(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
निमित्तानि च पश्यामि
विपरीतानि केशव।
न च श्रेयो ऽनुपश्यामि
हत्वा स्वजनम् आहवे॥1.31॥
(सं) मूलम् ...{Loading}...
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे।।1.31।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
।।1.31।। अन्तिमश्लोकव्याख्या दृश्या।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
।।1.31।। No commentary.
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
1.26 - 1.47 Arjuna said - Sanjaya said Sanjaya continued: The high-minded Arjuna, extremely kind, deeply friendly, and supremely righteous, having brothers like himself, though repeatedly deceived by the treacherous attempts of your people like burning in the lac-house etc., and therefore fit to be killed by him with the help of the Supreme Person, nevertheless said, ‘I will not fight.’ He felt weak, overcome as he was by his love and extreme compassion for his relatives. He was also filled with fear, not knowing what was righteous and what unrighteous. His mind was tortured by grief, because of the thought of future separation from his relations. So he threw away his bow and arrow and sat on the chariot as if to fast to death.
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।1.30 1.34।। न च श्रेयोऽनुपश्यामीत्यादि। अमी आचार्यदयः इति विशेषबुद्ध्या +++(N शेषबुद्ध्या)+++ बुद्धौ आरोप्यमाणाः वधकर्मतया अवश्यं पापदायिनः। तथा भोगसुखादिदृष्टार्थमेतद्युद्धं क्रियते इति बुद्ध्या क्रियमाणं युद्धे +++(S युद्धेषु वध्य K युद्धेष्ववध्य )+++ वध्यहननादि तदवश्यं पातककारि इति पूर्वपक्षाभिप्रायः। अत एव स्वधर्ममात्रतयैव कर्माणि अनुतिष्ठ न विशेषधियेति उत्तरं दास्यते।
(सं) अभिनव-गुप्तः (Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
1.30 1.34 Na ca sreyah, etc., upto mahikrte. Those who are wrongly conceived as object of slaying, with the individualizing idea that ’these are my teachers etc.‘8 would necessarily generate sin. Similarly, the act of slaying even of those deserving to be slain in the battle-if undertaken with the idea that ‘This battle is to be fought for the apparent results like pleasures, happiness etc.’- then it generates sin necessarily. This idea lurks in the objection [of Arjuna]. That is why a reply is going to be given [by Bhagavat] as ‘You must undertake actions simply as your own duty, and not with an individualizing idea’.
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।1.31।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।1.31।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
1.31 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।1.31।। Sri Sankaracharya did not comment on this sloka.
(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
1.31 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।1.31।। युद्धे स्वजनहिंसया फलानुपलम्भादपि तस्मादुपरिरंसा जायत इत्याह न चेति।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।1.31।। केशवपदेन च केश्यादिदुष्टदैत्यनिबर्हणेन सर्वदा भक्तान्पालयसीत्यतो मामपि शोकनिवारणेन पालयिष्यसीति सूचितम्। एंव लिङ्गद्वारेण समीचीनप्रवृत्तिहेतुभूतत्त्वज्ञानप्रतिबन्धकीभूतं शोकमुक्त्वा संप्रति तत्कारितां विपरीतप्रवृत्तिहेतुभूतां विपरीतबुद्धिं दर्शयति श्रेयः पुरूषार्थं दृष्टमदृष्टं वा बहुविचारणादनु पश्चादपि न पश्यामि। अस्वजनमपि युद्धे हत्वा श्रेयो न पश्यामि। द्वाविमौ पुरूषौ लोके सूर्यमण्डलमेदिनौ। परिव्राड्योगयुक्तश्च रणे चाभिमुखो हतः।। इत्यादिना हतस्यैव श्रेयोविशेषाभिधानाद्धन्तुस्तु न किंचित्सुकृतम्। एवमस्वजनवधेऽपि श्रेयसोऽभावे स्वजनवधे सुतरां तदभाव इति ज्ञापयितुं स्वजनमित्युक्तम्। एवमनाहववधे श्रेयो नास्तीति सिद्धसाधनवारणायाहव इत्युक्तम्।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।1.31।। निमित्तानि लोकक्षयकराणि भूमिकम्पादीनि।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।1.31।। विपरीतनिमित्तप्रवृत्तेरपि मोहो भवतीत्याह निमित्तानीति। निमित्तानि च विपरीतानि वामनेत्रस्फुरणादीनि पश्यामि। तथाचास्मन्निमित्तः स्वजननाशो भविष्यति नतु केश्यादिमारणेन भवता यथा स्वजनः पालितः तथा स्वजनरक्षणमिति सूचयन्संबोधयति हे केशवेति। अहमनात्मवित्त्वेन दुःखित्वाच्छोकनिबन्धनं क्लेशमनुभवामि त्वं तु सदानन्दरुपत्वाच्छोकासंसर्गीति कृष्णपदेन सूचितम्। अतः स्वजनदर्शने तुल्येऽपि शोकासंसर्गित्वलक्षणाद्विशेषात्त्वं मामशोकं कुर्विति भावः। केवपदेन च तत्करणसामर्थ्यं केशौ ब्रह्मरुद्रौ वात्यनुकम्प्यतया गच्छतीति तद्य्वत्पत्तेः। भक्तदुःखकर्षित्वं वा कृष्णपदेनोक्तम्। केशवपदेन च केश्यादिदुष्टनिबर्हणेन सर्वदा भक्तान्पालयसीत्यतो मामपि शोकनिवारणेन पालयिष्यसीति सूचितमिति केचित्। इदानीं शोकमोहाविष्टचित्तः स्वधर्मेऽधर्मतां निष्प्रयोजनतां चोरोपयन्नाह नचेति। आहवे युद्धभूमौ स्वजनं स्वबन्धुवर्गं हत्वा अनु पश्चाच्छ्रेयो न पश्यामि। अतो निष्फलाया बन्धुहिंसाया अधर्मनिमित्ताया निवृत्तिरेव युक्तेति भावः।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।1.31 1.33।। Sri Vallabhacharya did not comment on this sloka.
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।1.31।। तदेवाह न चेति। स्वजनमाहवे सङ्ग्रामे हत्वा अनु पश्चात् श्रेयो न पश्यामि। श्रेयो भगवत्कृपात्मिकां भक्तिमित्यर्थः। अत एवं भगवतोक्तम्. तस्मान्मद्भक्तियुक्तस्य योगिनो वै मदात्मनः। न ज्ञानं. न च वैराग्यं प्रायः श्रेयो भवेदिह भाग.11।20।31 इति।
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।1.31।। किंच न चेति। स्वजनं आहवे युद्धे हत्वा श्रेयः फलं न पश्यामि।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।1.31।। No commentary.
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।1.31।। हे केशव ! मैं शकुनों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ और युद्ध में (आहवे) अपने स्वजनों को मारकर कोई कल्याण भी नहीं देखता हूँ।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।1.31।। हे केशव! मैं लक्षणों - (शकुनों) को भी विपरीत देख रहा हूँ और युद्ध में स्वजनोंको मारकर श्रेय (लाभ) भी नहीं देख रहा हूँ।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।1.31।।**व्याख्या–‘निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव’–**हे केशव!
मैं शकुनोंको (टिप्पणी प₀ 22.2) भी विपरीत ही देख रहा हूँ। तात्पर्य
है कि किसी भी कार्यके आरम्भमें मनमें जितना अधिक उत्साह (हर्ष) होता है,
वह उत्साह उस कार्यको उतना ही सिद्ध करनेवाला होता है। परन्तु अगर कार्यके
आरम्भमें ही उत्साह भङ्ग हो जाता है, मनमें संकल्प-विकल्प ठीक नहीं होते,
तो उस कार्यका परिणाम अच्छा नहीं होता। इसी भावसे अर्जुन कह रहे हैं कि अभी
मेरे शरीरमें अवयवोंका शिथिल होना, कम्प होना, मुखका सूखना आदि जो लक्षण हो
रहे हैं, ये व्यक्तिगत शकुन भी ठीक नहीं हो रहे हैं (टिप्पणी प₀
22.3) इसके सिवाय आकाशसे उल्कापात होना, असमयमें ग्रहण लगना, भूकम्प
होना, पशु-पक्षियोंका भयंकर बोली बोलना, चन्द्रमाके काले चिह्नका मिट-सा
जाना, बादलोंसे रक्तकी वर्षा होना आदि जो पहले शकुन हुए हैं, वे भी ठीक
नहीं हुए हैं। इस तरह अभीके और पहलेके–इन दोनों शकुनोंकी ओर देखता हूँ, तो
मेरेको ये दोनों ही शकुन विपरीत अर्थात् भावी अनिष्टके सूचक दीखते हैं।
**‘न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे’–**युद्धमें अपने
कुटुम्बियोंको मारनेसे हमें कोई लाभ होगा–ऐसी बात भी नहीं है। इस युद्धके
परिणाममें हमारे लिये लोक और परलोक–दोनों ही हितकारक नहीं दीखते। कारण कि
जो अपने कुलका नाश करता है, वह अत्यन्त पापी होता है। अतः कुलका नाश करनेसे
हमें पाप ही लगेगा ,जिससे नरकोंकी प्राप्ति होगी।
इस श्लोकमें**‘निमित्तानि पश्यामि’**और ‘श्रेयः अनुपश्यामि’–(टिप्पणी प₀ 23) इन दोनों वाक्योंसे अर्जुन यह कहना चाहते हैं कि मैं शुकुनोंको देखूँ अथवा स्वयं विचार करूँ, दोनों ही रीतिसे युद्धका आरम्भ और उसका परिणाम हमारे लिये और संसारमात्रके लिये हितकारक नहीं दीखता।
***सम्बन्ध–***जिसमें न तो शुभ शकुन दीखते हैं और न श्रेय ही दीखता है, ऐसी अनिष्टकारक विजयको प्राप्त करनेकी अनिच्छा अर्जुन आगेके श्लोकमें प्रकट करते हैं।
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
1.31. O Govinda! Of what use in the kingdom to us; Of what use are the pleasures [thereof] and the life even;
(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
1.31 Besides, I do not see any good (to be derived) from killing my own people in battle. O Krsna, I do not hanker after victory, nor even a kingdom nor pleasures.
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
1.31 The omens are adverse; what good can come from the slaughter of my people on this battlefield;
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
1.31 I see, Krsna, inauspicious omens. I foresee no good in killing my kinsmen in the fight.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
1.31. And I see adverse omens, O Kesava. I do not see any good in killing my kinsmen in battle.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
1.31 निमित्तानि omens; च and; पश्यामि I see; विपरीतानि adverse; केशव O Kesava; न not; च and; श्रेयः good; अनुपश्यामि (I) see; हत्वा killing; स्वजनम् our peope; आहवे in battle.
Commentary Kesava means he who has fine or luxuriant hair.