०४ ४ उपनिसिन्नवग्गो

१-११. मारादिसुत्तएकादसकम्

१९४. सावत्थिनिदानम्। एकमन्तं निसिन्नं खो आयस्मन्तं राधं भगवा एतदवोच – ‘‘यो खो, राध, मारो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो। को च, राध, मारो? रूपं खो, राध, मारो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो…पे॰… विञ्ञाणं मारो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो…पे॰… यो खो, राध, मारो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो’’ति।
१९५. यो खो, राध, मारधम्मो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो…पे॰…।
१९६. यं खो, राध, अनिच्चं…पे॰…।
१९७. यो खो, राध, अनिच्चधम्मो…पे॰…।
१९८. यं खो, राध, दुक्खं…पे॰…।
१९९. यो खो, राध, दुक्खधम्मो…पे॰…।
२००. यो खो, राध, अनत्ता…पे॰…।
२०१. यो खो, राध, अनत्तधम्मो…पे॰…।
२०२. यो खो, राध, खयधम्मो…पे॰…।
२०३. यो खो, राध, वयधम्मो…पे॰…।
२०४. यो खो, राध, समुदयधम्मो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो…पे॰…।

१२. निरोधधम्मसुत्तम्

२०५. सावत्थिनिदानम्। एकमन्तं निसिन्नं खो आयस्मन्तं राधं भगवा एतदवोच – ‘‘यो खो, राध, निरोधधम्मो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो। को च, राध, निरोधधम्मो? रूपं खो, राध, निरोधधम्मो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो। वेदना…पे॰… सञ्ञा…पे॰… सङ्खारा…पे॰… विञ्ञाणं निरोधधम्मो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो। यो खो, राध, निरोधधम्मो; तत्र ते छन्दो पहातब्बो, रागो पहातब्बो, छन्दरागो पहातब्बो’’ति।
उपनिसिन्नवग्गो चतुत्थो।
तस्सुद्दानं –
मारो च मारधम्मो च, अनिच्चेन अपरे दुवे।
दुक्खेन च दुवे वुत्ता, अनत्तेन तथेव च।
खयवयसमुदयं, निरोधधम्मेन द्वादसाति॥
राधसंयुत्तं समत्तम्।