(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
पश्यादित्यान् वसून् रुद्रान्
अश्विनौ मरुतस् तथा।
बहून्य् अदृष्ट-पूर्वाणि
पश्याऽश्चर्याणि भारत॥11.6॥
(सं) मूलम् ...{Loading}...
पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याऽश्चर्याणि भारत।।11.6।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
।।11.6।। मम एकस्मिन् रूपे पश्य आदित्यान् द्वादश; वसून् अष्टौ; रुद्रान् एकादश; अश््विनौ द्वौ; मरुतः च एकोनपञ्चाशतम् प्रदर्शनार्थमिदम् इह जगति प्रत्यक्षदृष्टानि शास्त्रदृष्टानि च यानि वस्तूनि तानि सर्वाणि अन्यानि अपि सर्वेषु लोकेषु सर्वेषु च शास्त्रेषु अदृष्टपूर्वाणि बहूनि आश्चर्याणि पश्य।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
।।11.6।। शतशोऽथ सहस्रशः [11।5] इति स्वासाधारणानन्तरूपप्रसङ्गेऽपि प्रकृतोपयोगायइहैकस्थम् [11।7] इत्येकस्यैव रूपस्य विशेषतः प्रदर्शयिष्यमाणत्वमनुसन्धायाह – ममैकस्मिन्निति। पश्यादित्यान् इत्यादिना प्रधानदेवास्त्रयस्त्रिंशत्प्रथमं निर्दिश्यन्त इत्यभिप्रायेण द्वादशेत्यादि सङ्ख्याविशेषप्रदर्शनम्। वक्ष्यमाणानुसारेण दृष्टमात्राश्रयत्वव्युदासायाहप्रदर्शनार्थमिति। अर्जुनेन अन्यैश्चाप्रतिपन्नानामिति शेषः। अदृष्टपूर्वाणि इत्येतदश्रुतपूर्वाणामप्युपलक्षणम्; अनवगतत्वमात्रेण वा सामान्यतः सङ्ग्रह इत्यभिप्रायेणाहसर्वेषु च शास्त्रेष्वदृष्टपूर्वाणीति। एतेनातीन्द्रिये वस्तुनि सामान्यतः शास्त्रावगतेऽपि साक्षात्कारैकसमधिगम्या बहवो विशेषाः सन्तीति सूचितम्।
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
11.6 Behold in My single form (i.e., the many forms in the one form revealed to Arjuna), the twelve Adityas, eight Vasus, eleven Rudras, the two Asvins and forty-nine Maruts. This is just illustrative. Behold all those things directly perceived in this world and those described in the Sastras, and also many marvels, not seen before in all the worlds and in all the Sastras.
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।11.6।। No commentary.
(सं) अभिनव-गुप्तः (Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
11.6 Sri Abhinavagupta did not comment upon this sloka.
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।11.6।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.,
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।11.6।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
।।11.6।। –,पश्य आदित्यान् द्वादश; वसून् अष्टौ; रुद्रान् एकादश; अश्विनौ द्वौ; मरुतः सप्त सप्त गणाः ये तान्। तथा च बहूनि अन्यान्यपि अदृष्टपूर्वाणि मनुष्यलोके त्वया;त्वत्तः अन्येन वा केनचित्; पश्य आश्चर्याणि अद्भुतानि भारत।। न केवलम् एतावदेव –,
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।11.6।। हे भारत तू द्वादश आदित्योंको; आठ वसुओंको ; एकादश रुद्रोंको; दोनों अश्विनीकुमारोंको और उनचास मरुद्गणोंको देख। तथा और भी जिन्हें मनुष्यलोकमें तूने अथवा और किसीने भी कभी नहीं देखा; ऐसे बहुतसे आश्चर्यमय – अद्भुत दृश्य देख।
(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
11.6 Pasya, see; adityan, the twelve Adityas; vasun, the eight Vasus; rudran, the eleven Rudras; asvinau, the two Asvins; and amarutah, the Maruts, who are divided into seven groups of seven each. Bharata, O scion of the Bharata dynasty; pasya, behold; tatha, also; bahuni, the many other; ascaryani, wonders; adrstapurvani, not seen before-by you or anyone else in the human world. Not only this much,-
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।11.6।। दिव्यानि रूपाणि पश्येत्युक्तं तान्येव लेशतोऽनुक्रामति – पश्यादित्यानिति। तान्मरुतस्तथा पश्येति संबन्धः। नानाविधानीत्युक्तं तदेव स्फुटयति – बहूनीति। अदृष्टपूर्वाणि पूर्वमदृष्टानि। नानावर्णाकृतीनीत्युक्तं व्यनक्ति – आश्चर्याणीति।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।11.6।। दिव्यानि रूपाणि पश्येत्युक्त्वा तान्येव लेशतोऽनुक्रामति द्वाभ्याम् – पश्यादित्यानित्यादिना। पश्यादित्यान्द्वादश वसूनष्टौ रुद्रानेकादश अश्विनौ द्वौ मरुतः सप्तसप्तकानेकोनपञ्चाशत् तथान्यानपि देवानित्यर्थः। बहून्यन्यान्यदृष्टपूर्वाणि पूर्वमदृष्टानि मनुष्यलोके त्वया त्वत्तोऽन्येन वा केनचित्पश्याश्चर्याण्यद्भुतानि हे भारत; अत्र शतशोऽथसहस्रशः नानाविधानीत्यस्य विवरणं बहूनीति आदित्यानित्यादि च; अदृष्टपूर्वाणीति दिव्यानीत्यस्य; आश्चर्याणीति नानावर्णाकृतीनीत्यस्येति द्रष्टव्यम्।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।11.6।। दिव्यानि तावदाह – पश्यादित्यानिति। अदृष्टपूर्वाण्याश्चर्याणि अद्भुतानि चतुर्मुखपञ्चमुखषण्मुखादीनि।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।11.6।। आदित्यान्द्वादश; त्रसूनष्ठौ; रूद्रानेकादश; अश्विनौ द्वौ; मरुत एकोनपञ्चाशत्। तथा बहून्यन्यानि मनुष्यलोके त्वया अन्येन वा पूर्वं न दृष्टानि। उत्तमवंशोद्भवत्वात्तव दर्शनेऽधिकार िति सूचयन्नाह – भारतेति। यस्मिन् वंशे त्वमुत्पन्नः तत्रोत्पन्नैः कैश्चिदप्येतन्न दृष्टमिति वा संबोधनाशयः।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।11.6।। किञ्चात्रैव पश्यादित्यानिति। आश्चर्याणि बहूनि पश्य एकत्रान्योन्यविरुद्धर्मसमावेशरूपाणि तत्राश्चर्याणि पश्य।
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।11.6।। तान्येव पश्येति नामभिर्विशेषेणाह – पश्येति। आदित्यान् द्वादशात्मकान्; वसून् अष्टसङ्ख्याकान्; रुद्रानेकादशसङ्ख्यान्; अश्विनौ अश्विनीकुमारौ; मरुतः देवगणविशेषान् तथा बहून्यसङ्ख्येयानि अदृष्टपूर्वाणि सर्वैः; आश्चर्याणि अलौकिकानि हे भारत उत्तमवंशोद्भव योग्यत्वात् पश्य।
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।11.6।। तान्येवाह – पश्येति। आदित्यादीन्मम देहे पश्य। मरुत एकोनपञ्चाशद्देवविशेषान्। अदृष्टपूर्वाणि त्वया वान्येन वा पूर्वमदृष्टानि रूपाणि आश्चर्याण्यत्यद्भुतानि।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।11.6।। द्रष्टव्य रुपों में भगवान् केवल महत्त्वपूर्ण देवताओं की ही गणना करते हैं। लौकिक जगत् में भी किसी जनसमुदाय का वर्णन करने में उसमें उपस्थित समाज के उन कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों का ही नाम निर्देश किया जाता है; जो उस समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहाँ भी भगवान् के शब्दों में इस विश्वरूप का वर्णन करने में अपनी असमर्थता के प्रति कुछ निराशा छलकती है; जब वे कहते हैं कि; और भी अनेक अदृष्टपूर्व (पूर्व न देखे हों) आश्चर्यों को तुम देखो। यहाँ उल्लिखित अनेक नामों का वर्णन पूर्व अध्यायों में किया जा चुका है। यहाँ नवीन नाम केवल अश्विनी कुमारों का है। ये सूर्य के दो पुत्र माने गये हैं; जिनके मुख अश्व के हैं तथा ये अश्विनीकुमार के नाम से प्रसिद्ध दो बन्धु देवताओं के वैद्य कहे जाते हैं। किसी स्थान पर वे उषकाल और सन्ध्याकाल के प्रतीक माने गये हैं; तो किसी अन्य स्थल पर इन्हें इन दो समयों के तारों का प्रतीक कहा गया है। विराट् रूप में द्रष्टव्य रूपों का सारांश में निर्देश करके भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन की जिज्ञासा को और अधिक बढ़ा दिया। इसलिए वह जानना चाहता है कि इन रूपों को वह कहां देखे इस पर कहते हैं
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।11.6।। हे भारत ! (मुझमें) आदित्यों, वसुओं, रुद्रों तथा अश्विनीकुमारों और मरुद्गणों को देखो, तथा और भी अनेक इसके पूर्व कभी न देखे हुए आश्चर्यों को देखो।।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।11.6।। हे भरतवंशोद्भव अर्जुन! तू बारह आदित्योंको, आठ वसुओंको, ग्यारह रुद्रोंको और दो अश्विनीकुमारोंको तथा उनचास मरुद्गणोंको देख। जिनको तूने पहले कभी देखा नहीं, ऐसे बहुत-से आश्चर्यजनक रूपोंको भी तू देख।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।11.6।।व्याख्या–‘पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा’– अदितिके पुत्र धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु – ये बारह ‘आदित्य’ हैं (महा0 आदि0 65। 15 16)।
धर, ध्रुव, सोम, अहः, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास –ये आठ वसु हैं (महा0 आदि0 66। 18)। हर, बहुरूप, त्रयम्बक, अपराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी, रैवतमृगव्याध, शर्व और कपाली – ये ग्यारह ‘रुद्र’ हैं (हरिवंश0 1। 3। 51 52)। ‘अश्विनीकुमार’ दो हैं। ये दोनों भाई देवताओंके वैद्य हैं। सत्त्वज्योति, आदित्य, सत्यज्योति, तिर्यग्ज्योति, सज्योति, ज्योतिष्मान्, हरित, ऋतजित्, सत्यजित्, सुषेण, सेनजित्, सत्यमित्र, अभिमित्र, हरिमित्र, कृत, सत्य, ध्रुव, धर्ता, विधर्ता, विधारय, ध्वान्त, धुनि, उग्र, भीम, अभियु, साक्षिप, ईदृक्, अन्यादृक्, यादृक्, प्रतिकृत्, ऋक्, समिति, संरम्भ, ईदृक्ष, पुरुष, अन्यादृक्ष, चेतस, समिता, समिदृक्षप्रतिदृक्ष, मरुति, सरत, देव, दिश, यजुः, अनुदृक्, साम, मानुष और विश् – ये उनचास ‘मरुत’ हैं (वायुपुराण 67। 123 – 130) – इन सबको तू मेरे विराट्रूपमें देख। बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनीकुमार – ये तैंतीस कोटि (तैंतीस प्रकारके) देवता सम्पूर्ण देवताओंमें मुख्य हैं। देवताओंमें मरुद्गणोंका नाम भी आता है, पर वे उनचास मरुद्गण इन तैंतीस प्रकारके देवताओंसे अलग माने जाते हैं; क्योंकि वे सभी दैत्योंसे देवता बने हैं। इसलिये भगवान्ने भी ‘तथा’ पद देकर मरुद्गणोंको अलग बताया है।
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
11.6. Behold the Adityas, the Vasus, the Rudras, the twin Asvins, and the Maruts; O son of Pandu, behold also many wonders that had never been seen before.
(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
11.6 See the Adiyas, the Vasus, the Rudras, the two Asvins and the Maruts. O scion of the Bharata dynasty, behold also the many wonders not seen before.
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
11.6 Behold thou the Powers of Nature: fire, earth, wind and sky; the sun, the heavens, the moon, the stars; all forces of vitality and of healing; and the roving winds. See the myriad wonders revealed to none but thee.
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
11.6 Behold the Adityas, the Vasus, the Rudras, the two Asvins and the Maruts. Behold, O Arjuna, many marvels never seen before.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
11.6 Behold the Adityas, the Vasus, the Rudras, the two Asvins and also the Maruts; behold many wonders never seen before, O Arjuna.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
11.6 पश्य behold; आदित्यान् the Adityas; वसून् the Vasus; रुद्रान् the Rudras; अश्विनौ the (two) Asvins; मरुतः the Maruts; तथा also; बहूनि many; अदृष्टपूर्वाणि never seen before; पश्य see; आश्चर्याणि wonders; भारत O Bharata.Commentary Adityas; Vasus; Rudras and Maruts have already been described in the previous chapter.Not these alone Behold also many other wonders never seen before by you or anybody else in this world.