(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अथवा योगिनाम् एव
कुले भवति धीमताम्।
एतद्+हि दुर्लभ-तरं
लोके जन्म यद् ईदृशम्॥6.42॥
(सं) मूलम् ...{Loading}...
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्।।6.42।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
।।6.42।। परिपक्वयोगः चलितः चेद् योगिनां धीमतां योगं कुर्वतां स्वयम् एव योगोपदेष्ट्ऋणां कुले भवति। तद् एतद् उभयविधं योगयोग्यानां योगिनां च कुले जन्म लोके प्राकृतानां दुर्लभतरम् एतत् तु योगमाहात्म्यकृतम्।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
6.42 इति इतोऽप्यतिशयितजन्मनो वक्ष्यमाणत्वात्शुचीनाम् इत्यादिविशेषणविशेषसामर्थ्याच्चयोगोपक्रमे भ्रष्ट इत्युक्तम्।
।।6.42।। अथवा इति व्यवस्थितविकल्पार्थम्। अतिशयितजन्मनिर्देशोऽतिशयितहेतुसाकाङ्क्ष इति दर्शयितुंपरिपक्वयोगश्चलितश्चेदित्युक्तम्। योगिनां कुले इति कस्यचिद्योगिनः सन्ताने प्रसूतिर्नोच्यते तावन्मात्रस्यात्यन्तयोगोपकारकत्वाभावात् किन्तूपदेशार्हत्वाय योगिनां सतामेव पुत्रादित्वेन जायत इति दर्शयितुंयोगं कुर्वतामिति वर्तमाननिर्देशः। शुचीनां श्रीमताम् इत्यन्यस्मादुपदेष्टुर्योगाधिगमं प्रत्यानुगुण्यमात्रमुक्तम् इह तुधीमताम् इति वचनात्तेषामेवोपदेष्ट्टत्वयोग्यतोच्यत इत्याह स्वयमेवेति। पशुर्मनुष्यः पक्षी वा ये च वैष्णवसंश्रयाः। तेनैव ते प्रयास्यन्ति तद्विष्णोः परमं पदम्।। तव दास्यसुखैकसङ्गिनां भवनेष्वस्त्वपि कीटजन्म मे। इतरावसथेषु मा स्मभूदपि मे जन्म चतुर्मुखात्मना स्तो.र.55 इत्यादिप्रतिपादितवैभवयुक्ते महत्त्वम्। पूर्वश्लोकस्थगेहशब्दतुल्यार्थत्वादत्रापि कुलशब्दो गृहवाची। एतदुभयविधमिति साधारणस्येदृशमित्यनुवादस्य उभयान्वयित्वमेव ह्युचितमिति भावः। प्रकृतिमात्रदर्शिजनविषयेण लोकशब्देन मुमुक्षुव्यतिरिक्तविवक्षामाह प्राकृतानामिति। दुर्लभतरं कथं लभ्येतेत्यत्र ईदृशशब्दाभिप्रेतमाह एतत्त्विति।
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
6.42 If one swerves from the right path at an advanced stage of Yoga, he will be born in a family of wise Yogins who practise Yoga and are themselves capable of teaching Yoga. Thus, these two types of birth - one in the family of those who are fit to practise Yoga and the other in that of accomplished Yogins - are hardly met with among common people in this world. But Yoga is of such great potentiality that even this rare blessing is achieved through it.
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।6.42।। अथ वे ति। यदि तु तारतम्येन अस्य अपवर्गेण भवितव्यं तदा योगिकुले एव जायते। अत एवाह एतद्धि दुर्लभतरम् इति। श्रीमतां गेहे किलावश्यमेव विघ्नाः सन्ति।
(सं) अभिनव-गुप्तः (Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
6.42 Atha va etc. If emancipation is destined to come to him by way of difference (or in grades), then he is rorn nowhere but in a family of the men of Yoga. That is why (the Lord) says : ‘For, this birth is more difficult ot get’. Indeed in the house of the rich there are necessarily many obstacles.
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।6.42।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।6.42।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
।।6.42।। अथवा श्रीमतां कुलात् अन्यस्मिन् योगिनामेव दरिद्राणां कुले भवति जायते धीमतां बुद्धिमताम्। एतत् हि जन्म यत् दरिद्राणां योगिनां कुले दुर्लभतरं दुःखलभ्यतरं पूर्वमपेक्ष्य लोके जन्म यत् ईदृशं यथोक्तविशेषणे कुले।। यस्मात्
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।6.42।। अथवा श्रीमानोंके कुलसे अन्य जो बुद्धिमान् दरिद्र योगियोंका कुल है उसीमें जन्म ले लेता है। परंतु ऐसा जन्म अर्थात् जो उपर्युक्त दरिद्र आदि विशेषणोंसे युक्त योगियोंके कुलमें उत्पन्न होना है वह इस लोकमें पहले बतलाये हुए श्रीमानोंके कुलमें उत्पन्न होनेकी अपेक्षा अत्यन्त दुर्लभ है।
(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
6.42 Athava, or; bhavati, he is born; kule, in the family; dhimatam, of wise; yoginam, yogis; eva, only, who are poor-which is different from the family of the prosperous. Etat janma, such a birth; yat idrsam, as is of this kind-a birth that is in the family of poor yogis, in a family as described; is hi, surely; durlabha-taram, more difficult to get, as compared with the earlier one; loke, in the world. Becuase,
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।6.42।। श्रद्धावैराग्यादिकल्याणाधिक्ये पक्षान्तरमाह अथवेति। योगिनामिति कर्मिणां ग्रहणं माभूदिति विशिनष्टि धीमतामिति। ब्रह्मविद्यावतां शुचीनां दरिद्राणां कुले जन्म दुर्लभादपि दुर्लभं प्रमादकारणाभावादित्याह एतद्धीति। किमपेक्ष्यास्य जन्मनो दुःखलभ्यादपि दुःखलभ्यतरत्वं तदाह पूर्वमिति। यद्यपि विभूतिमतामपि शुचीनां गृहे जन्म दुःखलभ्यं तथापि तदपेक्षयेदं जन्म दुःखलभ्यतरं यदीदृशं शुचीनां दरिद्राणां विद्यावतामिति विशेषणोपेते कुले लोके जन्म वक्ष्यमाणमित्यर्थः।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।6.42।। द्वितीयं प्रति पक्षान्तरमाह श्रद्धावैराग्यादिकल्याणगुणाधिक्ये तु भोगवासनाविरहात्पुण्यकृतां लोकानप्राप्यैव योगिनामेव दरिद्राणां ब्राह्मणानां नतु श्रीमतां राज्ञां कुले भवति धीमतां ब्रह्मविद्यावताम्। एतेन योगिनामिति न कर्मिग्रहणम्। यच्छुचीनां श्रीमतां राज्ञां गृहे योगभ्रष्टजन्म तदपि दुर्लभमनेकसुकृतसाध्यत्वान्मोक्षपर्यवसायित्वाच्च। यत्तु शुचीनां दरिद्राणां ब्राह्मणानां ब्रह्मविद्यावतां कुले जन्म एतद्धि प्रसिद्धं शुकादिवद्दुर्लभतरं दुर्लभं लोके यदीदृशं लोके सर्वप्रमादकारणशून्यं जन्मेति द्वितीयः स्तूयते। भोगवासनाशून्यत्वेन सर्वकर्मसंन्यासार्हत्वात्।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।6.42।। स योगी विरक्तश्चिराभ्यस्तयोगो वा चेत्तस्य गतिमाह अथवेति।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।6.42।। वैराग्याधिक्ये पक्षान्तरमाह अथवेति। योगिनामेवेश्वराराधनलक्षणयोगवताम्। धनादिरक्षणविषयभोगादिव्यग्रत्वे योगित्वं न संभवतीत्यतः पूर्वपक्षे श्रीमतामित्युक्तत्वाच्च भाष्ये दरिद्राणामित्युक्तम्। अतएव तत्त्वविचारयोग्यबुद्धिमतां कुले भवति जायते। यदीदृशं जन्म तदेतल्लोके दुर्लभतरमतिदुर्लभं पुनः प्रतिबन्धकाभावात्। श्रीमतां कुलापेक्षया दरिद्राणां कुले जन्म श्रेष्ठतरमित्यर्थः।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।6.42।। अथवाऽऽरब्धच्युतस्य जन्म पुनः साधनार्थं संस्कारतो योगिनामेव कुले भवति। किम्भूतानां योगबुद्धिमतां यदीदृशं जन्म तदेतल्लोके दुर्लभतरम्। अत्र च पूर्वंशुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते 6।41 इति भरतस्य इव जन्मोक्तम् तस्य पूर्वसंस्कारानुगतयोगं साधयितुमित्युक्तं तत्र प्रयत्नाद्यतमानस्यैव भूयो योगसिद्धेः। अथवा इत्यत्र तु प्रयत्नव्यतिरेकेण रूढयोगानां गृहे जन्मिनोऽस्य जडभरतस्य ब्रह्मसुतस्येव योगसिद्ध्या कृतार्थत्वमित्यवसेयम्।
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।6.42।। पक्षान्तरमाह अथवा धीमतां स्वरूपज्ञानवतां कुले भवति जन्म प्राप्नोति। धीमत्त्वोक्त्या तत्कुलप्रसूतिमात्रेण ज्ञानोत्पत्तिर्व्यञ्जिता। जन्म विशिनष्टि एतदिति। हीति निश्चयेनैतद्दुर्लभतरं यल्लोके ईदृशं भगवत्स्वरूपज्ञानात्मकं जन्म।
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।6.42।। अल्पकालाभ्यस्तयोगभ्रंशे गतिरियमुक्ता चिराभ्यस्तयोगभ्रंशे तु पक्षान्तरमाह अथेति। योगनिष्ठानां धीमतां ज्ञानिनामेव कुले जायते नतु पूर्वोक्तानामनारूढयोगानां कुले जायते एतज्जन्म स्तौति। ईदृशं यज्जन्म एतद्धि लोके दुर्लभतरम् मोक्षहेतुत्वात्।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।6.42।। इस श्लोक में ऐसे निष्काम साधक की गति दर्शायी गयी है जिसे स्वर्गादि लोकों की कोई आवश्यकता नहीं रहती। निष्कामभाव से की गई उपासना के फलस्वरूप योगी को शुद्धान्तकरण तथा एकाग्रता प्राप्त होती है जिसके द्वारा वह ध्यान की उच्च साधना करने योग्य बन जाता है। इस प्रकार के श्रेष्ठ साधक को ऐसा अवसर प्रदान करना चाहिए कि वह देहत्याग के पश्चात् सीधे ही पुन इस लोक में जन्म लेकर अपने मार्ग पर अग्रसर हो सके। उसे स्वर्ग जाने की आवश्यकता नहीं क्योंकि वह वैराग्यवान् है जबकि स्वर्ग भोग भूमि है। भगवान् कहते हैं कि ऐसा निष्काम साधक मृत्यु के पश्चात् तत्काल ही ज्ञानवान् योगियों के कुल में जन्म लेता है जहां वह अप्ानी साधना को निर्विघ्न पूर्ण कर सकता है। आजकल मनुष्य के दुराचरण के लिए बाह्य वातावरण एवं परिस्थितियों को ही दोषी बताकर सबको अपने आसपास के वातावरण के विरुद्ध उत्तेजित किया जाता है परन्तु उपर्युक्त श्लोकों में कथित सिद्धांत इस प्रचलित मान्यता का खण्डन करता है। निसन्देह ही मनुष्य एक सीमा तक बाह्य परिस्थितियों से प्रभावित होता है परन्तु दर्शनशास्त्र की दृष्टि से देखने पर ज्ञात होगा कि सभी मनुष्य वर्तमान में जिन वातावरण एवं परिस्थितियों में रह रहे हैं उनका कारण भूतकाल में किये गये उन्हीं के अपने कर्म ही हैं। बाह्य परिस्थितियों के परिवर्तन मात्र से व्यक्ति में वास्तविक सुधार नहीं हो सकता। यदि मदिरापान के अभ्यस्त व्यक्ति को किसी ऐसे नगर में ले जाये जहाँ सुरापान वर्जित है तो वह व्यक्ति वहां भी छिपकर मदिरापान करता ही रहेगा। श्रीशंकराचार्य ईसामसीह गौतम बुद्ध तथा अनेक अन्य महापुरुषों के उदाहरण विचाराधीन श्लोक में कथित सिद्धांत की पुष्टि करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे मेधावी पुरुष विरले ही होते हैं जिनमें कुमार अवस्था में ही अलौकिक बुद्धिमत्ता एवं ईश्वरीय ज्ञान के दर्शन होते हैं। भगवान् स्वयं कहते हैं कि इस प्रकार का जन्म लोक में अति दुर्लभ है। पूर्व श्लोक में कहा गया है कि रागयुक्त योगी स्वर्ग प्राप्ति के पश्चात् जन्म लेता है जबकि यहाँ वैराग्यवान् योगभ्रष्ट के विषय में कहते हैं कि वह सीधे ही ज्ञानी योगी के घर में जन्म लेकर पूर्णत्व प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है। योगाभ्यास के लिए अनुकूल वातावरण में जन्मे हुए योगभ्रष्ट पुरुष की स्थिति क्या होती है भगवान् कहते हैं
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।6.42।। अथवा, (साधक) ज्ञानवान् योगियों के ही कुल में जन्म लेता है, परन्तु इस प्रकार का जन्म इस लोक में नि:संदेह अति दुर्लभ है।।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।6.42।। अथवा (वैराग्यवान्) योगभ्रष्ट ज्ञानवान् योगियोंके कुलमें ही जन्म लेता है। इस प्रकारका जो यह जन्म है, यह संसारमें बहुत ही दुर्लभ है।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।6.42।।व्याख्या–[साधन करनेवाले दो तरहके होते हैं वासनासहित और वासनारहित। जिसको साधन अच्छा लगता है, जिसकी साधनमें रुचि हो जाती है और जो परमात्माकी प्राप्तिका उद्देश्य बनाकर साधनमें लग भी जाता है, पर अभी उसकी भोगोंमें वासना सर्वथा नहीं मिटी है, वह अन्तसमयमें साधनसे विचलित होनेपर योगभ्रष्ट हो जाता है, तो वह स्वर्गादि लोकोंमें बहुत वर्षोंतक रहकर शुद्ध श्रीमानोंके घरमें जन्म लेता है। (इस योगभ्रष्टकी बात पूर्वश्लोकमें बता दी)। दूसरा साधक ,जिसके भीतर वासना नहीं है, तीव्र वैराग्य है और जो परमात्माका उद्देश्य रखकर तेजीसे साधनमें लगा है, पर अभी पूर्णता प्राप्त नहीं हुई है, वह किसी विशेष कारणसे योगभ्रष्ट हो जाता है तो उसको स्वर्ग आदिमें नहीं जाना पड़ता, प्रत्युत वह सीधे ही योगियोंके कुलमें जन्म लेता है (इस योगभ्रष्टकी बात इस श्लोकमें बता रहे हैं)। ]
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
6.42. Or, he is born (rorn) nowhere other than in the family of the intelligent men of Yoga; for, this birth is more difficult to get in the world.
(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
6.42 Or he is born in the family of wise yogis [Persons possessing knowledge of Brahman. (S. concedes that some rare householders also can have this knowledge, and he cites the instances of Vasistha, Agastya, Janaka and Asvapati of olden days, and Vacaspati and the author of Khanada of recent times.)] only. Such a birth as is of this kind is surely more difficult to get in the world.
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
6.42 Or, he may be born in the family of the wise sages, though a birth like this is, indeed, very difficult to obtain.
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
6.42 Or he is born in a family of wise Yogins. But such a birth in this world is rarer to get.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
6.42 Or he is born in a family of even the wise Yogis; verily a birth like this is very difficult to obtain in this world.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
6.42 अथवा or; योगिनाम् of Yogis; एव even; कुले in the family; भवति is born; धीमताम् of the wise; एतत् this;,हि verily; दुर्लभतरम् very difficult; लोके in the world; जन्म birth; यत् which; ईदृशम् like this.Commentary A birth in a family of wise Yogis is more difficult to obtain than the one mentioned in the preceding verse.