मूलम् (समाप्तिः)
[भोजनकी विधि, गौओंको घास डालनेका विधान और तिलका माहात्म्य तथा ब्राह्मणके लिये तिल और गन्ना पेरनेका निषेध]
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्नदानफलं श्रुत्वा प्रीतोऽस्मि मधुसूदन।
भोजनस्य विधिं वक्तुं देवदेव त्वमर्हसि॥
मूलम्
अन्नदानफलं श्रुत्वा प्रीतोऽस्मि मधुसूदन।
भोजनस्य विधिं वक्तुं देवदेव त्वमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिरने कहा— देवाधिदेव मधुसूदन! अन्न-दानका फल सुनकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है, अब आप भोजनकी विधि बतानेकी कृपा कीजिये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीभगवानुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भोजनस्य द्विजातीनां विधानं शृणु पाण्डव।
स्नातः शुचिः शुचौ देशे निर्जने हुतपावकः॥
मण्डलं कारयित्वा च चतुरस्रं द्विजोत्तमः।
क्षत्रियश्चेत् ततो वृत्तं वैश्योऽर्धेन्दुसमाकृतम्॥
मूलम्
भोजनस्य द्विजातीनां विधानं शृणु पाण्डव।
स्नातः शुचिः शुचौ देशे निर्जने हुतपावकः॥
मण्डलं कारयित्वा च चतुरस्रं द्विजोत्तमः।
क्षत्रियश्चेत् ततो वृत्तं वैश्योऽर्धेन्दुसमाकृतम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभगवान् बोले— पाण्डुनन्दन! द्विजातियोंके भोजनका जो विधान है, उसे सुनो। श्रेष्ठ द्विजको उचित है कि वह स्नान करके पवित्र हो अग्निहोत्र करनेके बाद शुद्ध और एकान्त स्थानमें बैठकर ब्राह्मण हो तो चौकोना, क्षत्रिय हो तो गोलाकार और वैश्य हो तो अर्धचन्द्राकार मण्डल बनावे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आर्द्रपादस्तु भुञ्जीयात् प्राङ्मुखश्चासने शुचौ।
पादाभ्यां धरणीं स्पृष्ट्वा पादेनैकेन वा पुनः॥
मूलम्
आर्द्रपादस्तु भुञ्जीयात् प्राङ्मुखश्चासने शुचौ।
पादाभ्यां धरणीं स्पृष्ट्वा पादेनैकेन वा पुनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके बाद पैर धोकर उसी मण्डलमें बिछे हुए शुद्ध आसनके ऊपर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाय और दोनों पैरोंसे अथवा एक पैरके द्वारा पृथ्वीका स्पर्श किये रहे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नैकवासास्तु भुञ्जीयान्न चान्तर्धाय वा द्विजः।
न भिन्नपात्रे भुञ्जीत पर्णपृष्ठे तथैव च॥
मूलम्
नैकवासास्तु भुञ्जीयान्न चान्तर्धाय वा द्विजः।
न भिन्नपात्रे भुञ्जीत पर्णपृष्ठे तथैव च॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्विज एक वस्त्र पहनकर तथा सारे शरीरको कपड़ेसे ढककर भी भोजन न करे। इसी प्रकार फूटे हुए बर्तनमें तथा उलटी पत्तलमें भी भोजन करना निषिद्ध है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्न पूर्वं नमस्कुर्यात् प्रहृष्टेनान्तरात्मना।
नान्यदालोकयेदन्नान्न जुगुप्सेत तत्परः ॥
मूलम्
अन्न पूर्वं नमस्कुर्यात् प्रहृष्टेनान्तरात्मना।
नान्यदालोकयेदन्नान्न जुगुप्सेत तत्परः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भोजन करनेवाले पुरुषको चाहिये कि प्रसन्नचित्त होकर पहले अन्नको नमस्कार करे। अन्नके सिवा दूसरी ओर दृष्टि न डाले तथा भोजन करते समय परोसे हुए अन्नकी निन्दा न करे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जुगुप्सितं च यच्चान्नं राक्षसा एव भुञ्जते।
पाणिना जलमुद्धृत्य कुर्यादन्नं प्रदक्षिणम्॥
मूलम्
जुगुप्सितं च यच्चान्नं राक्षसा एव भुञ्जते।
पाणिना जलमुद्धृत्य कुर्यादन्नं प्रदक्षिणम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस अन्नकी निन्दा की जाती है, उसे राक्षस खाते हैं! भोजन आरम्भ करनेसे पहले हाथमें जल लेकर उसके द्वारा अन्नकी प्रदक्षिणा करे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पञ्च प्राणाहुतीः कुर्यात् समन्त्रं तु पृथक् पृथक्॥
मूलम्
पञ्च प्राणाहुतीः कुर्यात् समन्त्रं तु पृथक् पृथक्॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर मन्त्र पढ़कर पृथक्-पृथक् पाँचों प्राणोंको अन्नकी आहुति दे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा रसं न जानाति जिह्वा प्राणाहुतौ नृप।
तथा समाहितः कुर्यात् प्राणाहुतिमतन्द्रितः॥
मूलम्
यथा रसं न जानाति जिह्वा प्राणाहुतौ नृप।
तथा समाहितः कुर्यात् प्राणाहुतिमतन्द्रितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! प्राणोंको आहुति देते समय स्थिरचित्त और सावधान होकर इस प्रकार प्राणोंको आहुति दे जिससे जिह्वाको रसका ज्ञान न हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विदित्वान्नमथान्नादं पञ्च प्राणांश्च पाण्डव।
यः कुर्यादाहुतीः पञ्च तेनेष्टाः पञ्च वायवः॥
मूलम्
विदित्वान्नमथान्नादं पञ्च प्राणांश्च पाण्डव।
यः कुर्यादाहुतीः पञ्च तेनेष्टाः पञ्च वायवः॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन! अन्न, अन्नाद और पाँचों प्राणोंके तत्त्वको जानकर जो प्राणाग्निहोत्र करता है, उसके द्वारा पञ्चवायुओंका यजन हो जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अतोऽन्यथा तु भुञ्जानो ब्राह्मणो ज्ञानदुर्बलः।
तेनान्नेनासुरान् प्रेतान् राक्षसांस्तर्पयिष्यति ॥
मूलम्
अतोऽन्यथा तु भुञ्जानो ब्राह्मणो ज्ञानदुर्बलः।
तेनान्नेनासुरान् प्रेतान् राक्षसांस्तर्पयिष्यति ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके विपरीत भोजन करनेवाला मूर्ख ब्राह्मण अन्नके द्वारा असुर, प्रेत और राक्षसोंको ही तृप्त करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वक्त्रप्रमाणान् पिण्डांश्च ग्रसेदेकैकशः पुनः।
वक्त्राधिकं तु यत् पिण्डमात्मोच्छिष्टं तदुच्यते॥
मूलम्
वक्त्रप्रमाणान् पिण्डांश्च ग्रसेदेकैकशः पुनः।
वक्त्राधिकं तु यत् पिण्डमात्मोच्छिष्टं तदुच्यते॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्राणोंको आहुति देनेके पश्चात् अपने मुखमें पड़ने लायक एक-एक ग्रास अन्न उठाकर भोजन करे। जो ग्रास अपने मुखमें जानेकी अपेक्षा बड़ा होनेके कारण एक बारमें न खाया जा सके, उसमेंसे बचा हुआ ग्रास अपना उच्छिष्ट कहा जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पिण्डावशिष्टमन्यच्च वक्त्रान्निस्सृतमेव च ।
अभोज्यं तद् विजानीयाद् भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत्।
मूलम्
पिण्डावशिष्टमन्यच्च वक्त्रान्निस्सृतमेव च ।
अभोज्यं तद् विजानीयाद् भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत्।
अनुवाद (हिन्दी)
ग्राससे बचे हुए तथा मुँहसे निकले हुए अन्नको अखाद्य समझे और उसे खा लेनेपर चान्द्रायण-व्रतका आचरण करे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वमुच्छिष्टं तु यो भुङ्क्ते यो भुङ्क्ते मुक्तभोजनम्॥
चान्द्रायणं चरेत् कृच्छ्रं प्राजापत्यमथापि वा।
मूलम्
स्वमुच्छिष्टं तु यो भुङ्क्ते यो भुङ्क्ते मुक्तभोजनम्॥
चान्द्रायणं चरेत् कृच्छ्रं प्राजापत्यमथापि वा।
अनुवाद (हिन्दी)
जो अपना जूठा खाता है तथा एक बार खाकर छोड़े हुए भोजनको फिर ग्रहण करता है, उसको चान्द्रायण, कृच्छ्र अथवा प्राजापत्य-व्रतका आचरण करना चाहिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्त्रीपात्रभुङ्नरः पापः स्त्रीणामुच्छिष्टभुक्तथा ।
तया सह च यो भुङ्क्ते स भुङ्क्ते मद्यमेव हि।
न तस्य निष्कृतिर्दृष्टा मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः॥
मूलम्
स्त्रीपात्रभुङ्नरः पापः स्त्रीणामुच्छिष्टभुक्तथा ।
तया सह च यो भुङ्क्ते स भुङ्क्ते मद्यमेव हि।
न तस्य निष्कृतिर्दृष्टा मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पापी स्त्रीके भोजन किये हुए पात्रमें भोजन करता है, स्त्रीका जूठा खाता है तथा स्त्रीके साथ एक बर्तनमें भोजन करता है, वह मानो मदिरा पान करता है। तत्त्वदर्शी मुनियोंने उस पापसे छूटनेका कोई प्रायश्चित्त ही नहीं देखा है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पिबतः पतिते तोये भोजने मखनिस्सृते।
अभोज्यं तद् विजानीयाद् भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत्॥
मूलम्
पिबतः पतिते तोये भोजने मखनिस्सृते।
अभोज्यं तद् विजानीयाद् भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि पानी पीते-पीते उसकी बूँद मुँहसे निकलकर भोजनमें गिर पड़े तो वह खानेयोग्य नहीं रह जाता। जो उसे खा लेता है, उस पुरुषको चान्द्रायण-व्रतका आचरण करना चाहिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पीतशेषं तु तन्नाम न पेयं पाण्डुनन्दन।
पिबेद् यदि हि तन्मोहाद् द्विजश्चान्द्रायणं चरेत्॥
मूलम्
पीतशेषं तु तन्नाम न पेयं पाण्डुनन्दन।
पिबेद् यदि हि तन्मोहाद् द्विजश्चान्द्रायणं चरेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन! इसी प्रकार पीनेसे बचा हुआ पानी भी पुनः पीनेके योग्य नहीं रहता। यदि कोई ब्राह्मण मोहवश उसको पी ले तो उसे चान्द्रायण-व्रतका आचरण करना चाहिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मौनी वाप्यथवा भूमौ नावलोक्य दिशस्तथा।
भुञ्जीत विधिवद् विप्रो न चोच्छिष्टं प्रदापयेत्॥
मूलम्
मौनी वाप्यथवा भूमौ नावलोक्य दिशस्तथा।
भुञ्जीत विधिवद् विप्रो न चोच्छिष्टं प्रदापयेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
ब्राह्मणको उचित है कि वह मौन होकर पृथ्वी या दिशाओंकी ओर न देखते हुए विधिवत् भोजन करे, किसीको अपना जूठा न दे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सदा चात्यशनं नाद्यान्नातिहीनं च कर्हिचित्।
यथान्नेन व्यथा न स्यात् तथा भुञ्जीत नित्यशः॥
मूलम्
सदा चात्यशनं नाद्यान्नातिहीनं च कर्हिचित्।
यथान्नेन व्यथा न स्यात् तथा भुञ्जीत नित्यशः॥
अनुवाद (हिन्दी)
कभी भी न तो बहुत अधिक और न कम ही भोजन करे। प्रतिदिन उतना ही अन्न खाय, जिससे अपनेको कष्ट न हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केशकीटोपपन्नं च मुखमारुतवीजितम् ।
अभोज्यं तद् विजानीयाद् भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत्॥
मूलम्
केशकीटोपपन्नं च मुखमारुतवीजितम् ।
अभोज्यं तद् विजानीयाद् भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस भोजनमें बाल या कोई कीड़ा पड़ा हो, जिसे मुँहसे फूँककर ठंडा किया गया हो, उसको अखाद्य समझना चाहिये। ऐसे अन्नको भोजन कर लेनेपर चान्द्रायण-व्रतका आचरण करना चाहिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्थाय च पुनः स्मृष्टं पादस्पृष्टं च लङ्घितम्।
अन्नं तद् राक्षसं विद्यात् तस्मात् तत् परिवर्जयेत्॥
मूलम्
उत्थाय च पुनः स्मृष्टं पादस्पृष्टं च लङ्घितम्।
अन्नं तद् राक्षसं विद्यात् तस्मात् तत् परिवर्जयेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
भोजनके स्थानसे उठ जानेके बाद जिसे फिर छू दिया गया हो, जो पैरसे छू गया या लाँघ दिया गया हो, वह राक्षसके खानेयोग्य अन्न है; ऐसा समझकर उसका त्याग कर देना चाहिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यद्युत्तिष्ठत्यनाचान्तो भुक्तवानासनात् ततः ।
स्नानं सद्यः प्रकुर्वीत सोऽन्यथाप्रयतो भवेत्॥
मूलम्
यद्युत्तिष्ठत्यनाचान्तो भुक्तवानासनात् ततः ।
स्नानं सद्यः प्रकुर्वीत सोऽन्यथाप्रयतो भवेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि आचमन किये बिना ही भोजन करनेवाला द्विज भोजनके आसनसे उठ जाय तो उसे तुरंत स्नान करना चाहिये, अन्यथा वह अपवित्र ही रहता है॥
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तृणमुष्टिविधानं च तिलमाहात्म्यमेव च।
इक्षोः सोमसमुद्भूतिं वक्तुमर्हसि मानद॥
मूलम्
तृणमुष्टिविधानं च तिलमाहात्म्यमेव च।
इक्षोः सोमसमुद्भूतिं वक्तुमर्हसि मानद॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिरने पूछा— भगवन्! गौओंके आगे घासकी मुट्ठी डालनेका विधान और तिलका माहात्म्य क्या है तथा गन्नेसे चन्द्रमाकी उत्पत्ति किस प्रकार हुई है—यह बतानेकी कृपा कीजिये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीभगवानुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
पितरो वृषभा ज्ञेया गावो लोकस्य मातरः।
तासां तु पूजया राजन् पूजिताः पितृदेवताः॥
मूलम्
पितरो वृषभा ज्ञेया गावो लोकस्य मातरः।
तासां तु पूजया राजन् पूजिताः पितृदेवताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभगवान्ने कहा— राजन्! बैलोंको जगत्का पिता समझना चाहिये और गौएँ संसारकी माताएँ हैं, उनकी पूजा करनेसे सम्पूर्ण पितरों और देवताओंकी पूजा हो जाती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सभा प्रपा गृहाश्चापि देवतायतनानि च।
शुद्ध्यन्ति शकृता यासां किं भूतमधिकं ततः॥
मूलम्
सभा प्रपा गृहाश्चापि देवतायतनानि च।
शुद्ध्यन्ति शकृता यासां किं भूतमधिकं ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिनके गोबरसे लीपनेपर सभा-भवन, पौंसले, घर और देवमन्दिर भी शुद्ध हो जाते हैं, उन गौओंसे बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ग्रासमुष्टिं परगवे दद्यात् संवत्सरं तु यः।
अकृत्वा स्वयमाहारं प्राप्तस्तत् सार्वकालिकम्॥
मूलम्
ग्रासमुष्टिं परगवे दद्यात् संवत्सरं तु यः।
अकृत्वा स्वयमाहारं प्राप्तस्तत् सार्वकालिकम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य एक सालतक स्वयं भोजन करनेके पहले प्रतिदिन दूसरेकी गायको मुट्ठीभर घास खिलाया करता है, उसको प्रत्येक समय गौकी सेवा करनेका फल प्राप्त होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गावो मे मातरः सर्वाः पितरश्चैव गोवृषाः।
ग्रासमुष्टिं मया दत्तं प्रतिगृह्णीत मातरः॥
मूलम्
गावो मे मातरः सर्वाः पितरश्चैव गोवृषाः।
ग्रासमुष्टिं मया दत्तं प्रतिगृह्णीत मातरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
गोमाताके सामने घास रखकर इस प्रकार कहना चाहिये—‘संसारकी समस्त गौएँ मेरी माताएँ और सम्पूर्ण वृषभ मेरे पिता हैं। गोमाताओ! मैंने तुम्हारी सेवामें यह घासकी मुट्ठी अर्पण की है, इसे स्वीकार करो’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्युक्त्वानेन मन्त्रेण गायत्र्या वा समाहितः।
अभिमन्त्र्य ग्रासमुष्टिं तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
इत्युक्त्वानेन मन्त्रेण गायत्र्या वा समाहितः।
अभिमन्त्र्य ग्रासमुष्टिं तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह मन्त्र पढ़कर अथवा गायत्रीका उच्चारण करके एकाग्रचित्तसे घासको अभिमन्त्रित करके गौको खिला दे। ऐसा करनेसे जिस पुण्यफलकी प्राप्ति होती है, उसे सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत् कृतं दुष्कृतं तेन ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपि वा।
तस्य नश्यति तत् सर्वं दुःस्वप्नं च विनश्यति॥
मूलम्
यत् कृतं दुष्कृतं तेन ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपि वा।
तस्य नश्यति तत् सर्वं दुःस्वप्नं च विनश्यति॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस पुरुषने जान-बूझकर या अनजानमें जो-जो पाप किये होते हैं, वह सब नष्ट हो जाते हैं तथा उसको कभी बुरे स्वप्न नहीं दिखायी देते॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिलाः पवित्राः पापघ्ना नारायणसमुद्भवाः।
तिलान् श्राद्धे प्रशंसन्ति दानं चेदमनुत्तमम्॥
मूलम्
तिलाः पवित्राः पापघ्ना नारायणसमुद्भवाः।
तिलान् श्राद्धे प्रशंसन्ति दानं चेदमनुत्तमम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तिल बड़े पवित्र और पापनाशक होते हैं, भगवान् नारायणसे उनकी उत्पत्ति हुई है। इसलिये श्राद्धमें तिलकी बड़ी प्रशंसा की गयी है और तिलका दान अत्यन्त उत्तम दान बताया गया है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिलान् दद्यात् तिलान् भक्ष्यात् तिलान् प्रातरुपस्पृशेत्।
तिलं तिलमिति ब्रूयात् तिलाः पापहरा हि ते॥
मूलम्
तिलान् दद्यात् तिलान् भक्ष्यात् तिलान् प्रातरुपस्पृशेत्।
तिलं तिलमिति ब्रूयात् तिलाः पापहरा हि ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
तिल दान करे, तिल भक्षण करे और सबेरे तिलका उबटन लगाकर स्नान करे तथा सदा ही अपने मुँहसे ‘तिल-तिल’ का उच्चारण किया करे; क्योंकि तिल सब पापोंको नष्ट करनेवाले होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिलान् न पीडयेद् विप्रो यन्त्रचक्रे स्वयं नृप।
पीडयन् हि द्विजो मोहान्नरकं याति रौरवम्॥
मूलम्
तिलान् न पीडयेद् विप्रो यन्त्रचक्रे स्वयं नृप।
पीडयन् हि द्विजो मोहान्नरकं याति रौरवम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! ब्राह्मणको स्वयं तिल पेरनेकी मशीनमें तिल डालकर तेल नहीं पेरना चाहिये। जो मोहवश स्वयं ही तिल पेरता है, वह रौरव नरकमें पड़ता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इक्षुवंशोद्भवः सोमः सोमवंशोद्भवा द्विजाः।
तस्मान्न पीडयेदिक्षुं यन्त्रचक्रे द्विजोत्तमः॥
मूलम्
इक्षुवंशोद्भवः सोमः सोमवंशोद्भवा द्विजाः।
तस्मान्न पीडयेदिक्षुं यन्त्रचक्रे द्विजोत्तमः॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर! चन्द्रमा इक्षु (गन्ने)-के वंशमें उत्पन्न हुआ है और ब्राह्मण चन्द्रमाके वंशमें उत्पन्न हुए हैं। इसलिये ब्राह्मणको कोल्हूमें गन्ना नहीं पेरना चाहिये॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)