महापजापति चेव, सुद्धोदन महेसीयो।
सुद्धोदन महारञ्ञो, पुत्तो मायाय सो जिनो॥
२३.
महा सम्मतवंसम्हि, असम्भिन्ने महामुनि।
एवं पवत्ते सञ्जातो, सब्ब खत्थिय मुद्धनि॥
२४.
सिद्धत्थस्स कुमारस्स, बोधिसत्तस्स सा अहु।
महेसी भद्दकच्चाना, पुत्तो तस्सा’सि राहुलो॥
२५.
बिम्बिसारो च सिद्धत्थ-कुमारो च सहायका।
उभिन्नं पितरो चापि, सहायाएव ते अहुं॥
२६.
बोधिसत्तो बिम्बिसारा, पञ्चवस्साधिको अहु।
एकूनतिंसो वयसा, बोधिसत्तो’भिनिक्खमि॥
२७.
पदहित्वान छब्बस्सं, बोधिं पत्वा कमेन च।
पञ्चतिंसो थ वयसा, बिम्बिसारमुपागमि॥
२८.
बिम्बिसारो पन्नरस-वस्सो’थ पीतरं सयं।
अभिसित्तो महापञ्ञो, पत्तो रज्जस्स तस्स तु॥
२९.
पत्ते सोळसमे वस्से, सत्था धम्ममदेसयि।
द्वापञ्ञासेव वस्सानि, रज्जं कारेसि सो पन॥
३०.
रज्जे समा पन्नरस, पुब्बे जिनसमागमा।
सत्ततिंस समा तस्स, धरमाने तथागते॥
३१.
बिम्बिसारसुतो’जात-सत्तुतं घातीया’मति।
रज्जं द्वत्तिंसवस्सानि, महामित्तद्दुकारयी॥
३२.
अजातसत्तुनो वस्से, अट्ठमे मुनि निब्बुतो।
पच्छा सो कारयी रज्जं, वस्सानि चतुवीसति॥
३३.
तथागतो सकललोकग्गतं गतो।
अनिच्चताव समवसो उपागतो।
इति’ध यो भयजननिं अनिच्चतं,
अवेक्खते स भवति दुक्खपारगूति॥
सुजनप्पसादसंवेगत्थाय कते महावंसे
महासम्मतवंसो नाम
दुतियो परिच्छेदो।