१५. सुखवग्गो

१५. सुखवग्गो
१९७.
सुसुखं वत जीवाम, वेरिनेसु अवेरिनो।
वेरिनेसु मनुस्सेसु, विहराम अवेरिनो॥
१९८.
सुसुखं वत जीवाम, आतुरेसु अनातुरा।
आतुरेसु मनुस्सेसु, विहराम अनातुरा॥
१९९.
सुसुखं वत जीवाम, उस्सुकेसु अनुस्सुका।
उस्सुकेसु मनस्सेसु, विहराम अनुस्सुका॥
२००.
सुसुखं वत जीवाम, येसं नो नत्थि किञ्चनम्।
पीतिभक्खा भविस्साम, देवा आभस्सरा यथा॥
२०१.
जयं वेरं पसवति, दुक्खं सेति पराजितो।
उपसन्तो सुखं सेति, हित्वा जयपराजयं॥
२०२.
नत्थि रागसमो अग्गि, नत्थि दोससमो कलि।
नत्थि खन्धसमा [खन्धादिसा (सी॰ स्या॰ पी॰ रूपसिद्धिया समेति)] दुक्खा, नत्थि सन्तिपरं सुखं॥
२०३.
जिघच्छापरमा रोगा, सङ्खारपरमा [सङ्कारा परमा (बहूसु)] दुखा।
एतं ञत्वा यथाभूतं, निब्बानं परमं सुखं॥
२०४.
आरोग्यपरमा लाभा, सन्तुट्ठिपरमं धनम्।
विस्सासपरमा ञाति [विस्सासपरमो ञाति (क॰ सी॰), विस्सासपरमा ञाती (सी॰ अट्ठ॰), विस्सासा परमा ञाति (क॰)], निब्बानं परमं [निब्बाणपरमं (क॰ सी॰)] सुखं॥
२०५.
पविवेकरसं पित्वा [पीत्वा (सी॰ स्या॰ कं॰ पी॰)], रसं उपसमस्स च।
निद्दरो होति निप्पापो, धम्मपीतिरसं पिवं॥
२०६.
साहु दस्सनमरियानं, सन्निवासो सदा सुखो।
अदस्सनेन बालानं, निच्चमेव सुखी सिया॥
२०७.
बालसङ्गतचारी [बालसङ्गतिचारी (क॰)] हि, दीघमद्धान सोचति।
दुक्खो बालेहि संवासो, अमित्तेनेव सब्बदा।
धीरो च सुखसंवासो, ञातीनंव समागमो॥
२०८.
तस्मा हि –
धीरञ्च पञ्ञञ्च बहुस्सुतञ्च, धोरय्हसीलं वतवन्तमरियम्।
तं तादिसं सप्पुरिसं सुमेधं, भजेथ नक्खत्तपथंव चन्दिमा [तस्मा हि धीरं पञ्ञञ्च, बहुस्सुतञ्च धोरय्हम्। सीलं धुतवतमरियं, तं तादिसं सप्पुरिसम्। सुमेधं भजेथ नक्खत्तपथंव चन्दिमा। (क॰)]॥
सुखवग्गो पन्नरसमो निट्ठितो।