१५. सोळसकनिपातो
१. अञ्ञासिकोण्डञ्ञत्थेरगाथा
६७३.
‘‘एस भिय्यो पसीदामि, सुत्वा धम्मं महारसम्।
विरागो देसितो धम्मो, अनुपादाय सब्बसो॥
६७४.
‘‘बहूनि लोके चित्रानि, अस्मिं पथविमण्डले।
मथेन्ति मञ्ञे सङ्कप्पं, सुभं रागूपसंहितं॥
६७५.
‘‘रजमुहतञ्च वातेन, यथा मेघोपसम्मये।
एवं सम्मन्ति सङ्कप्पा, यदा पञ्ञाय पस्सति॥
६७६.
[ध॰ प॰ २७७ धम्मपदे] ‘‘सब्बे सङ्खारा अनिच्चाति, यदा पञ्ञाय पस्सति।
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया॥
६७७ .
[ध॰ प॰ २७८ धम्मपदे] ‘‘सब्बे सङ्खारा दुक्खाति, यदा पञ्ञाय पस्सति
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया॥
६७८.
[ध॰ प॰ २७९ धम्मपदे] ‘‘सब्बे धम्मा अनत्ताति, यदा पञ्ञाय पस्सति।
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया॥
६७९.
‘‘बुद्धानुबुद्धो यो थेरो, कोण्डञ्ञो तिब्बनिक्कमो।
पहीनजातिमरणो, ब्रह्मचरियस्स केवली॥
६८०.
‘‘ओघपासो दळ्हखिलो [दळ्हो खिलो (स्या॰ क॰)], पब्बतो दुप्पदालयो।
छेत्वा खिलञ्च पासञ्च, सेलं भेत्वान [छेत्वान (क॰)] दुब्भिदम्।
तिण्णो पारङ्गतो झायी, मुत्तो सो मारबन्धना॥
६८१.
‘‘उद्धतो चपलो भिक्खु, मित्ते आगम्म पापके।
संसीदति महोघस्मिं, ऊमिया पटिकुज्जितो॥
६८२.
‘‘अनुद्धतो अचपलो, निपको संवुतिन्द्रियो।
कल्याणमित्तो मेधावी, दुक्खस्सन्तकरो सिया॥
६८३.
‘‘कालपब्बङ्गसङ्कासो, किसो धमनिसन्थतो।
मत्तञ्ञू अन्नपानस्मिं, अदीनमनसो नरो॥
६८४.
‘‘फुट्ठो डंसेहि मकसेहि, अरञ्ञस्मिं ब्रहावने।
नागो सङ्गामसीसेव, सतो तत्राधिवासये॥
६८५.
‘‘नाभिनन्दामि मरणं…पे॰… निब्बिसं भतको यथा॥
६८६.
‘‘नाभिनन्दामि मरणं…पे॰… सम्पजानाए पतिस्सतो॥
६८७.
‘‘परिचिण्णो मया सत्था…पे॰… भवनेत्ति समूहता॥
६८८.
‘‘यस्स चत्थाय पब्बजितो, अगारस्मानगारियम्।
सो मे अत्थो अनुप्पत्तो, किं मे सद्धिविहारिना’’ति॥
… अञ्ञासिकोण्डञ्ञो [अञ्ञाकोण्डञ्ञो (सी॰ स्या॰)] थेरो…।
२. उदायित्थेरगाथा
६८९.
[अ॰ नि॰ ६.४३] ‘‘मनुस्सभूतं सम्बुद्धं, अत्तदन्तं समाहितम्।
इरियमानं ब्रह्मपथे, चित्तस्सूपसमे रतं॥
६९०.
‘‘यं मनुस्सा नमस्सन्ति, सब्बधम्मान पारगुम्।
देवापि तं नमस्सन्ति, इति मे अरहतो सुतं॥
६९१.
‘‘सब्बसंयोजनातीतं , वना निब्बनमागतम्।
कामेहि नेक्खम्मरतं [निक्खम्मरतं (क॰)], मुत्तं सेलाव कञ्चनं॥
६९२.
‘‘स वे अच्चरुचि नागो, हिमवावञ्ञे सिलुच्चये।
सब्बेसं नागनामानं, सच्चनामो अनुत्तरो॥
६९३.
‘‘नागं वो कित्तयिस्सामि, न हि आगुं करोति सो।
सोरच्चं अविहिंसा च, पादा नागस्स ते दुवे॥
६९४.
‘‘सति च सम्पजञ्ञञ्च, चरणा नागस्स तेपरे।
सद्धाहत्थो महानागो, उपेक्खासेतदन्तवा॥
६९५.
‘‘सति गीवा सिरो पञ्ञा, वीमंसा धम्मचिन्तना।
धम्मकुच्छिसमावासो, विवेको तस्स वालधि॥
६९६.
‘‘सो झायी अस्सासरतो, अज्झत्तं सुसमाहितो।
गच्छं समाहितो नागो, ठितो नागो समाहितो॥
६९७.
‘‘सयं समाहितो नागो, निसिन्नोपि समाहितो।
सब्बत्थ संवुतो नागो, एसा नागस्स सम्पदा॥
६९८.
‘‘भुञ्जति अनवज्जानि, सावज्जानि न भुञ्जति।
घासमच्छादनं लद्धा, सन्निधिं परिवज्जयं॥
६९९.
‘‘संयोजनं अणुं थूलं, सब्बं छेत्वान बन्धनम्।
येन येनेव गच्छति, अनपक्खोव गच्छति॥
७००.
‘‘यथापि उदके जातं, पुण्डरीकं पवड्ढति।
नोपलिप्पति तोयेन, सुचिगन्धं मनोरमं॥
७०१.
‘‘तथेव च लोके जातो, बुद्धो लोके विहरति।
नोपलिप्पति लोकेन, तोयेन पदुमं यथा॥
७०२.
‘‘महागिनि पज्जलितो, अनाहारोपसम्मति।
अङ्गारेसु च सन्तेसु, निब्बुतोति पवुच्चति॥
७०३.
‘‘अत्थस्सायं विञ्ञापनी, उपमा विञ्ञूहि देसिता।
विञ्ञिस्सन्ति महानागा, नागं नागेन देसितं॥
७०४.
‘‘वीतरागो वीतदोसो, वीतमोहो अनासवो।
सरीरं विजहं नागो, परिनिब्बिस्सत्यनासवो’’ति॥
… उदायी थेरो…।
सोळसकनिपातो निट्ठितो।
तत्रुद्दानं –
कोण्डञ्ञो च उदायी च, थेरा द्वे ते महिद्धिका।
सोळसम्हि निपातम्हि, गाथायो द्वे च तिंस चाति॥