(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
प्रह्लादश् चास्मि दैत्यानां
कालः कलयताम् अहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रो ऽहं
वैनतेयश् च पक्षिणाम्॥10.30॥+++(5)+++
(सं) मूलम् ...{Loading}...
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।10.30।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
।।10.30।। अनर्थप्रेप्सुतया गणयतां मध्ये कालः मृत्युः अहम्।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
।।10.30।। उपमानमशेषाणां साधूनां यः सदाऽभवत् [वि.पु.1।15।155] इत्यादिना प्रह्लादोत्कर्षः। अहमेवाक्षयः कालः [10।33] इति नित्यस्य कालतत्त्वस्य परस्ताद्वक्ष्यमाणत्वात् यमस्य च पूर्वमुक्तत्वात्तद्व्यतिरिक्तः पुरुषविशेष इह कालशब्देन विवक्षितः अचेतनस्य च कालस्य गणयितृत्वं न युज्यतेकलयताम् इत्यस्य विज्ञातृमात्रपरत्वे तेषु कालस्य निर्धारणमयुक्तम् अतस्तदुचितमर्थविशेषं दर्शयति – अनर्थेति। नहि मरणातिरिक्तोऽनर्थ इति भावः। मृगेन्द्रशब्देनैव सिंहस्यातिशयः सिद्धः। पक्षिषु वैनतेयस्य वेगातिशयाद्वेदमयत्वादिना चोत्कर्षः।
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
10.30 Of those who reckon with the desire to cause evil, I am the god of death - (here an emissary of his who records the time of death of creatures is meant).
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।10.19 – 10.42।। हन्त ते कथयिष्यामीत्यादि जगत्स्थित इत्यन्तम्। अहमात्मा (श्लो. 20) इत्यनेन व्यवच्छेदं वारयति। अन्यथा स्थावराणां हिमालय इत्यादिवाक्येषु हिमालय एव भगवान् नान्य इति व्यवच्छेदेन; निर्विभागत्वाभावात् ब्रह्मदर्शनं खण्डितम् अभविष्यत्। यतो यस्याखण्डाकारा व्याप्तिस्तथा चेतसि न उपारोहति; तां च [यो] जिज्ञासति तस्यायमुपदेशग्रन्थः। तथाहि उपसंहारे ( उपसंहारेण) भेदाभेदवादं,यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वम् (श्लो – 41) इत्यनेनाभिधाय; पश्चादभेदमेवोपसंहरति अथवा बहुनैतेन – विष्टभ्याहमिदं – एकांशेन जगत् स्थितः (श्लो – 42) इति। उक्तं हि – पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। इति – RV; X; 90; 3प्रजानां सृष्टिहेतुः सर्वमिदं भगवत्तत्त्वमेव तैस्तेर्विचित्रै रूपैर्भाव्यमानं +++(S तत्त्वमेतैस्तैर्विचित्रैः रूपैः ; N – विचित्ररूपै – )+++ सकलस्य +++(S;N सकलमस्य)+++ विषयतां यातीति।
(सं) अभिनव-गुप्तः (Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
10.30 See Comment under 10.42
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।10.30।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।10.30।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
।।10.30।। –,प्रह्लादो नाम च अस्मि दैत्याना दितिवंश्यानाम्। कालः कलयतां कलनं गणनं कुर्वताम् अहम्। मृगाणां च मृगेन्द्रः सिंहो व्याघ्रो वा अहम्। वैनतेयश्च गरुत्मान् विनतासुतः पक्षिणां पतत्रिणाम्।।
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।10.30।। दैत्योंमें अर्थात् दितिके वंशजोंमें मैं प्रह्लाद नामक दैत्य हूँ और कलना – गणना करनेवालोंमें मैं काल हूँ। पशुओंमें पशुओंका राजा सिंह या व्याघ्र और पक्षियोंमें विनतापुत्र – गरुड़ मैं हूँ।
(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
10.30 Daityanam, among demons, the descendants of Diti, I am the one called Prahlada. And I am kalah, Time; kalayatam, among reckoners of time, of those who calculate. And mrganam, among animals; I am mrgendrah, the loin, or the tiger. And paksinam, among birds; (I am) vainateyah, Garuda, the son of Vinata.
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।10.30।। प्रजनयतीति व्युत्पत्तिमाश्रित्याह – प्रजनयितेति। सर्पा नागाश्च जातिभेदाद्भिद्यन्ते।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।10.30।। दैत्यानां दितिवंश्यानां मध्ये प्रकर्षेण ह्लादयत्यानन्दयति परमसात्त्विकत्वेन सर्वानिति प्रह्लादश्चास्मि। कलयतां संख्यानं गणनं कुर्वतां मध्ये कालोऽहम्। भृगेन्द्रः सिंहः मृगाणां पशूनां मध्येऽहम्। वैनतेयश्च पक्षिणां विनतापुत्रो गरुडः।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।10.30।। कलयतां गणनं कुर्वताम्।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।10.30।। पवतां पावजितॄणाम्। रामः श्रीरामचन्द्रः। झषाणां मत्स्यादीनां मकरो नाम जातिविशेषः। स्त्रोतसां स्त्रवन्तीनां नदीनां जाह्नवी गङ्गा।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।10.30।। प्रह्लादश्चास्मीति महाभागवततया चिन्तनीयः। अनिमिषतया भूतानामायुगेणयतां संवत्सरादीनां मध्ये कालोऽहं भगवदुपयोगित्वाच्चिन्तनीयः। मृगाणामिति। मृगेन्द्रो नृसिंहो वराहश्चाहं मृगेन्द्रगरुडयोर्वाहनप्रतिकृतिरूपतया वा भगवत्सेवासने क्रीडोपयोगित्वेन चिन्तनंअनुकृत्य रूतैर्जन्तूंश्चेरतुः प्राकृतौ यथा [भाग.10।11।40] इत्युक्तेः भगवदनुकरणविषयत्वेन वा।
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।10.30।। दैत्यानां च असम्भावितत्वात् मध्ये दैत्यकुलोद्धारकः प्रह्लादोऽस्मि। कलयतां व्याकुर्वतां,कालोऽहमस्मि। मृगाणां मृगेन्द्रः सिंहः। पक्षिणां पक्षवतां मध्ये वैनतेयस्तेषां राजा गरुडोऽस्मि।
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।10.30।।प्रह्लाद इति। कलयतां वशीकुर्वतां गणयतां वा मध्ये कालोऽहम्। मृगेन्द्रः सिंहः। पक्षिणां मध्ये गरुडोऽस्मि।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।10.30।। मैं दैत्यों में प्रह्लाद हूँ हिन्दुओं में बालक भक्त प्रह्लाद की कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है। प्रह्लाद हिरण्यकश्यिपु नामक दैत्य राजा का पुत्र था; जिसे भगवान् हरि में अटूट श्रद्धा और दृढ़ भक्ति थी। इसके लिए उसे ईश्वरद्वेषी हिरण्यकश्यिपु ने अनेक प्रकार की यातनाएं दीं; जिन सबको प्रह्लाद ने सहन किया; परन्तु भक्ति को नहीं त्यागा। मैं गणना करने वालों में काल हूँ भारत के दार्शनिकों में नैय्यायिकों का अपना विशेष स्थान है। वे सृष्टि की विविधता को सत्य स्वीकार करते हुए ईश्वर के अस्तित्व का निषेध करते हैं। केवल बौद्धिक तर्कों के द्वारा वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि काल ही नित्य तत्त्व है। व्यष्टि मन और बुद्धि ही काल के विभाजक हैं; जो उसमें भूत; वर्तमान और भविष्य की कल्पनायें करते हैं। उनके मत के अनुसार मन का यह खेल ही काल का विभाजन इस प्रकार करता है कि मानो काल कोई खण्डित और परिच्छिन्न तत्त्व हो। सम्भवत; इसी सिद्धांत को ध्यान में रखकर; महर्षि व्यास ने बहुविध सृष्टि के अनन्त अधिष्ठान को दर्शाते के लिए इस उदाहरण को यहाँ दिया है। कुछ व्याख्याकार हैं; जो प्राय इसे एक सरल कथन के रूप में स्वीकार करते हैं उनके अनुसार; अनादि अनन्त काल ही इस जगत् की वस्तुओं की अन्तिम गति है। सिंह अपनी महानता; प्रतिष्ठा एवं पौरुषता के कारण मृगराज कहलाता है। गरुड़ को पक्षियों का राजपद मिलने का कारण है; उसकी सूक्ष्मदर्शिता एवं सर्वाधिक ऊँचाई तक उड़ान भरने की क्षमता। गरुड़ को भगवान् विष्णु का वाहन कहा गया है।
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।10.30।। मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों में काल हूँ, मैं ‘पशुओं’ में सिंह (मृगेन्द्र) और पक्षियों में गरुड़ हूँ।।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।10.30।। दैत्योंमें प्रह्लाद और गणना करनेवालोंमें काल मैं हूँ । पशुओंमें सिंह और पक्षियोंमें गरुड मैं हूँ।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।10.30।।व्याख्या–‘प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानाम्’– जो दितिसे उत्पन्न हुए हैं, उनको दैत्य कहते हैं। उन दैत्योंमें प्रह्लादजी मुख्य हैं और श्रेष्ठ हैं। ये भगवान्के परम विश्वासी और निष्काम प्रेमी भक्त हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है। प्रह्लादजी तो बहुत पहले हो चुके थे, पर भगवान्ने ‘दैत्योंमें प्रह्लाद मैं हूँ’ ऐसा वर्तमानका प्रयोग किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि भगवान्के भक्त नित्य रहते हैं और श्रद्धा-भक्तिके अनुसार दर्शन भी दे सकते हैं। उनके भगवान्में लीन हो जानेके बाद अगर कोई उनको याद करता है और उनके दर्शन चाहता है, तो उनका रूप धारण करके भगवान् दर्शन देते हैं।
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
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(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
10.30 Among demons I am Prahlada, and I am Time among reckoners of time. And among animals I am the loin, and among birds I am Garuda.
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
10.30 And I am the devotee Prahlad among the heathen; of Time I am the Eternal Present; I am the Lion among beasts and the Eagle among birds.
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
10.30 Of Daityas, I am Prahlada. Of reckoners, I am Death. Of beasts, I am the lion, and of birds I am Garuda the son of Vinata.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
10.30 And, I am Prahlada among the demons, among the reckoners I am time; among beasts I am the lion, and Vainateya (Garuda) among birds.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
10.30 प्रह्लादः Prahlada; च and; अस्मि (I) am; दैत्यानाम् among demons; कालः time; कलयताम् among reckoners; अहम् I; मृगाणाम् among beasts; च and; मृगेन्द्रः lion; अहम् I; वैनतेयः son of Vinata (Garuda); च and; पक्षिणाम् among birds.Commentary Prahlada; though he was the son of a demon (Hiranyakasipu); was a great devotee of the Lord.