भागसूचना
षट्सप्ततितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अर्जुनके द्वारा वज्रदत्तकी पराजय
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं त्रिरात्रमभवत् तद् युद्धं भरतर्षभ।
अर्जुनस्य नरेन्द्रेण वृत्रेणेव शतक्रतोः ॥ १ ॥
मूलम्
एवं त्रिरात्रमभवत् तद् युद्धं भरतर्षभ।
अर्जुनस्य नरेन्द्रेण वृत्रेणेव शतक्रतोः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— भरतश्रेष्ठ! जैसे इन्द्रका वृत्रासुरके साथ युद्ध हुआ था, उसी प्रकार अर्जुनका राजा वझदत्तके साथ तीन दिन तीन रात युद्ध होता रहा॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्चतुर्थे दिवसे वज्रदत्तो महाबलः।
जहास सस्वनं हासं वाक्यं चेदमथाब्रवीत् ॥ २ ॥
मूलम्
ततश्चतुर्थे दिवसे वज्रदत्तो महाबलः।
जहास सस्वनं हासं वाक्यं चेदमथाब्रवीत् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर चौथे दिन महाबली वज्रदत्त ठहाका मारकर हँसने लगा और इस प्रकार बोला—॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनार्जुन तिष्ठस्व न मे जीवन् विमोक्ष्यसे।
त्वां निहत्य करिष्यामि पितुस्तोयं यथाविधि ॥ ३ ॥
मूलम्
अर्जुनार्जुन तिष्ठस्व न मे जीवन् विमोक्ष्यसे।
त्वां निहत्य करिष्यामि पितुस्तोयं यथाविधि ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘अर्जुन! अर्जुन! खड़े रहो। आज मैं तुम्हें जीवित नहीं छोड़ूँगा। तुम्हें मारकर पिताका विधिपूर्वक तर्पण करूँगा॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वया वृद्धो मम पिता भगदत्तः पितुः सखा।
हतो वृद्धो मम पिता शिशुं मामद्य योधय ॥ ४ ॥
मूलम्
त्वया वृद्धो मम पिता भगदत्तः पितुः सखा।
हतो वृद्धो मम पिता शिशुं मामद्य योधय ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मेरे वृद्ध पिता भगदत्त तुम्हारे बापके मित्र थे, तो भी तुमने उनकी हत्या की। मेरे पिता बूढ़े थे, इसलिये तुम्हारे हाथसे मारे गये। आज उनका बालक मैं तुम्हारे सामने उपस्थित हूँ; मेरे साथ युद्ध करो’॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येवमुक्त्वा संक्रुद्धो वज्रदत्तो नराधिपः।
प्रेषयामास कौरव्य वारणं पाण्डवं प्रति ॥ ५ ॥
मूलम्
इत्येवमुक्त्वा संक्रुद्धो वज्रदत्तो नराधिपः।
प्रेषयामास कौरव्य वारणं पाण्डवं प्रति ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! ऐसा कहकर क्रोधमें भरे हुए राजा वज्रदत्तने पुनः पाण्डुपुत्र अर्जुनकी ओर अपने हाथीको हाँक दिया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सम्प्रेष्यमाणो नागेन्द्रो वज्रदत्तेन धीमता।
उत्पतिष्यन्निवाकाशमभिदुद्राव पाण्डवम् ॥ ६ ॥
मूलम्
सम्प्रेष्यमाणो नागेन्द्रो वज्रदत्तेन धीमता।
उत्पतिष्यन्निवाकाशमभिदुद्राव पाण्डवम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बुद्धिमान् वज्रदत्तके द्वारा हाँके जानेपर वह गजराज पाण्डुपुत्र अर्जुनकी ओर इस प्रकार दौड़ा, मानो आकाशमें उड़ जाना चाहता हो॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अग्रहस्तसुमुक्तेन शीकरेण स नागराट्।
समौक्षत गुडाकेशं शैलं नीलमिवाम्बुदः ॥ ७ ॥
मूलम्
अग्रहस्तसुमुक्तेन शीकरेण स नागराट्।
समौक्षत गुडाकेशं शैलं नीलमिवाम्बुदः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस गजराजने अपनी सूँडसे छोड़े गये जलकणोंद्वारा गुडाकेश अर्जुनको भिगो दिया। मानो मेघने नील पर्वतपर जलके फुहारे डाल दिये हों॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेन प्रेषितो राज्ञा मेघवद् विनदन् मुहुः।
मुखाडम्बरसंह्रादैरभ्यद्रवत फाल्गुनम् ॥ ८ ॥
मूलम्
स तेन प्रेषितो राज्ञा मेघवद् विनदन् मुहुः।
मुखाडम्बरसंह्रादैरभ्यद्रवत फाल्गुनम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजासे प्रेरित होकर बारंबार मेघके समान गम्भीर गर्जना करता हुआ वह हाथी अपने मुखके चीत्कारपूर्ण कोलाहलके साथ अर्जुनपर टूट पड़ा॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स नृत्यन्निव नागेन्द्रो वज्रदत्तप्रचोदितः।
आससाद द्रुतं राजन् कौरवाणां महारथम् ॥ ९ ॥
मूलम्
स नृत्यन्निव नागेन्द्रो वज्रदत्तप्रचोदितः।
आससाद द्रुतं राजन् कौरवाणां महारथम् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वज्रदत्तका हाँका हुआ वह गजराज नृत्य-सा करता हुआ तुरंत कौरव महारथी अर्जुनके पास जा पहुँचा॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमायान्तमथालक्ष्य वज्रदत्तस्य वारणम् ।
गाण्डीवमाश्रित्य बली न व्यकम्पत शत्रुहा ॥ १० ॥
मूलम्
तमायान्तमथालक्ष्य वज्रदत्तस्य वारणम् ।
गाण्डीवमाश्रित्य बली न व्यकम्पत शत्रुहा ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वज्रदत्तके उस हाथीको आते देख शत्रुओंका संहार करनेवाले बलवान् अर्जुन गाण्डीवका सहारा लेकर तनिक भी विचलित नहीं हुए॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चुक्रोध बलवच्चापि पाण्डवस्तस्य भूपतेः।
कार्यविघ्नमनुस्मृत्य पूर्ववैरं च भारत ॥ ११ ॥
मूलम्
चुक्रोध बलवच्चापि पाण्डवस्तस्य भूपतेः।
कार्यविघ्नमनुस्मृत्य पूर्ववैरं च भारत ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! वज्रदत्तके कारण जो कार्यमें विघ्न पड़ रहा था, उसको तथा पहलेके वैरको याद करके पाण्डुपुत्र अर्जुन उस राजापर अत्यन्त कुपित हो उठे॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तं वारणं क्रुद्धः शरजालेन पाण्डवः।
निवारयामास तदा वेलेव मकरालयम् ॥ १२ ॥
मूलम्
ततस्तं वारणं क्रुद्धः शरजालेन पाण्डवः।
निवारयामास तदा वेलेव मकरालयम् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरे हुए पाण्डुकुमार अर्जुनने अपने बाणसमूहोंद्वारा उस हाथीको उसी तरह रोक दिया, जैसे तटकी भूमि उमड़ते हुए समुद्रको रोक देती है॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स नागप्रवरः श्रीमानर्जुनेन निवारितः।
तस्थौ शरैर्विनुन्नाङ्गः श्वाविच्छललितो यथा ॥ १३ ॥
मूलम्
स नागप्रवरः श्रीमानर्जुनेन निवारितः।
तस्थौ शरैर्विनुन्नाङ्गः श्वाविच्छललितो यथा ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके सारे अंगोंमें बाण धँसे हुए थे। अर्जुनके द्वारा रोका गया वह शोभाशाली गजराज काँटोंवाली साहीके समान खड़ा हो गया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निवारितं गजं दृष्ट्वा भगदत्तसुतो नृपः।
उत्ससर्ज शितान् बाणानर्जुनं क्रोधमूर्च्छितः ॥ १४ ॥
मूलम्
निवारितं गजं दृष्ट्वा भगदत्तसुतो नृपः।
उत्ससर्ज शितान् बाणानर्जुनं क्रोधमूर्च्छितः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने हाथीको रोका गया देख भगदत्तकुमार राजा वज्रदत्त क्रोधसे व्याकुल हो उठा और अर्जुनपर तीखे बाणोंकी वर्षा करने लगा॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनस्तु महाबाहुः शरैररिनिघातिभिः ।
वारयामास तान् बाणांस्तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १५ ॥
मूलम्
अर्जुनस्तु महाबाहुः शरैररिनिघातिभिः ।
वारयामास तान् बाणांस्तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परंतु महाबाहु अर्जुनने अपने शत्रुघाती सायकोंद्वारा उन सारे बाणोंको पीछे लौटा दिया। वह एक अद्भुत-सी घटना हुई॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पुनरभिक्रुद्धो राजा प्राग्ज्योतिषाधिपः।
प्रेषयामास नागेन्द्रं बलवत् पर्वतोपमम् ॥ १६ ॥
मूलम्
ततः पुनरभिक्रुद्धो राजा प्राग्ज्योतिषाधिपः।
प्रेषयामास नागेन्द्रं बलवत् पर्वतोपमम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब प्राग्ज्योतिषपुरके स्वामी राजा वज्रदत्तने अत्यन्त कुपित हो अपने पर्वताकार गजराजको पुनः बलपूर्वक आगे बढ़ाया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य बलवत् पाकशासनिः।
नाराचमग्निसंकाशं प्राहिणोद् वारणं प्रति ॥ १७ ॥
मूलम्
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य बलवत् पाकशासनिः।
नाराचमग्निसंकाशं प्राहिणोद् वारणं प्रति ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसे बलपूर्वक आक्रमण करते देख इन्द्रकुमार अर्जुनने उस हाथीके ऊपर एक अग्निके समान तेजस्वी नाराच चलाया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेन वारणो राजन् मर्मस्वभिहतो भृशम्।
पपात सहसा भूमौ वज्ररुग्ण इवाचलः ॥ १८ ॥
मूलम्
स तेन वारणो राजन् मर्मस्वभिहतो भृशम्।
पपात सहसा भूमौ वज्ररुग्ण इवाचलः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उस नाराचने हाथीके मर्मस्थानोंमें गहरी चोट पहुँचायी। वह वज्रके मारे हुए पर्वतकी भाँति सहसा पृथ्वीपर ढह पड़ा॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पतन् शुशुभे नागो धनंजयशराहतः।
विशन्निव महाशैलो महीं वज्रप्रपीडितः ॥ १९ ॥
मूलम्
स पतन् शुशुभे नागो धनंजयशराहतः।
विशन्निव महाशैलो महीं वज्रप्रपीडितः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके बाणोंसे घायल होकर गिरता हुआ वह हाथी ऐसी शोभा पाने लगा, मानो वज्रके आघातसे अत्यन्त पीड़ित हुआ महान् पर्वत पृथ्वीमें समा जाना चाहता हो॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् निपतिते नागे वज्रदत्तस्य पाण्डवः।
तं न भेतव्यमित्याह ततो भूमिगतं नृपम् ॥ २० ॥
मूलम्
तस्मिन् निपतिते नागे वज्रदत्तस्य पाण्डवः।
तं न भेतव्यमित्याह ततो भूमिगतं नृपम् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वज्रदत्तके उस हाथीके धराशायी होते ही राजा वज्रदत्त स्वयं भी पृथ्वीपर जा पड़ा। उस समय पाण्डुपुत्र अर्जुनने उससे कहा—‘राजन्! तुम्हें डरना नहीं चाहिये’॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अब्रवीद्धि महातेजाः प्रस्थितं मां युधिष्ठिरः।
राजानस्ते न हन्तव्या धनंजय कथंचन ॥ २१ ॥
मूलम्
अब्रवीद्धि महातेजाः प्रस्थितं मां युधिष्ठिरः।
राजानस्ते न हन्तव्या धनंजय कथंचन ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब मैं घरसे प्रस्थित हुआ, उस समय महातेजस्वी राजा युधिष्ठिरने मुझसे कहा—‘धनंजय! तुम्हें किसी तरह भी राजाओंका वध नहीं करना चाहिये’॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वमेतन्नरव्याघ्र भवत्येतावता कृतम् ।
योधाश्चापि न हन्तव्या धनंजय रणे त्वया ॥ २२ ॥
मूलम्
सर्वमेतन्नरव्याघ्र भवत्येतावता कृतम् ।
योधाश्चापि न हन्तव्या धनंजय रणे त्वया ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
“पुरुषसिंह! इतना करनेसे सब कुछ हो जायगा। अर्जुन! तुम्हें युद्ध ठानकर योद्धाओंका वध कदापि नहीं करना चाहिये॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वक्तव्याश्चापि राजानः सर्वे सहसुहृज्जनैः।
युधिष्ठिरस्याश्वमेधो भवद्भिरनुभूयताम् ॥ २३ ॥
मूलम्
वक्तव्याश्चापि राजानः सर्वे सहसुहृज्जनैः।
युधिष्ठिरस्याश्वमेधो भवद्भिरनुभूयताम् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तुम सभी राजाओंसे कह देना कि आप सब लोग अपने सुहृदोंके साथ पधारें और युधिष्ठिरके अश्वमेधयज्ञ-सम्बन्धी उत्सवका आनन्द लें’॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति भ्रातृवचः श्रुत्वा न हन्मि त्वां नराधिप।
उत्तिष्ठ न भयं तेऽस्ति स्वस्तिमान् गच्छ पार्थिव ॥ २४ ॥
मूलम्
इति भ्रातृवचः श्रुत्वा न हन्मि त्वां नराधिप।
उत्तिष्ठ न भयं तेऽस्ति स्वस्तिमान् गच्छ पार्थिव ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘नरेश्वर! भाईके इस वचनको सुनकर इसे शिरोधार्य करके मैं तुम्हें मार नहीं रहा हूँ। भूपाल! उठो, तुम्हें कोई भय नहीं है। तुम सकुशल अपने घरको लौट जाओ॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आगच्छेथा महाराज परां चैत्रीमुपस्थिताम्।
यदाश्वमेधो भविता धर्मराजस्य धीमतः ॥ २५ ॥
मूलम्
आगच्छेथा महाराज परां चैत्रीमुपस्थिताम्।
यदाश्वमेधो भविता धर्मराजस्य धीमतः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘महाराज! आगामी चैत्रमासकी उत्तम पूर्णिमा तिथि उपस्थित होनेपर तुम हस्तिनापुरमें आना। उस समय बुद्धिमान् धर्मराजका वह उत्तम यज्ञ होगा’॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तः स राजा तु भगदत्तात्मजस्तदा।
तथेत्येवाब्रवीद् वाक्यं पाण्डवेनाभिनिर्जितः ॥ २६ ॥
मूलम्
एवमुक्तः स राजा तु भगदत्तात्मजस्तदा।
तथेत्येवाब्रवीद् वाक्यं पाण्डवेनाभिनिर्जितः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके ऐसा कहनेपर उनसे परास्त हुए भगदत्तकुमार राजा वज्रदत्तने कहा—‘बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा’॥२६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि वज्रदत्तपराजये षट्सप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें वज्रदत्तकी पराजयविषयक छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७६॥