भागसूचना
पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अर्जुनका प्राग्ज्योतिषपुरके राजा वज्रदत्तके साथ युद्ध
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्राग्ज्योतिषमथाभ्येत्य व्यचरत् स हयोत्तमः।
भगदत्तात्मजस्तत्र निर्ययौ रणकर्कशः ॥ १ ॥
स हयं पाण्डुपुत्रस्य विषयान्तमुपागतम्।
युयुधे भरतश्रेष्ठ वज्रदत्तो महीपतिः ॥ २ ॥
मूलम्
प्राग्ज्योतिषमथाभ्येत्य व्यचरत् स हयोत्तमः।
भगदत्तात्मजस्तत्र निर्ययौ रणकर्कशः ॥ १ ॥
स हयं पाण्डुपुत्रस्य विषयान्तमुपागतम्।
युयुधे भरतश्रेष्ठ वज्रदत्तो महीपतिः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! तदनन्तर वह उत्तम अश्व प्राग्ज्योतिषपुरके पास पहुँचकर विचरने लगा। वहाँ भगदत्तका पुत्र वज्रदत्त राज्य करता था, जो युद्धमें बड़ा ही कठोर था। भरतश्रेष्ठ! जब उसे पता लगा कि पाण्डुपुत्र युधिष्ठिरका अश्व मेरे राज्यकी सीमामें आ गया है, तब राजा वज्रदत्त नगरसे बाहर निकला और युद्धके लिये तैयार हो गया॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽभिनिर्याय नगराद् भगदत्तसुतो नृपः।
अश्वमायान्तमुन्मथ्य नगराभिमुखो ययौ ॥ ३ ॥
मूलम्
सोऽभिनिर्याय नगराद् भगदत्तसुतो नृपः।
अश्वमायान्तमुन्मथ्य नगराभिमुखो ययौ ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नगरसे निकलकर भगदत्तकुमार राजा वज्रदत्तने अपनी ओर आते हुए घोड़ेको बलपूर्वक पकड़ लिया और उसे साथ लेकर वह नगरकी ओर चला॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमालक्ष्य महाबाहुः कुरूणामृषभस्तदा ।
गाण्डीवं विक्षिपंस्तूर्णं सहसा समुपाद्रवत् ॥ ४ ॥
मूलम्
तमालक्ष्य महाबाहुः कुरूणामृषभस्तदा ।
गाण्डीवं विक्षिपंस्तूर्णं सहसा समुपाद्रवत् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसको ऐसा करते देख कुरुश्रेष्ठ महाबाहु अर्जुनने गाण्डीव धनुषपर टंकार देते हुए सहसा वेगपूर्वक उसपर धावा किया॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो गाण्डीवनिर्मुक्तैरिषुभिर्मोहितो नृपः ।
हयमुत्सृज्य तं वीरस्ततः पार्थमुपाद्रवत् ॥ ५ ॥
पुनः प्रविश्य नगरं दंशितः स नृपोत्तमः।
आरुह्य नागप्रवरं निर्ययौ रणकर्कशः ॥ ६ ॥
मूलम्
ततो गाण्डीवनिर्मुक्तैरिषुभिर्मोहितो नृपः ।
हयमुत्सृज्य तं वीरस्ततः पार्थमुपाद्रवत् ॥ ५ ॥
पुनः प्रविश्य नगरं दंशितः स नृपोत्तमः।
आरुह्य नागप्रवरं निर्ययौ रणकर्कशः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गाण्डीव धनुषसे छूटे हुए बाणोंके प्रहारसे व्याकुल हो वीर राजा वज्रदत्तने उस घोड़ेको तो छोड़ दिया और स्वयं पुनः नगरमें प्रवेश करके कवच आदिसे सुसज्जित हो एक श्रेष्ठ गजराजपर चढ़कर वह रणकर्कश नरेश युद्धके लिये बाहर निकला। आते ही उसने पार्थपर धावा बोल दिया॥५-६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाण्डुरेणातपत्रेण ध्रियमाणेन मूर्धनि ।
दोधूयता चामरेण श्वेतेन च महारथः ॥ ७ ॥
ततः पार्थं समासाद्य पाण्डवानां महारथम्।
आह्वयामास बीभत्सुं बाल्यान्मोहाच्च संयुगे ॥ ८ ॥
मूलम्
पाण्डुरेणातपत्रेण ध्रियमाणेन मूर्धनि ।
दोधूयता चामरेण श्वेतेन च महारथः ॥ ७ ॥
ततः पार्थं समासाद्य पाण्डवानां महारथम्।
आह्वयामास बीभत्सुं बाल्यान्मोहाच्च संयुगे ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने मस्तकपर श्वेत छत्र धारण कर रखा था। सेवक श्वेत चवँर खुला रहे थे। पाण्डव महारथी पार्थके पास पहुँचकर उस महारथी नरेशने बालचापल्य और मूर्खताके कारण उन्हें युद्धके लिये ललकारा॥७-८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स वारणं नगप्रख्यं प्रभिन्नकरटामुखम्।
प्रेषयामास संक्रुद्धः श्वेताश्वं प्रति पार्थिवः ॥ ९ ॥
मूलम्
स वारणं नगप्रख्यं प्रभिन्नकरटामुखम्।
प्रेषयामास संक्रुद्धः श्वेताश्वं प्रति पार्थिवः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरे हुए राजा वज्रदत्तने श्वेतवाहन अर्जुनकी ओर अपने पर्वताकार विशालकाय गजराजको, जिसके गण्डस्थलसे मदकी धारा बह रही थी, बढ़ाया॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विक्षरन्तं महामेघं परवारणवारणम् ।
शास्त्रवत् कल्पितं संख्ये विवशं युद्धदुर्मदम् ॥ १० ॥
मूलम्
विक्षरन्तं महामेघं परवारणवारणम् ।
शास्त्रवत् कल्पितं संख्ये विवशं युद्धदुर्मदम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह महान् मेघके समान मदकी वर्षा करता था। शत्रुपक्षके हाथियोंको रोकनेमें समर्थ था। उसे शास्त्रीय विधिके अनुसार युद्धके लिये तैयार किया गया था। वह स्वामीके अधीन रहनेवाला और युद्धमें दुर्धर्ष था॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रचोद्यमानः स गजस्तेन राज्ञा महाबलः।
तदाङ्कुशेन विबभावुत्पतिष्यन्निवाम्बरम् ॥ ११ ॥
मूलम्
प्रचोद्यमानः स गजस्तेन राज्ञा महाबलः।
तदाङ्कुशेन विबभावुत्पतिष्यन्निवाम्बरम् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा वज्रदत्तने जब अंकुशसे मारकर उस महाबली हाथीको आगे बढ़नेके लिये प्रेरित किया, तब वह इस तरह आगेकी ओर झपटा, मानो वह आकाशमें उड़ जायगा॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य क्रुद्धो राजन् धनंजयः।
भूमिष्ठो वारणगतं योधयामास भारत ॥ १२ ॥
मूलम्
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य क्रुद्धो राजन् धनंजयः।
भूमिष्ठो वारणगतं योधयामास भारत ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! भरतनन्दन! उसे इस प्रकार आक्रमण करते देख अर्जुन कुपित हो उठे। वे पृथ्वीपर स्थित होते हुए भी हाथीपर चढ़े हुए वज्रदत्तके साथ युद्ध करने लगे॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वज्रदत्तस्ततः क्रुद्धो मुमोचाशु धनंजये।
तोमरानग्निसंकाशान् शलभानिव वेगितान् ॥ १३ ॥
मूलम्
वज्रदत्तस्ततः क्रुद्धो मुमोचाशु धनंजये।
तोमरानग्निसंकाशान् शलभानिव वेगितान् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय वज्रदत्तने कुपित होकर तुरंत ही अर्जुनपर अग्निके समान प्रज्वलित तोमर चलाये, जो वेगसे उड़नेवाले पतंगोंके समान जान पड़ते थे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनस्तानसम्प्राप्तान् गाण्डीवप्रभवैः शरैः ।
द्विधा त्रिधा च चिच्छेद ख एव खगमैस्तदा ॥ १४ ॥
मूलम्
अर्जुनस्तानसम्प्राप्तान् गाण्डीवप्रभवैः शरैः ।
द्विधा त्रिधा च चिच्छेद ख एव खगमैस्तदा ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे तोमर अभी पास भी नहीं आने पाये थे कि अर्जुनने गाण्डीव धनुषद्वारा छोड़े गये आकाशचारी बाणोंद्वारा आकाशमें ही एक-एक तोमरके दो-दो, तीन-तीन टुकड़े कर डाले॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तान् दृष्ट्वा तथा छिन्नांस्तोमरान् भगदत्तजः।
इषूनसक्तांस्त्वरितः प्राहिणोत् पाण्डवं प्रति ॥ १५ ॥
मूलम्
स तान् दृष्ट्वा तथा छिन्नांस्तोमरान् भगदत्तजः।
इषूनसक्तांस्त्वरितः प्राहिणोत् पाण्डवं प्रति ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार उन तोमरोंके टुकड़े-टुकड़े हुए देख भगदत्तके पुत्रने पाण्डुनन्दन अर्जुनपर शीघ्रतापूर्वक लगातार बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽर्जुनस्तूर्णतरं रुक्मपुङ्खानजिह्मगान् ।
प्रेषयामास संक्रुद्धो भगदत्तात्मजं प्रति ॥ १६ ॥
स तैर्विद्धो महातेजा वज्रदत्तो महामृधे।
भृशाहतः पपातोर्व्यां न त्वेनमजहात् स्मृतिः ॥ १७ ॥
मूलम्
ततोऽर्जुनस्तूर्णतरं रुक्मपुङ्खानजिह्मगान् ।
प्रेषयामास संक्रुद्धो भगदत्तात्मजं प्रति ॥ १६ ॥
स तैर्विद्धो महातेजा वज्रदत्तो महामृधे।
भृशाहतः पपातोर्व्यां न त्वेनमजहात् स्मृतिः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब कुपित हुए अर्जुनने तुरंत ही सोनेके पंखोंसे युक्त सीधे जानेवाले बाण वज्रदत्तपर चलाये। उन बाणोंसे अत्यन्त आहत और घायल होकर उस महासमरमें महातेजस्वी वज्रदत्त हाथीकी पीठसे पृथ्वीपर गिर पड़ा; परंतु इतनेपर भी वह बेहोश नहीं हुआ॥१६-१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स पुनरारुह्य वारणप्रवरं रणे।
अव्यग्रः प्रेषयामास जयार्थी विजयं प्रति ॥ १८ ॥
मूलम्
ततः स पुनरारुह्य वारणप्रवरं रणे।
अव्यग्रः प्रेषयामास जयार्थी विजयं प्रति ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर वज्रदत्तनें पुनः उस श्रेष्ठ गजराजपर आरूढ़ हो रणभूमिमें बिना किसी घबराहटके विजयकी अभिलाषा रखकर अर्जुनकी ओर उस हाथीको बढ़ाया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मै बाणांस्ततो जिष्णुर्निर्मुक्ताशीविषोपमान् ।
प्रेषयामास संक्रुद्धो ज्वलितज्वलनोपमान् ॥ १९ ॥
मूलम्
तस्मै बाणांस्ततो जिष्णुर्निर्मुक्ताशीविषोपमान् ।
प्रेषयामास संक्रुद्धो ज्वलितज्वलनोपमान् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख अर्जुनको बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने उस हाथीके ऊपर केंचुलसे निकले हुए सर्पोंके समान भयंकर तथा प्रज्वलित अग्निके तुल्य तेजस्वी बाणोंका प्रहार किया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तैर्विद्धो महानागो विस्रवन् रुधिरं वभौ।
गैरिकाक्तमिवाम्भोऽद्रिर्बहुप्रस्रवणं तदा ॥ २० ॥
मूलम्
स तैर्विद्धो महानागो विस्रवन् रुधिरं वभौ।
गैरिकाक्तमिवाम्भोऽद्रिर्बहुप्रस्रवणं तदा ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन बाणोंसे घायल होकर वह महानाग खूनकी धारा बहाने लगा। उस समय वह गेरूमिश्रित जलकी धारा बहानेवाले अनेक झरनोंसे युक्त पर्वतके समान जान पड़ता था॥२०॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि वज्रदत्तयुद्धे पञ्चसप्ततिमोऽध्यायः ॥ ७५ ॥
Misc Detail
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें अर्जुनका वज्रदत्तके साथ युद्धविषयक पचहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७५॥