१२. अनापत्तिवग्गो
१५०. ‘‘ये ते, भिक्खवे, भिक्खू अनापत्तिं आपत्तीति दीपेन्ति ते, भिक्खवे, भिक्खू बहुजनअहिताय पटिपन्ना बहुजनअसुखाय, बहुनो जनस्स अनत्थाय अहिताय दुक्खाय देवमनुस्सानं। बहुञ्च ते, भिक्खवे, भिक्खू अपुञ्ञं पसवन्ति, ते चिमं सद्धम्मं अन्तरधापेन्ती’’ति। पठमं।
१५१. ‘‘ये ते, भिक्खवे, भिक्खू आपत्तिं अनापत्तीति दीपेन्ति ते, भिक्खवे, भिक्खू बहुजनअहिताय पटिपन्ना बहुजनअसुखाय, बहुनो जनस्स अनत्थाय अहिताय दुक्खाय देवमनुस्सानं। बहुञ्च ते, भिक्खवे, भिक्खू अपुञ्ञं पसवन्ति, ते चिमं सद्धम्मं अन्तरधापेन्ती’’ति। दुतियं।
१५२-१५९. ‘‘ये ते, भिक्खवे, भिक्खू लहुकं आपत्तिं गरुका आपत्तीति दीपेन्ति…पे॰… गरुकं आपत्तिं लहुका आपत्तीति दीपेन्ति…पे॰… दुट्ठुल्लं आपत्तिं अदुट्ठुल्ला आपत्तीति दीपेन्ति…पे॰… अदुट्ठुल्लं आपत्तिं दुट्ठुल्ला आपत्तीति दीपेन्ति…पे॰… सावसेसं आपत्तिं अनवसेसा आपत्तीति दीपेन्ति…पे॰… अनवसेसं आपत्तिं सावसेसा आपत्तीति दीपेन्ति…पे॰… सप्पटिकम्मं आपत्तिं अप्पटिकम्मा आपत्तीति दीपेन्ति…पे॰… अप्पटिकम्मं आपत्तिं सप्पटिकम्मा आपत्तीति दीपेन्ति ते, भिक्खवे, भिक्खू बहुजनअहिताय पटिपन्ना बहुजनअसुखाय, बहुनो जनस्स अनत्थाय अहिताय दुक्खाय देवमनुस्सानं। बहुञ्च ते, भिक्खवे, भिक्खू अपुञ्ञं पसवन्ति, ते चिमं सद्धम्मं अन्तरधापेन्ती’’ति। दसमं।
१६०. ‘‘ये ते, भिक्खवे, भिक्खू अनापत्तिं अनापत्तीति दीपेन्ति ते, भिक्खवे, भिक्खू बहुजनहिताय पटिपन्ना बहुजनसुखाय, बहुनो जनस्स अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सानं। बहुञ्च ते, भिक्खवे, भिक्खू पुञ्ञं पसवन्ति, ते चिमं सद्धम्मं ठपेन्ती’’ति। एकादसमं।
१६१. ‘‘ये ते, भिक्खवे, भिक्खू आपत्तिं आपत्तीति दीपेन्ति ते, भिक्खवे, भिक्खू बहुजनहिताय पटिपन्ना बहुजनसुखाय, बहुनो जनस्स अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सानं। बहुञ्च ते, भिक्खवे, भिक्खू पुञ्ञं पसवन्ति, ते चिमं सद्धम्मं ठपेन्ती’’ति। द्वादसमं।
१६२-१६९. ‘‘ये ते, भिक्खवे, भिक्खू लहुकं आपत्तिं लहुका आपत्तीति दीपेन्ति… गरुकं आपत्तिं गरुका आपत्तीति दीपेन्ति… दुट्ठुल्लं आपत्तिं दुट्ठुल्ला आपत्तीति दीपेन्ति… अदुट्ठुल्लं आपत्तिं अदुट्ठुल्ला आपत्तीति दीपेन्ति… सावसेसं आपत्तिं सावसेसा आपत्तीति दीपेन्ति… अनवसेसं आपत्तिं अनवसेसा आपत्तीति दीपेन्ति… सप्पटिकम्मं आपत्तिं सप्पटिकम्मा आपत्तीति दीपेन्ति… अप्पटिकम्मं आपत्तिं अप्पटिकम्मा आपत्तीति दीपेन्ति ते, भिक्खवे, भिक्खू बहुजनहिताय पटिपन्ना बहुजनसुखाय, बहुनो जनस्स अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सानं। बहुञ्च ते, भिक्खवे, भिक्खू पुञ्ञं पसवन्ति, ते चिमं सद्धम्मं ठपेन्ती’’ति। वीसतिमं।
अनापत्तिवग्गो द्वादसमो।