१० १० दुतियपब्बतसुत्तम्

८३. सावत्थियं विहरति…पे॰… ‘‘सेय्यथापि, भिक्खवे, हिमवा पब्बतराजा परिक्खयं परियादानं गच्छेय्य, ठपेत्वा सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा। तं किं मञ्ञथ, भिक्खवे, कतमं नु खो बहुतरं, यं वा हिमवतो पब्बतराजस्स परिक्खीणं परियादिण्णं या वा सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा अवसिट्ठा’’ति?
‘‘एतदेव, भन्ते, बहुतरं हिमवतो पब्बतराजस्स यदिदं परिक्खीणं परियादिण्णं; अप्पमत्तिका सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा अवसिट्ठा। नेव सतिमं कलं उपेन्ति न सहस्सिमं कलं उपेन्ति न सतसहस्सिमं कलं उपेन्ति हिमवतो पब्बतराजस्स परिक्खीणं परियादिण्णं उपनिधाय सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा अवसिट्ठा’’ति।
‘‘एवमेव खो, भिक्खवे, अरियसावकस्स दिट्ठिसम्पन्नस्स पुग्गलस्स अभिसमेताविनो एतदेव बहुतरं दुक्खं यदिदं परिक्खीणं परियादिण्णं; अप्पमत्तकं अवसिट्ठम्। नेव सतिमं कलं उपेति न सहस्सिमं कलं उपेति न सतसहस्सिमं कलं उपेति पुरिमं दुक्खक्खन्धं परिक्खीणं परियादिण्णं उपनिधाय यदिदं सत्तक्खत्तुंपरमता। एवं महत्थियो खो, भिक्खवे, धम्माभिसमयो, एवं महत्थियो धम्मचक्खुपटिलाभो’’ति। दसमम्।