००५

मूलम् (समाप्तिः)

[यमलोकके मार्गका कष्ट और उससे बचनेके उपाय]

मूलम् (वचनम्)

युधिष्ठिर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

देवदेवेश दैत्यघ्न परं कौतूहलं हि मे।
एतत् कथय सर्वज्ञ त्वद्भक्तस्य च केशव।
मानुषस्य च लोकस्य धर्मलोकस्य चान्तरम्॥

मूलम्

देवदेवेश दैत्यघ्न परं कौतूहलं हि मे।
एतत् कथय सर्वज्ञ त्वद्भक्तस्य च केशव।
मानुषस्य च लोकस्य धर्मलोकस्य चान्तरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिरने पूछा— दैत्योंका विनाश करनेवाले देवदेवेश्वर! मेरे मनमें सुननेकी बड़ी उत्कण्ठा है। मैं आपका भक्त हूँ। केशव! आप सर्वज्ञ हैं, इसलिये बतलाइये, मनुष्यलोकके और यमलोकके बीचकी दूरी कितनी है?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वगस्थिमांसनिर्मुक्ते पञ्चभूतविवर्जिते ।
कथयस्व महादेव सुखदुःखमशेषतः ॥

मूलम्

त्वगस्थिमांसनिर्मुक्ते पञ्चभूतविवर्जिते ।
कथयस्व महादेव सुखदुःखमशेषतः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सर्वश्रेष्ठ देव! जब जीव पाञ्चभौतिक शरीरसे अलग होकर त्वचा, हड्डी और मांससे रहित हो जाता है, उस समय उसे समस्त सुख-दुःखका अनुभव किस प्रकार होता है?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जीवस्य कर्मलोकेषु कर्मभिस्तु शुभाशुभैः।
अनुबद्धस्य तैः पाशैर्नीयमानस्य दारुणैः॥
मृत्युदूतैर्दुराधर्षैर्घोरैर्घोरपराक्रमैः ।
वद्धस्याक्षिप्यमाणस्य विद्रुतस्य यमाज्ञया ॥

मूलम्

जीवस्य कर्मलोकेषु कर्मभिस्तु शुभाशुभैः।
अनुबद्धस्य तैः पाशैर्नीयमानस्य दारुणैः॥
मृत्युदूतैर्दुराधर्षैर्घोरैर्घोरपराक्रमैः ।
वद्धस्याक्षिप्यमाणस्य विद्रुतस्य यमाज्ञया ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुना जाता है कि मनुष्यलोकमें जीव अपने शुभाशुभ कर्मोंसे बँधा हुआ है। उसे मरनेके बाद यमराजकी आज्ञासे भयंकर, दुर्धर्ष और घोर पराक्रमी यमदूत कठिन पाशोंसे बाँधकर मारते-पीटते हुए ले जाते हैं। वह इधर-उधर भागनेकी चेष्टा करता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुण्यपापकृतस्तिष्ठेत् सुखदुःखमशेषतः ।
यमदूतैर्दुराधर्षैर्नीयते वा कथं पुनः॥

मूलम्

पुण्यपापकृतस्तिष्ठेत् सुखदुःखमशेषतः ।
यमदूतैर्दुराधर्षैर्नीयते वा कथं पुनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ पुण्य-पाप करनेवाले सब तरहके सुख-दुःख भोगते हैं; अतः बतलाइये, मरे हुए प्राणीको दुर्धर्ष यमदूत किस प्रकार ले जाते हैं?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किं रूपं किं प्रमाणं वा वर्णः को वास्य केशव।
जीवस्य गच्छतो नित्यं यमलोकं वदस्व मे॥

मूलम्

किं रूपं किं प्रमाणं वा वर्णः को वास्य केशव।
जीवस्य गच्छतो नित्यं यमलोकं वदस्व मे॥

अनुवाद (हिन्दी)

केशव! यमलोकमें जाते समय जीवका निश्चित रूप-रंग कैसा होता है? और उसका शरीर कितना बड़ा होता है? ये सब बातें बताइये॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीभगवानुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणु राजन् यथावृत्तं यन्मां त्वं परिपृच्छसि।
तत् तेऽहं कथयिष्यामि मद्भक्तस्य नरेश्वर॥

मूलम्

शृणु राजन् यथावृत्तं यन्मां त्वं परिपृच्छसि।
तत् तेऽहं कथयिष्यामि मद्भक्तस्य नरेश्वर॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभगवान्‌ने कहा— राजन्! नरेश्वर! तुम मेरे भक्त हो, इसलिये जो कुछ पूछते हो, वह सब बात यथार्थरूपसे बता रहा हूँ; सुनो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

षडशीतिसहस्राणि योजनानां युधिष्ठिर ।
मानुषस्य च लोकस्य यमलोकस्य चान्तरम्॥

मूलम्

षडशीतिसहस्राणि योजनानां युधिष्ठिर ।
मानुषस्य च लोकस्य यमलोकस्य चान्तरम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिर! मनुष्यलोक और यमलोकमें छियासी हजार योजनका अन्तर है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तत्र वृक्षच्छाया वा न तटाकं सरोऽपि वा।
न वाप्यो दीर्घिका वापि न कूपो वा युधिष्ठिर॥

मूलम्

न तत्र वृक्षच्छाया वा न तटाकं सरोऽपि वा।
न वाप्यो दीर्घिका वापि न कूपो वा युधिष्ठिर॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिर! इस बीचके मार्गमें न वृक्षकी छाया है, न तालाब है, न पोखरा है, न बावड़ी है और न कुआँ ही है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न मण्डपं सभा वापि न प्रपा न निकेतनम्।
न पर्वतो नदी वापि न भूमेर्विवरं क्वचित्॥
न ग्रामो नाश्रमो वापि नोद्यानं वा वनानि च।
न किंचिदाश्रयस्थानं पथि तस्मिन् युधिष्ठिर॥

मूलम्

न मण्डपं सभा वापि न प्रपा न निकेतनम्।
न पर्वतो नदी वापि न भूमेर्विवरं क्वचित्॥
न ग्रामो नाश्रमो वापि नोद्यानं वा वनानि च।
न किंचिदाश्रयस्थानं पथि तस्मिन् युधिष्ठिर॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिर! उस मार्गमें कहीं भी कोई मण्डप, बैठक, प्याऊ, घर, पर्वत, नदी, गुफा, गाँव, आश्रम, बगीचा, वन अथवा ठहरनेका दूसरा कोई स्थान भी नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जन्तोर्हि प्राप्तकालस्य वेदनार्तस्य वै भृशम्।
कारणैस्त्यक्तदेहस्य प्राणैः कण्ठगतैः पुनः॥
शरीराच्चाल्यते जीवो ह्यवशो मातरिश्वना।
निर्गतो वायुभूतस्तु षट्‌कोशात् तु कलेवरात्॥
शरीरमन्यत् तद्रूपं तद्वर्णं तत्प्रमाणतः।
अदृश्यं तत्प्रविष्टस्तु सोऽप्यदृष्टोऽथ केनचित्॥

मूलम्

जन्तोर्हि प्राप्तकालस्य वेदनार्तस्य वै भृशम्।
कारणैस्त्यक्तदेहस्य प्राणैः कण्ठगतैः पुनः॥
शरीराच्चाल्यते जीवो ह्यवशो मातरिश्वना।
निर्गतो वायुभूतस्तु षट्‌कोशात् तु कलेवरात्॥
शरीरमन्यत् तद्रूपं तद्वर्णं तत्प्रमाणतः।
अदृश्यं तत्प्रविष्टस्तु सोऽप्यदृष्टोऽथ केनचित्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब जीवका मृत्युकाल उपस्थित होता है और वह वेदनासे अत्यन्त छटपटाने लगता है, उस समय कारण-तत्त्व शरीरका त्याग कर देते हैं, प्राण कण्ठतक आ जाते हैं और वायुके वशमें पड़े हुए जीवको बरबस इस शरीरसे निकल जाना पड़ता है। छः कोशोंवाले शरीरसे निकलकर वायुरूपधारी जीव एक दूसरे अदृश्य शरीरमें प्रवेश करता है। उस शरीरके रूप, रंग और माप भी पहले शरीरके ही समान होते हैं। उसमें प्रविष्ट होनेपर जीवको कोई देख नहीं पाता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽन्तरात्मा देहवतामष्टाङ्गो यस्तु संचरेत्।
छेदनाद् भेदनाद् दाहात्‌ ताडनाद् वा न नश्यति॥

मूलम्

सोऽन्तरात्मा देहवतामष्टाङ्गो यस्तु संचरेत्।
छेदनाद् भेदनाद् दाहात्‌ ताडनाद् वा न नश्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

देहधारियोंका अन्तरात्मा जीव आठ अंगोंसे युक्त होकर यमलोककी यात्रा करता है। वह शरीर काटने, टुकड़े-टुकड़े करने, जलाने अथवा मारनेसे नष्ट नहीं होता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानारूपधरैर्घोरैः प्रचण्डैश्चण्डसाधनैः ।
नीयमानो दुराधर्षैर्यमदूतैर्यमाज्ञया ॥

मूलम्

नानारूपधरैर्घोरैः प्रचण्डैश्चण्डसाधनैः ।
नीयमानो दुराधर्षैर्यमदूतैर्यमाज्ञया ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमराजकी आज्ञासे नाना प्रकारके भयंकर रूपधारी अत्यन्त क्रोधी और दुर्धर्ष यमदूत प्रचण्ड हथियार लिये आते हैं और जीवको जबरदस्ती पकड़कर ले जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रदारमयैः पाशैः संनिरुद्धोऽवशो बलात्।
स्वकर्मभिश्चानुगतः कृतैः सुकृतदुष्कृतैः ॥

मूलम्

पुत्रदारमयैः पाशैः संनिरुद्धोऽवशो बलात्।
स्वकर्मभिश्चानुगतः कृतैः सुकृतदुष्कृतैः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय जीव स्त्री-पुत्रादिके स्नेह-बन्धनमें आबद्ध रहता है। जब विवश हुआ वह ले जाया जाता है, तब उसके किये हुए पाप-पुण्य उसके पीछे-पीछे जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आक्रन्दमानः करुणं बन्धुभिर्दुःखपीडितैः ।
त्यक्त्वा बन्धुजनं सर्वं निरपेक्षस्तु गच्छति॥

मूलम्

आक्रन्दमानः करुणं बन्धुभिर्दुःखपीडितैः ।
त्यक्त्वा बन्धुजनं सर्वं निरपेक्षस्तु गच्छति॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय उसके बन्धु-बान्धव दुःखसे पीड़ित होकर करुणाजनक स्वरमें विलाप करने लगते हैं तो भी वह सबकी ओरसे निरपेक्ष हो समस्त बन्धु-बान्धवोंको छोड़कर चल देता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मातृभिः पितृभिश्चैव भ्रातृभिर्मातुलैस्तथा ।
दारैः पुत्रैर्वयस्यैश्च रुदद्भिस्त्यज्यते पुनः॥

मूलम्

मातृभिः पितृभिश्चैव भ्रातृभिर्मातुलैस्तथा ।
दारैः पुत्रैर्वयस्यैश्च रुदद्भिस्त्यज्यते पुनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

माता, पिता, भाई, मामा, स्त्री, पुत्र और मित्र रोते रह जाते हैं, उनका साथ छूट जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अदृश्यमानस्तैर्दीनैरश्रुपूर्णमुखेक्षणैः ।
स्वशरीरं परित्यज्य वायुभूतस्तु गच्छति॥

मूलम्

अदृश्यमानस्तैर्दीनैरश्रुपूर्णमुखेक्षणैः ।
स्वशरीरं परित्यज्य वायुभूतस्तु गच्छति॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके नेत्र और मुख आँसुओंसे भीगे होते हैं। उनकी दशा बड़ी दयनीय हो जाती है, फिर भी वह जीव उन्हें दिखायी नहीं पड़ता। वह अपना शरीर छोड़कर वायुरूप हो चल देता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्धकारमपारं तं महाघोरं तमोवृतम्।
दुःखान्तं दुष्प्रतारं च दुर्गमं पापकर्मणाम्॥

मूलम्

अन्धकारमपारं तं महाघोरं तमोवृतम्।
दुःखान्तं दुष्प्रतारं च दुर्गमं पापकर्मणाम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह पापकर्म करनेवालोंका मार्ग अन्धकारसे भरा है और उसका कहीं पार नहीं दिखायी देता। वह मार्ग बड़ा भयंकर, तमोमय, दुस्तर, दुर्गम और अन्ततक दुःख-ही-दुख देनेवाला है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

देवासुरैर्मनुष्याद्यैर्वैवस्वतवशानुगैः ।
स्त्रीपुंनपुंसकैश्चापि पृथिव्यां जीवसंज्ञितैः ॥
मध्यमैर्युवभिर्वापि बालैर्वृद्धैस्तथैव च ।
जातमात्रैश्च गर्भस्थैर्गन्तव्यः स महापथः॥

मूलम्

देवासुरैर्मनुष्याद्यैर्वैवस्वतवशानुगैः ।
स्त्रीपुंनपुंसकैश्चापि पृथिव्यां जीवसंज्ञितैः ॥
मध्यमैर्युवभिर्वापि बालैर्वृद्धैस्तथैव च ।
जातमात्रैश्च गर्भस्थैर्गन्तव्यः स महापथः॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमराजके अधीन रहनेवाले देवता, असुर और मनुष्य आदि जो भी जीव पृथ्वीपर हैं, वे स्त्री, पुरुष अथवा नपुंसक हों, बाल, वृद्ध, तरुण या जवान हों, तुरंतके पैदा हुए हों अथवा गर्भमें स्थित हों, उन सबको एक दिन उस महान् पथकी यात्रा करनी ही पड़ती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूर्वाह्णे वा पराह्णे वा संध्याकालेऽथवा पुनः।
प्रदोषे वार्धरात्रे वा प्रत्यूषे वाप्युपस्थिते॥

मूलम्

पूर्वाह्णे वा पराह्णे वा संध्याकालेऽथवा पुनः।
प्रदोषे वार्धरात्रे वा प्रत्यूषे वाप्युपस्थिते॥

अनुवाद (हिन्दी)

पूर्वाह्ण हो या पराह्ण, संध्याका समय हो या रात्रिका, आधी रात हो या सबेरा हो गया हो, वहाँकी यात्रा सदा खुली ही रहती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मृत्युदूतैर्दुराधर्षैः प्रचण्डैश्चण्डशासनैः ।
आक्षिप्यमाणा ह्यवशाः प्रयान्ति यमसादनम्॥

मूलम्

मृत्युदूतैर्दुराधर्षैः प्रचण्डैश्चण्डशासनैः ।
आक्षिप्यमाणा ह्यवशाः प्रयान्ति यमसादनम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

उपर्युक्त सभी प्राणी दुर्धर्ष, उग्र शासन करनेवाले प्रचण्ड यमदूतोंके द्वारा विवश होकर मार खाते हुए यमलोक जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्वचिद् भीतैः क्वचिन्मत्तैः प्रस्खलद्भिः क्वचित् क्वचित्।
क्रन्दद्भिर्वेदनार्तैस्तु गन्तव्यं यमसादनम् ॥

मूलम्

क्वचिद् भीतैः क्वचिन्मत्तैः प्रस्खलद्भिः क्वचित् क्वचित्।
क्रन्दद्भिर्वेदनार्तैस्तु गन्तव्यं यमसादनम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमलोकके पथपर कहीं डरकर, कहीं पागल होकर, कहीं ठोकर खाकर और कहीं वेदनासे आर्त होकर रोते-चिल्लाते हुए चलना पड़ता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निर्भर्त्स्यमानैरुद्विग्नैर्विधूतैर्भयविह्वलैः ।
तुद्यमानशरीरैश्च गन्तव्यं तर्जितैस्तथा ॥

मूलम्

निर्भर्त्स्यमानैरुद्विग्नैर्विधूतैर्भयविह्वलैः ।
तुद्यमानशरीरैश्च गन्तव्यं तर्जितैस्तथा ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमदूतोंकी डाँट सुनकर जीव उद्विग्न हो जाते हैं और भयसे विह्वल हो थर-थर काँपने लगते हैं। दूतोंकी मार खाकर शरीरमें बेतरह पीड़ा होती है तो भी उनकी फटकार सुनते हुए आगे बढ़ना पड़ता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काष्ठोपलशिलाघातैर्दण्डोल्मुककशाङ्‌कुशैः ।
हन्यमान्यैर्यमपुरं गन्तव्यं धर्मवर्जितैः ॥

मूलम्

काष्ठोपलशिलाघातैर्दण्डोल्मुककशाङ्‌कुशैः ।
हन्यमान्यैर्यमपुरं गन्तव्यं धर्मवर्जितैः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धर्महीन पुरुषोंको काठ, पत्थर, शिला, डंडे, जलती लकड़ी, चाबुक और अंकुशकी मार खाते हुए यमपुरीको जाना पड़ता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेदनार्तैश्च कूजद्भिर्विक्रोशद्भिश्च विस्वरम् ।
वेदनार्तैः पतद्भिश्च गन्तव्यं जीवघातकैः॥

मूलम्

वेदनार्तैश्च कूजद्भिर्विक्रोशद्भिश्च विस्वरम् ।
वेदनार्तैः पतद्भिश्च गन्तव्यं जीवघातकैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरे जीवोंकी हत्या करते हैं, उन्हें इतनी पीड़ा दी जाती है कि वे आर्त होकर छटपटाने, कराहने तथा जोर-जोरसे चिल्लाने लगते हैं और उसी स्थितिमें उन्हें गिरते-पड़ते चलना पड़ता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शक्तिभिर्भिन्दिपालैश्च शङ्‌कुतोमरसायकैः ।
तुद्यमानस्तु शूलाग्रैर्गन्तव्यं जीवघातकैः ॥

मूलम्

शक्तिभिर्भिन्दिपालैश्च शङ्‌कुतोमरसायकैः ।
तुद्यमानस्तु शूलाग्रैर्गन्तव्यं जीवघातकैः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

चलते समय उनके ऊपर शक्ति, भिन्दिपाल, शंकु, तोमर, बाण और त्रिशूलकी मार पड़ती रहती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वभिर्व्याघ्रैर्वृकैः काकैर्भक्ष्यमाणाः समन्ततः ।
तुद्यमानाश्च गच्छन्ति राक्षसैर्मांसघातिभिः ॥

मूलम्

श्वभिर्व्याघ्रैर्वृकैः काकैर्भक्ष्यमाणाः समन्ततः ।
तुद्यमानाश्च गच्छन्ति राक्षसैर्मांसघातिभिः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुत्ते, बाघ, भेड़िये और कौवे उन्हें चारों ओरसे नोचते रहते हैं। मांस काटनेवाले राक्षस भी उन्हें पीड़ा पहुँचाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महिषैश्च मृगैश्चापि सूकरैः पृषतैस्तथा।
भक्ष्यमाणैस्तदध्वानं गन्तव्यं मांसखादकैः ॥

मूलम्

महिषैश्च मृगैश्चापि सूकरैः पृषतैस्तथा।
भक्ष्यमाणैस्तदध्वानं गन्तव्यं मांसखादकैः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग मांस खाते हैं, उन्हें उस मार्गमें चलते समय भैंसे, मृग, सूअर और चितकबरे हरिन चोट पहुँचाते और उनके मांस काटकर खाया करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूचीसुतीक्ष्णतुण्डाभिर्मक्षिकाभिः समन्ततः ।
तुद्यमानैश्च गन्तव्यं पापिष्ठैर्बालघातकैः ॥

मूलम्

सूचीसुतीक्ष्णतुण्डाभिर्मक्षिकाभिः समन्ततः ।
तुद्यमानैश्च गन्तव्यं पापिष्ठैर्बालघातकैः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो पापी बालकोंकी हत्या करते हैं, उन्हें चलते समय सूईके समान तीखे डंकवाली मक्खियाँ चारों ओरसे काटती रहती हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विस्रब्धं स्वामिनं मित्रं स्त्रियं वा घ्नन्ति ये नराः।
शस्त्रैर्निर्भिद्यमानैश्च गन्तव्यं यमसादनम् ॥

मूलम्

विस्रब्धं स्वामिनं मित्रं स्त्रियं वा घ्नन्ति ये नराः।
शस्त्रैर्निर्भिद्यमानैश्च गन्तव्यं यमसादनम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग अपने ऊपर विश्वास करनेवाले स्वामी, मित्र अथवा स्त्रीकी हत्या करते हैं, उन्हें यमपुरके मार्गपर चलते समय यमदूत हथियारोंसे छेदते रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

खादयन्ति च ये जीवान् दुःखमापादयन्ति ते।
राक्षसैश्च श्वभिश्चैव भक्ष्यमाणा व्रजन्ति ते॥

मूलम्

खादयन्ति च ये जीवान् दुःखमापादयन्ति ते।
राक्षसैश्च श्वभिश्चैव भक्ष्यमाणा व्रजन्ति ते॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरे जीवोंको भक्षण करते या उन्हें दुःख पहुँचाते हैं, उनको चलते समय राक्षस और कुत्ते काट खाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये हरन्ति च वस्त्राणि शय्याः प्रावरणानि च।
ते यान्ति विद्रुता नग्नाः पिशाचा इव तत्पथम्॥

मूलम्

ये हरन्ति च वस्त्राणि शय्याः प्रावरणानि च।
ते यान्ति विद्रुता नग्नाः पिशाचा इव तत्पथम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरोंके कपड़े, पलंग और बिछौने चुराते हैं, वे उस मार्गमें पिशाचोंकी तरह नंगे होकर भागते हुए चलते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गाश्च धान्यं हिरण्यं वा बलात् क्षेत्रं गृहं तथा।
ये हरन्ति दुरात्मानः परस्वं पापकारिणः॥
पाषाणैरुल्मुकैर्दण्डैः काष्ठघातैश्च झर्झरैः ।
हन्यमानैः क्षताकीर्णैर्गन्तव्यं तैर्यमालयम् ॥

मूलम्

गाश्च धान्यं हिरण्यं वा बलात् क्षेत्रं गृहं तथा।
ये हरन्ति दुरात्मानः परस्वं पापकारिणः॥
पाषाणैरुल्मुकैर्दण्डैः काष्ठघातैश्च झर्झरैः ।
हन्यमानैः क्षताकीर्णैर्गन्तव्यं तैर्यमालयम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दुरात्मा और पापाचारी मनुष्य बलपूर्वक दूसरोंकी गौ, अनाज, सोना, खेत और गृह आदिको हड़प लेते हैं, वे यमलोकमें जाते समय यमदूतोंके हाथसे पत्थर, जलती हुई लकड़ी, डंडे, काठ और बेंतकी छड़ियोंकी मार खाते हैं तथा उनके समस्त अंगोंमें घाव हो जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्रह्मास्वं ये हरन्तीह नरा नरकनिर्भयाः॥
आक्रोशन्तीह ये नित्यं प्रहरन्ति च ये द्विजान्॥
शुष्ककण्ठा निबद्धास्ते छिन्नजिह्वाक्षिनासिका ।
पूयशोणितदुर्गन्धा भक्ष्यमाणाश्च जम्बुकैः ॥
चण्डालैर्भीषणैश्चण्डैस्तुद्यमानाः समन्ततः ।
क्रोशन्तः करुणं घोरं गच्छन्ति यमसादनम्॥

मूलम्

ब्रह्मास्वं ये हरन्तीह नरा नरकनिर्भयाः॥
आक्रोशन्तीह ये नित्यं प्रहरन्ति च ये द्विजान्॥
शुष्ककण्ठा निबद्धास्ते छिन्नजिह्वाक्षिनासिका ।
पूयशोणितदुर्गन्धा भक्ष्यमाणाश्च जम्बुकैः ॥
चण्डालैर्भीषणैश्चण्डैस्तुद्यमानाः समन्ततः ।
क्रोशन्तः करुणं घोरं गच्छन्ति यमसादनम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मनुष्य यहाँ नरकका भय न मानकर ब्राह्मणोंका धन छीन लेते हैं, उन्हें गालियाँ सुनाते हैं और सदा मारते रहते हैं, वे जब यमपुरके मार्गमें जाते हैं, उस समय यमदूत इस तरह जकड़कर बाँधते हैं कि उनका गला सूख जाता है; उनकी जीभ, आँख और नाक काट ली जाती है, उनके शरीरपर दुर्गन्धित पीब और रक्त डाला जाता है, गीदड़ उनके मांस नोच-नोचकर खाते हैं और क्रोधमें भरे हुए भयानक चाण्डाल उन्हें चारों ओरसे पीड़ा पहुँचाते रहते हैं। इससे वे करुणायुक्त भीषण स्वरसे चिल्लाते रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र चापि गताः पापा विष्ठाकूपेष्वनेकशः।
जीवन्तो वर्षकोटीस्तु क्लिश्यन्ते वेदनात् ततः॥

मूलम्

तत्र चापि गताः पापा विष्ठाकूपेष्वनेकशः।
जीवन्तो वर्षकोटीस्तु क्लिश्यन्ते वेदनात् ततः॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमलोकमें पहुँचनेपर भी उन पापियोंको जीते-जी विष्ठाके कुएँमें डाल दिया जाता है और वहाँ वे करोड़ों वर्षोंतक अनेक प्रकारसे पीड़ा सहते हुए कष्ट भोगते रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततश्च मुक्ताः कालेन लोके चास्मिन् नराधमाः।
विष्ठाकृमित्वं गच्छन्ति जन्मकोटिशतं नृप॥

मूलम्

ततश्च मुक्ताः कालेन लोके चास्मिन् नराधमाः।
विष्ठाकृमित्वं गच्छन्ति जन्मकोटिशतं नृप॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर समयानुसार नरकयातनासे छुटकारा पानेपर वे इस लोकमें सौ करोड़ जन्मोंतक विष्ठाके कीड़े होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अदत्तदाना गच्छन्ति शुष्ककण्ठास्यतालुकाः ।
अन्नं पानीयसहितं प्रार्थयन्तः पुनः पुनः॥

मूलम्

अदत्तदाना गच्छन्ति शुष्ककण्ठास्यतालुकाः ।
अन्नं पानीयसहितं प्रार्थयन्तः पुनः पुनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

दान न करनेवाले जीवोंके कण्ठ, मुँह और तालु भूख-प्यासके मारे सूखे रहते हैं तथा वे चलते समय यमदूतोंसे बारंबार अन्न और जल माँगा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वामिन् बुभुक्षातृष्णार्ता गन्तुं नैवाद्य शक्नुमः।
ममान्नं दीयतां स्वामिन् पानीयं दीयतां मम।
इति ब्रुवन्तस्तैर्दूतैः प्राप्यन्ते वै यमालयम्॥

मूलम्

स्वामिन् बुभुक्षातृष्णार्ता गन्तुं नैवाद्य शक्नुमः।
ममान्नं दीयतां स्वामिन् पानीयं दीयतां मम।
इति ब्रुवन्तस्तैर्दूतैः प्राप्यन्ते वै यमालयम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे कहते हैं—‘मालिक! हम भूख और प्याससे बहुत कष्ट पा रहे हैं, अब चला नहीं जाता; कृपा करके हमें अन्न और पानी दे दीजिये।’ इस प्रकार याचना करते ही रह जाते हैं, किंतु कुछ भी नहीं मिलता। यमदूत उन्हें उसी अवस्थामें यमराजके घर पहुँचा देते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्राह्मणेभ्यः प्रदानानि नानारूपाणि पाण्डव।
ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यस्ते सुखं यान्ति तत्फलम्॥

मूलम्

ब्राह्मणेभ्यः प्रदानानि नानारूपाणि पाण्डव।
ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यस्ते सुखं यान्ति तत्फलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डुपुत्र! जो ब्राह्मणोंको नाना प्रकारकी वस्तुएँ दान देते हैं, वे सुखपूर्वक उनके फलको प्राप्त करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्नं ये च प्रयच्छन्ति ब्राह्मणेभ्यः सुसंस्कृतम्।
श्रोत्रियेभ्यो विशेषेण प्रीत्या परमया युताः॥
तैर्विमानैर्महात्मानो यान्ति चित्रैर्यमालयम् ।
सेव्यमाना वरस्त्रीभिरप्सतेभिर्महापथम् ॥

मूलम्

अन्नं ये च प्रयच्छन्ति ब्राह्मणेभ्यः सुसंस्कृतम्।
श्रोत्रियेभ्यो विशेषेण प्रीत्या परमया युताः॥
तैर्विमानैर्महात्मानो यान्ति चित्रैर्यमालयम् ।
सेव्यमाना वरस्त्रीभिरप्सतेभिर्महापथम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग ब्राह्मणोंको, उनमें भी विशेषतः श्रोत्रियोंको अत्यन्त प्रसन्नताके साथ अच्छी प्रकारसे बनाये हुए उत्तम अन्नका भोजन कराते हैं, वे महात्मा पुरुष विचित्र विमानोंपर बैठकर यमलोककी यात्रा करते हैं। उस महान् पथमें सुन्दर स्त्रियाँ और अप्सराएँ उनकी सेवा करती रहती हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये च नित्यं प्रभाषन्ते सत्यं निष्कल्मषं वचः।
ते च यान्त्यमलाभ्राभैर्विमानैर्वृषयोजितैः ॥

मूलम्

ये च नित्यं प्रभाषन्ते सत्यं निष्कल्मषं वचः।
ते च यान्त्यमलाभ्राभैर्विमानैर्वृषयोजितैः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन निष्कपटभावसे सत्यभाषण करते हैं, वे निर्मल बादलोंके समान बैल जुते हुए विमानोंद्वारा यमलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कपिलाद्यानि पुण्यानि गोप्रदानानि ये नराः।
ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छन्ति श्रोत्रियेभ्यो विशेषतः॥
ते यान्त्यमलवर्णाभैर्विमानैर्वृषयोजितैः ।
वैवस्वतपुरं प्राप्य ह्यप्सरोभिर्निषेविताः ॥

मूलम्

कपिलाद्यानि पुण्यानि गोप्रदानानि ये नराः।
ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छन्ति श्रोत्रियेभ्यो विशेषतः॥
ते यान्त्यमलवर्णाभैर्विमानैर्वृषयोजितैः ।
वैवस्वतपुरं प्राप्य ह्यप्सरोभिर्निषेविताः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मणोंको और उनमें भी विशेषतः श्रोत्रियोंको कपिला आदि गौओंका पवित्र दान देते रहते हैं, वे निर्मल कान्तिवाले बैल जुते हुए विमानोंमें बैठकर यमलोकको जाते हैं। वहाँ अप्सराएँ उनकी सेवा करती हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपानहौ च छत्रं च शयनान्यासनानि च।
विप्रेभ्यो ये प्रयच्छन्ति वस्त्राण्याभरणानि च॥
ते यान्त्यश्वैर्वृषैर्वापि कुञ्जरैरप्यलंकृताः ।
धर्मराजपुरं रम्यं सौवर्णच्छत्रशोभिताः ॥

मूलम्

उपानहौ च छत्रं च शयनान्यासनानि च।
विप्रेभ्यो ये प्रयच्छन्ति वस्त्राण्याभरणानि च॥
ते यान्त्यश्वैर्वृषैर्वापि कुञ्जरैरप्यलंकृताः ।
धर्मराजपुरं रम्यं सौवर्णच्छत्रशोभिताः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मणोंको छाता, जूता, शय्या, आसन, वस्त्र और आभूषण दान करते हैं, वे सोनेके छत्र लगाये उत्तम गहनोंसे सज-धजकर घोड़े, बैल अथवा हाथीकी सवारीसे धर्मराजके सुन्दर नगरमें प्रवेश करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये फलानि प्रयच्छन्ति पुष्पाणि सुरभीणि च।
हंसयुक्तैर्विमानैस्तु यान्ति धर्मपुरं नराः॥

मूलम्

ये फलानि प्रयच्छन्ति पुष्पाणि सुरभीणि च।
हंसयुक्तैर्विमानैस्तु यान्ति धर्मपुरं नराः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो सुगन्धित फूल और फलका दान करते हैं, वे मनुष्य हंसयुक्त विमानोंके द्वारा धर्मराजके नगरमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यो विचित्रान्नं घृताप्लुतम्।
ते व्रजन्त्यमलाभ्राभैर्विमानैर्वायुवेगिभिः ।
पुरं तत् प्रेतनाथस्य नानाजनसमाकुलम्॥

मूलम्

ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यो विचित्रान्नं घृताप्लुतम्।
ते व्रजन्त्यमलाभ्राभैर्विमानैर्वायुवेगिभिः ।
पुरं तत् प्रेतनाथस्य नानाजनसमाकुलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मणोंको घीमें तैयार किये हुए भाँति-भाँतिके पकवान दान करते हैं, वे वायुके समान वेगवाले सफेद विमानोंपर बैठकर नाना प्राणियोंसे भरे हुए यमपुरकी यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पानीयं ये प्रयच्छन्ति सर्वभूतप्रजीवनम्।
ते सुतृप्ताः सुखं यान्ति भवनैर्हंसचोदितैः॥

मूलम्

पानीयं ये प्रयच्छन्ति सर्वभूतप्रजीवनम्।
ते सुतृप्ताः सुखं यान्ति भवनैर्हंसचोदितैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो समस्त प्राणियोंको जीवन देनेवाले जलका दान करते हैं, वे अत्यन्त तृप्त होकर हंस जुते हुए विमानोंद्वारा सुखपूर्वक धर्मराजके नगरमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये तिलं तिलधेनुं वा घृतधेनुमथापि वा।
श्रोत्रियेभ्यः प्रयच्छन्ति सौम्यभावसमन्विताः ॥
सूर्यमण्डलसंकाशैर्यानैस्ते यान्ति निर्मलैः ।
गीयमानैस्तु गन्धर्वैर्वैवस्वतपुरं नृप ॥

मूलम्

ये तिलं तिलधेनुं वा घृतधेनुमथापि वा।
श्रोत्रियेभ्यः प्रयच्छन्ति सौम्यभावसमन्विताः ॥
सूर्यमण्डलसंकाशैर्यानैस्ते यान्ति निर्मलैः ।
गीयमानैस्तु गन्धर्वैर्वैवस्वतपुरं नृप ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जो लोग शान्तभावसे युक्त होकर श्रोत्रिय ब्राह्मणको तिल अथवा तिलकी गौ या घृतकी गौका दान करते हैं, वे सूर्यमण्डलके समान तेजस्वी निर्मल विमानोंद्वारा गन्धर्वोंके गीत सुनते हुए यमराजके नगरमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां वाप्यश्च कूपाश्च तटाकानि सरांसि च।
दीर्घिकाः पुष्करिण्यश्च सजलाश्च जलाशयाः॥
यानैस्ते यान्ति चन्द्राभैर्दिव्यघण्टानिनादितैः ।
चामरैस्तालवृन्तैश्च वीज्यमानाः महाप्रभाः ।
नित्यतृप्ता महात्मानो गच्छन्ति यमसादनम्॥

मूलम्

तेषां वाप्यश्च कूपाश्च तटाकानि सरांसि च।
दीर्घिकाः पुष्करिण्यश्च सजलाश्च जलाशयाः॥
यानैस्ते यान्ति चन्द्राभैर्दिव्यघण्टानिनादितैः ।
चामरैस्तालवृन्तैश्च वीज्यमानाः महाप्रभाः ।
नित्यतृप्ता महात्मानो गच्छन्ति यमसादनम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिन्होंने इस लोकमें बावड़ी, कुएँ, तालाब, पोखरे, पोखरियाँ और जलसे भरे हुए जलाशय बनवाये हैं, वे चन्द्रमाके समान उज्ज्वल और दिव्य घण्टानादसे निनादित विमानोंपर बैठकर यमलोकमें जाते हैं; उस समय वे महात्मा नित्यतृप्त और महान् कान्तिमान् दिखायी देते हैं तथा दिव्यलोकके पुरुष उन्हें ताड़के पंखे और चँवर डुलाया करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येषां देवगृहाणीह चित्राण्यायतनानि च।
मनोहराणि कान्तानि दर्शनीयानि भान्ति च॥
ते व्रजन्त्यमलाभ्राभैर्विमानैर्वायुवेगिभिः ।
तत्पुरं प्रेतनाथस्य नानाजनपदाकुलम् ॥

मूलम्

येषां देवगृहाणीह चित्राण्यायतनानि च।
मनोहराणि कान्तानि दर्शनीयानि भान्ति च॥
ते व्रजन्त्यमलाभ्राभैर्विमानैर्वायुवेगिभिः ।
तत्पुरं प्रेतनाथस्य नानाजनपदाकुलम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके बनवाये हुए देवमन्दिर यहाँ अत्यन्त चित्र-विचित्र, विस्तृत, मनोहर, सुन्दर और दर्शनीय रूपमें शोभा पाते हैं, वे सफेद बादलोंके समान कान्तिमान् एवं हवाके समान वेगवाले विमानोंद्वारा नाना जनपदोंसे युक्त यमलोककी यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैवस्वतं च पश्यन्ति सुखचित्तं सुखस्थितम्।
यमेन पूजिता यान्ति देवसालोक्यतां ततः॥

मूलम्

वैवस्वतं च पश्यन्ति सुखचित्तं सुखस्थितम्।
यमेन पूजिता यान्ति देवसालोक्यतां ततः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ जानेपर वे यमराजको प्रसन्नचित्त और सुखपूर्वक बैठे हुए देखते हैं तथा उनके द्वारा सम्मानित होकर देवलोकके निवासी होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काष्ठपादुकदा यान्ति तदध्वानं सुखं नराः।
सौवर्णमणिपीठे तु पादं कृत्वा रथोत्तमे॥

मूलम्

काष्ठपादुकदा यान्ति तदध्वानं सुखं नराः।
सौवर्णमणिपीठे तु पादं कृत्वा रथोत्तमे॥

अनुवाद (हिन्दी)

खड़ाऊँ और जल-दान करनेवाले मनुष्योंको उस मार्गमें सुख मिलता है। वे उत्तम रथपर बैठकर सोनेके पीढ़ेपर पैर रखे हुए यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आरामान् वृक्षषण्डांश्च रोपयन्ति च ये नराः।
संवर्धयन्ति चाव्यग्रं फलपुष्पोपशोभितम् ॥
वृक्षच्छायासु रम्यासु शीतलासु स्वलंकृताः।
यान्ति ते वाहनैर्दिव्यैः पूज्यमाना मुहुर्मुहुः॥

मूलम्

आरामान् वृक्षषण्डांश्च रोपयन्ति च ये नराः।
संवर्धयन्ति चाव्यग्रं फलपुष्पोपशोभितम् ॥
वृक्षच्छायासु रम्यासु शीतलासु स्वलंकृताः।
यान्ति ते वाहनैर्दिव्यैः पूज्यमाना मुहुर्मुहुः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग बड़े-बड़े बगीचे बनवाते और उसमें वृक्षोंके पौधे रोपते हैं तथा शान्तिपूर्वक जलसे सींचकर उन्हें फल-फूलोंसे सुशोभित करके बढ़ाया करते हैं, वे दिव्य वाहनोंपर सवार हो आभूषणोंसे सज-धजकर वृक्षोंकी अत्यन्त रमणीय एवं शीतल छायामें होकर दिव्य पुरुषोंद्वारा बारंबार सम्मान पाते हुए यमलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वयानं तु गोयानं हस्तियानमथापि वा।
ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यो विमानैः कनकोपमैः॥

मूलम्

अश्वयानं तु गोयानं हस्तियानमथापि वा।
ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यो विमानैः कनकोपमैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मणोंको घोड़े, बैल अथवा हाथीकी सवारी दान करते हैं, वे सोनेके समान विमानोंद्वारा यमलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूमिदा यान्ति तं लोकं सर्वकामैः सुतर्पिताः।
उदितादित्यसंकाशैर्विमानैर्वृषयोजितैः ॥

मूलम्

भूमिदा यान्ति तं लोकं सर्वकामैः सुतर्पिताः।
उदितादित्यसंकाशैर्विमानैर्वृषयोजितैः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भूमिदान करनेवाले लोग समस्त कामनाओंसे तृप्त होकर बैल जुते हुए सूर्यके समान तेजस्वी विमानोंके द्वारा उस लोककी यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुगन्धागन्धसंयोगान् पुष्पाणि सुरभीणि च।
प्रयच्छन्ति द्विजाग्र्येभ्यो भक्त्या परमया युताः॥
सुगन्धाः सुष्ठुवेषाश्च सुप्रभाः स्रग्विभूषणाः।
यान्ति धर्मपुरं यानैर्विचित्रैरप्यलंकृताः ॥

मूलम्

सुगन्धागन्धसंयोगान् पुष्पाणि सुरभीणि च।
प्रयच्छन्ति द्विजाग्र्येभ्यो भक्त्या परमया युताः॥
सुगन्धाः सुष्ठुवेषाश्च सुप्रभाः स्रग्विभूषणाः।
यान्ति धर्मपुरं यानैर्विचित्रैरप्यलंकृताः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको अत्यन्त भक्तिपूर्वक सुगन्धित पदार्थ तथा पुष्प प्रदान करते हैं, वे सुगन्धपूर्ण सुन्दर वेश धारणकर उत्तम कान्तिसे देदीप्यमान हो सुन्दर हार पहने हुए विचित्र विमानोंपर बैठकर धर्मराजके नगरमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीपदा यान्ति यानैश्च द्योतयन्तो दिशो दश।
आदित्यसदृशाकारैर्दीप्यमाना इवाग्नयः ॥

मूलम्

दीपदा यान्ति यानैश्च द्योतयन्तो दिशो दश।
आदित्यसदृशाकारैर्दीप्यमाना इवाग्नयः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दीप-दान करनेवाले पुरुष सूर्यके समान तेजस्वी विमानोंसे दसों दिशाओंको देदीप्यमान करते हुए साक्षात् अग्निके समान कान्तिमान् स्वरूपसे यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गृहावसथदातारो गृहैः काञ्चनवेदिकैः ।
व्रजन्ति बालसूर्याभैर्धर्मराजपुरं नराः ॥

मूलम्

गृहावसथदातारो गृहैः काञ्चनवेदिकैः ।
व्रजन्ति बालसूर्याभैर्धर्मराजपुरं नराः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो घर एवं आश्रयस्थानका दान करनेवाले हैं, वे सोनेके चबूतरोंसे युक्त और प्रातःकालीन सूर्यके समान कान्तिवाले गृहोंके साथ धर्मराजके नगरमें प्रवेश करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पादाभ्यङ्गं शिरोऽभ्यङ्गं पानं पादोदकं तथा।
ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यस्ते यान्त्यैश्वैर्यमालयम्॥

मूलम्

पादाभ्यङ्गं शिरोऽभ्यङ्गं पानं पादोदकं तथा।
ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यस्ते यान्त्यैश्वैर्यमालयम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मणोंको पैरोंमें लगानेके लिये उबटन, सिरपर मलनेके लिये तेल, पैर धोनेके लिये जल और पीनेके लिये शर्बत देते हैं, वे घोड़ेपर सवार होकर यमलोककी यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विश्रामयन्ति ये विप्रान् श्रान्तानध्वनि कर्शितान्।
चक्रवाकप्रयुक्तेन यान्ति यानेन तेऽपि च॥

मूलम्

विश्रामयन्ति ये विप्रान् श्रान्तानध्वनि कर्शितान्।
चक्रवाकप्रयुक्तेन यान्ति यानेन तेऽपि च॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो रास्तेके थके-माँदे दुर्बल ब्राह्मणोंको ठहरनेकी जगह देकर उन्हें आराम पहुँचाते हैं, वे चक्रवाकसे जुते हुए विमानपर बैठकर यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वागतेन च यो विप्रान् पूजयेदासनेन च।
स गच्छति तदध्वानं सुखं परमनिर्वृतः॥

मूलम्

स्वागतेन च यो विप्रान् पूजयेदासनेन च।
स गच्छति तदध्वानं सुखं परमनिर्वृतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो घरपर आये हुए ब्राह्मणोंको स्वागतपूर्वक आसन देकर उनकी विधिवत् पूजा करते हैं, वे उस मार्गपर बड़े आनन्दके साथ जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमः सर्वसहाभ्यश्चेत्यभिख्याय दिने दिने।
नमस्करोति नित्यं गां स सुखं याति तत्पथम्॥

मूलम्

नमः सर्वसहाभ्यश्चेत्यभिख्याय दिने दिने।
नमस्करोति नित्यं गां स सुखं याति तत्पथम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन ‘नमः सर्वसहाभ्यश्च’ ऐसा कहकर गौको नमस्कार करता है, वह यमपुरके मार्गपर सुखपूर्वक यात्रा करता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमोऽस्तु विप्रदत्तायेत्येवंवादी दिने दिने।
भूमिमाक्रमते प्रातः शयनादुत्थितश्च यः॥
सर्वकामैः स तृप्तात्मा सर्वभूषणभूषितः।
याति यानेन दिव्येन सुखं वैवस्वतालयम्॥

मूलम्

नमोऽस्तु विप्रदत्तायेत्येवंवादी दिने दिने।
भूमिमाक्रमते प्रातः शयनादुत्थितश्च यः॥
सर्वकामैः स तृप्तात्मा सर्वभूषणभूषितः।
याति यानेन दिव्येन सुखं वैवस्वतालयम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रतिदिन प्रातःकाल बिछौनेसे उठकर जो ‘नमोऽस्तु विप्रदत्तायै’ कहते हुए पृथ्वीपर पैर रखता है, वह सब कामनाओंसे तृप्त और सब प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित होकर दिव्य विमानके द्वारा सुखपूर्वक यमलोकको जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनन्तराशिनो ये तु दम्भानृतविवर्जिताः।
तेऽपि सारसयुक्तेन यान्ति यानेन वै सुखम्॥

मूलम्

अनन्तराशिनो ये तु दम्भानृतविवर्जिताः।
तेऽपि सारसयुक्तेन यान्ति यानेन वै सुखम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो सबेरे और शामको भोजन करनेके सिवा बीचमें कुछ नहीं खाते तथा दम्भ और असत्यसे बचे रहते हैं, वे भी सारसयुक्त विमानके द्वारा सुखपूर्वक यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये चाप्येकेन भुक्तेन दम्भानृतविवर्जिताः।
हंसयुक्तैर्विमानैस्तु सुखं यान्ति यमालयम्॥

मूलम्

ये चाप्येकेन भुक्तेन दम्भानृतविवर्जिताः।
हंसयुक्तैर्विमानैस्तु सुखं यान्ति यमालयम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दिन-रातमें केवल एक बार भोजन करते हैं और दम्भ तथा असत्यसे दूर रहते हैं, वे हंसयुक्त विमानोंके द्वारा बड़े आरामके साथ यमलोकको जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्थेन च भुक्तेन वर्तन्ते ये जितेन्द्रियाः।
यान्ति ते धर्मनगरं यानैर्बर्हिणयोजितैः॥

मूलम्

चतुर्थेन च भुक्तेन वर्तन्ते ये जितेन्द्रियाः।
यान्ति ते धर्मनगरं यानैर्बर्हिणयोजितैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो जितेन्द्रिय होकर केवल चौथे वक्त अन्न ग्रहण करते हैं अर्थात् एक दिन उपवास करके दूसरे दिन शामको भोजन करते हैं, वे मयूरयुक्त विमानोंके द्वारा धर्मराजके नगरमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तृतीयदिवसेनेह भुञ्जते ये जितेन्द्रियाः।
तेऽपि हस्तिरथैर्यान्ति तत्पथं कनकोज्ज्वलैः॥

मूलम्

तृतीयदिवसेनेह भुञ्जते ये जितेन्द्रियाः।
तेऽपि हस्तिरथैर्यान्ति तत्पथं कनकोज्ज्वलैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो जितेन्द्रिय पुरुष यहाँ तीसरे दिन भोजन करते हैं, वे भी सोनेके समान उज्ज्वल हाथीके रथपर सवार हो यमलोक जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

षष्ठान्नकालिको यस्तू वर्षमेकं तु वर्तते।
कामक्रोधविनिर्मुक्तः शुचिर्नित्यं जितेन्द्रियः ।
स याति कुञ्जरस्थैस्तु जयशब्दरवैर्युतः॥

मूलम्

षष्ठान्नकालिको यस्तू वर्षमेकं तु वर्तते।
कामक्रोधविनिर्मुक्तः शुचिर्नित्यं जितेन्द्रियः ।
स याति कुञ्जरस्थैस्तु जयशब्दरवैर्युतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो एक वर्षतक छः दिनोंके बाद भोजन करता है और काम-क्रोधसे रहित, पवित्र तथा सदा जितेन्द्रिय रहता है, वह हाथीके रथपर बैठकर जाता है, रास्तेमें उसके लिये जय-जयकारके शब्द होते रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पक्षोपवासिनो यान्ति यानैः शार्दूलयोजितैः।
धर्मराजपुरं रम्यं दिव्यस्त्रीगणसेवितम् ॥

मूलम्

पक्षोपवासिनो यान्ति यानैः शार्दूलयोजितैः।
धर्मराजपुरं रम्यं दिव्यस्त्रीगणसेवितम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

एक पक्ष उपवास करनेवाले मनुष्य सिंह-जुते हुए विमानके द्वारा धर्मराजके उस रमणीय नगरको जाते हैं, जो दिव्य स्त्रीसमुदायसे सेवित है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये च मासोपवासं वै कुर्वते संयतेन्द्रियाः।
तेऽपि सूर्योदयप्रख्यैर्यान्ति यानैर्यमालयम् ॥

मूलम्

ये च मासोपवासं वै कुर्वते संयतेन्द्रियाः।
तेऽपि सूर्योदयप्रख्यैर्यान्ति यानैर्यमालयम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो इन्द्रियोंको वशमें रखकर एक मासतक उपवास करते हैं, वे भी सूर्योदयकी भाँति प्रकाशित विमानोंके द्वारा यमलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गोकृते स्त्रीकृते चैव हत्वा विप्रकृतेऽपि च।
ते यान्त्यमरकन्याभिः सेव्यमाना रविप्रभाः॥

मूलम्

गोकृते स्त्रीकृते चैव हत्वा विप्रकृतेऽपि च।
ते यान्त्यमरकन्याभिः सेव्यमाना रविप्रभाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो गौओंके लिये, स्त्रीके लिये और ब्राह्मणके लिये अपने प्राण दे देते हैं, वे सूर्यके समान कान्तिमान् और देवकन्याओंसे सेवित हो यमलोककी यात्रा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये यजन्ति द्विजश्रेष्ठाः क्रतुभिर्भूरिदक्षिणैः।
हंससारससंयुक्तैर्यानैस्ते यान्ति तत्पथम् ॥

मूलम्

ये यजन्ति द्विजश्रेष्ठाः क्रतुभिर्भूरिदक्षिणैः।
हंससारससंयुक्तैर्यानैस्ते यान्ति तत्पथम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो श्रेष्ठ द्विज अधिक दक्षिणावाले यज्ञोंका अनुष्ठान करते हैं, वे हंस और सारसोंसे युक्त विमानोंके द्वारा उस मार्गपर जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परपीडामकृत्वैव भृत्यान् बिभ्रति ये नराः।
तत्पथं ससुखं यान्ति विमानैः काञ्चनोज्ज्वलैः॥

मूलम्

परपीडामकृत्वैव भृत्यान् बिभ्रति ये नराः।
तत्पथं ससुखं यान्ति विमानैः काञ्चनोज्ज्वलैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरोंको कष्ट पहुँचाये बिना ही अपने कुटुम्बका पालन करते हैं, वे सुवर्णमय विमानोंके द्वारा सुखपूर्वक यात्रा करते हैं॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)