१. अट्ठिकमहप्फलसुत्तम्
२३८. सावत्थिनिदानम्। ‘‘अट्ठिकसञ्ञा, भिक्खवे, भाविता बहुलीकता महप्फला होति महानिसंसा। कथं भाविता च, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा कथं बहुलीकता महप्फला होति महानिसंसा? इध, भिक्खवे, भिक्खु अट्ठिकसञ्ञासहगतं सतिसम्बोज्झङ्गं भावेति विवेकनिस्सितं विरागनिस्सितं निरोधनिस्सितं वोस्सग्गपरिणामिं…पे॰… अट्ठिकसञ्ञासहगतं उपेक्खासम्बोज्झङ्गं भावेति विवेकनिस्सितं विरागनिस्सितं निरोधनिस्सितं वोस्सग्गपरिणामिम्। एवं भाविता खो, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा एवं बहुलीकता महप्फला होति महानिसंसा’’ति।
अञ्ञतरफलसुत्तम्
‘‘अट्ठिकसञ्ञाय, भिक्खवे, भाविताय बहुलीकताय द्विन्नं फलानं अञ्ञतरं फलं पाटिकङ्खं – दिट्ठेव धम्मे अञ्ञा, सति वा उपादिसेसे अनागामिता। कथं भाविताय च खो , भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञाय कथं बहुलीकताय द्विन्नं फलानं अञ्ञतरं फलं पाटिकङ्खं – दिट्ठेव धम्मे अञ्ञा, सति वा उपादिसेसे अनागामिता? इध, भिक्खवे, भिक्खु अट्ठिकसञ्ञासहगतं सतिसम्बोज्झङ्गं भावेति…पे॰… अट्ठिकसञ्ञासहगतं उपेक्खासम्बोज्झङ्गं भावेति विवेकनिस्सितं विरागनिस्सितं निरोधनिस्सितं वोस्सग्गपरिणामिम्। एवं भाविताय खो, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञाय एवं बहुलीकताय द्विन्नं फलानं अञ्ञतरं फलं पाटिकङ्खं – दिट्ठेव धम्मे अञ्ञा, सति वा उपादिसेसे अनागामिता’’ति।
महत्थसुत्तम्
‘‘अट्ठिकसञ्ञा , भिक्खवे, भाविता बहुलीकता महतो अत्थाय संवत्तति। कथं भाविता च, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा कथं बहुलीकता महतो अत्थाय संवत्तति? इध, भिक्खवे, भिक्खु अट्ठिकसञ्ञासहगतं सतिसम्बोज्झङ्गं भावेति…पे॰… अट्ठिकसञ्ञासहगतं उपेक्खासम्बोज्झङ्गं भावेति विवेकनिस्सितं विरागनिस्सितं निरोधनिस्सितं वोस्सग्गपरिणामिम्। एवं भाविता खो, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा एवं बहुलीकता महतो अत्थाय संवत्तती’’ति।
योगक्खेमसुत्तम्
‘‘अट्ठिकसञ्ञा, भिक्खवे, भाविता बहुलीकता महतो योगक्खेमाय संवत्तति। कथं भाविता च, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा कथं बहुलीकता महतो योगक्खेमाय संवत्तति? इध, भिक्खवे, भिक्खु अट्ठिकसञ्ञासहगतं सतिसम्बोज्झङ्गं भावेति…पे॰… अट्ठिकसञ्ञासहगतं उपेक्खासम्बोज्झङ्गं भावेति विवेकनिस्सितं विरागनिस्सितं निरोधनिस्सितं वोस्सग्गपरिणामिम्। एवं भाविता खो, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा एवं बहुलीकता महतो योगक्खेमाय संवत्तती’’ति।
संवेगसुत्तम्
‘‘अट्ठिकसञ्ञा , भिक्खवे, भाविता बहुलीकता महतो संवेगाय संवत्तति। कथं भाविता च, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा कथं बहुलीकता महतो संवेगाय संवत्तति? इध, भिक्खवे, भिक्खु अट्ठिकसञ्ञासहगतं सतिसम्बोज्झङ्गं भावेति…पे॰… अट्ठिकसञ्ञासहगतं उपेक्खासम्बोज्झङ्गं भावेति विवेकनिस्सितं विरागनिस्सितं निरोधनिस्सितं वोस्सग्गपरिणामिम्। एवं भाविता खो, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा एवं बहुलीकता महतो संवेगाय संवत्तती’’ति।
फासुविहारसुत्तम्
‘‘अट्ठिकसञ्ञा , भिक्खवे, भाविता बहुलीकता महतो फासुविहाराय संवत्तति। कथं भाविता च, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा कथं बहुलीकता महतो फासुविहाराय संवत्तति? इध, भिक्खवे, भिक्खु अट्ठिकसञ्ञासहगतं सतिसम्बोज्झङ्गं भावेति…पे॰… अट्ठिकसञ्ञासहगतं उपेक्खासम्बोज्झङ्गं भावेति विवेकनिस्सितं विरागनिस्सितं निरोधनिस्सितं वोस्सग्गपरिणामिम्। एवं भाविता खो, भिक्खवे, अट्ठिकसञ्ञा एवं बहुलीकता महतो फासुविहाराय संवत्तती’’ति। पठमम्।
२. पुळवकसुत्तम्
२३९. ‘‘पुळवकसञ्ञा [पुळुवकसञ्ञा (क॰)], भिक्खवे, भाविता…पे॰… दुतियम्।
३. विनीलकसुत्तम्
२४०. ‘‘विनीलकसञ्ञा, भिक्खवे…पे॰… ततियम्।
४. विच्छिद्दकसुत्तम्
२४१. ‘‘विच्छिद्दकसञ्ञा, भिक्खवे…पे॰… चतुत्थम्।
५. उद्धुमातकसुत्तम्
२४२. ‘‘उद्धुमातकसञ्ञा, भिक्खवे…पे॰… पञ्चमम्।
६. मेत्तासुत्तम्
२४३. ‘‘मेत्ता, भिक्खवे, भाविता…पे॰… छट्ठम्।
७. करुणासुत्तम्
२४४. ‘‘करुणा, भिक्खवे, भाविता…पे॰… सत्तमम्।
८. मुदितासुत्तम्
२४५. ‘‘मुदिता, भिक्खवे, भाविता…पे॰… अट्ठमम्।
९. उपेक्खासुत्तम्
२४६. ‘‘उपेक्खा , भिक्खवे, भाविता…पे॰… नवमम्।
१०. आनापानसुत्तम्
२४७. ‘‘आनापानस्सति , भिक्खवे, भाविता…पे॰… दसमम्।
आनापानवग्गो सत्तमो।
तस्सुद्दानं –
अट्ठिकपुळवकं विनीलकं, विच्छिद्दकं उद्धुमातेन पञ्चमम्।
मेत्ता करुणा मुदिता उपेक्खा, आनापानेन ते दसाति॥