२३. नागवग्गो

२३. नागवग्गो
३२०.
अहं नागोव सङ्गामे, चापतो पतितं सरम्।
अतिवाक्यं तितिक्खिस्सं, दुस्सीलो हि बहुज्जनो॥
३२१.
दन्तं नयन्ति समितिं, दन्तं राजाभिरूहति।
दन्तो सेट्ठो मनुस्सेसु, योतिवाक्यं तितिक्खति॥
३२२.
वरमस्सतरा दन्ता, आजानीया च [आजानीयाव (स्या॰)] सिन्धवा।
कुञ्जरा च [कुञ्जराव (स्या॰)] महानागा, अत्तदन्तो ततो वरं॥
३२३.
न हि एतेहि यानेहि, गच्छेय्य अगतं दिसम्।
यथात्तना सुदन्तेन, दन्तो दन्तेन गच्छति॥
३२४.
धनपालो [धनपालको (सी॰ स्या॰ कं॰ पी॰)] नाम कुञ्जरो, कटुकभेदनो [कटुकप्पभेदनो (सी॰ स्या॰ पी॰)] दुन्निवारयो।
बद्धो कबळं न भुञ्जति, सुमरति [सुसरति (क॰)] नागवनस्स कुञ्जरो॥
३२५.
मिद्धी यदा होति महग्घसो च, निद्दायिता सम्परिवत्तसायी।
महावराहोव निवापपुट्ठो, पुनप्पुनं गब्भमुपेति मन्दो॥
३२६.
इदं पुरे चित्तमचारि चारिकं, येनिच्छकं यत्थकामं यथासुखम्।
तदज्जहं निग्गहेस्सामि योनिसो, हत्थिप्पभिन्नं विय अङ्कुसग्गहो॥
३२७.
अप्पमादरता होथ, सचित्तमनुरक्खथ।
दुग्गा उद्धरथत्तानं, पङ्के सन्नोव [सत्तोव (सी॰ पी॰)] कुञ्जरो॥
३२८.
सचे लभेथ निपकं सहायं, सद्धिं चरं साधुविहारिधीरम्।
अभिभुय्य सब्बानि परिस्सयानि, चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा॥
३२९.
नो चे लभेथ निपकं सहायं, सद्धिं चरं साधुविहारिधीरम्।
राजाव रट्ठं विजितं पहाय, एको चरे मातङ्गरञ्ञेव नागो॥
३३०.
एकस्स चरितं सेय्यो, नत्थि बाले सहायता।
एको चरे न च पापानि कयिरा, अप्पोस्सुक्को मातङ्गरञ्ञेव नागो॥
३३१.
अत्थम्हि जातम्हि सुखा सहाया, तुट्ठी सुखा या इतरीतरेन।
पुञ्ञं सुखं जीवितसङ्खयम्हि, सब्बस्स दुक्खस्स सुखं पहानं॥
३३२.
सुखा मत्तेय्यता लोके, अथो पेत्तेय्यता सुखा।
सुखा सामञ्ञता लोके, अथो ब्रह्मञ्ञता सुखा॥
३३३.
सुखं याव जरा सीलं, सुखा सद्धा पतिट्ठिता।
सुखो पञ्ञाय पटिलाभो, पापानं अकरणं सुखं॥
नागवग्गो तेवीसतिमो निट्ठितो।