॥ नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स॥
खुद्दकनिकाये
थेरीगाथापाळि
१. एककनिपातो
१. अञ्ञतराथेरीगाथा
१.
‘‘सुखं सुपाहि थेरिके, कत्वा चोळेन पारुता।
उपसन्तो हि ते रागो, सुक्खडाकं व कुम्भिय’’न्ति॥
इत्थं सुदं अञ्ञतरा थेरी अपञ्ञाता भिक्खुनी गाथं अभासित्थाति।
२. मुत्ताथेरीगाथा
२.
‘‘मुत्ते मुच्चस्सु योगेहि, चन्दो राहुग्गहा इव।
विप्पमुत्तेन चित्तेन, अनणा भुञ्ज पिण्डक’’न्ति॥
इत्थं सुदं भगवा मुत्तं सिक्खमानं इमाय गाथाय अभिण्हं ओवदतीति।
३. पुण्णाथेरीगाथा
३.
‘‘पुण्णे पूरस्सु धम्मेहि, चन्दो पन्नरसेरिव।
परिपुण्णाय पञ्ञाय, तमोखन्धं [तमोक्खन्धं (सी॰ स्या॰)] पदालया’’ति॥
इत्थं सुदं पुण्णा थेरी गाथं अभासित्थाति।
४. तिस्साथेरीगाथा
४.
‘‘तिस्से सिक्खस्सु सिक्खाय, मा तं योगा उपच्चगुम्।
सब्बयोगविसंयुत्ता, चर लोके अनासवा’’ति॥
… तिस्सा थेरी…।
५. अञ्ञतरातिस्साथेरीगाथा
५.
‘‘तिस्से युञ्जस्सु धम्मेहि, खणो तं मा उपच्चगा।
खणातीता हि सोचन्ति, निरयम्हि समप्पिता’’ति॥
… अञ्ञतरा तिस्सा थेरी…।
६. धीराथेरीगाथा
६.
‘‘धीरे निरोधं फुसेहि [फुस्सेहि (सी॰)], सञ्ञावूपसमं सुखम्।
आराधयाहि निब्बानं, योगक्खेममनुत्तर’’न्ति [योगक्खेमं अनुत्तरन्ति (सी॰ स्या॰)]॥
… धीरा थेरी…।
७. वीराथेरीगाथा
७.
‘‘वीरा वीरेहि [धीरा धीरेहि (क॰)] धम्मेहि, भिक्खुनी भावितिन्द्रिया।
धारेहि अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहिनि’’न्ति [सवाहनन्ति (क॰)]॥
… वीरा थेरी…।
८. मित्ताथेरीगाथा
८.
‘‘सद्धाय पब्बजित्वान, मित्ते मित्तरता भव।
भावेहि कुसले धम्मे, योगक्खेमस्स पत्तिया’’ति॥
… मित्ता थेरी…।
९. भद्राथेरीगाथा
९.
‘‘सद्धाय पब्बजित्वान, भद्रे भद्ररता भव।
भावेहि कुसले धम्मे, योगक्खेममनुत्तर’’न्ति॥
… भद्रा थेरी…।
१०. उपसमाथेरीगाथा
१०.
‘‘उपसमे तरे ओघं, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरम्।
धारेहि अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहन’’न्ति॥
… उपसमा थेरी…।
११. मुत्ताथेरीगाथा
११.
‘‘सुमुत्ता साधुमुत्ताम्हि, तीहि खुज्जेहि मुत्तिया।
उदुक्खलेन मुसलेन, पतिना खुज्जकेन च।
मुत्ताम्हि जातिमरणा, भवनेत्ति समूहता’’ति॥
… मुत्ता थेरी…।
१२. धम्मदिन्नाथेरीगाथा
१२.
‘‘छन्दजाता अवसायी, मनसा च फुटा [फुट्ठा (स्या॰), फुठा (सी॰ अट्ठ॰)] सिया।
कामेसु अप्पटिबद्धचित्ता [अप्पटिबन्धचित्ता (क॰)], उद्धंसोताति वुच्चती’’ति [उद्धंसोता विमुच्चतीति (सी॰ पी॰)]॥
… धम्मदिन्ना थेरी…।
१३.विसाखाथेरीगाथा
१३.
‘‘करोथ बुद्धसासनं, यं कत्वा नानुतप्पति।
खिप्पं पादानि धोवित्वा, एकमन्ते निसीदथा’’ति॥
… विसाखा थेरी…।
१४.सुमनाथेरीगाथा
१४.
‘‘धातुयो दुक्खतो दिस्वा, मा जातिं पुनरागमि।
भवे छन्दं विराजेत्वा, उपसन्ता चरिस्ससी’’ति॥
… सुमना थेरी…।
१५. उत्तराथेरीगाथा
१५.
‘‘कायेन संवुता आसिं, वाचाय उद चेतसा।
समूलं तण्हमब्बुय्ह, सीतिभूताम्हि निब्बुता’’ति॥
… उत्तरा थेरी…।
१६. वुड्ढपब्बजितसुमनाथेरीगाथा
१६.
‘‘सुखं त्वं वुड्ढिके सेहि, कत्वा चोळेन पारूता।
उपसन्तो हि ते रागो, सीतिभूतासि निब्बुता’’ति॥
… सुमना वुड्ढपब्बजिता थेरी…।
१७. धम्माथेरीगाथा
१७.
‘‘पिण्डपातं चरित्वान, दण्डमोलुब्भ दुब्बला।
वेधमानेहि गत्तेहि, तत्थेव निपतिं छमा।
दिस्वा आदीनवं काये, अथ चित्तं विमुच्चि मे’’ति॥
… धम्मा थेरी…।
१८. सङ्घाथेरीगाथा
१८.
‘‘हित्वा घरे पब्बजित्वा [पब्बजिता (सी॰ अट्ठ॰)], हित्वा पुत्तं पसुं पियम्।
हित्वा रागञ्च दोसञ्च, अविज्जञ्च विराजिय।
समूलं तण्हमब्बुय्ह, उपसन्ताम्हि निब्बुता’’ति॥
… सङ्घा थेरी…।
एककनिपातो निट्ठितो।