८२. सावत्थियं विहरति…पे॰… ‘‘सेय्यथापि, भिक्खवे, पुरिसो हिमवतो पब्बतराजस्स सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा उपनिक्खिपेय्य। तं किं मञ्ञथ, भिक्खवे, कतमं नु खो बहुतरं, या वा सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा उपनिक्खित्ता यो वा हिमवा [उपनिक्खित्ता, हिमवा वा (सी॰)] पब्बतराजा’’ति?
‘‘एतदेव, भन्ते, बहुतरं यदिदं हिमवा पब्बतराजा; अप्पमत्तिका सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा उपनिक्खित्ता। नेव सतिमं कलं उपेन्ति न सहस्सिमं कलं उपेन्ति न सतसहस्सिमं कलं उपेन्ति हिमवन्तं पब्बतराजानं उपनिधाय सत्त सासपमत्तियो पासाणसक्खरा उपनिक्खित्ता’’ति। ‘‘एवमेव खो…पे॰… धम्मचक्खुपटिलाभो’’ति। नवमम्।