७ भिक्खुनीविभङ्गो

भिक्खुनीविभङ्गो
१७०.
भिक्खूनं पाटवत्थाय, विनयस्स विनिच्छये।
भिक्खुनीनं विभङ्गोपि, किञ्चिमत्तं भणामहं॥
१७१.
अवस्सुतस्स पोसस्स, भिक्खुनीपि अवस्सुता।
नन्दन्ती कायसंसग्गं, कति आपत्तियो फुसे।
१७२.
तिस्सो आपत्तियो उब्भ-जाणुस्साधक्खकस्स च।
होति पाराजिकं तस्सा, गहणं सादियन्तिया॥
१७३.
उब्भक्खकं अधोजाणु-गहणं सादियन्तिया।
थुल्लच्चयं सिया, काय-पटिबद्धे तु दुक्कटं॥
१७४.
छादेन्ती भिक्खुनी वज्जं, तिस्सो आपत्तियो फुसे।
जानं पाराजिकं धम्मं, छादेन्ती सा पराजिका॥
१७५.
थुल्लच्चयं वेमतिका, पटिच्छादेति चे पन।
अथाचारविपत्तिं चे, पटिच्छादेति दुक्कटं॥
१७६.
निस्सज्जन्ती न तं लद्धिं, उक्खित्तस्सानुवत्तिका।
समनुभासनायेव, तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
१७७.
ञत्तिया दुक्कटं, द्वीहि, कम्मवाचाहि थुल्लता।
कम्मवाचाय ओसाने, पाराजिकमुदीरितं॥
१७८.
पूरेन्ती अट्ठमं वत्थुं, तिस्सो आपत्तियो फुसे।
पुरिसेनिधागच्छाति, वुत्तागच्छति दुक्कटं॥
१७९.
थुल्लच्चयं तु पोसस्स, हत्थपासप्पवेसने।
पूरेन्ती अट्ठमं वत्थुं, समणी सा पराजिता॥
पाराजिककथा।
१८०.
उस्सयवादिका अट्टं, करोन्ती तिविधं फुसे।
एकस्सारोचने तस्सा, होति आपत्ति दुक्कटं॥
१८१.
दुतियारोचने तस्सा, थुल्लच्चयमुदीरितम्।
अट्टस्स परियोसाने, होति सङ्घादिसेसता॥
१८२.
चोरिवुट्ठापिका वापि, ञत्तिया दुक्कटं फुसे।
द्वीहि थुल्लच्चयं कम्म-वाचोसाने गरुं सिया॥
१८३.
एका गामन्तरं गच्छे, गमने दुक्कटं सिया।
परिक्खेपे अतिक्कन्ते, पादेन पठमेन तु॥
१८४.
होति थुल्लच्चयापत्ति, तस्सा समणिया पन।
दुतियेन अतिक्कन्ते, गरुके पन तिट्ठति॥
१८५.
चतुत्थे दुतिये वुत्त-सदिसोव विनिच्छयो।
आपत्तीनं पभेदे तु, काचि नत्थि विसेसता॥
१८६.
अवस्सुता सयं हुत्वा, तादिसस्सेव हत्थतो।
गहेत्वा पन भुञ्जन्ती, भोजनादीसु किञ्चिपि॥
१८७.
फुसे आपत्तियो तिस्सो, भोजनादीसु किञ्चिपि।
पटिग्गण्हन्तिया तस्सा, होति थुल्लच्चयं पन॥
१८८.
अज्झोहारेसु सब्बेसु, होति सङ्घादिसेसता।
उदकं दन्तपोनं वा, पटिग्गण्हाति दुक्कटं॥
१८९.
‘‘सहत्थेन गहेत्वा त्वं, खाद वा भुञ्ज वा’’तिपि।
उय्योजेन्ती पनेवं तु, तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
१९०.
दुक्कटं वचने तस्सा, ‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति गण्हति।
अज्झोहारेसु सब्बेसु, तस्सा थुल्लच्चयं सिया॥
१९१.
भोजनस्स पनोसाने, होति सङ्घादिसेसता।
उय्योजेति च या तस्सा, इमा तिस्सोति दीपये॥
१९२.
सत्तमे अट्ठमे चापि, नवमे दसमेपि च।
चोरिवुट्ठापनेनेव, समानोव विनिच्छयो॥
सङ्घादिसेसकथा।
१९३.
पत्तसन्निचयं यिह, करोन्ती भिक्खुनी पन।
एकं निस्सग्गियंयेव, फुसे पाचित्तियं तु सा॥
१९४.
अकालचीवरं काल-चीवरं भाजापेन्तिया।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, लाभे निस्सग्गियं सिया॥
१९५.
चीवरं परिवत्तेत्वा, अच्छिन्दति सचे पन।
पयोगे दुक्कटं, छिन्ने, तस्सा निस्सग्गियं सिया॥
१९६.
विञ्ञापेत्वाव अञ्ञं चे, विञ्ञापेति ततो परम्।
पयोगे दुक्कटं, विञ्ञा-पिते निस्सग्गियं सिया॥
१९७.
चेतापेत्वा हि अञ्ञं चे, चेतापेति ततो परम्।
पयोगे दुक्कटं, चेता-पिते निस्सग्गियं सिया॥
१९८.
एवमेव च सेसेसु, छट्ठादीसु च सत्तसु।
अनन्तरसमानोव, आपत्तीनं विनिच्छयो॥
निस्सग्गियकथा।
१९९.
लसुणं खादति द्वे चे, दुक्कटं गहणे सिया।
अज्झोहारपयोगेसु, पाचित्ति परियापुता॥
२००.
संहरापेन्तिया लोमं, सम्बाधे द्वेव होन्ति हि।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, होति पाचित्ति संहटे॥
२०१.
करोन्ती तलघातं तु, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं होति, कते पाचित्तियं सिया॥
२०२.
जतुना मट्ठकं किञ्चि, सादियन्ती दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटादिन्ने, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२०३.
पञ्चमं तु चतुत्थेन, समानमिति दीपये।
आपत्तीनं विभागस्मिं, विसेसो नत्थि कोचिपि॥
२०४.
भिक्खुस्स भुञ्जमानस्स, पानीयेनुपतिट्ठति।
हत्थपासे तु पाचित्ति, हित्वा तिट्ठति दुक्कटं॥
२०५.
विञ्ञापेत्वामकं धञ्ञं, ‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति गण्हति।
दुक्कटं होति पाचित्ति, अज्झोहारेसु दीपये॥
२०६.
उच्चारादिं तिरोकुट्टे, छड्डेन्ती द्वे फुसे हवे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति छड्डिते सिया॥
२०७.
उच्चारादिचतुक्कं तु, छड्डेति हरिते सचे।
पयोगे दुक्कटं तस्सा, पाचित्ति छड्डिते सिया॥
२०८.
नच्चादिं दस्सनत्थाय, सचे गच्छति दुक्कटम्।
पस्सन्तियापि पाचित्ति, तथेव च सुणन्तिया॥
लसुणवग्गो पठमो।
२०९.
पठमे दुतिये चेव, ततिये च चतुत्थके।
तुल्यो लसुणवग्गस्स, छट्ठेनिध विनिच्छयो॥
२१०.
कुलानि उपसङ्कम्म, निसीदित्वा पनासने।
सामिके तु अनापुच्छा, पक्कमन्ती दुवे फुसे॥
२११.
पठमेन च पादेन, अनोवस्समतिक्कमे।
दुक्कटं होति, पाचित्ति, दुतियातिक्कमे सिया॥
२१२.
सामिके तु अनापुच्छा, आसने चे निसीदति।
पयोगे दुक्कटं होति, पाचित्ति च निसीदिते॥
२१३.
छट्ठेन सत्तमं सब्बं, समानं अट्ठमे पन।
पयोगे दुक्कटं, उज्झा-पिते पाचित्तियं सिया॥
२१४.
अत्तानं चाभिसप्पेन्ती, द्वे फुसे निरयादिना।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति अभिसप्पिते॥
२१५.
वधित्वा पन अत्तानं, रोदन्ती तु दुवे फुसे।
वधति रोदति पाचित्ति, करोतेकं तु दुक्कटं॥
रत्तन्धकारवग्गो दुतियो।
२१६.
नग्गा न्हायति द्वे चेव, पयोगे दुक्कटं सिया।
न्हानस्स परियोसाने, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२१७.
कारापेति पमाणाति-क्कन्तं उदकसाटिकम्।
पयोगे दुक्कटं, कारा-पिते पाचित्तियं सिया॥
२१८.
चीवरं तु विसिब्बेत्वा, विसिब्बापेत्व वा पन।
नेव सिब्बन्तिया वुत्त-मेकं पाचित्तियं पन॥
२१९.
पञ्चाहिकं तु सङ्घाटि-चारं पन अतिक्कमे।
एकावस्सा पनापत्ति, पाचित्ति परिदीपिता॥
२२०.
सचे सङ्कमनीयं तु, धारेति पन चीवरम्।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति पन धारिते॥
२२१.
गणचीवरलाभस्स, अन्तरायं करोति चे।
पयोगे दुक्कटं होति, कते पाचित्तियं सिया॥
२२२.
विभङ्गं पटिबाहन्ती, चीवरानं तु धम्मिकम्।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति पटिबाहिते॥
२२३.
अगारिकादिनो देति, सचे समणचीवरम्।
पयोगे दुक्कटं, दिन्ने, पाचित्ति परियापुता॥
२२४.
चीवरे दुब्बलासाय, कालं चे समतिक्कमे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति समतिक्कमे॥
२२५.
धम्मिकं कथिनुद्धारं, पटिबाहन्तिया दुवे।
पयोगे दुक्कटं होति, पाचित्ति पटिबाहिते॥
न्हानवग्गो ततियो।
२२६.
दुवे भिक्खुनियो एक-मञ्चस्मिं चे तुवट्टेय्युम्।
पयोगे दुक्कटं तासं, निपन्ने इतरं सिया॥
२२७.
दुतियं पठमेनेव, सदिसं ततिये पन।
पयोगे दुक्कटं होति, कते पाचित्तियं सिया॥
२२८.
नुपट्ठापेन्तिया वापि, दुक्खितं सहजीविनिम्।
एकायेव पनापत्ति, पाचित्ति परिदीपिता॥
२२९.
सचे उपस्सयं दत्वा, निक्कड्ढति च भिक्खुनिम्।
पयोगे दुक्कटं तस्सा, होति पाचित्ति कड्ढिते॥
२३०.
छट्ठे पन च संसट्ठा, ञत्तिया दुक्कटं फुसे।
कम्मवाचाय ओसाने, पाचित्ति परिदीपिता॥
२३१.
अन्तोरट्ठे तु सासङ्के, चारिकं तु चरन्तिया।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पटिपन्नाय सेसकं॥
२३२.
अट्ठमं नवमञ्चेव, सत्तमेन समं मतम्।
दसमे पन एकाव, पाचित्ति परिदीपिता॥
तुवट्टवग्गो चतुत्थो।
२३३.
राजागारादिकं सब्बं, दस्सनत्थाय गच्छति।
पयोगे दुक्कटं तस्सा, पाचित्ति यदि पस्सति॥
२३४.
आसन्दिं वापि पल्लङ्कं, परिभुञ्जन्तिया दुवे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, भुत्ते पाचित्तियं सिया॥
२३५.
सुत्तं कन्तन्तिया द्वेव, पयोगे दुक्कटं मतम्।
उज्जवुज्जवने तस्सा, पाचित्ति समुदाहरे॥
२३६.
वेय्यावच्चं गिहीनं तु, द्वेव होन्ति करोन्तिया।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, कते पाचित्तियं सिया॥
२३७.
पञ्चमे पन एकाव, पाचित्ति परिदीपिता।
पयोगे दुक्कटं छट्ठे, दिन्ने पाचित्तियं सिया॥
२३८.
सत्तमं दुतियेनेव, समापत्तिपभेदतो।
अट्ठमं दुतिये वग्गे, पञ्चमेन समं मतं॥
२३९.
तिरच्छानगतं विज्जं, द्वेव होन्ति पठन्तिया।
पयोगे दुक्कटं होति, पाचित्ति हि पदे पदे॥
२४०.
दसमं नवमेनेव, समानं सब्बथा पन।
‘‘परियापुणाति, वाचेति’’, पदमत्तं विसेसकं॥
चित्तागारवग्गो पञ्चमो।
२४१.
सभिक्खुकं तमारामं, जानन्ती पन भिक्खुनी।
पविसन्ती अनापुच्छा, द्वे पनापत्तियो फुसे॥
२४२.
पठमेन च पादेन, परिक्खेपस्सतिक्कमे।
दुक्कटं पिटके वुत्तं, पाचित्ति दुतियेन तु॥
२४३.
अक्कोसति च या भिक्खुं, भिक्खुनी परिभासति।
पयोगे दुक्कटं तस्सा, पाचित्तक्कोसिते सिया॥
२४४.
या हि चण्डिकभावेन, गणं तु परिभासति।
पयोगे दुक्कटं तस्सा, परिभट्ठे पनेतरं॥
२४५.
निमन्तिता पवारिता, खादनं भोजनम्पि वा।
भुञ्जन्ती भिक्खुनी सा हि, द्वे पनापत्तियो फुसे॥
२४६.
‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति यं किञ्चि, पटिग्गण्हाति दुक्कटम्।
अज्झोहारपयोगेसु, पाचित्ति परिदीपये॥
२४७.
कुलं तु मच्छरायन्ती, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, सेसा मच्छरिते सिया॥
२४८.
अभिक्खुके पनावासे, भवे वस्सं वसन्तिया।
दुक्कटं पुब्बकिच्चेसु, पाचित्ति अरुणुग्गमे॥
२४९.
भिक्खुनी उभतोसङ्घे, वस्संवुट्ठा तु तीहिपि।
ठानेहि अप्पवारेन्ती, एकं पाचित्तियं फुसे॥
२५०.
ओवादत्थाय वा भिक्खुं, संवासत्थाय वा तथा।
न गच्छति सचे तस्सा, एकं पाचित्तियं सिया॥
२५१.
ओवादम्पि न याचन्ती, न गच्छन्ती उपोसथम्।
एकं पाचित्तियापत्ति-मापज्जति, न संसयो॥
२५२.
अपुच्छित्वाव सङ्घं वा, भेदापेति पसाखजम्।
पयोगे दुक्कटं, भिन्ने, पाचित्ति परियापुता॥
आरामवग्गो छट्ठो।
२५३.
गब्भिनिं वुट्ठपेन्ती हि, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं, वुट्ठा-पिते पाचित्तियं सिया॥
२५४.
दुतियं ततियञ्चेव, चतुत्थं पञ्चमम्पि च।
छट्ठञ्च सत्तमञ्चेव, पठमेन समं मतं॥
२५५.
भिक्खुनी वुट्ठपेत्वान, भिक्खुनिं सहजीविनिम्।
द्वेवस्सं नानुग्गण्हन्ती, एकं पाचित्तियं फुसे॥
२५६.
नवमं दसमञ्चेव, अट्ठमेन समं मतम्।
द्वीसु आपत्तिभेदस्मिं, नानत्तं नत्थि किञ्चिपि॥
गब्भिनीवग्गो सत्तमो।
२५७.
कुमारीभूतवग्गस्स, आदितो पन पञ्चपि।
समाना गब्भिनीवग्गे, पठमेनेव सब्बसो॥
२५८.
‘‘अलं वुट्ठापितेना’’ति, वुच्चमाना हि खीयति।
पयोगे दुक्कटं, पच्छा, होति पाचित्ति खीयिते॥
२५९.
सत्तमे अट्ठमे चेव, एकं पाचित्तियं मतम्।
आदिनाव समानानि, नवमादीनि पञ्चपि॥
कुमारीभूतवग्गो अट्ठमो।
२६०.
आपत्तियो फुसे द्वेपि, धारेन्ती छत्तुपाहनम्।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, होति पाचित्ति धारिते॥
२६१.
यानेन पन यायन्ती, द्वे किरापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं होति, पाचित्ति यदि यायिते॥
२६२.
धारेन्तिया तु सङ्घाणिं, पयोगे दुक्कटं सिया।
धारिते पन पाचित्ति, चतुत्थेपि अयं नयो॥
२६३.
न्हायन्ती गन्धवण्णेन, पयोगे दुक्कटं फुसे।
न्हानस्स परियोसाने, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२६४.
छट्ठम्पि पञ्चमेनेव, समानं सब्बथा पन।
सत्तमे अट्ठमे चेव, नवमे दसमेपि च॥
२६५.
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्तुम्मद्दिते सिया।
आपत्तीनं विभागस्मिं, नत्थि काचि विसेसता॥
२६६.
अनापुच्छा तु भिक्खुस्स, पुरतो या निसीदति।
पयोगे दुक्कटं तस्सा, पाचित्ति तु निसीदिते॥
२६७.
अनोकासकतं भिक्खुं, पञ्हं पुच्छन्तिया पन।
पयोगे दुक्कटं होति, वुत्ता पाचित्ति पुच्छिते॥
२६८.
संकच्चिकं विना गामं, पदसा पविसन्तिया।
पठमेनेव आराम-वग्गस्स सदिसं वदे॥
छत्तुपाहनवग्गो नवमो।
पाचित्तियकथा।
२६९.
अट्ठसु दुविधापत्ति, पाटिदेसनियेसुपि।
विञ्ञापेत्वा सचे सप्पिं, ‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति गण्हति॥
२७०.
ततो भिक्खुनिया तस्सा, होति आपत्ति दुक्कटम्।
अज्झोहारेसु सब्बेसु, पाटिदेसनियं सिया॥
पाटिदेसनीयकथा।
२७१.
इमं विदित्वा परमं पनुत्तरम्।
निरुत्तरं अत्थवसेन भिक्खु।
सुखेन पञ्ञत्तमहासमुद्दम्।
दुरुत्तरं उत्तरतेव धीरो॥
२७२.
यस्मा तस्मा अस्मिं योगम्।
उस्मायुत्तो युत्तो कातुम्।
सत्तो सत्तो कङ्खच्छेदे।
सत्थे सत्थे निच्चं निच्चं॥
भिक्खुनीविभङ्गो निट्ठितो।

चतुविपत्तिकथा

२७३.
कति आपत्तियो सील-विपत्तिपच्चया पन।
चतस्सोव सियुं सील-विपत्तिपच्चया पन॥
२७४.
जानं पाराजिकं धम्मं, सचे छादेति भिक्खुनी।
चुता, थुल्लच्चयं होति, सचे वेमतिका सिया॥
२७५.
पाचित्ति भिक्खु सङ्घादि-सेसं छादेति चे पन।
अत्तनो पन दुट्ठुल्लं, छादेन्तो दुक्कटं फुसे॥
२७६.
आपत्तियो कताचार-विपत्तिपच्चया पन।
एकायेव सियाचार-विपत्तिपच्चया पन॥
२७७.
पटिच्छादेति आचार-विपत्तिं पन भिक्खु चे।
एकमेवस्स भिक्खुस्स, होति आपत्ति दुक्कटं॥
२७८.
कति आपत्तियो दिट्ठि-विपत्तिपच्चया पन?
द्वे पनापत्तियो दिट्ठि-विपत्तिपच्चया सियुं॥
२७९.
अच्चजं पापिकं दिट्ठिं, ञत्तिया दुक्कटं फुसे।
कम्मवाचाय ओसाने, पाचित्ति परियापुता॥
२८०.
आपत्तियो कताजीव-विपत्तिपच्चया पन?
छळेवापज्जताजीव-विपत्तिपच्चया पन॥
२८१.
आजीवहेतु पापिच्छो, असन्तं पन अत्तनि।
मनुस्सुत्तरिधम्मं तु, वदं पाराजिकं फुसे॥
२८२.
सञ्चरित्तं समापन्नो, होति सङ्घादिसेसता।
परियायवचने ञाते, तस्स थुल्लच्चयं सिया॥
२८३.
पणीतभोजनं वत्वा, पाचित्ति परिभुञ्जतो।
भिक्खुनी तु सचे होति, पाटिदेसनियं सिया॥
२८४.
आजीवहेतु सूपं वा, ओदनं वा पनत्तनो।
अत्थाय विञ्ञापेत्वान, दुक्कटं परिभुञ्जतो॥
चतुविपत्तिकथा।

अधिकरणपच्चयकथा

२८५.
विवादाधिकरणम्हा, कति आपत्तियो सियुं?
विवादाधिकरणम्हा, द्वे पनापत्तियो सियुं॥
२८६.
पाचित्ति उपसम्पन्नं, होति ओमसतो पन।
भिक्खुस्सानुपसम्पन्नं, ओमसन्तस्स दुक्कटं॥
२८७.
अनुवादाधिकरण-पच्चयापत्तियो कति?
अनुवादाधिकरण-पच्चया तिविधा सियुं॥
२८८.
अनुद्धंसेति चे भिक्खुं, अमूलन्तिमवत्थुना।
सङ्घादिसेसमापत्ति-मापज्जति, न संसयो॥
२८९.
तथा सङ्घादिसेसेन, अनुद्धंसेति चे पन।
पाचित्ति, दुक्कटं वुत्तं, तथाचारविपत्तिया॥
२९०.
आपत्तिपच्चया वुत्ता, कति आपत्तियो पन?
आपत्तिपच्चया वुत्ता, चतस्सोव महेसिना॥
२९१.
जानं पाराजिकं धम्मं, सचे छादेति भिक्खुनी।
चुता, थुल्लच्चयं होति, सचे वेमतिका सिया॥
२९२.
पाचित्ति भिक्खु सङ्घादि-सेसं छादेति चे पन।
तथाचारविपत्तिं तु, सचे छादेति दुक्कटं॥
२९३.
आपत्तियो हि किच्चाधि-करणपच्चया कति?
पञ्चेव होन्ति किच्चाधि-करणपच्चया पन॥
२९४.
समनुभासनायेव, ञत्तिया दुक्कटं फुसे।
समणी अच्चजन्तीव, उक्खित्तस्सानुवत्तिका॥
२९५.
थुल्लच्चयं द्वयं द्वीहि, कम्मवाचाहि सा फुसे।
कम्मवाचाय ओसाने, तस्सा पाराजिकं सिया॥
२९६.
समनुभासनायेव, भेदकस्सानुवत्तिका।
न परिच्चजति तं लद्धिं, होति सङ्घादिसेसता॥
२९७.
समनुभासनायेव, पापिकाय च दिट्ठिया।
यावततियकं तस्सा, पाचित्तच्चजतोपि च॥
अधिकरणपच्चयकथा।

खन्धकपुच्छाकथा

२९८.
खन्धकेसुपि आपत्ति-पभेदं आगतं पन।
पाटवत्थाय भिक्खूनं, पवक्खामि निबोधथ॥
२९९.
खन्धके पठमे ताव, कति आपत्तियो सियुं?
खन्धके पठमे ताव, द्वे पनापत्तियो सियुं॥
३००.
ऊनवीसतिवस्सं तु, करोतो उपसम्पदम्।
होति पाचित्तियं तस्स, सेसेसु पन दुक्कटं॥
३०१.
कति आपत्तियो होन्ति।
खन्धके तु उपोसथे?
तिस्सो आपत्तियो होन्ति।
खन्धके तु उपोसथे॥
३०२.
‘‘नस्सन्तेते विनस्सन्तु’’, इति भेदपुरक्खका।
उपोसथस्स करणे, थुल्लच्चयमुदीरितं॥
३०३.
उक्खित्तकेन सद्धिं तु, करोन्तस्स उपोसथम्।
होति पाचित्तियं तस्स, सेसेसु पन दुक्कटं॥
३०४.
कति आपत्तियो वुत्ता, वद वस्सूपनायिके?
एकाव दुक्कटापत्ति, वुत्ता वस्सूपनायिके॥
३०५.
कति आपत्तियो वुत्ता, खन्धके तु पवारणे?
तिस्सो आपत्तियो वुत्ता, उपोसथसमा मता॥
३०६.
कति आपत्तियो वुत्ता, चम्मे? तिस्सोव दीपिता।
मारेन्तानं तु पाचित्ति, गहेत्वा वच्छतरिं पन॥
३०७.
अङ्गजातं छुपन्तस्स, रत्तेन पन चेतसा।
तस्स थुल्लच्चयं वुत्तं, सेसेसु पन दुक्कटं॥
३०८.
कति आपत्तियो वुत्ता, भेसज्जक्खन्धके पन?
तिस्सो आपत्तियो वुत्ता, भेसज्जक्खन्धके पन॥
३०९.
समन्ता द्वङ्गुले तत्थ, थुल्लच्चयमुदीरितम्।
भोज्जयागूसु पाचित्ति, सेसेसु पन दुक्कटं॥
३१०.
कथिने नत्थि आपत्ति, पञ्ञत्तं केवलं पन।
कति चीवरसंयुत्ते, वुत्ता आपत्तियो पन?
३११.
तिस्सो चीवरसंयुत्ते, वुत्ता आपत्तियो पन।
कुसवाकमये चीरे, थुल्लच्चयमुदीरितं॥
३१२.
सनिस्सग्गाव पाचित्ति, अतिरेके तु चीवरे।
सेसेसु दुक्कटं वुत्तं, बुद्धेनादिच्चबन्धुना॥
३१३.
चम्पेय्यके च कोसम्बे, कम्मस्मिं पारिवासिके।
तथा समुच्चये एका, दुक्कटापत्ति दीपिता॥
३१४.
कति आपत्तियो वुत्ता, समथक्खन्धके पन?
द्वेयेवापत्तियो वुत्ता, समथक्खन्धके पन॥
३१५.
छन्दस्स दायको भिक्खु, पाचित्ति यदि खीयति।
सेसेसु पन सब्बत्थ, दुक्कटं समुदाहटं॥
३१६.
कति खुद्दकवत्थुस्मिं, वुत्ता आपत्तियो पन?
तिस्सो खुद्दकवत्थुस्मिं, वुत्ता आपत्तियो पन॥
३१७.
अत्तनो अङ्गजातं तु, छिन्दं थुल्लच्चयं फुसे।
रोमन्थे होति पाचित्ति, सेसे आपत्ति दुक्कटं॥
३१८.
तथा सेनासनस्मिं तु, तिस्सो आपत्तियो सियुम्।
विस्सज्जने च गरुनो, थुल्लच्चयमुदीरितं॥
३१९.
निक्कड्ढने च पाचित्ति, सङ्घिकम्हा विहारतो।
सेसेसु पन सब्बत्थ, दुक्कटं समुदाहटं॥
३२०.
कति आपत्तियो सङ्घ-भेदे वुत्ता महेसिना?
द्वे पनापत्तियो सङ्घ-भेदे वुत्ता महेसिना॥
३२१.
भेदानुवत्तकानं तु, थुल्लच्चयमुदीरितम्।
गणभोगे तु भिक्खूनं, पाचित्ति परिदीपिता॥
३२२.
खन्धके वत्तसंयुत्ते, कति आपत्तियो मता?
खन्धके वत्तसंयुत्ते, दुक्कटापत्तियेव सा॥
३२३.
ठपने पातिमोक्खस्स, तथा एकाव दीपिता।
भिक्खुनिक्खन्धके चापि, कति आपत्तियो मता?
३२४.
भिक्खुनिक्खन्धके चापि, द्वे पनापत्तियो मता।
अपवारणाय पाचित्ति, सेसेसु पन दुक्कटं॥
खन्धकपुच्छाकथा निट्ठिता।

समुट्ठानसीसकथा

३२५.
विभङ्गेसु पन द्वीसु, पञ्ञत्तानि महेसिना।
यानि पाराजिकादीनि, उद्दिसन्ति उपोसथे॥
३२६.
तेसं दानि पवक्खामि, समुट्ठानमितो परम्।
पाटवत्थाय भिक्खूनं, तं सुणाथ समाहिता॥
३२७.
कायो च वाचापि च कायवाचा।
तानेव चित्तेन युतानि तीणि।
एकङ्गिकं द्वङ्गितिवङ्गिकन्ति।
छधा समुट्ठानविधिं वदन्ति॥
३२८.
तेसु एकेन वा द्वीहि, तीहि वाथ चतूहि वा।
छहि वापत्तियो नाना-समुट्ठानेहि जायरे॥
३२९.
तत्थ पञ्चसमुट्ठाना, का चापत्ति न विज्जति।
होति एकसमुट्ठाना, पच्छिमेहेव तीहिपि॥
३३०.
तथेव द्विसमुट्ठाना, कायतो कायचित्ततो।
वाचतो वाचचित्तम्हा, ततियच्छट्ठतोपि च॥
३३१.
चतुत्थच्छट्ठतो चेव, पञ्चमच्छट्ठतोपि च।
जायते पञ्चधावेसा, समुट्ठाति न अञ्ञतो॥
३३२.
तिसमुट्ठानिका नाम, पठमेहि च तीहिपि।
पच्छिमेहि च तीहेव, समुट्ठाति न अञ्ञतो॥
३३३.
पठमा ततिया चेव, चतुत्थच्छट्ठतोपि च।
दुतिया ततिया चेव, पञ्चमच्छट्ठतोपि च॥
३३४.
द्विधा चतुसमुट्ठाना, जायते न पनञ्ञतो।
एकधा छसमुट्ठाना, समुट्ठाति छहेव हि॥
आह च –
३३५.
‘‘तिधा एकसमुट्ठाना, पञ्चधा द्विसमुट्ठिता।
द्विधा तिचतुरो ठाना, एकधा छसमुट्ठिता’’॥
३३६.
तेरसेव च नामानि, समुट्ठानविसेसतो।
लभन्तापत्तियो सब्बा, तानि वक्खामितो परं॥
३३७.
पठमन्तिमवत्थुञ्च, दुतियं सञ्चरित्तकम्।
समनुभासनञ्चेव, कथिनेळकलोमकं॥
३३८.
पदसोधम्ममद्धानं, थेय्यसत्थञ्च देसना।
भूतारोचनकञ्चेव, चोरिवुट्ठापनम्पि च॥
३३९.
अननुञ्ञातकञ्चाति, सीसानेतानि तेरस।
तेरसेते समुट्ठान-नया विञ्ञूहि चिन्तिता॥
३४०.
तत्थ या तु चतुत्थेन, समुट्ठानेन जायते।
आदिपाराजिकुट्ठाना, अयन्ति परिदीपिता॥
३४१.
सचित्तकेहि तीहेव, समुट्ठानेहि या पन।
जायते सा पनुद्दिट्ठा, अदिन्नादानपुब्बका॥
३४२.
समुट्ठानेहि यापत्ति, जातुच्छहिपि जायते।
सञ्चरित्तसमुट्ठाना, नामाति परिदीपिता॥
३४३.
छट्ठेनेव समुट्ठाति, समुट्ठानेन या पन।
समुट्ठानवसेनायं, वुत्ता समनुभासना॥
३४४.
ततियच्छट्ठतोयेव, समुट्ठाति हि या पन।
समुट्ठानवसेनायं, कथिनुपपदा मता॥
३४५.
जायते या पनापत्ति, कायतो कायचित्ततो।
अयमेळकलोमादि-समुट्ठानाति दीपिता॥
३४६.
जायते या पनापत्ति, वाचतो वाचचित्ततो।
अयं तु पदसोधम्म-समुट्ठानाति वुच्चति॥
३४७.
कायतो कायवाचम्हा, चतुत्थच्छट्ठतोपि च।
जायते सा पनद्धान-समुट्ठानाति सूचिता॥
३४८.
चतुत्थच्छट्ठतोयेव, समुट्ठाति हि या पन।
थेय्यसत्थसमुट्ठाना, अयन्ति परिदीपिता॥
३४९.
पञ्चमेनेव या चेत्थ, समुट्ठानेन जायते।
समुट्ठानवसेनायं, धम्मदेसनसञ्ञिता॥
३५०.
अचित्तकेहि तीहेव, समुट्ठानेहि या सिया।
समुट्ठानवसेनायं, भूतारोचनपुब्बका॥
३५१.
पञ्चमच्छट्ठतोयेव, या समुट्ठानतो सिया।
अयं तु पठिता चोरि-वुट्ठापनसमुट्ठिता॥
३५२.
दुतिया ततियम्हा च, पञ्चमच्छट्ठतोपि या।
जायते अननुञ्ञात-समुट्ठाना अयं सिया॥
३५३.
पठमं दुतियं तत्थ, चतुत्थं नवमम्पि च।
दसमं द्वादसमञ्चाति, समुट्ठानं सचित्तकं॥
३५४.
एकेकस्मिं समुट्ठाने, सदिसा इध दिस्सरे।
सुक्कञ्च कायसंसग्गो, पठमानियतोपि च॥
३५५.
पुब्बुपपरिपाको च, रहो भिक्खुनिया सह।
सभोजने, रहो द्वे च, अङ्गुली, उदके हसं॥
३५६.
पहारे, उग्गिरे चेव, तेपञ्ञासा च सेखिया।
अधक्खकुब्भजाणुञ्च, गामन्तरमवस्सुता॥
३५७.
तलमट्ठुदसुद्धि च, वस्संवुट्ठा तथेव च।
ओवादाय न गच्छन्ती, नानुबन्धे पवत्तिनिं॥
३५८.
पञ्चसत्तति निद्दिट्ठा, कायचित्तसमुट्ठिता।
इमे एकसमुट्ठाना, मेथुनेन समा मता॥
पठमपाराजिकसमुट्ठानम्।
३५९.
विग्गहं, उत्तरिञ्चेव, दुट्ठुल्लं, अत्तकामता।
दुट्ठदोसा दुवे चेव, दुतियानियतोपि च॥
३६०.
अच्छिन्दनञ्च परिणामो, मुसा, ओमसपेसुणा।
दुट्ठुल्लारोचनञ्चेव, पथवीखणनम्पि च॥
३६१.
भूतगामञ्ञवादो च, उज्झापनकमेव च।
निक्कड्ढो, सिञ्चनञ्चेव, तथा आमिसहेतु च॥
३६२.
भुत्ताविं, एहनादरिं, भिंसापनकमेव च।
अपनिधेय्य, सञ्चिच्च, पाणं, सप्पाणकम्पि च॥
३६३.
उक्कोटनं =०० तथा ऊनो, संवासो, नासनेन च।
सहधम्मिकं, विलेखाय, मोहनामूलकेन च॥
३६४.
कुक्कुच्चं, खीयनं दत्वा, परिणामेय्य पुग्गले।
किं ते, अकालं, अच्छिन्दे, दुग्गहा, निरयेन वा॥
३६५.
गणस्स च विभङ्गञ्च, दुब्बलासा तथेव च।
धम्मिकं कथिनुद्धारं, सञ्चिच्चाफासुमेव च॥
३६६.
सयं उपस्सयं दत्वा, अक्कोसेय्य च चण्डिका।
कुलमच्छरिनी अस्स, गब्भिनिं वुट्ठपेय्य च॥
३६७.
पायन्तिं, द्वे च वस्सानि, सङ्घेनासम्मतम्पि च।
तिस्सो गिहिगता वुत्ता, तिस्सोयेव कुमारिका॥
३६८.
ऊनद्वादसवस्सा द्वे, तथालं ताव तेति च।
सोकावस्सा तथा पारि-वासिकच्छन्ददानतो॥
३६९.
अनुवस्सं दुवे चाति, सिक्खा एकूनसत्तति।
अदिन्नादानतुल्यत्ता, तिसमुट्ठानिका कता॥
दुतियपाराजिकसमुट्ठानम्।
३७०.
सञ्चरिकुटिमहल्लकं, धोवापनञ्च पटिग्गहो।
चीवरस्स च विञ्ञत्ति, गहणञ्च तदुत्तरिं॥
३७१.
उपक्खटद्वयञ्चेव, तथा दूतेन चीवरम्।
कोसियं, सुद्धकाळानं, द्वेभागादानमेव च॥
३७२.
छब्बस्सानि, पुराणस्स, लोमधोवापनम्पि च।
रूपियस्स पटिग्गाहो, उभो नानप्पकारका॥
३७३.
ऊनबन्धनपत्तो च, वस्ससाटिकसुत्तकम्।
विकप्पापज्जनं, याव, द्वार, दानञ्च सिब्बनं॥
३७४.
पूवेहि, पच्चयो जोतिं, रतनं, सूचि, मञ्चकम्।
तूलं, निसीदनं, कण्डु, वस्सिका, सुगतस्स च॥
३७५.
अञ्ञविञ्ञत्तिसिक्खा च, अञ्ञचेतापनम्पि च।
सङ्घिकेन दुवे वुत्ता, द्वे महाजनिकेन च॥
३७६.
तथा =०१ पुग्गलिकेनेकं, गरुपावुरणं लहुम्।
द्वे विघासोदसाटी च, तथा समणचीवरं॥
३७७.
इति एकूनपण्णास, धम्मा दुक्खन्तदस्सिना।
छसमुट्ठानिका एते, सञ्चरित्तसमा कता॥
सञ्चरित्तसमुट्ठानम्।
३७८.
सङ्घभेदो च भेदानु-वत्तदुब्बचदूसका।
दुट्ठुल्लच्छादनं, दिट्ठि, छन्द, उज्जग्घिका दुवे॥
३७९.
अप्पसद्दा दुवे वुत्ता, तथा न ब्याहरेति च।
छमा, नीचासने, ठानं, पच्छतो, उप्पथेन च॥
३८०.
वज्जच्छादानुवत्ता च, गहणं, ओसारेय्य च।
पच्चक्खामीति सिक्खा च, तथा किस्मिञ्चिदेव च॥
३८१.
संसट्ठा द्वे, वधित्वा च, विसिब्बेत्वा च दुक्खितम्।
पुनदेव च संसट्ठा, नेव वूपसमेय्य च॥
३८२.
जानं सभिक्खुकारामं, तथेव न पवारये।
तथा अन्वद्धमासञ्च, सहजीविनियो दुवे॥
३८३.
सचे मे चीवरं अय्ये, अनुबन्धिस्ससीति च।
सत्ततिंस इमे धम्मा, सम्बुद्धेन पकासिता॥
३८४.
सब्बे एते समुट्ठाना, कायवाचादितो सियुम्।
समासमसमेनेव, कता समनुभासना॥
समनुभासनसमुट्ठानम्।
३८५.
कथिनानि च तीणादि, पत्तो, भेसज्जमेव च।
अच्चेकम्पि च सासङ्कं, पक्कमन्तद्वयम्पि च॥
३८६.
तथा उपस्सयं गन्त्वा, भोजनञ्च परम्परम्।
अनतिरित्तं सभत्तो, विकप्पेत्वा तथेव च॥
३८७.
रञ्ञो, विकाले, वोसासा-रञ्ञकुस्सयवादिका।
पत्तसन्निचयञ्चेव, पुरे, पच्छा, विकालके॥
३८८.
पञ्चाहिकं =०२, सङ्कमनिं, तथा आवसथद्वयम्।
पसाखे, आसने चाति, एकूनतिंसिमे पन॥
३८९.
द्विसमुट्ठानिका धम्मा, निद्दिट्ठा कायवाचतो।
कायवाचादितो चेव, सब्बे कथिनसम्भवा॥
कथिनसमुट्ठानम्।
३९०.
द्वे सेय्याहच्चपादो च, पिण्डञ्च गणभोजनम्।
विकाले, सन्निधिञ्चेव, दन्तपोनमचेलकं॥
३९१.
उय्युत्तञ्च वसुय्योधिं, सुरा, ओरेन न्हायनम्।
दुब्बण्णकरणञ्चेव, पाटिदेसनियद्वयं॥
३९२.
लसुणं, उपतिट्ठेय्य, नच्चदस्सनमेव च।
नग्गं, अत्थरणं, मञ्चे, अन्तोरट्ठे, तथा बहि॥
३९३.
अन्तोवस्समगारञ्च, आसन्दिं, सुत्तकन्तनम्।
वेय्यावच्चं, सहत्था च, आवासे च अभिक्खुके॥
३९४.
छत्तं, यानञ्च सङ्घाणिं, अलङ्कारं, गन्धवासितम्।
भिक्खुनी, सिक्खमाना च, सामणेरी, गिहीनिया॥
३९५.
तथा संकच्चिका चाति, तेचत्तालीसिमे पन।
सब्बे एळकलोमेन, द्विसमुट्ठानिका समा॥
एळकलोमसमुट्ठानम्।
३९६.
अञ्ञत्रासम्मतो चेव, तथा अत्थङ्गतेन च।
तिरच्छानविज्जा द्वे वुत्ता, अनोकासकतम्पि च॥
३९७.
सब्बे छ पनिमे धम्मा, वाचतो वाचचित्ततो।
द्विसमुट्ठानिका होन्ति, पदसोधम्मतुल्यता॥
पदसोधम्मसमुट्ठानम्।
३९८.
एकं नावं, पणीतञ्च, संविधानञ्च संहरे।
धञ्ञं, निमन्तिता चेव, पाटिदेसनियट्ठकं॥
३९९.
एता =०३ चतुसमुट्ठाना, सिक्खा चुद्दस होन्ति हि।
पञ्ञत्ता बुद्धसेट्ठेन, अद्धानेन समा मता॥
अद्धानसमुट्ठानम्।
४००.
सुतिं, सूपादिविञ्ञत्तिं, अन्धकारे तथेव च।
पटिच्छन्ने च ओकासे, ब्यूहे चाति इमे छपि॥
४०१.
सब्बे तु द्विसमुट्ठाना, चतुत्थच्छट्ठतो सियुम्।
थेय्यसत्थसमुट्ठाना, देसितादिच्चबन्धुना॥
थेय्यसत्थसमुट्ठानम्।
४०२.
छत्त, दण्डकरस्सापि, सत्थावुधकरस्सपि।
पादुकूपाहना, यानं, सेय्या, पल्लत्थिकाय च॥
४०३.
वेठितोगुण्ठितो चाति, एकादस निदस्सिता।
सब्बे एकसमुट्ठाना, धम्मदेसनसञ्ञिता॥
धम्मदेसनसमुट्ठानम्।
४०४.
भूतारोचनकञ्चेव , चोरिवुट्ठापनम्पि च।
अननुञ्ञातमत्तञ्हि, असम्भिन्नमिदं तयं॥
समुट्ठानसीसकथा निट्ठिता।

एकुत्तरनयकथा

४०५.
कति आपत्तियो होन्ति, समुट्ठानेन आदिना?
पञ्च आपत्तियो होन्ति, कुटिं संयाचिकाय तु॥
४०६.
करोतो पन तिस्सोव, पयोगे दुक्कटादयो।
विकाले पन पाचित्ति, तथा अञ्ञातिहत्थतो॥
४०७.
गहेत्वा भुञ्जतो वुत्तं, पाटिदेसनियम्पि च।
पञ्चिमापत्तियो होन्ति, समुट्ठानेन आदिना॥
४०८.
कति =०४ आपत्तियो होन्ति, दुतियेन तुवं भण?
आपत्तियो चतस्सोव, होन्तीति परिदीपये॥
४०९.
‘‘कुटिं मम करोथा’’ति, समादिसति भिक्खु चे।
करोन्ति चे कुटिं तस्स, विपन्नं सब्बथा पन॥
४१०.
तिस्सो पुरिमनिद्दिट्ठा, पयोगे दुक्कटादयो।
पदसोधम्ममूलेन, चतस्सोव भवन्तिमा॥
४११.
ततियेन कति जायन्ति, समुट्ठानेन मे भण?
ततियेन तुवं ब्रूमि, पञ्चधापत्तियो सियुं॥
४१२.
भिक्खु संविदहित्वान।
करोति च कुटिं सचे।
तिस्सो आपत्तियो होन्ति।
पयोगे दुक्कटादयो॥
४१३.
पणीतभोजनं वत्वा, होति पाचित्ति भुञ्जतो।
भिक्खुनिं न निवारेत्वा, पाटिदेसनियं सिया॥
४१४.
सियुं कति चतुत्थेन, समुट्ठानेन मे भण?
छळेवापत्तियो होन्ति, मेथुनं यदि सेवति॥
४१५.
होति पाराजिकं तस्स, कुटिं संयाचिकाय तु।
करोतो पन तिस्सोव, पयोगे दुक्कटादयो॥
४१६.
विकाले पन पाचित्ति, तथा अञ्ञातिहत्थतो।
गहेत्वा भुञ्जतो वुत्तं, पाटिदेसनियम्पि च॥
४१७.
कति आपत्तियो होन्ति, पञ्चमेन? छ होन्ति हि।
मनुस्सुत्तरिधम्मं तु, वदं पाराजिकं फुसे॥
४१८.
‘‘कुटिं मम करोथा’’ति।
समादिसति भिक्खु चे।
करोन्ति चे कुटिं तिस्सो।
होन्ति ता दुक्कटादयो॥
४१९.
वाचेति पदसो धम्मं, होति पाचित्ति भिक्खुनो।
दवकम्यता वदन्तस्स, तस्स दुब्भासितं सिया॥
४२०.
समुट्ठानेन =०५ छट्ठेन, कति आपत्तियो सियुं?
छ च संविदहित्वान, भण्डं हरति चे चुतो॥
४२१.
‘‘कुटिं मम करोथा’’ति।
समादिसति भिक्खु चे।
करोन्ति चे कुटिं तिस्सो।
होन्ति ता दुक्कटादयो॥
४२२.
पणीतभोजनं वत्वा, होति पाचित्ति भुञ्जतो।
भिक्खुनिं न निवारेत्वा, पाटिदेसनियं सिया॥
४२३.
इध यो विमतूपरमं परमम्।
इममुत्तरमुत्तरति।
विनयं सुनयं सुनयेन युतो।
स च दुत्तरमुत्तरमुत्तरति॥
आपत्तिसमुट्ठानकथा।
४२४.
इतो परं पवक्खामि, परमेकुत्तरं नयम्।
अविक्खित्तेन चित्तेन, तं सुणाथ समाहिता॥
४२५.
के आपत्तिकरा धम्मा, अनापत्तिकरापि के?
का पनापत्तियो नाम, लहुका गरुकापि का?
४२६.
सावसेसा च कापत्ति, का नामानवसेसका?
दुट्ठुल्ला नाम कापत्ति, अदुट्ठुल्लापि नाम का?
४२७.
नियता नाम कापत्ति, का पनानियतापि च?
देसनागामिनी का च, का चादेसनगामिनी?
४२८.
समुट्ठानानि आपत्ति-करा धम्माति दीपिता।
अनापत्तिकरा धम्मा, समथा सत्त दस्सिता॥
४२९.
पाराजिकादयो सत्त-विधा आपत्तियो सियुम्।
लहुका तत्थ पञ्चेव, होन्ति थुल्लच्चयादयो॥
४३०.
पाराजिकं ठपेत्वान, सावसेसावसेसका।
एका पाराजिकापत्ति, मता अनवसेसका॥
४३१.
‘‘दुट्ठुल्ला’’ति =०६ च निद्दिट्ठा, दुविधापत्तिआदितो।
सेसा पञ्चविधापत्ति, ‘‘अदुट्ठुल्ला’’ति दीपिता॥
४३२.
पञ्चानन्तरियसंयुत्ता, नियतानियतेतरा।
देसनागामिनी पञ्च, द्वे पनादेसगामिका॥
एकककथा।
४३३.
अभब्बापत्तिको को च, भब्बापत्तिकपुग्गलो?
उपसम्पदकम्मं तु, सत्थुना कस्स वारितं?
४३४.
आपत्तिमापज्जितुं द्वेव लोके।
बुद्धा च पच्चेकबुद्धा अभब्बा।
आपत्तिमापज्जितुं द्वेव लोके।
भिक्खू च भब्बा अथ भिक्खुनी च॥
४३५.
अद्धविहीनो अङ्गविहीनो।
वत्थुविपन्नो दुक्कटकारी।
नो परिपुण्णो याचति यो नो।
तस्सुपसम्पदा पटिसिद्धा॥
४३६.
अत्थापत्ति हवे लद्ध-समापत्तिस्स भिक्खुनो।
अत्थापत्ति हि नो लद्ध-समापत्तिस्स दीपिता॥
४३७.
भूतस्सारोचनं लद्ध-समापत्तिस्स निद्दिसे।
अभूतारोचनापत्ति, असमापत्तिलाभिनो॥
४३८.
अत्थि सद्धम्मसंयुत्ता, असद्धम्मयुतापि च।
सपरिक्खारसंयुत्ता, परसन्तकसंयुता॥
४३९.
पदसोधम्ममूलादी, सद्धम्मपटिसंयुता।
दुट्ठुल्लवाचसंयुत्ता, असद्धम्मयुता सिया॥
४४०.
अतिरेकदसाहं तु, ठपने चीवरादिनो।
अनिस्सज्जित्वा भोगे च, सपरिक्खारसंयुता॥
४४१.
सङ्घस्स मञ्चपीठादिं, अज्झोकासत्थरेपि च।
अनापुच्छाव गमने, परसन्तकसंयुता॥
४४२.
कथञ्हि =०७ भणतो सच्चं, गरुकं होति भिक्खुनो?
कथं मुसा भणन्तस्स, लहुकापत्ति जायते?
४४३.
‘‘सिखरणी’’ति सच्चं तु, भणतो गरुकं सिया।
सम्पजानमुसावादे, पाचित्ति लहुका भवे॥
४४४.
कथं मुसा भणन्तस्स, गरुकं होति भिक्खुनो?
कथञ्च भणतो सच्चं, आपत्ति लहुका सिया?
४४५.
अभूतारोचने तस्स, गरुकापत्ति दीपिता।
भूतस्सारोचने सच्चं, वदतो लहुका सिया॥
४४६.
कथं भूमिगतो दोसं, न वेहासगतो फुसे?
कथं वेहासगो दोसं, न च भूमिगतो फुसे?
४४७.
सङ्घकम्मं विकोपेतुं, हत्थपासं जहं फुसे।
केसमत्तम्पि आकासे, तिट्ठतो नत्थि वज्जता॥
४४८.
आहच्चपादकं मञ्चं, वेहासकुटियूपरि।
पीठं वाभिनिसीदन्तो, आपज्जति न भूमितो॥
४४९.
पविसन्तो कथं भिक्खु, आपज्जति, न निक्खमं?
पविसन्तो कथं भिक्खु, पविसन्तो न चेव तं?
४५०.
सछत्तुपाहनो वत्त-मपूरेत्वान केवलम्।
पविसन्तो पनापत्तिं, आपज्जति, न निक्खमं॥
४५१.
गमिको गमिकवत्तानि, अपूरेत्वान निक्खमम्।
निक्खमन्तोव आपत्तिं, फुसेय्य, पविसं न च॥
४५२.
आदियन्तो पनापत्तिं, आपज्जति कथं वद?
तथेवानादियन्तोपि, आपज्जति कथं वद?
४५३.
भिक्खुनी अतिगम्भीरं, या काचुदकसुद्धिकम्।
आदियन्ती पनापत्तिं, आपज्जति, न संसयो॥
४५४.
अनादियित्वा दुब्बण्ण-करणं पन चीवरम्।
येवं अनादियन्तोव, आपज्जति हि नाम सो॥
४५५.
समादियन्तो आपत्तिं, आपज्जति कथं पन?
तथासमादियन्तोपि, आपज्जति कथं पन?
४५६.
यो =०८ हि मूगब्बतादीनि, वतानिध समादियम्।
समादियन्तो आपत्तिं, आपज्जति हि नाम सो॥
४५७.
यो हि कम्मकतो भिक्खु, वुत्तं वत्तं पनत्तनो।
तञ्चासमादियन्तोव, आपज्जति हि नाम सो॥
४५८.
करोन्तोव पनापत्तिं, कथमापज्जते नरो?
न करोन्तो कथं नाम, समणो दोसवा सिया?
४५९.
भण्डागारिककम्मञ्च, वेज्जकम्मञ्च चीवरम्।
अञ्ञातिकाय सिब्बन्तो, करं आपज्जते नरो॥
४६०.
उपज्झायस्स वत्तानि, वत्तानि इतरस्स वा।
अकरोन्तो पनापत्तिं, आपज्जति हि नाम सो॥
४६१.
देन्तो आपज्जतापत्तिं, न देन्तोपि कथं भण?
अञ्ञातिकाय यं किञ्चि, भिक्खु भिक्खुनिया पन॥
४६२.
चीवरं ददमानो हि, देन्तो आपज्जते पन।
तथन्तेवासिकादीनं, अदेन्तो चीवरादिकं॥
४६३.
अत्तसन्निस्सिता अत्थि, तथेव परनिस्सिता।
मुदुलम्बादिनो अत्ता, सेसा हि परनिस्सिता॥
४६४.
कथञ्च पटिगण्हन्तो, आपज्जति हि वज्जतं?
कथमप्पटिगण्हन्तो, आपज्जति हि वज्जतं?
४६५.
चीवरं पटिगण्हन्तो, भिक्खु अञ्ञातिहत्थतो।
ओवादञ्च न गण्हन्तो, आपज्जति हि वज्जतं॥
४६६.
कथञ्च परिभोगेन, आपज्जति तपोधनो?
कथं न परिभोगेन, आपज्जति तपोधनो?
४६७.
यो हि निस्सग्गियं वत्थुं, अच्चजित्वा निसेवति।
अयं तु परिभोगेन, आपज्जति, न संसयो॥
४६८.
अतिक्कमेन्ती सङ्घाटि-चारं पञ्चाहिकं पन।
अयं तु परिभोगेन, आपज्जति हि भिक्खुनी॥
४६९.
दिवापज्जति नो रत्तिं, रत्तिमेव च नो दिवा।
द्वारं असंवरित्वान, सेन्तो आपज्जते दिवा॥
४७०.
सगारसेय्यकं =०९ रत्तिं, आपज्जति हि नो दिवा।
अरुणुग्गे पनापत्ति, कथं न अरुणुग्गमे?
४७१.
एकछारत्तसत्ताह-दसाहादिअतिक्कमे।
फुसन्तो वुत्तमापत्तिं, आपज्जत्यरुणुग्गमे॥
४७२.
पवारेत्वान भुञ्जन्तो, फुसे न अरुणुग्गमे।
छिन्दन्तस्स सियापत्ति, कथमच्छिन्दतो सिया?
४७३.
छिन्दन्तो भूतगामञ्च, अङ्गजातञ्च अत्तनो।
पाराजिकञ्च पाचित्तिं, फुसे थुल्लच्चयम्पि च॥
४७४.
न छिन्दन्तो नखे केसे, आपज्जति हि नाम सो।
छादेन्तोपज्जतापत्तिं, नच्छादेन्तो कथं पन?
४७५.
छादेन्तो पन आपत्तिं, छादेन्तोपज्जते नरो।
आपज्जति पनच्छिन्नो, नच्छादेन्तो तिणादिना॥
४७६.
आपज्जति हि धारेन्तो, न धारेन्तो कथं पन?
धारेन्तो कुसचीरादिं, धारेन्तोपज्जते पन॥
४७७.
दिन्नं निस्सट्ठपत्तं तं, अधारेन्तोव दोसवा।
सचित्तकदुकं सञ्ञा-विमोक्खकदुकं भवे॥
दुककथा।
४७८.
अत्थापत्ति हि तिट्ठन्ते, नाथे, नो परिनिब्बुते।
निब्बुते न तु तिट्ठन्ते, अत्थापत्तुभयत्थपि॥
४७९.
रुहिरुप्पादनापत्ति, ठिते, नो परिनिब्बुते।
थेरमावुसवादेन, वदतो परिनिब्बुते॥
४८०.
आपत्तियो इमा द्वेपि, ठपेत्वा सुगते पन।
अवसेसा धरन्तेपि, भवन्ति परिनिब्बुते॥
४८१.
कालेयेव सियापत्ति, विकाले न सिया कथं?
विकाले तु सियापत्ति, न काले, उभयत्थपि?
४८२.
भुञ्जतोनतिरित्तं तु, कालस्मिं, नो विकालके।
विकालभोजनापत्ति, विकाले, तु न कालके॥
४८३.
अवसेसं =१० पनापत्तिं, आपज्जति हि सब्बदा।
सब्बं काले विकाले च, नत्थि तत्थ च संसयो॥
४८४.
रत्तिमेव पनापत्तिं, आपज्जति च नो दिवा।
दिवापज्जति नो रत्तिं, आपज्जतुभयत्थपि॥
४८५.
सहसेय्या सिया रत्तिं, द्वारासंवरमूलका।
दिवा, सेसा पनापत्ति, सिया रत्तिं दिवापि च॥
४८६.
दसवस्सो तु नो ऊन-दसवस्सो सिया कथं?
होतूनदसवस्सो, नो, दसवस्सूभयत्थपि?
४८७.
उपट्ठापेति चे बालो, परिसं दसवस्सिको।
आपत्तिं पन अब्यत्तो, आपज्जति, न संसयो॥
४८८.
तथूनदसवस्सो च, ‘‘पण्डितोह’’न्ति गण्हति।
परिसं, दसवस्सो नो, सेसमापज्जते उभो॥
४८९.
काळे आपज्जतापत्तिं, न जुण्हे जुण्हके कथम्।
आपज्जति, न काळस्मिं, आपज्जतूभयत्थपि?
४९०.
वस्सं अनुपगच्छन्तो, काळे, नो जुण्हके पन।
आपज्जतापवारेन्तो, जुण्हे, न पन काळके॥
४९१.
अवसेसं तु पञ्ञत्त-मापत्तिमविपत्तिना।
काळे चेव च जुण्हे च, आपज्जति, न संसयो॥
४९२.
वस्सूपगमनं काळे, नो जुण्हे, तु पवारणा।
जुण्हे कप्पति, नो काळे, सेसं पनुभयत्थपि॥
४९३.
अत्थापत्ति तु हेमन्ते, न होतीतरुतुद्वये।
गिम्हेयेव न सेसेसु, वस्से नो इतरद्वये॥
४९४.
दिने पाळिपदक्खाते, कत्तिके पुण्णमासिया।
ठपितं तु विकप्पेत्वा, वस्ससाटिकचीवरं॥
४९५.
आपज्जति च हेमन्ते, निवासेति च तं सचे।
पुण्णमादिवसस्मिञ्हि, कत्तिकस्स तु पच्छिमे॥
४९६.
तं अपच्चुद्धरित्वाव, हेमन्तेयेव, नेतरे।
आपज्जतीति निद्दिट्ठं, कुरुन्दट्ठकथाय तु॥
४९७.
‘‘अतिरेकमासो =११ सेसो’’ति।
परियेसन्तो च गिम्हिके।
गिम्हे आपज्जतापत्तिम्।
न त्वेवितरुतुद्वये॥
४९८.
विज्जमाने सचे नग्गो, वस्ससाटिकचीवरे।
ओवस्सापेति यो कायं, वस्से आपज्जतीध सो॥
४९९.
आपज्जति हि सङ्घोव, न गणो न च पुग्गलो।
गणोव न च सेसा हि, पुग्गलोव न चापरे॥
५००.
अधिट्ठानं करोन्तो वा, पारिसुद्धिउपोसथम्।
सङ्घो वापज्जतापत्तिं, न गणो न च पुग्गलो॥
५०१.
सुत्तुद्देसमधिट्ठानं, करोन्तो वा उपोसथम्।
गणो वापज्जतापत्तिं, न सङ्घो न च पुग्गलो॥
५०२.
सुत्तुद्देसं करोन्तो वा, एको पन उपोसथम्।
पुग्गलोपज्जतापत्तिं, न च सङ्घो गणो न च॥
५०३.
आपज्जति गिलानोव, नागिलानो कथं पन।
आपज्जतागिलानोव, नो गिलानो उभोपि च?
५०४.
भेसज्जेन पनञ्ञेन, अत्थे सति च यो पन।
विञ्ञापेति तदञ्ञं सो, आपज्जति अकल्लको॥
५०५.
न भेसज्जेन अत्थेपि, भेसज्जं विञ्ञापेति चे।
आपज्जतागिलानोव, सेसं पन उभोपि च॥
५०६.
अत्थापत्ति हि अन्तोव, न बहिद्धा, तथा बहि।
आपज्जति, न चेवन्तो, अत्थापत्तुभयत्थपि॥
५०७.
अनुपखज्ज सेय्यं तु, कप्पेन्तो पन केवलम्।
आपज्जति पनापत्तिं, अन्तोयेव च, नो बहि॥
५०८.
अज्झोकासे तु मञ्चादिं, सन्थरित्वान पक्कमम्।
बहियेव च, नो अन्तो, सेसं पनुभयत्थपि॥
५०९.
अन्तोसीमायेवापत्तिं, बहिसीमाय नेव च।
बहिसीमाय, नो अन्तो-सीमाय, उभयत्थपि॥
५१०.
सछत्तुपाहनो =१२ भिक्खु, पविसन्तो तपोधनो।
उपचारसीमोक्कन्ते, अन्तो आपज्जते पन॥
५११.
गमिको दारुभण्डादिं, पटिसामनवत्तकम्।
अपूरेत्वान गच्छन्तो, उपचारस्सतिक्कमे॥
५१२.
आपज्जति पनापत्तिं, बहिसीमाययेव सो।
सेसमापज्जते अन्तो-बहिसीमाय सब्बसो॥
तिककथा।
५१३.
सकवाचाय आपन्नो, परवाचाय सुज्झति।
परवाचाय आपन्नो, सकवाचाय सुज्झति॥
५१४.
सकवाचाय आपन्नो, सकवाचाय सुज्झति।
परवाचाय आपन्नो, परवाचाय सुज्झति॥
५१५.
वचीद्वारिकमापत्तिं , आपन्नो सकवाचतो।
तिणवत्थारकं गन्त्वा, परवाचाय सुज्झति॥
५१६.
तथा अप्पटिनिस्सग्गे, पापिकाय हि दिट्ठिया।
परस्स कम्मवाचाय, आपज्जित्वान वज्जतं॥
५१७.
देसेन्तो भिक्खुनो मूले, सकवाचाय सुज्झति।
वचीद्वारिकमापत्तिं, आपन्नो भिक्खुसन्तिके॥
५१८.
देसेत्वा तं विसुज्झन्तो, सकवाचाय सुज्झति।
सङ्घादिसेसमापत्तिं, यावततियकं पन॥
५१९.
परस्स कम्मवाचाय, आपज्जित्वा तथा पुन।
परस्स परिवासादि-कम्मवाचाय सुज्झति॥
५२०.
कायेनापज्जतापत्तिं, वाचाय च विसुज्झति।
वाचायापज्जतापत्तिं, कायेन च विसुज्झति॥
५२१.
कायेनापज्जतापत्तिं, कायेनेव विसुज्झति।
वाचायापज्जतापत्तिं, वाचायेव विसुज्झति॥
५२२.
कायद्वारिकमापत्तिं, कायेनापज्जते, पुन।
देसेन्तो तं पनापत्तिं, वाचायेव विसुज्झति॥
५२३.
वचीद्वारिकमापत्तिं =१३, आपज्जित्वान वाचतो।
तिणवत्थारकं गन्त्वा, कायेनेव विसुज्झति॥
५२४.
कायद्वारिकमापत्तिं, आपज्जित्वान कायतो।
तिणवत्थारकं गन्त्वा, कायेनेव विसुज्झति॥
५२५.
वचीद्वारिकमापत्तिं, आपज्जित्वा तपोधनो।
तमेव पन देसेन्तो, वाचायेव विसुज्झति॥
५२६.
सुत्तो आपज्जतापत्तिं, पटिबुद्धो विसुज्झति।
आपन्नो पटिबुद्धोव, सुत्तो सुज्झति सो कथं?
५२७.
सुत्तो आपज्जतापत्तिं, सुत्तोयेव विसुज्झति।
पटिबुद्धोव आपन्नो, पटिबुद्धो विसुज्झति?
५२८.
सगारसेय्यकादिं तु, सुत्तो आपज्जते नरो।
देसेन्तो पन तं ञत्वा, पटिबुद्धो विसुज्झति॥
५२९.
आपज्जित्वान जग्गन्तो, तिणवत्थारके पन।
समथे तु सयन्तोव, सुत्तो वुट्ठाति नाम सो॥
५३०.
सगारसेय्यकादिं तु, सुत्तो आपज्जते नरो।
सयन्तो तिणवत्थारे, सुत्तोयेव विसुज्झति॥
५३१.
आपज्जित्वा पनापत्तिं, जग्गन्तो पन केवलम्।
देसेन्तो पन तं पच्छा, पटिबुद्धो विसुज्झति॥
५३२.
आपज्जित्वा अचित्तोव, सचित्तोव विसुज्झति।
आपज्जित्वा सचित्तोव, अचित्तोव विसुज्झति॥
५३३.
आपज्जित्वा अचित्तोव, अचित्तोव विसुज्झति।
आपज्जित्वा सचित्तोव, सचित्तोव विसुज्झति॥
५३४.
अचित्तो, चित्तकापत्तिं, आपज्जित्वा तपोधनो।
पच्छा तं पन देसेन्तो, सचित्तोव विसुज्झति॥
५३५.
तथा सचित्तकापत्तिं, आपज्जित्वा सचित्तको।
सयन्तो तिणवत्थारे, अचित्तोव विसुज्झति॥
५३६.
एवमेवं अमिस्सेत्वा, पच्छिमं तु पदद्वयम्।
एत्थ वुत्तानुसारेन, वेदितब्बं विभाविना॥
५३७.
आपज्जति =१४ च कम्मेन, अकम्मेन विसुज्झति।
आपज्जति अकम्मेन, कम्मेनेव विसुज्झति॥
५३८.
कम्मेनापज्जतापत्तिं, कम्मेनेव विसुज्झति।
आपज्जति अकम्मेन, अकम्मेन विसुज्झति॥
५३९.
अच्चजं पापिकं दिट्ठिं, आपज्जित्वान कम्मतो।
देसेन्तो पन तं पच्छा, अकम्मेन विसुज्झति॥
५४०.
विसट्ठिआदिकापत्तिं , आपज्जित्वा अकम्मतो।
परिसुज्झति कम्मेन, परिवासादिना पन॥
५४१.
समनुभासनं भिक्खु, आपज्जति च कम्मतो।
परिवासादिना पच्छा, कम्मेनेव विसुज्झति॥
५४२.
अवसेसं पनापत्तिं, आपज्जति अकम्मतो।
देसेन्तो पन तं पच्छा, अकम्मेनेव सुज्झति॥
५४३.
सम्मुखापत्तिमापन्नो, विसुज्झति असम्मुखा।
असम्मुखापि आपन्नो, सम्मुखाव विसुज्झति॥
५४४.
सम्मुखापत्तिमापन्नो, सम्मुखाव विसुज्झति।
असम्मुखाव आपन्नो, विसुज्झति असम्मुखा॥
५४५.
अच्चजं पापकं दिट्ठिं, आपन्नो सङ्घसम्मुखे।
वुट्ठानकाले सङ्घेन, किञ्चि कम्मं न विज्जति॥
५४६.
विसट्ठिआदिकापत्तिं, आपज्जित्वा असम्मुखा।
सङ्घसम्मुखतोयेव, विसुज्झति न चञ्ञथा॥
५४७.
समनुभासनं सङ्घ-सम्मुखापज्जते, पुन।
सङ्घस्स सम्मुखायेव, विसुज्झति, न चञ्ञथा॥
५४८.
मुसावादादिकं सेसं, आपज्जति असम्मुखा।
तं पच्छा पन देसेन्तो, विसुज्झति असम्मुखा॥
५४९.
अजानन्तोव आपन्नो, जानन्तोव विसुज्झति।
जानन्तो पन आपन्नो, अजानन्तो विसुज्झति॥
५५०.
अजानन्तोव आपन्नो, अजानन्तो विसुज्झति।
जानन्तो पन आपन्नो, जानन्तोव विसुज्झति॥
५५१.
अचित्तकचतुक्केन =१५, सदिसं सब्बथा इदम्।
अजानन्तचतुक्कन्ति, वेदितब्बं विभाविना॥
५५२.
आगन्तुकोव आपत्तिं, आपज्जति, न चेतरो।
आवासिकोव आपत्तिं, आपज्जति, न चेतरो॥
५५३.
आगन्तुको तथावासि-कोपि आपज्जरे उभो।
अत्थापत्ति च सेसं तु, उभो नापज्जरे पन॥
५५४.
सछत्तुपाहनो चेव, ससीसं पारुतोपि च।
विहारं पविसन्तो च, विचरन्तोपि तत्थ च॥
५५५.
आगन्तुकोव आपत्तिं, आपज्जति, न चेतरो।
आवासवत्तमावासी, अकरोन्तोव दोसवा॥
५५६.
न चेवागन्तुको, सेस-मापज्जन्ति उभोपि च।
असाधारणमापत्तिं, नापज्जन्ति उभोपि च॥
५५७.
वत्थुनानत्तता अत्थि, नत्थि आपत्तिनानता।
अत्थि आपत्तिनानत्तं, नत्थि वत्थुस्स नानता॥
५५८.
वत्थुनानत्तता चेव, अत्थि आपत्तिनानता।
नेवत्थि वत्थुनानत्तं, नो च आपत्तिनानता॥
५५९.
पाराजिकचतुक्कस्स, वत्थुनानत्तता मता।
आपत्तिनानता नत्थि, सेसापत्तीस्वयं नयो॥
५६०.
समणो समणी काय-संसग्गं तु करोन्ति चे।
सङ्घादिसेसो भिक्खुस्स, भिक्खुनिया पराजयो॥
५६१.
एवं आपत्तिनानत्तं, नत्थि वत्थुस्स नानता।
कायस्स पन संसग्गो, उभिन्नं वत्थु होति हि॥
५६२.
तथेव लसुणस्सापि, खादने भिक्खुनी पन।
आपज्जति हि पाचित्तिं, भिक्खुनो होति दुक्कटं॥
५६३.
पाराजिकानं पन चे चतुन्नम्।
सङ्घादिसेसेहि च तेरसेहि।
होतेव वत्थुस्स च नानभावो।
आपत्तिया चेव हि नानभावो॥
५६४.
पाराजिकानि =१६ चत्तारि, आपज्जन्तानमेकतो।
भिक्खुनीसमणानं तु, उभिन्नं पन सब्बसो॥
५६५.
वत्थुस्स नत्थि नानत्तं, नत्थि आपत्तिनानता।
विसुं पनापज्जन्तेसु, अयमेव विनिच्छयो॥
५६६.
अत्थि वत्थुसभागत्तं, नत्थापत्तिसभागता।
अत्थापत्तिसभागता, नत्थि वत्थुसभागता॥
५६७.
अत्थि वत्थुसभागत्तं, अत्थापत्तिसभागता।
नत्थि वत्थुसभागत्तं, नत्थापत्तिसभागता॥
५६८.
भिक्खूनं भिक्खुनीनञ्च, कायसंसग्गके सति।
अत्थि वत्थुसभागत्तं, नत्थापत्तिसभागता॥
५६९.
आदितो पन भिक्खुस्स, चतूस्वन्तिमवत्थुसु।
सियापत्तिसभागत्तं, न च वत्थुसभागता॥
५७०.
भिक्खूनं भिक्खुनीनञ्च, चतूस्वन्ति मवत्थुसु।
अत्थि वत्थुसभागत्तं, अत्थापत्तिसभागता॥
५७१.
साधारणासु सब्बासु, आपत्तीस्वप्ययं नयो।
असाधारणासु नेवत्थि, वत्थापत्तिसभागता॥
५७२.
अत्थापत्ति उपज्झाये, नेव सद्धिविहारिके।
अत्थि सद्धिविहारस्मिं, उपज्झाये न विज्जति॥
५७३.
अत्थापत्ति उपज्झाये, तथा सद्धिविहारिके।
नेवापत्ति उपज्झाये, नेव सद्धिविहारिके॥
५७४.
उपज्झायेन कत्तब्ब-वत्तस्साकरणे पन।
उपज्झायो फुसे वज्जं, न च सद्धिविहारिको॥
५७५.
उपज्झायस्स कत्तब्ब-वत्तस्साकरणे पन।
नत्थापत्ति उपज्झाये, अत्थि सद्धिविहारिके॥
५७६.
सेसं पनिध आपत्तिं, आपज्जन्ति उभोपि च।
असाधारणमापत्तिं, नापज्जन्ति उभोपि च॥
५७७.
आदियन्तो गरुं दोसं, पयोजेन्तो लहुं फुसे।
आदियन्तो लहुं दोसं, पयोजेन्तो गरुं फुसे॥
५७८.
आदियन्तो =१७ पयोजेन्तो, गरुकेयेव तिट्ठति।
आदियन्तो पयोजेन्तो, लहुकेयेव तिट्ठति॥
५७९.
पादं वापि ततो उद्धं, आदियन्तो गरुं फुसे।
‘‘गण्हा’’ति ऊनकं पादं, आणापेन्तो लहुं फुसे॥
५८०.
एतेनेव उपायेन, सेसकम्पि पदत्तयम्।
अत्थसम्भवतोयेव, वेदितब्बं विभाविना॥
५८१.
कालेयेव पनापत्ति, नो विकाले कथं सिया?
विकालेयेव आपत्ति, न च काले कथं सिया?
५८२.
अत्थापत्ति हि काले च, विकाले च पकासिता?
नेव काले विकाले च, अत्थापत्ति पकासिता?
५८३.
पवारेत्वान भुञ्जन्तो, काले अनतिरित्तकम्।
काले आपज्जतापत्तिं, न विकालेति दीपये॥
५८४.
विकालभोजनापत्तिं, विकाले न च कालके।
सेसं काले विकाले च, आपज्जति, न संसयो॥
५८५.
असाधारणमापत्तिं, भिक्खुनीनं वसा पन।
नेवापज्जति कालेपि, नो विकालेपि सब्बदा॥
५८६.
किं पटिग्गहितं काले, नो विकाले तु कप्पति?
विकाले किञ्च नो काले, गहितं पन कप्पति?
५८७.
काले चेव विकाले च, किं नाम वद कप्पति?
नेव काले च किं नाम, नो विकाले च कप्पति?
५८८.
आमिसं तु पुरेभत्तं, पटिग्गहितकं पन।
कालेयेव तु भिक्खूनं, नो विकाले तु कप्पति॥
५८९.
पानकं तु विकालस्मिं, पटिग्गहितकं पन।
विकालेयेव काले च, अपरज्जु न कप्पति॥
५९०.
सत्ताहकालिकञ्चेव , चतुत्थं यावजीविकम्।
काले चेव विकाले च, कप्पतीति विनिद्दिसे॥
५९१.
अत्तनो अत्तनो काल-मतीतं कालिकत्तयम्।
मंसं अकप्पियञ्चेव, तथा उग्गहितम्पि च॥
५९२.
कुलदूसनकम्मादिं =१८, कत्वा उप्पन्नभोजनम्।
काले चेव विकाले च, न च कप्पति भिक्खुनो॥
५९३.
पच्चन्तिमेसु देसेसु, आपज्जति न मज्झिमे।
मज्झिमे पन देसस्मिं, न च पच्चन्तिमेसु हि॥
५९४.
पच्चन्तिमेसु देसेसु, आपज्जति च मज्झिमे।
पच्चन्तिमेसु देसेसु, नापज्जति न मज्झिमे॥
५९५.
सीमं समुद्दे बन्धन्तो, भिक्खु पच्चन्तिमेसु हि।
आपज्जति पनापत्तिं, न चापज्जति मज्झिमे॥
५९६.
गणेन पञ्चवग्गेन, करोन्तो उपसम्पदम्।
चम्मत्थरणं धुवन्हानं, सगुणङ्गुणुपाहनं॥
५९७.
धारेन्तो मज्झिमे वज्जं, फुसे पच्चन्तिमेसु नो।
अवसेसं पनापत्तिं, आपज्जतूभयत्थपि॥
५९८.
असाधारणआपत्तिं, भिक्खुनीनं वसा पन।
पच्चन्तिमेसु वा भिक्खु, नापज्जति न मज्झिमे॥
५९९.
पच्चन्तिमेसु देसेसु, कप्पते न च मज्झिमे।
कप्पते, मज्झिमे देसे, नो च पच्चन्तिमेसु हि॥
६००.
पच्चन्तिमेसु देसेसु, कप्पते, मज्झिमेपि किं?
पच्चन्तिमेसु चेवापि, किं न कप्पति मज्झिमे?
६०१.
पच्चन्तिमेसु देसेसु, वुत्तं वत्थु चतुब्बिधम्।
निद्दिसे कप्पती चेव, न च कप्पति मज्झिमे॥
६०२.
‘‘इदं चतुब्बिधं वत्थु, देसस्मिं पन मज्झिमे।
न कप्पती’’ति वुत्तञ्हि, ‘‘मज्झिमेयेव कप्पति’’॥
६०३.
पच्चन्तिमेसु देसेसु, एवं वुत्तं न कप्पति।
पञ्चलोणादिकं सेसं, उभयत्थपि कप्पति॥
६०४.
अकप्पियन्ति यं नाम, पटिक्खित्तं महेसिना।
उभयत्थपि तं सब्बं, न च कप्पति भिक्खुनो॥
६०५.
अन्तो आपज्जतापत्तिं, आपज्जति च, नो बहि।
बहि आपज्जतापत्तिं, न च अन्तो कुदाचनं॥
६०६.
आपज्जति =१९ पनन्तो च, बहि चेवुभयत्थपि।
नेव अन्तो च आपत्तिं, आपज्जति च, नो बहि॥
६०७.
अनुपखज्जसेय्यादिं, अन्तोयेव च, नो बहि।
सङ्घिकं पन मञ्चादिं, अज्झोकासे तु किञ्चिपि॥
६०८.
निक्खिपित्वान गच्छन्तो, नो अन्तो, बहियेव च।
सेसमापज्जतापत्तिं, अन्तो चेव तथा बहि॥
६०९.
असाधारणमापत्तिं, भिक्खुनीनं वसा पन।
नेवापज्जति अन्तोपि, न बहिद्धापि सब्बथा॥
६१०.
गामे आपज्जतापत्तिं, नो अरञ्ञे कथं वद?
आपज्जति अरञ्ञस्मिं, न च गामे कथं वद?
६११.
आपज्जति च गामेपि, अरञ्ञेपि कथं वद?
नेवापज्जति गामेपि, नो अरञ्ञे कथं वद?
६१२.
अन्तरघरसंयुत्ता, सेक्खपञ्ञत्तियो पन।
आपज्जति हि तं भिक्खु, गामस्मिं, नो अरञ्ञके॥
६१३.
अगणा अरुणं नाम, उट्ठापेन्ती च भिक्खुनी।
आपज्जति पनापत्तिं, अरञ्ञे, नो च गामके॥
६१४.
मुसावादादिमापत्तिं , आपज्जतूभयत्थपि।
असाधारणमापत्तिं, आपज्जति न कत्थचि॥
६१५.
आपज्जति गिलानोव, नागिलानो कुदाचनम्।
अगिलानोव आपत्तिं, फुसे, नो च गिलानको॥
६१६.
अगिलानो गिलानो च, आपज्जन्ति उभोपि च।
नापज्जन्ति गिलानो च, अगिलानो उभोपि च॥
६१७.
भेसज्जेन पनञ्ञेन, अत्थे सति च यो पन।
विञ्ञापेति तदञ्ञं सो, आपज्जति अकल्लको॥
६१८.
न भेसज्जेन अत्थेपि, भेसज्जं विञ्ञापेति चे।
आपज्जतागिलानोव, आपत्तिं लोलमानसो॥
६१९.
मुसावादादिकं सेसं, आपज्जन्ति उभोपि च।
असाधारणमापत्तिं, नापज्जन्ति उभोपि च॥
चतुक्ककथा।
६२०.
पञ्च =२० आपत्तियो होन्ति, मुसावादस्स कारणा।
पाराजिकं गरुंथुल्ल-च्चयं पाचित्ति दुक्कटं॥
६२१.
आनिसंसा पनुद्दिट्ठा, पञ्चेव कथिनत्थरे।
अनामन्तासमादान-चरणं गणभोजनं॥
६२२.
यो तत्थ चीवरुप्पादो, सो च नेसं भविस्सति।
चीवरं यावदत्थञ्च, गहेतुम्पि च वट्टति॥
६२३.
तेलं पञ्चविधं वुत्तं, निप्पपञ्चेन सत्थुना।
वसा मधुकएरण्ड-तिलसासपसम्भवं॥
६२४.
अच्छमच्छवसा चेव, सुसुका सूकरस्स च।
गद्रभस्स वसा चेति, वसा पञ्चविधा मता॥
६२५.
मूलखन्धग्गबीजानि , फळुबीजञ्च पण्डितो।
पञ्चमं बीजबीजन्ति, पञ्च बीजानि दीपये॥
६२६.
फलं समणकप्पेहि, परिभुञ्जेय्य पञ्चहि।
अग्गिसत्थनखक्कन्तं, अबीजुब्बट्टबीजकं॥
६२७.
पण्णुण्णतिणचोळानं, वाकस्स च वसेनिध।
भिसियो भासिता पञ्च, मुनिना मोहनासिना॥
६२८.
पवारणापि पञ्चेव, ओदनादीहि पञ्चहि।
पटिग्गाहापि पञ्चेव, कायादिगहणेन च॥
६२९.
पञ्चानिसंसा विनयञ्ञुकस्मिम्।
महेसिना कारुणिकेन वुत्ता।
सुरक्खितं होति सकञ्च सीलम्।
कुक्कुच्चमञ्ञस्स निराकरोति॥
६३०.
विसारदो भासति सङ्घमज्झे।
सुखेन निग्गण्हति वेरिभिक्खू।
धम्मस्स चेव ठितिया पवत्तो।
तस्मादरं तत्थ करेय्य धीरो॥
पञ्चककथा।
६३१.
छवच्छेदनका =२१ वुत्ता, छळभिञ्ञेन तादिना।
मञ्चपीठमतिक्कन्त-पमाणञ्च निसीदनं॥
६३२.
तथा कण्डुपटिच्छादी, वस्ससाटिकचीवरम्।
चीवरं सुगतस्सापि, चीवरेन पमाणकं॥
६३३.
छहाकारेहि आपत्तिं, आपज्जति न अञ्ञथा।
अलज्जिताय अञ्ञाण-कुक्कुच्चेहि तथेव च॥
६३४.
विपरिताय सञ्ञाय, कप्पियेपि अकप्पिये।
सतिसम्मोसतो चेव, आपज्जति, न संसयो॥
६३५.
छहि अङ्गेहि युत्तेन।
उपसम्पादना पन।
कातब्बा, निस्सयो चेव।
दातब्बो, सामणेरको॥
६३६.
भिक्खुनापट्ठपेतब्बो, सततं धम्मचक्खुना।
आपत्तिं पन जानाति, अनापत्तिं गरुं लहुं॥
६३७.
पातिमोक्खानि वित्थारा, उभयानि पनस्स हि।
स्वागतानि भवन्तेव, सुविभत्तानि अत्थतो॥
६३८.
अनुब्यञ्जनसो चेव, सुत्तसो सुविनिच्छिता।
दसवस्सोपि वा होतितिरेकदसवस्सिको॥
छक्ककथा।
६३९.
सत्त सामीचियो वुत्ता, सत्तेव समथापि च।
पञ्ञत्तापत्तियो सत्त, सत्तबोज्झङ्गदस्सिना॥
सत्तककथा।
६४०.
कुलानि इध दूसेति, आकारेहि पनट्ठहि।
पुप्फेन च फलेनापि, चुण्णेनपि च दूसको॥
६४१.
मत्तिकादन्तकट्ठेहि, वेळुया वेज्जिकायपि।
जङ्घपेसनिकेनापि, आजीवस्सेव कारणा॥
६४२.
अट्ठेवानतिरित्तापि , अतिरित्तापि अट्ठ च।
अकप्पियकतं चेवागहितुच्चारितम्पि च॥
६४३.
कतं अहत्थपासेपि, न च भुत्ताविना कतम्।
पवारितेन यञ्चेव, कतं भुत्ताविनापि च॥
६४४.
आसना वुट्ठितेनापि, अतिरित्तकतम्पि च।
अवुत्तमलमेतन्ति, न गिलानातिरित्तकं॥
६४५.
इमे अट्ठेव निद्दिट्ठा, ञेय्या अनतिरित्तका।
अतिरित्ता पनेतेसं, पटिक्खेपेन दीपिता॥
६४६.
सहपुब्बपयोगेसु, दुक्कटं ञातञत्तिसु।
दुरूपचिण्णे आमासे, दुक्कटं पटिसावने॥
६४७.
अट्ठमं पन निद्दिट्ठं, तथा विनयदुक्कटम्।
इति अट्ठविधं होति, सब्बमेव च दुक्कटं॥
६४८.
एहिभिक्खूपसम्पदा, सरणगमनेन च।
पञ्हाब्याकरणोवादा, गरुधम्मपटिग्गहो॥
६४९.
तथा ञत्तिचतुत्थेन, कम्मेनेवट्ठवाचिका।
दूतेन भिक्खुनीनन्ति, अट्ठेव उपसम्पदा॥
६५०.
असद्धम्मा पनट्ठेव, निद्दिट्ठा सुद्धदिट्ठिना।
अट्ठेवुपोसथङ्गानि, वेदितब्बानि विञ्ञुना॥
६५१.
सक्कारो च असक्कारो।
लाभालाभो यसायसो।
पापिच्छा पापमित्तत्तम्।
असद्धम्मा पनट्ठिमे॥
६५२.
पाणं न हने, न चादिन्नमादिये।
मुसा न भासे, न च मज्जपो सिया।
अब्रह्मचरिया विरमेय्य मेथुना।
रत्तिं न भुञ्जेय्य विकालभोजनं॥
६५३.
मालं न धारे, न च गन्धमाचरे।
मञ्चे छमायंव सयेथ सन्थते।
एतञ्हि अट्ठङ्गिकमाहुपोसथम्।
बुद्धेन दुक्खन्तगुना पकासितं॥
६५४.
अट्ठेव पन पानानि, निद्दिट्ठानि महेसिना।
भिक्खु अट्ठङ्गसंयुत्तो, भिक्खुनोवादमरहति॥
अट्ठककथा।
६५५.
भोजनानि पणीतानि, नव वुत्तानि सत्थुना।
दुक्कटं पन निद्दिट्ठं, नव मंसानि खादतो॥
६५६.
पातिमोक्खस्स उद्देसा, नवेव परिदीपिता।
उपोसथा नवेवेत्थ, सङ्घो नवहि भिज्जति॥
नवककथा।
६५७.
दस अक्कोसवत्थूनि, दस सिक्खापदानि च।
अकप्पियानि मंसानि, दस सुक्कानि वे दस॥
६५८.
जाति नामञ्च गोत्तञ्च, कम्मं सिप्पञ्च रोगता।
लिङ्गापत्ति किलेसा च, अक्कोसेन दसेव हि॥
६५९.
दस आदीनवा रञ्ञो, अन्तेपुरप्पवेसने।
दसाकारेहि सङ्घादि-सेसो छन्नोति दीपितो॥
६६०.
दस कम्मपथा पुञ्ञा, अपुञ्ञापि तथा दस।
दसेव दानवत्थूनि, दसेव रतनानि च॥
६६१.
अन्नं पानञ्च वत्थञ्च, माला गन्धविलेपनम्।
यानञ्च सेय्यावसथं, पदीपेय्यन्तिमे दस॥
६६२.
अवन्दिया मुनिन्देन, दीपिता दस पुग्गला।
दसेव पंसुकूलानि, दस चीवरधारणा॥
६६३.
सोसानिकं पापणिकं, तथा उन्दूरखायितम्।
गोखायितग्गिना दड्ढं, अजिकूपचिकखायितं॥
६६४.
थूपचीवरिकञ्चेव, तथेव अभिसेकियम्।
गतपच्छागतञ्चेति, दसधा पंसुकूलिकं॥
६६५.
सब्बनीलादयो वुत्ता, दस चीवरधारणा।
चीवरानि नवेवेत्थ, सद्धिं संकच्चिकाय च॥
दसककथा।
६६६.
एकादस पनाभब्बा, पुग्गला पण्डकादयो।
होन्तेवानुपसम्पन्ना, उपसम्पादितापि च॥
६६७.
पत्ता अकप्पिया वुत्ता, एकादस भवन्ति हि।
दारुजेन च पत्तेन, दसेव रतनुब्भवा॥
६६८.
एकादस तथा होन्ति, पादुकापि अकप्पिया।
एकादसेव सीमायो, असीमाति पकासिता॥
६६९.
अतिखुद्दातिमहन्ता, खण्डच्छायानिमित्तका।
अनिमित्ता, बहिट्ठेन, सम्मता, नदियं तथा॥
६७०.
जातस्सरे, समुद्दे वा, सम्भिन्नज्झोत्थटापि च।
सीमायपि असीमायो, एकादस इमा सियुं॥
६७१.
एकादसेव पथवी, कप्पिया च अकप्पिया।
गण्ठिका कप्पिया वुत्ता, एकादस च वीधका॥
६७२.
एकादसविधं वुत्तं, अधिट्ठातब्बचीवरम्।
तिचीवरं तथा कण्डु-पटिच्छादी, निसीदनं॥
६७३.
पच्चत्थरणं, वस्सिक-साटिका, मुखपुञ्छनम्।
दकसाटि, परिक्खार-चोळं, संकच्चिकापि च॥
६७४.
यावततियका सब्बे, एकादस पकासिता।
अरिट्ठो, चण्डकाळी च, उक्खित्तस्सानुवत्तिका॥
६७५.
अट्ठ सङ्घादिसेसेसु, उभिन्नं तु वसा पन।
एकादस इमे याव-ततियाति पकासिता॥
६७६.
निस्सयस्स दसेकाव, पटिप्पस्सद्धियो पन।
छधाचरियतो वुत्ता, उपज्झाया तु पञ्चधा॥
एकादसककथा।
६७७.
तेरसेव धुतङ्गानि, परमानि च चुद्दस।
सोळसेव तु ‘‘जान’’न्ति, पञ्ञत्तानि महेसिना॥
६७८.
सउत्तरं विनयविनिच्छयं तु यो।
अनुत्तरं सकलमपीध जानति।
महत्तरे विनयनये अनुत्तरे।
निरुत्तरो भवति हि सो, न संसयो॥
एकुत्तरनयो समत्तो।

सेदमोचनकथा

६७९.
इतो परं पवक्खामि, भिक्खूनं सुणतं पुन।
सेदमोचनगाथायो, पटुभावकरा वरा॥
६८०.
उब्भक्खकं विवज्जेत्वा, अधोनाभिं विवज्जिय।
पटिच्च मेथुनं धम्मं, कथं पाराजिको सिया?
६८१.
कबन्धसत्तकायस्स, उरे होति मुखं सचे।
मुखेन मेथुनं धम्मं, कत्वा पाराजिको भवे॥
६८२.
सुञ्ञे निस्सत्तके दीपे, एको भिक्खु सचे वसे।
मेथुनपच्चया तस्स, कथं पाराजिको सिया?
६८३.
लम्बी वा मुदुपिट्ठी वा, वच्चमग्गे मुखेपि वा।
अङ्गजातं पवेसेन्तो, सके पाराजिको भवे॥
६८४.
सयं नादियते किञ्चि, परञ्च न समादपे।
संविधानञ्च नेवत्थि, कथं पाराजिको सिया?
६८५.
सुङ्कघाते अतिक्कन्ते, नादियन्तो परस्स तु।
आणत्तिञ्च विनायेव, होति पाराजिको यति॥
६८६.
हरन्तो गरुकं भण्डं, थेय्यचित्तेन पुग्गलो।
परस्स तु परिक्खारं, न च पाराजिको कथं?
६८७.
तिरच्छानगतानं तु, पुग्गलो गरुभण्डकम्।
गण्हन्तो थेय्यचित्तेन, न च पाराजिको सिया॥
६८८.
अत्तनो सन्तकं दत्वा, भिक्खु पाराजिको कथं?
‘‘मरतू’’ति असप्पाय-भोजनं देति चे चुतो॥
६८९.
पितरि पितुसञ्ञी च, मातुसञ्ञी च मातरि।
हन्त्वानन्तरियं कम्मं, न फुसेय्य कथं नरो?
६९०.
तिरच्छानगता माता, तिरच्छानगतो पिता।
तस्मानन्तरियं नत्थि, मारितेसु उभोसुपि॥
६९१.
अनादियन्तो गरुकं, परञ्च न समादपे।
गच्छं ठितो निसिन्नो वा, कथं पाराजिको भण?
६९२.
मनुस्सुत्तरिके धम्मे, कत्वान कतिकं ततो।
सम्भावनाधिप्पायो सो, अतिक्कमति चे चुतो॥
६९३.
सङ्घादिसेसा चत्तारो, भवेय्युं एकवत्थुका।
कथं? कथेहि मे पुट्ठो, विनये चे विसारदो॥
६९४.
सञ्चरित्तञ्च दुट्ठुल्लं, संसग्गं अत्तकामतम्।
इत्थिया पटिपज्जन्तो, फुसेय्य चतुरो इमे॥
६९५.
सङ्घादिसेसमापन्नो, छादेत्वा सुचिरं पन।
अचरित्वा यथावुत्तं, वत्तं सो वुट्ठितो कथं?
६९६.
सुक्कविस्सट्ठिमापन्नो , भिक्खुभावे ठितो पन।
परिवत्ते तु लिङ्गस्मिं, नत्थि सङ्घादिसेसता॥
६९७.
कुद्धो आराधको होति।
कुद्धो होति च निन्दितो।
अथ को नाम सो धम्मो।
येन कुद्धो पसंसितो?
६९८.
वण्णस्मिं भञ्ञमाने यो, तित्थियानं तु कुज्झति।
आराधको, सम्बुद्धस्स, यदि कुज्झति निन्दितो॥
६९९.
अत्थङ्गते तु सूरिये, भोजनं भिक्खु भुञ्जति।
न खित्तचित्तोनुम्मत्तो, निरापत्ति कथं भवे?
७००.
यो च रोमन्थयित्वान, रत्तिं घसति भोजनम्।
नत्थि तस्स पनापत्ति, विकालभोजनेन हि॥
७०१.
अत्थङ्गते च सूरिये, गहेत्वा भिक्खु भोजनम्।
सचे भुञ्जेय्य आपत्ति, अनापत्ति कथं भवे?
७०२.
विकालुत्तरकुरुं गन्त्वा, तत्थ लद्धान भोजनम्।
आगन्त्वा इध कालेन, नत्थि आपत्ति भुञ्जतो॥
७०३.
गामे वा यदि वारञ्ञे, यं परेसं ममायितम्।
न हरन्तोव तं थेय्या, कथं पाराजिको सिया?
७०४.
थेय्यसंवासको नाम, लिङ्गसंवासथेनको।
परभण्डं अगण्हन्तो, होति एस पराजितो॥
७०५.
नारी रूपवती बाला, भिक्खु रत्तेन चेतसा।
मेथुनं ताय कत्वापि, सो न पाराजिको कथं?
७०६.
भिक्खु रूपवतिं नारिं, सुपिनन्तेन पस्सति।
ताय मेथुनसंयोगे, कतेपि न विनस्सति॥
७०७.
एकिस्सा द्वे सियुं पुत्ता, जाता इध पनित्थिया।
द्विन्नं माता पिता साव, कथं होति भणाहि मे?
७०८.
उभतोब्यञ्जना इत्थी, गब्भं गण्हाति अत्तना।
गण्हापेति परं गब्भं, तस्मा माता पिता च सा॥
७०९.
पुरिसेन सहागारे, रहो वसति भिक्खुनी।
परामसति तस्सङ्गं, अनापत्ति कथं सिया?
७१०.
सहागारिकसेय्यञ्च, सब्बञ्च पटिजग्गनम्।
दारकस्स च माता हि, कातुं लभति भिक्खुनी॥
७११.
को च भिक्खूहि सिक्खासु, असाधारणतं गतो।
न पारिवासिको ब्रूहि, न उक्खित्तादिकोपि च?
७१२.
गहेतुं खुरभण्डं तु, सचे न्हापितपुब्बको।
न सो लभति अञ्ञेसं, कप्पतीति च निद्दिसे॥
७१३.
कथेति कुसलं धम्मं, परमं अत्थसंहितम्।
कतमो पुग्गलो ब्रूहि, न मतो न च जीवति?
७१४.
कथेति कुसलं धम्मं, परमं अत्थसंहितम्।
होति निम्मितबुद्धो सो, न मतो न च जीवति॥
७१५.
संयाचिकं करोन्तस्स, कुटिं देसितवत्थुकम्।
पमाणिकमनारम्भं, आपत्ति सपरिक्कमं॥
७१६.
नरो करोति चे कुटिं, स सब्बमत्तिकामयम्।
न मुच्चतेव वज्जतो, जिनेन वुत्ततो ततो॥
७१७.
संयाचिकाय भिक्खुस्स, अनापत्ति कथं सिया।
सब्बलक्खणहीनं तु, करोन्तस्स कुटिं पन?
७१८.
संयाचिकं करोन्तस्स, तिणच्छदनकं कुटिम्।
भिक्खुनो जिनचन्देन, अनापत्ति पकासिता॥
७१९.
न कायिकं कञ्चि पयोगमाचरे।
न किञ्चि वाचाय परं भणेय्य।
फुसे गरुं अन्तिमवत्थुहेतुकम्।
विसारदो चे विनये भणाहि त्वं?
७२०.
परस्सा पन या वज्जं, पटिच्छादेति भिक्खुनी।
अयं पाराजिकापत्तिं, तन्निमित्तं गरुं फुसे॥
७२१.
न कायिकं किञ्चिपि पापमाचरे।
न किञ्चि वाचाय चरेय्य पापकम्।
सुनासितोयेव च नासितो सिया।
कथं तुवं ब्रूहि मयासि पुच्छितो?
७२२.
अभब्बा पन ये वुत्ता, पुग्गला पण्डकादयो।
एकादस मुनिन्देन, नासिता ते सुनासिता॥
७२३.
अनुग्गिरं गिरं किञ्चि, सुभं वा यदि वासुभम्।
फुसे वाचसिकं वज्जं, कथं मे पुच्छितो भण?
७२४.
सन्तिमेव पनापत्तिं, भिक्खु नाविकरेय्य यो।
सम्पजानमुसावादे, दुक्कटं तस्स वण्णितं॥
७२५.
एकतोउपसम्पन्ना, उभो तासं तु हत्थतो।
चीवरं गण्हतो होन्ति, नानाआपत्तियो कथं?
७२६.
एकतोउपसम्पन्ना , भिक्खूनं तु वसेन या।
चीवरं हत्थतो तस्सा, पाचित्ति पटिगण्हतो॥
७२७.
एकतोउपसम्पन्ना, भिक्खुनीनं वसेन या।
चीवरं हत्थतो तस्सा, दुक्कटं पटिगण्हतो॥
७२८.
संविधाय च चत्तारो, गरुं थेनिंसु भण्डकम्।
थेरो थुल्लच्चयं तेसु, पत्तो, सेसा पराजयं॥
७२९.
कथं ? छमासकं भण्डं, तत्थ साहत्थिका तयो।
हटा थेरेन मासा तु, तयो आणत्तियापि च॥
७३०.
तीहि साहत्थिकोकेको।
पञ्च आणत्तिया हटा।
तस्मा थुल्लच्चयं थेरो।
पत्तो, सेसा पराजयं॥
७३१.
बहिद्धा गेहतो भिक्खु, इत्थी गब्भन्तरं गता।
छिद्दं गेहस्स नो अत्थि, मेथुनपच्चया चुतो॥
७३२.
अन्तोदुस्सकुटिट्ठेन, मातुगामेन मेथुनम्।
सन्थतादिवसेनेव, कत्वा होति पराजितो॥
७३३.
सप्पिआदिं तु भेसज्जं, गहेत्वा साममेव तम्।
अवीतिवत्ते सत्ताहे, कथं आपत्ति सेवतो?
७३४.
परिवत्तितलिङ्गस्स, भिक्खुनो इतराय वा।
अवीतिवत्ते सत्ताहे, होति आपत्ति सेवतो॥
७३५.
निस्सग्गियेन पाचित्ति, सुद्धपाचित्तियम्पि च।
एकतोव कथं भिक्खु, आपज्जेय्य भणाहि मे?
७३६.
सङ्घे परिणतं लाभं, अत्तनो च परस्स च।
एकतो परिणामेन्तो, पयोगेन द्वयं फुसे॥
७३७.
भिक्खू समागम्म समग्गसञ्ञा।
सब्बे करेय्युं पन सङ्घकम्मम्।
भिक्खुट्ठितो द्वादसयोजनस्मिम्।
कथं कतं कुप्पति वग्गहेतु?
७३८.
अत्थि सचे पन भिक्खु निसिन्नो।
द्वादसयोजनिके नगरे तु।
तत्थ कतं पन कम्ममकम्मम्।
नत्थि विहारगता यदि सीमा॥
७३९.
सङ्घाटि पारुता काये, निवत्थोन्तरवासको।
निस्सग्गियानि सब्बानि, कथं होन्ति कथेहि मे?
७४०.
कण्णं गहेत्वा तत्थेव, कद्दमं यदि धोवति।
भिक्खुनी कायङ्गानेव, तानि निस्सग्गियानि हि॥
७४१.
पुरिसं अपितरं हन्त्वा, इत्थिं हन्त्वा अमातरम्।
आनन्तरियकं कम्मं, आपज्जति कथं नरो?
७४२.
परिवत्ते तु लिङ्गस्मिं, पितरं इत्थितं गतम्।
मातरं पुरिसत्तं तु, गतं हन्त्वा गरुं फुसे॥
७४३.
मातरं पन मारेत्वा, मारेत्वा पितरम्पि च।
आनन्तरियकं कम्मं, नापज्जेय्य कथं नरो?
७४४.
तिरच्छानगता माता, तिरच्छानगतो पिता।
मातरं पितरं हन्त्वा, नानन्तरियकं फुसे॥
७४५.
चोदेत्वा सम्मुखीभूतं, सङ्घो कम्मं करेय्य चे।
कथं कम्मं अकम्मं तं, सङ्घो सापत्तिको सिया?
७४६.
वुत्तं तु पण्डकादीनं, सन्धाय उपसम्पदम्।
अनापत्तिस्स कम्मं तु, सन्धायाति कुरुन्दियं॥
७४७.
कप्पबिन्दुकतं रत्तं, चीवरं तु अधिट्ठितम्।
कथमस्स सियापत्ति, सेवमानस्स दुक्कटं?
७४८.
सकं अनिस्सजित्वान, यो निस्सग्गियचीवरम्।
परिभुञ्जति तस्साय-मापत्ति परिदीपिता॥
७४९.
पञ्च पाचित्तियानेव, नानावत्थुकतानि हि।
अपुब्बं अचरिमं एक-क्खणे आपज्जते कथं?
७५०.
भेसज्जानि हि पञ्चेव, गहेत्वा भाजने विसुम्।
ठपितेसु च सत्ताहा-तिक्कमे होन्ति पञ्चपि॥
७५१.
न रत्तचित्तो न च थेय्यचित्तो।
न चापि चित्तं मरणाय तस्स।
देन्तस्स पाराजिकमाह सत्था।
थुल्लच्चयं तं पटिगण्हतोपि॥
७५२.
सलाकं सङ्घभेदाय, पदेन्तस्स पराजयो।
होति थुल्लच्चयं तस्स, सलाकं पटिगण्हतो॥
७५३.
एकत्थ निक्खिपित्वान, चीवरं अद्धयोजने।
अरुणं उट्ठापेन्तस्स, अनापत्ति कथं सिया?
७५४.
सुप्पतिट्ठितनिग्रोध-सदिसे रुक्खमूलके।
अनापत्ति हि सो रुक्खो, होति एककुलस्स चे॥
७५५.
कथं आपत्तियो नाना-।
वत्थुकायो हि कायिका।
अपुब्बं अचरिमं एक-।
क्खणे सम्बहुला फुसे?
७५६.
नानित्थीनं तु केसे वा, तासं अङ्गुलियोपि वा।
एकतो गहणे तस्स, होन्ति सम्बहुला पन॥
७५७.
कथं वाचसिका नाना-वत्थुकायो न कायिका।
अपुब्बं अचरिमं एक-क्खणे आपत्तियो फुसे?
७५८.
दुट्ठुल्लं यो वदति च वाचम्।
‘‘सब्बा तुम्हे सिखरणियो’’ति।
वुत्ता दोसा विनयनसत्थे।
तस्सित्थीनं गणनवसेन॥
७५९.
इत्थिया पुरिसेनापि, पण्डकेन निमित्तके।
मेथुनं न च सेवन्तो, मेथुनप्पच्चया चुतो?
७६०.
मेथुने पुब्बभागं तु, कायसंसग्गतं गता।
मेथुनप्पच्चया छेज्जं, आपन्ना अट्ठवत्थुकं॥
७६१.
मातरं चीवरं याचे, सङ्घे परिणतं न च।
केनस्स होति आपत्ति, अनापत्ति च ञातके?
७६२.
वस्ससाटिकलाभत्थं , समये पिट्ठिसञ्ञिते।
सियापत्ति सतुप्पादं, करोतो मातरम्पि च॥
७६३.
सङ्घादिसेसमापत्तिं, पाचित्तिं दुक्कटं कथम्।
पाटिदेसनियं थुल्ल-च्चयं एकक्खणे फुसे?
७६४.
अवस्सुतावस्सुतहत्थतो हि।
पिण्डं गहेत्वा लसुणं पणीतम्।
मनुस्समंसञ्च अकप्पमञ्ञम्।
सब्बेकतो खादति, होन्ति तस्सा॥
७६५.
एको उपज्झायकपुग्गलेको।
आचरियको द्वेपि च पुण्णवस्सा।
एकाव तेसं पन कम्मवाचा।
एकस्स कम्मं तु न रूहते किं?
७६६.
केसग्गमत्तम्पि महिद्धिकेसु।
आकासगो होति सचे पनेको।
कतम्पि तं रूहति नेव कम्मम्।
आकासगस्सेव, न भूमिगस्स॥
७६७.
सङ्घेनपि हि आकासे, ठितेन पन इद्धिया।
भूमिगस्स न कातब्बं, करोति यदि कुप्पति॥
७६८.
न च कप्पकतं वत्थं, न च रत्तं अकप्पियम्।
निवत्थस्स पनापत्ति, अनापत्ति कथं सिया?
७६९.
अच्छिन्नचीवरस्सेत्थ, भिक्खुस्स पन किञ्चिपि।
न चस्साकप्पियं नाम, चीवरं पन विज्जति॥
७७०.
न कुतोपि च गण्हति किञ्चि हवे।
न तु देति च किञ्चिपि भोजनतो।
गरुकं पन वज्जमुपेति कथम्।
वद मे विनये कुसलोसि यदि?
७७१.
आदाय यं किञ्चि अवस्सुतम्हा।
उय्योजिता भुञ्जति भोजनञ्चे।
उय्योजिता या पन याय तस्सा।
सङ्घादिसेसं कथयन्ति धीरा॥
७७२.
कस्सचि किञ्चि न देति सहत्था।
नेव च गण्हति किञ्चि कुतोचि।
वज्जमुपेति लहुं, न गरुं तु।
ब्रूहि कथं यदि बुज्झसि साधु?
७७३.
दन्तपोनोदकानं तु, गहणे पन भिक्खुनी।
उय्योजेन्ती लहुं वज्जं, आपज्जति निसेविते॥
७७४.
आपज्जति पनापत्तिं, गरुकं सावसेसकम्।
छादेति, न फुसे वज्जं, कथं जानासि मे वद?
७७५.
सङ्घादिसेसमापत्तिं, आपज्जित्वा अनादरो।
छादेन्तोपि तमापत्तिं, नाञ्ञं उक्खित्तको फुसे॥
७७६.
सप्पाणप्पाणजं नेव, जङ्गमं न विहङ्गमम्।
द्विजं कन्तमकन्तञ्च, सचे जानासि मे वद?
७७७.
सप्पाणप्पाणजो वुत्तो।
चित्तजो उतुजोपि च।
द्वीहेव पन जातत्ता।
मतो सद्दो द्विजोति हि॥
७७८.
विनये अनयूपरमे परमे।
सुजनस्स सुखानयने नयने।
पटु होति पधानरतो न रतो।
इध यो पन सारमते रमते॥
सेदमोचनगाथायो समत्ता।

साधारणासाधारणकथा

७७९.
सब्बसिक्खापदानाहं , निदानं गणनम्पि च।
भिक्खूहि भिक्खुनीनञ्च, भिक्खूनं भिक्खुनीहि च॥
७८०.
असाधारणपञ्ञत्तं, तथा साधारणम्पि च।
पवक्खामि समासेन, तं सुणाथ समाहिता॥
७८१.
निदानं नाम वेसाली, तथा राजगहं पुरम्।
सावत्थाळवि कोसम्बी, सक्कभग्गा पकासिता॥
७८२.
कति वेसालिया वुत्ता, कति राजगहे कता?
कति सावत्थिपञ्ञत्ता, कति आळवियं कता?
७८३.
कति कोसम्बिपञ्ञत्ता, कति सक्केसु भासिता?
कति भग्गेसु पञ्ञत्ता, तं मे अक्खाहि पुच्छितो?
७८४.
दस वेसालिया वुत्ता, एकवीस गिरिब्बजे।
छऊनानि सतानेव, तीणि सावत्थियं कता॥
७८५.
छ पनाळवियं वुत्ता, अट्ठ कोसम्बियं कता।
अट्ठ सक्केसु पञ्ञत्ता, तयो भग्गेसु दीपिता॥
७८६.
मेथुनं विग्गहो चेव, चतुत्थन्तिमवत्थुकम्।
अतिरेकचीवरं सुद्ध-काळकेळकलोमकं॥
७८७.
भूतं परम्परञ्चेव, मुखद्वारमचेलको।
भिक्खुनीसु च अक्कोसो, दस वेसालियं कता॥
७८८.
दुतियन्तिमवत्थुञ्च, द्वे अनुद्धंसनानि च।
सङ्घभेदा दुवे चेव, चीवरस्स पटिग्गहो॥
७८९.
रूपियं सुत्तविञ्ञत्ति, तथा उज्झापनम्पि च।
परिपाचितपिण्डो च, तथेव गणभोजनं॥
७९०.
विकालभोजनञ्चेव, चारित्तं न्हानमेव च।
ऊनवीसतिवस्सञ्च, दत्वा सङ्घेन चीवरं॥
७९१.
वोसासन्ती च नच्चं वा, गीतं वा चारिकद्वयम्।
छन्ददानेनिमे राज-गहस्मिं एकवीसति॥
७९२.
कुटि कोसियसेय्यञ्च, पथवीभूतगामकम्।
सप्पाणकञ्च सिञ्चन्ति, एते छाळवियं कता॥
७९३.
महल्लकविहारो च, दोवचस्सं तथेव च।
अञ्ञेनञ्ञं तथा द्वार-कोसा मज्झञ्च पञ्चमं॥
७९४.
अनादरियं सहधम्मो, पयोपानञ्च सेखिये।
कोसम्बियं तु पञ्ञत्ता, अट्ठिमे सुद्धदिट्ठिना॥
७९५.
धोवनेळकलोमानि, पत्तो च दुतियो पन।
ओवादोपि च भेसज्जं, सूचि आरञ्ञकेसु च॥
७९६.
उदकसुद्धिकञ्चेव, ओवादागमनम्पि च।
पुरे कपिलवत्थुस्मिं, पञ्ञत्ता पन अट्ठिमे॥
७९७.
जोतिं समादहित्वान, सामिसेन ससित्थकम्।
इमे भग्गेसु पञ्ञत्ता, तयो आदिच्चबन्धुना॥
७९८.
पाराजिकानि चत्तारि, गरुका सोळसा, दुवे।
अनियता, चतुत्तिंस, होन्ति निस्सग्गियानि हि॥
७९९.
छप्पण्णाससतञ्चेव , खुद्दकानि भवन्ति हि।
दसेव पन गारय्हा, द्वेसत्तति च सेखिया॥
८००.
छऊनानि च तीणेव, सतानि समचेतसा।
इमे वुत्तावसेसा हि, सब्बे सावत्थियं कता॥
८०१.
पाराजिकानि चत्तारि, सत्त सङ्घादिसेसका।
निस्सग्गियानि अट्ठेव, द्वत्तिंसेव च खुद्दका॥
८०२.
द्वे गारय्हा, तयो सेखा, छप्पञ्ञासेव सब्बसो।
भवन्ति छसु पञ्ञत्ता, नगरेसु च पिण्डिता॥
८०३.
सब्बानेव पनेतानि, नगरेसु च सत्तसु।
अड्ढुड्ढानि सतानेव, पञ्ञत्तानि भवन्ति हि॥
८०४.
सिक्खापदानि भिक्खूनं, वीसञ्च द्वे सतानि च।
भिक्खुनीनं तु चत्तारि, तथा तीणि सतानि च॥
८०५.
पाराजिकानि चत्तारि, गरुका पन तेरस।
अनियता दुवे वुत्ता, तिंस निस्सग्गियानि च॥
८०६.
खुद्दका नवुति द्वे च, चत्तारो पाटिदेसना।
निप्पपञ्चेन निद्दिट्ठा, पञ्चसत्तति सेखिया॥
८०७.
द्वे सतानि च वीसञ्च, वसा भिक्खूनमेव च।
सिक्खापदानि उद्देसमागच्छन्ति उपोसथे॥
८०८.
पाराजिकानि अट्ठेव, गरुका दस सत्त च।
निस्सग्गियानि तिंसेव, छसट्ठि च सतम्पि च॥
८०९.
खुद्दकानट्ठ गारय्हा, पञ्चसत्तति सेखिया।
सब्बानि पन चत्तारि, तथा तीणि सतानि च॥
८१०.
भवन्ति पन एतानि, भिक्खुनीनं वसा पन।
सिक्खापदानि उद्देसमागच्छन्ति उपोसथे॥
८११.
छचत्तालीस होन्तेव, भिक्खूनं भिक्खुनीहि तु।
असाधारणभावं तु, गमितानि महेसिना॥
८१२.
छ च सङ्घादिसेसा च, तथा अनियता दुवे।
द्वादसेव च निस्सग्गा, द्वावीसति च खुद्दका॥
८१३.
चत्तारोपि च गारय्हा, छचत्तालीस होन्तिमे।
भिक्खूनंयेव पञ्ञत्ता, गोतमेन यसस्सिना॥
८१४.
विसट्ठि कायसंसग्गो, दुट्ठुल्लं अत्तकामता।
कुटि चेव विहारो च, छळेते गरुका सियुं॥
८१५.
निस्सग्गियादिवग्गस्मिं, धोवनञ्च पटिग्गहो।
एळकलोमवग्गेपि, आदितो पन सत्त च॥
८१६.
ततियेपि च वग्गस्मिं, पत्तो च पठमो तथा।
वस्ससाटिकमारञ्ञ-मिति द्वादस दीपिता॥
८१७.
पाचित्तियानि वुत्तानि, सब्बानि गणनावसा।
भिक्खूनं भिक्खुनीनञ्च, अट्ठासीतिसतं, ततो॥
८१८.
सब्बो भिक्खुनिवग्गोपि, सपरम्परभोजनो।
तथा अनतिरित्तो च, अभिहट्ठुं पवारणा॥
८१९.
पणीतभोजनविञ्ञत्ति, तथेवाचेलकोपि च।
निमन्तितो सभत्तो च, दुट्ठुल्लच्छादनम्पि च॥
८२०.
ऊनवीसतिवस्सं तु, मातुगामेन सद्धिपि।
अन्तेपुरप्पवेसो च, वस्ससाटि निसीदनं॥
८२१.
खुद्दकानि पनेतानि, द्वावीसति भवन्ति हि।
चत्तारो पन गारय्हा, भिक्खूनं पातिमोक्खके॥
८२२.
एकतो पन पञ्ञत्ता, छचत्तालीस होन्तिमे।
भिक्खुनीहि तु भिक्खूनं, असाधारणतं गता॥
८२३.
भिक्खूहि भिक्खुनीनञ्च, सतं तिंस भवन्ति हि।
असाधारणभावं तु, गमितानि महेसिना॥
८२४.
पाराजिकानि चत्तारि, दस सङ्घादिसेसका।
द्वादसेव च निस्सग्गा, खुद्दका नवुतिच्छ च॥
८२५.
अट्ठेव पन गारय्हा, सतं तिंस भवन्तिमे।
भिक्खुनीनञ्च भिक्खूहि, असाधारणतं गता॥
८२६.
भिक्खुनीनं तु सङ्घादि-सेसेहि छ पनादितो।
यावततियका चेव, चत्तारोति इमे दस॥
८२७.
अकालचीवरञ्चेव, तथा अच्छिन्नचीवरम्।
सत्तञ्ञदत्थिकादीनि, पत्तो चेव गरुं लहुं॥
८२८.
द्वादसेव पनेतानि, भिक्खुनीनं वसेनिध।
निस्सग्गियानि सत्थारा, पञ्ञत्तानि पनेकतो॥
८२९.
असाधारणपञ्ञत्ता, खुद्दका नवुतिच्छ च।
गारय्हा च पनट्ठाति, सब्बेव गणनावसा॥
८३०.
भिक्खुनीनं तु भिक्खूहि, असाधारणतं गता।
एकतोयेव पञ्ञत्ता, सतं तिंस भवन्ति हि॥
८३१.
असाधारणुभिन्नम्पि, सतं सत्तति चच्छ च।
पाराजिकानि चत्तारि, गरुका च दसच्छ च॥
८३२.
अनियता दुवे चेव, निस्सग्गा चतुवीसति।
सतं अट्ठारसेवेत्थ, खुद्दका परिदीपिता॥
८३३.
द्वादसेव च गारय्हा, सतं सत्तति चच्छ च।
असाधारणुभिन्नम्पि, इमेति परिदीपिता॥
८३४.
साधारणा उभिन्नम्पि, पञ्ञत्ता पन सत्थुना।
सतं सत्तति चत्तारि, भवन्तीति पकासिता॥
८३५.
पाराजिकानि चत्तारि, सत्त सङ्घादिसेसका।
अट्ठारस च निस्सग्गा, समसत्तति खुद्दका॥
८३६.
पञ्चसत्तति पञ्ञत्ता, सेखियापि च सब्बसो।
सतं सत्तति चत्तारि, उभिन्नं समसिक्खता॥
साधारणासाधारणकथा।

लक्खणकथा

८३७.
इतो परं पवक्खामि, लक्खणं पन सब्बगम्।
सवने सादरं कत्वा, वदतो मे निबोधथ॥
८३८.
निदानं पुग्गलो वत्थु, पञ्ञत्तिविधिमेव च।
विपत्तापत्तनापत्ति, आणत्तङ्गकिरियापि च॥
८३९.
सञ्ञाचित्तसमुट्ठानं, वज्जकम्मपभेदकम्।
तिकद्वयन्ति सब्बत्थ, योजेतब्बमिदं पन॥
८४०.
पुब्बे वुत्तनयं यञ्च, यञ्च उत्तानमेविध।
तं सब्बं पन वज्जेत्वा, करिस्सामत्थजोतनं॥
८४१.
पुग्गलो नाम यं यं तु, भिक्खुमारब्भ भिक्खुनिम्।
सिक्खापदं तु पञ्ञत्तं, अयं वुच्चति पुग्गलो॥
८४२.
तेवीसतिविधा ते च, सुदिन्नधनियादयो।
भिक्खूनं पातिमोक्खस्मिं, आदिकम्मिकपुग्गला॥
८४३.
भिक्खुनीनं तथा पाति-मोक्खस्मिं आदिकम्मिका।
थुल्लनन्दादयो सत्त, सब्बे तिंस भवन्ति हि॥
८४४.
वत्थूति पुग्गलस्सेव, तस्स तस्स च सब्बसो।
वत्थुनो तस्स तस्सेव, अज्झाचारो पवुच्चति॥
८४५.
केवला पन पञ्ञत्ति, मूलभूता तथेव सा।
अन्वनुप्पन्नसब्बत्थ-पदेसपदपुब्बिका॥
८४६.
साधारणा च पञ्ञत्ति, तथासाधारणापि च।
एकतोउभतोपुब्बा, एवं नवविधा सिया॥
८४७.
तत्थ ‘‘यो मेथुनं धम्मं, पटिसेवेय्य भिक्खु’’ति।
‘‘अदिन्नं आदियेय्या’’ति, पञ्ञत्तिच्चेवमादिका॥
८४८.
होति ‘‘अन्तमसो भिक्खु, तिरच्छानगतायपि’’।
इच्चेवमादिका सब्बा, अनुपञ्ञत्ति दीपिता॥
८४९.
तथानुप्पन्नपञ्ञत्ति, अनुप्पन्ने तु वज्जके।
अट्ठन्नं गरुधम्मानं, वसेनेवागता हि सा॥
८५०.
चम्मत्थरणकञ्चेव, सगुणङ्गुणुपाहनम्।
तथेव च धुवन्हानं, पञ्चवग्गूपसम्पदा॥
८५१.
एसा पदेसपञ्ञत्ति, नामाति हि चतुब्बिधा।
वुत्ता मज्झिमदेसस्मिं-येव होति, न अञ्ञतो॥
८५२.
इतो सेसा हि सब्बत्थ-पञ्ञत्तीति पकासिता।
अत्थतो एकमेवेत्थ, साधारणदुकादिकं॥
८५३.
साणत्तिका पनापत्ति, होति नाणत्तिकापि च।
आणत्तीति च नामेसा, ञेय्या आणापना पन॥
८५४.
आपत्तीनं तु सब्बासं, सब्बसिक्खापदेसुपि।
सब्बो पनङ्गभेदो हि, विञ्ञातब्बो विभाविना॥
८५५.
कायेनपि च वाचाय, या करोन्तस्स जायते।
अयं क्रियसमुट्ठाना, नाम पाराजिका विय॥
८५६.
कायवाचाहि कत्तब्बं, अकरोन्तस्स होति या।
सा चाक्रियसमुट्ठाना, पठमे कथिने विय॥
८५७.
करोन्तस्साकरोन्तस्स, भिक्खुनो होति या पन।
सा क्रियाक्रियतो होति, चीवरग्गहणे विय॥
८५८.
सिया पन करोन्तस्स, अकरोन्तस्स या सिया।
सा क्रियाक्रियतो होति, रूपियुग्गहणे विय॥
८५९.
तथा सिया करोन्तस्स।
या करोतो अकुब्बतो।
सिया किरियतो चेव।
सा क्रियाक्रियतोपि च॥
८६०.
सब्बा चापत्तियो सञ्ञा-।
वसेन दुविधा सियुम्।
सञ्ञाविमोक्खा नोसञ्ञा-।
विमोक्खाति पकासिता॥
८६१.
वीतिक्कमनसञ्ञाय, अभावेन यतो पन।
विमुच्चति अयं सञ्ञा-विमोक्खाति पकासिता॥
८६२.
इतरा पन नोसञ्ञा-विमोक्खाति पकासिता।
पुन सब्बाव चित्तस्स, वसेन दुविधा सियुं॥
८६३.
सचित्तका अचित्ताति, सुचित्तेन पकासिता।
सचित्तकसमुट्ठान-वसेन पन या सिया॥
८६४.
अयं सचित्तका नाम, आपत्ति परिदीपिता।
सचित्तकेहि वा मिस्स-वसेनायमचित्तका॥
८६५.
सब्बा चापत्तियो वज्ज-वसेन दुविधा रुता।
सुविज्जेनानवज्जेन, लोकपण्णत्तिवज्जतो॥
८६६.
यस्सा सचित्तके पक्खे, चित्तं अकुसलं सिया।
लोकवज्जाति नामायं, सेसा पण्णत्तिवज्जका॥
८६७.
सब्बा चापत्तियो कम्म-वसेन तिविधा सियुम्।
कायकम्मं वचीकम्मं, तथा तदुभयम्पि च॥
८६८.
तिकद्वयन्ति नामेतं, कुसलादितिकद्वयम्।
कुसलाकुसलचित्तो वा, तथाब्याकतमानसो॥
८६९.
हुत्वा आपज्जतापत्तिं, आपज्जन्तो न अञ्ञथा।
सुखवेदनासमङ्गी वा, तथा दुक्खादिसंयुतो॥
८७०.
इदं तु लक्खणं वुत्तं, सब्बसिक्खापदेसुपि।
योजेत्वा पन दस्सेय्य, विनयस्मिं विसारदो॥
८७१.
तरुं तिमूलं नवपत्तमेनम्।
चतुस्सिखं सत्तफलं छपुप्फम्।
जानाति यो द्विप्पभवं द्विसाखम्।
जानाति पञ्ञत्तिमसेसतो सो॥
८७२.
इममुत्तरं गतमनुत्तरतम्।
परियापुणाति परिपुच्छति यो।
उपयातनुत्तरतमुत्तरतो।
स च कायवाचविनये विनये॥
लक्खणकथा।
८७३.
सोळसपरिवारस्स, परिवारस्स सब्बसो।
इतो परं पवक्खामि, सब्बसङ्कलनं नयं॥
८७४.
कति आपत्तियो वुत्ता।
कायिका, वाचसिका कति?
छादेन्तस्स कतापत्ती।
कति संसग्गपच्चया?
८७५.
कायिका छब्बिधापत्ति, तथा वाचसिकापि च।
छादेन्तस्स च तिस्सोव, पञ्च संसग्गपच्चया॥
८७६.
कति आपत्तिमूलानि, पञ्ञत्तानि महेसिना?
कति आपत्तियो वुत्ता, दुट्ठुल्लच्छादने पन?
८७७.
द्वे पनापत्तिमूलानि, कायो वाचा भवन्ति हि।
पाराजिका च पाचित्ति, दुट्ठुल्लच्छादने सियुं॥
८७८.
कति गामन्तरे वुत्ता, नदीपारे तथा कति?
कति थुल्लच्चयं मंसे, कति मंसेसु दुक्कटं?
८७९.
गामन्तरे चतस्सोव, नदीपारेपि तत्तका।
थुल्लच्चयं मनुस्सानं, मंसे, नवसु दुक्कटं॥
८८०.
भिक्खु भिक्खुनिया सद्धिं, संविधाति च दुक्कटम्।
पाचित्तञ्ञस्स गामस्स, उपचारोक्कमे सिया॥
८८१.
थुल्लच्चयं परिक्खित्ते, गामस्मिं पठमे पदे।
गरुकं दुतिये तस्सा, गामन्तरं वजन्तिया॥
८८२.
तथा भिक्खुनिया सद्धिं, संविधाने तु दुक्कटम्।
अभिरूहति नावं चे, होति पाचित्ति भिक्खुनो॥
८८३.
नदियुत्तरणे काले, पादे थुल्लच्चयं फुसे।
पठमे, दुतिये तस्सा, होति भिक्खुनिया गरुं॥
८८४.
कति वाचसिका रत्तिं, कति वाचसिका दिवा?
दुवे वाचसिका रत्तिं, दुवे वाचसिका दिवा॥
८८५.
रत्तन्धकारे पुरिसेन सद्धिम्।
ठिता अदीपे पन हत्थपासे।
पाचित्ति तस्सा यदि सल्लपेय्य।
वदेय्य चे दुक्कटमेव दूरे॥
८८६.
छन्ने दिवा या पुरिसेन सद्धिम्।
ठिता वदेय्यस्स च हत्थपासे।
पाचित्ति, हित्वा पन हत्थपासम्।
वदेय्य चे दुक्कटमेव तस्सा॥
८८७.
कति वा ददमानस्स, कति वा पटिगण्हतो?
ददमानस्स तिस्सोव, चतस्सोव पटिग्गहे॥
८८८.
मनुस्सस्स विसं देति, सचे मरति तेन सो।
होति पाराजिकं, यक्खे, पेते थुल्लच्चयं मतं॥
८८९.
तिरच्छानगते तेन, मते पाचित्तियं सिया।
तथा पाचित्ति अञ्ञाति-काय चे देति चीवरं॥
८९०.
हत्थगाहे तथा वेणि-गाहे सङ्घादिसेसता।
मुखेन अङ्गजातस्स, गहणे तु पराजयो॥
८९१.
अञ्ञातिकाय हत्थम्हा, चीवरस्स पटिग्गहे।
सनिस्सग्गा च पाचित्ति, होतीति परियापुता॥
८९२.
अवस्सुतस्स हत्थम्हा, सयं वापि अवस्सुता।
होति थुल्लच्चयं तस्सा, भोजनं पटिगण्हतो॥
८९३.
कति ञत्तिचतुत्थेन, वुत्ता सम्मुतियो इध?
एका एव पनुद्दिट्ठा, भिक्खुनोवादसम्मुति॥
८९४.
कति धञ्ञरसा वुत्ता, विकाले कप्पिया पन?
लोणसोवीरकं एकं, विकाले कप्पियं मतं॥
८९५.
कति पाराजिका काया, कति संवासभूमियो?
रत्तिच्छेदो कतीनं तु, पञ्ञत्ता द्वङ्गुला कति?
८९६.
पाराजिकानि कायम्हा, द्वे द्वे संवासभूमियो।
रत्तिच्छेदो दुविन्नं तु, पञ्ञत्ता द्वङ्गुला दुवे॥
८९७.
पठमन्तिमवत्थुञ्च, कायसंसग्गजम्पि च।
पाराजिकानि कायम्हा, इमे द्वे पन जायरे॥
८९८.
समानसंवासकभूमि एका।
तथेव नानापदपुब्बिका च।
द्वे एव संवासकभूमियो हि।
महेसिना कारुणिकेन वुत्ता॥
८९९.
पारिवासिकभिक्खुस्स , तथा मानत्तचारिनो।
रत्तिच्छेदो दुविन्नं तु, द्वयातीतेन दीपितो॥
९००.
द्वङ्गुलपब्बपरमं, आदातब्बं, तथेव च।
द्वङ्गुलं वा दुमासं वा, पञ्ञत्ता द्वङ्गुला दुवे॥
९०१.
कति पाणातिपातस्मिं, वाचा पाराजिका कति?
कति ओभासने वुत्ता, सञ्चरित्ते तथा कति?
९०२.
तिस्सो पाणातिपातस्मिम्।
वाचा पाराजिका तयो।
ओभासने तयो वुत्ता।
सञ्चरित्ते तथा तयो॥
९०३.
अनोदिस्सकमोपाते, खते मरति मानुसो।
पाराजिकं सिया, यक्खे, पेते थुल्लच्चयं मते॥
९०४.
तिरच्छानगते तत्थ, मते पाचित्तियं वदे।
इमा पाणातिपातस्मिं, तिस्सो आपत्तियो सियुं॥
९०५.
मनुस्समारणादिन्ना-दानमाणत्तियापि च।
मनुस्सुत्तरिधम्मञ्च, वदतो वाचिका तयो॥
९०६.
मग्गद्वयं पनोदिस्स, वण्णादिभणने गरुम्।
थुल्लच्चयं पनोदिस्स, उब्भजाणुमधक्खकं॥
९०७.
उब्भक्खकमधोजाणु-मादिस्स भणतो पन।
दुक्कटं पन निद्दिट्ठं, तिस्सो ओभासना यिमा॥
९०८.
पटिग्गण्हनतादीहि, तीहि सङ्घादिसेसता।
द्वीहि थुल्लच्चयं वुत्तं, एकेन पन दुक्कटं॥
९०९.
छिन्दतो कति आपत्ति, छड्डितप्पच्चया कति?
छिन्दन्तस्स तु तिस्सोव, पञ्च छड्डितपच्चया॥
९१०.
होति पाराजिकं तस्स, छिन्दन्तस्स वनप्पतिम्।
भूतगामं तु पाचित्ति, अङ्गजातं तु थुल्लता॥
९११.
विसं छड्डेत्यनोदिस्स, मनुस्सो मरति तेन चे।
पाराजिकं, मते यक्खे, पेते थुल्लच्चयं सिया॥
९१२.
तिरच्छाने तु पाचित्ति, विसट्ठिछड्डने गरुम्।
हरितुच्चारपस्साव-छड्डने दुक्कटं मतं॥
९१३.
गच्छतो कतिधापत्ति, ठितस्स कति मे वद?
कति होन्ति निसिन्नस्स, निपन्नस्सापि कित्तका?
९१४.
गच्छन्तस्स चतस्सोव, ठितस्सापि च तत्तका।
निसिन्नस्स चतस्सोव, निपन्नस्सापि तत्तका॥
९१५.
भिक्खु भिक्खुनिया सद्धिं, संविधाने तु दुक्कटम्।
पाचित्तञ्ञस्स गामस्स, उपचारोक्कमे सिया॥
९१६.
थुल्लच्चयं परिक्खित्ते, गामस्मिं पठमे पदे।
गरुकं दुतिये होति, गामन्तरं वजन्तिया॥
९१७.
पटिच्छन्ने पनोकासे, भिक्खुनी मित्तसन्थवा।
पोसस्स हत्थपासे तु, पाचित्ति यदि तिट्ठति॥
९१८.
हत्थपासं जहित्वान, सचे तिट्ठति दुक्कटम्।
अरुणुग्गमने काले, दुतिया हत्थपासकं॥
९१९.
हित्वा तिट्ठन्तिया तस्सा, थुल्लच्चयमुदीरितम्।
हित्वा तिट्ठति चे तस्सा, होति सङ्घादिसेसता॥
९२०.
निसिन्नाय चतस्सोव, निपन्नायापि तत्तका।
होन्ति वुत्तप्पकाराव, विञ्ञेय्या विनयञ्ञुना॥
९२१.
यावततियके वुत्ता, कति आपत्तियो वद?
यावततियके वुत्ता, तिस्सो आपत्तियो सुण॥
९२२.
फुसे पाराजिकापत्तिं, उक्खित्तस्सानुवत्तिका।
सङ्घादिसेसता सङ्घ-भेदकस्सानुवत्तिनो॥
९२३.
अनिस्सग्गे तु पाचित्ति, पापिकाय च दिट्ठिया।
यावततियके तिस्सो, होन्ति आपत्तियो इमा॥
९२४.
खादतो कति निद्दिट्ठा, भोजनप्पच्चया कति?
खादतो पन तिस्सोव, पञ्च भोजनकारणा॥
९२५.
थुल्लच्चयं मनुस्सानं, मंसं खादति, दुक्कटम्।
सेसकानं तु, पाचित्ति, लसुणं भक्खयन्तिया॥
९२६.
अवस्सुतस्स पोसस्स, हत्थतो हि अवस्सुता।
गहेत्वा भोजनं किञ्चि, सब्बं मंसं अकप्पियं॥
९२७.
विञ्ञापेत्वान अत्तत्थं, गहेत्वा भोजनम्पि च।
लसुणम्पि च मिस्सेत्वा, एकतज्झोहरन्तिया॥
९२८.
थुल्लच्चयञ्च पाचित्ति, पाटिदेसनियम्पि च।
दुक्कटं गरुकञ्चाति, पञ्च आपत्तियो सियुं॥
९२९.
ओलोकेन्तस्स निद्दिट्ठा, कति आपत्तियो वद?
ओलोकेन्तस्स निद्दिट्ठा, एकापत्ति महेसिना॥
९३०.
दुक्कटं रत्तचित्तेन, अङ्गजातं पनित्थिया।
ओलोकेन्तस्स वा वुत्तं, मुखं भिक्खं ददन्तिया॥
९३१.
कति उक्खित्तका वुत्ता, सम्मावत्तनका कति?
तयो उक्खित्तका वुत्ता, तेचत्तालीस वत्तना॥
९३२.
अदस्सनप्पटीकम्मे, आपन्नापत्तिया दुवे।
एको अप्पटिनिस्सग्गे, पापिकाय च दिट्ठिया॥
९३३.
कति नासितका वुत्ता, कतीनं एकवाचिका?
तयो नासितका वुत्ता, तिण्णन्नं एकवाचिका॥
९३४.
मेत्तिया दूसको चेव, कण्टकोति तयो इमे।
लिङ्गसंवासदण्डेहि, नासिता हि यथाक्कमं॥
९३५.
एकुपज्झायकेनेव, एकेनाचरियेन च।
द्वे तयो अनुसावेतुं, वट्टतीति च निद्दिसे॥
९३६.
ञत्तिया कप्पना चेव, तथा विप्पकतम्पि च।
अतीतकरणञ्चेति, तयो कम्मस्स सङ्गहा॥
९३७.
ञत्तिया कप्पना नाम, ‘‘ददेय्य’’च्चेवमादिका।
‘‘देति सङ्घो, करोती’’ति, आदि विप्पकतं सिया॥
९३८.
‘‘दिन्नं, कतं’’ पनिच्चादि, अतीतकरणं सिया।
सङ्गय्हन्ति हि सब्बानि, कम्मानेतेहि तीहिपि॥
९३९.
सङ्घे सलाकगाहेन, कम्मेनपि च केवलम्।
कारणेहि पन द्वीहि, सङ्घो भिज्जति, नञ्ञथा॥
९४०.
सङ्घभेदकभिक्खुस्स, तस्स पाराजिकं सिया।
अनुवत्तकभिक्खूनं, थुल्लच्चयमुदीरितं॥
९४१.
पयुत्तायुत्तवाचाय, कति आपत्तियो फुसे?
पयुत्तायुत्तवाचाय, छ पनापत्तियो फुसे॥
९४२.
आजीवहेतु पापिच्छो, इच्छापकतमानसो।
असन्तं उत्तरिं धम्मं, उल्लपन्तो पराजितो॥
९४३.
सञ्चरित्तं समापन्ने, तथा सङ्घादिसेसता।
यो ते वसति आरामे, वदं थुल्लच्चयं फुसे॥
९४४.
विञ्ञापेत्वा पणीतं तु, भोजनं भिक्खु भुञ्जति।
पाचित्ति भिक्खुनिया चे, पाटिदेसनियं सिया॥
९४५.
विञ्ञापेत्वान सूपं वा, ओदनं वा अनामयो।
भिक्खु भुञ्जति चे तस्स, होति आपत्ति दुक्कटं॥
९४६.
दससतानि रत्तीनं, छादेत्वापत्तियो पन।
दस रत्तियो वसित्वान, मुच्चेय्य पारिवासिको॥
९४७.
पाराजिकानि अट्ठेव, तेवीस गरुका पन।
द्वेयेवानियता वुत्ता, बुद्धेनादिच्चबन्धुना॥
९४८.
निस्सग्गियानि वुत्तानि, द्वेचत्तालीस होन्ति हि।
होन्ति पाचित्तिया सब्बा, अट्ठासीतिसतं पन॥
९४९.
पाटिदेसनिया वुत्ता, द्वादसेव महेसिना।
वुत्ता पन सुसिक्खेन, पञ्चसत्तति सेखिया॥
९५०.
पञ्ञत्तानि सुपञ्ञेन, गोतमेन यसस्सिना।
भवन्ति पन सब्बानि, अड्ढुड्ढानि सतानि हि॥
९५१.
यो पनेतेसु वत्तब्बो।
सारभूतो विनिच्छयो।
सो मया सकलो वुत्तो।
समासेनेव सब्बथा॥
९५२.
मया सुट्ठु विचारेत्वा, पाळिअट्ठकथानयम्।
कतत्ता आदरं कत्वा, उग्गहेतब्बमेविदं॥
९५३.
अत्थे अक्खरबन्धे वा, विञ्ञासस्स कमेपि वा।
कङ्खा तस्मा न कातब्बा, कातब्बा बहुमानता॥
९५४.
सउत्तरं यो जानाति।
विनयस्स विनिच्छयम्।
निस्सयं सो विमुञ्चित्वा।
यथाकामङ्गमो सिया॥
९५५.
निस्सयं दातुकामेन, सविभङ्गं समातिकम्।
सुट्ठु वाचुग्गतं कत्वा, ञत्वा दातब्बमेविदं॥
९५६.
इमं पठति चिन्तेति, सुणाति परिपुच्छति।
वाचेति च परं निच्चं, अत्थं उपपरिक्खति॥
९५७.
यो तस्स पन भिक्खुस्स, अत्था विनयनिस्सिता।
उपट्ठहन्ति सब्बेव, हत्थे आमलकं विय॥
९५८.
इमं परममुत्तरं उत्तरम्।
नरो हमतसागरं सागरम्।
अबुद्धिजनसारदं सारदम्।
सिया विनयपारगो पारगो॥
९५९.
अतो हि निच्चं इममुत्तमं तमम्।
विधूय सिक्खे गुणसंहितं हितम्।
नरो हि सक्कच्चवपूरतो रतो।
सुखस्स सब्बङ्गणकम्मदं पदं॥
९६०.
विनये पटुभावकरे परमे।
पिटके पटुतं अभिपत्थयता।
विधिना पटुना पटुना यतिना।
परियापुणितब्बमिदं सततं॥

निगमनकथा

९६१.
रचितो बुद्धदत्तेन, सुद्धचित्तेन धीमता।
सुचिरट्ठितिकामेन, सासनस्स महेसिनो॥
९६२.
अन्तरेनन्तरायं तु, यथा सिद्धिमुपागतो।
अत्थतो गन्थतो चेव, उत्तरोयमनुत्तरो॥
९६३.
तथा सिज्झन्तु सङ्कप्पा, सत्तानं धम्मसंयुता।
राजा पातु महिं सम्मा, काले देवो पवस्सतु॥
९६४.
याव तिट्ठति सेलिन्दो, याव चन्दो विरोचति।
ताव तिट्ठतु सद्धम्मो, गोतमस्स महेसिनो॥
९६५.
खन्तिसोरच्चसोसील्य-बुद्धिसद्धादयादयो।
पतिट्ठिता गुणा यस्मिं, रतनानीव सागरे॥
९६६.
विनयाचारयुत्तेन, तेन सक्कच्च सादरम्।
याचितो सङ्घपालेन, थेरेन थिरचेतसा॥
९६७.
सुचिरट्ठितिकामेन , विनयस्स महेसिनो।
भिक्खूनं पाटवत्थाय, विनयस्स विनिच्छये॥
९६८.
अकासिं परमं एतं, उत्तरं नाम नामतो।
सवने सादरं कत्वा, सिक्खितब्बो ततो अयं॥
९६९.
पञ्ञासाधिकसङ्ख्यानि, नवगाथासतानि हि।
गणना उत्तरस्सायं, छन्दसानुट्ठुभेन तु॥
९७०.
गाथा चतुसहस्सानि, सतञ्च ऊनवीसति।
पमाणतो इमा वुत्ता, विनयस्स विनिच्छयेति॥
इति तम्बपण्णियेन परमवेय्याकरणेन तिपिटकनयविधिकुसलेन परमकविजनहदयपदुमवनविकसनकरेन कविवरवसभेन परमरतिकरवरमधुरवचनुग्गारेन उरगपुरेन बुद्धदत्तेन रचितो उत्तरविनिच्छयो समत्तोति।
उत्तरविनिच्छयो निट्ठितो।