महाविभङ्गसङ्गहकथा
४.
मेथुनं पटिसेवन्तो, कति आपत्तियो फुसे।
मेथुनं पटिसेवन्तो, तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
५.
भवे पाराजिकं खेत्ते, येभुय्यक्खायिते पन।
थुल्लच्चयं मुखे वट्ट-कते वुत्तं तु दुक्कटं॥
६.
अदिन्नं आदियन्तो यो।
कति आपत्तियो फुसे।
अदिन्नं आदियन्तो सो।
तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
७.
पञ्चमासग्घने वापि, अधिके वा पराजयो।
मासे वा दुक्कटं ऊने, मज्झे थुल्लच्चयं ततो॥
८.
मनुस्सजातिं मारेन्तो।
कति आपत्तियो फुसे।
मनुस्सजातिं मारेन्तो।
तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
९.
मनुस्समुद्दिस्सोपातं, खणने दुक्कटं सिया।
दुक्खे थुल्लच्चयं जाते, मते पाराजिकं सिया॥
१०.
असन्तं उत्तरिं धम्मं, वदमत्तूपनायिकम्।
कति आपज्जतापत्ती? तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
११.
असन्तं उत्तरिं धम्मं, भणन्तस्स पराजयो।
थुल्लच्चयं परियाये, ञाते, नो चे तु दुक्कटं॥
पाराजिककथा।
१२.
भण सुक्कं विमोचेन्तो।
कति आपत्तियो फुसे।
सुण सुक्कं विमोचेन्तो।
तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
१३.
गरुकं यदि चेतेति, उपक्कमति मुच्चति।
द्वङ्गे थुल्लच्चयं वुत्तं, पयोगे दुक्कटं सिया॥
१४.
इतो पट्ठाय मुञ्चित्वा, पञ्हापुच्छनमत्तकम्।
विस्सज्जनवसेनेव, होति अत्थविनिच्छयो॥
१५.
इत्थिया कायसंसग्गे, तिस्सो आपत्तियो फुसे।
आमसन्तस्स कायेन, कायं तु गरुकं सिया॥
१६.
कायेन कायबद्धं तु, फुसं थुल्लच्चयं फुसे।
पटिबद्धेन कायेन, पटिबद्धे तु दुक्कटं॥
१७.
इत्थिं दुट्ठुल्लवाचाहि, तिस्सो ओभासतो सियुम्।
वण्णावण्णं वदं द्विन्नं, मग्गानं गरुकं फुसे॥
१८.
वण्णादिभञ्ञे आदिस्स, उब्भजाणुमधक्खकम्।
होति थुल्लच्चयं, काय-पटिबद्धे तु दुक्कटं॥
१९.
अत्तकामचरियाय, वदतो वण्णमित्थिया।
सन्तिके गरुकं होति, सचे जानाति सा पन॥
२०.
सन्तिके पण्डकस्सापि, तस्स थुल्लच्चयं सिया।
तिरच्छानगतस्सापि, सन्तिके दुक्कटं मतं॥
२१.
पटिग्गण्हनवीमंसा, पच्चाहरणकत्तिके।
सञ्चरित्तं समापन्ने, गरुकं निद्दिसे बुधो॥
२२.
तस्स द्वङ्गसमायोगे, होति थुल्लच्चयं तथा।
अङ्गे सति पनेकस्मिं, होति आपत्ति दुक्कटं॥
२३.
संयाचिकाय च कुटिम्।
विहारञ्च महल्लकम्।
कारापेति सचे भिक्खु।
तिस्सो आपत्तियो फुसे॥
२४.
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, एकपिण्डे अनागते।
होति थुल्लच्चयं, तस्मिं, पिण्डे गरुकमागते॥
२५.
पाराजिकेन धम्मेन, भिक्खुं अमूलकेनिध।
अनुद्धंसेति यो तस्स, तिस्सो आपत्तियो सियुं॥
२६.
ओकासं न च कारेत्वा, हुत्वा चावनचेतनो।
सचे चोदेति सङ्घादि-सेसेन सह दुक्कटं॥
२७.
ओकासं पन कारेत्वा, हुत्वा अक्कोसचेतनो।
चोदेति ओमसवादे, पाचित्तिं परिदीपये॥
२८.
अनन्तरसमानोव , नवमे अञ्ञभागिये।
सब्बो आपत्तिभेदो हि, नत्थि काचि विसेसता॥
२९.
सङ्घस्स भेदको भिक्खु, यावततियकं पन।
समनुभासनायेव, गाहं न पटिनिस्सजं॥
३०.
ञत्तिया दुक्कटं, द्वीहि, कम्मवाचाहि थुल्लतम्।
कम्मवाचाय ओसाने, आपत्ति गरुकं सिया॥
३१.
भेदानुवत्तके चेव, दुब्बचे कुलदूसके।
सङ्घभेदकतुल्योव, होति आपत्तिनिच्छयो॥
सङ्घादिसेसकथा।
३२.
अतिक्कमन्तो अतिरेकचीवरम्।
दसाहमापज्जति एकमेव।
निस्सग्गिपाचित्तियमेकरत्तिम्।
तिचीवरेनापि विना वसन्तो॥
३३.
मासं अतिक्कमन्तो हि, गहेत्वा कालचीवरम्।
एकं आपज्जतापत्तिं, निस्सग्गियमुदीरितं॥
३४.
अञ्ञातिकाय यं किञ्चि।
पुराणचीवरं पन।
धोवापेति सचे तस्स।
होन्ति आपत्तियो दुवे॥
३५.
धोवापेति पयोगस्मिं, दुक्कटं समुदाहटम्।
निस्सग्गियाव पाचित्ति, होति धोवापिते पन॥
३६.
अञ्ञातिकाय हत्थम्हा, चीवरं पटिगण्हतो।
गहणे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति गहिते सिया॥
३७.
अञ्ञातकं गहपतिं, गहपतानिमेव वा।
चीवरं विञ्ञापेन्तो द्वे, भिक्खु आपत्तियो फुसे॥
३८.
विञ्ञापेति पयोगस्मिं, दुक्कटं परिकित्तितम्।
विञ्ञापिते च निस्सग्गि, पाचित्ति परियापुता॥
३९.
भिक्खु चीवरमञ्ञातिं, विञ्ञापेन्तो तदुत्तरिम्।
पयोगे दुक्कटं, विञ्ञा-पिते निस्सग्गियं फुसे॥
४०.
अञ्ञातकं कञ्चि उपासकं वा।
उपासिकं वा उपसङ्कमित्वा।
पुब्बेव हुत्वा पन अप्पवारितो।
वत्थे विकप्पं पटिपज्जमानो॥
४१.
दुवे आपज्जतापत्ती, पयोगे दुक्कटं सिया।
विकप्पं पन आपन्ने, निस्सग्गियमुदीरितं॥
४२.
अञ्ञातिं उपसङ्कम्म, पुब्बेयेवप्पवारितो।
विकप्पं चीवरे भिक्खु, आपज्जन्तो दुवे फुसे॥
४३.
तथातिरेकतिक्खत्तुं, चोदनाय च भिक्खु चे।
गन्त्वातिरेकछक्खत्तुं, ठानेनपि च चीवरं॥
४४.
निप्फादेति सचे तस्स, होन्ति आपत्तियो दुवे।
पयोगे दुक्कटं, तस्स, लाभे निस्सग्गियं सिया॥
कथिनवग्गो पठमो।
४५.
दोसा कोसियवग्गस्स, द्वेद्वेआदीसु पञ्चसु।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, लाभे निस्सग्गियं सिया॥
४६.
गहेत्वेळकलोमानि, तियोजनमतिक्कमम्।
दुक्कटं पठमे पादे, निस्सग्गिं दुतिये फुसे॥
४७.
भिक्खु भिक्खुनियञ्ञाय, धोवापेतेळलोमकम्।
पयोगे दुक्कटं, तस्स, धोते निस्सग्गियं सिया॥
४८.
रूपियं पटिगण्हन्तो, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, निस्सग्गि गहिते सिया॥
४९.
नानाकारं समापज्जं, संवोहारञ्च रूपिये।
समापन्ने च निस्सग्गिं, पयोगे दुक्कटं फुसे॥
५०.
नानप्पकारकं भिक्खु, आपज्जे कयविक्कयम्।
पयोगे दुक्कटं, तस्मिं, कते निस्सग्गियं फुसे॥
कोसियवग्गो दुतियो।
५१.
पत्तं अतिक्कमेन्तस्स, दसाहमतिरेककम्।
तस्स निस्सग्गियापत्ति, होति एकाव भिक्खुनो॥
५२.
अपञ्चबन्धने पत्ते, विज्जमानेपि भिक्खुनो।
अञ्ञं पन नवं पत्तं, चेतापेति सचे पन॥
५३.
द्वे पनापत्तियो भिक्खु, आपज्जति, न संसयो।
पयोगे दुक्कटं, तस्स, लाभे निस्सग्गियं फुसे॥
५४.
पटिग्गहेत्वा भेसज्जं, सत्ताहं यो अतिक्कमे।
एकं निस्सग्गियापत्तिं, आपज्जति हि सो पन॥
५५.
अकाले परियेसन्तो, वस्ससाटिकचीवरम्।
पयोगे दुक्कटं, तस्स, लाभे निस्सग्गियं फुसे॥
५६.
भिक्खुनो चीवरं दत्वा, अच्छिन्दन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, हटे निस्सग्गियं सिया॥
५७.
विञ्ञापेत्वा सयं सुत्तं, तन्तवायेहि चीवरम्।
वायापेति सचे भिक्खु, द्वे पनापत्तियो फुसे॥
५८.
यो पनञ्ञातकस्सेव, तन्तवाये समेच्च चे।
विकप्पं चीवरे भिक्खु, आपज्जं अप्पवारितो॥
५९.
द्वे पनापत्तियो सो हि, आपज्जति, न संसयो।
पयोगे दुक्कटं, तस्स, लाभे निस्सग्गियं सिया॥
६०.
पटिग्गहेत्वा अच्चेक-सञ्ञितं पन चीवरम्।
कालं अतिक्कमेन्तो तं, एकं निस्सग्गियं फुसे॥
६१.
तिण्णमञ्ञतरं वत्थं, निदहित्वा घरेधिकम्।
छारत्ततो विना तेन, वसं निस्सग्गियं फुसे॥
६२.
जानं परिणतं लाभं, सङ्घिकं अत्तनो पन।
परिणामेति चे भिक्खु, द्वे पनापत्तियो फुसे॥
६३.
पयोगे दुक्कटं होति, निस्सग्गि परिणामिते।
सब्बत्थ अप्पनावार-परिहानि कता मया॥
पत्तवग्गो ततियो।
तिंसनिस्सग्गियकथा।
६४.
वदन्तस्स मुसावादं, पञ्च आपत्तियो सियुम्।
मनुस्सुत्तरिधम्मे तु, अभूतस्मिं पराजयो॥
६५.
चोदनाय गरुं भिक्खुं, अमूलन्तिमवत्थुना।
परियायवचने ञाते, थुल्लच्चयमुदीरितं॥
६६.
नो चे पटिविजानाति, दुक्कटं समुदाहटम्।
सम्पजानमुसावादे, पाचित्ति परिदीपिता॥
६७.
आपत्तियो दुवे वुत्ता, भिक्खुस्सोमसतो पन।
पाचित्ति उपसम्पन्नं, दुक्कटं इतरं सिया॥
६८.
पेसुञ्ञहरणे द्वेपि, होन्ति, पाचित्तियं पन।
उपसम्पन्नपेसुञ्ञे, सेसे आपत्ति दुक्कटं॥
६९.
पदसोनुपसम्पन्नं , धम्मं वाचेति चे दुवे।
पयोगे दुक्कटं, पादे, पादे पाचित्तियं सिया॥
७०.
तिरत्तानुपसम्पन्न-सहसेय्याय उत्तरिम्।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पन्ने पाचित्तियं सिया॥
७१.
कप्पेति मातुगामेन, सहसेय्यं सचे पन।
द्वे सो आपज्जतापत्ती, रत्तियं दुक्कटादयो॥
७२.
उद्धं छप्पञ्चवाचाहि, धम्मं देसेति इत्थिया।
पयोगे दुक्कटं, पादे, पादे पाचित्तियं सिया॥
७३.
भूतं अनुपसम्पन्ने, मनुस्सुत्तरिधम्मकम्।
आरोचेति सचे तस्स, होन्ति द्वे दुक्कटादयो॥
७४.
वदं अनुपसम्पन्ने, दुट्ठुल्लापत्तिमञ्ञतो।
पयोगे दुक्कटं तस्स, पाचित्तारोचिते सिया॥
७५.
पथविं खणतो तस्स, पयोगे दुक्कटं मतम्।
पहारे च पहारे च, पाचित्ति परियापुता॥
मुसावादवग्गो पठमो।
७६.
भूतगामं तु पातेन्तो, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं, तस्स, पाते पाचित्ति दीपिता॥
७७.
अञ्ञेनञ्ञं वदन्तस्स, द्वे सियुं अञ्ञवादके।
अरोपिते दुक्कटं तु, होति पाचित्ति रोपिते॥
७८.
उज्झापेन्तो परं भिक्खुं, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं, उज्झा-पिते पाचित्तियं सिया॥
७९.
अज्झोकासे तु मञ्चादिं, सन्थरित्वान सङ्घिकम्।
पक्कमन्तो अनापुच्छा, आपत्तिं दुविधं फुसे॥
८०.
लेड्डुपाते अतिक्कन्ते, पादेन पठमेन तु।
दुक्कटं, दुतियेनापि, पाचित्ति परिदीपये॥
८१.
विहारे सङ्घिके सेय्यं, सन्थरित्वा अनुद्धरम्।
अनापुच्छा पक्कमन्तो, दुविधापत्तियो फुसे॥
८२.
परिक्खेपे अतिक्कन्ते, पादेन पठमेन तु।
दुक्कटं पन उद्दिट्ठं, पाचित्ति दुतियेन तु॥
८३.
विहारे सङ्घिके जानं, पुब्बूपगतभिक्खुकम्।
सेय्यं कप्पयतो होन्ति, पयोगे दुक्कटादयो॥
८४.
सङ्घिका कुपितो भिक्खुं, निक्कड्ढति विहारतो।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, सेसं निक्कड्ढिते सिया॥
८५.
विहारे सङ्घिके भिक्खु, वेहासकुटियूपरि।
आहच्चपादके सीदं, फुसे द्वे दुक्कटादयो॥
८६.
अधिट्ठित्वा द्वत्तिपरियाये, उत्तरिम्पि अधिट्ठतो।
पयोगे दुक्कटं होति, पाचित्ति पनधिट्ठिते॥
८७.
जानं सप्पाणकं तोयं, तिणं वा सिञ्चतो पन।
पयोगे दुक्कटं होति, सित्ते पाचित्तियं सिया॥
भूतगामवग्गो दुतियो।
८८.
फुसे भिक्खुनियो भिक्खु, ओवदन्तो असम्मतो।
पयोगे दुक्कटं, तस्स, पाचित्तोवदिते सिया॥
८९.
दुतिये ततिये चेव, चतुत्थेपि च सब्बसो।
पठमेन समानाव, आपत्तीनं विभागता॥
९०.
चीवरं भिक्खु अञ्ञाति-काय देन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, दिन्ने पाचित्तियं सिया॥
९१.
अञ्ञातिकभिक्खुनिया , भिक्खु सिब्बेय्य चीवरम्।
पयोगे दुक्कटं तस्स, पाचित्ति पन सिब्बिते॥
९२.
अद्धानञ्ञत्र समया, भिक्खु भिक्खुनिया सह।
संविधाय तु गच्छन्तो, फुसे द्वे दुक्कटादयो॥
९३.
नावेकं अभिरूहन्तो, भिक्खु भिक्खुनिया सह।
संविधाय फुसे द्वेपि, पयोगे दुक्कटादयो॥
९४.
जानं भिक्खुनिया पिण्ड-पातं तु परिपाचितम्।
भुञ्जन्तो दुविधापत्ति-मापज्जति, न संसयो॥
९५.
‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति चे भत्तं, पटिग्गण्हाति दुक्कटम्।
अज्झोहारपयोगेसु, पाचित्ति परिदीपिता॥
९६.
भिक्खु भिक्खुनिया सद्धिं, निसज्जं तु रहो पन।
कप्पेन्तो हि फुसे द्वेपि, पयोगे दुक्कटादयो॥
ओवादवग्गो ततियो।
९७.
तदुत्तरिं आवसथ-पिण्डं तु परिभुञ्जतो।
अनन्तरस्स वग्गस्स, नवमेन समो नयो॥
९८.
दुतिये ततिये चापि, विसेसो नत्थि कोचिपि।
अनन्तरसमानाव, आपत्तीनं विभागता॥
९९.
द्वत्तिपत्ते गहेत्वान, गण्हतो हि तदुत्तरिम्।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति गहिते सिया॥
१००.
पञ्चमे पठमेनेव, समो आपत्तिनिच्छयो।
छट्ठे अनतिरित्तेन, भुत्ताविं तु पवारितं॥
१०१.
अभिहट्ठुं पवारेन्तो, द्वे पनापत्तियो फुसे।
वचनेन च तस्सेव, ‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति गण्हति॥
१०२.
गहणे दुक्कटं तस्स, पिटके समुदाहटम्।
भोजनस्स पनोसाने, पाचित्ति परियापुता॥
१०३.
सत्तमे अट्ठमे चेव, नवमे दसमेपि च।
पठमेन समानाव, आपत्तीनं विभागता॥
भोजनवग्गो चतुत्थो।
१०४.
अचेलकादिनो देन्तो, सहत्था भोजनादिकम्।
पयोगे दुक्कटं पत्तो, दिन्ने पाचित्तियं फुसे॥
१०५.
दापेत्वा वा अदापेत्वा, उय्योजेन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं, तस्मिं, पाचित्तुय्योजिते सिया॥
१०६.
निसज्जं भिक्खु कप्पेन्तो, कुले पन सभोजने।
आपत्तियो फुसे द्वेपि, पयोगे दुक्कटादयो॥
१०७.
चतुत्थे पञ्चमे वापि, विसेसो नत्थि कोचिपि।
ततियेन समानाव, आपत्तिगणना सिया॥
१०८.
सन्तं भिक्खुं अनापुच्छा, सभत्तो च निमन्तितो।
कुलेसु पन चारित्तं, आपज्जन्तो दुवे फुसे॥
१०९.
पठमेन च पादेन, उम्मारातिक्कमे पन।
दुक्कटं पिटके वुत्तं, पाचित्ति दुतियेन तु॥
११०.
तदुत्तरिं तु भेसज्जं, विञ्ञापेन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं, विञ्ञा-पिते पाचित्तियं सिया॥
१११.
उय्युत्तं दस्सनत्थाय, गच्छन्तो द्वे फुसे बलम्।
गच्छतो दुक्कटं वुत्तं, होति पाचित्ति पस्सतो॥
११२.
अतिरेकतिरत्तं तु, सेनाय वसतो दुवे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति वसिते सिया॥
११३.
उय्योधिकं तु गच्छन्तो, द्वे पनापत्तियो फुसे।
गच्छन्तो दुक्कटं वुत्तं, होति पाचित्ति पस्सतो॥
अचेलकवग्गो पञ्चमो।
११४.
सुरं वा पन मेरेय्यं, पिवन्तो द्वे फुसे मुनि।
गण्हतो दुक्कटं पातुं, पीते पाचित्तियं सिया॥
११५.
भिक्खङ्गुलिपतोदेन, हासेन्तो द्वे फुसे हवे।
पयोगे दुक्कटं तस्स, पाचित्ति हसिते सिया॥
११६.
कीळन्तो उदके भिक्खु, द्वे पनापत्तियो फुसे।
दुक्कटं गोप्फका हेट्ठा, पाचित्तुपरिगोप्फके॥
११७.
यो पनादरियं भिक्खु, करोन्तो द्वे फुसे हवे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, कते पाचित्तियं सिया॥
११८.
भिंसापेन्तो हवे भिक्खु, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं, भिंसा-पिते पाचित्तियं सिया॥
११९.
जोतिं समादहित्वान, विसिब्बेन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्तियं विसीविते॥
१२०.
ओरसो अद्धमासस्स, न्हायन्तो द्वे फुसे हवे।
पयोगे दुक्कटं, न्हान-स्सोसाने इतरं सिया॥
१२१.
दुब्बण्णकरणानं तु, तिण्णमेकमनादिय।
चीवरं परिभुञ्जन्तो, द्वे फुसे दुक्कटादयो॥
१२२.
चीवरं भिक्खुआदीनं, विकप्पेत्वा अनुद्धरम्।
द्वे फुसे परिभुञ्जन्तो, पयोगे दुक्कटादयो॥
१२३.
भिक्खुस्सापनिधेन्तो द्वे, फुसे पत्तादिकं पन।
पयोगे दुक्कटं, तस्मिं, सेसापनिहिते सिया॥
सुरापानवग्गो छट्ठो।
१२४.
सञ्चिच्च जीविता पाणं, वोरोपेन्तो तपोधनो।
आपत्तियो चतस्सोव, आपज्जति, न संसयो॥
१२५.
अनोदिस्सकमोपातं, खणतो होति दुक्कटम्।
मनुस्सो मरति तस्मिं, पतित्वा चे पराजयो॥
१२६.
यक्खो वापि तिरच्छान-गतो मनुस्सविग्गहो।
पतित्वा मरती पेतो, तस्स थुल्लच्चयं सिया॥
१२७.
तिरच्छानगते तस्मिं, निपतित्वा मते पन।
तस्स पाचित्तियापत्ति, पञ्ञत्ता पटुबुद्धिना॥
१२८.
जानं सप्पाणकं तोयं, परिभुञ्जं दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं तस्स, भुत्ते पाचित्तियं सिया॥
१२९.
निहताधिकरणं जानं, उक्कोटेन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्तुक्कोटिते सिया॥
१३०.
जानं भिक्खुस्स दुट्ठुल्लं, छादेन्तो पन वज्जकम्।
एकमापज्जतापत्तिं, पाचित्तिमिति दीपितं॥
१३१.
ऊनवीसतिवस्सं तु, करोन्तो उपसम्पदम्।
पयोगे दुक्कटं पत्तो, सेसा सम्पादिते सिया॥
१३२.
जानं तु थेय्यसत्थेन, संविधाय सहेव च।
तथेव मातुगामेन, मग्गं तु पटिपज्जतो॥
१३३.
द्वे पनापत्तियो होन्ति, पयोगे दुक्कटं मतम्।
पटिपन्ने पनुद्दिट्ठं, पाचित्तियमनन्तरं॥
१३४.
अच्चजं पापिकं दिट्ठिं, ञत्तिया दुक्कटं फुसे।
कम्मवाचाय ओसाने, होति पाचित्ति भिक्खुनो॥
१३५.
तथाकटानुधम्मेन, संभुञ्जन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं तस्स, भुत्ते पाचित्तियं सिया॥
१३६.
नासितं समणुद्देसंपलापेन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति उपलापिते॥
सप्पाणकवग्गो सत्तमो।
१३७.
वुच्चमानस्स भिक्खुस्स, भिक्खूहि सहधम्मिकम्।
‘‘न सक्खिस्सामि’’इच्चेवं, भणतो दुक्कटादयो॥
१३८.
विनयं तु विवण्णेन्तो, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं तस्स, पाचित्तेव विवण्णिते॥
१३९.
मोहेन्तो द्वे फुसे, मोहे, दुक्कटं तु अरोपिते।
रोपिते पन मोहस्मिं, पाचित्तियमुदीरितं॥
१४०.
पहारं कुपितो देन्तो, भिक्खुस्स द्वे फुसे हवे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, पाचित्ति पहटे सिया॥
१४१.
भिक्खुस्स कुपितो भिक्खु, उग्गिरं तलसत्तिकम्।
द्वे फुसे दुक्कटं योगे, पाचित्तुग्गिरिते सिया॥
१४२.
भिक्खु सङ्घादिसेसेन, अमूलेनेव चोदयम्।
द्वे फुसे दुक्कटं योगे, पाचित्तुद्धंसिते सिया॥
१४३.
भिक्खु सञ्चिच्च कुक्कुच्चं, जनयन्तो हि भिक्खुनो।
द्वे फुसे दुक्कटं योगे, पाचित्तुप्पादिते सिया॥
१४४.
तिट्ठन्तुपस्सुतिं भिक्खु, द्वे पनापत्तियो फुसे।
गच्छतो दुक्कटं सोतुं, पाचित्ति सुणतो सिया॥
१४५.
धम्मिकानं तु कम्मानं, छन्दं दत्वा ततो पुन।
खीयनधम्ममापज्जं, द्वे फुसे दुक्कटादयो॥
१४६.
सङ्घे विनिच्छये निट्ठं, अगते छन्दमत्तनो।
अदत्वा गच्छतो तस्स, द्वे पनापत्तियो सियुं॥
१४७.
हत्थपासं तु सङ्घस्स, जहतो होति दुक्कटम्।
जहिते हत्थपासस्मिं, होति पाचित्ति भिक्खुनो॥
१४८.
समग्गेन च सङ्घेन, दत्वान सह चीवरम्।
खीयन्तो द्वे फुसे पच्छा, पयोगे दुक्कटादयो॥
१४९.
लाभं परिणतं जानं, सङ्घिकं पुग्गलस्स हि।
द्वे फुसे परिणामेन्तो, पयोगे दुक्कटादयो॥
सहधम्मिकवग्गो अट्ठमो।
१५०.
पुब्बे अविदितो हुत्वा, रञ्ञो अन्तेपुरं पन।
पविसन्तस्स भिक्खुनो, द्वे पनापत्तियो सियुं॥
१५१.
पठमेन च पादेन, उम्मारातिक्कमे पन।
दुक्कटं पन उद्दिट्ठं, पाचित्ति दुतियेन तु॥
१५२.
रतनं पन गण्हन्तो, द्वे पनापत्तियो फुसे।
पयोगे दुक्कटं तस्स, पाचित्ति गहिते सिया॥
१५३.
सन्तं भिक्खुं अनापुच्छा, विकाले गामकं पन।
समणो पविसं दोसे, आपज्जति दुवे पन॥
१५४.
पठमेन च पादेन, परिक्खेपं अतिक्कमे।
दुक्कटं तस्स निद्दिट्ठं, पाचित्ति दुतियेन तु॥
१५५.
अट्ठिदन्तविसाणाभि-निब्बत्तं सूचिया घरम्।
कारापेन्तो फुसे द्वेपि, पयोगे दुक्कटादयो॥
१५६.
पमाणातीतमञ्चादिं , कारापेन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, सेसा कारापिते सिया॥
१५७.
तूलोनद्धं तु मञ्चादिं, कारापेन्तो दुवे फुसे।
पयोगे दुक्कटं, तस्मिं, सेसा कारापिते सिया॥
१५८.
सत्तमे अट्ठमे चेव, नवमे दसमेपि च।
अनन्तरसमोयेव, आपत्तीनं विनिच्छयो॥
रतनवग्गो नवमो।
पाचित्तियकथा।
१५९.
चतूसु दुविधापत्ति, पाटिदेसनियेसुपि।
अविसेसेन निद्दिट्ठा, बुद्धेनादिच्चबन्धुना॥
१६०.
‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति भिक्खुस्स, दुक्कटं पटिगण्हतो।
अज्झोहारेसु सब्बत्थ, पाटिदेसनियं सिया॥
पाटिदेसनीयकथा।
१६१.
सेखियेसु च धम्मेसु, एकावापत्ति दीपिता।
अनादरवसेनेव, दुक्कटं समुदाहटं॥
सेखियकथा।
१६२.
पञ्ञत्ता मेथुनं धम्मं, पटिसेवनपच्चया।
कति आपत्तियो होन्ति? चतस्सोव भवन्ति हि॥
१६३.
मेथुनं पटिसेवन्तो, अल्लोकासप्पवेसने।
मते अक्खायिते वापि, भिक्खु पाराजिकं फुसे॥
१६४.
थुल्लच्चयं तु येभुय्य-क्खायिते, दुक्कटं तथा।
मुखे वट्टकते वुत्तं, पाचित्ति जतुमट्ठके॥
१६५.
पञ्ञत्ता कायसंसग्गं, समापज्जनपच्चया।
कति आपत्तियो होन्ति? पञ्च आपत्तियो सियुं॥
१६६.
अवस्सुतस्स पोसस्स, तथा भिक्खुनियापि च।
पाराजिकमधक्खादि-गहणं सादियन्तिया॥
१६७.
कायेन फुसतो कायं, भिक्खुस्स गरुकं सिया।
कायेन कायबद्धं तु, फुसं थुल्लच्चयं सिया॥
१६८.
पटिबद्धेन कायेन, पटिबद्धं तु दुक्कटम्।
पाचित्तियं पनुद्दिट्ठं, तस्सङ्गुलिपतोदके॥
१६९.
सेसेसु सेखियन्तेसु, आपत्तीनं विनिच्छयो।
हेट्ठा वुत्तनयेनेव, वेदितब्बो विभाविना॥
महाविभङ्गसङ्गहो निट्ठितो।