(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दण्डो दमयताम् अस्मि
नीतिर् अस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां
ज्ञानं ज्ञानवताम् अहम्॥10.38॥+++(5)+++
(सं) मूलम् ...{Loading}...
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।10.38।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
।।10.38।। नियमातिक्रमणे दण्डं कुर्वतां दण्डः अहम्। विजिगीषूणां जयोपायभूता नीतिः अस्मि। गुह्यानां सम्बन्धिषु गोपनेषु मौनम् अस्मि; ज्ञानवतां ज्ञानं च अहम्।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
।।10.38।। नियमातिक्रमण इति दण्डयोग्यत्वकथनम्; अदण्ड्यविषयदण्डस्यातिशयेन नरकहेतुत्वात्। नीतिरस्मि नीतिमतामिति वक्तव्यम्; जिगीषतामित्यनेन तु कीदृशोऽन्वय इत्यत्राह – विजिगीषूणां जयोपायभूता नीतिरिति बुद्धिव्यापारविशेषो विवक्षितः। लोकविदितस्य वाङ्नियमनरूपस्य मौनस्य गुह्यत्वाभावान्न निर्धारणमुचितम् मौनशब्दस्यात्मविद्याविषयत्वे तु प्रसिद्धित्यागः स्यात् नच गुह्यधर्मत्वं मौनस्य; येनसत्त्वं सत्त्ववताम् [10।36] इतिवत्स्यादित्यत्राह – गुह्यानां सम्बन्धिषु गोपनेषु मौनमस्मीति। गुह्यानां गोपनीयत्वं मौनस्य चाषट्कर्णत्वमन्त्रणादपि गोपनोपायत्वं सम्प्रतिपन्नम् ततश्चात्र सम्बन्धमात्रे षष्ठी गोप्यगोपकभावरूपविशेषे विश्रान्ता। भूतानामस्मि चेतना [10।22] इति चैतन्यमात्रस्य पूर्वमुक्तत्वादत्रज्ञानं ज्ञानवताम् इति पुरुषार्थौपयिकातिशयितज्ञानविशेषोऽभिमतः;तज्ज्ञानमज्ञानमतोऽन्यदुक्तम् (तज्ज्ञानमेवाह तपोऽन्यरूपं) [वि.पु.6।5।87] इतिवत्।
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
10.38 I am the power of punishment of those who punish, if law is transgressed. In regard to those who seek victory I am policy which is the means of getting victory. Of factors associated with secrecy. I am silence. I am the wisdon of those who are wise.
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।10.19 – 10.42।। हन्त ते कथयिष्यामीत्यादि जगत्स्थित इत्यन्तम्। अहमात्मा (श्लो. 20) इत्यनेन व्यवच्छेदं वारयति। अन्यथा स्थावराणां हिमालय इत्यादिवाक्येषु हिमालय एव भगवान् नान्य इति व्यवच्छेदेन; निर्विभागत्वाभावात् ब्रह्मदर्शनं खण्डितम् अभविष्यत्। यतो यस्याखण्डाकारा व्याप्तिस्तथा चेतसि न उपारोहति; तां च [यो] जिज्ञासति तस्यायमुपदेशग्रन्थः। तथाहि उपसंहारे ( उपसंहारेण) भेदाभेदवादं,यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वम् (श्लो – 41) इत्यनेनाभिधाय; पश्चादभेदमेवोपसंहरति अथवा बहुनैतेन – विष्टभ्याहमिदं – एकांशेन जगत् स्थितः (श्लो – 42) इति। उक्तं हि – पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। इति – RV; X; 90; 3प्रजानां सृष्टिहेतुः सर्वमिदं भगवत्तत्त्वमेव तैस्तेर्विचित्रै रूपैर्भाव्यमानं +++(S तत्त्वमेतैस्तैर्विचित्रैः रूपैः ; N – विचित्ररूपै – )+++ सकलस्य +++(S;N सकलमस्य)+++ विषयतां यातीति।
(सं) अभिनव-गुप्तः (Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
10.38 See Comment under 10.42
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।10.38।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।10.38।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
।।10.38।। –,दण्डः दमयतां दमयितॄणाम् अस्मि अदान्तानां दमनकारण्। नीतिः अस्मि जिगीषतां जेतुमिच्छताम्। मौनं चैव अस्मि गुह्यानां गोप्यानाम्। ज्ञानं ज्ञानवताम् अहम्।।
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।10.38।। दमन करनेवालोंका दण्ड अर्थात् उन्मार्गमें चलनेवालोंको दमन करनेकी शक्ति मैं हूँ। विजय चाहनेवालोंका न्याय मैं हूँ। गुप्त रखने योग्य भावोंमें मौन मैं हूँ। ज्ञानवानोंका ज्ञान मैं हूँ।
(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
10.38 Damayatam, of the punishers; I am dandah, the rod, which is the means of controlling the lawless. I am the nitih, righteous policy; jagisatam, of those who desire to coner. And guhyanam, of things secret; I am verily maunam, silence. I am jnanam, knowledge; jnanavatam, of the men of knowledge.
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।10.38।। अदान्तानुत्पथान्पथि प्रवर्तयतां दण्डोऽहमुत्पथप्रवृत्तौ निग्रहहेतुरित्यर्थः। नीतिर्न्यायो धर्मस्य जयोपायस्य प्रकाशकः। मौनं वाचंयमत्वमुत्तमा वा चतुर्थाश्रमप्रवृत्तिः। श्रवणादिद्वारा परिपक्वसमाधिजन्यं,सम्यग्ज्ञानं ज्ञानम्।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।10.38।। दमयतामदान्तानुत्पथान्पथि प्रवर्तयतामुत्पथप्रवृत्तौ निग्रहहेतुर्दण्डोऽहमस्मि। जिगीषतां जेतुमिच्छतां नीतिर्न्यायो जयोपायस्य प्रकाशकोऽहमस्मि। गुह्यानां गोप्यानां गोपनहेतुर्मौनं वाचंयमत्वमहमस्मि। नहि तूष्णींस्थितस्याभिप्रायो ज्ञायते। गुह्यानां गोप्यानां मध्ये संन्यासश्रवणमननपूर्वकमात्मनो निदिध्यासनलक्षणं मौनं वाहमस्मि। ज्ञानवतां ज्ञानिनां यच्छ्रवणमनननिदिध्यासनपरिपाकप्रभवमद्वितीयात्मसाक्षात्काररूपं सर्वाज्ञानविरोधि ज्ञानं तदहमस्मि।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।10.38।। दमयतां राजादीनां दमनसाधनं दण्डोऽहमस्मि। जिगीषतां जेतुमिच्छतां जयसाधनं नीतिरस्मि। मौनं वाचोनिग्रहः।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।10.38।। दण्डोऽदान्तदमनकारणं दमयतां दमनकर्तॄणाम्। जिगीषतां चेतुमिच्छतां जयहेतुर्नीतिरहम्। गुह्यानां गोप्यानां मौनं तूष्णींभावोऽहम्।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।10.38।। दण्ड इति। कालीयेन्द्रादिषु कृतो दण्डो भगवद्रूप उक्तः। स्पष्टमन्यत्।
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।10.38।। दण्ड इति। दमयतां दमकारिणां मध्ये दण्डोऽस्मि; सर्वदोषहरत्वेनेति भावः। जिगीषतां जेतुमिच्छतां नीतिरस्मि। गुह्यानां गोप्यानां मध्ये मौनमवचनमस्मि। ज्ञानवतां ज्ञानिनां मध्ये ज्ञानमहमस्मि।
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।10.38।। दण्ड इति। दमयतां दमनकर्तॄणां संबन्धी दण्डोऽस्मि येनासंयता अपि संयता भवन्ति स दण्डो मद्विभूतिः। जेतुमिच्छतां संबन्धिनी सामाद्युपायरूपा नीतिरस्मि। गुह्यानां गोप्यानां गोपनहेतुर्मौनमवचनमहमस्मि; नहि तूष्णींस्थितस्याभिप्रायो ज्ञायते। ज्ञानवतां तत्त्वज्ञानिनां यज्ज्ञानं तदहम्।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।10.38।। मैं दमन करने वालों का दण्ड हूँ शासक राजा और शासित प्रजा इन दोनों को ही अपने राज्य के विभिन्न जन समुदायों के रहनसहन के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए साथसाथ परिश्रम करना होता है। शासक को यह देखना चाहिए कि वह विधिनियमों को लागू करके उनके द्वारा शासन करे। इस प्रकार के शासन के कार्य में उन असामाजिक तत्त्वों को दण्डित करना भी आवश्यक होता हैं; जो अपने स्वार्थ के वश में समाज के विद्यमान नियमों की अवहेलना करते हैं। सामान्य प्रजा शासन के प्रति आदर और निष्ठा होने के कारण शासकों के नियमों और दण्ड के अधीन द्मरहती है। परन्तु प्रश्न यह है कि वह कौन है; जो दुराचारियों को दण्डित करने का अधिकार राजा अथवा राष्ट्रपति को प्रदान करता है आधुनिक शासन प्रणालियों में व्यक्तियों को अपने हाथों में कानून लेने का कोई अधिकार नहीं है। राजा राजदण्ड को धारण करता है; जो उसकी सत्ता और दमन के अधिकार का चिह्न है। प्रजातान्त्रीय शासन प्रणाली में राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री को यह अधिकार जनता का बहुमत प्राप्त होने से मिलता है। मार्ग में खड़े हुए आरक्षी (पुलिसमेन) का गणवेश अपराधियों को गिरफ्तार करने के उसके अधिकार का सूचक होता है। राजदण्ड से रहित राजा; जनमत के बिना राष्ट्रपति और एक निलम्बित आरक्षी अपने पूर्व के अधिकारों से वंचित हो जाते हैं। अत यहाँ भगवान् कहते हैं कि मैं दमन करने वालों का दण्ड हूँ। समाज अनुमति सूचक चिह्न के बिना किसी भी एक व्यक्ति का समाज पर कोई अधिकार नहीं होता। क्योंकि; आखिर; राजा या राष्ट्रपति; पुलिस य्ाा न्यायाधीश ये सभी वस्तुत समाज के ही सदस्य होते हैं; परन्तु वे समाज के संरक्षक के रूप में जो कार्य करते हैं; वह विशेष अधिकार उन्हें अपने पद के कारण प्राप्त होता है। मैं विजयेच्छुओं की नीति हूँ यहाँ नीति शब्द का अर्थ राजनीति से है । इतिहास के ग्रन्थों में यह तथ्य बारम्बार दोहराया गया है कि केवल शारीरिक शक्ति से शत्रु पर प्राप्त की गई विजय वास्तविक विजय कदापि नहीं होती। वस्तुत किसी भी राष्ट्र; समाज; समुदाय या व्यक्ति को केवल इसलिए विजयी नहीं मानना चाहिए कि उसने अपनी सैनिक तथा शारीरिक शक्ति से शत्रुओं को परास्त कर दिया है। वास्तविक व पूर्ण विजय वही है जिसमें विजेता पक्ष बुद्धिमत्तापूर्वक लागू की गई शासन की नीतियों के द्वारा पराजित पक्ष को अपनी संस्कृति एवं विचारधारा में परिवर्तित कर देता है। यदि विजेता; पराजित लोगों का सांस्कृतिक परिवर्तन कराने में अथवा स्वयं उनकी संस्कृति को ग्रहण करने में समर्थ नहीं है; तो उसकी विजय कदापि पूर्ण नहीं कही जा सकती। इतिहास के प्रत्येक विद्यार्थी के लिए यह एक खुला रहस्य है। सैनिक विजय के पश्चात् कुशल राजनीति के द्वारा ही पराजित पक्ष का वास्तविक धर्मान्तरण हो सकता है; और केवल तभी पराजित पक्ष पूर्णत विजेता के वश में हुआ कहा जा सकता है। अत यहाँ कहा गया है कि; विजयेच्छुओं की नीति मैं हूँ। मैं गोपनीय में मौन हूँ किसी तथ्य की गोपनीयता बनाये रखने का एकमात्र उपाय है मौन। किसी तथ्य के विषय में खुली चर्चा करने पर उसकी गोपनीयता ही समाप्त हो जाती है। इस प्रकार; किसी रहस्य का सारतत्त्व ही मौन है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि अध्यात्मशास्त्र में आत्मज्ञान का वर्णन भी गुह्यतम अथवा राजगुह्य के रूप में किया गया है; क्योंकि सामान्यत यह ज्ञात नहीं है। इस महान् सत्य की अनुभूति की निरन्तरता बनाये रखने का उपाय भी आन्तरिक मौन ही है। सब गुह्यों में; भगवान् गहन गम्भीर और अखण्ड मौन हैंज्ञानवान का ज्ञान मैं हूँ बुद्धिमानों में बुद्धिमत्ता ही स्वयं बुद्धिमान् नहीं हैं; किन्तु वह उससे भिन्न भी नहीं है। आत्मा यह देह नहीं; परन्तु हम यह भी नहीं कह सकते हैं कि देह सर्वव्यापी आत्मा से कोई भिन्न वस्तु है। जड़ उपाधियां और उसके अनुभव ये सब विभूति की आभा हैं; जो आत्मा के आसपास आलोकवलय में चमकती रहती हैं। ज्ञाता का ज्ञान या बुद्धिमान् की बुद्धिमत्ता परमात्मा की विभूति की अभिव्यक्ति है; जो उन पुरुषों के संस्कारों का परिणाम है। अब तक विवेचन किये गये विषय का अत्यन्त सुन्दर उपसंहार करते हुए भगवान् कहते हैं
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।10.38।। मैं दमन करने वालों का दण्ड हूँ और विजयेच्छुओं की नीति हूँ; मैं गुह्यों में मौन हूँ और ज्ञानवानों का ज्ञान हूँ।।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।10.38।। दमन करनेवालोंमें दण्डनीति और विजय चाहनेवालोंमें नीति मैं हूँ। गोपनीय भावोंमें मौन और ज्ञानवानोंमें ज्ञान मैं हूँ।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।10.38।।**व्याख्या–‘दण्डो दमयतामस्मि’–**दुष्टोंको दुष्टतासे बचाकर सन्मार्गपर लानेके लिये दण्डनीति मुख्य है। इसलिये भगवान्ने इसको अपनी विभूति बताया है।
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
10.38. I am the punishment [at the hands] of the punishers; I am the political wisdom of those who seek victory; I am also silence of the secret ones; I am the knowledge of the knowers.
(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
10.38 Of the punishers I am the rod; I am the righteous policy of those who desire to coner. And of things secret, I am verily silence; I am knowledge of the men of knowledge৷৷
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
10.38 I am the Sceptre of rulers, the Strategy of the conquerors, the Silence of mystery, the Wisdom of the wise.
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
10.38 Of those that punish, I am the principle of punishment. Of these that seek victory, I am policy. Of secrets, I am also silence. And of those who are wise, I am wisdom.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
10.38 Of those who punish, I am the sceptre; among those who seek victory, I am statesmanship; and also among secrets, I am silence; knowledge among knowers I am.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
10.38 दण्डः the sceptre; दमयताम् among punishers; अस्मि (I) am; नीतिः statesmanship; अस्मि (I) am; जिगीषताम् among thoese who seek victory; मौनम् silence; च and; एव also; अस्मि (I) am; गुह्यानाम् among secrets; ज्ञानम् the knowledge; ज्ञानवताम् among the knowers; अहम् I.Commentary Niti Diplomacy; polity.Maunam The silence produced by constant meditation on Brahman or the Self.Jnanam Knowledge of the Self.