००४

मूलम् (समाप्तिः)

[बीज और योनिकी शुद्धि तथा गायत्री-जपकी और ब्राह्मणोंकी महिमाका और उनके तिरस्कारके भयानक फलका वर्णन]

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुत्वैवं सात्त्विकं दानं राजसं तामसं तथा।
पृथक्पृथक्त्वेन गतिं फलं चापि पृथक् पृथक्॥
अवितृप्तः प्रहृष्टात्मा पुण्यं धर्मामृतं पुनः।
युधिष्ठिरो धर्मरतः केशवं पुनरब्रवीत्॥

मूलम्

श्रुत्वैवं सात्त्विकं दानं राजसं तामसं तथा।
पृथक्पृथक्त्वेन गतिं फलं चापि पृथक् पृथक्॥
अवितृप्तः प्रहृष्टात्मा पुण्यं धर्मामृतं पुनः।
युधिष्ठिरो धर्मरतः केशवं पुनरब्रवीत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! इस प्रकार सात्त्विक, राजस और तामस दान, उसकी भिन्न-भिन्न गति और पृथक्-पृथक् फलका वर्णन सुनकर धर्मपरायण युधिष्ठिरका चित्त बहुत प्रसन्न हुआ। इस परम पवित्र धर्मरूपी अमृतका पान करनेसे उन्हें तृप्ति नहीं हुई, अतः वे पुनः भगवान् श्रीकृष्णसे बोले—॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बीजयोनिविशुद्धानां लक्षणानि वदस्व मे।
बीजदोषेण लोकेश जायन्ते च कथं नराः॥

मूलम्

बीजयोनिविशुद्धानां लक्षणानि वदस्व मे।
बीजदोषेण लोकेश जायन्ते च कथं नराः॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जगदीश्वर! मुझे यह बतलाइये कि बीज और योनि (वीर्य और रज)-से शुद्ध पुरुषोंके लक्षण कैसे होते हैं? बीज-दोषसे कैसे मनुष्य उत्पन्न होते हैं?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आचारदोषं देवेश वक्तुमर्हस्यशेषतः ।
ब्राह्मणानां विशेषं च गुणदोषौ च केशव॥

मूलम्

आचारदोषं देवेश वक्तुमर्हस्यशेषतः ।
ब्राह्मणानां विशेषं च गुणदोषौ च केशव॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देवेश्वर श्रीकृष्ण! ब्राह्मणोंके उत्तम, मध्यम आदि विशेष भेदोंका, उनके आचारके दोषोंका तथा उनके गुण-दोषोंका भी सम्पूर्णतया वर्णन कीजिये॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीभगवानुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणु राजन् यथावृत्तं बीजयोनिं शुभाशुभम्।
येन तिष्ठति लोकोऽयं विनश्यति च पाण्डव॥

मूलम्

शृणु राजन् यथावृत्तं बीजयोनिं शुभाशुभम्।
येन तिष्ठति लोकोऽयं विनश्यति च पाण्डव॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभगवान्‌ने कहा— राजन्! बीज और योनिकी शुद्धि-अशुद्धिका यथावत् वर्णन सुनो। पाण्डुनन्दन! उनकी शुद्धिसे ही यह संसार टिकता है और अशुद्धिसे उसका नाश हो जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अविप्लुतब्रह्मचर्यो यस्तु विप्रो यथाविधि।
स बीजं नाम विज्ञेयं तस्य बीजं शुभं भवेत्॥

मूलम्

अविप्लुतब्रह्मचर्यो यस्तु विप्रो यथाविधि।
स बीजं नाम विज्ञेयं तस्य बीजं शुभं भवेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण ब्रह्मचर्यका विधिवत् पालन करता है, जिसका ब्रह्मचर्यव्रत कभी खण्डित नहीं होता, उसको बीज समझना चाहिये, उसीका बीज शुभ होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कन्या चाक्षतयोनिः स्यात्‌ कुलीना पितृमातृतः।
ब्राह्मादिषु विवाहेषु परिणीता यथाविधि॥
सा प्रशस्ता वरारोहा तस्याः योनिः प्रशस्यते।
मनसा कर्मणा वाचा या गच्छेत् परपूरुषम्।
योनिस्तस्या नरश्रेष्ठ गर्भाधानं न चार्हति॥

मूलम्

कन्या चाक्षतयोनिः स्यात्‌ कुलीना पितृमातृतः।
ब्राह्मादिषु विवाहेषु परिणीता यथाविधि॥
सा प्रशस्ता वरारोहा तस्याः योनिः प्रशस्यते।
मनसा कर्मणा वाचा या गच्छेत् परपूरुषम्।
योनिस्तस्या नरश्रेष्ठ गर्भाधानं न चार्हति॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार जो कन्या पिता और माताकी दृष्टिसे उत्तम कुलमें उत्पन्न हो, जिसकी योनि दूषित न हुई हो तथा ब्राह्म आदि उत्तम विवाहोंकी विधिसे ब्याही गयी हो, वह उत्तम स्त्री मानी गयी है। उसीकी योनि श्रेष्ठ है। नरश्रेष्ठ! जो स्त्री मन, वाणी और क्रियासे परपुरुषके साथ समागम करती है, उसकी योनि गर्भाधानके योग्य नहीं होती॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दैवे पित्र्ये तथा दाने भोजने सहभाषणे।
शयने सह सम्बन्धे न योग्या दुष्टयोनिजाः॥

मूलम्

दैवे पित्र्ये तथा दाने भोजने सहभाषणे।
शयने सह सम्बन्धे न योग्या दुष्टयोनिजाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूषित योनिसे उत्पन्न हुए मनुष्य यज्ञ, श्राद्ध, दान, भोजन, वार्तालाप, शयन तथा सम्बन्ध आदिमें सम्मिलित करने योग्य नहीं होते॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कानीनश्च सहोढश्च तथोभौ कुण्डगोलकौ।
आरूढपतिताज्जातः पतितस्यापि यः सुतः।
षडेते विप्रचाण्डाला निकृष्टाः श्वपचादपि॥

मूलम्

कानीनश्च सहोढश्च तथोभौ कुण्डगोलकौ।
आरूढपतिताज्जातः पतितस्यापि यः सुतः।
षडेते विप्रचाण्डाला निकृष्टाः श्वपचादपि॥

अनुवाद (हिन्दी)

बिना ब्याही कन्यासे उत्पन्न, ब्याहके समय गर्भवती कन्यासे उत्पन्न, पतिकी जीवितावस्थामें व्यभिचारसे उत्पन्न, पतिके मर जानेपर पर-पुरुषसे उत्पन्न, संन्यासीके वीर्यसे उत्पन्न तथा पतित मनुष्यसे उत्पन्न—ये छः प्रकारके चाण्डाल ब्राह्मण होते हैं, जो चाण्डालसे भी नीच हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यो यत्र तत्र वा रेतः सिक्त्वा शूद्रासु वा चरेत्।
कामचारी स पापात्मा बीजं तस्याशुभं भवेत्॥

मूलम्

यो यत्र तत्र वा रेतः सिक्त्वा शूद्रासु वा चरेत्।
कामचारी स पापात्मा बीजं तस्याशुभं भवेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो जहाँ-तहाँ जिस किसी स्त्रीसे अथवा शूद्र जातिकी स्त्रीसे भी समागम कर लेता है, वह पापात्मा स्वेच्छाचारी कहलाता है। उसका बीज अशुभ होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अशुद्धं तद् भवेद् बीजं शुद्धां योनिं न चार्हति।
दूषयत्यपि तां योनिं शुना लीढं हविर्यथा॥

मूलम्

अशुद्धं तद् भवेद् बीजं शुद्धां योनिं न चार्हति।
दूषयत्यपि तां योनिं शुना लीढं हविर्यथा॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह अशुद्ध वीर्य किसी शुद्ध योनिवाली स्त्रीके योग्य नहीं होता, उसके सम्पर्कसे कुत्तेके चाटे हुए हविष्यकी तरह शुद्ध योनि भी दूषित हो जाती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आत्मा हि शुक्रमुद्दिष्टं दैवतं परमं महत्।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन निरुन्ध्याच्छुक्रमात्मनः ॥

मूलम्

आत्मा हि शुक्रमुद्दिष्टं दैवतं परमं महत्।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन निरुन्ध्याच्छुक्रमात्मनः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वीर्यको आत्मा बताया गया है। वह सबसे श्रेष्ठ देवता है। इसलिये सब प्रकारका प्रयत्न करके अपने वीर्यकी रक्षा करनी चाहिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महद् यशः।
पुण्यं च मत्प्रियत्वं च लभते ब्रह्मचर्यया॥

मूलम्

आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महद् यशः।
पुण्यं च मत्प्रियत्वं च लभते ब्रह्मचर्यया॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्य ब्रह्मचर्यके पालनसे आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, महान् यश, पुण्य और मेरे प्रेमको प्राप्त करता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अविप्लुतब्रह्मचर्यैर्गृहस्थाश्रममाश्रितैः ।
पञ्चयज्ञपरैर्धर्मः स्थाप्यते पृथिवीतले ॥

मूलम्

अविप्लुतब्रह्मचर्यैर्गृहस्थाश्रममाश्रितैः ।
पञ्चयज्ञपरैर्धर्मः स्थाप्यते पृथिवीतले ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो गृहस्थ-आश्रममें स्थित होकर अखण्ड ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए पञ्चयज्ञोंके अनुष्ठानमें तत्पर रहते हैं, वे पृथ्वीतलपर धर्मकी स्थापना करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सायं प्रातस्तु ये संध्यां सम्यग्नित्यमुपासते।
नावं वेदमयीं कृत्वा तरन्ते तारयन्ति च॥

मूलम्

सायं प्रातस्तु ये संध्यां सम्यग्नित्यमुपासते।
नावं वेदमयीं कृत्वा तरन्ते तारयन्ति च॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन सबेरे और शामको विधिवत् संध्योपासना करते हैं, वे वेदमयी नौकाका सहारा लेकर इस संसार-समुद्रसे स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरोंको भी तार देते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यो जपेत् पावनीं देवीं गायत्रीं वेदमातरम्।
न सीदेत् प्रतिगृह्णानः पृथिवीं च ससागराम्॥

मूलम्

यो जपेत् पावनीं देवीं गायत्रीं वेदमातरम्।
न सीदेत् प्रतिगृह्णानः पृथिवीं च ससागराम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण सबको पवित्र बनानेवाली वेदमाता गायत्रीदेवीका जप करता है, वह समुद्रपर्यन्त पृथ्वीका दान लेनेपर भी प्रतिग्रहके दोषसे दुखी नहीं होता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये चास्य दुःस्थिताः केचिद् ग्रहाः सूर्यादयो दिवि।
ते चास्य सौम्या जायन्ते शिवाः शुभकरास्तथा॥

मूलम्

ये चास्य दुःस्थिताः केचिद् ग्रहाः सूर्यादयो दिवि।
ते चास्य सौम्या जायन्ते शिवाः शुभकरास्तथा॥

अनुवाद (हिन्दी)

तथा सूर्य आदि ग्रहोंमेंसे जो उसके लिये अशुभ स्थानमें रहकर अनिष्टकारक होते हैं, वे भी गायत्री-जपके प्रभावसे शान्त, शुभ और कल्याणकारी फल देनेवाले हो जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्र यत्र स्थिताश्चैव दारुणाः पिशिताशनाः।
घोररूपा महाकाया धर्षयन्ति न तं द्विजम्॥

मूलम्

यत्र यत्र स्थिताश्चैव दारुणाः पिशिताशनाः।
घोररूपा महाकाया धर्षयन्ति न तं द्विजम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जहाँ कहीं क्रूर कर्म करनेवाले भयंकर विशालकाय पिशाच रहते हैं, वहाँ जानेपर भी वे उस ब्राह्मणका अनिष्ट नहीं कर सकते॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनन्तीह पृथिव्यां च चीर्णवेदव्रता नराः।
चतुर्णामपि वेदानां सा हि राजन् गरीयसी॥

मूलम्

पुनन्तीह पृथिव्यां च चीर्णवेदव्रता नराः।
चतुर्णामपि वेदानां सा हि राजन् गरीयसी॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैदिक व्रतोंका आचरण करनेवाले पुरुष पृथ्वीपर दूसरोंको पवित्र करनेवाले होते हैं। राजन्! चारों वेदोंमें वह गायत्री श्रेष्ठ है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अचीर्णव्रतवेदा ये विकर्मफलमाश्रिताः ।
ब्राह्मणा नाममात्रेण तेऽपि पूज्या युधिष्ठिर।
किं पुनर्यस्तु संध्ये द्वे नित्यमेवोपतिष्ठते॥

मूलम्

अचीर्णव्रतवेदा ये विकर्मफलमाश्रिताः ।
ब्राह्मणा नाममात्रेण तेऽपि पूज्या युधिष्ठिर।
किं पुनर्यस्तु संध्ये द्वे नित्यमेवोपतिष्ठते॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिर! जो ब्राह्मण न तो ब्रह्मचर्यका पालन करते हैं और न वेदाध्ययन करते हैं, जो बुरे फलवाले कर्मोंका आश्रय लेते हैं, वे नाममात्रके ब्राह्मण भी गायत्रीके जपसे पूज्य हो जाते हैं। फिर जो ब्राह्मण प्रातः-सायं दोनों समय संध्या-वन्दन करते हैं, उनके लिये तो कहना ही क्या है?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शीलमध्ययनं दानं शौचं मार्दवमार्जवम्।
तस्माद् वेदाद् विशिष्टानि मनुराह प्रजापतिः॥

मूलम्

शीलमध्ययनं दानं शौचं मार्दवमार्जवम्।
तस्माद् वेदाद् विशिष्टानि मनुराह प्रजापतिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजापति मनुका कहना है कि—‘शील, स्वाध्याय, दान, शौच, कोमलता और सरलता—ये सद्‌गुण ब्राह्मणके लिये वेदसे भी बढ़कर हैं॥’

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूर्भुवः स्वरिति ब्रह्म यो वेदनिरतो द्विजः।
स्वदारनिरतो दान्तः स विद्वान् स च भूसुरः॥

मूलम्

भूर्भुवः स्वरिति ब्रह्म यो वेदनिरतो द्विजः।
स्वदारनिरतो दान्तः स विद्वान् स च भूसुरः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण ‘भूर्भुवः स्वः’ इन व्याहृतियोंके साथ गायत्रीका जप करता है, वेदके स्वाध्यायमें संलग्न रहता है और अपनी ही स्त्रीसे प्रेम करता है, वही जितेन्द्रिय, वही विद्वान् और वही इस भूमण्डलका देवता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संध्यामुपासते ये वै नित्यमेव द्विजोत्तमाः।
ते यान्ति नरशार्दूल ब्रह्मलोकं न संशयः॥

मूलम्

संध्यामुपासते ये वै नित्यमेव द्विजोत्तमाः।
ते यान्ति नरशार्दूल ब्रह्मलोकं न संशयः॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरुषसिंह! जो श्रेष्ठ ब्राह्मण प्रतिदिन संध्योपासन करते हैं, वे निःसंदेह ब्रह्मलोकको प्राप्त होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सावित्रीमात्रसारोऽपि वरो विप्रः सुयन्त्रितः।
नायन्त्रितश्चतुर्वेदी सर्वाशी सर्वविक्रयी ॥

मूलम्

सावित्रीमात्रसारोऽपि वरो विप्रः सुयन्त्रितः।
नायन्त्रितश्चतुर्वेदी सर्वाशी सर्वविक्रयी ॥

अनुवाद (हिन्दी)

केवल गायत्रीमात्र जाननेवाला ब्राह्मण भी यदि नियमसे रहता है तो वह श्रेष्ठ है; किंतु जो चारों वेदोंका विद्वान् होनेपर भी सबका अन्न खाता है, सब कुछ बेचता है और नियमोंका पालन नहीं करता है, वह उत्तम नहीं माना जाता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सावित्रीं चैव वेदांश्च तुलयातोलयन् पुरा।
सदेवर्षिगणाश्चैव सर्वे ब्रह्मपुरःसराः ।
चतुर्णामपि वेदानां सा हि राजन् गरीयसी॥

मूलम्

सावित्रीं चैव वेदांश्च तुलयातोलयन् पुरा।
सदेवर्षिगणाश्चैव सर्वे ब्रह्मपुरःसराः ।
चतुर्णामपि वेदानां सा हि राजन् गरीयसी॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! पूर्वकालमें देवता और ऋषियोंने ब्रह्माजीके सामने गायत्री-मन्त्र और चारों वेदोंको तराजूपर रखकर तौला था। उस समय गायत्रीका पलड़ा ही चारों वेदोंसे भारी साबित हुआ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा विकसिते पुष्पे मधु गृह्णन्ति षट्‌पदाः।
एवं गृहीता सावित्री सर्ववेदे च पाण्डव॥

मूलम्

यथा विकसिते पुष्पे मधु गृह्णन्ति षट्‌पदाः।
एवं गृहीता सावित्री सर्ववेदे च पाण्डव॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डव! जैसे भ्रमर खिले हुए फूलोंसे उनके सारभूत मधुको ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण वेदोंसे उनके सारभूत गायत्रीका ग्रहण किया गया है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मात् तु सर्ववेदानां सावित्री प्राण उच्यते।
निर्जीवा हीतरे वेदा विना सावित्रिया नृप॥

मूलम्

तस्मात् तु सर्ववेदानां सावित्री प्राण उच्यते।
निर्जीवा हीतरे वेदा विना सावित्रिया नृप॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसलिये गायत्री सम्पूर्ण वेदोंका प्राण कहलाती है। नरेश्वर! गायत्रीके बिना सभी वेद निर्जीव हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नायन्त्रितश्चतुर्वेदी शीलभ्रष्टः स कुत्सितः।
शीलवृत्तसमायुक्तः सावित्रीपाठको वरः ॥

मूलम्

नायन्त्रितश्चतुर्वेदी शीलभ्रष्टः स कुत्सितः।
शीलवृत्तसमायुक्तः सावित्रीपाठको वरः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नियम और सदाचारसे भ्रष्ट ब्राह्मण चारों वेदोंका विद्वान् हो तो भी वह निन्दाका ही पात्र है, किंतु शील और सदाचारसे युक्त ब्राह्मण यदि केवल गायत्रीका जप करता हो तो भी वह श्रेष्ठ माना जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहस्रपरमां देवीं शतमध्यां शतावराम्।
सावित्रीं जप कौन्तेय सर्वपापप्रणाशिनीम्॥

मूलम्

सहस्रपरमां देवीं शतमध्यां शतावराम्।
सावित्रीं जप कौन्तेय सर्वपापप्रणाशिनीम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रतिदिन एक हजार गायत्री-मन्त्रका जप करना उत्तम है, सौ मन्त्रका जप करना मध्यम और दस मन्त्रका जप करना कनिष्ठ माना गया है। कुन्तीनन्दन! गायत्री सब पापोंको नष्ट करनेवाली है, इसलिये तुम सदा उसका जप करते रहो॥

मूलम् (वचनम्)

युधिष्ठिर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रैलोक्यनाथ हे कृष्ण सर्वभूतात्मको ह्यसि।
नानायोगपर श्रेष्ठ तुष्यसे केन कर्मणा॥

मूलम्

त्रैलोक्यनाथ हे कृष्ण सर्वभूतात्मको ह्यसि।
नानायोगपर श्रेष्ठ तुष्यसे केन कर्मणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिरने पूछा— त्रिलोकीनाथ! आप सम्पूर्ण भूतोंके आत्मा हैं। विभिन्न योगोंके द्वारा प्राप्तव्य सर्वश्रेष्ठ श्रीकृष्ण! बताइये, किस कर्मसे आप संतुष्ट होते हैं?॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीभगवानुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदि भारसहस्रं तु गुग्गुल्वादि प्रधूपयेत्।
करोति चेन्नमस्कारमुपहारं च कारयेत्॥
स्तौति यः स्तुतिभिर्मां च ऋग्यजुःसामभिः सदा।
न तोषयति चेद् विप्रान् नाहं तुष्यामि भारत॥

मूलम्

यदि भारसहस्रं तु गुग्गुल्वादि प्रधूपयेत्।
करोति चेन्नमस्कारमुपहारं च कारयेत्॥
स्तौति यः स्तुतिभिर्मां च ऋग्यजुःसामभिः सदा।
न तोषयति चेद् विप्रान् नाहं तुष्यामि भारत॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभगवान्‌ने कहा— भारत! कोई एक हजार भार गुग्गुल आदि सुगन्धित पदार्थोंको जलाकर मुझे धूप दे, निरन्तर नमस्कार करे, खूब भेंट-पूजा चढ़ावे तथा ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदकी स्तुतियोंसे सदा मेरा स्तवन करता रहे; किंतु यदि वह ब्राह्मणको संतुष्ट न कर सका तो मैं उसपर प्रसन्न नहीं होता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्राह्मणे पूजिते नित्यं पूजितोऽस्मि न संशयः।
आक्रुष्टे चाहमाक्रुष्टो भवामि भरतर्षभ॥

मूलम्

ब्राह्मणे पूजिते नित्यं पूजितोऽस्मि न संशयः।
आक्रुष्टे चाहमाक्रुष्टो भवामि भरतर्षभ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! इसमें संदेह नहीं कि ब्राह्मणकी पूजासे सदा मेरी भी पूजा हो जाती है और ब्राह्मणको कटुवचन सुनानेसे मैं ही उस कटुवचनका लक्ष्य बनता हूँ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परा मयि गतिस्तेषां पूजयन्ति द्विजं हि ये।
यदहं द्विजरूपेण वसामि वसुधातले॥

मूलम्

परा मयि गतिस्तेषां पूजयन्ति द्विजं हि ये।
यदहं द्विजरूपेण वसामि वसुधातले॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मणकी पूजा करते हैं, उनकी परमगति मुझमें ही होती है; क्योंकि पृथ्वीपर ब्राह्मणोंके रूपमें मैं ही निवास करता हूँ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्तान् पूजयति प्राज्ञो मद्‌गतेनान्तरात्मना।
तमहं स्वेन रूपेण पश्यामि नरपुङ्गव॥

मूलम्

यस्तान् पूजयति प्राज्ञो मद्‌गतेनान्तरात्मना।
तमहं स्वेन रूपेण पश्यामि नरपुङ्गव॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरुषश्रेष्ठ! जो बुद्धिमान् मनुष्य मुझमें मन लगाकर ब्राह्मणोंकी पूजा करता है, उसको मैं अपना स्वरूप ही समझता हूँ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुब्जाः काणा वामनाश्च दरिद्रा व्याधितास्तथा।
नावमान्या द्विजाः प्राज्ञैर्मम रूपा हि ते द्विजाः॥

मूलम्

कुब्जाः काणा वामनाश्च दरिद्रा व्याधितास्तथा।
नावमान्या द्विजाः प्राज्ञैर्मम रूपा हि ते द्विजाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

ब्राह्मण यदि कुबड़े, काने, बौने, दरिद्र और रोगी भी हों तो विद्वान् पुरुषोंको कभी उनका अपमान नहीं करना चाहिये; क्योंकि वे सब मेरे ही स्वरूप हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये केचित् सागरान्तायां पृथिव्यां द्विजसत्तमाः।
मम रूपं हि तेष्वेवमर्चितेष्वर्चितोऽस्म्यहम्॥

मूलम्

ये केचित् सागरान्तायां पृथिव्यां द्विजसत्तमाः।
मम रूपं हि तेष्वेवमर्चितेष्वर्चितोऽस्म्यहम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

समुद्रपर्यन्त पृथ्वीके ऊपर जितने भी श्रेष्ठ ब्राह्मण हैं, वे सब मेरे स्वरूप हैं। उनका पूजन करनेसे मेरा भी पूजन हो जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बहवस्तु न जानन्ति नरा ज्ञानबहिष्कृताः।
यदहं द्विजरूपेण वसामि वसुधातले॥

मूलम्

बहवस्तु न जानन्ति नरा ज्ञानबहिष्कृताः।
यदहं द्विजरूपेण वसामि वसुधातले॥

अनुवाद (हिन्दी)

बहुत-से अज्ञानी पुरुष इस बातको नहीं जानते कि मैं इस पृथ्वीपर ब्राह्मणोंके रूपमें निवास करता हूँ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आक्रोशपरिवादाभ्यां ये रमन्ते द्विजातिषु।
तान् मृतान् यमलोकस्थान्‌ निपात्य पृथिवीतले॥
आक्रम्योरसि पादेन क्रूरः संरक्तलोचनः।
अग्निवर्णैस्तु संदंशैर्यमो जिह्वां समुद्धरेत्॥

मूलम्

आक्रोशपरिवादाभ्यां ये रमन्ते द्विजातिषु।
तान् मृतान् यमलोकस्थान्‌ निपात्य पृथिवीतले॥
आक्रम्योरसि पादेन क्रूरः संरक्तलोचनः।
अग्निवर्णैस्तु संदंशैर्यमो जिह्वां समुद्धरेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मणोंको गाली देकर और उनकी निन्दा करके प्रसन्न होते हैं, वे जब यमलोकमें जाते हैं तब लाल-लाल आँखोंवाले क्रूर यमराज उन्हें पृथ्वीपर पटककर छातीपर सवार हो जाते हैं और आगमें तपाये हुए सँड़सोंसे उनकी जीभ उखाड़ लेते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये च विप्रान् निरीक्षन्ते पापाः पापेन चक्षुषा।
अब्रह्मण्याः श्रुतेर्बाह्या नित्यं ब्रह्मद्विषो नराः॥
तेषां घोरा महाकाया वक्रतुण्डा महाबलाः।
उद्धरन्ति मुहूर्तेन खगाश्चक्षुर्यमाज्ञया ॥

मूलम्

ये च विप्रान् निरीक्षन्ते पापाः पापेन चक्षुषा।
अब्रह्मण्याः श्रुतेर्बाह्या नित्यं ब्रह्मद्विषो नराः॥
तेषां घोरा महाकाया वक्रतुण्डा महाबलाः।
उद्धरन्ति मुहूर्तेन खगाश्चक्षुर्यमाज्ञया ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो पापी ब्राह्मणोंकी ओर पापपूर्ण दृष्टिसे देखते हैं, ब्राह्मणोंके प्रति भक्ति नहीं करते, वैदिक मर्यादाका उल्लंघन करते हैं और सदा ब्राह्मणोंके द्वेषी बने रहते हैं, वे जब यमलोकमें पहुँचते हैं तब वहाँ यमराजकी आज्ञासे टेढ़ी चोंचवाले बड़े-बड़े बलवान् पक्षी आकर क्षणभरमें उन पापियोंकी आँखें निकाल लेते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यः प्रहारं द्विजेन्द्राय दद्यात्‌ कुर्याच्च शोणितम्।
अस्थिभङ्गं च यः कुर्यात् प्राणैर्वा विप्रयोजयेत्।
सोऽऽनुपूर्व्येण यातीमान् नरकानेकविंशतिम् ॥

मूलम्

यः प्रहारं द्विजेन्द्राय दद्यात्‌ कुर्याच्च शोणितम्।
अस्थिभङ्गं च यः कुर्यात् प्राणैर्वा विप्रयोजयेत्।
सोऽऽनुपूर्व्येण यातीमान् नरकानेकविंशतिम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मनुष्य ब्राह्मणको पीटता है, उसके शरीरसे खून निकाल देता है, उसकी हड्डी तोड़ डालता है अथवा उसके प्राण ले लेता है, वह क्रमशः इक्कीस नरकोंमें अपने पापका फल भोगता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शूलमारोप्यते पश्चाज्ज्वलने परिपच्यते ।
बहुवर्षसहस्राणि पच्यमानस्त्ववाक्‌शिराः ।
नावमुच्येत दुर्मेधा न तस्य क्षीयते गतिः॥

मूलम्

शूलमारोप्यते पश्चाज्ज्वलने परिपच्यते ।
बहुवर्षसहस्राणि पच्यमानस्त्ववाक्‌शिराः ।
नावमुच्येत दुर्मेधा न तस्य क्षीयते गतिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

पहले वह शूलपर चढ़ाया जाता है। फिर मस्तक नीचे करके उसे आगमें लटका दिया जाता है और वह हजारों वर्षोंतक उसमें पकता रहता है। वह दुष्ट-बुद्धिवाला पुरुष उस दारुण यातनासे तबतक छुटकारा नहीं पाता, जबतक कि उसके पापका भोग समाप्त नहीं हो जाता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्राह्मणान्‌ वा विचार्यैव व्रजन्‌ वै वधकाङ्‌क्षया।
शतवर्षसहस्राणि तामिस्रे परिपच्यते ॥

मूलम्

ब्राह्मणान्‌ वा विचार्यैव व्रजन्‌ वै वधकाङ्‌क्षया।
शतवर्षसहस्राणि तामिस्रे परिपच्यते ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ब्राह्मणोंका अपमान करनेके विचारसे अथवा उनको मारनेकी इच्छासे जो उनपर आक्रमण करते हैं, वे एक लाख वर्षतक तामिस्र नरकमें पकाये जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मान्नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गतिमीरयेत्।
न ब्रूयात् परुषां वाणीं न चैवैनानतिक्रमेत्॥

मूलम्

तस्मान्नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गतिमीरयेत्।
न ब्रूयात् परुषां वाणीं न चैवैनानतिक्रमेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसलिये ब्राह्मणोंके प्रति कभी अमंगलसूचक वचन न कहे, उनसे रूखी और कठोर बात न बोले तथा कभी उनका अपमान न करे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये विप्रान् श्लक्ष्णया वाचा पूजयन्ति नरोत्तमाः।
अर्चितश्च स्तुतश्चैव तैर्भवामि न संशयः॥

मूलम्

ये विप्रान् श्लक्ष्णया वाचा पूजयन्ति नरोत्तमाः।
अर्चितश्च स्तुतश्चैव तैर्भवामि न संशयः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो श्रेष्ठ मनुष्य ब्राह्मणोंकी मधुर वाणीसे पूजा करते हैं, उनके द्वारा निःसंदेह मेरी ही पूजा और स्तुति-क्रिया सम्पन्न हो जाती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तर्जयन्ति च ये विप्रान् कोशयन्ति च भारत।
आक्रुष्टस्तर्जितश्चाहं तैर्भवामि न संशयः॥

मूलम्

तर्जयन्ति च ये विप्रान् कोशयन्ति च भारत।
आक्रुष्टस्तर्जितश्चाहं तैर्भवामि न संशयः॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! जो ब्राह्मणोंको फटकारते और गालियाँ सुनाते हैं, वे मुझे ही गाली देते और मुझे ही फटकारते हैं। इसमें कोई संशय नहीं है॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)