(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आयुधानाम् अहं वज्रं
धेनूनाम् अस्मि कामधुक्।
प्रजनश्+++(=प्रजनयिता)+++ चास्मि कन्दर्पः
सर्पाणाम् अस्मि वासुकिः॥10.28॥+++(4)+++
(सं) मूलम् ...{Loading}...
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः।।10.28।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
।।10.28।।आयुधानां मध्ये वज्रं तद् अहम्। धेनूनां हविर्दुघानां मध्ये कामधुक्; दिव्या सुरभिः। प्रजनः जननहेतुः कन्दर्पः च अहम् अस्मि; सर्पाः एकशिरसः तेषां मध्ये वासुकिः अस्मि।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
।।10.28।। आयुधानाम् इत्यर्वाचीनायुधपरं; सुदर्शनाद्यपेक्षया दधीचेरस्थिसम्भवस्य वज्रस्यापि निकृष्टत्वात्। धेनूनां दोग्ध्रीणाम्। दिव्या सुरभिरिति यौगिकः कामधुक्शब्दोऽत्र व्यक्तिविशेषनिष्ठ इति भावः। प्रजनशब्देन जननहेतुत्वं कन्दर्पस्यासाधारणोऽतिशय उक्तः। स मदायत्त इत्यर्थः। अप्रजार्थकन्दर्पव्यवच्छेदार्थो वा प्रजनशब्दः। पर्याययोः सर्पनागशब्दयोः कथं पृथग्व्यपदेश इत्यत्राह – सर्पा एकशिरसः नागा बहुशिरस इति। यादश्शब्देन वरुणस्यापि सङग्रहार्थमाह – यादांसि जलवासिन इति। यद्वा जलजन्तुमात्रं विवक्षितम् तेषां पतित्वेन सम्बन्धो वरुणस्य तत्साजात्याभावाद्ग्राह्यः। अर्यमा पितृराजः। संयमतां संयच्छतामित्यर्थः। तदाहदण्डयतामिति।
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
10.26 - 10.29 Of trees I am Asvattha which is worthy of worship. Of celestial seers I am Narada. Kamadhuk is the divine cow. I am Kandarpa, the cause of progeny. Sarpas are single-headed snakes while Nagas are many-headed snakes. Aatic creatures are known as Yadamsi. Of them I am Varuna. Of subdures, I am Yama, the son of the sun-god.
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।10.19 – 10.42।। हन्त ते कथयिष्यामीत्यादि जगत्स्थित इत्यन्तम्। अहमात्मा (श्लो. 20) इत्यनेन व्यवच्छेदं वारयति। अन्यथा स्थावराणां हिमालय इत्यादिवाक्येषु हिमालय एव भगवान् नान्य इति व्यवच्छेदेन; निर्विभागत्वाभावात् ब्रह्मदर्शनं खण्डितम् अभविष्यत्। यतो यस्याखण्डाकारा व्याप्तिस्तथा चेतसि न उपारोहति; तां च [यो] जिज्ञासति तस्यायमुपदेशग्रन्थः। तथाहि उपसंहारे ( उपसंहारेण) भेदाभेदवादं,यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वम् (श्लो – 41) इत्यनेनाभिधाय; पश्चादभेदमेवोपसंहरति अथवा बहुनैतेन – विष्टभ्याहमिदं – एकांशेन जगत् स्थितः (श्लो – 42) इति। उक्तं हि – पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। इति – RV; X; 90; 3प्रजानां सृष्टिहेतुः सर्वमिदं भगवत्तत्त्वमेव तैस्तेर्विचित्रै रूपैर्भाव्यमानं +++(S तत्त्वमेतैस्तैर्विचित्रैः रूपैः ; N – विचित्ररूपै – )+++ सकलस्य +++(S;N सकलमस्य)+++ विषयतां यातीति।
(सं) अभिनव-गुप्तः (Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
10.28 See Comment under 10.42
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।10.28।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.,
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।10.28।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
।।10.28।। –,आयुधानाम् अहं वज्रं दधीच्यस्थिसंभवम्। धेनूनां दोग्ध्रीणाम् अस्मि कामधुक् वसिष्ठस्य सर्वकामानां दोग्ध्री; सामान्या वा कामधुक्। प्रजनः प्रजनयिता अस्मि कंदर्पः कामः सर्पाणां सर्पभेदानाम् अस्मि वासुकिः सर्पराजः।।
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।10.28।। शस्त्रोंमें मैं दधीचि ऋषिकी अस्थियोंसे बना हुआ वज्र हूँ। दूध देनेवाली गौओंमें कामधेनु – वसिष्ठको सब कामनारूप दूध देनेवाली अथवा सामान्य भावसे जो भी कामधेनु है वह मैं हूँ। प्रजाको उत्पन्न करनेवाला कामदेव मैं हूँ और सर्पोंमें अर्थात् सर्पोके नाना भेदोंमें सर्पराज वासुकि मैं हूँ।
(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
10.28 Ayudhanam, among weapons; I am the vajram, thunderbolt, made of the bones of (the sage) Dadhici. Dhenunam, among milch cows; I am kama-dhuk, Kamadhenu, which was the yielder of all desires of (the sage) Vasistha; or it means a cow in general which gives milk at all times. I am Kandarpa, prajanah, the Progenitor, (the god) Kama (Cupid). Sarpanam, among serpents, among the various serpents, I am Vasuki, the kind of serpents.
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।10.28।। प्रजनयतीति व्युत्पत्तिमाश्रित्याह – प्रजनयितेति। सर्पा नागाश्च जातिभेदाद्भिद्यन्ते।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।10.28।। आयुधानामस्त्राणां मध्ये वज्रं दधीचेरस्थिसंभवमस्त्रमहमस्मि। धेनूनां दोग्ध्रीणां मध्ये कामं दोग्धीति कामधुक् समुद्रमथनोद्भवा वसिष्ठस्य कामधेनुरहमस्मि। कामानां मध्ये प्रजनः प्रजनयिता पुत्रोत्पत्त्यर्थो यः कन्दर्पः कामः सोऽहमस्मि। चकारस्त्वर्थो रतिमात्रहेतुकामव्यावृत्त्यर्थः। सर्पाश्च नागाश्च जातिभेदाद्भिद्यन्ते तत्र सर्पाणां मध्ये तेषां राजा वासुकिरहमस्मि।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।10.28।। प्रजनोऽपत्यजनयिता कंदर्पः कामो न तु वृथामैथुनरूपः।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।10.28।। वज्रं दधीच्यस्थिसंभवम्। प्रजनश्च पुत्रप्रजननहेतुः कामः।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।10.28।। आयुधानामिति। धेनूनां मध्ये कामधुगहम्। भगवत्सेवोपयोगितया सा पूज्या वन्द्या च। प्रजनानां मध्ये भगवदीयप्रजोत्पत्तिहेतुर्नियमागतः कामोऽहं; बलवत्वाद्वा मुख्यः।
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।10.28।। आयुधानां शस्त्राणां मध्ये वज्रं अस्मि। धेनूनां दोग्ध्रीणां कामधुक् कामधेनुरस्मि। प्रजनः प्रजोत्पादकः कन्दर्पश्च कामोऽस्मि। चकारेण केवलसम्भोगहेतुर्निवारितः। सर्पाणां विषधराणां गतिमतां वा वासुकिरस्मि।
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।10.28।। आयुधानामिति। आयुधानां मध्ये वज्रम्। कामान्दोग्धीति कामधुक्। प्रजनः प्रजोत्पत्तिहेतुः कंदर्पः कामोऽस्मि। न केवलं संभोगप्रधानः कामो मद्विभूतिः अशास्त्रीयत्वात्। सर्पाणां सविषाणां राजा वासुकिरस्मि।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।10.28।। मैं शस्त्रों में वज्र हूँ दिव्यास्त्रों में प्रमुख वज्रास्त्र अमोघ है। वृत्रासुर प्राय स्वर्ग पर आक्रमण करके वहाँ की शान्ति भंग करता था। अपनी प्रचण्ड शक्ति के कारण वह अवध्य बन गया था। उस समय दधीचि नामक एक महान् तपस्वी ऋषि ने उसके नाश हेतु एक दिव्य शस्त्र बनाने के लिए अपनी अस्थियों का दान किया था; जिससे इस अस्त्र का निर्माण करके वृत्रासुर की बध किया गया। मैं धेनुओं में कामधेनु हूँ कामधेनु की प्राप्ति भी अमृतमन्थन से हुई थी। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह एक ऐसी अनूठी गाय है; जिसके द्वारा हम अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं। प्रजोत्पत्ति के कारणों में मैं कामदेव हूँ भारतीय धारणा के अनुसार काम का देवता कन्दर्प (कामदेव; मदन) है; जो एक कुटिल हृष्टपुष्ट युवक के रूप में चित्रित किया गया है। यह कामदेव अपनी मन्दस्मिति के धनुष के द्वारा पाँच सुपुष्पित बाणों से मनुष्य की एकएक इन्द्रिय को आहत करता है यह जीव विज्ञान से सम्बन्धित एक सत्य है। प्रजोत्पत्ति माने केवल गर्भाधान की क्रिया या वनस्पति जगत् में होने वाली सेचन क्रिया ही नहीं समझी जानी चाहिए। भारतीय कामशास्त्र के अनुसार इसका अर्थ उन समस्त कामुक प्रवृत्तियों की शान्ति से है; जो सभी इन्द्रियों के माध्यम से व्यक्त होती हैं। एक दार्शनिक सच्चा वैज्ञानिक होता है और इस कारण उसमें वह मिथ्या लज्जा या संकोच नहीं होता; जो प्राय स्वभाव से अनैतिक किन्तु दिखावे के लिए कट्टर नैतिकतावादी व तिलकधारी पाखण्डी लोगों का होता है। वेदान्त के आचार्य कामवासना के संबंध में विश्लेषण करते समय इस प्रकार निर्मम होते हैं; जैसे चिकित्साशास्त्र के महाविद्यालय में कोई प्राध्यापक। भगवान् घोषणा करते हैं कि प्रजोत्पत्ति के सब कारणों में कन्दर्प मैं हूँ। वैषयिक भोग के क्षेत्र में कामदेव मनुष्य के शारीरिक; मानसिक और बौद्धिक व्यक्तित्व के पूर्ण सन्तोष का प्रतीक है। मैं सर्पों में वासुकि हूँ पुराणों में किये गये वर्णन के अनुसार वासुकि भगवान् शिव की अंगुली पर लिपटा रहता है। यद्यपि यह सर्प शिवजी की अंगूठी का आकार लेने योग्य छोटा है; परन्तु क्षीरसागर के मन्थन के लिए वह रज्जु (रस्सी) का कार्य करने को प्रयुक्त होता है। स्वाभाविक ही; वासुकि शब्द से उपनिषद् के उस कथन का स्मरण हो आता है जिसमें कहा गया है कि आत्मतत्त्व अणु से भी सूक्ष्म है और बृहत्तम वस्तु से भी अधिक बृहत् है। अत सर्पों में वासुकि को भगवान् की विभूति बताना उपयुक्त ही है। सर्प और नाग में भेद है। सर्प एक फण वाला होता है; जबकि नाग के अनेक फण होते हैं। गीता के दिव्य गायक अपने सुन्दर राग में अपनी गानपूर्ण विभूतियों को और भी बताते हैं
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।10.28।। मैं शस्त्रों में वज्र और धेनुओं (गायों) में कामधेनु हूँ, प्रजा उत्पत्ति का हेतु कन्दर्प (कामदेव) मैं हूँ और सर्पों में वासुकि हूँ।।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।10.28।। आयुधोंमें वज्र और धेनुओंमें कामधेनु मैं हूँ। सन्तान-उत्पत्तिका हेतु कामदेव मैं हूँ और सर्पोंमें वासुकि मैं हूँ।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।10.28।।**व्याख्या–‘आयुधानामहं वज्रम्’–**जिनसे युद्ध किया जाता है, उनको आयुध (अस्त्र-शस्त्र) कहते हैं। उन आयुधोंमें इन्द्रका वज्र मुख्य है। यह दधीचि ऋषिकी हड्डियोंसे बना हुआ है और इसमें दधीचि ऋषिकी तपस्याका तेज है। इसलिये भगवान्ने वज्रको अपनी विभूति कहा है।
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
10.28. Of the weapons, I am the Vajra [of Indra]; of the cows, I am the Wish-fullfilling Cow [of the heaven]; of the progenitors, I am Kandarpa (the god-of-love); of the serpents, I am Vasuki.
(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
10.28 Among weapons I am the thunderbolt; among cows I am kamadhenu. I am Kandarpa, the Progenitor, and among serpents I am Vasuki.
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
10.28 I am the Thunderbolt among weapons; of cows I am the Cow of Plenty, I am Passion in those who procreate, and I am the Cobra among serpents.
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
10.28 Of weapons, I am Vajra (thnderbolt). Of cows, I am Kamadhuk. I am Kandarpa, the cause of progeny. Of serpents, I am Vasuki.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
10.28 Among weapons I am the thunderbolt; among cows I am the wish-fulfilling cow called Kamadhenu; I am the progenitor, the god of love; among serpents I am Vasuki.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
10.28 आयुधानम् among weapons; अहम् I; वज्रम् the thunderbolt; धेनूनाम् among cows; अस्मि (I) am; कामधुक् kamadhenu; the heavenly cow which yiedls all desires; प्रजनः the progenitro; च and; अस्मि (I) am; कन्दर्पः Kandarpa (Kamadeva); सर्पाणाम् among serpents; अस्मि (I) am; वासुकिः Vasuki.Commentary Vajram the thunderbolt weapon made of the bones of Dadhichi an implement of warfare which can only be handled by Indra who has fininshed a hundred sacrifices.Kamadhuk The cow Kamadhenu of the great sage Vasishtha which yielded all the desired objects; also born of the ocean of milk.Kandarpa Cupid.Vasuki The Lord of hoodless or ordinary serpents.Sarpa (serpent) has only one head. Vasuki is yellowcoloured. Nagas have many heads. Ananta is firecoloured.Sridhara says that the Sarpa is poisonous and the Naga is nonpoisonous. Sri Ramanuja says that Sarpa has only one head and Naga has many heads.