(सं) विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अस्माकं तु विशिष्टा ये
तान् निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य
संज्ञार्थं तान् ब्रवीमि ते॥1.7॥
(सं) मूलम् ...{Loading}...
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।1.7।।
रामानुज-सम्प्रदायः
(सं) रामानुजः मूलम् ...{Loading}...
१९-तमस्य टीका दृश्या।
(सं) रामानुजः वेङ्कटनाथः ...{Loading}...
११-तमस्य व्याख्या दृश्या।
(सं) रामानुजः (Eng) आदिदेवानन्दः ...{Loading}...
1.1 - 1.19 Dhrtarastra said - Sanjaya said Duryodhana, after viewing the forces of Pandavas protected by Bhima, and his own forces protected by Bhisma conveyed his views thus to Drona, his teacher, about the adeacy of Bhima’s forces for conering the Kaurava forces and the inadeacy of his own forces for victory against the Pandava forces. He was grief-stricken within. Observing his (Duryodhana’s) despondecny, Bhisma, in order to cheer him, roared like a lion, and then blowing his conch, made his side sound their conchs and kettle-drums, which made an uproar as a sign of victory. Then, having heard that great tumult, Arjuna and Sri Krsna the Lord of all lords, who was acting as the charioteer of Arjuna, sitting in their great chariot which was powerful enough to coner the three worlds; blew their divine conchs Srimad Pancajanya and Devadatta. Then, both Yudhisthira and Bhima blew their respective conchs separately. That tumult rent asunder the hearts of your sons, led by Duryodhana. The sons of Dhrtarastra then thought, ‘Our cause is almost lost now itself.’ So said Sanjaya to Dhrtarastra who was longing for their victory. Sanjaya said to Dhrtarastra: Then, seeing the Kauravas, who were ready for battle, Arjuna, who had Hanuman, noted for his exploit of burning Lanka, as the emblem on his flag on his chariot, directed his charioteer Sri Krsna, the Supreme Lord-who is overcome by parental love for those who take shelter in Him who is the treasure-house of knowledge, power, lordship, energy, potency and splendour, whose sportive delight brings about the origin, sustentation and dissolution of the entire cosmos at His will, who is the Lord of the senses, who controls in all ways the senses inner and outer of all, superior and inferior - by saying, ‘Station my chariot in an appropriate place in order that I may see exactly my enemies who are eager for battle.’
अभिनवगुप्त-सम्प्रदायः
(सं) अभिनव-गुप्तः मूलम् ...{Loading}...
।।1.2 1.9।। किं वा अनेन बहुपरिगणनेन +++(K omits बहु )+++। इदं तावद्वस्तुतत्त्वम् इत्याह ।
माध्व-सम्प्रदायः
(सं) मध्वः मूलम् ...{Loading}...
।।1.7।। Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.
(सं) मध्वः जयतीर्थः ...{Loading}...
।।1.7।। Sri Jayatirtha did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.
शाङ्कर-सम्प्रदायः
(सं) शङ्करः मूलम् ...{Loading}...
1.7 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.
(सं) शङ्करः (हि) हरिकृष्णदासः ...{Loading}...
।।1.7।। Sri Sankaracharya did not comment on this sloka.
(सं) शङ्करः (Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
1.7 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.
(सं) शङ्करः आनन्दगिरिः ...{Loading}...
।।1.7।। यद्येवं परकीयं बलमतिप्रभूतं प्रतीत्यातिभीतवदभिदधासि हन्त संधिरेव परैरिष्यतामलं विग्रहाग्रहेणेत्याचार्याभिप्रायमाशङ्क्य ब्रवीति अस्माकमिति। तुशब्देनान्तरुत्पन्नमपि स्वकीयं भयं तिरोदधानो धृष्टतामात्मनो द्योतयति। ये खल्वस्मत्पक्षे व्यवस्थिताः सर्वेभ्यः समुत्कर्षजुषस्तान्मयोच्यमानान्निबोध। निश्चयेन
मद्वचनादवधारयेत्यर्थः। यद्यपि त्वमेव त्रैवर्णिकेषु त्रैविद्यवृद्धेषु प्रधानत्वात्प्रतिपत्तुं प्रभवसि तथापि मदीयसैन्यस्य ये मुख्यास्तानहं ते तुभ्यं संज्ञार्थमसंख्येषु तेषु मध्ये कतिचिन्नामभिर्गृहीत्वा परिशिष्टानुपलक्षयितुं विज्ञापनं करोमि न त्वज्ञातं किञ्चित्तव ज्ञापयामीति मत्वाह द्विजोत्तमेति।
(सं) शङ्करः मधुसूदन-सरस्वती ...{Loading}...
।।1.7।। यद्येवं परबलमितप्रभूतं दृष्ट्वा भीतोऽसि हन्त तर्हि संधिरेव परैरिष्यतां किं विग्रहाग्रहेणेत्याचार्याभिप्रायमाशङ्क्याह। तुशब्देनान्तरूत्पन्नमपि भयं तिरोद्धानो धृष्टतामात्मनो द्योतयति। अस्माकं सर्वेषां मध्ये ये विशिष्टाः सर्वेभ्यः समुत्कर्षजुषस्तान्मयोच्यमानान्निबोध निश्चयेन मद्वचनादवधारयेति भौवादिकस्य परस्मैपदिनो बुधे रूपम्। ये च मम सैन्यस्य नायका मुख्या नेतारस्तानसंज्ञार्थं असंख्येषु तेषु मध्ये कतिचिन्नामभिर्गृहीत्वा परिशिष्टानुपलक्षयितुं ते तुभ्यं ब्रवीमि न त्वज्ञातं किंचिदपि तव ज्ञापयामीति। द्विजोत्तमेति विशेषणेनाचार्यं स्तुवन्स्वकार्ये तदाभिमुख्यं संपादयति। दौष्ट्यपक्षे द्विजोत्तमेति ब्राह्मणत्वात्तावद्युद्धाकुशलस्त्वं तेन त्वयि विमुखेऽपि भीष्मप्रभृतीनां क्षत्रियप्रवराणां सत्त्वान्नास्माकं महती क्षतिरित्यर्थः। संज्ञार्थमिति प्रियशिष्याणां पाण्डवानां चमूं दृष्टवा हर्षेण व्याकुलमनसस्तव स्वीयवीरविस्मृतिर्माभूदिति ममेयमुक्तिरिति भावः। तत्र विशिष्टान् गणयति भवान् द्रोणः भीष्मः कर्णः कृपश्च। समितिं संग्रामं जयतीति समितिंजय इति कृपविशेषणं कर्णादनन्तरं गण्यमानत्वेन तस्य कोपमाशङ्क्य तन्निरासार्थम्। एते चत्वारः सर्वतो विशिष्टाः। नायकान् गणयति अश्वत्थामा द्रोणपुत्रः। भीष्मापेक्षयाचार्यस्य प्रथमगणनवद्विकर्णाद्यपेक्षया तत्पुत्रस्य प्रथमगणनमाचार्यपरितोषार्थम्। विकर्णः स्वभ्राता कनीयान्। सौमदत्तिः सोमदत्तस्य पुत्रः श्रेष्टत्वाद्भूरिश्रवाः। जयद्रथः सिन्धुराजः। सिन्धुराजस्तथैव चइति क्वचित्पाठः। किमेतावन्त एव नायका नेत्याह अन्ये च शल्यकृतवर्मप्रभृतयो मदर्थे मत्प्रयोजनाय जीवितमपि त्यक्तुमध्यवसिता इत्यर्थेन त्यक्तजीविता इत्यनेन स्वस्मिन्ननुरागातिशयस्तेषां कथ्यते। एंव स्वसैन्यबाहुल्यं तस्य स्वस्मिन्भक्तिः शौर्यं युद्धोद्योगो युद्धकौशलं च दर्शितं शूरा इत्यादिविशेषणैः।
(सं) शङ्करः नीलकण्ठः ...{Loading}...
।।1.7।। विशिष्टाः श्रेष्ठाः। निबोध बुध्यस्व। भौवादिकस्य परस्मैपदिनो बुधेरिदं रूपम्। संज्ञार्थं अस्मत्पक्षेऽपि शूराः सन्तीति ज्ञापनार्थम्। परेषु प्राबल्यं दृष्ट्वा तवोत्साहभङ्गो माभूदित्यर्थः।
(सं) शङ्करः धनपतिः ...{Loading}...
।।1.7।। ननु ते बहवो महारथा मयैकेनातिरथेनापि कथं निवार्या इत्याशङ्क्यान्येऽपि तव सहकारिणोऽस्मत्सैन्ये महाशूराः सन्तीत्याह अस्माकमिति। यद्येवं परकीयबलमतिप्रभूतं प्रतीत्य भीतोऽसि तर्हि संधिरेव तैरिष्यतामलं विग्रहाग्रहेणेत्याशङ्क्याह अस्माकमित्येके। अस्माकं सर्वेषां मध्ये विशिष्टा उत्कृष्टा मम सैन्यस्य च मुख्यास्तान्निबोध जानीहि। असंख्येषु मध्ये कतिचिन्नामभिरुक्त्वावशिष्टानुपलक्षयितुं ते तुभ्यं ब्रवीमि विज्ञापनं करोमि नतु किंचिदज्ञातं ज्ञापयामि अत्युत्तमत्वात्तवेत्याशयेनाह द्विजोत्तमेति। द्विजोत्तमेति ब्राह्मणत्वाद्युद्धाकुशलस्त्वं तेन त्वयि विमुखेऽपि भीष्मप्रमुखाणां क्षत्रियप्रवराणां सत्त्वान्नास्माकं महती क्षतिरिति दुर्योधनदौष्ट्यमिति केचित्।
वल्लभ-सम्प्रदायः
(सं) वल्लभः मूलम् ...{Loading}...
।।1.2 1.11।। दुर्योधनोऽपि वृकोदरादिभी रक्षितं पाण्डवानां बलं भीष्माभिरक्षितं स्वीयं च बलं विलोक्य आत्मजविजये तद्बलस्य पर्याप्ततां आत्मबलस्य तद्बिजयेऽपर्याप्ततां च आचार्ये निवेद्यान्तरेव विष्ण्णोऽभूत्।
(सं) वल्लभः पुरुषोत्तमः ...{Loading}...
।।1.7।। एवं तत्सैनिकानुक्त्वा स्वीयानाह प्रोत्साहनार्थं अस्माकमित्यादिभिः। अस्माकं ये विशिष्टाः महान्तस्तान्निबोध बुध्यस्व। द्विजोत्तमेति विस्मृतिसम्भावनया सम्बोधनम्। मम सैन्यस्य नायकाः नेतारः तान्संज्ञानार्थं मया विशेषेण स्वरूपतो ज्ञायन्ते न वेति ते ब्रवीमि।
संस्कृतटीकान्तरम्
(सं) श्रीधर-स्वामी ...{Loading}...
।।1.7।। अस्माकमिति। निबोध बुध्यस्व। नायका नेतारः। संज्ञार्थं सम्यग्ज्ञानार्थमित्यर्थः।
हिन्दी-टीकाः
(हि) चिन्मयानन्दः ...{Loading}...
।।1.7।। द्रोणाचार्य को द्विजोत्तम कहकर सम्बोधित करते हुये दुर्योधन अपनी
सेना के प्रमुख वीर योद्धाओं के नाम सुनाता है। एक कायर मनुष्य अंधेरे में
अनुभव होने वाले भय को दूर करने के लिये सीटी बजाता है अथवा कुछ गुनगुनाने
लगता है। दुर्योधन की स्थिति भी कुछ इसी प्रकार की थी। अपराधबोध से पीड़ित
अत्याचारी दुर्योधन की मनस्थिति बिखर रही थी। यद्यपि उसकी सेना सक्षम
शूरवीरों से सुसज्जित थी तथापि शत्रुपक्ष के वीरों को देखकर उसे भय लग रहा
था। अत द्रोणाचार्य के मुख से स्वयं को प्रोत्साहित करने वाले शब्दों को वह
सुनना चाहता था। परन्तु जब वह आचार्य के पास पहुँचा तब वे शान्त और मौन
रहे। इसलिये टूटत्ो उत्साह को फिर से जुटाने के लिये वह अपनी सेना के
प्रमुख योद्धाओं के नाम गिनाने लगता है।
यह स्वाभाविक है कि अपराधबोध के भार से दबा हुआ व्यक्ति नैतिक बल के अभाव
में सम्भाषणादि की मर्यादा को भूलकर अत्यधिक बोलने लगता है। ऐसे मानसिक
तनाव के समय व्यक्ति के वास्तविक संस्कार उजागर होते हैं। यहाँ दुर्योधन
अपने गुरु को द्विजोत्तम कहकर सम्बोधित करता है। आन्तरिक ज्ञान के विकास के
कारण ब्राह्मण को द्विज (दो बार जन्मा हुआ) कहा जाता है। माता के गर्भ से
जन्म लेने पर मनुष्य संस्कारहीन होने के कारण पशुतुल्य ही होता है। संस्कार
एवं अध्ययन के द्वारा वह एक शिक्षित व सुसंस्कृत पुरुष बनता है। यह उसका
दूसरा जन्म माना जाता है। यह द्विज शब्द का अर्थ है। द्रोणाचार्य ब्राह्मण
कुल में जन्में थे और स्वभावत उनमें हृदय की कोमलता आदि श्रेष्ठ गुण थे।
पाण्डव सैन्य में उनके प्रिय शिष्य ही उपस्थित थे। यह सब जानकर चतुर किन्तु
निर्लज्ज दुर्योधन को अपने गुरु की निष्पक्षता पर भी संदेह होने लगा था। जब
हमारे उद्देश्य पापपूर्ण और कुटिलता से भरे होते हैं तब हम अपने समीपस्थ और
अधीनस्थ लोगों में भी उन्हीं अवगुणों की कल्पना करने लगते हैं।
(हि) तेजोमयानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
।।1.7।। हे द्विजोत्तम ! हमारे पक्ष में भी जो विशिष्ट योद्धागण हैं , उनको आप जान लीजिये; आपकी जानकारी के लिये अपनी सेना के नायकों के नाम मैं आपको बताता हूँ।
(हि) रामसुखदासः अनुवादः ...{Loading}...
।।1.7।। हे द्विजोत्तम! हमारे पक्ष में भी जो मुख्य हैं, उनपर भी आप ध्यान दीजिये। आपको याद दिलाने के लिये मेरी सेना के जो नायक हैं, उनको मैं कहता हूँ।
(हि) रामसुखदासः टीका ...{Loading}...
।।1.7।।व्याख्या–‘अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध
द्विजोत्तम’–दुर्योधन द्रोणाचार्यसे कहता है कि हे द्विजश्रेष्ठ! जैसे
पाण्डवोंकी सेनामें श्रेष्ठ महारथी हैं, ऐसे ही हमारी सेनामें भी उनसे कम
विशेषतावाले महारथी नहीं हैं प्रत्युत उनकी सेनाके महारथियोंकी अपेक्षा
ज्यादा ही विशेषता रखनेवाले हैं। उनको भी आप समझ लीजिये। तीसरे
श्लोकमें‘पश्य’और यहाँ ‘निबोध’ क्रिया देनेका तात्पर्य है कि
पाण्डवोंकी सेना तो सामने खड़ी है, इसलिये उसको देखनेके लिये दुर्योधन
‘पश्य’ (देखिये) क्रियाका प्रयोग करता है। परन्तु अपनी सेना सामने
नहीं है अर्थात् अपनी सेनाकी तरफ द्रोणाचार्यकी पीठ है, इसलिये उसको
देखनेकी बात न कहकर उसपर ध्यान देनेके लिये दुर्योधन‘निबोध’(ध्यान
दीजिये) क्रियाका प्रयोग करता है।
**‘नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते’–**मेरी सेनामें भी जो
विशिष्टविशिष्ट सेनापति हैं सेनानायक हैं महारथी हैं, मैं उनके नाम केवल
आपको याद दिलानेके लिये, आपकी दृष्टि उधर खींचनेके लिये ही कह रहा हूँ।
संज्ञार्थम्पदका तात्पर्य है कि हमारे बहुत-से सेनानायक हैं उनके नाम
मैं कहाँतक कहूँ; इसलिये मैं उनका केवल संकेतमात्र करता हूँ; क्योंकि आप तो
सबको जानते ही हैं।
इस श्लोकमें दुर्योधनका ऐसा भाव प्रतीत होता है कि हमारा पक्ष किसी भी तरह
कमजोर नहीं है। परन्तु राजनीतिके अनुसार शत्रुपक्ष चाहे कितना ही कमजोर हो
और अपना पक्ष चाहे कितना ही सबल हो, ऐसी अवस्थामें भी शत्रुपक्षको कमजोर
नहीं समझना चाहिये और अपनेमें उपेक्षा, उदासीनता आदिकी भावना किञ्चिन्मात्र
भी नहीं आने देनी चाहिये। इसलिये सावधानीके लिये मैंने उनकी सेनाकी बात कही
और अब अपनी सेनाकी बात कहता हूँ।
दूसरा भाव यह है कि पाण्डवोंकी सेनाको देखकर दुर्योधनपर बड़ा प्रभाव पड़ा
और उसके मनमें कुछ भय भी हुआ। कारण कि संख्यामें कम होते हुए भी
पाण्डव-सेनाके पक्षमें बहुत-से धर्मात्मा पुरुष थे और स्वयं भगवान् थे। जिस
पक्षमें धर्म और भगवान् रहते हैं, उसका सबपर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
पापी-से-पापी, दुष्ट-से-दुष्ट व्यक्तिपर भी उसका प्रभाव पड़ता है। इतना ही
नहीं, पशु-पक्षी वृक्ष-लता आदिपर भी उसका प्रभाव पड़ता है। कारण कि धर्म और
भगवान् नित्य हैं। कितनी ही ऊँची-से-ऊँची भौतिक शक्तियाँ क्यों न हों, हैं
वे सभी अनित्य ही। इसलिये दुर्योधनपर पाण्डव-सेनाका बड़ा असर पड़ा। परन्तु
उसके भीतर भौतिक बलका विश्वास मुख्य होनेसे वह द्रोणाचार्यको विश्वास
दिलानेके लिये कहता है कि हमारे पक्षमें जितनी विशेषता है, उतनी पाण्डवोंकी
सेनामें नहीं है। अतः हम उनपर सहज ही विजय कर सकते हैं।
आङ्ग्ल-टीकाः
(Eng) शङ्करनारायणः ...{Loading}...
1.7. O best among the twice-born ! However, please also take note of the most distinguished amongst us, who are the generals of my army and who are accepted as leaders by the heroes in the mighty army [of mine]; I shall name them to you.
(Eng) गम्भीरानन्दः ...{Loading}...
1.7 But, O best among the Brahmanas, please be appraised of those who are foremost among us, the ;nders of my army. I speak of them to you by way of example.
(Eng) पुरोहितस्वामी ...{Loading}...
1.7 Further, take note of all those captains who have ranged themselves on our side, O best of Spiritual Guides! The leaders of my army. I will name them for you.
(Eng) आदिदेवनन्दः ...{Loading}...
1.7 Know, O best of Brahmanas, those who are important on our side - those who are the commanders of my army. I shall name them to refresh your memory.
(Eng) शिवानन्दः अनुवादः ...{Loading}...
1.7. “Know also, O best among the twice-born! the names of those who are the most distinguished amongst ourselves, the leaders of my army; these I name to thee for thy information.
(Eng) शिवानन्दः टीका ...{Loading}...
1.7 अस्माकम् ours; तु also; विशिष्टाः the best; ये who (those); तान् those; निबोध know (thou); द्विजोत्तम (O) best among the twicorn ones; नायकाः the leaders; मम my; सैन्यस्य of the army; संज्ञार्थम् for information; तान् them; ब्रवीमि speak; ते to thee.No Commentary.