०७ ६ अद्धवग्गो

१. नामसुत्तम्

६१.
‘‘किंसु सब्बं अद्धभवि [अन्वभवि (सी॰)], किस्मा भिय्यो न विज्जति।
किस्सस्सु एकधम्मस्स, सब्बेव वसमन्वगू’’ति [वसमद्धगू (क॰)]॥
‘‘नामं सब्बं अद्धभवि, नामा भिय्यो न विज्जति।
नामस्स एकधम्मस्स, सब्बेव वसमन्वगू’’ति॥

२. चित्तसुत्तम्

६२.
‘‘केनस्सु नीयति लोको, केनस्सु परिकस्सति।
किस्सस्सु एकधम्मस्स, सब्बेव वसमन्वगू’’ति॥
‘‘चित्तेन नीयति लोको, चित्तेन परिकस्सति।
चित्तस्स एकधम्मस्स, सब्बेव वसमन्वगू’’ति॥

३. तण्हासुत्तम्

६३.
‘‘केनस्सु नीयति लोको, केनस्सु परिकस्सति।
किस्सस्सु एकधम्मस्स, सब्बेव वसमन्वगू’’ति॥
‘‘तण्हाय नीयति लोको, तण्हाय परिकस्सति।
तण्हाय एकधम्मस्स, सब्बेव वसमन्वगू’’ति॥

४. संयोजनसुत्तम्

६४.
‘‘किंसु संयोजनो लोको, किंसु तस्स विचारणम्।
किस्सस्सु विप्पहानेन, निब्बानं इति वुच्चती’’ति॥
‘‘नन्दीसंयोजनो [नन्दिसंयोजनो (सी॰ स्या॰ कं॰)] लोको, वितक्कस्स विचारणम्।
तण्हाय विप्पहानेन, निब्बानं इति वुच्चती’’ति॥

५. बन्धनसुत्तम्

६५.
‘‘किंसु सम्बन्धनो लोको, किंसु तस्स विचारणम्।
किस्सस्सु विप्पहानेन, सब्बं छिन्दति बन्धन’’न्ति॥
‘‘नन्दीसम्बन्धनो लोको, वितक्कस्स विचारणम्।
तण्हाय विप्पहानेन, सब्बं छिन्दति बन्धन’’न्ति॥

६. अत्तहतसुत्तम्

६६.
‘‘केनस्सुब्भाहतो लोको, केनस्सु परिवारितो।
केन सल्लेन ओतिण्णो, किस्स धूपायितो सदा’’ति॥
‘‘मच्चुनाब्भाहतो लोको, जराय परिवारितो।
तण्हासल्लेन ओतिण्णो, इच्छाधूपायितो सदा’’ति॥

७. उड्डितसुत्तम्

६७.
‘‘केनस्सु उड्डितो लोको, केनस्सु परिवारितो।
केनस्सु पिहितो लोको, किस्मिं लोको पतिट्ठितो’’ति॥
‘‘तण्हाय उड्डितो लोको, जराय परिवारितो।
मच्चुना पिहितो लोको, दुक्खे लोको पतिट्ठितो’’ति॥

८. पिहितसुत्तम्

६८.
‘‘केनस्सु पिहितो लोको, किस्मिं लोको पतिट्ठितो।
केनस्सु उड्डितो लोको, केनस्सु परिवारितो’’ति॥
‘‘मच्चुना पिहितो लोको, दुक्खे लोको पतिट्ठितो।
तण्हाय उड्डितो लोको, जराय परिवारितो’’ति॥

९. इच्छासुत्तम्

६९.
‘‘केनस्सु बज्झती लोको, किस्स विनयाय मुच्चति।
किस्सस्सु विप्पहानेन, सब्बं छिन्दति बन्धन’’न्ति॥
‘‘इच्छाय बज्झती लोको, इच्छाविनयाय मुच्चति।
इच्छाय विप्पहानेन, सब्बं छिन्दति बन्धन’’न्ति॥

१०. लोकसुत्तम्

७०.
‘‘किस्मिं लोको समुप्पन्नो, किस्मिं कुब्बति सन्थवम्।
किस्स लोको उपादाय, किस्मिं लोको विहञ्ञती’’ति॥
‘‘छसु लोको समुप्पन्नो, छसु कुब्बति सन्थवम्।
छन्नमेव उपादाय, छसु लोको विहञ्ञती’’ति॥
अद्धवग्गो [अन्ववग्गो (सी॰)] सत्तमो।
तस्सुद्दानं –
नामं चित्तञ्च तण्हा च, संयोजनञ्च बन्धना।
अब्भाहतुड्डितो पिहितो, इच्छा लोकेन ते दसाति॥