भागसूचना
नवमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
प्रजाजनोंसे धृतराष्ट्रकी क्षमा-प्रार्थना
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शान्तनुः पालयामास यथावद् वसुधामिमाम्।
तथा विचित्रवीर्यश्च भीष्मेण परिपालितः ॥ १ ॥
पालयामास नस्तातो विदितार्थो न संशयः।
मूलम्
शान्तनुः पालयामास यथावद् वसुधामिमाम्।
तथा विचित्रवीर्यश्च भीष्मेण परिपालितः ॥ १ ॥
पालयामास नस्तातो विदितार्थो न संशयः।
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्र बोले— सज्जनो! महाराज शान्तनुने इस पृथ्वीका यथावत्रूपसे पालन किया था। उसके बाद भीष्मद्वारा सुरक्षित हमारे तत्त्वज्ञ पिता विचित्रवीर्यने इस भूमण्डलकी रक्षा की; इसमें संशय नहीं है॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा च पाण्डुर्भ्राता मे दयितो भवतामभूत् ॥ २ ॥
स चापि पालयामास यथावत् तच्च वेत्थ ह।
मूलम्
यथा च पाण्डुर्भ्राता मे दयितो भवतामभूत् ॥ २ ॥
स चापि पालयामास यथावत् तच्च वेत्थ ह।
अनुवाद (हिन्दी)
उनके बाद मेरे भाई पाण्डुने इस राज्यका यथावत्रूपसे पालन किया। इसे आप सब लोग जानते हैं। अपने प्रजापालनरूपी गुणके कारण ही वे आपलोगोंके परम प्रिय हो गये थे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मया च भवतां सम्यक् शुश्रूषा या कृतानघाः ॥ ३ ॥
असम्यग् वा महाभागास्तत् क्षन्तव्यमतन्द्रितैः।
मूलम्
मया च भवतां सम्यक् शुश्रूषा या कृतानघाः ॥ ३ ॥
असम्यग् वा महाभागास्तत् क्षन्तव्यमतन्द्रितैः।
अनुवाद (हिन्दी)
निष्पाप महाभागगण! पाण्डुके बाद मैंने भी आपलोगोंकी भली या बुरी सेवा की है, उसमें जो भूल हुई हो, उसके लिये आप आलस्यरहित प्रजाजन मुझे क्षमा करें॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदा दुर्योधनेनेदं भुक्तं राज्यमकण्टकम् ॥ ४ ॥
अपि तत्र न वो मन्दो दुर्बुद्धिरपराद्धवान्।
मूलम्
यदा दुर्योधनेनेदं भुक्तं राज्यमकण्टकम् ॥ ४ ॥
अपि तत्र न वो मन्दो दुर्बुद्धिरपराद्धवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्योधनने जब अकण्टक राज्यका उपभोग किया था, उस समय उस खोटी बुद्धिवाले मूर्ख नरेशने भी आपलोगोंका कोई अपराध नहीं किया था (वह केवल पाण्डवोंके साथ अन्याय करता रहा)॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यापराधाद् दुर्बुद्धेरभिमानान्महीक्षिताम् ॥ ५ ॥
विमर्दः सुमहानासीदनयात् स्वकृतादथ ।
(घातिताः कौरवेयाश्च पृथिवी च विनाशिता।)
मूलम्
तस्यापराधाद् दुर्बुद्धेरभिमानान्महीक्षिताम् ॥ ५ ॥
विमर्दः सुमहानासीदनयात् स्वकृतादथ ।
(घातिताः कौरवेयाश्च पृथिवी च विनाशिता।)
अनुवाद (हिन्दी)
उस दुर्बुद्धिके अपने ही किये हुए अन्याय, अपराध और अभिमानसे यहाँ असंख्य राजाओंका महान् संहार हो गया। सारे कौरव मारे गये और पृथ्वीका विनाश हो गया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तन्मया साधु वापीदं यदि वासाधु वै कृतम् ॥ ६ ॥
तद् वो हृदि न कर्तव्यं मया बद्धोऽयमञ्जलिः।
मूलम्
तन्मया साधु वापीदं यदि वासाधु वै कृतम् ॥ ६ ॥
तद् वो हृदि न कर्तव्यं मया बद्धोऽयमञ्जलिः।
अनुवाद (हिन्दी)
उस अवसरपर मुझसे भला या बुरा जो कुछ भी कृत्य हो गया, उसे आपलोग अपने मनमें न लावें। इसके लिये मैं आपलोगोंसे हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करता हूँ॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृद्धोऽयं हतपुत्रोऽयं दुःखितोऽयं नराधिपः ॥ ७ ॥
पूर्वराज्ञां च पुत्रोऽयमिति कृत्वानुजानथ।
मूलम्
वृद्धोऽयं हतपुत्रोऽयं दुःखितोऽयं नराधिपः ॥ ७ ॥
पूर्वराज्ञां च पुत्रोऽयमिति कृत्वानुजानथ।
अनुवाद (हिन्दी)
‘यह राजा धृतराष्ट्र बूढ़ा है। इसके पुत्र मारे गये हैं; अतः यह दुःखमें डूबा हुआ है और यह अपने प्राचीन राजाओंका वंशज है’—ऐसा समझकर आपलोग मेरे अपराधोंको क्षमा करते हुए मुझे वनमें जानेकी आज्ञा दें॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इयं च कृपणा वृद्धा हतपुत्रा तपस्विनी ॥ ८ ॥
गान्धारी पुत्रशोकार्ता युष्मान् याचति वै मया।
मूलम्
इयं च कृपणा वृद्धा हतपुत्रा तपस्विनी ॥ ८ ॥
गान्धारी पुत्रशोकार्ता युष्मान् याचति वै मया।
अनुवाद (हिन्दी)
यह बेचारी वृद्धा तपस्विनी गान्धारी, जिसके सभी पुत्र मारे गये हैं तथा जो पुत्रशोकसे व्याकुल रहती है, मेरे साथ आपलोगोंसे क्षमा-याचना करती है॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतपुत्राविमौ वृद्धौ विदित्वा दुःखितौं तथा ॥ ९ ॥
अनुजानीत भद्रं वो व्रजाव शरणं च वः।
मूलम्
हतपुत्राविमौ वृद्धौ विदित्वा दुःखितौं तथा ॥ ९ ॥
अनुजानीत भद्रं वो व्रजाव शरणं च वः।
अनुवाद (हिन्दी)
इन दोनों बूढ़ोंको पुत्रोंके मारे जानेसे दुःखी जानकर आपलोग वनमें जानेकी आज्ञा दें। आपका कल्याण हो। हम दोनों आपकी शरणमें आये हैं॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अयं च कौरवो राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ १० ॥
सर्वैर्भवद्भिर्द्रष्टव्यः समेषु विषमेषु च।
मूलम्
अयं च कौरवो राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ १० ॥
सर्वैर्भवद्भिर्द्रष्टव्यः समेषु विषमेषु च।
अनुवाद (हिन्दी)
ये कुरुकुलरत्न कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर आपलोगोंके पालक हैं। अच्छे और बुरे सभी समयोंमें आप सब लोग इनपर कृपादृष्टि रखें॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न जातु विषमं चैव गमिष्यति कदाचन ॥ ११ ॥
चत्वारः सचिवा यस्य भ्रातरो विपुलौजसः।
लोकपालसमा ह्येते सर्वधर्मार्थदर्शिनः ॥ १२ ॥
ब्रह्मेव भगवानेष सर्वभूतजगत्पतिः ।
(एवमेव महाबाहुर्भीमार्जुनयमैर्वृतः ।)
युधिष्ठिरो महातेजा भवतः पालयिष्यति ॥ १३ ॥
मूलम्
न जातु विषमं चैव गमिष्यति कदाचन ॥ ११ ॥
चत्वारः सचिवा यस्य भ्रातरो विपुलौजसः।
लोकपालसमा ह्येते सर्वधर्मार्थदर्शिनः ॥ १२ ॥
ब्रह्मेव भगवानेष सर्वभूतजगत्पतिः ।
(एवमेव महाबाहुर्भीमार्जुनयमैर्वृतः ।)
युधिष्ठिरो महातेजा भवतः पालयिष्यति ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये कभी आपलोगोंके प्रति विषमभाव नहीं रखेंगे। लोकपालोंके समान महातेजस्वी तथा सम्पूर्ण धर्म और अर्थके मर्मज्ञ ये चार भाई जिनके सचिव हैं, वे भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेवसे घिरे हुए महाबाहु महातेजस्वी युधिष्ठिर सम्पूर्ण जीव-जगत्के स्वामी भगवान् ब्रह्माकी भाँति आपलोगोंका इसी तरह पालन करेंगे, जैसे पहलेके लोग करते आये हैं॥११—१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवश्यमेव वक्तव्यमिति कृत्वा ब्रवीमि वः।
एष न्यासो मया दत्तः सर्वेषां वो युधिष्ठिरः ॥ १४ ॥
भवन्तोऽस्य च वीरस्य न्यासभूताः कृता मया।
मूलम्
अवश्यमेव वक्तव्यमिति कृत्वा ब्रवीमि वः।
एष न्यासो मया दत्तः सर्वेषां वो युधिष्ठिरः ॥ १४ ॥
भवन्तोऽस्य च वीरस्य न्यासभूताः कृता मया।
अनुवाद (हिन्दी)
मुझे ये बातें अवश्य कहनी चाहिये, ऐसा सोचकर ही मैं आपलोगोंसे यह सब कहता हूँ। मैं इन राजा युधिष्ठिरको धरोहरके रूपमें आप सब लोगोंके हाथ सौंप रहा हूँ और आपलोगोंको भी इन वीर नरेशके हाथमें धरोहरकी ही भाँति दे रहा हूँ॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदेव तैः कृतं किंचिद् व्यलीकं वः सुतैर्मम ॥ १५ ॥
यदन्येन मदीयेन तदनुज्ञातुमर्हथ ।
मूलम्
यदेव तैः कृतं किंचिद् व्यलीकं वः सुतैर्मम ॥ १५ ॥
यदन्येन मदीयेन तदनुज्ञातुमर्हथ ।
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे पुत्रोंने तथा मुझसे सम्बन्ध रखनेवाले और किसीने आपलोगोंका जो कुछ भी अपराध किया हो, उसके लिये मुझे क्षमा करें और जानेकी आज्ञा दें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भवद्भिर्न हि मे मन्युः कृतपूर्वः कथंचन ॥ १६ ॥
अत्यन्तगुरुभक्तानामेषोऽञ्जलिरिदं नमः ।
मूलम्
भवद्भिर्न हि मे मन्युः कृतपूर्वः कथंचन ॥ १६ ॥
अत्यन्तगुरुभक्तानामेषोऽञ्जलिरिदं नमः ।
अनुवाद (हिन्दी)
आपलोगोंने पहले मुझपर किसी तरह कोई रोष नहीं प्रकट किया है। आपलोग अत्यन्त गुरुभक्त हैं; अतः आपके सामने मेरे ये दोनों हाथ जुड़े हुए हैं और मैं आपको यह प्रणाम करता हूँ॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामस्थिरबुद्धीनां लुब्धानां कामचारिणाम् ॥ १७ ॥
कृते याचेऽद्य वः सर्वान् गान्धारीसहितोऽनघाः।
मूलम्
तेषामस्थिरबुद्धीनां लुब्धानां कामचारिणाम् ॥ १७ ॥
कृते याचेऽद्य वः सर्वान् गान्धारीसहितोऽनघाः।
अनुवाद (हिन्दी)
निष्पाप प्रजाजन! मेरे पुत्रोंकी बुद्धि चंचल थी। वे लोभी और स्वेच्छाचारी थे। उनके अपराधोंके लिये आज गान्धारीसहित मैं आप सब लोगोंसे क्षमा-याचना करता हूँ॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्युक्तास्तेन ते सर्वे पौरजानपदा जनाः।
नोचुर्बाष्पकलाः किंचिद् वीक्षांचक्रुः परस्परम् ॥ १८ ॥
मूलम्
इत्युक्तास्तेन ते सर्वे पौरजानपदा जनाः।
नोचुर्बाष्पकलाः किंचिद् वीक्षांचक्रुः परस्परम् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्रके इस प्रकार कहनेपर नगर और जनपदमें निवास करनेवाले सब लोग नेत्रोंसे आँसू बहाते हुए एक-दूसरेका मुँह देखने लगे। किसीने कोई उत्तर नहीं दिया॥१८॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि धृतराष्ट्रप्रार्थने नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत आश्रमवासपर्वमें धृतराष्ट्रकी प्रार्थनाविषयक नवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल १९ श्लोक हैं)