मूलम् (समाप्तिः)
[अनेक प्रकारके दानोंकी महिमा]
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
वासुदेवेन दानेषु कथितेषु यथाक्रमम्।
अवितृप्तश्च धर्मेषु केशवं पुनरब्रवीत्॥
मूलम्
वासुदेवेन दानेषु कथितेषु यथाक्रमम्।
अवितृप्तश्च धर्मेषु केशवं पुनरब्रवीत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा क्रमसे दान और धर्मकी बात कही जानेपर युधिष्ठिर तृप्त न होकर फिर भगवान् केशवसे कहने लगे—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देव धर्मामृतमिदं शृण्वतोऽपि परंतप।
न विद्यते सुरश्रेष्ठ मम तृप्तिर्हि माधव॥
मूलम्
देव धर्मामृतमिदं शृण्वतोऽपि परंतप।
न विद्यते सुरश्रेष्ठ मम तृप्तिर्हि माधव॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘सुरश्रेष्ठ! देवेश्वर! परंतप माधव! आपके मुँहसे इस धर्ममय अमृतका श्रवण करते हुए मुझे तृप्ति नहीं होती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यानि चान्यानि दानानि त्वया नोक्तानि कानिचित्।
तान्याचक्ष्व सुरश्रेष्ठ तेषां चानुक्रमात् फलम्॥
मूलम्
यानि चान्यानि दानानि त्वया नोक्तानि कानिचित्।
तान्याचक्ष्व सुरश्रेष्ठ तेषां चानुक्रमात् फलम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘सुरश्रेष्ठ! जो अन्य प्रकारके दान हैं, जिनको अभीतक आपने नहीं बताया है, उनका वर्णन कीजिये और क्रमशः उनका फल भी बतानेकी कृपा कीजिये’॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीभगवानुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शय्यां प्रस्तरणोपेतां यः प्रयच्छति पाण्डव।
अर्चयित्वा द्विजं भक्त्या वस्त्रमाल्यानुलेपनैः।
भोजयित्वा विचित्रान्नं तस्य पुण्यफलं शुणु॥
मूलम्
शय्यां प्रस्तरणोपेतां यः प्रयच्छति पाण्डव।
अर्चयित्वा द्विजं भक्त्या वस्त्रमाल्यानुलेपनैः।
भोजयित्वा विचित्रान्नं तस्य पुण्यफलं शुणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभगवान्ने कहा— पाण्डुनन्दन! जो मनुष्य भक्तिके साथ वस्त्र, माला और चन्दन चढ़ाकर ब्राह्मणकी पूजा करता है तथा उसे भाँति-भाँतिके अन्नका भोजन कराकर बिछौनेसहित शय्या दान करता है, उसका पुण्यफल सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धेनुदानस्य यत् पुण्यं विधिदत्तस्य पाण्डव।
तत् पुण्यं समनुप्राप्य पितृलोके महीयते॥
मूलम्
धेनुदानस्य यत् पुण्यं विधिदत्तस्य पाण्डव।
तत् पुण्यं समनुप्राप्य पितृलोके महीयते॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन! विधिवत् किये हुए गोदानका जो पुण्य होता है, उस पुण्यको प्राप्त करके वह पितृलोकमें सम्मान पाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आहिताग्निसहस्रस्य पूजितस्यैव यत् फलम्।
तत् पुण्यफलमाप्नोति यस्तु शय्यां प्रयच्छति॥
मूलम्
आहिताग्निसहस्रस्य पूजितस्यैव यत् फलम्।
तत् पुण्यफलमाप्नोति यस्तु शय्यां प्रयच्छति॥
अनुवाद (हिन्दी)
तथा एक हजार अग्निहोत्री ब्राह्मणोंका पूजन करनेसे जो फल मिलता है, उसी पुण्य-फलको वह प्राप्त करता है, जो शय्याका दान करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिल्पमध्ययनं वापि विद्यां मन्त्रौषधीनि च।
यः प्रयच्छति विप्राय तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
शिल्पमध्ययनं वापि विद्यां मन्त्रौषधीनि च।
यः प्रयच्छति विप्राय तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य ब्राह्मणको शिल्प, वेद, मन्त्र, ओषधि आदि विद्याओंका दान करता है, उसके पुण्यफलको सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छन्दोभिः सम्प्रयुक्तेन विमानेन विराजता।
सप्तर्षिलोकान् व्रजति पूज्यते ब्रह्मवादिभिः॥
मूलम्
छन्दोभिः सम्प्रयुक्तेन विमानेन विराजता।
सप्तर्षिलोकान् व्रजति पूज्यते ब्रह्मवादिभिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह वेदमन्त्रोंके बलसे चलनेवाले सुन्दर विमानपर आरूढ़ हो सप्तर्षियोंके लोकमें जाता और वहाँ ब्रह्मवादी महर्षियोंसे पूजित होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चतुर्युगानि वै त्रिंशत् क्रीडित्वा तत्र देववत्।
इह मानुष्यके लोके विप्रो भवति वेदवित्॥
मूलम्
चतुर्युगानि वै त्रिंशत् क्रीडित्वा तत्र देववत्।
इह मानुष्यके लोके विप्रो भवति वेदवित्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस लोकमें तीस चतुर्युगीतक देवताओंकी भाँति क्रीड़ा करके वह मनुष्यलोकमें वेदवेत्ता ब्राह्मण होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विश्रामयति यो विप्रं श्रान्तमध्वनि कर्शितम्।
विनश्यति तदा पापं तस्य वर्षकृतं नृप॥
मूलम्
विश्रामयति यो विप्रं श्रान्तमध्वनि कर्शितम्।
विनश्यति तदा पापं तस्य वर्षकृतं नृप॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जो रास्तेके थके-माँदे दुर्बल ब्राह्मणको विश्राम देता है, उसका एक वर्षका किया हुआ पाप तत्काल नष्ट हो जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ प्रक्षालयेत् पादौ तस्य तोयेन भक्तिमान्।
दशवर्षकृतं पापं व्यपोहति न संशयः॥
मूलम्
अथ प्रक्षालयेत् पादौ तस्य तोयेन भक्तिमान्।
दशवर्षकृतं पापं व्यपोहति न संशयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर जब वह भक्तिपूर्वक उस अतिथिके दोनों चरणोंको जलसे पखारता है, उस समय उसके दस वर्षके किये हुए पाप निःसंदेह नष्ट हो जाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घृतेन वाथ तैलेन पादौ तस्य तु पूजयेत्।
तद् द्वादशसमारूढं पापमाशु व्यपोहति॥
मूलम्
घृतेन वाथ तैलेन पादौ तस्य तु पूजयेत्।
तद् द्वादशसमारूढं पापमाशु व्यपोहति॥
अनुवाद (हिन्दी)
तथा यदि वह उसके दोनों पैरोंमें घी या तेल मलकर उसकी पूजा करता है तो उसके बारह वर्षोंके पाप तुरंत नष्ट हो जाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वागतेन तु यो विप्रं पूजयेदासनेन च।
प्रत्युत्थानेन वा राजन् स देवानां प्रियो भवेत्॥
मूलम्
स्वागतेन तु यो विप्रं पूजयेदासनेन च।
प्रत्युत्थानेन वा राजन् स देवानां प्रियो भवेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जो घरपर आये हुए ब्राह्मणका स्वागत करके उसे आसन और अभ्युत्थान देकर पूजन करता है, वह देवताओंका प्रिय होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वागतेनाग्नयो राजन्नासनेन शतक्रतुः ।
प्रत्युत्थानेन पितरः प्रीतिं यान्त्यतिथिप्रियाः॥
मूलम्
स्वागतेनाग्नयो राजन्नासनेन शतक्रतुः ।
प्रत्युत्थानेन पितरः प्रीतिं यान्त्यतिथिप्रियाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! अतिथिके स्वागतसे अग्नि, उसे आसन देनेसे इन्द्र और अगवानी करनेसे अतिथियोंपर प्रेम रखनेवाले पितर प्रसन्न होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अग्निशक्रपितॄणां च तेषां प्रीत्या नराधिप।
संवत्सरकृतं पापं तस्य सद्यो विनश्यति॥
मूलम्
अग्निशक्रपितॄणां च तेषां प्रीत्या नराधिप।
संवत्सरकृतं पापं तस्य सद्यो विनश्यति॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! इस प्रकार अग्नि, इन्द्र और पितरोंके प्रसन्न होनेपर मनुष्यका एक वर्षका पाप तत्काल नष्ट हो जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यः प्रयच्छति विप्राय आसनं माल्यभूषितम्।
स याति मणिचित्रेण रथेनेन्द्रनिकेतनम्॥
मूलम्
यः प्रयच्छति विप्राय आसनं माल्यभूषितम्।
स याति मणिचित्रेण रथेनेन्द्रनिकेतनम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य ब्राह्मणको मालाओंसे विभूषित आसन प्रदान करता है, वह मणियोंसे चित्रित रथके द्वारा इन्द्रलोकमें जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरंदरासने तत्र दिव्यनारीविभूषितः ।
षष्टिं वर्षसहस्राणि क्रडित्यप्सरसां गणैः॥
मूलम्
पुरंदरासने तत्र दिव्यनारीविभूषितः ।
षष्टिं वर्षसहस्राणि क्रडित्यप्सरसां गणैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ इन्द्रासनपर दिव्य स्त्रियोंके साथ शोभा पाता है और साठ हजार वर्षोंतक अप्सरागणोंके साथ क्रीड़ा करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वाहनं यः प्रयच्छेत ब्राह्मणाय युधिष्ठिर।
स याति रत्नचित्रेण वाहनेन सुरालयम्॥
मूलम्
वाहनं यः प्रयच्छेत ब्राह्मणाय युधिष्ठिर।
स याति रत्नचित्रेण वाहनेन सुरालयम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर! जो मनुष्य ब्राह्मणको सवारी दान करता है, वह रत्नोंसे चित्रित विमानपर बैठकर स्वर्गलोकको जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तत्र कामं क्रीडित्वा सेव्यमानोऽप्सरोगणैः।
इह राजा भवेद् राजन् नात्र कार्या विचारणा॥
मूलम्
स तत्र कामं क्रीडित्वा सेव्यमानोऽप्सरोगणैः।
इह राजा भवेद् राजन् नात्र कार्या विचारणा॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वहाँ वह अप्सरागणोंके द्वारा सेवित होकर इच्छानुसार क्रीड़ा करता है। फिर इस लोकमें राजा होता है—इसमें कोई विचारकी बात नहीं है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पादपं पल्लवाकीर्णं पुष्पितं फलितं तथा।
गन्धमाल्यैरथाभ्यर्च्य वस्त्राभरणभूषितम् ।
यः प्रयच्छति विप्राय श्रोत्रियाय सदक्षिणम्।
भोजयित्वा यथाकामं तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
पादपं पल्लवाकीर्णं पुष्पितं फलितं तथा।
गन्धमाल्यैरथाभ्यर्च्य वस्त्राभरणभूषितम् ।
यः प्रयच्छति विप्राय श्रोत्रियाय सदक्षिणम्।
भोजयित्वा यथाकामं तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पुरुष पत्ते, फूल और फलोंसे भरे हुए वृक्षोंको वस्त्रों और आभूषणोंसे विभूषित करके चन्दन और फूलोंसे उसकी पूजा करता है तथा वेदवेत्ता ब्राह्मणको भोजन कराकर दक्षिणाके साथ उस वृक्षका दान कर देता है, उसके पुण्यका फल सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जाम्बूनदविचित्रेण विमानेन विराजता ।
पुरंदरपुरं याति जयशब्दरवैर्युतः ॥
मूलम्
जाम्बूनदविचित्रेण विमानेन विराजता ।
पुरंदरपुरं याति जयशब्दरवैर्युतः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह सुवर्णजटित सुन्दर विमानपर बैठकर जय-जयकारके शब्द सुनता हुआ इन्द्रलोकमें जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र शक्रपुरे रम्ये तस्य कल्पकपादपः।
ददाति चेप्सितं सर्वं मनसा यद् यदिच्छति॥
मूलम्
तत्र शक्रपुरे रम्ये तस्य कल्पकपादपः।
ददाति चेप्सितं सर्वं मनसा यद् यदिच्छति॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ रमणीय इन्द्रनगरीमें उसके मनमें जो-जो इच्छाएँ होती हैं, उन सब अभीष्ट वस्तुओंको कल्पवृक्ष देता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावन्ति तस्य पत्राणि पुष्पाणि च फलानि च।
तावद् वर्षसहस्राणि शक्रलोके महीयते॥
मूलम्
यावन्ति तस्य पत्राणि पुष्पाणि च फलानि च।
तावद् वर्षसहस्राणि शक्रलोके महीयते॥
अनुवाद (हिन्दी)
दानमें दिये हुए उस वृक्षके जितने पत्ते, फूल और फल होते हैं, उतने ही हजार वर्षोंतक वह इन्द्रलोकमें महिमा पाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शक्रलोकावतीर्णश्च मानुष्यं लोकमागतः ।
रथाश्वगजसम्पूर्णं पुरं राज्यं च रक्षति॥
मूलम्
शक्रलोकावतीर्णश्च मानुष्यं लोकमागतः ।
रथाश्वगजसम्पूर्णं पुरं राज्यं च रक्षति॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन्द्रलोकसे उतरकर जब वह मनुष्यलोकमें आता है, तब रथ, घोड़े और हाथियोंसे पूर्ण नगरके राज्यकी रक्षा करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थापयित्वा तु मद्भक्त्या यो मत्प्रतिकृतिं नरः।
आलयं विधिवत् कृत्वा पूजाकर्म च कारयेत्।
स्वयं वा पूजयेद् भक्त्या तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
स्थापयित्वा तु मद्भक्त्या यो मत्प्रतिकृतिं नरः।
आलयं विधिवत् कृत्वा पूजाकर्म च कारयेत्।
स्वयं वा पूजयेद् भक्त्या तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पुरुष भक्तिपूर्वक मन्दिर बनवाकर उसमें मेरी प्रतिमाकी विधिपूर्वक स्थापना करता है और दूसरेसे उसकी पूजा करवाता है या स्वयं भक्तिके साथ पूजा करता है, उसके पुण्यका फल सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अश्वमेधसहस्रस्य यत् पुण्यं समुदाहृतम्।
तत् फलं समवाप्नोति मत्सालोक्यं प्रपद्यते।
न जाने निर्गंम तस्य मम लोकाद् युधिष्ठिर॥
मूलम्
अश्वमेधसहस्रस्य यत् पुण्यं समुदाहृतम्।
तत् फलं समवाप्नोति मत्सालोक्यं प्रपद्यते।
न जाने निर्गंम तस्य मम लोकाद् युधिष्ठिर॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक हजार अश्वमेधयज्ञका जो पुण्य बताया गया है, उस फलको पाकर वह मेरे परमधामको पधारता है। युधिष्ठिर! मैं जानता हूँ, वह वहाँसे कभी लौटकर इस लोकमें नहीं आता॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवालये विप्रगृहे गोवाटे चत्वरेऽपि वा।
प्रज्वालयति यो दीपं तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
देवालये विप्रगृहे गोवाटे चत्वरेऽपि वा।
प्रज्वालयति यो दीपं तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य देवमन्दिरमें, ब्राह्मणके घरमें, गोशालामें और चौराहेपर दीपक जलाता है, उसके पुण्यफलको सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आरुह्य काञ्चनं यानं द्योतयन् सर्वतो दिशम्।
गच्छेदादित्यलोकं स सेव्यमानः सुरोत्तमैः॥
मूलम्
आरुह्य काञ्चनं यानं द्योतयन् सर्वतो दिशम्।
गच्छेदादित्यलोकं स सेव्यमानः सुरोत्तमैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह सुवर्णमय विमानपर बैठकर सम्पूर्ण दिशाओंको देदीप्यमान करता हुआ सूर्यलोकको जाता है, उस समय श्रेष्ठ देवता उसकी सेवामें उपस्थित रहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र प्रकामं क्रीडित्वा वर्षकोटिं महातपाः।
इह लोके भवेद् विप्रो वेदवेदाङ्गपारगः॥
मूलम्
तत्र प्रकामं क्रीडित्वा वर्षकोटिं महातपाः।
इह लोके भवेद् विप्रो वेदवेदाङ्गपारगः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह महातपस्वी पुरुष करोड़ों वर्षोंतक सूर्यलोकमें यथेष्ट विहार करनेके पश्चात् मर्त्यलोकमें आकर वेद-वेदांगोंमें पारंगत ब्राह्मण होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
करकां कर्णिकां वापि महद् वा जलभाजनम्।
यः प्रयच्छति विप्राय तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
करकां कर्णिकां वापि महद् वा जलभाजनम्।
यः प्रयच्छति विप्राय तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य ब्राह्मणको करका (कमण्डलु), कर्णिका (गिलास) अथवा महान् जलपात्र दान करता है, उसका पुण्यफल सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्रह्मकूर्चे तु यत् पीते फलं प्रोक्तं नराधिप।
तत् पुण्यफलमाप्नोति जलभाजनदो नरः॥
सुतृप्तः सर्वसौगन्धः प्रहृष्टेन्द्रियमानसः ॥
मूलम्
ब्रह्मकूर्चे तु यत् पीते फलं प्रोक्तं नराधिप।
तत् पुण्यफलमाप्नोति जलभाजनदो नरः॥
सुतृप्तः सर्वसौगन्धः प्रहृष्टेन्द्रियमानसः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनेश्वर! पञ्चगव्य पीनेवाले मनुष्यके लिये जो फल बताया गया है, उस फलको वह जलपात्र दान करनेवाला मनुष्य पाता है। वह सदा तृप्त रहता है। उसे सब प्रकारके सुगन्धित पदार्थ सुलभ होते हैं तथा उसकी इन्द्रियाँ और मन सदा प्रसन्न रहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हंससारसयुक्तेन विमानेन विराजता ।
स याति वारुणं लोकं दिव्यगन्धर्वसेवितम्॥
मूलम्
हंससारसयुक्तेन विमानेन विराजता ।
स याति वारुणं लोकं दिव्यगन्धर्वसेवितम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
इतना ही नहीं, वह हंस और सारसोंसे जुते हुए सुन्दर विमानपर बैठकर दिव्य गन्धर्वोंसे सेवित वरुणलोकमें जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पानीयं यः प्रयच्छेद् वै जीवानां जीवनं परम्।
ग्रीष्मे च त्रिषु मासेषु तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
पानीयं यः प्रयच्छेद् वै जीवानां जीवनं परम्।
ग्रीष्मे च त्रिषु मासेषु तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो गर्मीके तीन महीनोंमें जीवोंके जीवनभूत जलका दान करता है, उसके पुण्यका फल सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पूर्णचन्द्रप्रकाशेन विमानेन विराजता ।
स गच्छेदिन्द्रभवनं सेव्यमानोऽप्सरोगणैः ॥
मूलम्
पूर्णचन्द्रप्रकाशेन विमानेन विराजता ।
स गच्छेदिन्द्रभवनं सेव्यमानोऽप्सरोगणैः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह पूर्ण चन्द्रमाके समान प्रकाशमान सुन्दर विमानपर आरूढ़ होकर अप्सरागणोंसे सेवित हुआ इन्द्रभवनकी यात्रा करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिरोऽभ्यङ्गप्रदानेन तेजस्वी प्रियदर्शनः ।
सुभगो रूपवान् शूरः पण्डितश्च भवेद् द्विजः॥
मूलम्
शिरोऽभ्यङ्गप्रदानेन तेजस्वी प्रियदर्शनः ।
सुभगो रूपवान् शूरः पण्डितश्च भवेद् द्विजः॥
अनुवाद (हिन्दी)
सिरमें लगानेके लिये तेल-दान करनेसे मनुष्य तेजस्वी, दर्शनीय, सुन्दर, रूपवान्, शूरवीर और पण्डित ब्राह्मण होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वस्त्रदायी तु तेजस्वी सर्वत्र प्रियदर्शनः।
सुभगो भवति श्रीमान् स्त्रीणां नित्यं मनोरमः॥
मूलम्
वस्त्रदायी तु तेजस्वी सर्वत्र प्रियदर्शनः।
सुभगो भवति श्रीमान् स्त्रीणां नित्यं मनोरमः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वस्त्र-दान करनेवाला पुरुष भी तेजस्वी, दर्शनीय, सुन्दर, श्रीसम्पन्न और सदा स्त्रियोंके लिये मनोरम होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उपानहौ च छत्रं च यो ददाति नरोत्तमः।
स याति रथमुख्येन काञ्चनेन विराजता।
शक्रलोकं महातेजाः सेव्यमानोऽप्सरोगणैः ॥
मूलम्
उपानहौ च छत्रं च यो ददाति नरोत्तमः।
स याति रथमुख्येन काञ्चनेन विराजता।
शक्रलोकं महातेजाः सेव्यमानोऽप्सरोगणैः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो उत्तम पुरुष जूता और छाता दान करता है, वह महान् तेजसे सम्पन्न हो सोनेके बने हुए सुन्दर रथपर बैठकर अप्सरागणोंसे सेवित हुआ इन्द्रलोकमें जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
काष्ठपादुकदा यान्ति विमानैर्वृक्षनिर्मितैः ।
धर्मराजपुरं रम्यं सेव्यमानाः सुरोत्तमैः॥
मूलम्
काष्ठपादुकदा यान्ति विमानैर्वृक्षनिर्मितैः ।
धर्मराजपुरं रम्यं सेव्यमानाः सुरोत्तमैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो काठकी खड़ाऊँ दान करते हैं, वे काष्ठनिर्मित विमानोंपर आरूढ़ होकर श्रेष्ठ देवताओंसे सेवित हो धर्मराजके रमणीय नगरमें प्रवेश करते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दन्तकाष्ठप्रदानेन प्रियवाक्यो भवेन्नरः ।
सुगन्धवदनः श्रीमान् मेधासौभाग्यसंयुतः ॥
मूलम्
दन्तकाष्ठप्रदानेन प्रियवाक्यो भवेन्नरः ।
सुगन्धवदनः श्रीमान् मेधासौभाग्यसंयुतः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दातौनका दान करनेसे मनुष्य मधुरभाषी होता है। उसके मुँहसे सुगन्ध निकलती रहती है तथा वह लक्ष्मीवान् एवं बुद्धि और सौभाग्यसे सम्पन्न होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनन्तराशी यश्चापि वर्तते व्रतवत् सदा।
सत्यवाक्क्रोधरहितः शुचिः स्नानरतः सदा।
स विमानेन दिव्येन याति शक्रपुरं नरः॥
मूलम्
अनन्तराशी यश्चापि वर्तते व्रतवत् सदा।
सत्यवाक्क्रोधरहितः शुचिः स्नानरतः सदा।
स विमानेन दिव्येन याति शक्रपुरं नरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य अतिथि और कुटुम्बीजनोंको भोजन करा लेनेके पश्चात् स्वयं भोजन करता है, सदा व्रतका पालन करता है, सत्य बोलता है, क्रोधसे दूर रहता है तथा स्नान आदिके द्वारा सर्वदा पवित्र रहता है, वह दिव्य विमानके द्वारा इन्द्रलोककी यात्रा करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एकभूक्तेन यश्चापि वर्षमेकं तु वर्तते।
ब्रह्मचारी जितक्रोधः सत्यशौचसमन्वितः ।
स विमानेन दिव्येन याति शक्रपुरं नरः॥
मूलम्
एकभूक्तेन यश्चापि वर्षमेकं तु वर्तते।
ब्रह्मचारी जितक्रोधः सत्यशौचसमन्वितः ।
स विमानेन दिव्येन याति शक्रपुरं नरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो एक वर्षतक प्रतिदिन एक वक्त भोजन करता है, ब्रह्मचर्यका पालन करता है, क्रोधको काबूमें रखता है तथा सत्य और शौचका पालन करता है, वह दिव्य विमानमें बैठकर इन्द्रलोकमें पदार्पण करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चतुर्थकाले यो भुङ्क्ते ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः।
वर्तते चैकवर्षं तु तस्य पुण्यफलं शृणु॥
मूलम्
चतुर्थकाले यो भुङ्क्ते ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः।
वर्तते चैकवर्षं तु तस्य पुण्यफलं शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो एक वर्षतक चौथे वक्त अर्थात् प्रति दूसरे दिन भोजन करता है, ब्रह्मचर्यका पालन करता है और इन्द्रियोंको काबूमें रखता है, उसके पुण्यका फल सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चित्रबर्हिणयुक्तेन विचित्रध्वजशोभिना ।
याति यानेन दिव्येन स महेन्द्रपुरं नरः॥
मूलम्
चित्रबर्हिणयुक्तेन विचित्रध्वजशोभिना ।
याति यानेन दिव्येन स महेन्द्रपुरं नरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह मनुष्य विचित्र पंखवाले मोरोंसे जुते हुए अद्भुत ध्वजसे शोभायमान दिव्य विमानपर आरूढ़ हो महेन्द्रलोकमें गमन करता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निवेशयति मन्मूर्त्यामात्मानं मद््गतः शुचिः।
रुद्रदक्षिणमूर्त्यां वा चतुर्दश्यां विशेषतः॥
सिद्धैर्ब्रह्मर्षिभिश्चैव देवलोकैश्च पूजितः ।
गन्धर्वैर्भूतसङ््घैश्च गीयमानो महातपाः ॥
प्रविशेत् स महातेजा मां वा शङ्करमेव वा।
न स्यात् पुनर्भवो राजन् नात्र कार्या विचारणा॥
मूलम्
निवेशयति मन्मूर्त्यामात्मानं मद््गतः शुचिः।
रुद्रदक्षिणमूर्त्यां वा चतुर्दश्यां विशेषतः॥
सिद्धैर्ब्रह्मर्षिभिश्चैव देवलोकैश्च पूजितः ।
गन्धर्वैर्भूतसङ््घैश्च गीयमानो महातपाः ॥
प्रविशेत् स महातेजा मां वा शङ्करमेव वा।
न स्यात् पुनर्भवो राजन् नात्र कार्या विचारणा॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जो मनुष्य पवित्र और मेरे परायण होकर मेरे श्रीविग्रहमें मन लगाता (मेरा ध्यान करता) है तथा विशेषतः चतुर्दशीके दिन रुद्र अथवा दक्षिणामूर्तिमें चित्त एकाग्र करता है, वह महान् तपस्वी पुरुष सिद्धों, ब्रह्मर्षियों और देवताओंसे पूजित होकर गन्धर्वों और भूतोंका गान सुनता हुआ मुझमें या शंकरमें प्रवेश कर जाता है तथा उसका इस संसारमें फिर जन्म नहीं होता—इसमें कोई विचारकी बात नहीं है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोकृते स्त्रीकृते चैव गुरुविप्रकृतेऽपि वा।
हन्यन्ते ये तु राजेन्द्र शक्रलोकं व्रजन्ति ते॥
मूलम्
गोकृते स्त्रीकृते चैव गुरुविप्रकृतेऽपि वा।
हन्यन्ते ये तु राजेन्द्र शक्रलोकं व्रजन्ति ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! जो मनुष्य गौ, स्त्री, गुरु और ब्राह्मणकी रक्षाके लिये प्राण दे डालते हैं, वे इन्द्रलोकमें जाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र जाम्बूनदमये विमाने कामगामिनि।
मन्वन्तरं प्रमोदन्ते दिव्यनारीनिषेविताः ॥
मूलम्
तत्र जाम्बूनदमये विमाने कामगामिनि।
मन्वन्तरं प्रमोदन्ते दिव्यनारीनिषेविताः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ इच्छानुसार विचरनेवाले सुवर्णके बने हुए विमानपर रहकर दिव्य नारियोंसे सेवित हुए एक मन्वन्तरतक आनन्दका अनुभव करते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आश्रुतस्य प्रदानेन दत्तस्य हरणेन च।
जन्मप्रभृति यद दत्तं तत् सर्वं तु विनश्यति॥
मूलम्
आश्रुतस्य प्रदानेन दत्तस्य हरणेन च।
जन्मप्रभृति यद दत्तं तत् सर्वं तु विनश्यति॥
अनुवाद (हिन्दी)
देनेकी प्रतिज्ञा की हुई वस्तुको न देनेसे अथवा दी हुई वस्तुको छीन लेनेसे जन्मभरका किया हुआ सारा दान-पुण्य नष्ट हो जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यद् यदिष्टतमं द्रव्यं न्यायेनोपार्जितं च यत्।
तत् तद् गुणवते देयं तदेवाक्षय्यमिच्छता॥
मूलम्
यद् यदिष्टतमं द्रव्यं न्यायेनोपार्जितं च यत्।
तत् तद् गुणवते देयं तदेवाक्षय्यमिच्छता॥
अनुवाद (हिन्दी)
अक्षय सुख चाहनेवाले मनुष्यको चाहिये कि जो-जो न्यायसे उपार्जित किया हुआ अत्यन्त अभीष्ट द्रव्य है, वह-वह गुणवान् ब्राह्मणको दानमें दे॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)