१२. द्वादसमो परिच्छेदो
दसावत्थाविभागो
१६४२.
इच्चट्ठारसधा भिन्ना, पटिपक्खप्पहानतो।
लक्खणाकारभेदेन, तिविधापि च भावना॥
१६४३.
कलापतो सम्मसनं, उदयब्बयदस्सनम्।
भङ्गे ञाणं भये ञाणं, ञाणमादीनवेपि च॥
१६४४.
तथेव निब्बिदाञाणं, ञाणं मुच्चितुकम्यता।
पटिसङ्खा च सङ्खारु-पेक्खाञाणानुलोमकं॥
१६४५.
इच्चावत्थापभेदेन, दसधापि विभाविता।
सभागत्थविसेसेन, तिधा सङ्गहिता पुन॥
१६४६.
यथाभूतं नाम ञाणत्तयं सम्मसनादिकम्।
भयादिञाणं तिविधं, निब्बिदाति पवुच्चति॥
१६४७.
तथा मुच्चितुकामादि, विरागोव चतुब्बिधम्।
लक्खणत्तयनिज्झानवसेन पुन वुट्ठिता॥
१६४८.
सुञ्ञतञ्चानिमित्तञ्च , तथाप्पणिहितन्ति च।
साधेति मग्गसङ्खातं, विमोक्खत्तयमुत्तमं॥
१६४९.
इति भावेतुकामस्स, विभावेति यथाक्कमम्।
दसावत्थाविभागेन, समादाय यथा कथं॥
१६५०.
विसुद्धो पठमं ताव, साधु सीलविसुद्धिया।
उपचारप्पनायञ्च, ठत्वा चित्तविसुद्धियं॥
१६५१.
सप्पच्चयं परिग्गय्ह, नामरूपं सभावतो।
दिट्ठिकङ्खावितरणं, पत्वा सुद्धिं ततो परं॥
१६५२.
अतीतानागते खन्धे, पच्चुप्पन्ने च सासवे।
कलापतो सम्मसित्वा, सम्मसेय्य तिलक्खणं॥
१६५३.
आदाननिक्खेपनतो,
वयोवुद्धत्थगामितो।
आहारतोपि उतुतो,
कम्मतो चापि चित्ततो॥
१६५४.
धम्मतारूपतो चापि, रूपसत्तकतो नये।
कलापतो यमकतो, खणिका पटिपाटितो॥
१६५५.
दिट्ठिमुग्घाटयन्तो च, मानमुग्घाटयं तथा।
निकन्तिपरियादानो, नामसत्तकतो नये॥
१६५६.
निच्चा चे न निरुज्झेय्युं, न बाधेय्युं सुखा यदि।
वसे वत्तेय्युमत्ता चे, तदभावा न तादिसा॥
१६५७.
सम्भवन्ति हि सङ्खारा, सति पच्चयसम्भवे।
ततो पच्चयनिप्फन्ना, अवस्सं भेदगामिनो॥
१६५८.
तदनिच्चा खयट्ठेन, दुक्खा नाम भयट्ठतो।
अनत्तासारकट्ठेन, सङ्खाराति विभावयं॥
१६५९.
कालेन सम्मसे रूपं, नामं कालेन सम्मसे।
अज्झत्तञ्च बहिद्धा च, समासब्यासतो ततो॥
१६६०.
यथोपट्ठितभेदेन, सम्मसन्तो समूहतो।
कलापतो सम्मसनमिति भावेति पण्डितो॥
१६६१.
तस्सेवं सम्मसन्तस्स, कम्मञ्ञं होति मानसम्।
सूपट्ठन्ति च सङ्खारा, वोदायति च भावना॥
१६६२.
ततो परं विपस्सन्तो, परिग्गण्हाति पण्डितो।
पच्चुप्पन्नसभावानं, खन्धानमुदयब्बयं॥
१६६३.
तण्हासम्मोहकम्मेहि,
खन्धपञ्चकसभावो।
रूपमाहारतो होति,
फस्सतो वेदनादयो॥
१६६४.
विञ्ञाणं नामरूपम्हा, सम्भोतीति च पस्सतो।
तस्स पच्चयतो होति, खन्धेसुदयदस्सनं॥
१६६५.
तण्हादीनं निरोधा च,
निरोधो होति पस्सतो।
तथा वीसतिधा होति,
तत्थेव वयदस्सनं॥
१६६६.
निब्बत्तिविपरिणामलक्खणं पन पस्सतो।
खणतो दसधा नेसमुदयब्बयदस्सनं॥
१६६७.
इत्थं पञ्ञासधा भेदो,
खन्धानमुदयब्बयो।
आयतनादिभेदोपि,
योजेतब्बो यथारहं॥
१६६८.
तदेवमनुपस्सन्तो , खन्धायतनधातुयो।
अनिच्चा दुक्खानत्ताति, भावेति बहुधा बुधो॥
१६६९.
भावनापसुतस्सेवं, पस्सतो बोधिपक्खिया।
पातुभूता पवत्तन्ति, विसेसेन विसारदा॥
१६७०.
सलक्खणपरिच्छिन्ने, तिलक्खणववत्थिते।
छन्दो सासवसङ्खारे, सारदं परियेसति॥
१६७१.
तत्थ पुब्बङ्गमं हुत्वा, संपक्खन्दति मानसम्।
सङ्कप्पोभिनिरोपेति, आहरन्तो पुनप्पुनं॥
१६७२.
यथावत्थुसभावेन, ततो सद्धाधिमुच्चति।
सति सूपट्ठिता होति, परिग्गय्ह सभावतो॥
१६७३.
पञ्ञा सम्पटिविज्झन्ती, समाहच्च विपस्सति।
पग्गहेत्वान वायामो, पटिपादेति भावनं॥
१६७४.
ततो पीतिमनो होति, निप्फादितमनोरथो।
पामोज्जबहुलो हुत्वा, पस्सद्धदरथो पन॥
१६७५.
विक्खेपुद्धच्चनित्तिण्णो, समाधियति निच्चलो।
उपेक्खा भावनावीथिं, अधिट्ठाति ततो परं॥
१६७६.
आरुळ्हयोग्गाचरियो, आजानीयरथो विय।
वाताभावे पदीपोव, पसन्नेकमुखट्ठिता॥
१६७७.
सुखुमा निपुणाकारा, खुरधारागता विय।
गण्हन्ती भावनागब्भं, पवड्ढति विपस्सना॥
१६७८.
सम्पत्तपटिवेधस्स,
तस्सेवं तं विपस्सतो।
जायतेको उपक्लेसो,
दसोपक्लेसवत्थुका॥
१६७९.
ओभासो पीति पस्सद्धि, अधिमोक्खो च पग्गहो।
सुखं ञाणमुपट्ठानमुपेक्खा च निकन्ति च॥
१६८०.
जातेस्वेतेसु यं किञ्चि, उळारं जातविम्हयो।
दिस्वा विपस्सनामग्गा, वोक्कमित्वा ततो परं॥
१६८१.
तमहंकारविक्खित्तो, अस्सादेन्तो ममायति।
होताधिमानिको वाथ, मञ्ञन्तो तमनुत्तरं॥
१६८२.
सिया चेवमुपक्लिट्ठा, पतिता वाथ भावना।
तत्थेवं पटिसङ्खाय, पटिविज्झति पण्डितो॥
१६८३.
न तण्हादिट्ठिमानेहि, परियोगाहहेतुतो।
लक्खणालम्बणत्ता च, लोकियायं विपस्सना॥
१६८४.
दिट्ठिमाननिकन्ती च, कुम्मग्गा परिपन्थका।
मग्गो विसुद्धिया नाम, विसुद्धा च विपस्सना॥
१६८५.
सारथीव रथं भन्तमिति सङ्खाय साधुकम्।
पविट्ठमग्गं विक्खित्तं, सम्पादेति यथा पुरे॥
१६८६.
इत्थं मग्गे अमग्गे च, याथावपटिवेधकम्।
मग्गामग्गविसुद्धीति, ञाणदस्सनमीरितं॥
१६८७.
चेतोपवत्तनाकारमिति सल्लक्खयं बुधो।
साधुकं पटिविज्झन्तो, सुखुमं निपुणं ततो॥
१६८८.
परिपन्थे विमोचेत्वा, बोधेत्वा बोधिपक्खिये।
भावनं पटिपादेन्तो, पुनदेवोदयब्बयं॥
१६८९.
समधिट्ठाय मेधावी, विपस्सति तिलक्खणम्।
उदयब्बयञाणन्ति, तमीरेन्ति ततो परं॥
१६९०.
सङ्खारानं विभूतत्ता, साकारानं विसेसतो।
तिलक्खणानं दिट्ठत्ता, सङ्खारेसु सभावतो॥
१६९१.
परिपन्था विमुत्तस्स, मग्गामग्गविसुद्धिया।
यथावीथिप्पवत्तस्स, पटिपत्तिविसुद्धिया॥
१६९२.
इन्द्रियानं सुतिक्खत्ता, परिपक्का विपस्सना।
उदयम्हा विमुच्चित्वा, भङ्गे ठाति यथा कथं॥
१६९३.
उप्पादो पच्चयायत्तो, धम्मानमिति निच्छिते।
निरोधानुगता जाति, सिद्धावस्सं नियामतो॥
१६९४.
ततोदयाव पट्ठाय, अत्थाय सूरियो विय।
विनासाय पवत्तन्ता, वयन्तेवाति पेक्खति॥
१६९५.
उदयाभोगमोहाय , वयन्तिच्चेव सब्बथा।
भेदस्सभावमारब्भ, धम्मेसु सति तिट्ठति॥
१६९६.
अतीता च निरुद्धाव, निरुज्झिस्सन्तिनागता।
निरुज्झन्तेव वत्तन्ता, इच्चेवमनुपस्सतो॥
१६९७.
निज्झरोव गिरग्गम्हि, वारिवोणतपोक्खरे।
पदीपो विय झायन्तो, आरग्गेरिव सासपो॥
१६९८.
आतपे विय उस्सावो, परिस्सावे जलं विय।
मद्दितं फेणपिण्डंव, लोणपिण्डमिवोदके॥
१६९९.
उदके दण्डराजीव, विज्जुताव वलाहके।
जलं तत्तकपालेव, सलिले विय बुब्बुळं॥
१७००.
वातब्भाहततूलंव, तीरं पत्ताव वीचियो।
फलं बन्धनमुत्तंव, तिणानीव हुतावहे॥
१७०१.
जायन्तापि च जिय्यन्ता, मिय्यन्ता च निरन्तरम्।
निरोधायाभिधावन्ता, भङ्गाभिमुखपातिनो॥
१७०२.
विगच्छन्ताव दिस्सन्ति, खीयन्तन्तरधायिनो।
विद्धंसयन्ता सङ्खारा, पतन्ता च विनासिनो॥
१७०३.
भङ्गञाणं तमक्खातं, येन ञाणेन पस्सतो।
अनिच्चन्तानुधावन्ति, तिविधापि विपस्सना॥
१७०४.
उदयब्बयभङ्गेसु, पाकटा हि अनिच्चता।
भयादीनवनिब्बेदे, दुक्खतानत्तता ततो॥
१७०५.
इत्थं भङ्गमधिट्ठाय, पस्सन्तस्स तिलक्खणम्।
सङ्खारा सभया हुत्वा, समुपट्ठन्ति योगिनो॥
१७०६.
वाळमिगानुबद्धाव, निम्मुज्जन्ता वियण्णवे।
अमनुस्सगहिताव, परिक्खित्ताव वेरिहि॥
१७०७.
कण्हसप्पसमालीळ्हा , चण्डहत्थिसमुट्ठिता।
पपातावाटपक्खन्ता, पतन्ताव हुतावहे॥
१७०८.
वज्झप्पत्ता महाचोरा, छिज्जन्ता विय सीसतो।
सूलमारोपियन्ताव, पब्बतेनोत्थटा विय॥
१७०९.
जातिसङ्कटपक्खन्ता, जराब्याधिनिपीळिता।
मरणासनिसम्मद्दा, महाब्यसनभागिनो॥
१७१०.
मच्चुनब्भाहता निच्चं, दुक्खभारसमोत्थटा।
सोकोपायासनिस्सन्दा, परिदेवपरायणा॥
१७११.
तण्हादिट्ठिममत्तेन, सत्ता एत्थाधिमुच्छिता।
बद्धा भयेन बद्धाव, मुत्ताव भयमुत्तका॥
१७१२.
इति सङ्खारधम्मेसु, भयुप्पत्तिमुदिक्खतो।
भयञाणन्ति भासन्ति, भयमुत्ता महेसयो॥
१७१३.
सभया पुन सङ्खारा, सन्दिस्सन्ति समन्ततो।
अहितावहितानिच्चमादीनवं निरन्तरं॥
१७१४.
गूथकूपंव कुथितं, भस्मच्छन्नोव पावको।
सरक्खसंव सलिलं, सविसं विय भोजनं॥
१७१५.
वनं वाळमिगाकिण्णं, मग्गो चोरमहब्भयो।
भिज्जमाना महानावा, फलन्ता असनी यथा॥
१७१६.
आवुधाकुलसन्नद्धा, युद्धभूमिपतिट्ठिता।
सङ्गताव महासेना, घोरानत्थनियामिता॥
१७१७.
रथं चक्कसमारुळ्हं, वुय्हन्तं वळवामुखम्।
कप्पुट्ठानमहारम्भं, कप्पो पत्तन्तरो यथा॥
१७१८.
तथा लोका तयोपेते,
महोपद्दवसङ्कुला।
डय्हन्तेकादसग्गीहि,
परिप्फन्दपरायणा॥
१७१९.
महारञ्ञमिवादित्तं, भवयोनिगतिट्ठिति-
सत्तावासा समीभूता, जलितङ्गारकासुका॥
१७२०.
आसीविसा महाभूता, वधका खन्धपञ्चका।
चक्खादयो सुञ्ञा गामा, गोचरा गामघातका॥
१७२१.
इच्चानयसमाकिण्णं, भवसागरमण्डलम्।
लेणं ताणं पतिट्ठा वा, सरणं वा न विज्जति॥
१७२२.
एत्थाभिरोधिनो बाला, वङ्कघस्ताव मीनका।
महासकटुपब्बुळ्हा, महब्भयपतिट्ठिता॥
१७२३.
जायमानाव जिय्यन्ता, नानाब्यसनपीळिता।
विपत्तावट्टपतिता, मरणाबद्धनिच्छया॥
१७२४.
मोहन्धकारपिहिता, चतुरोघसमोत्थटा।
वितुन्ना दुक्खसल्लेन, विहञ्ञन्ति विघातिनो॥
१७२५.
इत्थञ्च विसपुप्फंव, नानानत्थफलावहम्।
दुक्खानुबन्धसम्बाधं, आबाधंव समुट्ठितं॥
१७२६.
आसीविसंव कुपितं, घोरं भयनिबन्धनम्।
असिसूनंव सारम्भं, दुक्खायूहनकं पदं॥
१७२७.
सविदाहपरिप्फन्दपक्कबन्धमिवोदकम्।
उप्पादञ्च पवत्तञ्च, निमित्तायूहनं तथा॥
१७२८.
पटिसन्धिञ्च पस्सन्तं, ञाणमादीनवं मतम्।
तेभूमकेसु तेनायमवुद्धिं पटिविज्झति॥
१७२९.
भयभेरवपक्खन्ते, बह्वादीनवपच्चये।
सङ्खारे समवेक्खन्तो, निब्बिन्दति निरालयो॥
१७३०.
विसं जीवितुकामोव, वेरिके विय भीरुको।
सुपण्णं नागराजाव, चोरं विय महद्धनो॥
१७३१.
दुक्खानुसयसम्बाधे, बाधमाने विभावयम्।
संवेजेति निरानन्दे, परिपन्थभयाकुले॥
१७३२.
सुद्धो मुत्तकरीसंव, सुहितो वमितं विय।
सुविलित्तोव दुग्गन्धं, सुन्हातो अङ्गणं विय॥
१७३३.
रागदोसपरिक्लिट्ठे, चतुरासवपूतिके।
हीनलोकामिसासारे, संक्लेसविसदूसिते॥
१७३४.
सङ्खारेपि जिगुच्छन्तो, नाभिनन्दति पण्डितो।
तस्सेतं नन्दिनिस्सट्ठं, निब्बिदाञाणमब्रवुं॥
१७३५.
सभयादीनवे दिस्वा, सङ्खारे पुन पण्डितो।
निब्बिन्दन्तो ततो तेहि, परिमुच्चितुमिच्छति॥
१७३६.
मीनाव कुमीने बद्धा, पञ्जरे विय पक्खिनो।
चोरो चारकबद्धोव, पेळायन्तोव पन्नगो॥
१७३७.
पङ्के सन्नो महानागो, चन्दो राहुमुखं गतो।
मिगो यथा पासगतो, तथा संसारचारके॥
१७३८.
अविज्जापरियोनद्धे , खन्धपञ्चकसन्थरे।
दिट्ठिजालपटिच्छन्ने, विपल्लासपरिक्खिते॥
१७३९.
पञ्चनीवरणाबद्धे, मानत्थम्भसमुस्सये।
इच्छापपातगम्भीरे, विपत्तिविनिपातने॥
१७४०.
जराब्याधिसमुप्पादे, धूमकेतुपपत्तिके।
कोधूपनाहदहने, सोकोपायासधूपिते॥
१७४१.
मदप्पमादावरोधे, भवतण्हावकड्ढने।
विप्पयोगसमुत्तासे, निच्चापायभयाकुले॥
१७४२.
छालम्बाभिहते निच्चं, फस्सद्वाराधिकुट्टने।
सञ्चेतनाकारणिके, वेदनाकम्मकारणे॥
१७४३.
अनत्थालापनिग्घोसे, क्लेसरक्खसलालिते।
मरणारम्भनिट्ठाने, बद्धो मुत्तिं गवेसति॥
१७४४.
अग्गिं विय च सम्फुट्ठ-मसुचिं गहितं विय।
पेतं खादितुकामंव, विक्कन्तेन्तमिवावुधं॥
१७४५.
महाब्यसनुपस्सट्ठे, सङ्खारे मोत्तुमिच्छतो।
मुच्चितुकम्यताञाणमुप्पन्नन्ति पवुच्चति॥
१७४६.
दुज्जहे पलिबज्झन्ते, गन्थानुसयसङ्गमे।
तण्हुपादानगहणे, नन्दिरागानुबन्धने॥
१७४७.
दिट्ठिमानमदत्थद्धे, लोभपासनिरन्तरे।
संयोजनमहादुग्गे, चिरकालप्पपञ्चिते॥
१७४८.
सङ्खारे मुञ्चतच्चन्तं, आविज्झित्वाव पन्नगम्।
लक्खणानुपनिज्झाय, सुखुमं पन योनिसो॥
१७४९.
मज्झत्तगहणो तस्मा, निरपेक्खविमुत्तिया।
वग्गुलीवाफलं रुक्खं, वीमंसति विसेसतो॥
१७५०.
विहतं विय कप्पासं, विहनन्तो पुनप्पुनम्।
गन्धं विय च पिसेन्तो, पिसितंयेव साधुकं॥
१७५१.
अनिच्चा दुक्खानत्ताति, सतिमा सुसमाहितो।
आहच्च पटिविज्झन्तो, लक्खणानि विपस्सति॥
१७५२.
विपस्सन्तस्स तस्सेवं, पटिसङ्खानुपस्सना-
ञाणमिच्चाहु निपुणं, विचिनन्तं विसारदा॥
१७५३.
इति सम्मा विपस्सन्तो, सच्छिकत्वा तिलक्खणम्।
यथाभूतसभावेन, तत्थेवमनुपस्सति॥
१७५४.
अनिच्चा वत सङ्खारा, निच्चाति गहिता पुरे।
दुक्खाव सुखतो दिट्ठा, अनत्ताव पनत्ततो॥
१७५५.
अनिच्चा दुक्खानत्ता च, सङ्खता पुन सब्बथा।
अलब्भनेय्यधम्मा च, तथेवाकामकारिया॥
१७५६.
धातुमत्ता पराधीना, अत्ताधेय्यविवज्जिता।
मच्चुधेय्यवसानीता, उपधिहतगोचरा॥
१७५७.
अहं ममन्ति वोहारो, परो वाथ परस्स वा।
अत्ता वा अत्तनीयं वा, वत्थुतो नत्थि कत्थचि॥
१७५८.
यथापि अङ्गसम्भारा, होति सद्दो रथो इति।
एवं खन्धेसु सन्तेसु, होति सत्तोति सम्मुति॥
१७५९.
तत्थ कप्पेन्ति अत्तानं, बाला दुम्मेधिनो जना।
अज्झत्तं वा बहिद्धा वा, पस्सतो नत्थि किञ्चनं॥
१७६०.
सुखितो दुक्खितो वाथ, पुग्गलो नाम कत्थचि।
वत्थुतो नत्थि सब्बत्थ, सङ्खारा तंसभाविनो॥
१७६१.
जायमाना च जिय्यन्ता, मिय्यमाना च सङ्खता।
अत्ताव दुक्खिता हेते, न तु दुक्खाय कस्सचि॥
१७६२.
दुक्खमेव हि सम्भोति, दुक्खं तिट्ठति वेति च।
नाञ्ञत्र दुक्खा सम्भोति, नाञ्ञं दुक्खा निरुज्झति॥
१७६३.
एत्थ गय्हूपगं नत्थि, पलासेतं पपञ्चितम्।
निरुद्धस्स समायूहा, निरत्थकसमुब्भवा॥
१७६४.
अनिच्चा होन्तु सङ्खारा, दुक्खिता वा ममेत्थ किम्।
अनत्ता वाति? सङ्खारुपेक्खाञाणं पवत्तति॥
१७६५.
इति दिस्वा यथाभूतं, याव भङ्गा ततो परम्।
गण्हन्ती भावनागब्भं, परिपक्का विपस्सना॥
१७६६.
अवस्सं भङ्गनिट्ठाने, भयादीनवनिच्छिते।
निब्बिन्दित्वा विरज्जन्तो, पटिसङ्खायुपेक्खति॥
१७६७.
तत्थ मुत्तकरीसंव, खेळपिण्डंव उज्झितम्।
विस्सट्ठपरपुत्तंव, विस्सट्ठभरियं विय॥
१७६८.
पवत्तञ्च निमित्तञ्च, पटिसङ्खायुपेक्खतो।
सब्बसङ्खारधम्मेसु, गतियोनिभवेसु वा॥
१७६९.
वारि पोक्खरपत्तेव, सूचिकग्गेव सासपो।
खित्तं कुक्कुटपत्तंव, दद्दुलंव हुतावहे॥
१७७०.
न पसारीयती चित्तं, न तु सज्जति बज्झति।
आलया पतिलीयन्ति, परिवत्तति वट्टतो॥
१७७१.
सीतं घम्माभितत्तोव,
छातज्झत्तोव भोजनम्।
पिपासितोव पानीयं,
ब्याधितोव महोसधं॥
१७७२.
भीतो खेमन्तभूमिंव, दुग्गतोव महानिधिम्।
अञ्जसं मग्गमुळ्होव, दीपं विय च अण्णवे॥
१७७३.
अजरामरमच्चन्तं , असङ्खारमनासवम्।
सब्बदुक्खक्खयं ठानं, निब्बानमभिकङ्खति॥
१७७४.
वुट्ठानगामिनी चायं, सिखप्पत्ता विपस्सना।
सकुणी तीरदस्सीव, सानुलोमा पवत्तति॥
१७७५.
अप्पवत्तमनिमित्तं, पस्सन्तो पन सन्ततो।
पक्खीव निप्फलं रुक्खं, हित्वा वुट्ठाति सङ्खता॥
१७७६.
उपचारसमाधीति, कामावचरभावना।
मुत्तोयं लोकियो मग्गो, पुब्बभागविपस्सना॥
१७७७.
परिपक्का कमेनेवं, परिभावितभावना।
परिच्चजन्ती सङ्खारे, पक्खन्दन्ती असङ्खते॥
१७७८.
जनेतानुत्तरं मग्ग-मासेवनविसेसतो।
कट्ठसङ्घट्टना जाता, अच्चिधूमाव भासुरं॥
१७७९.
उग्गच्छति यथादिच्चो, पुरक्खत्वारुणं तथा।
विपस्सनं पुरक्खत्वा, मग्गधम्मो पवत्तति॥
१७८०.
तथा पवत्तमानो च, निब्बानपदगोचरो।
विमोक्खत्तयनामेन, यथारहमसेसतो॥
१७८१.
क्लेसदूसितसन्ताने, अभिहन्त्वा विगच्छति।
एकचित्तक्खणुप्पादो, असनी विय पब्बतं॥
१७८२.
पुब्बे वुत्तनयेनेव, अप्पनानयमीरये।
पादकज्झानभेदेन, झानङ्गनियमो भवे॥
१७८३.
परिकम्मोपचारानु-लोमसङ्खातगोचरा।
यं किञ्चि लक्खणाकारं, विपस्सन्ता पवत्तरे॥
१७८४.
ततो गोत्रभु निब्बान-मालम्बित्वान जायति।
बहिद्धा खन्धतो तस्मा, वुट्ठानन्ति पवुच्चति॥
१७८५.
ततो मग्गो किलेसम्हा, विमुच्चन्तो पवत्तति।
वुट्ठानं उभतो तस्मा, खन्धतो च किलेसतो॥
१७८६.
द्वे तथा तीणि वा होन्ति, फलानि च ततो परम्।
भवङ्गपातो तं छेत्वा, जायते पच्चवेक्खणा॥
१७८७.
मग्गं फलञ्च निब्बानं, पच्चवेक्खति पण्डितो।
हीने किलेसे सेसे च, पच्चवेक्खति वा न वा॥
१७८८.
भावेत्वा पठमं मग्ग-मित्थमादिफले ठितो।
ततो परं परिग्गय्ह, नामरूपं यथा पुरे॥
१७८९.
कमेन च विपस्सन्तो, पुनदेव यथारहम्।
यथानुक्कममप्पेति, सकदागामिआदयो॥
१७९०.
इत्थं विभत्तपरिपाकविभावनायं,
बुद्धानुबुद्धपरिभावितभावनायम्।
पच्चुद्धरेति भवसागरपारगामी,
मग्गो महेसि गुणसागरपारगामी॥
१७९१.
इच्चेतं दसविध भावनाविभागं,
भावेत्वा परमहितावहं कमेन।
पप्पोन्ति पदमजरामरं चिराय,
संक्लेसं सकलमवस्सजन्ति धीरा॥
इति नामरूपपरिच्छेदे दसावत्थाविभागो नाम
द्वादसमो परिच्छेदो।