(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या
विश्वेऽश्विनौ मरुतश् चोष्म+++(अन्न)+++पाश्+++(=पितरः)+++ च।
गन्धर्व-यक्षासुर-सिद्ध-सङ्घा
वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश् चैव सर्वे॥11.22॥
(सं) मूलम् ...{Loading}...
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या
विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा
वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे।।11.22।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
।।11.22।।ऊष्मपाः पितरःऊष्मभागा हि पितरः (तै. ब्रा. 1।3।10) इति श्रुतेः। एते सर्वे विस्मयम् आपन्नाः त्वां वीक्षन्ते।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
।।11.22।। देवजातिभेदसमभिव्याहारानुगुणमूष्मपशब्दार्थमाह – पितर इति।
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
11.22 Usmapa means manes, because the Sruti declares: ‘Verily the manes receive the hot portions of the offerings’ (Tai. Br., 1.3.10). All these, struck with amazement, behold You.
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।11.22।। No commentary.
(सं) अभिनव-गुप्तः (Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
11.22 Sri Abhinavagupta did not comment upon this sloka.
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।11.22।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.,
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।11.22।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
।।11.22।। –,रुद्रादित्याः वसवो ये च साध्याः रुद्रादयः गणाः विश्वेदेवाः अश्विनौ च देवौ मरुतश्च ऊष्मपाश्च पितरः; गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघाः गन्धर्वाः हाहाहूहूप्रभृतयः यक्षाः कुबेरप्रभृतयः असुराः विरोचनप्रभृतयः सिद्धाः कपिलादयः तेषां संघाः गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघाः; ते वीक्षन्ते पश्यन्ति त्वा त्वां विस्मिताः विस्मयमापन्नाः सन्तः ते एव सर्वे।। यस्मात् –,
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।11.22।। तथा और भी –, जो रुद्र; आदित्य; वसु और साध्य आदि देवगण हैं; एवं जो विश्वेदेव; दोनों अश्विनीकुमार; वायुदेव और ऊष्मपा नामक पितृगण हैं तथा जो गन्धर्व; यक्ष; असुर और सिद्धोंके समुदाय हैं यानी हाहाहूहू आदि गन्धर्व; कुबेरादि यक्ष; विरोचनादि असुर और कपिलादि सिद्ध इन सबके समुदाय हैं; वे सभी आश्चर्ययुक्त हुए आपको देख रहे हैं।
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(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
11.22 Ye, those who are; the rudra-adityah, Rudras and Adityas; vasavah, the Vasus; and sadhyah, the Sadhyas-the groups of Rudras and other gods; the gods visve, Visve-devas; and asvinau, the two Asvins; marutah, the Maruts; and usmapah, the Usmapas, (a class of) manes; and gandharva-yaksa-asura-siddha-sanghah, hosts of Gandharvas-viz Haha, Huhu and others-, Yaksas-viz Kubera and others-, demons-Virocana and others-, and Siddhas-Kapila and others; sarve eva, all of those very ones; viksante, gaze; tva, (i.e.) tvam, at You; vismitah eva, being indeed struck with wonder. For,
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।11.22।। दृश्यमानस्य भगवद्रूपस्य विस्मयकरत्वे हेत्वन्तरमाह – किञ्चेति। त एवोक्ता रुद्रादयः सर्वे विस्मयमापन्नास्त्वां पश्यन्तीति संबन्धः।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।11.22।। रुद्रादित्या इति। किंचान्यत् रुद्राश्चादित्याश्च वसवो ये च साध्या नाम देवगणा,विश्वतुल्यविभक्तिकविश्वेदेवशब्दाभ्यामुच्यमाना देवगणा अश्विनौ नासत्यदस्रौ मरुत एकोनपञ्चाशद्देवगणा ऊष्मपाश्च पितरो गन्धर्वाणां यक्षाणामसुराणां सिद्धानां च जातिभेदानां सङ्घाः समूहा वीक्षन्ते पश्यन्ति त्वा त्वां। तादृशाद्भुतदर्शनात्ते सर्व एव विस्मिताश्च। विस्मयलौकिकचमत्कारविशेषमापद्यन्ते च।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।11.22।। किं च ये त्वदनुगृहीता रुद्रादयस्तेऽपि विस्मिताः सन्तः सर्वे त्वां वीक्षन्त इत्याह – रुद्रादित्या इति। साध्याः विश्वे च देवगणविशेषौ रुद्रादित्यवज्ज्ञेयौ। उष्मपाः पितरः। गन्धर्वाणां यक्षाणामसुराणां सिद्धानां जातिभेदानां सङ्घाः समूहाः। शेषं स्पष्टम्।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।11.22।। किंचैद्रूपं दृष्ट्वा नाहमेव विस्मयाविष्टः; अपि तु रुद्रादयोऽपीत्याह – रूद्रेति। ऊष्माणं पिबन्तीत्ययूष्मपाः पितरः। ऊष्मभागा हि पितरः। यावदुष्णं भवेदन्नं यावदश्चन्ति वाग्यताः। पितरस्तावदश्रन्ति यावन्नोक्ता हविर्गुणाः इति श्रुतिस्मृतभ्याम्। गन्धर्वा हाहाहूहूप्रभृतयः; यक्षाः कुबेरादयः; असुरा विरोचनादयः; सिद्धाः कपिलादयः; तेषां सङ्घाः समूहास्त्वां पश्यन्ति। सर्वे विस्मिता विस्मयं प्राप्ता एव च।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।11.22।। Sri Vallabhacharya did not comment on this sloka.
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।11.22।। No commentary.
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।11.22।। किंच – रुद्रेति। रुद्राश्चादित्याश्च वसवश्च ये च साध्यानाम देवाः; विश्वेदेवा अश्विनौ देवौ; मरुतो मरुद्गणाः; ऊष्माणं पिबन्तीत्यूष्मपाः पितरः;ऊष्मभागा हि पितरः इत्यादिश्रुतेः। स्मृतिश्चयावदुष्णं भवेदन्नं यावदश्नन्ति वाग्यताः। पितरस्तावदश्नन्ति यावन्नोक्ता हविर्गुणाः।। इति। गन्धर्वाश्च यक्षाश्चासुराश्च विरोचनादयः; सिद्धानां सङ्घाश्च ते सर्व एव विस्मिताः सन्तः त्वां वीक्षन्त इत्यन्वयः।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।11.22।। अर्जुन और आगे वर्णन करते हुए कहता है कि इस ईश्वरीय रूप को देखने वालों में प्राकृतिक नियमों या शक्तियों के वे सब अधिष्ठातृ देवतागण भी सम्मिलित हैं; जिनकी वैदिककाल में पूजा और उपासना की जाती थी। वे सभी विस्मयचकित होकर इस रूप को देख रहे थे। इस श्लोक में उल्लिखित प्राय सभी देवताओं के विषय में हम पूर्व अध्याय में वर्णन कर चुके हैं। जिन नवीन नामों का यहाँ उल्लेख किया गया है; वे हैं साध्या ; विश्वेदेवा; और ऊष्मपा । इन शब्दों के अर्थों से आज हम अनभिज्ञ होने के कारण; यह श्लोक सम्भवत हमें अर्थपूर्ण प्रतीत नहीं होगा। परन्तु; अर्जुन वैदिक युग का पुरुष तथा वेदों का अध्येता होने के कारण इन सबसे सुपरिचित था; अत उसकी भाषा भी यही हो सकती थी। हमें केवल यही देखना है कि इस विराट् पुरुष के दर्शन का अर्जुन पर क्या प्रभाव पड़ा और विभिन्न प्रकार के देवताओं; ऋषियों; आदि की प्रतिक्रिया क्या हुई। इस आकाररहित आकार के विशाल विश्वरूप को प्रत्येक ने अपनेअपने मन के अनुसार देखा और समझा। अधिकाधिक विवरण देकर अर्जुन श्रोताओं के मनपटल पर विराट् पुरुष के चित्र को स्पष्ट करने का प्रयत्न करता है
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।11.22।। रुद्रगण, आदित्य, वसु और साध्यगण, विश्वेदेव तथा दो अश्विनीकुमार, मरुद्गण और उष्मपा, गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धगणों के समुदाय- ये सब ही विस्मित होते हुए आपको देखते हैं।।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।11.22।। जो ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दस विश्वेदेव और दो अश्विनीकुमार, उनचास मरुद्गण, सात पितृगण तथा गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धोंके समुदाय हैं, वे सभी चकित होकर आपको देख रहे हैं।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।11.22।।**व्याख्या–‘रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च’–**ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, दो अश्विनीकुमार और उनचास मरुद्गण – इन सबके नाम इसी अध्यायके छठे श्लोककी व्याख्यामें दिये गये हैं, इसलिये वहाँ देख लेना चाहिये।
मन, अनुमन्ता, प्राण, नर, यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभव और विभु – ये बारह ‘साध्य’ हैं (वायुपुराण 66। 15 16)।
क्रतु, दक्ष, श्रव, सत्य, काल, काम, धुनि, कुरुवान्, प्रभवान् और रोचमान – ये दस ‘विश्वेदेव’ हैं (वायुपुराण 66। 31 32)।
कव्यवाह अनल, सोम, यम, अर्यमा, अग्निष्वात्त और बर्हिषत् – ये सात ‘पितर’ हैं (शिवपुराण, धर्म0 63। 2)। ऊष्म अर्थात् गरम अन्न खानेके कारण पितरोंका नाम ‘ऊष्मपा’ है।
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
11.22. The Rudras, the Adityas, the Vasus, the Sadhyas, the Visvas (Visvadevas), the twin Asvins and the Maruts, and the Steam-drinkers (Manes) and the hosts of the Gandharvas, the Yoksas, the demons and the perfected ones - all gaze on You and are ite amazed.
(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
11.22 Those who are the Rudras, the Adityas, the Vasus and the Sadhyas [sadhyas: A particular class of celestial beings.-V.S.A.], the Visve (-devas), the two Asvins, the Maruts and the Usmapas, and hosts of Gandharvas, Yaksas, demons and Siddhas-all of those very ones gaze at You, being indeed struck with wonder.
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
11.22 The Vital Forces, the Major stars, Fire, Earth, Air, Sky, Sun, Heaven, Moon and Planets; the Angels, the Guardians of the Universe, the divine Healers, the Winds, the Fathers, the Heavenly Singers; and hosts of Mammon-worshippers, demons as well as saints, are amazed.
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
11.22 The Rudras, the Adityas, the Vasus, the Sadhyas, the Visvas, the Asvins, the Maruts and the manes, and the hosts of Gandharvas, Yaksas, Asuras, and Siddhas - all gaze upon You in amazement.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
11.22 The Rudras, Adityas, Vasus, Sadhyas, Visvedevas, the two Asvins, Maruts, the manes and the hosts of celestial singers, Yakshas, demons and the perfected ones, are all looking at Thee, in great amazement.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
11.22 रुद्रादित्याः Rudras and Adityas; वसवः Vasus; ये these; च and; साध्याः Sadhyas; विश्वे Visvedevas; अश्विनौ the two Asvins; मरुतः Maruts; च and; उष्मपाः Pitris; च and; गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घाः hosts of Gandharvas; Yakshas; Asuras and Siddhas; वीक्षन्ते are looking at; त्वाम् Thee; विस्मिताः astonished; च and; एव even; सर्वे all.Commentary Sadhyas are a class of gods of whom Brahma is the chief.Visvedevas are ten gods who in Vedic times were considered as protectors of human beings. They were called guardians of the world. They were givers of plenty to the human beings. Their names are Krata; Daksha; Vasu; Satya; Kama; Kala; Dhvani; Rochaka; Adrava and Pururava.The two Asvins; born of Prabha (light); daughter of Tushta and the Sun; are the physicians of the gods.Rudras; Adityas; Vasus and Maruts – see tenth chapter; verses 21 and 23.Ushmapa A class of manes. They accept the food offered in the Sraaddha (anniversary) ceremony or the obseies; while it is hot. Hence they are called Ushmapas. There are seven groups of manes.Gandharvas are celestial singers such as Haha and Huhu.Yakshas such as Kubera (the god of wealth) Asuras such as Virochana perfected ones such as Kapila.