२ भिक्खुनीविभङ्गो

भिक्खुनीविभङ्गो
१९६४.
भिक्खुनीनं हितत्थाय, विभङ्गं यं जिनोब्रवि।
तस्मिं अपि समासेन, किञ्चिमत्तं भणामहं॥
पाराजिककथा
१९६५.
छन्दसो मेथुनं धम्मं, पटिसेवेय्य या पन।
होति पाराजिका नाम, समणी सा पवुच्चति॥
१९६६.
मनुस्सपुरिसादीनं, नवन्नं यस्स कस्सचि।
सजीवस्साप्यजीवस्स, सन्थतं वा असन्थतं॥
१९६७.
अत्तनो तिविधे मग्गे, येभुय्यक्खायितादिकम्।
अङ्गजातं पवेसेन्ती, अल्लोकासे पराजिता॥
१९६८.
इतो परमवत्वाव, साधारणविनिच्छयम्।
असाधारणमेवाहं, भणिस्सामि समासतो॥
१९६९.
अधक्खकं सरीरकं, यदुब्भजाणुमण्डलम्।
सरीरकेन चे तेन, फुसेय्य भिक्खुनी पन॥
१९७०.
अवस्सुतस्सावस्सुता, मनुस्सपुग्गलस्स या।
सरीरमस्स तेन वा, फुट्ठा पाराजिका सिया॥
१९७१.
कप्परस्स पनुद्धम्पि, गहितं उब्भजाणुना।
यथावुत्तप्पकारेन, कायेनानेन अत्तनो॥
१९७२.
पुरिसस्स तथा काय- पटिबद्धं फुसन्तिया।
तथा यथापरिच्छिन्न- कायबद्धेन अत्तनो॥
१९७३.
अवसेसेन वा तस्स, कायं कायेन अत्तनो।
होति थुल्लच्चयं तस्सा, पयोगे पुरिसस्स च॥
१९७४.
यक्खपेततिरच्छान- पण्डकानं अधक्खकम्।
उब्भजाणुं तथेवस्सा, उभतोवस्सवे सति॥
१९७५.
एकतोवस्सवे चापि, थुल्लच्चयमुदीरितम्।
अवसेसे च सब्बत्थ, होति आपत्ति दुक्कटं॥
१९७६.
उब्भक्खकमधोजाणु-मण्डलं पन यं इध।
कप्परस्स च हेट्ठापि, गतं एत्थेव सङ्गहं॥
१९७७.
केलायति सचे भिक्खु, सद्धिं भिक्खुनिया पन।
उभिन्नं कायसंसग्ग-रागे सति हि भिक्खुनो॥
१९७८.
होति सङ्घादिसेसोव, नासो भिक्खुनिया सिया।
कायसंसग्गरागो च, सचे भिक्खुनिया सिया॥
१९७९.
भिक्खुनो मेथुनो रागो, गेहपेमम्पि वा भवे।
तस्सा थुल्लच्चयं वुत्तं, भिक्खुनो होति दुक्कटं॥
१९८०.
उभिन्नं मेथुने रागे, गेहपेमेपि वा सति।
अविसेसेन निद्दिट्ठं, उभिन्नं दुक्कटं पन॥
१९८१.
यस्स यत्थ मनोसुद्धं, तस्स तत्थ न दोसता।
उभिन्नम्पि अनापत्ति, उभिन्नं चित्तसुद्धिया॥
१९८२.
कायसंसग्गरागेन, भिन्दित्वा पठमं पन।
पच्छा दूसेति चे नेव, होति भिक्खुनिदूसको॥
१९८३.
अथ भिक्खुनिया फुट्ठो, सादियन्तोव चेतसा।
निच्चलो होति चे भिक्खु, न होतापत्ति भिक्खुनो॥
१९८४.
भिक्खुनी भिक्खुना फुट्ठा, सचे होतिपि निच्चला।
अधिवासेति सम्फस्सं, तस्सा पाराजिकं सिया॥
१९८५.
तथा थुल्लच्चयं खेत्ते, दुक्कटञ्च विनिद्दिसे।
वुत्तत्ता ‘‘कायसंसग्गं, सादियेय्या’’ति सत्थुना॥
१९८६.
तस्सा क्रियसमुट्ठानं, एवं सति न दिस्सति।
इदं तब्बहुलेनेव, नयेन परिदीपितं॥
१९८७.
अनापत्ति असञ्चिच्च, अजानित्वामसन्तिया।
सति आमसने तस्सा, फस्सं वासादियन्तिया॥
१९८८.
वेदनट्टाय वा खित्त-चित्तायुम्मत्तिकाय वा।
समुट्ठानादयो तुल्या, पठमन्तिमवत्थुना॥
उब्भजाणुमण्डलकथा।
१९८९.
पाराजिकत्तं जानन्ति, सलिङ्गे तु ठिताय हि।
‘‘न कस्सचि परस्साहं, आरोचेस्सामि दानि’’ति॥
१९९०.
धुरे निक्खित्तमत्तस्मिं, सा च पाराजिका सिया।
अयं वज्जपटिच्छादि- नामिका पन नामतो॥
१९९१.
सेसं सप्पाणवग्गस्मिं, दुट्ठुल्लेन समं नये।
विसेसो तत्र पाचित्ति, इध पाराजिकं सिया॥
वज्जपटिच्छादिकथा।
१९९२.
सङ्घेनुक्खित्तको भिक्खु, ठितो उक्खेपने पन।
यंदिट्ठिको च सो तस्सा, दिट्ठिया गहणेन तं॥
१९९३.
अनुवत्तेय्य या भिक्खुं, भिक्खुनी सा विसुम्पि च।
सङ्घमज्झेपि अञ्ञाहि, वुच्चमाना तथेव च॥
१९९४.
अचजन्तीव तं वत्थुं, गहेत्वा यदि तिट्ठति।
तस्स कम्मस्स ओसाने, उक्खित्तस्सानुवत्तिका॥
१९९५.
होति पाराजिकापन्ना, होतासाकियधीतरा।
पुन अप्पटिसन्धेया, द्विधा भिन्ना सिला विय॥
१९९६.
अधम्मे पन कम्मस्मिं, निद्दिट्ठं तिकदुक्कटम्।
समुट्ठानादयो सब्बे, वुत्ता समनुभासने॥
उक्खित्तानुवत्तिककथा।
१९९७.
अपाराजिकखेत्तस्स , गहणं यस्स कस्सचि।
अङ्गस्स पन तं हत्थ-ग्गहणन्ति पवुच्चति॥
१९९८.
पारुतस्स निवत्थस्स, गहणं यस्स कस्सचि।
एतं सङ्घाटिया कण्ण-ग्गहणन्ति पवुच्चति॥
१९९९.
कायसंसग्गसङ्खात-असद्धम्मस्स कारणा।
भिक्खुनी हत्थपासस्मिं, तिट्ठेय्य पुरिसस्स वा॥
२०००.
सल्लपेय्य तथा तत्थ, ठत्वा तु पुरिसेन वा।
सङ्केतं वापि गच्छेय्य, इच्छेय्या गमनस्स वा॥
२००१.
तदत्थाय पटिच्छन्न-ट्ठानञ्च पविसेय्य वा।
उपसंहरेय्य कायं वा, हत्थपासे ठिता पन॥
२००२.
अयमस्समणी होति, विनट्ठा अट्ठवत्थुका।
अभब्बा पुनरुळ्हाय, छिन्नो तालोव मत्थके॥
२००३.
अनुलोमेन वा वत्थुं, पटिलोमेन वा चुता।
अट्ठमं परिपूरेन्ती, तथेकन्तरिकाय वा॥
२००४.
अथादितो पनेकं वा, द्वे वा तीणिपि सत्त वा।
सतक्खत्तुम्पि पूरेन्ती, नेव पाराजिका सिया॥
२००५.
आपत्तियो पनापन्ना, देसेत्वा ताहि मुच्चति।
धुरनिक्खेपनं कत्वा, देसिता गणनूपिका॥
२००६.
न होतापत्तिया अङ्गं, सउस्साहाय देसिता।
देसनागणनं नेति, देसितापि अदेसिता॥
२००७.
अनापत्ति असञ्चिच्च, अजानित्वा करोन्तिया।
समुट्ठानादयो सब्बे, अनन्तरसमा मता॥
२००८.
‘‘असद्धम्मो’’ति नामेत्थ, कायसंसग्गनामको।
अयमुद्दिसितो अत्थो, सब्बअट्ठकथासुपि॥
२००९.
विञ्ञू पटिबलो काय-संसग्गं पटिपज्जितुम्।
कायसंसग्गभावे तु, साधकं वचनं इदं॥
अट्ठवत्थुककथा।
२०१०.
अवस्सुता पटिच्छादी, उक्खित्ता अट्ठवत्थुका।
असाधारणपञ्ञत्ता, चतस्सोव महेसिना॥
पाराजिककथा निट्ठिता।
सङ्घादिसेसकथा
२०११.
या पन भिक्खुनी उस्सयवादा।
अट्टकरी मुखरी विहरेय्य।
येन केनचि नरेनिध सद्धिम्।
सा गरुकं किर दोसमुपेति॥
२०१२.
सक्खिं वापि सहायं वा, परियेसति दुक्कटम्।
पदे पदे तथा अट्टं, कातुं गच्छन्तियापि च॥
२०१३.
आरोचेति सचे पुब्बं, भिक्खुनी अत्तनो कथम्।
दिस्वा वोहारिकं तस्सा, होति आपत्ति दुक्कटं॥
२०१४.
आरोचेति सचे पच्छा, इतरो अत्तनो कथम्।
होति भिक्खुनिया तस्सा, थुल्लच्चयमनन्तरं॥
२०१५.
आरोचेतितरो पुब्बं, सचे सो अत्तनो कथम्।
पच्छा भिक्खुनी चे पुब्ब-सदिसोव विनिच्छयो॥
२०१६.
‘‘आरोचेही’’ति वुत्ता चे, ‘‘कथं तव ममापि च’’।
आरोचेतु यथाकामं, पठमे दुक्कटं सिया॥
२०१७.
दुतियारोचने तस्सा, थुल्लच्चयमुदीरितम्।
उपासकेन वुत्तेपि, अयमेव विनिच्छयो॥
२०१८.
आरोचितकथं सुत्वा, उभिन्नम्पि यथा तथा।
विनिच्छये कते तेहि, अट्टे पन च निट्ठिते॥
२०१९.
अट्टस्स परियोसाने, जये भिक्खुनिया पन।
पराजयेपि वा तस्सा, होति सङ्घादिसेसता॥
२०२०.
दूतं वापि पहिणित्वा, आगन्त्वान सयम्पि वा।
पच्चत्थिकमनुस्सेहि, आकड्ढीयति या पन॥
२०२१.
आरामे पन अञ्ञेहि, अनाचारं कतं सचे।
अनोदिस्स परं किञ्चि, रक्खं याचति तत्थ या॥
२०२२.
याय किञ्चि अवुत्ताव, धम्मट्ठा सयमेव तु।
सुत्वा तं अञ्ञतो अट्टं, निट्ठापेन्ति सचे पन॥
२०२३.
तस्सा, उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
कथिनेन समुट्ठानं, तुल्यं सकिरियं इदं॥
अट्टकारिकथा।
२०२४.
जानन्ती भिक्खुनी चोरिं, वज्झं विदितमेव या।
सङ्घं अनपलोकेत्वा, राजानं गणमेव वा॥
२०२५.
वुट्ठापेय्य विना कप्पं, चोरिवुट्ठापनं पन।
सङ्घादिसेसमापत्ति-मापन्ना नाम होति सा॥
२०२६.
पञ्चमासग्घनं याय, हरितं परसन्तकम्।
अतिरेकग्घनं वापि, अयं ‘‘चोरी’’ति वुच्चति॥
२०२७.
भिक्खुनीसु पनञ्ञासु, तित्थियेसुपि वा तथा।
या पब्बजितपुब्बा सा, अयं ‘‘कप्पा’’ति वुच्चति॥
२०२८.
वुट्ठापेति च या चोरिं, ठपेत्वा कप्पमेविदम्।
सचे आचरिनिं पत्तं, चीवरं परियेसति॥
२०२९.
सम्मन्नति च सीमं वा, तस्सा आपत्ति दुक्कटम्।
ञत्तिया दुक्कटं द्वीहि, कम्मवाचाहि च द्वयं॥
२०३०.
थुल्लच्चयस्स, कम्मन्ते, गरुकं निद्दिसे बुधो।
गणो आचरिनी चेव, न च मुच्चति दुक्कटं॥
२०३१.
अनापत्ति अजानन्ती, वुट्ठापेति, तथेव च।
कप्पं वा अपलोकेत्वा, तस्सा उम्मत्तिकाय वा॥
२०३२.
चोरिवुट्ठापनं नाम, जायते वाचचित्ततो।
कायवाचादितो चेव, सचित्तञ्च क्रियाक्रियं॥
चोरिवुट्ठापनकथा।
२०३३.
गामन्तरं नदीपारं, गच्छेय्येकाव या सचे।
ओहीयेय्य गणम्हा वा, रत्तिं विप्पवसेय्य वा॥
२०३४.
पठमापत्तिकं धम्मं, सापन्ना गरुकं सिया।
सकगामा अनापत्ति, ञातब्बा निक्खमन्तिया॥
२०३५.
निक्खमित्वा ततो अञ्ञं, गामं गच्छन्तिया पन।
दुक्कटं पदवारेन, वेदितब्बं विभाविना॥
२०३६.
एकेन पदवारेन, गामस्स इतरस्स च।
परिक्खेपे अतिक्कन्ते, उपचारोक्कमेपि वा॥
२०३७.
थुल्लच्चयं अतिक्कन्ते, ओक्कन्ते दुतियेन तु।
पादेन गरुकापत्ति, होति भिक्खुनिया पन॥
२०३८.
निक्खमित्वा सचे पच्छा, सकं गामं विसन्तिया।
अयमेव नयो ञेय्यो, वतिच्छिद्देन वा तथा॥
२०३९.
पाकारेन विहारस्स, भूमिं तु पविसन्तिया।
कप्पियन्ति पविट्ठत्ता, न दोसो कोचि विज्जति॥
२०४०.
भिक्खुनीनं विहारस्स, भूमि तासं तु कप्पिया।
होति भिक्खुविहारस्स, भूमि तासमकप्पिया॥
२०४१.
हत्थिअस्सरथादीहि, इद्धिया वा विसन्तिया।
अनापत्ति सियापत्ति, पदसा गमने पन॥
२०४२.
यं किञ्चि सकगामं वा, परगामम्पि वा तथा।
बहिगामे पन ठत्वा, आपत्ति पविसन्तिया॥
२०४३.
लक्खणेनुपपन्नाय, नदिया दुतियं विना।
पारं गच्छति या तीरं, तस्सा समणिया पन॥
२०४४.
पठमं उद्धरित्वान, पादं तीरे ठपेन्तिया।
होति थुल्लच्चयापत्ति, दुतियातिक्कमे गरु॥
२०४५.
अन्तरनदियंयेव, सद्धिं दुतियिकाय हि।
भण्डित्वा ओरिमं तीरं, तथा पच्चुत्तरन्तिया॥
२०४६.
इद्धिया सेतुना नावा-यानरज्जूहि वा पन।
एवम्पि च परं तीरं, अनापत्तुत्तरन्तिया॥
२०४७.
न्हायितुं पिवितुं वापि, ओतिण्णाथ नदिं पुन।
पदसावोरिमं तीरं, पच्चुत्तरति वट्टति॥
२०४८.
पदसा ओतरित्वान, नदिं उत्तरणे पन।
आरोहित्वा तथा सेतुं, अनापत्तुत्तरन्तिया॥
२०४९.
सेतुना उपगन्त्वा वा, यानाकासेहि वा सचे।
याति उत्तरणे काले, पदसा गरुकं फुसे॥
२०५०.
नदिया पारिमं तीरं, इतो ओरिमतीरतो।
उल्लङ्घित्वान वेगेन, अनापत्तुत्तरन्तिया॥
२०५१.
पिट्ठियं वा निसीदित्वा, खन्धे वा उत्तरन्तिया।
हत्थसङ्घातने वापि, दुस्सयानेपि वट्टति॥
२०५२.
‘‘पुरेरुणोदयायेव , पासं दुतियिकाय हि।
गमिस्सामी’’ति आभोगं, विना भिक्खुनिया पन॥
२०५३.
एकगब्भेपि वा हत्थ-पासं दुतियिकाय हि।
अतिक्कम्म सियापत्ति, अरुणं उट्ठपेन्तिया॥
२०५४.
‘‘गमिस्सामी’’ति आभोगं, कत्वा गच्छन्तिया पन।
न दोसो दुतिया पासं, उट्ठेति अरुणं सचे॥
२०५५.
इन्दखीलमतिक्कम्म, अरञ्ञं एत्थ दीपितम्।
गामतो बहि निक्खम्म, तस्सा दुतियिकाय तु॥
२०५६.
दस्सनस्सुपचारं तु, जानित्वा विजहन्तिया।
होति थुल्लच्चयापत्ति, जहिते गरुकं सिया॥
२०५७.
साणिपाकारपाकार-तरुअन्तरिते पन।
सवनस्सुपचारेपि, सति आपत्ति होति हि॥
२०५८.
अज्झोकासे तु दूरेपि, दस्सनस्सुपचारता।
होति, एत्थ कथं धम्म-सवनारोचने विय॥
२०५९.
मग्गमूळ्हस्स सद्देन, विय कूजन्तिया पन।
‘‘अय्ये’’ति तस्सा सद्दस्स, सवनातिक्कमेपि च॥
२०६०.
होति, भिक्खुनियापत्ति, गरुका एवरूपके।
एत्थ भिक्खुनी एकापि, गणायेवाति वुच्चति॥
२०६१.
ओहीयित्वाथ गच्छन्ती, ‘‘पापुणिस्सामि दानिहं’’।
इच्चेवं तु सउस्साहा, अनुबन्धति वट्टति॥
२०६२.
द्विन्नं मग्गं गच्छन्तीनं, एका गन्तुं नो सक्कोति।
उस्साहस्सच्छेदं कत्वा, ओहीना चे तस्सापत्ति॥
२०६३.
इतरापि सचे याति, ‘‘ओहीयतु अय’’न्ति च।
होति तस्सापि आपत्ति, सउस्साहा न होति चे॥
२०६४.
गच्छन्तीसु तथा द्वीसु, पुरिमा याति एककम्।
अञ्ञं पन सचे मग्गं, पच्छिमापि च गण्हति॥
२०६५.
एकिस्सा पन पक्कन्त-ट्ठाने तिट्ठति चेतरा।
तस्मा तत्थ उभिन्नम्पि, अनापत्ति पकासिता॥
२०६६.
अरुणुग्गमना पुब्बे, निक्खमित्वा सगामतो।
अरुणुग्गमने काले, गामन्तरगताय हि॥
२०६७.
अतिक्कमन्तिया पारं, नदिया दुतियिकं विना।
आपत्तियो चतस्सोपि, होन्ति एकक्खणे पन॥
२०६८.
पक्कन्ता वापि विब्भन्ता, याता पेतानं लोकं वा।
पक्खसङ्कन्ता वा नट्ठा, सद्धिं याता सा चे होति॥
२०६९.
गामन्तरोक्कमादीनि, चत्तारिपि करोन्तिया।
अनापत्तीति ञातब्बं, एवं उम्मत्तिकायपि॥
२०७०.
रत्तियं विप्पवासं तु, हत्थपासोव रक्खति।
अगामके अरञ्ञे तु, गणा ओहीयनं मतं॥
२०७१.
सकगामे यथाकामं, दिवा च विचरन्तिया।
चत्तारोपि च सङ्घादि-सेसा तस्सा न विज्जरे॥
२०७२.
समुट्ठानादयो तुल्या, पठमन्तिमवत्थुना।
सचित्तं कायकम्मञ्च, तिचित्तञ्च तिवेदनं॥
गामन्तरगमनकथा।
२०७३.
सीमासम्मुतिया चेव, गणस्स परियेसने।
ञत्तिया दुक्कटं, द्वीहि, होन्ति थुल्लच्चया दुवे॥
२०७४.
कम्मस्स परियोसाने, होति सङ्घादिसेसता।
तिकसङ्घादिसेसं तु, अधम्मे तिकदुक्कटं॥
२०७५.
पुच्छित्वा कारकं सङ्घं, छन्दं दत्वा गणस्स वा।
वत्ते वा पन वत्तन्तिं, असन्ते कारकेपि वा॥
२०७६.
भिक्खुनिं पन उक्खित्तं, या ओसारेति भिक्खुनी।
तस्सा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता॥
२०७७.
सङ्घभेदसमा वुत्ता, समुट्ठानादयो नया।
क्रियाक्रियमिदं वुत्तं, अयमेव विसेसता॥
चतुत्थम्।
२०७८.
सयं अवस्सुता तथा, अवस्सुतस्स हत्थतो।
मनुस्सपुग्गलस्स चे, यदेव किञ्चि गण्हति॥
२०७९.
आमिसं, गहणे तस्सा।
थुल्लच्चयमुदीरितम्।
अज्झोहारेसु सङ्घादि-।
सेसा होन्ति पयोगतो॥
२०८०.
एकतोवस्सुते किञ्चि, पटिग्गण्हति, दुक्कटम्।
अज्झोहारप्पयोगेसु, थुल्लच्चयचयो सिया॥
२०८१.
यक्खपेततिरच्छान-पण्डकानञ्च हत्थतो।
मनुस्सविग्गहानम्पि, उभतोवस्सुते तथा॥
२०८२.
एकतोवस्सुते एत्थ, उदके दन्तकट्ठके।
गहणे परिभोगे च, सब्बत्थापि च दुक्कटं॥
२०८३.
उभयावस्सुताभावे, न दोसो यदि गण्हति।
‘‘अवस्सुतो न चाय’’न्ति, ञत्वा गण्हति या पन॥
२०८४.
तस्सा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
समुट्ठानादयो तुल्या, पठमन्तिमवत्थुना॥
पञ्चमम्।
२०८५.
उय्योजने पनेकिस्सा, इतरिस्सा पटिग्गहे।
दुक्कटानि च भोगेसु, थुल्लच्चयगणो सिया॥
२०८६.
भोजनस्सावसानस्मिं , होति सङ्घादिसेसता।
यक्खादीनं चतुन्नम्पि, तथेव पुरिसस्स च॥
२०८७.
दन्तकट्ठुदकानञ्च, गहणुय्योजने पन।
तेसञ्च परिभोगेपि, दुक्कटं परिकित्तितं॥
२०८८.
यक्खादीनं तु सेसस्स, गहणुय्योजने पन।
भोगे च दुक्कटं, भुत्ते, थुल्लच्चयमुदीरितं॥
२०८९.
‘‘नावस्सुतो’’ति ञत्वा वा, कुपिता वा न गण्हति।
कुलानुद्दयता वापि, उय्योजेति च या पन॥
२०९०.
तस्सा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
अदिन्नादानतुल्याव, समुट्ठानादयो नया॥
छट्ठम्।
२०९१.
सत्तमं अट्ठमं सङ्घ-भेदेन सदिसं मतम्।
समुट्ठानादिना सद्धिं, नत्थि काचि विसेसता॥
सत्तमट्ठमानि।
२०९२.
नवमे दसमे वापि, वत्तब्बं नत्थि किञ्चिपि।
अनन्तरसमायेव, समुट्ठानादयो नया॥
नवमदसमानि।
२०९३.
दुट्ठदोसद्वयेनापि, सञ्चरित्तेन तेन छ।
यावततियका अट्ठ, चत्तारि च इतो ततो॥
सङ्घादिसेसकथा।
निस्सग्गियकथा
२०९४.
अधिट्ठानूपगं पत्तं, अनधिट्ठाय भिक्खुनी।
विकप्पनमकत्वा वा, एकाहम्पि ठपेय्य चे॥
२०९५.
अरुणुग्गमनेनेव, सद्धिं भिक्खुनिया सिया।
तस्सा निस्सग्गियापत्ति, पत्तसन्निधिकारणा॥
२०९६.
सेसो पन कथामग्गो, पत्तसिक्खापदे इध।
सब्बो वुत्तनयेनेव, वेदितब्बो विनिच्छयो॥
२०९७.
दसाहातिक्कमे तत्थ, एकाहातिक्कमे इध।
तस्सिमस्स उभिन्नम्पि, अयमेव विसेसता॥
पठमम्।
२०९८.
अकाले चीवरं दिन्नं, दिन्नं कालेपि केनचि।
आदिस्स पन ‘‘सम्पत्ता, भाजेन्तू’’ति नियामितं॥
२०९९.
अकालचीवरं ‘‘काल-चीवर’’न्ति सचे पन।
भाजापेय्य च या तस्सा, पयोगे दुक्कटं सिया॥
२१००.
अत्तना पटिलद्धं यं, तं तु निस्सग्गियं भवे।
लभित्वा पन निस्सट्ठं, यथादाने नियोजये॥
२१०१.
कत्वा विनयकम्मं तु, पटिलद्धम्पि तं पुन।
तस्स चायमधिप्पायो, सेवितुं न च वट्टति॥
२१०२.
अकालवत्थसञ्ञाय, दुक्कटं कालचीवरे।
उभयत्थपि निद्दिट्ठं, तथा वेमतिकायपि॥
२१०३.
कालचीवरसञ्ञाय, चीवरे उभयत्थपि।
न दोसुम्मत्तिकादीनं, तिसमुट्ठानता मता॥
दुतियम्।
२१०४.
चीवरेसुपि बन्धित्वा, ठपितेसु बहूस्वपि।
एकायेव सियापत्ति, अच्छिन्दति सचे सयं॥
२१०५.
तथाच्छिन्दापने एका, एकायाणत्तिया भवे।
इतरेसु च वत्थूनं, पयोगस्स वसा सिया॥
२१०६.
तिकपाचित्ति अञ्ञस्मिं, परिक्खारे तु दुक्कटम्।
तिकदुक्कटमुद्दिट्ठं, इतरिस्सा तु चीवरे॥
२१०७.
ताय वा दीयमानं तु, तस्सा विस्सासमेव वा।
गण्हन्तिया अनापत्ति, तिसमुट्ठानता मता॥
ततियम्।
२१०८.
विञ्ञापेत्वा सचे अञ्ञं, तदञ्ञं विञ्ञापेन्तिया।
विञ्ञत्तिदुक्कटं तस्सा, लाभा निस्सग्गियं सिया॥
२१०९.
तिकपाचित्तियं वुत्तं, अनञ्ञे द्विकदुक्कटम्।
अनञ्ञेनञ्ञसञ्ञाय, अप्पहोन्तेपि वा पुन॥
२११०.
तस्मिं तञ्ञेव वा अञ्ञं, अञ्ञेनत्थेपि वा सति।
आनिसंसञ्च दस्सेत्वा, तदञ्ञं विञ्ञापेन्तिया॥
२१११.
अनापत्तीति ञातब्बं, तथा उम्मत्तिकायपि।
सञ्चरित्तसमा वुत्ता, समुट्ठानादयो नया॥
चतुत्थम्।
२११२.
अञ्ञं चेतापेत्वा पुब्बं, पच्छा अञ्ञं चेतापेय्य।
एवं सञ्ञायञ्ञं धञ्ञं, मय्हं आनेत्वा देतीति॥
२११३.
चेतापनपयोगेन, मूलट्ठाय हि दुक्कटम्।
लाभे निस्सग्गियं होति, तेन चञ्ञेन वाभतं॥
२११४.
सेसं अनन्तरेनेव, सदिसन्ति विनिद्दिसे।
समुट्ठानादिना सद्धिं, अपुब्बं नत्थि किञ्चिपि॥
पञ्चमम्।
२११५.
अञ्ञदत्थाय दिन्नेन, परिक्खारेन या पन।
चेतापेय्य सचे अञ्ञं, सङ्घिकेनिध भिक्खुनी॥
२११६.
पयोगे दुक्कटं, लाभे, तस्सा निस्सग्गियं सिया।
अनञ्ञदत्थिके एत्थ, निद्दिट्ठं द्विकदुक्कटं॥
२११७.
सेसकं अञ्ञदत्थाय, अनापत्तुपनेन्तिया।
पुच्छित्वा सामिके वाप्या-पदासुम्मत्तिकाय वा॥
२११८.
सञ्चरित्तसमा वुत्ता, समुट्ठानादयो नया।
सत्तमं छट्ठसदिसं, सयं याचितकं विना॥
छट्ठसत्तमानि।
२११९.
अट्ठमे नवमे वापि, वत्तब्बं नत्थि किञ्चिपि।
‘‘महाजनिकसञ्ञाचि-केना’’ति पदताधिका॥
२१२०.
दसमेपि कथा सब्बा, अनन्तरसमा मता।
समुट्ठानादिना सद्धिं, विसेसो नत्थि कोचिपि॥
अट्ठमनवमदसमानि।
पठमो वग्गो।
२१२१.
अतिरेकचतुक्कंसं, गरुपावुरणं पन।
चेतापेय्य सचे तस्सा, चतुसच्चप्पकासिना॥
२१२२.
पयोगे दुक्कटं वुत्तं, लाभे निस्सग्गियं मतम्।
कहापणचतुक्कं तु, कंसो नाम पवुच्चति॥
२१२३.
ऊनके तु चतुक्कंसे, उद्दिट्ठं द्विकदुक्कटम्।
अनापत्ति चतुक्कंस-परमं गरुकं पन॥
२१२४.
चेतापेति तदूनं वा, ञातकानञ्च सन्तके।
अञ्ञस्सत्थाय वा अत्त-धनेनुम्मत्तिकाय वा॥
२१२५.
चेतापेन्तं महग्घं या, चेतापेतप्पमेव वा।
समुट्ठानादयो सब्बे, सञ्चरित्तसमा मता॥
एकादसमम्।
२१२६.
लहुपावुरणं अड्ढ- तेय्यकंसग्घनं पन।
ततो चे उत्तरिं यं तु, चेतापेति हि भिक्खुनी॥
२१२७.
तस्सा निस्सग्गियापत्ति, पाचित्ति परियापुता।
अनन्तरसमं सेसं, नत्थि काचि विसेसता॥
द्वादसमम्।
२१२८.
साधारणानि सेसानि, तानि अट्ठारसापि च।
इमानि द्वादसेवापि, समतिंसेव होन्ति हि॥
निस्सग्गियकथा।
पाचित्तियकथा
२१२९.
लसुणं भण्डिकं वुत्तं, न एकद्वितिमिञ्जकम्।
आमकं मागधंयेव, ‘‘खादिस्सामी’’ति गण्हति॥
२१३०.
गहणे दुक्कटं तस्सा, पाचित्ति यदि खादति।
अज्झोहारवसेनेव, पाचित्तिं परिदीपये॥
२१३१.
द्वे तयो भण्डिके सद्धिं, सङ्खादित्वा सचे पन।
अज्झोहरति या तस्सा, एकं पाचित्तियं सिया॥
२१३२.
भिन्दित्वा तत्थ एकेकं, मिञ्जं खादन्तिया पन।
मिञ्जानं गणनायस्सा, पाचित्तिगणना सिया॥
२१३३.
पलण्डुको भञ्जनको, हरितो चापलोपि च।
लसुणा पन चत्तारो, वट्टन्तेव सभावतो॥
२१३४.
पलण्डुको पण्डुवण्णो, भञ्जनो लोहितोपि च।
हरितो हरितवण्णो, चापलो सेतकोपि च॥
२१३५.
एका मिञ्जा पलण्डुस्स, भञ्जनस्स दुवे सियुम्।
तिस्सो हरितकस्सापि, चापलो होत्यमिञ्जको॥
२१३६.
सूपमंसादिसंपाके , साळवुत्तरिभङ्गके।
न दोसुम्मत्तिकादीनं, समुट्ठानेळकूपमं॥
पठमम्।
२१३७.
सम्बाधे उपकच्छेसु, मुत्तस्स करणेपि वा।
एकलोमम्पि पाचित्ति, संहरापेन्तिया सिया॥
२१३८.
बहुकेपि तथा लोमे, संहरापेन्तिया पन।
पयोगगणनायस्सा, न लोमगणनाय हि॥
२१३९.
न दोसो सति आबाधे, लोमके संहरन्तिया।
समुट्ठानादयो मग्ग- संविधानसमा मता॥
दुतियम्।
२१४०.
होति अन्तमसो मुत्त-करणस्स तलघातने।
केसरेनापि रागेन, पाचित्ति पदुमस्स वा॥
२१४१.
गण्डं तत्थ वणं वापि, न दोसो पहरन्तिया।
समुट्ठानादयो तुल्या, पठमन्तिमवत्थुना॥
ततियम्।
२१४२.
या पनुप्पलपत्तम्पि, ब्यञ्जने भिक्खुनत्तनो।
कामरागपरेता तु, पवेसेति न वट्टति॥
२१४३.
इदं वत्थुवसेनेव, वुत्तं तु जतुमट्ठकम्।
दण्डमेलाळुकं वापि, मुत्तस्स करणे पन॥
२१४४.
सम्फस्सं सादियन्तिया, पवेसेति सचे पन।
पवेसापेति वा तस्मिं, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२१४५.
आबाधपच्चया दोसो, नत्थि उम्मत्तिकाय वा।
तलघातकतुल्याव, समुट्ठानादयो मता॥
चतुत्थम्।
२१४६.
अङ्गुलीनं पन द्विन्नं, अग्गपब्बद्वयाधिकम्।
पाचित्तियं पवेसेत्वा, दकसुद्धिं करोन्तिया॥
२१४७.
एकिस्साङ्गुलिया तीणि, पब्बानि पन दीघतो।
पाचित्तियं भवे सुद्धिं, पवेसेत्वादियन्तिया॥
२१४८.
चतुन्नं वापि तिस्सन्नं, एकपब्बम्पि या पन।
वित्थारतो पवेसेति, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२१४९.
इति सब्बप्पकारेन, महापच्चरिया पन।
अभिब्यत्ततरं कत्वा, अयमत्थो विभावितो॥
२१५०.
दोसो द्वङ्गुलपब्बे वा, नत्थि आबाधकारणा।
अधिकम्पि पवेसेत्वा, दकसुद्धिं करोन्तिया॥
२१५१.
तथा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
समुट्ठानादयो सब्बे, तलघातसमा मता॥
पञ्चमम्।
२१५२.
भुञ्जतो पन भिक्खुस्स, पानीयं वा विधूपनम्।
गहेत्वा उपतिट्ठेय्य, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२१५३.
गहिता उदकेनेव, खीरतक्कादयो रसा।
‘‘बीजनी’’ति च या काचि, वत्थकोणादि वुच्चति॥
२१५४.
हत्थपासे इधट्ठान-पच्चयापत्ति दीपिता।
पहारपच्चया वुत्तं, खन्धके दुक्कटं विसुं॥
२१५५.
हत्थपासं जहित्वा वा, उपतिट्ठन्तिया पन।
खादतो खादनं वापि, होति आपत्ति दुक्कटं॥
२१५६.
न दोसो देति दापेति, तथा उम्मत्तिकाय वा।
इदं एळकलोमेन, समुट्ठानं समं मतं॥
छट्ठम्।
२१५७.
विञ्ञत्वा आमकं धञ्ञं, भज्जित्वा यदि भिक्खुनी।
कोट्टेत्वा च पचित्वा च, पाचित्ति परिभुञ्जति॥
२१५८.
न केवलं तु धञ्ञानं, गहणेयेव दुक्कटम्।
हरणेपि च धञ्ञानं, तथा सुक्खापने पन॥
२१५९.
भज्जनत्थाय धञ्ञानं, कपल्लुद्धनसज्जने।
अग्गिस्स करणे दब्बि-सज्जने च, कपल्लके॥
२१६०.
धञ्ञपक्खिपने तत्थ, दब्बिया घट्टकोट्टने।
पप्फोटनादिके सब्ब-पयोगे दुक्कटं भवे॥
२१६१.
भोजनञ्चेव विञ्ञत्ति, पमाणं इदमेत्थ हि।
विञ्ञत्वा वा सयं तस्मा, भज्जनादीनि अञ्ञतो॥
२१६२.
विञ्ञापेत्वा पनञ्ञाय, भज्जनादीनि वा सयम्।
कारापेत्वापि कत्वा वा, अज्झोहरति या पन॥
२१६३.
अज्झोहारपयोगेसु, तस्सा पाचित्तियो सियुम्।
मातरं वापि याचित्वा, पाचित्ति परिभुञ्जति॥
२१६४.
भज्जनादीनि कत्वा वा, कारापेत्वापि वा पन।
अविञ्ञत्ति सयं लद्धं, दुक्कटं परिभुञ्जति॥
२१६५.
विञ्ञत्तिया पनञ्ञाय, लद्धं ताय सयम्पि वा।
कारापेत्वापि कत्वा वा, तथा अज्झोहरन्तिया॥
२१६६.
सेदकम्मादिअत्थाय, धञ्ञविञ्ञत्तिया पन।
ठपेत्वा सत्त धञ्ञानि, सेसविञ्ञत्तियापि च॥
२१६७.
अनापत्तीति ञातब्बं, तथा उम्मत्तिकाय च।
ञातकानम्पि धञ्ञं तु, आमकं न च वट्टति॥
२१६८.
विना विञ्ञत्तिया लद्धं, नवकम्मेसु वट्टति।
समुट्ठानादयो सब्बे, अद्धानसदिसा मता॥
सत्तमम्।
२१६९.
उच्चारं वापि पस्सावं, सङ्कारं वा विघासकम्।
छड्डेय्य वा तिरोकुट्टे, छड्डापेय्य परेहि वा॥
२१७०.
होति पाचित्तियं तस्सा, पाकारेपि अयं नयो।
छड्डेन्तिया पनेकेक-मनेकापत्ति दीपिता॥
२१७१.
एतानि पन वत्थूनि, चत्तारि सकलानिपि।
एकेनेव पयोगेन, एका छड्डेन्तिया सिया॥
२१७२.
आणत्तियम्पि एसेव, नयो ञेय्यो विभाविना।
छड्डने दन्तकट्ठस्स, पाचित्ति परिदीपिता॥
२१७३.
सब्बत्थ पन भिक्खुस्स, होति आपत्ति दुक्कटम्।
अवलञ्जेपि वा ठाने, ओलोकेत्वापि वा पन॥
२१७४.
छड्डेन्तिया अनापत्ति, तथा उम्मत्तिकाय वा।
सञ्चरित्तसमुट्ठानं, क्रियाक्रियमिदं सिया॥
अट्ठमम्।
२१७५.
खेत्ते वा नाळिकेरादि-आरामे वापि या पन।
रोपिमे हरितट्ठाने, यत्थ कत्थचि भिक्खुनी॥
२१७६.
तानि चत्तारि वत्थूनि, सचे छड्डेति वा सयम्।
छड्डापेति तथा वुत्त-नयो आपत्तिनिच्छयो॥
२१७७.
भुञ्जमाना निसीदित्वा, खेत्ते तु हरिते तथा।
उच्छुआदीनि खादन्ती, गच्छन्ती पन तत्थ या॥
२१७८.
छड्डेति यदि उच्छिट्ठं, उदकं चलकानि वा।
होति पाचित्तियं तस्सा, भिक्खुनो होति दुक्कटं॥
२१७९.
छड्डेन्तिया सियापत्ति, ठाने अन्तमसो जलम्।
पिवित्वा मत्थकच्छिन्नं, नाळिकेरम्पि तादिसे॥
२१८०.
कसिते तु पनट्ठाने, बीजनिक्खेपने कते।
न उट्ठेतङ्कुरं याव, सब्बेसं ताव दुक्कटं॥
२१८१.
लायितम्पि मनुस्सानं, खेत्तं रक्खति चे पुन।
रोहनत्थाय तत्थस्सा, यथावत्थुकमेव हि॥
२१८२.
न दोसो छड्डिते खेत्ते, सब्बं छड्डेन्तिया पन।
समुट्ठानादयो सब्बे, अट्ठमेन समा मता॥
नवमम्।
२१८३.
नच्चं वा पन गीतं वा, वादितं वापि भिक्खुनी।
दस्सनत्थाय गच्छेय्य, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२१८४.
दस्सनत्थाय नच्चस्स, गीतस्स सवनाय च।
गच्छन्तिया सिया तस्सा, पदवारेन दुक्कटं॥
२१८५.
सचे एकपयोगेन, ओलोकेन्ती च पस्सति।
सुणाति तेसं गीतम्पि, एका पाचित्ति दीपिता॥
२१८६.
अञ्ञस्मिम्पि दिसाभागे, नच्चं पस्सति चे पन।
सुणाति अञ्ञतो गीतं, विसुं पाचित्तियो सियुं॥
२१८७.
पयोगगणनायेत्थ, आपत्तिगणना सिया।
नच्चितुं गायितुं नेव, सयं लभति भिक्खुनी॥
२१८८.
‘‘अञ्ञं नच्चाति वादेहि’’, इति वत्तुं न वट्टति।
‘‘उपट्ठानं करोमा’’ति, वुत्ते वा सम्पटिच्छितुं॥
२१८९.
तस्सा पाचित्ति सब्बत्थ, भिक्खुनो होति दुक्कटम्।
‘‘उपट्ठानं करोमा’’ति, वुत्ते भिक्खुनिया पन॥
२१९०.
‘‘उपट्ठानं पसत्थ’’न्ति, वत्तुमेवं तु वट्टति।
आरामेयेव ठत्वा वा, या पस्सति सुणाति वा॥
२१९१.
अत्तनो च ठितोकासं, आगन्त्वा च पयोजितम्।
गन्त्वा पस्सन्तिया वापि, तथारूपा हि कारणा॥
२१९२.
पस्सन्तिया तथा मग्गं, नच्चं पटिपथेपि च।
तथा उम्मत्तिकादीन-मनापत्तापदासुपि॥
२१९३.
इदमेळकलोमेन, समुट्ठानं समं मतम्।
लोकवज्जमिदं पाप-चित्तञ्चेव तिवेदनं॥
दसमम्।
लसुणवग्गो पठमो।
२१९४.
याध रत्तन्धकारस्मिं, अप्पदीपे पनेकिका।
सन्तिट्ठति सचे सद्धिं, पुरिसेन च भिक्खुनी॥
२१९५.
तस्सा पाचित्तियं वुत्तं, सद्धिं वा सल्लपन्तिया।
हत्थपासं समागन्त्वा, रहस्सादवसेन तु॥
२१९६.
हत्थपासं जहित्वा वा, पुरिसस्स सचे पन।
अजहित्वापि वा यक्ख-पेतादीनम्पि भिक्खुनी॥
२१९७.
सन्तिट्ठति च या तस्सा, दुक्कटं परिदीपितम्।
अनापत्ति सचे कोचि, दुतिया विञ्ञु विज्जति॥
२१९८.
तथा उम्मत्तिकादीन-मथञ्ञविहिताय वा।
थेय्यसत्थसमुट्ठानं, क्रियं सञ्ञाविमोक्खकं॥
पठमम्।
२१९९.
दुतिये तु ‘‘पटिच्छन्ने, ओकासे’’ति इदं पन।
अधिकं इतरं सब्बं, पठमेन समं मतं॥
दुतियम्।
२२००.
ततियेपि चतुत्थेपि, अपुब्बं नत्थि किञ्चिपि।
समानं पठमेनेव, समुट्ठानादिना सह॥
ततियचतुत्थानि।
२२०१.
छदनन्तो निसीदित्वा, अनोवस्सप्पदेसकम्।
अज्झोकासे निसीदित्वा, उपचारम्पि वा सचे॥
२२०२.
अतिक्कमेति या, होति, दुक्कटं पठमे पदे।
दुतिये च पदे तस्सा, पाचित्ति परियापुता॥
२२०३.
पल्लङ्कस्स अनोकासे, दुक्कटं समुदीरितम्।
तथापुट्ठे अनापुट्ठ-सञ्ञाय विचिकिच्छतो॥
२२०४.
असंहारिमेनापत्ति, गिलानायापदासु वा।
समुट्ठानादयो सब्बे, कथिनेन समा मता॥
पञ्चमम्।
२२०५.
एकापत्ति निसीदित्वा, होति गच्छन्तिया पन।
एकाव अनिसीदित्वा, निपज्जित्वा वजन्तिया॥
२२०६.
निसीदित्वा निपज्जित्वा, होन्ति गच्छन्तिया दुवे।
सेसं अनन्तरेनेव, समुट्ठानादिना समं॥
छट्ठम्।
२२०७.
छट्ठेन सत्तमं तुल्यं, अट्ठमे नत्थि किञ्चिपि।
वत्तब्बं तिसमुट्ठानं, सचित्तं दुक्खवेदनं॥
सत्तमट्ठमानि।
२२०८.
निरयब्रह्मचरियेहि, अत्तानं वा परम्पि वा।
अभिसपेय्य पाचित्ति, वाचतो वाचतो सिया॥
२२०९.
ठपेत्वा निरयञ्चेव, ब्रह्मचरियञ्च या पन।
‘‘सुनखी सूकरी काकी, काणा कुणी’’तिआदिना॥
२२१०.
अक्कोसति च वाचाय, वाचायापत्ति दुक्कटम्।
तिकपाचित्तियं वुत्तं, सेसाय तिकदुक्कटं॥
२२११.
पुरक्खत्वा वदन्तीन-मत्थधम्मानुसासनिम्।
अनापत्तट्ठमेनेव, समुट्ठानादयो समा॥
नवमम्।
२२१२.
रोदन्तिया वधित्वा वा, पाचित्ति परिदीपिता।
द्वीसु तेसु पनेकेकं, दुक्कटं तु करोन्तिया॥
२२१३.
सेसमुत्तानमेवेत्थ, समुट्ठानादयो पन।
धुरनिक्खेपतुल्याव, क्रियामत्तं विसेसकं॥
दसमम्।
अन्धकारवग्गो दुतियो।
२२१४.
न्हायति नग्गा या पन हुत्वा।
सब्बपयोगे दुक्कटमस्सा।
तस्स च वोसाने जिनवुत्तम्।
भिक्खुनि दोसं सा समुपेति॥
२२१५.
अच्छिन्नचीवरा नट्ठ-चीवरा आपदासु वा।
न दोसेळकलोमेन, समुट्ठानादयो समा॥
पठमम्।
२२१६.
दुतिये पन वत्तब्बं, अपुब्बं नत्थि किञ्चिपि।
समुट्ठानादयो सब्बे, सञ्चरित्तसमा मता॥
दुतियम्।
२२१७.
दुस्सिब्बितं विसिब्बेत्वा, सिब्बनत्थाय चीवरम्।
अनन्तराय तं पच्छा, या न सिब्बेय्य भिक्खुनी॥
२२१८.
ठपेत्वा चतुपञ्चाहं, ‘‘न सिब्बिस्साम्यह’’न्ति हि।
धुरे निक्खित्तमत्तेव, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२२१९.
पच्छा सिब्बति पाचित्ति, निक्खिपित्वा धुरं सचे।
तिकपाचित्तियं वुत्तं, सेसाय तिकदुक्कटं॥
२२२०.
वुत्तं उभिन्नमञ्ञस्मिं, परिक्खारे तु दुक्कटम्।
अनापत्ति गिलानाय, अन्तरायेपि वा सति॥
२२२१.
अतिक्कमेति पञ्चाहं, करोन्ती वापि चीवरम्।
धुरनिक्खेपनं नाम, समुट्ठानमिदं मतं॥
ततियम्।
२२२२.
पञ्चाहिकं तु सङ्घाटि-चारं यातिक्कमेय्य हि।
होति पाचित्तियापत्ति, छट्ठे तस्सारुणुग्गमे॥
२२२३.
एकस्मिं चीवरे एका, पञ्च पञ्चसु दीपिता।
तिचीवरञ्च संकच्चि, दकसाटीति पञ्च तु॥
२२२४.
तिकपाचित्ति पञ्चाहा-नतिक्कन्ते द्विदुक्कटम्।
पञ्चमे दिवसे पञ्च, चीवरानि निसेवति॥
२२२५.
ओतापेति गिलानाय, अनापत्तिपदासुपि।
समुट्ठानादयो सब्बे, कथिनेन समा मता॥
चतुत्थम्।
२२२६.
गहेत्वा या अनापुच्छा, सङ्कमेतब्बचीवरम्।
परिभुञ्जति अञ्ञिस्सा, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२२२७.
तिकपाचित्तियं वुत्तं, सेसाय तिकदुक्कटम्।
अच्छिन्नचीवरा नट्ठ-चीवरा आपदासु वा॥
२२२८.
तथा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
कथिनेन समुट्ठानं, तुल्यमेतं क्रियाक्रियं॥
पञ्चमम्।
२२२९.
या हि भिक्खुनि सङ्घस्स, लभितब्बं तु चीवरम्।
निवारेति सचे तस्सा, पाचित्ति परिदीपये॥
२२३०.
गणस्सापि च एकिस्सा, लाभे आपत्ति दुक्कटम्।
तथेवञ्ञं परिक्खारं, निवारेति सचे पन॥
२२३१.
आनिसंसं निदस्सेत्वा, निवारेति न दोसता।
अदिन्नादानतुल्याव, समुट्ठानादयो मता॥
छट्ठम्।
२२३२.
चीवरानं विभङ्गं या, पटिसेधेय्य धम्मिकम्।
होति पाचित्तियं तस्सा, दुक्कटं परिदीपितं॥
२२३३.
अधम्मे धम्मसञ्ञाय, उभो वेमतिकाय वा।
आनिसंसं निदस्सेत्वा, पटिसेधेन्तिया पन॥
२२३४.
तथा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
समुट्ठानादयो सब्बे, अनन्तरसमा मता॥
सत्तमम्।
२२३५.
निवासनूपगं वापि, तथा पारुपनूपगम्।
कप्पबिन्दुकतं किञ्चि, मुञ्चित्वा सहधम्मिके॥
२२३६.
पितरोपि पनञ्ञस्स, ददेय्य यदि चीवरम्।
यस्स कस्सचि तस्सापि, पाचित्ति परियापुता॥
२२३७.
गणनाय वसेनेत्थ, चीवरानं तु ता पन।
पाचित्तियो गणेतब्बा, भिक्खुनो दुक्कटं सिया॥
२२३८.
तावकालिकमञ्ञेस-मनापत्ति ददाति चे।
सञ्चरित्तसमा वुत्ता, समुट्ठानादयो नया॥
अट्ठमम्।
२२३९.
चीवरस्स विभङ्गं या, निसेधेत्वान चीवरे।
कालं अतिक्कमेय्यस्सा, दुब्बलासाय दोसता॥
२२४०.
अदुब्बले तु चीवरे, सुदुब्बलन्ति चेतसा।
उभोसु कङ्खिताय वा, अवोच दुक्कटं जिनो॥
२२४१.
आनिसंसं निदस्सेत्वा, निवारेति न दोसता।
अदिन्नादानतुल्याव, समुट्ठानादयो मता॥
नवमम्।
२२४२.
धम्मिकं कथिनुद्धारं, या निवारेय्य भिक्खुनी।
तस्सा पाचित्तियापत्ति, मुनिन्देन पकासिता॥
२२४३.
आनिसंसो महा होति, यस्स अत्थारमूलको।
उद्धारमूलको अप्पो, न दातब्बो पनीदिसो॥
२२४४.
आनिसंसो महा होति, यस्स उब्भारमूलको।
अत्थारमूलको अप्पो, दातब्बो एवरूपको॥
२२४५.
तथा समानिसंसोपि, सद्धापालनकारणा।
आनिसंसं निदस्सेत्वा, पटिसेधेति वट्टति॥
२२४६.
सेसं पन असेसेन, सत्तमेन समं मतम्।
समुट्ठानादिना सद्धिं, अपुब्बं नत्थि किञ्चिपि॥
दसमम्।
नग्गवग्गो ततियो।
२२४७.
एकाय तु निपन्नाय, अपरा वा निपज्जतु।
निपज्जेय्युं सहेव द्वे, द्विन्नं पाचित्तियं सिया॥
२२४८.
आपत्तिबहुका ञेय्या, पुनप्पुनं निपज्जने।
एकाय च निपन्नाय, सचे एका निसीदति॥
२२४९.
उभो वापि निसीदन्ति, समं, उम्मत्तिकाय वा।
अनापत्ति समुट्ठानं, एळकेन समं मतं॥
पठमम्।
२२५०.
पावारकटसारादिं, सन्थरित्वा पनेककम्।
संहारिमेसु तेनेव, पारुपित्वा सचे पन॥
२२५१.
निपज्जन्ति सहेव द्वे, तासं पाचित्तियं सिया।
एकस्मिं दुक्कटं द्विन्नं, वुत्तं तु द्विकदुक्कटं॥
२२५२.
ववत्थानं निदस्सेत्वा, निपज्जन्ति सचे पन।
न दोसुम्मत्तिकादीनं, सेसं तुल्यं पनादिना॥
दुतियम्।
२२५३.
पुरतो च अनापुच्छा, यदि चङ्कमनादयो।
करेय्य पन पाचित्ति, अञ्ञिस्साफासुकारणा॥
२२५४.
निवत्तनानं गणनाय तस्सा।
पाचित्तियानं गणना च ञेय्या।
पयोगतोयेव भवन्ति दोसा।
निपज्जनट्ठाननिसीदनानं॥
२२५५.
उद्देसादीसु पाचित्ति, पदानं गणनावसा।
तिकपाचित्तियं वुत्तं, सेसाय तिकदुक्कटं॥
२२५६.
न च अफासुकामाय, आपुच्छा पुरतो पन।
तस्सा चङ्कमनादीनि, अनापत्ति करोन्तिया॥
२२५७.
अदिन्नादानतुल्याव , समुट्ठानादयो नया।
क्रियाक्रियमिदं पाप- मानसं दुक्खवेदनं॥
ततियम्।
२२५८.
सयं अनन्तराया या, दुक्खितं सहजीविनिम्।
नुपट्ठापेय्य चञ्ञाय, नुपट्ठेय्य सयम्पि वा॥
२२५९.
धुरे निक्खित्तमत्तेव, तस्सा पाचित्तियं सिया।
अन्तेवासिनिया वापि, दुक्कटं इतराय वा॥
२२६०.
अनापत्ति गिलानाय, गवेसित्वालभन्तिया।
आपदुम्मत्तिकादीनं, धुरनिक्खेपनोदयं॥
चतुत्थम्।
२२६१.
सकं पुग्गलिकं दत्वा, सकवाटं उपस्सयम्।
सयं उपस्सया तम्हा, निक्कड्ढति सचे पन॥
२२६२.
एकेनेव पयोगेन, द्वारादीसु बहूनिपि।
तं निक्कड्ढन्तिया तस्सा, एकं पाचित्तियं सिया॥
२२६३.
पयोगगणनायेत्थ, पाचित्तिगणना मता।
आणत्तियम्पि एसेव, नयो वुत्तो महेसिना॥
२२६४.
‘‘एत्तकाव इमं द्वारा, निक्कड्ढाही’’ति भासति।
एकायाणत्तिया द्वार-गणनापत्तियो सियुं॥
२२६५.
दुक्कटं अकवाटम्हा, सेसाय तिकदुक्कटम्।
उभिन्नं पन सब्बत्थ, परिक्खारेसु दुक्कटं॥
२२६६.
सेसमेत्थ असेसेन, समुट्ठानादिना सह।
सङ्घिका हि विहारस्मा, निक्कड्ढनसमं मतं॥
पञ्चमम्।
२२६७.
छट्ठे पनिध वत्तब्बं, अपुब्बं नत्थि किञ्चिपि।
सिक्खापदेनरिट्ठस्स, सदिसोव विनिच्छयो॥
छट्ठम्।
२२६८.
सासङ्कसम्मते अन्तो-रट्ठे भिक्खुनिया पन।
चरन्तिया सियापत्ति, विना सत्थेन चारिकं॥
२२६९.
गामन्तरपवेसे च, अरञ्ञे अद्धयोजने।
पाचित्तियनयो ञेय्यो, भिक्खुना विनयञ्ञुना॥
२२७०.
न दोसो सह सत्थेन, खेमट्ठानापदासु वा।
इदं एळकलोमेन, समुट्ठानादिना समं॥
सत्तमम्।
२२७१.
अट्ठमे नवमे वापि, अनुत्तानं न विज्जति।
सत्तमेन समानानि, समुट्ठानादिना सह॥
अट्ठमनवमानि।
२२७२.
पाचित्ति धुरनिक्खेपे, ‘‘न गमिस्साम्यह’’न्ति च।
कत्वा च धुरनिक्खेपं, पच्छा गच्छन्तिया तथा॥
२२७३.
योजनानि पवारेत्वा, पञ्च गन्तुम्पि वट्टति।
छसु वत्तब्बमेवत्थि, किन्नु नामिध तं सिया॥
२२७४.
तीणि गन्त्वा च तेनेव, पच्चागन्तुं न वट्टति।
अञ्ञेन पन मग्गेन, पच्छागच्छति वट्टति॥
२२७५.
अनापत्तन्तरायस्मिं, तस्सा दसविधे सति।
आपदासु गिलानाय, अलाभे दुतियाय वा॥
२२७६.
राजचोरमनुस्सग्गि-तोयवाळसरीसपा।
मनुस्सजीवितब्रह्म-चरियस्सन्तरायिका॥
२२७७.
समुट्ठानादिना तुल्यं, पठमन्तिमवत्थुना।
अयमेव विसेसो हि, अक्रियं दुक्खवेदनं॥
दसमम्।
तुवट्टवग्गो चतुत्थो।
२२७८.
राजागारं चित्तागारं, आरामं कीळुय्यानं वा।
कीळावापिं नानाकारं, दट्ठुं गच्छन्तिनं तानि॥
२२७९.
निद्दिट्ठं मुनिना तासं, दुक्कटं तु पदे पदे।
पदं अनुद्धरित्वाव, सचे पस्सन्ति पञ्चपि॥
२२८०.
एकायेव पनापत्ति, पाचित्ति परिदीपिता।
गन्त्वा पस्सन्ति चे तं तं, पाटेक्कापत्तियो सियुं॥
२२८१.
पयोगबहुतायापि, पाचित्तिबहुता सिया।
भिक्खुस्स पन सब्बत्थ, होति आपत्ति दुक्कटं॥
२२८२.
अवसेसो अनापत्ति-कथामग्गविनिच्छयो।
नच्चदस्सनतुल्योव, समुट्ठानादिना सह॥
पठमम्।
२२८३.
आसन्दिं वा पल्लङ्कं वा, माणनातीतं वाळूपेतम्।
सेवन्तीनं यासं तासं, पाचित्तापत्तिं सत्थाह॥
२२८४.
निसीदनस्सापि निपज्जनस्स।
पयोगबाहुल्लवसेन होति।
इच्चेवमच्चन्तयसेन वुत्ता।
पाचित्तियानं गणना पनेवं॥
२२८५.
पादे आसन्दिया छेत्वा, भित्वा पल्लङ्कवाळके।
अनापत्ति समुट्ठान-मनन्तरसमं मतं॥
दुतियम्।
२२८६.
छन्नं अञ्ञतरं सुत्तं, यदि कन्तति भिक्खुनी।
यत्तकं अञ्छितं हत्था, तस्मिं तक्कम्हि वेठिते॥
२२८७.
एका पाचित्ति निद्दिट्ठा, सुत्तकन्तनतो पन।
सब्बपुब्बपयोगेसु, दुक्कटं हत्थवारतो॥
२२८८.
न दोसो कन्तितं सुत्तं, पुन कन्तन्तिया पन।
इदं एळकलोमेन, समुट्ठानादिना समं॥
ततियम्।
२२८९.
कोट्टनं तण्डुलानं तु, आदिं कत्वान दुक्कटम्।
सब्बपुब्बपयोगेसु, वेय्यावच्चं करोन्तिया॥
२२९०.
भाजनानि गणेत्वाव, पाचित्ति यागुआदिसु।
खज्जकादीसु रूपानं, गणनाय हि दीपये॥
२२९१.
सचे मातापितूनम्पि, आगतानं पनत्तनो।
किञ्चि कम्मं अकारेत्वा, किञ्चि कातुं न वट्टति॥
२२९२.
सङ्घस्स यागुपाने वा, सङ्घभत्तेपि वा तथा।
चेतियस्स च पूजाय, वेय्यावच्चकरस्स वा॥
२२९३.
अत्तनो च अनापत्ति, तथा उम्मत्तिकाय वा।
समुट्ठानादयो सब्बे, ततियेन समा मता॥
चतुत्थम्।
२२९४.
पाचित्ति धुरनिक्खेपे, यथा चीवरसिब्बने।
तथा इध पनेकाहं, परिहारो न लब्भति॥
२२९५.
सेसं वुत्तनयेनेव, तत्थ चीवरसिब्बने।
समुट्ठानादिना सद्धिं, वेदितब्बं विभाविना।
पञ्चमम्।
२२९६.
कायेन कायबद्धेन, तथा निस्सग्गियेन वा।
गिहीनं पन यं किञ्चि, दन्तपोनोदकं विना॥
२२९७.
अज्झोहरणियं अञ्ञं, अञ्ञेसं तु ददाति या।
होति पाचित्तियं तस्सा, ठपेत्वा सहधम्मिके॥
२२९८.
दन्तकट्ठोदके वुत्तं, दुक्कटं मुनिना इध।
या न देति च दापेति, निक्खमित्वापि देन्तिया॥
२२९९.
देति बाहिरलेपं वा, न दोसुम्मत्तिकाय वा।
समुट्ठानादयो सब्बे, ततियेन समा मता॥
छट्ठम्।
२३००.
अदत्वा परिभुञ्जेय्य, या चावसथचीवरम्।
दिवसे तु चतुत्थे तं, धोवित्वा पुन चीवरं॥
२३०१.
सामणेराय वा अन्त-मसो उतुनिया सचे।
तस्सा पाचित्तियं वुत्तं, तिकपाचित्तियं सिया॥
२३०२.
तस्सा निस्सज्जिते तस्मिं, वुत्तं तु द्विकदुक्कटम्।
उतुनीनं अभावे तु, अञ्ञासं पुन परियये॥
२३०३.
अच्छिन्नचीवरादीन-मनापत्तापदासुपि।
समुट्ठानादयो सब्बे, कथिनेन समा मता॥
सत्तमम्।
२३०४.
अदत्वा रक्खणत्थाय, विहारं सकवाटकम्।
होति पाचित्तियं तस्सा, चारिकं पक्कमन्तिया॥
२३०५.
अत्तनो गामतो अञ्ञं, गामं गच्छन्तिया पन।
परिक्खित्तविहारस्स, परिक्खेपम्पि वा तथा॥
२३०६.
इतरस्सुपचारं वा, पठमेन पदेन तम्।
दुक्कटं समतिक्कन्ते, पाचित्ति दुतियेन तु॥
२३०७.
अकवाटबन्धनस्मिं, दुक्कटं परिदीपितम्।
अन्तराये अनापत्ति, जग्गिकं अलभन्तिया॥
२३०८.
आपदासु गिलानाय, तथा उम्मत्तिकाय वा।
समुट्ठानादयो सब्बे, कथिनेन समा मता॥
अट्ठमम्।
२३०९.
हत्थिअस्सरथादीहि, संयुत्तं सिप्पमेव वा।
परूपघातकं मन्ता-गदयोगप्पभेदकं॥
२३१०.
परियापुणेय्य चे किञ्चि, यस्स कस्सचि सन्तिके।
होति पाचित्तियं तस्सा, पदादीनं वसेनिध॥
२३११.
लेखे पन अनापत्ति, धारणाय च गुत्तिया।
परित्तेसु च सब्बेसु, तथा उम्मत्तिकाय वा॥
नवमम्।
२३१२.
दसमे नत्थि वत्तब्बं, नवमेन समं इदम्।
समुट्ठानादयो द्विन्नं, पदसोधम्मसादिसा॥
दसमम्।
चित्तागारवग्गो पञ्चमो।
२३१३.
सभिक्खुकं पनारामं, जानित्वा पविसन्तिया।
अनापुच्छाव यं किञ्चि, पाचित्ति परियापुता॥
२३१४.
सचे अन्तमसो रुक्ख-मूलस्सपि च भिक्खुनी।
अनापुच्छा परिक्खेपं, अतिक्कामेति या पन॥
२३१५.
उपचारोक्कमे वापि, अपरिक्खित्तकस्स तु।
दुक्कटं पठमे पादे, पाचित्ति दुतिये सिया॥
२३१६.
अभिक्खुके सभिक्खूति, सञ्ञाय पनुभोसुपि।
जातकङ्खाय वा तस्सा, होति आपत्ति दुक्कटं॥
२३१७.
पठमं पविसन्तीनं, तासं सीसानुलोकिका।
ता सन्निपतिता यत्थ, तासं गच्छति सन्तिकं॥
२३१८.
सन्तं भिक्खुं पनापुच्छा, मग्गो वाराममज्झतो।
तेन गच्छन्तिया वापि, आपदासु विसन्तिया॥
२३१९.
तथा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
धुरनिक्खेपतुल्याव, समुट्ठानादयो नया॥
पठमम्।
२३२०.
अक्कोसेय्य च या भिक्खुं, परिभासेय्य वा पन।
तिकपाचित्तियं तस्सा, सेसे च तिकदुक्कटं॥
२३२१.
पुरक्खत्वा वदन्तीन-।
मत्थधम्मानुसासनिम्।
न दोसोमसवादेन।
तुल्यो सेसनयो मतो॥
दुतियम्।
२३२२.
या सङ्घं परिभासेय्य, तस्सा पाचित्तियं सिया।
एकं सम्बहुला वापि, तथेव इतराय वा॥
२३२३.
परिभासन्तिया तस्सा, दुक्कटं परिदीपितम्।
सेसं अनन्तरेनेव, समुट्ठानादिना समं॥
ततियम्।
२३२४.
निमन्तितापि वा सचे, पवारितापि वा पन।
निमन्तनपवारणा, उभोपि वुत्तलक्खणा॥
२३२५.
पुरेभत्तं तु यागुञ्च, ठपेत्वा कालिकत्तयम्।
या चज्झोहरणत्थाय, यं किञ्चि पन आमिसं॥
२३२६.
पटिग्गण्हाति चे तस्सा, गहणे दुक्कटं सिया।
अज्झोहारवसेनेत्थ, पाचित्ति परिदीपिता॥
२३२७.
कालिकानि च तीणेव, आहारत्थाय गण्हति।
गहणे दुक्कटं वुत्तं, तथा अज्झोहरन्तिया॥
२३२८.
निमन्तिता या पन अप्पवारिता।
सचेपि यागुं पिवतीध वट्टति।
तथा कथेत्वा पुन सामिकस्स वा।
सचेपि सा भुञ्जति अञ्ञभोजनं॥
२३२९.
कालिकानि च तीणेव, पच्चये सति भुञ्जति।
तथा उम्मत्तिकादीनं, अनापत्ति पकासिता॥
२३३०.
समुट्ठानमिदं तुल्यं, अद्धानेन क्रियाक्रियम्।
निमन्तिता अनापुच्छा, सामिं भुञ्जति चे पन॥
२३३१.
कप्पियं पन कारेत्वा, अकारेत्वापि वा यदि।
परिभुञ्जति या तस्सा, पाचित्ति क्रियतो सिया॥
चतुत्थम्।
२३३२.
भिक्खुनीनं अवण्णं वा, पाचित्ति कुलसन्तिके।
कुलस्सावण्णनं वापि, भिक्खुनीनं वदन्तिया॥
२३३३.
सन्तं भासन्तिया दोसं, न दोसुम्मत्तिकाय वा।
ओमसवादतुल्याव, समुट्ठानादयो नया॥
पञ्चमम्।
२३३४.
अद्धयोजनतो ओरे, भिक्खु ओवाददायको।
न वसति सचे मग्गो, अखेमो वा सचे सिया॥
२३३५.
अयं अभिक्खुको नाम, आवासो पन तत्थ हि।
उपगच्छन्तिया वस्सं, आपत्ति अरुणुग्गमे॥
२३३६.
पक्कन्ता पक्खसङ्कन्ता, विब्भन्ता वा मतापि वा।
वस्सं उपगता भिक्खू, अनापत्तापदासुपि॥
२३३७.
सेसो ञेय्यो कथामग्गो।
भिक्खुनोवादको पन।
इदं एळकलोमेन।
समुट्ठानादिना समं॥
छट्ठम्।
२३३८.
या भिक्खुनुभतोसङ्घे, वस्संवुट्ठा ततो पुन।
‘‘नाहं पवारेस्सामी’’ति, सा निक्खिपति चे धुरं॥
२३३९.
धुरे निक्खित्तमत्तस्मिं, तस्सा पाचित्तियं सिया।
सति वा अन्तरायस्मिं, गिलानायापदासुपि॥
२३४०.
परियेसित्वापि वा भिक्खुं, न दोसो अलभन्तिया।
इदं तु धुरनिक्खेप-समुट्ठानमुदीरितं॥
सत्तमम्।
२३४१.
‘‘ओवादादीनमत्थाय, न गच्छिस्साम्यह’’न्ति हि।
धुरे निक्खित्तमत्तस्मिं, पाचित्ति परिदीपये॥
२३४२.
सदिसं तु समुट्ठानं, पठमन्तिमवत्थुना।
अक्रियं लोकवज्जञ्च, कायिकं दुक्खवेदनं॥
अट्ठमम्।
२३४३.
‘‘न याचिस्सामि ओवादं, न पुच्छिस्सामुपोसथं’’।
इच्चेवं पन निक्खित्ते, धुरे पाचित्तियं सिया॥
२३४४.
सति वा अन्तरायस्मिं, गिलानायापदासु वा।
न दोसो परियेसित्वा, दुतियं अलभन्तिया॥
२३४५.
अट्ठमेपि अनापत्ति, एवमेव पकासिता।
इदं तु धुरनिक्खेप-समुट्ठानमुदीरितं॥
नवमम्।
२३४६.
पसाखे पन सञ्जातं, गण्डं रुचितमेव वा।
अनापुच्छाव सङ्घं वा, गणं एकेन एकिका॥
२३४७.
‘‘भिन्द फालेहि धोवा’’ति, सब्बानेवाणापेन्तिया।
कतेसु दुक्कटानिच्छ, तस्सा पाचित्तियो छ च॥
२३४८.
‘‘यमेत्थ अत्थि कातब्बं, तं सब्बं त्वं करोहि’’ति।
आणापेति सचे एवं, सो च सब्बं करोति चे॥
२३४९.
एकाय पन वाचाय, दुक्कटानि पनच्छ च।
तस्सा पाचित्तियच्छक्कं, द्वादसापत्तियो सियुं॥
२३५०.
भेदनादीसु एकं सा, आणापेति सचे पन।
सो करोति च सब्बानि, एकं पाचित्तियं सिया॥
२३५१.
आपुच्छित्वापि वा विञ्ञुं, गहेत्वा दुतियम्पि वा।
भेदनादीनि सब्बानि, कारापेति सचे पन॥
२३५२.
तस्सा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता।
समुट्ठानादयो सब्बे, कथिनेन समा मता॥
दसमम्।
आरामवग्गो छट्ठो।
२३५३.
गणंपरियेसनादिस्मिं, गब्भिनिं वुट्ठपेन्तिया।
ञत्तिया कम्मवाचाहि, उपज्झायाय दुक्कटं॥
२३५४.
कम्मवाचाय ओसाने, पाचित्ति परियापुता।
तथा गब्भिनिसञ्ञाय, न च गब्भिनिया पन॥
२३५५.
उभो सञ्जातकङ्खाय, होति आपत्ति दुक्कटम्।
तथाचरिनिया तस्सा, गणस्सापि च दीपितं॥
२३५६.
द्वीस्वगब्भिनिसञ्ञाय, न दोसुम्मत्तिकाय वा।
अदिन्नादानतुल्याव, समुट्ठानादयो नया॥
पठमम्।
२३५७.
दुतिये नत्थि वत्तब्बं, पठमेन समं मतम्।
समुट्ठानादिना सद्धिं, नत्थि काचि विसेसता॥
दुतियम्।
२३५८.
छस्वसिक्खितसिक्खं तु, सिक्खमानञ्हि भिक्खुनी।
द्वे वस्सानि सियापत्ति, वुट्ठापेय्य सचे पन॥
२३५९.
तिकपाचित्तियं वुत्तं, धम्मकम्मे तु सत्थुना।
अधम्मे पन कम्मस्मिं, दीपितं तिकदुक्कटं॥
२३६०.
छसु सिक्खितसिक्खं या, द्वे वस्सानि अखण्डतो।
वुट्ठापेति अनापत्ति, तथा उम्मत्तिकाय वा॥
२३६१.
इमा हि छ च सिक्खायो, सट्ठिवस्सापि चे पन।
पब्बज्जाय पदातब्बा, अदत्वा न च कारये॥
ततियम्।
२३६२.
चतुत्थे नत्थि वत्तब्बं, इध सङ्घेन सम्मतम्।
सिक्खमानमनापत्ति, होति तं वुट्ठपेन्तिया॥
२३६३.
अदिन्ना पठमं होति, सचे वुट्ठानसम्मुति।
तत्थापि च पदातब्बा, उपसम्पदमाळके॥
२३६४.
ततियञ्च चतुत्थञ्च, समुट्ठानादिना पन।
पठमेन समं ञेय्यं, चतुत्थं तु क्रियाक्रियं॥
चतुत्थम्।
२३६५.
ऊनद्वादसवस्सं तु, कञ्चि गिहिगतं पन।
परिपुण्णाति सञ्ञाय, न दोसो वुट्ठपेन्तिया॥
२३६६.
होति वानुपसम्पन्ना, उपसम्पादितापि सा।
असेसेन च सेसं तु, पठमेन समं मतं॥
पञ्चमम्।
२३६७.
छट्ठं तु ततिये वुत्त-नयेनेव विभावये।
सत्तमम्पि तथा सब्बं, चतुत्थेन समं मतं॥
छट्ठसत्तमानि।
२३६८.
यं तुवट्टकवग्गस्मिं, दुक्खितं सहजीविनिम्।
वुत्तं तेन समं ञेय्यं, अट्ठमं न विसेसता॥
अट्ठमम्।
२३६९.
द्वे वस्सानि च या काचि, वुट्ठापितपवत्तिनिम्।
नानुबन्धेय्य चे तस्सा, पाचित्ति परियापुता॥
२३७०.
‘‘द्वे वस्सानि अहं नानु-बन्धिस्सामी’’ति चे पन।
धुरे निक्खित्तमत्तस्मिं, तस्सा पाचित्तियं सिया॥
२३७१.
तञ्च बालमलज्जिं वा, गिलानायापदासु वा।
नानुबन्धन्तिया तस्सा, न दोसुम्मत्तिकाय वा॥
२३७२.
समुट्ठानादयो तुल्या, पठमन्तिमवत्थुना।
इदं पनाक्रियं वुत्तं, वेदना दुक्खवेदना॥
नवमम्।
२३७३.
वुट्ठापेत्वा तु या काचि, भिक्खुनी सहजीविनिम्।
तं गहेत्वा न गच्छेय्य, न चञ्ञं आणापेय्य चे॥
२३७४.
धुरे निक्खित्तमत्तस्मिं, तस्सा पाचित्तियं सिया।
सति वा अन्तरायस्मिं, दुतियं अलभन्तिया॥
२३७५.
आपदासु गिलानाय, तथा उम्मत्तिकाय वा।
न दोसो धुरनिक्खेप-समुट्ठानमिदं पन॥
दसमम्।
गब्भिनिवग्गो सत्तमो।
२३७६.
कुमारिभूतवग्गस्स, पठमादीनि तीणिपि।
गिहिगतेहि तीहेव, सदिसानीति निद्दिसे॥
२३७७.
या महूपपदा द्वे तु, सिक्खमाना पनादितो।
‘‘गता वीसतिवस्सा’’ति, विञ्ञातब्बा विभाविना॥
२३७८.
सचे गिहिगता होन्ति, न च वा पुरिसं गता।
‘‘सिक्खमाना’’ति वत्तब्बा, ता हि सम्मुतिआदिसु॥
२३७९.
न ता ‘‘कुमारिभूता’’ति, तथा ‘‘गिहिगता’’ति वा।
वत्तब्बा पनुभोपेता, एवं वत्तुं न वट्टति॥
२३८०.
सम्मुतिं दसवस्साय, दत्वा द्वादसवस्सिका।
कत्तब्बा उपसम्पन्ना, सेसासुपि अयं नयो॥
२३८१.
या अट्ठारसवस्सा तु, ततो पट्ठाय सा पन।
वुत्ता ‘‘कुमारिभूता’’ति, तथा ‘‘गिहिगता’’तिपि॥
२३८२.
वुत्ता ‘‘कुमारिभूता’’ति, सामणेरी हि या पन।
‘‘कुमारिभूता’’ इच्चेव, वत्तब्बा न पनञ्ञथा॥
२३८३.
एता तु पन तिस्सोपि, सिक्खासम्मुतिदानतो।
‘‘सिक्खमाना’’ति वत्तुम्पि, वट्टतेव न संसयो॥
ततियम्।
२३८४.
ऊनद्वादसवस्साव, वुट्ठापेति सचे परम्।
हुत्वा सयमुपज्झाया, सिक्खमानं तु भिक्खुनी॥
२३८५.
पुब्बे वुत्तनयेनेव, दुक्कटानमनन्तरम्।
कम्मवाचानमोसाने, तस्सा पाचित्ति दीपिता॥
चतुत्थम्।
२३८६.
पञ्चमे नत्थि वत्तब्बं, चतुत्थं पञ्चमम्पि च।
उभयं तिसमुट्ठानं, पञ्चमं तु क्रियाक्रियं॥
पञ्चमम्।
२३८७.
सङ्घेनुपपरिक्खित्वा, ‘‘अलं तावा’’ति वारिता।
उपसम्पादितेनेत्थ, पच्छा खीयति दोसता॥
२३८८.
उज्झायति सचे छन्द-दोसादीहि करोन्तिया।
न दोसो तिसमुट्ठानं, सचित्तं दुक्खवेदनं॥
छट्ठम्।
२३८९.
लद्धे च चीवरे पच्छा, असन्ते अन्तरायिके।
‘‘वुट्ठापेस्सामि नाह’’न्ति, धुरनिक्खेपने पन॥
२३९०.
होति पाचित्तियं तस्सा, गिलानायापदासुपि।
न दोसो परियेसित्वा, परिसं अलभन्तिया॥
२३९१.
इदञ्हि धुरनिक्खेप-समुट्ठानं सचित्तकम्।
अक्रियं लोकवज्जञ्च, होतिदं दुक्खवेदनं॥
सत्तमम्।
२३९२.
अट्ठमं सत्तमेनेव, सदिसं पन सब्बथा।
नवमेपि च वत्तब्बं, नत्थि उत्तानमेविदं॥
२३९३.
नत्थाजानन्तिया दोसो, तथा उम्मत्तिकाय वा।
अदिन्नादानतुल्याव, समुट्ठानादयो नया॥
अट्ठमनवमानि।
२३९४.
मातरा पितरा वाथ, नानुञ्ञातं तु सामिना।
तस्सा पाचित्तियापत्ति, तं वुट्ठापेन्तिया सिया॥
२३९५.
उपसम्पदकालस्मिं, तथा पब्बाजनक्खणे।
द्विक्खत्तुं पुच्छितब्बं तु, भिक्खुनीहि, न भिक्खुना॥
२३९६.
अनापत्ति न जानाति, मातुआदीनमत्थितम्।
इदं चतुसमुट्ठानं, वाचतो कायवाचतो॥
२३९७.
वाचामानसतो चेव, कायवाचादितोपि च।
क्रियाक्रियमचित्तञ्च, तिचित्तञ्च तिवेदनं॥
दसमम्।
२३९८.
या पारिवासिकेनेत्थ, छन्ददानेन भिक्खुनी।
वुट्ठापेति सचे सिक्ख-मानं पाचित्तियं सिया॥
२३९९.
अवुट्ठितायनापत्ति, परिसायाविहाय वा।
छन्दं तु तिसमुट्ठानं, तिचित्तञ्च तिवेदनं॥
एकादसमम्।
२४००.
द्वादसे तेरसे वापि, वत्तब्बं नत्थि किञ्चिपि।
समुट्ठानादयो सब्बे, अनन्तरसमा मता॥
द्वादसमतेरसमानि।
कुमारीभूतवग्गो अट्ठमो।
२४०१.
समणी अगिलाना या, धारेय्य छत्तुपाहनम्।
तस्सा पाचित्तियापत्ति, होतीति परियापुता॥
२४०२.
सचे एकपयोगेन, मग्गस्स गमने पन।
दिवसम्पि च धारेति, एकं पाचित्तियं सिया॥
२४०३.
कद्दमादीनि पस्सित्वा, ओमुञ्चित्वा उपाहना।
छत्तमेव च धारेन्ती, यदि गच्छति दुक्कटं॥
२४०४.
सचे उपाहनारुळ्हा, दिस्वा गच्छादिकं पन।
तं छत्तमपनामेत्वा, दुक्कटं होति गच्छति॥
२४०५.
छत्तम्पि अपनामेत्वा, ओमुञ्चित्वा उपाहना।
पुन धारेन्तिया तस्सा, होति पाचित्तियं पन॥
२४०६.
पयोगगणनायेव , पाचित्तिगणना सिया।
तिकपाचित्तियं वुत्तं, तथेव द्विकदुक्कटं॥
२४०७.
आरामे उपचारे वा, दोसो नत्थापदासुपि।
इदं एळकलोमेन, समुट्ठानादिना समं॥
पठमम्।
२४०८.
होति भिक्खुनिया याना, ओरोहित्वा पुनप्पुनम्।
अभिरूहन्तियापत्ति, पयोगगणनावसा॥
२४०९.
आपदासु अनापत्ति, तथा उम्मत्तिकाय वा।
सेसं अनन्तरेनेव, समुट्ठानादिना समं॥
दुतियम्।
२४१०.
या च धारेय्य सङ्घाणिं, यं किञ्चिपि कटूपियम्।
तस्सा पाचित्तियापत्ति, होतीति परियापुता॥
२४११.
धारेन्तिया पनेत्थापि, ओमुञ्चित्वा पुनप्पुनम्।
पयोगगणनायेव, तस्सा पाचित्तियो सियुं॥
२४१२.
आबाधपच्चया या तु, धारेति कटिसुत्तकम्।
तथा उम्मत्तिकादीन-मनापत्ति पकासिता॥
२४१३.
सेसं तु पठमेनेव, सदिसन्ति पकासितम्।
इध चाकुसलं चित्तं, लोकवज्जं विसेसता॥
ततियम्।
२४१४.
धारेति पन यं किञ्चि, सचे सीसूपगादिसु।
तस्सा तस्स च वत्थुस्स, गणनापत्तियो सियुं॥
२४१५.
आबाधपच्चया दोसो, किञ्चि धारेन्तिया न च।
सेसं अनन्तरेनेव, सदिसं परिदीपितं॥
चतुत्थम्।
२४१६.
येन केनचि गन्धेन, सवण्णावण्णकेन च।
न्हासन्तिया पनापत्ति, न्हानोसाने पकासिता॥
२४१७.
गन्धयोजनतो सब्ब-पयोगे दुक्कटं सिया।
आबाधपच्चया दोसो, नत्थि उम्मत्तिकाय वा॥
२४१८.
सेसं तु ततियेनेव, सदिसं सब्बथा मतम्।
छट्ठम्पि ततियेनेव, सदिसन्ति पकासितं॥
पञ्चमछट्ठानि।
२४१९.
उब्बट्टापेय्य चञ्ञाय, सम्बाहापेय्य वा तथा।
होति भिक्खुनियापत्ति, सचे भिक्खुनिया पन॥
२४२०.
एत्थ हत्थममोचेत्वा, एका उब्बट्टने सिया।
मोचेत्वा पन मोचेत्वा, पयोगगणना सिया॥
२४२१.
सम्बाहनेपि एसेव, नयो ञेय्यो विभाविना।
आपदासु गिलानाय, अनापत्ति पकासिता॥
२४२२.
सेसं तु ततियेनेव, समुट्ठानादिना समम्।
सत्तमेन समानाव, अट्ठमादीनि तीणिपि॥
सत्तमट्ठमनवमदसमानि।
२४२३.
या अन्तोउपचारस्मिं, भिक्खुस्स पुरतो पन।
अनापुच्छा निसीदेय्य, छमायपि न वट्टति॥
२४२४.
तिकपाचित्तियं वुत्तं, पुच्छिते दुक्कटद्वयम्।
आपदासु गिलानाय, न दोसुम्मत्तिकाय वा॥
२४२५.
इदं पन समुट्ठानं, कथिनेन समं मतम्।
क्रियाक्रियमचित्तञ्च, तिचित्तञ्च तिवेदनं॥
एकादसमम्।
२४२६.
अनोकासकतं भिक्खुं, पञ्हं पुच्छेय्य दोसता।
विनये च कतोकासं, सुत्तं पुच्छन्तियापि च॥
२४२७.
कारेत्वा पन ओकासं, अनोदिस्सापि पुच्छति।
न दोसो पदसोधम्म-समुट्ठानमिदं पन॥
द्वादसमम्।
२४२८.
संकच्चिकं विना गामं, पदसा पविसन्तिया।
परिक्खित्तस्स गामस्स, परिक्खेपोक्कमे पन॥
२४२९.
दुक्कटं पठमे पादे, पाचित्ति दुतिये सिया।
उपचारोक्कमेपेत्थ, एसेव च नयो मतो॥
२४३०.
यस्सा संकच्चिकं नट्ठं, अच्छिन्नं वापि केनचि।
अनापत्ति सिया तस्सा, गिलानायापदासुपि॥
२४३१.
इदमेळकलोमेन, समुट्ठानादिना समम्।
सेसं वुत्तनयेनेव, विञ्ञातब्बं विभाविना॥
तेरसमम्।
छत्तुपाहनवग्गो नवमो।
इति विनयविनिच्छये पाचित्तियकथा निट्ठिता।
पाटिदेसनीयकथा
२४३२.
अगिलाना सचे सप्पिं, लद्धं विञ्ञत्तिया सयम्।
‘‘भुञ्जिस्सामी’’ति गहणे, दुक्कटं परिदीपितं॥
२४३३.
अज्झोहारवसेनेव, पाटिदेसनियं सिया।
तिपाटिदेसनीयं तु, गिलानाय द्विदुक्कटं॥
२४३४.
गिलाना विञ्ञापेत्वान, पच्छा सेवन्तियापि च।
गिलानायावसेसं वा, विञ्ञत्तं ञातकादितो॥
२४३५.
अञ्ञस्सत्थाय वा अत्त-धनेनुम्मत्तिकाय वा।
अनापत्ति समुट्ठानं, अद्धानसदिसं मतं॥
पठमम्।
२४३६.
अयमेव च सेसेसु, दुतियादीसु निच्छयो।
समुट्ठानादिना सद्धिं, नत्थि काचि विसेसता॥
२४३७.
अनागतेसु सब्बेसु, सप्पिआदीसु पाळियम्।
भुञ्जन्तिया तु विञ्ञत्वा, अट्ठसुपि च दुक्कटं॥
इति विनयविनिच्छये
पाटिदेसनीयकथा निट्ठिता।
२४३८.
सेखिया पन ये धम्मा, उद्दिट्ठा पञ्चसत्तति।
तेसं महाविभङ्गे तु, वुत्तो अत्थविनिच्छयो॥
इति विनयविनिच्छये
सिक्खाकरणीयकथा निट्ठिता।
२४३९.
उभतोपातिमोक्खानम्।
सविभङ्गानमेव यो।
अत्थो अट्ठकथासारो।
सो च वुत्तो विसेसतो॥
२४४०.
तञ्च सब्बं समादाय, विनयस्स विनिच्छयो।
भिक्खूनं भिक्खुनीनञ्च, हितत्थाय कतो मया॥
२४४१.
इमं पटिभानजन्तु नो जन्तुनो।
सुणन्ति विनये हि ते ये हिते।
जनस्स सुमतायने तायने।
भवन्ति पकतञ्ञुनो तञ्ञुनो॥
२४४२.
बहुसारनये विनये परमे।
अभिपत्थयता हि विसारदतम्।
परमा पन बुद्धिमता महती।
करणीयतमा यतिनादरता॥
२४४३.
अवगच्छति यो पन भिक्खु इमम्।
विनयस्स विनिच्छयमत्थयुतम्।
अमरं अजरं अरजं अरुजम्।
अधिगच्छति सन्तिपदं पन सो॥
इति विनयविनिच्छये
भिक्खुनीविभङ्गकथा निट्ठिता।
खन्धककथा