००७

मूलम् (समाप्तिः)

[भूमि-दान, तिल-दान और उत्तम ब्राह्मणकी महिमा]

मूलम् (वचनम्)

श्रीभगवानुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अतः परं प्रवक्ष्यामि भूमिदानमनुत्तमम्॥
यः प्रयच्छति विप्राय भूमिं रम्यां सदक्षिणाम्।
श्रोत्रियाय दरिद्राय साग्निहोत्राय पाण्डव॥
स सर्वकामतृप्तात्मा सर्वरत्नविभूषितः ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो दीप्यमानोऽर्कवत् तदा ॥

मूलम्

अतः परं प्रवक्ष्यामि भूमिदानमनुत्तमम्॥
यः प्रयच्छति विप्राय भूमिं रम्यां सदक्षिणाम्।
श्रोत्रियाय दरिद्राय साग्निहोत्राय पाण्डव॥
स सर्वकामतृप्तात्मा सर्वरत्नविभूषितः ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो दीप्यमानोऽर्कवत् तदा ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभगवान्‌ने कहा— पाण्डुनन्दन! अब मैं सबसे उत्तम भूमिदानका वर्णन करता हूँ। जो मनुष्य रमणीय भूमिका दक्षिणाके साथ श्रोत्रिय अग्निहोत्री दरिद्र ब्राह्मणको दान देता है, वह उस समय सभी भोगोंसे तृप्त, सम्पूर्ण रत्नोंसे विभूषित एवं सब पापोंसे मुक्त हो सूर्यके समान देदीप्यमान होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बालसूर्यप्रकाशेन विचित्रध्वजशोभिना ।
याति यानेन दिव्येन मम लोकं महायशाः॥

मूलम्

बालसूर्यप्रकाशेन विचित्रध्वजशोभिना ।
याति यानेन दिव्येन मम लोकं महायशाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह महायशस्वी पुरुष प्रातःकालीन सूर्यके समान प्रकाशित, विचित्र ध्वजाओंसे सुशोभित दिव्य विमानके द्वारा मेरे लोकमें जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न हि भूमिप्रदानाद् वै दानमन्यद् विशिष्यते।
न चापि भूमिहरणात् पापमन्यद् विशिष्यते॥

मूलम्

न हि भूमिप्रदानाद् वै दानमन्यद् विशिष्यते।
न चापि भूमिहरणात् पापमन्यद् विशिष्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्योंकि भूमिदानसे बढ़कर दूसरा कोई दान नहीं है और भूमि छीन लेनेसे बढ़कर दूसरा कोई पाप नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दानान्यन्यानि हीयन्ते कालेन कुरुपुङ्गव।
भूमिदानस्य पुण्यस्य क्षयो नैवोपपद्यते॥

मूलम्

दानान्यन्यानि हीयन्ते कालेन कुरुपुङ्गव।
भूमिदानस्य पुण्यस्य क्षयो नैवोपपद्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुश्रेष्ठ! दूसरे दानोंके पुण्य समय पाकर क्षीण हो जाते हैं, किंतु भूमिदानके पुण्यका कभी भी क्षय नहीं होता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुवर्णमणिरत्नानि धनानि च वसूनि च।
सर्वदानानि वै राजन् ददाति वसुधां ददत्॥

मूलम्

सुवर्णमणिरत्नानि धनानि च वसूनि च।
सर्वदानानि वै राजन् ददाति वसुधां ददत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! पृथ्वीका दान करनेवाला मानो सुवर्ण, मणि, रत्न, धन और लक्ष्मी आदि समस्त पदार्थोंका दान करता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सागरान् सरितः शैलान् समानि विषमाणि च।
सर्वगन्धरसांश्चैव ददाति वसुधां ददत्॥

मूलम्

सागरान् सरितः शैलान् समानि विषमाणि च।
सर्वगन्धरसांश्चैव ददाति वसुधां ददत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

भूमि-दान करनेवाला मनुष्य मानो समस्त समुद्रोंको, सरिताओंको, पर्वतोंको, सम-विषम प्रदेशोंको, सम्पूर्ण गन्ध और रसोंको देता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ओषधीः फलसम्पन्ना नानापुष्पसमन्विताः ।
कमलोत्पलषण्डांश्च ददाति वसुधां ददत्॥

मूलम्

ओषधीः फलसम्पन्ना नानापुष्पसमन्विताः ।
कमलोत्पलषण्डांश्च ददाति वसुधां ददत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

पृथ्वीका दान करनेवाला मनुष्य मानो नाना प्रकारके पुष्पों और फलोंसे युक्त वृक्षोंका तथा कमल और उत्पलोंके समूहोंका दान करता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अग्निष्टोमादिभिर्यज्ञैर्ये यजन्ते सदक्षिणैः ।
न तत् फलं लभन्ते ते भूमिदानस्य यत् फलम्॥

मूलम्

अग्निष्टोमादिभिर्यज्ञैर्ये यजन्ते सदक्षिणैः ।
न तत् फलं लभन्ते ते भूमिदानस्य यत् फलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग दक्षिणासे युक्त अग्निष्टोम आदि यज्ञोंके द्वारा देवताओंका यजन करते हैं, वे भी उस फलको नहीं पाते, जो भूमि-दानका फल है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सस्यपूर्णां महीं यस्तु श्रोत्रियाय प्रयच्छति।
पितरस्तस्य तृप्यन्ति यावदाभूतसम्प्लवम् ॥

मूलम्

सस्यपूर्णां महीं यस्तु श्रोत्रियाय प्रयच्छति।
पितरस्तस्य तृप्यन्ति यावदाभूतसम्प्लवम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मनुष्य श्रोत्रिय ब्राह्मणको धानसे भरे हुए खेतकी भूमि दान करता है, उसके पितर महाप्रलयकालतक तृप्त रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मम रुद्रस्य सवितुस्त्रिदशानां तथैव च।
प्रीतये विद्धि राजेन्द्र भूमिर्दत्ता द्विजाय वै॥

मूलम्

मम रुद्रस्य सवितुस्त्रिदशानां तथैव च।
प्रीतये विद्धि राजेन्द्र भूमिर्दत्ता द्विजाय वै॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! ब्राह्मणको भूमि-दान करनेसे सब देवता, सूर्य, शंकर और मैं—ये सभी प्रसन्न होते हैं ऐसा समझो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेन पुण्येन पूतात्मा दाता भूमेर्युधिष्ठिर।
मम सालोक्यमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥

मूलम्

तेन पुण्येन पूतात्मा दाता भूमेर्युधिष्ठिर।
मम सालोक्यमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिर! भूमि-दानके पुण्यसे पवित्रचित्त हुआ दाता मेरे परम धाममें निवास करता है—इसमें विचार करनेकी कोई बात नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्किंचित् कुरुते पापं पुरुषो वृत्तिकर्शितः।
स च गोकर्णमात्रेण भूमिदानेन शुद्ध्यति॥

मूलम्

यत्किंचित् कुरुते पापं पुरुषो वृत्तिकर्शितः।
स च गोकर्णमात्रेण भूमिदानेन शुद्ध्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्य जीविकाके अभावमें जो कुछ पाप करता है, उससे गोकर्णमात्र भूमि-दान करनेपर भी छुटकारा पा जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मासोपवासे यत् पुण्यं कृच्छ्रे चान्द्रायणेऽपि च।
भूमिगोकर्णमात्रेण तत् पुण्यं तु विधीयते॥

मूलम्

मासोपवासे यत् पुण्यं कृच्छ्रे चान्द्रायणेऽपि च।
भूमिगोकर्णमात्रेण तत् पुण्यं तु विधीयते॥

अनुवाद (हिन्दी)

एक महीनेतक उपवास, कृच्छ्र और चान्द्रायण-व्रतका अनुष्ठान करनेसे जो पुण्य होता है, वह गोकर्णमात्र भूमि-दान करनेसे हो जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वतीर्थाभिषेके च यत् पुण्यं समुदाहृतम्।
भूमिगोकर्णमात्रेण तत् पुण्यं तु विधीयते॥

मूलम्

सर्वतीर्थाभिषेके च यत् पुण्यं समुदाहृतम्।
भूमिगोकर्णमात्रेण तत् पुण्यं तु विधीयते॥

अनुवाद (हिन्दी)

सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान करनेसे जो पुण्य होता है, वह सारा पुण्य गोकर्णमात्र भूमिका दान करनेसे प्राप्त हो जाता है॥

मूलम् (वचनम्)

युधिष्ठिर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

देवदेव नमस्तेऽस्तु वासुदेव सुरेश्वर।
गोकर्णस्य प्रमाणं वै वक्तुमर्हसि तत्त्वतः॥

मूलम्

देवदेव नमस्तेऽस्तु वासुदेव सुरेश्वर।
गोकर्णस्य प्रमाणं वै वक्तुमर्हसि तत्त्वतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिरने कहा— देवेश्वर कृष्ण! आपको नमस्कार है। सुरेश्वर! मुझे गोकर्णमात्र भूमिका ठीक-ठीक माप बतलानेकी कृपा कीजिये॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीभगवानुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणु गोकर्णमात्रस्य प्रमाणं पाण्डुनन्दन।
त्रिंशद्दण्डप्रमाणेन प्रमितं सर्वतो दिशम्॥
प्रत्यक् प्रागपि राजेन्द्र तत् तथा दक्षिणोत्तरम्।
गोकर्णं तद्विदः प्राहुः प्रमाणं धरणेर्नृप॥

मूलम्

शृणु गोकर्णमात्रस्य प्रमाणं पाण्डुनन्दन।
त्रिंशद्दण्डप्रमाणेन प्रमितं सर्वतो दिशम्॥
प्रत्यक् प्रागपि राजेन्द्र तत् तथा दक्षिणोत्तरम्।
गोकर्णं तद्विदः प्राहुः प्रमाणं धरणेर्नृप॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभगवान् बोले— नृपश्रेष्ठ पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर! गोकर्णमात्र भूमिका प्रमाण सुनो। पूर्वसे पश्चिम और उत्तरसे दक्षिण चारों ओर तीस-तीस दण्ड1 नापनेसे जितनी भूमि होती है, उसको भूमिके तत्त्वको जाननेवाले पुरुष गोकर्णमात्र भूमिका माप बताते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सवृषं गोशतं यत्र सुख तिष्ठत्ययन्त्रितम्।
सवत्सं कुरुशार्दूल तच्च गोकर्णमुच्यते॥

मूलम्

सवृषं गोशतं यत्र सुख तिष्ठत्ययन्त्रितम्।
सवत्सं कुरुशार्दूल तच्च गोकर्णमुच्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुश्रेष्ठ! जितनी भूमिमें खुली हुई सौ गौएँ बैलों और बछड़ोंके साथ सुखपूर्वक रह सकें, उतनी भूमिको भी गोकर्ण कहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किंकरा मृत्युदण्डाश्च कुम्भीपाकाश्च दारुणाः।
घोराश्च वारुणाः पाशा नोपसर्पन्ति भूमिदम्॥
निरया रौरवाद्याश्च तथा वैतरणी नदी।
तीव्राश्च यातनाः कष्टा नोपसर्पन्ति भूमिदम्॥

मूलम्

किंकरा मृत्युदण्डाश्च कुम्भीपाकाश्च दारुणाः।
घोराश्च वारुणाः पाशा नोपसर्पन्ति भूमिदम्॥
निरया रौरवाद्याश्च तथा वैतरणी नदी।
तीव्राश्च यातनाः कष्टा नोपसर्पन्ति भूमिदम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

भूमिका दान करनेवाले पुरुषके पास यमराजके दूत नहीं फटकने पाते। मृत्युके दण्ड, दारुण कुम्भीपाक, भयानक वरुणपाश, रौरव आदि नरक, वैतरणी नदी और कठोर यम-यातनाएँ भी भूमिदान करनेवालोंको नहीं सतातीं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रगुप्तः कलिः कालः कृतान्तो मृत्युरेव च।
यमश्च भगवान् साक्षात् पूजयन्ति महीप्रदम्॥

मूलम्

चित्रगुप्तः कलिः कालः कृतान्तो मृत्युरेव च।
यमश्च भगवान् साक्षात् पूजयन्ति महीप्रदम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

चित्रगुप्त, कलि, काल, कृतान्त मृत्यु और साक्षात् भगवान् यम भी भूमिदान करनेवालेका आदर करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रुद्रः प्रजापतिः शक्रः सुरा ऋषिगणास्तथा।
अहं च प्रीतिमान् राजन् पूजयामो महीप्रदम्॥

मूलम्

रुद्रः प्रजापतिः शक्रः सुरा ऋषिगणास्तथा।
अहं च प्रीतिमान् राजन् पूजयामो महीप्रदम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! रुद्र, प्रजापति, इन्द्र, देवता, ऋषिगण और स्वयं मैं—ये सभी प्रसन्न होकर भूमिदाताका आदर करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृशभृत्यस्य कृशगोः कृशाश्वस्य कृतातिथेः।
भूमिर्देया नरश्रेष्ठ स निधिः पारलौकिकः॥

मूलम्

कृशभृत्यस्य कृशगोः कृशाश्वस्य कृतातिथेः।
भूमिर्देया नरश्रेष्ठ स निधिः पारलौकिकः॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ! जिसके कुटुम्बके लोग जीविकाके अभावसे दुर्बल हो गये हों, जिसकी गौएँ और घोड़े भी दुबले-पतले दिखायी देते हों तथा जो सदा अतिथि-सत्कार करनेवाला हो, ऐसे ब्राह्मणको भूमि-दान देना चाहिये; क्योंकि वह परलोकके लिये खजाना है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सीदमानकुटुम्बाय श्रोत्रियायाग्निहोत्रिणे ।
व्रतस्थाय दरिद्राय भूमिर्देया नराधिप॥

मूलम्

सीदमानकुटुम्बाय श्रोत्रियायाग्निहोत्रिणे ।
व्रतस्थाय दरिद्राय भूमिर्देया नराधिप॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! जिसके कुटुम्बीजन कष्ट पा रहे हों—ऐसे श्रोत्रिय, अग्निहोत्री, व्रतधारी एवं दरिद्र ब्राह्मणको भूमि देनी चाहिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा हि धात्री क्षीरेण पुत्रं वर्धयति स्वयम्।
दातारमनुगृह्णाति दत्ता ह्येवं वसुन्धरा॥

मूलम्

यथा हि धात्री क्षीरेण पुत्रं वर्धयति स्वयम्।
दातारमनुगृह्णाति दत्ता ह्येवं वसुन्धरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे धाय अपना दूध पिलाकर पुत्रका पालन-पोषण करती है, उसी प्रकार दानमें दी हुई भूमि दातापर अनुग्रह करती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा बिभर्ति गौर्वत्सं सृजन्ती क्षीरमात्मनः।
तथा सर्वगुणोपेता भूमिर्वहति भूमिदम्॥

मूलम्

यथा बिभर्ति गौर्वत्सं सृजन्ती क्षीरमात्मनः।
तथा सर्वगुणोपेता भूमिर्वहति भूमिदम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे गौ अपना दूध पिलाकर बछड़ेका पालन करती है, वैसे ही सर्वगुणसम्पन्न भूमि अपने दाताका कल्याण करती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा बीजानि रोहन्ति जलसिक्तानि भूपते।
तथा कामाः प्ररोहन्ति भूमिदस्य दिने दिने॥

मूलम्

यथा बीजानि रोहन्ति जलसिक्तानि भूपते।
तथा कामाः प्ररोहन्ति भूमिदस्य दिने दिने॥

अनुवाद (हिन्दी)

भूपाल! जिस प्रकार जलसे सींचे हुए बीज अंकुरित होते हैं, वैसे ही भूमिदाताके मनोरथ प्रतिदिन पूर्ण होते रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा तेजस्तु सूर्यस्य तमः सर्वं व्यपोहति।
तथा पापं नरस्येह भूमिदानं व्यपोहति॥

मूलम्

यथा तेजस्तु सूर्यस्य तमः सर्वं व्यपोहति।
तथा पापं नरस्येह भूमिदानं व्यपोहति॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे सूर्यका तेज समस्त अन्धकारको दूर कर देता है, उसी प्रकार यहाँ भूमि-दान मनुष्यके सम्पूर्ण पापोंका नाश कर डालता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आश्रुत्य भूमिदानं तु दत्त्वा यो वा हरेत् पुनः।
स बद्धो वारुणैः पाशैः क्षिप्यते पूयशोणिते॥

मूलम्

आश्रुत्य भूमिदानं तु दत्त्वा यो वा हरेत् पुनः।
स बद्धो वारुणैः पाशैः क्षिप्यते पूयशोणिते॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुश्रेष्ठ! जो भूमि-दानकी प्रतिज्ञा करके नहीं देता अथवा देकर फिर छीन लेता है, उसे वरुणके पाशसे बाँधकर पीब और रक्तसे भरे हुए नरक-कुण्डमें डाला जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धराम्।
न तस्य नरकाद्‌ घोराद् विद्यते निष्कृतिः क्वचित्॥

मूलम्

स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धराम्।
न तस्य नरकाद्‌ घोराद् विद्यते निष्कृतिः क्वचित्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो अपने या दूसरेकी दी हुई भूमिका अपहरण करता है, उसके लिये नरकसे उद्धार पानेका कोई उपाय नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दत्त्वा भूमिं द्विजेन्द्राणां यस्तामेवोपजीवति।
स मूढो याति दुष्टात्मा नरकानेकविंशतिम्।
नरकेभ्यो विनिर्मुक्तः शुनां योनिं स गच्छति॥

मूलम्

दत्त्वा भूमिं द्विजेन्द्राणां यस्तामेवोपजीवति।
स मूढो याति दुष्टात्मा नरकानेकविंशतिम्।
नरकेभ्यो विनिर्मुक्तः शुनां योनिं स गच्छति॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको भूमिका दान करके उसीसे अपनी जीविका चलाता है, वह दुष्टात्मा मूर्ख इक्कीस नरकोंमें गिरता है। फिर नरकोंसे निकलकर कुत्तोंकी योनिको प्राप्त होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हलकृष्टा मही देया सबीजा सस्यमालिनी।
अथवा सोदका देया दरिद्राय द्विजातये॥

मूलम्

हलकृष्टा मही देया सबीजा सस्यमालिनी।
अथवा सोदका देया दरिद्राय द्विजातये॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसमें हलसे जोतकर बीज बो दिये गये हों तथा जहाँ हरी-भरी खेती लहलहा रही हो, ऐसी भूमि दरिद्र ब्राह्मणको देनी चाहिये अथवा जहाँ जलका सुभीता हो, वह भूमि दानमें देनी चाहिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं दत्ता मही राजन् प्रहृष्टेनान्तरात्मना।
सर्वान् कामानवाप्नोति मनसा चिन्तितानि च॥

मूलम्

एवं दत्ता मही राजन् प्रहृष्टेनान्तरात्मना।
सर्वान् कामानवाप्नोति मनसा चिन्तितानि च॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इस प्रकार प्रसन्नचित्त होकर मनुष्य यदि पृथ्वीका दान करे तो वह सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओंको प्राप्त करता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बहुभिर्वसुधा दत्ता दीयते च नराधिपैः।
यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम्॥

मूलम्

बहुभिर्वसुधा दत्ता दीयते च नराधिपैः।
यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

बहुत-से राजाओंने इस पृथ्वीको दानमें दिया है और बहुत-से अभी दे रहे हैं। यह भूमि जब जिसके अधिकारमें रहती है, उस समय वही उसे दानमें देता है और उसके फलका भागी होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यश्च रूप्यं प्रयच्छेद् वै दरिद्राय द्विजातये।
कृशवृत्तेः कृशगवे स मुक्तः सर्वकिल्बिषैः॥
पूर्णचन्द्रप्रकाशेन विमानेन विराजता ।
कामरूपी यथाकामं स्वर्गलोके महीयते॥

मूलम्

यश्च रूप्यं प्रयच्छेद् वै दरिद्राय द्विजातये।
कृशवृत्तेः कृशगवे स मुक्तः सर्वकिल्बिषैः॥
पूर्णचन्द्रप्रकाशेन विमानेन विराजता ।
कामरूपी यथाकामं स्वर्गलोके महीयते॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसकी जीविका क्षीण और गौएँ दुर्बल हो गयी हैं, ऐसे दरिद्र ब्राह्मणको जो चाँदी दान करता है, वह सब पापोंसे छूटकर और सुन्दर रूप धारण करके पूर्णिमाके चन्द्रमाके प्रकाशके समान प्रकाशित विमानके द्वारा इच्छानुसार स्वर्गलोकमें महिमान्वित होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽवतीर्णः कालेन लोके चास्मिन्‌ महायशाः।
सर्वलोकार्चितः श्रीमान् राजा भवति वीर्यवान्॥

मूलम्

ततोऽवतीर्णः कालेन लोके चास्मिन्‌ महायशाः।
सर्वलोकार्चितः श्रीमान् राजा भवति वीर्यवान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर पुण्यका क्षय होनेपर समयानुसार वहाँसे उतरकर इस लोकमें सम्पूर्ण लोगोंसे पूजित, धनवान्, महायशस्वी और महापराक्रमी राजा होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिलपर्वतकं यस्तु श्रोत्रियाय प्रयच्छति।
विशेषेण दरिद्राय तस्यापि शृणु यत् फलम्॥

मूलम्

तिलपर्वतकं यस्तु श्रोत्रियाय प्रयच्छति।
विशेषेण दरिद्राय तस्यापि शृणु यत् फलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो श्रोत्रिय ब्राह्मणको—विशेषतः दरिद्रको तिलका पर्वत दान करता है, उसको जो फल मिलता है; वह सुनो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुण्यं वृषायुतोत्सर्गे यत् प्रोक्तं पाण्डुनन्दन।
तत् पुण्यं समनुप्राप्य तत्क्षणाद् विरजा भवेत्॥

मूलम्

पुण्यं वृषायुतोत्सर्गे यत् प्रोक्तं पाण्डुनन्दन।
तत् पुण्यं समनुप्राप्य तत्क्षणाद् विरजा भवेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डुनन्दन! दस हजार वृषोत्सर्गका जो पुण्यफल कहा गया है, उस पुण्यको वह प्राप्त करके तत्काल निष्पाप हो जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा त्वचं भुजङ्गो वै त्यक्त्वा शुद्धतनुर्भवेत्।
तथा तिलप्रदानाद् वै पापं त्यक्त्वा विशुद्ध्यति॥

मूलम्

यथा त्वचं भुजङ्गो वै त्यक्त्वा शुद्धतनुर्भवेत्।
तथा तिलप्रदानाद् वै पापं त्यक्त्वा विशुद्ध्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे साँप केंचुलको छोड़कर शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार तिल-दान करनेवाला मनुष्य पापोंसे मुक्त हो शुद्ध हो जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिलषण्डं प्रयुञ्चानो जाम्बूनदविभूषितम् ।
विमानं दिव्यमारूढः पितृलोके महीयते॥

मूलम्

तिलषण्डं प्रयुञ्चानो जाम्बूनदविभूषितम् ।
विमानं दिव्यमारूढः पितृलोके महीयते॥

अनुवाद (हिन्दी)

तिलके ढेरका दान करनेवाला स्वर्णभूषित दिव्य विमानपर आरूढ़ हो पितृलोकमें सम्मानित होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

षष्टिं वर्षसहस्राणि कामरूपी महायशाः।
तिलप्रदाता रमते पितृलोके यथासुखम्॥

मूलम्

षष्टिं वर्षसहस्राणि कामरूपी महायशाः।
तिलप्रदाता रमते पितृलोके यथासुखम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह तिलका दान करनेवाला मनुष्य महान् यश और इच्छानुकूल रूप धारण करनेकी शक्ति पाकर साठ हजार वर्षोंतक पितृलोकमें सुख और आनन्द भोगता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिलं गावः सुवर्णं चाप्यन्नं कन्या वसुन्धरा।
तारयन्तीह दत्तानि ब्राह्मणेभ्यो महाभुज॥

मूलम्

तिलं गावः सुवर्णं चाप्यन्नं कन्या वसुन्धरा।
तारयन्तीह दत्तानि ब्राह्मणेभ्यो महाभुज॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबाहो! तिल, गौ, सोना, अन्न, कन्या और पृथ्वी—इतने पदार्थ यदि ब्राह्मणोंको दिये जायँ तो ये दाताका उद्धार कर देते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्राह्मणं वृत्तसम्पन्नमाहिताग्निमलोलुपम् ।
तर्पयेद् विधिवद् राजन् स निधिः पारलौकिकः॥

मूलम्

ब्राह्मणं वृत्तसम्पन्नमाहिताग्निमलोलुपम् ।
तर्पयेद् विधिवद् राजन् स निधिः पारलौकिकः॥

अनुवाद (हिन्दी)

सदाचारसम्पन्न, अग्निहोत्री तथा अलोलुप ब्राह्मणकी विधिवत् पूजा करनी चाहिये; क्योंकि वह परलोकमें काम देनेवाला खजाना है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आहिताग्निं दरिद्रं च श्रोत्रियं च जितेन्द्रियम्।
शूद्रान्नवर्जितं चैव द्विजं यत्नेन पूजयेत्॥

मूलम्

आहिताग्निं दरिद्रं च श्रोत्रियं च जितेन्द्रियम्।
शूद्रान्नवर्जितं चैव द्विजं यत्नेन पूजयेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण वेदका विद्वान्, अग्निहोत्रपरायण, जितेन्द्रिय, शूद्रके अन्नसे दूर रहनेवाला और दरिद्र हो, उसकी यत्नपूर्वक पूजा करनी चाहिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आहिताग्निः सदा पात्रमग्निहोत्री च वेदवित्।
पात्राणामपि तत्पात्रं शूद्रान्नं यस्य नोदरे॥

मूलम्

आहिताग्निः सदा पात्रमग्निहोत्री च वेदवित्।
पात्राणामपि तत्पात्रं शूद्रान्नं यस्य नोदरे॥

अनुवाद (हिन्दी)

नित्य अग्निहोत्र करनेवाला वेदवेत्ता ब्राह्मण दानका सदा पात्र है। जिसके पेटमें शूद्रका अन्न नहीं जाता, वह पात्रोंमें भी उत्तम पात्र है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यच्च वेदमयं पात्रं यच्च पात्रं तपोमयम्।
असंकीर्णं च यत् पात्रं तत् पात्रं तारयिष्यति॥

मूलम्

यच्च वेदमयं पात्रं यच्च पात्रं तपोमयम्।
असंकीर्णं च यत् पात्रं तत् पात्रं तारयिष्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो वेदसम्पन्न पात्र है, जो तपोमय पात्र है और जो किसीका भी भोजन न करनेवाला पात्र है, वह पवित्र पात्र दाताका उद्धार कर देता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नित्यस्वाध्यायनिरतास्त्वसंकीर्णेन्द्रियाश्च ये ।
पञ्चयज्ञपरा नित्यं पूजितास्तारयन्ति ते॥

मूलम्

नित्यस्वाध्यायनिरतास्त्वसंकीर्णेन्द्रियाश्च ये ।
पञ्चयज्ञपरा नित्यं पूजितास्तारयन्ति ते॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण नित्य स्वाध्यायमें संलग्न रहते हैं, जिनकी इन्द्रियाँ वशमें हैं, जो सदा ही पञ्च महायज्ञ करनेमें तत्पर रहते हैं, वे पूजा करनेवालेका उद्धार कर देते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये क्षान्तिदान्ताः श्रुतिपूर्णकर्णा
जितेन्द्रियाः प्राणिवधे निवृत्ताः ।
प्रतिग्रहे संकुचिता गृहस्था-
स्ते ब्राह्मणास्तारयितुं समर्थाः ॥

मूलम्

ये क्षान्तिदान्ताः श्रुतिपूर्णकर्णा
जितेन्द्रियाः प्राणिवधे निवृत्ताः ।
प्रतिग्रहे संकुचिता गृहस्था-
स्ते ब्राह्मणास्तारयितुं समर्थाः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो क्षमाशील, संयतचित्त और जितेन्द्रिय हैं, जिनके कान वेदवाणीसे भरे हुए हैं, जो प्राणियोंकी हत्यासे निवृत्त हो चुके हैं और जिनको दान लेनेमें संकोच होता है, ऐसे गृहस्थ ब्राह्मण दाताका उद्धार करनेमें समर्थ हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नित्योदकी नित्ययज्ञोपवीती
नित्यस्वाध्यायी बृषलान्नवर्जी ।
ऋतौ गच्छन् विधिवच्चापि जुह्वत्
स ब्राह्मणस्तारयितुं समर्थः ॥

मूलम्

नित्योदकी नित्ययज्ञोपवीती
नित्यस्वाध्यायी बृषलान्नवर्जी ।
ऋतौ गच्छन् विधिवच्चापि जुह्वत्
स ब्राह्मणस्तारयितुं समर्थः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन तर्पण करनेवाला, सदा यज्ञोपवीत धारण किये रहनेवाला, नित्यप्रति स्वाध्यायपरायण, शूद्रका अन्न न खानेवाला, ऋतुकालमें ही अपनी स्त्रीसे समागम करनेवाला और विधिपूर्वक अग्निहोत्र करनेवाला हो, वह ब्राह्मण दूसरोंको तारनेमें समर्थ होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्राह्मणो यस्तु मद्भक्तो मद्रागी मत्परायणः।
मयि संन्यस्तकर्मा च स विप्रस्तारयेद् ध्रुवम्॥

मूलम्

ब्राह्मणो यस्तु मद्भक्तो मद्रागी मत्परायणः।
मयि संन्यस्तकर्मा च स विप्रस्तारयेद् ध्रुवम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण मेरा भक्त, मुझमें अनुराग रखने-वाला, मेरे भजनमें परायण और मुझे ही कर्मफलोंको अर्पण करनेवाला है, वह ब्राह्मण अवश्य संसार-समुद्रसे तार सकता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्वादशाक्षरतत्त्वज्ञश्चतुर्व्यूहविभागवित् ।
अच्छिद्रपञ्चकालज्ञः स विप्रस्तारयिष्यति ॥

मूलम्

द्वादशाक्षरतत्त्वज्ञश्चतुर्व्यूहविभागवित् ।
अच्छिद्रपञ्चकालज्ञः स विप्रस्तारयिष्यति ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) -का तत्त्वज्ञ है, जो चतुर्व्यूहके विभागको जाननेवाला है एवं जो दोषरहित रहकर पाँचों समयकी उपासनाओंका ज्ञाता है, वह ब्राह्मण दूसरोंका भी उद्धार कर देता है॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)


  1. एक पुरुष अर्थात् चार हाथके नापको दण्ड कहते हैं। ↩︎