(१८) ८. रागपेय्यालं
१८४. ‘‘रागस्स , भिक्खवे, अभिञ्ञाय तयो धम्मा भावेतब्बा। कतमे तयो? सुञ्ञतो समाधि, अनिमित्तो समाधि, अप्पणिहितो समाधि – रागस्स, भिक्खवे, अभिञ्ञाय इमे तयो धम्मा भावेतब्बा। ( ) [(रागस्स भिक्खवे अभिञ्ञाय तयो धम्मा भावेतब्बा। कतमे तयो? सवितक्कसविचारो समाधि, अवितक्कविचारमत्तो समाधि, अवितक्कअविचारो समाधि। रागस्स भिक्खवे अभिञ्ञाय इमे तयो धम्मा भावेतब्बा।) एत्थन्तरे पाठो कत्थचि दिस्सति, अट्ठकथायं पस्सितब्बो]
‘‘रागस्स , भिक्खवे, परिञ्ञाय…पे॰… परिक्खयाय… पहानाय… खयाय… वयाय… विरागाय… निरोधाय… चागाय… पटिनिस्सग्गाय इमे तयो धम्मा भावेतब्बा।
‘‘दोसस्स… मोहस्स… कोधस्स… उपनाहस्स… मक्खस्स… पलासस्स… इस्साय… मच्छरियस्स… मायाय… साठेय्यस्स… थम्भस्स… सारम्भस्स… मानस्स… अतिमानस्स… मदस्स… पमादस्स अभिञ्ञाय… परिञ्ञाय… परिक्खयाय… पहानाय… खयाय… वयाय… विरागाय… निरोधाय… चागाय… पटिनिस्सग्गाय इमे तयो धम्मा भावेतब्बा’’ति।
(इदमवोच भगवा। अत्तमना ते भिक्खू भगवतो भासितं अभिनन्दुन्ति।) [( ) एत्थन्तरे पाठो स्या॰ कं॰ क॰ पोत्थकेसु न दिस्सति]
रागपेय्यालं निट्ठितं।
तस्सुद्दानं –
[इमा उद्दानगाथायो सी॰ स्या॰ कं॰ पी॰ पोत्थकेसु न दिस्सन्ति] रागं दोसञ्च मोहञ्च, कोधूपनाहपञ्चमं।
मक्खपळासइस्सा च, मच्छरिमायासाठेय्या॥
थम्भसारम्भमानञ्च, अतिमानमदस्स च।
पमादा सत्तरस वुत्ता, रागपेय्यालनिस्सिता॥
एते ओपम्मयुत्तेन, आपादेन अभिञ्ञाय।
परिञ्ञाय परिक्खया, पहानक्खयब्बयेन।
विरागनिरोधचागं, पटिनिस्सग्गे इमे दस॥
सुञ्ञतो अनिमित्तो च, अप्पणिहितो च तयो।
समाधिमूलका पेय्यालेसुपि ववत्थिता चाति॥
तिकनिपातपाळि निट्ठिता।