०७४ त्रिगर्तपराभवे

भागसूचना

चतुःसप्ततितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अर्जुनके द्वारा त्रिगर्तोंकी पराजय

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रिगर्तैरभवद् युद्धं कुतवैरैः किरीटिनः।
महारथसमाज्ञातैर्हतानां पुत्रनप्तृभिः ॥ १ ॥

मूलम्

त्रिगर्तैरभवद् युद्धं कुतवैरैः किरीटिनः।
महारथसमाज्ञातैर्हतानां पुत्रनप्तृभिः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! कुरुक्षेत्रके युद्धमें जो त्रिगर्त वीर मारे गये थे, उनके महारथी पुत्रों और पौत्रोंने किरीटधारी अर्जुनके साथ वैर बाँध लिया था। त्रिगर्तदेशमें जानेपर अर्जुनका उन त्रिगर्तोंके साथ घोर युद्ध हुआ था॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते समाज्ञाय सम्प्राप्तं यज्ञियं तुरगोत्तमम्।
विषयान्तं ततो वीरा दंशिताः पर्यवारयन् ॥ २ ॥
रथिनो बद्धतूणीराः सदश्वैः समलंकृतैः।
परिवार्य हयं राजन् ग्रहीतुं सम्प्रचक्रमुः ॥ ३ ॥

मूलम्

ते समाज्ञाय सम्प्राप्तं यज्ञियं तुरगोत्तमम्।
विषयान्तं ततो वीरा दंशिताः पर्यवारयन् ॥ २ ॥
रथिनो बद्धतूणीराः सदश्वैः समलंकृतैः।
परिवार्य हयं राजन् ग्रहीतुं सम्प्रचक्रमुः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पाण्डवोंका यज्ञसम्बन्धी उत्तम अश्व हमारे राज्यकी सीमामें आ पहुँचा है’ यह जानकर त्रिगर्तवीर कवच आदिसे सुसज्जित हो पीठपर तरकस बाँधे सजे-सजाये अच्छे घोड़ोंसे जुते हुए रथपर बैठकर निकले और उस अश्वको उन्होंने चारों ओरसे घेर लिया। राजन्! घोड़ेको घेरकर वे उसे पकड़नेका उद्योग करने लगे॥२-३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः किरीटी संचिन्त्य तेषां तत्र चिकीर्षितम्।
वारयामास तान् वीरान् सान्त्वपूर्वमरिंदमः ॥ ४ ॥

मूलम्

ततः किरीटी संचिन्त्य तेषां तत्र चिकीर्षितम्।
वारयामास तान् वीरान् सान्त्वपूर्वमरिंदमः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंका दमन करनेवाले अर्जुन यह जान गये कि वे क्या करना चाहते हैं। उनके मनोभावका विचार करके वे उन्हें शान्तिपूर्वक समझाते हुए युद्धसे रोकने लगे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदनादृत्य ते सर्वे शरैरभ्यहनंस्तदा।
तमोरजोभ्यां संछन्नांस्तान् किरीटी न्यवारयत् ॥ ५ ॥

मूलम्

तदनादृत्य ते सर्वे शरैरभ्यहनंस्तदा।
तमोरजोभ्यां संछन्नांस्तान् किरीटी न्यवारयत् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

किंतु वे सब उनकी बातकी अवहेलना करके उन्हें बाणोंद्वारा चोट पहुँचाने लगे। तमोगुण और रजोगुणके वशीभूत हुए उन त्रिगर्तोंको किरीटीने युद्धसे रोकनेकी पूरी चेष्टा की॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तानब्रवीत् ततो जिष्णुः प्रहसन्निव भारत।
निवर्तध्वमधर्मज्ञाः श्रेयो जीवितमेव च ॥ ६ ॥

मूलम्

तानब्रवीत् ततो जिष्णुः प्रहसन्निव भारत।
निवर्तध्वमधर्मज्ञाः श्रेयो जीवितमेव च ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तदनन्तर विजयशील अर्जुन हँसते हुए-से बोले—‘धर्मको न जाननेवाले पापात्माओ! लौट जाओ। जीवनकी रक्षामें ही तुम्हारा कल्याण है’॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स हि वीरः प्रयास्यन् वै धर्मराजेन वारितः।
हतबान्धवा न ते पार्थ हन्तव्याः पार्थिवा इति ॥ ७ ॥

मूलम्

स हि वीरः प्रयास्यन् वै धर्मराजेन वारितः।
हतबान्धवा न ते पार्थ हन्तव्याः पार्थिवा इति ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वीर अर्जुनने ऐसा इसलिये कहा कि चलते समय धर्मराज युधिष्ठिरने यह कहकर मना कर दिया था कि ‘कुन्तीनन्दन! जिन राजाओंके भाई-बन्धु कुरुक्षेत्रके युद्धमें मारे गये हैं, उनका तुम्हें वध नहीं करना चाहिये’॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तदा तद् वचः श्रुत्वा धर्मराजस्य धीमतः।
तान् निवर्तध्वमित्याह न न्यवर्तन्त चापि ते ॥ ८ ॥

मूलम्

स तदा तद् वचः श्रुत्वा धर्मराजस्य धीमतः।
तान् निवर्तध्वमित्याह न न्यवर्तन्त चापि ते ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बुद्धिमान् धर्मराजके इस आदेशको सुनकर उसका पालन करते हुए ही अर्जुनने त्रिगर्तोंको लौट जानेकी आज्ञा दी तथापि वे नहीं लौटे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्त्रिगर्तराजानं सूर्यवर्माणमाहवे ।
विचित्य शरजालेन प्रजहास धनंजयः ॥ ९ ॥

मूलम्

ततस्त्रिगर्तराजानं सूर्यवर्माणमाहवे ।
विचित्य शरजालेन प्रजहास धनंजयः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब उस युद्धस्थलमें त्रिगर्तराज सूर्यवर्माके सारे अंगोंमें बाण धँसाकर अर्जुन हँसने लगे॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्ते रथघोषेण रथनेमिस्वनेन च।
पूरयन्तो दिशः सर्वा धनंजयमुपाद्रवन् ॥ १० ॥

मूलम्

ततस्ते रथघोषेण रथनेमिस्वनेन च।
पूरयन्तो दिशः सर्वा धनंजयमुपाद्रवन् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख त्रिगर्तदेशीय वीर रथकी घरघराहट और पहियोंकी आवाजसे सारी दिशाओंको गुँजाते हुए वहाँ अर्जुनपर टूट पड़े॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूर्यवर्मा ततः पार्थे शराणां नतपर्वणाम्।
शतान्यमुञ्चद् राजेन्द्र लघ्वस्त्रमभिदर्शयन् ॥ ११ ॥

मूलम्

सूर्यवर्मा ततः पार्थे शराणां नतपर्वणाम्।
शतान्यमुञ्चद् राजेन्द्र लघ्वस्त्रमभिदर्शयन् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! तदनन्तर सूर्यवर्माने अपने हाथोंकी फुर्ती दिखाते हुए अर्जुनपर झुकी हुई गाँठवाले एक सौ बाणोंका प्रहार किया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैवान्ये महेष्वासा ये च तस्यानुयायिनः।
मुमुचुः शरवर्षाणि धनंजयवधैषिणः ॥ १२ ॥

मूलम्

तथैवान्ये महेष्वासा ये च तस्यानुयायिनः।
मुमुचुः शरवर्षाणि धनंजयवधैषिणः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार उसके अनुयायी वीरोंमें भी जो दूसरे-दूसरे महान् धनुर्धर थे, वे भी अर्जुनको मार डालनेकी इच्छासे उनपर बाणोंकी वर्षा करने लगे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तान् ज्यामुखनिर्मुक्तैर्बहुभिः सुबहून्‌ शरान्।
चिच्छेद पाण्डवो राजंस्ते भूमौ न्यपतंस्तदा ॥ १३ ॥

मूलम्

स तान् ज्यामुखनिर्मुक्तैर्बहुभिः सुबहून्‌ शरान्।
चिच्छेद पाण्डवो राजंस्ते भूमौ न्यपतंस्तदा ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! पाण्डुपुत्र अर्जुनने अपने धनुषकी प्रत्यंचासे छूटे हुए बहुसंख्यक बाणोंद्वारा शत्रुओंके बहुत-से बाणोंको काट डाला। वे कटे हुए बाण टुकड़े-टुकड़े होकर पृथ्वीपर गिर पड़े॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

केतुवर्मा तु तेजस्वी तस्यैवावरजो युवा।
युयुधे भ्रातुरर्थाय पाण्डवेन यशस्विना ॥ १४ ॥

मूलम्

केतुवर्मा तु तेजस्वी तस्यैवावरजो युवा।
युयुधे भ्रातुरर्थाय पाण्डवेन यशस्विना ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(सूर्यवर्माके परास्त होनेपर) उसका छोटा भाई केतुवर्मा जो एक तेजस्वी नवयुवक था, अपने भाईका बदला लेनेके लिये यशस्वी वीर पाण्डुपुत्र अर्जुनके साथ युद्ध करने लगा॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य केतुवर्माणमाहवे ।
अभ्यघ्नन्निशितैर्बाणैर्बीभत्सुः परवीरहा ॥ १५ ॥

मूलम्

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य केतुवर्माणमाहवे ।
अभ्यघ्नन्निशितैर्बाणैर्बीभत्सुः परवीरहा ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

केतुवर्माको युद्धस्थलमें धावा करते देख शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले अर्जुनने अपने तीखे बाणोंसे उसे मार डाला॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

केतुवर्मण्यभिहते धृतवर्मा महारथः ।
रथेनाशु समुत्पत्य शरैर्जिष्णुमवाकिरत् ॥ १६ ॥

मूलम्

केतुवर्मण्यभिहते धृतवर्मा महारथः ।
रथेनाशु समुत्पत्य शरैर्जिष्णुमवाकिरत् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

केतुवर्माके मारे जानेपर महारथी धृतवर्मा रथके द्वारा शीघ्र ही वहाँ आ धमका और अर्जुनपर बाणोंकी वर्षा करने लगा॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य तां शीघ्रतामीक्ष्य तुतोषातीव वीर्यवान्।
गुडाकेशो महातेजा बालस्य धृतवर्मणः ॥ १७ ॥

मूलम्

तस्य तां शीघ्रतामीक्ष्य तुतोषातीव वीर्यवान्।
गुडाकेशो महातेजा बालस्य धृतवर्मणः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतवर्मा अभी बालक था तो भी उसकी उस फुर्तीको देखकर महातेजस्वी पराक्रमी अर्जुन बड़े प्रसन्न हुए॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न संदधानं ददृशे नाददानं च तं तदा।
किरन्तमेव स शरान् ददृशे पाकशासनिः ॥ १८ ॥

मूलम्

न संदधानं ददृशे नाददानं च तं तदा।
किरन्तमेव स शरान् ददृशे पाकशासनिः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह कब बाण हाथमें लेता है और कब उसे धनुषपर चढ़ाता है, उसको इन्द्रकुमार अर्जुन भी नहीं देख पाते थे। उन्हें केवल इतना ही दिखायी देता था कि वह बाणोंकी वर्षा कर रहा है॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तु तं पूजयामास धृतवर्माणमाहवे।
मनसा तु मुहूर्तं वै रणे समभिहर्षयन् ॥ १९ ॥

मूलम्

स तु तं पूजयामास धृतवर्माणमाहवे।
मनसा तु मुहूर्तं वै रणे समभिहर्षयन् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने रणभूमिमें थोड़ी देरतक मन-ही-मन धृतवर्माकी प्रशंसा की और युद्धमें उसका हर्ष एवं उत्साह बढ़ाते रहे॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं पन्नगमिव क्रुद्धं कुरुवीरः स्मयन्निव।
प्रीतिपूर्वं महाबाहुः प्राणैर्न व्यपरोपयत् ॥ २० ॥

मूलम्

तं पन्नगमिव क्रुद्धं कुरुवीरः स्मयन्निव।
प्रीतिपूर्वं महाबाहुः प्राणैर्न व्यपरोपयत् ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यद्यपि धृतवर्मा सर्पके समान क्रोधमें भरा हुआ था तो भी कुरुवीर महाबाहु अर्जुन प्रेमपूर्वक मुसकराते हुए युद्ध करते थे। उन्होंने उसके प्राण नहीं लिये॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तथा रक्ष्यमाणो वै पार्थेनामिततेजसा।
धृतवर्मा शरं दीप्तं मुमोच विजये तदा ॥ २१ ॥

मूलम्

स तथा रक्ष्यमाणो वै पार्थेनामिततेजसा।
धृतवर्मा शरं दीप्तं मुमोच विजये तदा ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार अमित तेजस्वी अर्जुनके द्वारा जानबूझकर छोड़ दिये जानेपर धृतवर्माने उनके ऊपर एक अत्यन्त प्रज्वलित बाण चलाया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तेन विजयस्तूर्णमासीद् विद्धाः करे भृशम्।
मुमोच गाण्डिवं मोहात् तत् पपाताथ भूतले ॥ २२ ॥

मूलम्

स तेन विजयस्तूर्णमासीद् विद्धाः करे भृशम्।
मुमोच गाण्डिवं मोहात् तत् पपाताथ भूतले ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस बाणने तुरन्त आकर अर्जुनके हाथमें गहरी चोट पहुँचायी। उन्हें मूर्च्छा आ गयी और उनका गाण्डीव धनुष हाथसे छूटकर पृथ्वीपर जा पड़ा॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनुषः पततस्तस्य सव्यसाचिकराद् विभो।
बभूव सदृशं रूपं शक्रचापस्य भारत ॥ २३ ॥

मूलम्

धनुषः पततस्तस्य सव्यसाचिकराद् विभो।
बभूव सदृशं रूपं शक्रचापस्य भारत ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! भरतनन्दन! अर्जुनके हाथसे गिरते हुए उस धनुषका रूप इन्द्रधनुषके समान प्रतीत होता था॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् निपतिते दिव्ये महाधनुषि पार्थिवः।
जहास सस्वनं हासं धृतवर्मा महाहवे ॥ २४ ॥

मूलम्

तस्मिन् निपतिते दिव्ये महाधनुषि पार्थिवः।
जहास सस्वनं हासं धृतवर्मा महाहवे ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस दिव्य महाधनुषके गिर जानेपर महासमरमें खड़ा हुआ धृतवर्मा ठहाका मारकर जोर-जोरसे हँसने लगा॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो रोषार्दितो जिष्णुः प्रमृज्य रुधिरं करात्।
धनुरादत्त तद् दिव्यं शरवर्षैर्ववर्ष च ॥ २५ ॥

मूलम्

ततो रोषार्दितो जिष्णुः प्रमृज्य रुधिरं करात्।
धनुरादत्त तद् दिव्यं शरवर्षैर्ववर्ष च ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इससे अर्जुनका रोष बढ़ गया। उन्होंने हाथसे रक्त पोंछकर उस दिव्य धनुषको पुनः उठा लिया और धृतवर्मापर बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो हलहलाशब्दो दिवस्पृगभवत् तदा।
नानाविधानां भूतानां तत्कर्माणि प्रशंसताम् ॥ २६ ॥

मूलम्

ततो हलहलाशब्दो दिवस्पृगभवत् तदा।
नानाविधानां भूतानां तत्कर्माणि प्रशंसताम् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर तो अर्जुनके उस पराक्रमकी प्रशंसा करते हुए नाना प्रकारके प्राणियोंका कोलाहल समूचे आकाशमें व्याप्त हो गया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सम्प्रेक्ष्य संक्रुद्धं कालान्तकयमोपमम्।
जिष्णुं त्रैगर्तका योधाः परीताः पर्यवारयन् ॥ २७ ॥

मूलम्

ततः सम्प्रेक्ष्य संक्रुद्धं कालान्तकयमोपमम्।
जिष्णुं त्रैगर्तका योधाः परीताः पर्यवारयन् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनको काल, अन्तक और यमराजके समान कुपित हुआ देख त्रिगर्तदेशीय योद्धाओंने चारों ओरसे आकर उन्हें घेर लिया॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिसृत्य परीप्सार्थं ततस्ते धृतवर्मणः।
परिवव्रुर्गुडाकेशं तत्राक्रुद्ध्यद् धनंजयः ॥ २८ ॥

मूलम्

अभिसृत्य परीप्सार्थं ततस्ते धृतवर्मणः।
परिवव्रुर्गुडाकेशं तत्राक्रुद्ध्यद् धनंजयः ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतवर्माकी रक्षाके लिये सहसा आक्रमण करके त्रिगर्तोंने गुडाकेश अर्जुनको जब सब ओरसे घेर लिया, तब उन्हें बड़ा क्रोध हुआ॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो योधान् जघानाशु तेषां स दश चाष्ट च।
महेन्द्रवज्रप्रतिमैरायसैर्बहुभिः शरैः ॥ २९ ॥

मूलम्

ततो योधान् जघानाशु तेषां स दश चाष्ट च।
महेन्द्रवज्रप्रतिमैरायसैर्बहुभिः शरैः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर तो उन्होंने इन्द्रके वज्रकी भाँति दुस्सह लौहनिर्मित बहुसंख्यक बाणोंद्वारा बात-की-बातमें उनके अठारह प्रमुख योद्धाओंको यमलोक पहुँचा दिया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् सम्प्रभग्नान् सम्प्रेक्ष्य त्वरमाणो धनंजयः।
शरैराशीविषाकारैर्जघान स्वनवद्धसन् ॥ ३० ॥

मूलम्

तान् सम्प्रभग्नान् सम्प्रेक्ष्य त्वरमाणो धनंजयः।
शरैराशीविषाकारैर्जघान स्वनवद्धसन् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब तो त्रिगर्तोंमें भगदड़ मच गयी। उन्हें भागते देख अर्जुनने जोर-जोरसे हँसते हुए बड़ी उतावलीके साथ सर्पाकार बाणोंद्वारा उन सबको मारना आरम्भ किया॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते भग्नमनसः सर्वे त्रैगर्तकमहारथाः।
दिशोऽभिदुद्रुवू राजन् धनंजयशरार्दिताः ॥ ३१ ॥

मूलम्

ते भग्नमनसः सर्वे त्रैगर्तकमहारथाः।
दिशोऽभिदुद्रुवू राजन् धनंजयशरार्दिताः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! धनंजयके बाणोंसे पीड़ित हुए समस्त त्रिगर्तदेशीय महारथियोंका युद्धविषयक उत्साह नष्ट हो गया; अतः वे चारों दिशाओंमें भाग चले॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमूचुः पुरुषव्याघ्रं संशप्तकनिषूदनम् ।
तवास्म किंकराः सर्वे सर्वे वै वशगास्तव ॥ ३२ ॥

मूलम्

तमूचुः पुरुषव्याघ्रं संशप्तकनिषूदनम् ।
तवास्म किंकराः सर्वे सर्वे वै वशगास्तव ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनमेंसे कितने ही संशप्तकसूदन पुरुषसिंह अर्जुनसे इस प्रकार कहने लगे—‘कुन्तीनन्दन! हम सब आपके आज्ञाकारी सेवक हैं और सभी सदा आपके अधीन रहेंगे॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आज्ञापयस्व नः पार्थ प्रह्वान् प्रेष्यानवस्थितान्।
करिष्यामः प्रियं सर्वं तव कौरवनन्दन ॥ ३३ ॥

मूलम्

आज्ञापयस्व नः पार्थ प्रह्वान् प्रेष्यानवस्थितान्।
करिष्यामः प्रियं सर्वं तव कौरवनन्दन ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पार्थ! हम सभी सेवक विनीत भावसे आपके सामने खड़े हैं। आप हमें आज्ञा दें। कौरवनन्दन! हम सब लोग आपके समस्त प्रिय कार्य सदा करते रहेंगे’॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतदाज्ञाय वचनं सर्वांस्तानब्रवीत् तदा।
जीवितं रक्षत नृपाः शासनं प्रतिगृह्यताम् ॥ ३४ ॥

मूलम्

एतदाज्ञाय वचनं सर्वांस्तानब्रवीत् तदा।
जीवितं रक्षत नृपाः शासनं प्रतिगृह्यताम् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनकी ये बातें सुनकर अर्जुनने उनसे कहा—‘राजाओ! अपने प्राणोंकी रक्षा करो। इसका एक ही उपाय है, हमारा शासन स्वीकार कर लो’॥३४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि त्रिगर्तपराभवे चतुःसप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें त्रिगर्तोंकी पराजयविषयक चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७४॥