४३८. एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे …पे॰… भगवा एतदवोच – ‘‘गन्धब्बकायिके वो, भिक्खवे, देवे देसेस्सामि। तं सुणाथ। कतमा च, भिक्खवे, गन्धब्बकायिका देवा? सन्ति, भिक्खवे, मूलगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, सारगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, फेग्गुगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, तचगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, पपटिकगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, पत्तगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, पुप्फगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, फलगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, रसगन्धे अधिवत्था देवा। सन्ति, भिक्खवे, गन्धगन्धे अधिवत्था देवा। इमे वुच्चन्ति, भिक्खवे, गन्धब्बकायिका देवा’’ति। पठमम्।