०८. अट्ठकनिपातो

८. अट्ठकनिपातो

१. सीसूपचालाथेरीगाथा

१९६.
‘‘भिक्खुनी सीलसम्पन्ना, इन्द्रियेसु सुसंवुता।
अधिगच्छे पदं सन्तं, असेचनकमोजवं’’॥
१९७.
‘‘तावतिंसा च यामा च, तुसिता चापि देवता।
निम्मानरतिनो देवा, ये देवा वसवत्तिनो।
तत्थ चित्तं पणीधेहि, यत्थ ते वुसितं पुरे’’॥
१९८.
‘‘तावतिंसा च यामा च, तुसिता चापि देवता।
निम्मानरतिनो देवा, ये देवा वसवत्तिनो॥
१९९.
‘‘कालं कालं भवाभवं, सक्कायस्मिं पुरक्खता।
अवीतिवत्ता सक्कायं, जातिमरणसारिनो॥
२००.
‘‘सब्बो आदीपितो लोको, सब्बो लोको पदीपितो।
सब्बो पज्जलितो लोको, सब्बो लोको पकम्पितो॥
२०१.
‘‘अकम्पियं अतुलियं, अपुथुज्जनसेवितम्।
बुद्धो धम्ममदेसेसि, तत्थ मे निरतो मनो॥
२०२.
‘‘तस्साहं वचनं सुत्वा, विहरिं सासने रता।
तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनं॥
२०३.
‘‘सब्बत्थ विहता नन्दी, तमोखन्धो पदालितो।
एवं जानाहि पापिम, निहतो त्वमसि अन्तक’’॥
… सीसूपचाला थेरी…।
अट्ठकनिपातो निट्ठितो।